वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • bsi08-1 पेज 12-15
  • बाइबल की किताब नंबर 43—यूहन्‍ना

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • बाइबल की किताब नंबर 43—यूहन्‍ना
  • “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (मत्ती–कुलुस्सियों)
  • उपशीर्षक
  • क्यों फायदेमंद है
“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (मत्ती–कुलुस्सियों)
bsi08-1 पेज 12-15

बाइबल की किताब नंबर 43—यूहन्‍ना

लेखक: प्रेरित यूहन्‍ना

लिखने की जगह: इफिसुस या उसके आस-पास

लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 98

कब से कब तक का ब्यौरा: पहली 18 आयतों के बाद, सा.यु. 29-33

मत्ती, मरकुस और लूका की किताबों को लोगों में बँटे 30 से भी ज़्यादा साल हो चुके थे और पहली सदी के मसीही इन्हें पवित्र आत्मा से रची किताबें मानते थे और अनमोल समझते थे। अब जबकि पहली सदी खत्म होने पर थी और यीशु के साथियों की गिनती कम हो गयी थी, ऐसे में शायद कई सवाल खड़े हुए होंगे। जैसे, क्या अभी-भी कुछ कहना बाकी था? क्या अभी-भी कोई था, जो अपनी यादें ताज़ी करके हमें यीशु की सेवा के बारे में अनमोल जानकारी दे सकता था? जी हाँ, बुज़ुर्ग यूहन्‍ना एक ऐसा ही शख्स था। उसे यीशु के साथ मेल-जोल रखने की अनोखी आशीष मिली थी। ऐसा मालूम होता है कि वह उन चेलों में से एक था, जिनको यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने सबसे पहले परमेश्‍वर के मेम्ने का परिचय दिया था। यही नहीं, वह उन चारों में से एक था, जिन्हें प्रभु यीशु ने सबसे पहले अपने साथ पूरे समय की सेवा करने का न्यौता दिया था। (यूह. 1:35-39; मर. 1:16-20) यूहन्‍ना, यीशु की सेवा के शुरू से लेकर आखिर तक उसका करीबी साथी रहा और वह एक ऐसा चेला था जिससे ‘यीशु प्रेम रखता था।’ आखिरी फसह मनाते वक्‍त वह यीशु की छाती की ओर झुका हुआ बैठा था। (यूह. 13:23; मत्ती 17:1; मर. 5:37; 14:33) यूहन्‍ना वहाँ भी मौजूद था, जहाँ यीशु एक दर्दनाक मौत मर रहा था और जहाँ यीशु ने उसे अपनी माँ, मरियम की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। वह यूहन्‍ना ही था, जो यीशु के जी उठने की खबर सुनकर जाँच-पड़ताल करने के लिए पतरस से भी तेज़ दौड़ा-दौड़ा गया और कब्र पर पहुँचा।—यूह. 19:26, 27; 20:2-4.

2 करीब 70 साल तक जोश के साथ सेवा करने पर यूहन्‍ना प्रौढ़ और नर्मदिल हो गया था। साथ ही, पतमुस टापू पर कैद में रहते वक्‍त उसे कई दर्शन दिए गए थे और उसने कई बातों पर मनन किया था। इन वजहों से वह उन बातों को लिखने के लिए एकदम काबिल था, जो उसने बरसों से अपने दिल में संजोए रखी थीं। पवित्र आत्मा ने यूहन्‍ना के दिमाग को उभारा कि वह उन बेशकीमती, जीवन देनेवाली बातों को याद करके उन्हें दर्ज़ करे, ताकि जो कोई उसका ब्यौरा पढ़े, वह ‘विश्‍वास करे, कि यीशु ही परमेश्‍वर का पुत्र मसीह है: और विश्‍वास करके उसके नाम से जीवन पाए।’—20:31.

