पाठकों के प्रश्न
नवंबर १, १९९५ की “प्रहरीदुर्ग” ने, मत्ती २४:३४ में जैसे लिखा है, “यह पीढ़ी” के बारे में यीशु ने जो कहा उस पर ध्यान केंद्रित किया था। क्या इसका यह अर्थ है कि १९१४ में स्वर्ग में परमेश्वर का राज्य स्थापित हुआ या नहीं इस बारे में कोई अनिश्चितता है?
प्रहरीदुर्ग में उस चर्चा ने १९१४ के बारे में हमारी मूल शिक्षा में कोई भी फेर-बदल पेश नहीं किया। यीशु ने राज्य अधिकार में उसकी उपस्थिति को विशिष्ट करनेवाले चिन्ह का विवरण दिया। हमारे पास पर्याप्त प्रमाण है कि १९१४ से यह चिन्ह पूरा होता आया है। युद्धों, अकालों, मरियों, भूकंपों के बारे में तथ्य और अन्य प्रमाण पुष्टि करते हैं कि १९१४ से यीशु, परमेश्वर के राज्य के राजा के पद पर सक्रिय रहा है। यह दिखाता है कि तब से हम रीति-व्यवस्था की समाप्ति में जी रहे हैं।
तो फिर, प्रहरीदुर्ग कौन-सी बात स्पष्ट कर रही थी? उसका मुख्य मुद्दा था कि मत्ती २४:३४ में यीशु ने किस अर्थ में “पीढ़ी” शब्द का प्रयोग किया था। वह लेखांश कहता है: “मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।” उसके समय में और हमारे समय में भी, “पीढ़ी” से यीशु का अर्थ क्या था?
अनेक शास्त्रवचन पुष्टि करते हैं कि यीशु ने “पीढ़ी” शब्द को किसी छोटे या विशिष्ट समूह के लिए, यानी कि केवल यहूदी अगुवों या केवल अपने निष्ठावान शिष्यों के लिए प्रयोग नहीं किया। इसके बजाय, उसने “पीढ़ी” का प्रयोग, उसे ठुकरानेवाले यहूदी जन-समूह की निंदा करने के लिए प्रयोग किया। लेकिन, ख़ुशी की बात है कि व्यक्ति वह कार्य कर सकते थे जिसके लिए प्रेरित पतरस ने पिन्तेकुस्त के दिन आग्रह किया, पश्चाताप करो और “इस कुटिल पीढ़ी से बचो।”—प्रेरितों २:४०, NHT.
उस कथन में, स्पष्टतः पतरस किसी निश्चित उम्र या समयावधि के बारे में साफ़-साफ़ नहीं कह रहा था, ना ही वह इस “पीढ़ी” को किसी तिथि के साथ जोड़ रहा था। उसने यह नहीं कहा कि लोगों को उस पीढ़ी से बचना चाहिए था जो यीशु के जन्म के साल में ही जन्मी थी या जो सा.यु. २९ में जन्मी थी। पतरस उस समय के अविश्वासी यहूदियों की बात कर रहा था—कुछ शायद काफ़ी जवान थे, दूसरे कुछ वृद्ध थे—वे लोग जिन्होंने यीशु की शिक्षा को सुना था, उसके चमत्कारों को देखा या उनके बारे में सुना था, और उसे मसीहा के रूप में स्वीकार नहीं किया था।
स्पष्ट है कि इसी तरीक़े से पतरस ने “पीढ़ी” शब्द के यीशु के प्रयोग को समझा जब वह और तीन अन्य प्रेरित जैतून पहाड़ पर यीशु के साथ थे। यीशु के भविष्यसूचक कथन के अनुसार, उस समय के यहूदी—मुख्यतः यीशु के समय में जीनेवाले लोग—युद्धों, भूकंपों, अकालों, और यहूदी व्यवस्था के अंत की निकटता के अन्य प्रमाणों का अनुभव करनेवाले थे या उनके बारे में सुननेवाले थे। असल में, वह पीढ़ी सा.यु. ७० में अंत आने से पहले जाती न रही।—मत्ती २४:३-१४, ३४.
यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि हमने यीशु के शब्दों को हमेशा इस अर्थ में नहीं लिया है। अपरिपूर्ण मनुष्यों में यह प्रवृत्ति होती है कि वे अंत कब आएगा इस तिथि के बारे में सुस्पष्ट होना चाहते हैं। याद कीजिए कि प्रेरित भी ज़्यादा स्पष्ट विवरण चाहते थे, उन्होंने पूछा: “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल को राज्य फेर देगा?”—प्रेरितों १:६.
ऐसे ही अच्छे अभिप्रायों से, आधुनिक दिनों में परमेश्वर के सेवकों ने “पीढ़ी” के बारे में यीशु के कथन से एक स्पष्ट समय अवधि निकालने की कोशिश की है जिसकी गणना १९१४ से की गयी थी। उदाहरण के लिए, एक दलील यह दी गयी है कि एक पीढ़ी ७० या ८० साल की हो सकती है, जिसके लोग इतनी उम्र के हैं कि वे प्रथम विश्व युद्ध और अन्य घटनाओं के महत्त्व को समझ पाएँ; इस तरह हम कुछ हद तक अनुमान लगा सकते हैं कि अंत कितना निकट है।
लेकिन ऐसा तर्क चाहे कितना ही नेक-नीयत हो, क्या वह आगे दी गयी यीशु की सलाह के अनुसार था? यीशु ने कहा: “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता; न स्वर्ग के दूत, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता। . . . इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।”—मत्ती २४:३६-४२.
सो प्रहरीदुर्ग में ‘इस पीढ़ी’ के बारे में हाल की जानकारी से १९१४ में जो हुआ उसकी हमारी समझ में बदलाव नहीं आया है। लेकिन इसने शब्द “पीढ़ी” के यीशु के प्रयोग की हमें ज़्यादा स्पष्ट समझ ज़रूर दी है, और इस तरह हमें यह समझने में मदद की है कि उसका यह शब्द-प्रयोग—१९१४ से गिनते हुए—हिसाब लगाने का कोई आधार नहीं था कि हम अंत के कितना क़रीब हैं।