3 दूसरी सदी की शुरूआत में मसीही, यूहन्‍ना को इस ब्यौरे का लेखक मानते थे। उन्हें इस बात पर कोई शक नहीं था कि उसकी रचना ईश्‍वर-प्रेरित किताबों का हिस्सा है। दूसरी सदी के आखिर से लेकर तीसरी सदी के शुरू के विद्वान, सिकंदरिया का क्लैमेंट, आइरीनियस, टर्टलियन और ऑरिजन, सभी गवाही देते हैं कि यूहन्‍ना ही इसका लेखक है। इसके अलावा, खुद यूहन्‍ना की किताब इस बात के कई सबूत देती है कि यूहन्‍ना ही इसका लेखक था। किताब से साफ ज़ाहिर होता है कि लेखक यहूदी था और यहूदियों के दस्तूरों और उनके देश से अच्छी तरह वाकिफ था। (2:6; 4:5; 5:2; 10:22, 23) लेखक का यीशु के बारे में इतनी सारी बातें जानना दिखाता है कि वह सिर्फ एक प्रेरित ही नहीं था, बल्कि उन तीन करीबी चेलों में से यानी पतरस, याकूब और यूहन्‍ना में से एक था, जो खास मौकों पर यीशु के साथ-साथ रहते थे। (मत्ती 17:1; मर. 5:37; 14:33) इनमें से याकूब (जब्दी का बेटा) लेखक नहीं हो सकता, क्योंकि इस किताब के लिखे जाने के बहुत पहले करीब सा.यु. 44 में उसे हेरोदेस अग्रिप्पा प्रथम ने मरवा डाला था। (प्रेरि. 12:2) न ही इसका लेखक पतरस हो सकता है, क्योंकि यूहन्‍ना 21:20-24 में उसका ज़िक्र लेखक के साथ-साथ किया गया है।

4 किताब की आखिरी आयतों में लेखक को वह चेला बताया गया है, “जिस से यीशु प्रेम रखता था।” इन शब्दों और इसी से मिलते-जुलते दूसरे शब्दों का पूरी किताब में कई बार इस्तेमाल हुआ है, मगर प्रेरित यूहन्‍ना का नाम कहीं पर भी नहीं आता। आखिरी आयतों में यीशु ने इस चेले के बारे में कहा: “यदि मैं चाहूं कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे क्या?” (यूह. 21:20, 22) इससे पता चलता है कि यह चेला पतरस और दूसरे प्रेरितों के मुकाबले बहुत लंबे समय तक ज़िंदा रहता। ये सारी बातें प्रेरित यूहन्‍ना पर ठीक बैठती हैं। यह गौरतलब है कि जब यूहन्‍ना को यीशु के आने के बारे में प्रकाशितवाक्य का दर्शन दिया गया, तब उसने उस शानदार भविष्यवाणी के आखिर में कहा: “आमीन। हे प्रभु यीशु आ।”—प्रका. 22:20.

5 हालाँकि यूहन्‍ना की किताबों से कोई पक्की जानकारी नहीं मिलती कि उसने सुसमाचार की अपनी किताब कब लिखी थी, मगर आम तौर पर माना जाता है कि उसने पतमुस टापू पर सज़ा काटने के बाद अपना सुसमाचार लिखा था। (प्रका. 1:9) रोमी सम्राट डोमिशियन की हुकूमत के आखिर में जिन लोगों को देशनिकाला दिया गया था, उनमें से बहुतों को अगले सम्राट नरवा ने (सा.यु. 96-98) वापस बुला लिया था। और यूहन्‍ना उनमें से एक था। यूहन्‍ना ने करीब सा.यु. 98 में सुसमाचार की अपनी किताब लिखी थी। और ऐसा माना जाता है कि उसके बाद, सा.यु. 100 में इफिसुस में बिना किसी तकलीफ के उसकी मौत हो गयी थी। यह उस समय की बात थी, जब सम्राट ट्रेजन की हुकूमत का तीसरा साल चल रहा था।

6 यूहन्‍ना की किताब इफिसुस या उसके आस-पास के इलाके में लिखी गयी थी, इसके बारे में यूसेबियस (लगभग सा.यु. 260-लगभग 342) आइरीनियस का हवाला देते हुए कहता है: “यूहन्‍ना ने ही एशिया के इफिसुस में रहते वक्‍त सुसमाचार तैयार किया था। यह प्रभु का वही चेला है, जो आखिरी रात प्रभु की छाती की ओर झुककर बैठा था।”a यूहन्‍ना की किताब पैलिस्टाइन से बाहर लिखी गयी थी, यह इस बात से पता चलता है कि इसमें यीशु के विरोधियों के लिए “फरीसियों” या “महायाजक” जैसे शब्दों के बजाय “यहूदियों” जैसे आम शब्द इस्तेमाल किए गए हैं। (यूह. 1:19; 12:9) इसके अलावा, गलील की झील के लिए उसका रोमी नाम तिबिरियास झील इस्तेमाल किया गया है। (6:1; 21:1) गैर-यहूदियों के फायदे के लिए यूहन्‍ना यहूदी पर्वों के बारे में ज़्यादा जानकारी देता है। (6:4; 7:2; 11:55) यूहन्‍ना को देशनिकाला देकर जिस टापू पर यानी पतमुस टापू पर भेजा गया था, वह इफिसुस के पास ही था। इसलिए यूहन्‍ना इफिसुस और एशिया माइनर की दूसरी कलीसियाओं के बारे में काफी कुछ जानता था, जैसा कि प्रकाशितवाक्य किताब के अध्याय 2 और 3 से मालूम होता है।

7 बीसवीं सदी में ऐसी बहुत-सी अहम हस्तलिपियाँ मिली हैं, जो यूहन्‍ना की किताब के सच होने पर रोशनी डालती हैं। इनमें से यूहन्‍ना की किताब का एक टुकड़ा मिला है, जिसमें यूहन्‍ना 18:31-33, 37, 38 दर्ज़ हैं। इस टुकड़े को आज पपाइरस राइलैंड्‌स 457 (P52) के नाम से जाना जाता है और इसे इंग्लैंड के मैनचेस्टर शहर में जॉन राइलैंड्‌स लाइब्रेरी में सँभालकर रखा गया है।b यह टुकड़ा इस परंपरा पर क्या रोशनी डालता है कि यूहन्‍ना ने अपनी किताब पहली सदी के आखिर में लिखी थी? इस बारे में गौर कीजिए कि मरहूम सर फ्रेड्रिक केन्यन ने सन्‌ 1949 की अपनी किताब द बाइबल एण्ड मॉर्डन स्कॉलरशीप के पेज 21 में क्या कहा। उन्होंने कहा: “हस्तलिपि का यह टुकड़ा छोटा ज़रूर है, मगर इस बात को पुख्ता करता है कि सुसमाचार की यह हस्तलिपि करीब सा.यु. 130-150 के दौरान रोमी प्रांत, मिस्र में इस्तेमाल में थी, जहाँ से यह मिली है। इस हस्तलिपि के लिखे जाने से लेकर बाँटे जाने तक का अगर हम कम-से-कम समय भी लें तो यह हमें उस वक्‍त के नज़दीक पहुँचाती है, जब सुसमाचार की यह किताब लिखी गयी थी यानी पहली सदी के आखिरी दशक में। इससे इस परंपरा पर उँगली उठाने की कोई ठोस वजह नहीं रह जाती कि यूहन्‍ना की सुसमाचार की किताब पहली सदी के आखिर में लिखी गयी थी।”

8 यूहन्‍ना की किताब अपनी शुरूआत के लिए अनोखी है। यह बताती है कि जो वचन “आदि में परमेश्‍वर के साथ था,” उसी के ज़रिए सबकुछ उत्पन्‍न हुआ है। (1:2) पिता और बेटे के अनमोल रिश्‍ते के बारे में बताने के बाद, यूहन्‍ना यीशु के कामों और उपदेशों की लाजवाब तसवीर पेश करता है। और ऐसा करते वक्‍त वह खासकर पिता और पुत्र के बीच के उस गहरे प्यार पर ज़ोर देता है, जो परमेश्‍वर के महान इंतज़ाम में सभी को एकता की डोर में बाँधे रखता है। इस किताब में यीशु की ज़िंदगी का सा.यु. 29-33 तक का ब्यौरा दिया गया है। और इसमें उन चार फसह के पर्वों का खास ज़िक्र किया गया है, जिनमें यीशु हाज़िर हुआ था। इससे एक सबूत मिलता है कि यीशु ने साढ़े तीन साल तक सेवा की थी। इन पर्वों में से तीन को फसह का पर्व बताया गया है। (2:13; 6:4; 12:1; 13:1) एक को ‘यहूदियों का पर्ब्ब’ कहा गया, लेकिन आस-पास की आयतें बताती हैं कि इसके ठीक पहले यीशु ने कहा था कि “कटनी होने में अब भी चार महीने पड़े हैं।” इससे पता चलता है कि यह पर्व फसह का पर्व था, जो लगभग कटनी की शुरूआत में मनाया जाता था।—4:35; 5:1.c

9 मोटे तौर पर “यूहन्‍ना रचित सुसमाचार” 92 प्रतिशत ऐसी जानकारी पेश करता है, जो सुसमाचार की बाकी तीन किताबों में नहीं पायी जाती। इसके बावजूद यूहन्‍ना अपनी किताब इन शब्दों से खत्म करता है: “और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूं, कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समातीं।”—21:25.

क्यों फायदेमंद है

30 “यूहन्‍ना रचित सुसमाचार” वचन के बारे में, जो आगे चलकर मसीह बना, दिल को छू जानेवाली सीधी और ज़बरदस्त जानकारी पेश करता है। इस किताब के ज़रिए हम परमेश्‍वर के इस अभिषिक्‍त बेटे की बातों और उसके कामों को करीबी से देख सकते हैं। हालाँकि यूहन्‍ना की लेखन-शैली सरल है और उसने आसान शब्दों का इस्तेमाल किया है, जिससे पता चलता है कि वह “अनपढ़ और साधारण” आदमी था, लेकिन उसके शब्दों में गज़ब की ताकत है। (प्रेरि. 4:13) उसकी किताब पिता और पुत्र के बीच के गहरे प्यार को सबसे बेहतरीन तरीके से बयान करती है। और यह भी बताती है कि हम उनके साथ इस प्यार-भरे रिश्‍ते में एक होकर कितनी आशीषें पा सकते हैं। यूहन्‍ना जितनी बार “प्रेम” और ‘प्रेम रखा’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता है, उतनी बार तो सुसमाचार की तीनों किताबें मिलकर भी नहीं करतीं।

31 सच, शुरू में वचन और पिता परमेश्‍वर के बीच कितना शानदार रिश्‍ता रहा होगा! परमेश्‍वर की इच्छा के मुताबिक ‘वचन इंसान बनकर आया और हमारे बीच रहा, और हमने उसकी ऐसी महिमा देखी जैसे पिता के एकलौते बेटे की है। और वह बड़ी कृपा और सच्चाई से सराबोर था।’ (यूह. 1:14, NW) यूहन्‍ना की पूरी किताब में यीशु इस बात पर ज़ोर देता है कि अपने पिता के साथ उसका ऐसा रिश्‍ता है कि वह पिता के अधीन रहता है और बिना कोई सवाल किए उसकी आज्ञा मानता है। (4:34; 5:19, 30; 7:16; 10:29, 30; 11:41, 42; 12:27, 49, 50; 14:10) यूहन्‍ना के अध्याय 17 में दिल छू लेनेवाली प्रार्थना में यीशु पिता के साथ अपने करीबी रिश्‍ते का शानदार वर्णन करता है। उस प्रार्थना में वह अपने पिता को बताता है कि उसने वह काम पूरा किया है, जो पिता ने उसे धरती पर सौंपा था। इसके बाद वह कहता है: “अब, हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत के होने से पहिले, मेरी तेरे साथ थी।”—17:5.

32 यीशु और उसके चेलों का आपस में क्या रिश्‍ता था? यूहन्‍ना की किताब में यीशु की भूमिका पर बार-बार ज़ोर दिया गया है कि सिर्फ उसी के ज़रिए इन चेलों और सभी इंसानों को परमेश्‍वर की आशीषें मिल सकती हैं। (14:13, 14; 15:16; 16:23, 24) उसे “परमेश्‍वर का मेम्ना,” “जीवन की रोटी,” “जगत की ज्योति,” “अच्छा चरवाहा,” “पुनरुत्थान और जीवन,” “मार्ग और सच्चाई और जीवन” और “सच्ची दाखलता” कहा गया है। (1:29; 6:35; 8:12; 10:11; 11:25; 14:6; 15:1) “सच्ची दाखलता” के दृष्टांत में यीशु उस अनोखी एकता के बारे में बताता है, जो न सिर्फ उसके और उसके सच्चे चेलों के बीच है बल्कि उसके और पिता के बीच भी है। उसके चेले बहुत-सा फल लाने के ज़रिए पिता की महिमा कर सकते हैं। यीशु सलाह देता है: “जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही मैं ने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो।”—15:9.

33 फिर यीशु अपने इन अज़ीज़ चेलों और ‘इनके वचन के द्वारा उस पर विश्‍वास करनेवालों’ के लिए यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती करता है कि वे पिता और उसके साथ एक हो सकें और सत्य के वचन के ज़रिए पवित्र किए जाएँ। यीशु अपनी आखिरी प्रार्थना में बड़े खूबसूरत शब्दों में अपनी सेवा का मकसद बयान करता है। वह कहता है: “मैं ने तेरा नाम उन को बताया और बताता रहूंगा कि जो प्रेम तुझ को मुझ से था, वह उन में रहे और मैं उन में रहूं।”—17:20, 26.

34 हालाँकि यीशु अपने चेलों को संसार में छोड़कर जानेवाला था, लेकिन उसने उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ा। उसने उन्हें एक सहायक यानी ‘सत्य की आत्मा’ दी। इसके अलावा, उसने उन्हें समय के हिसाब से ज़रूरी सलाह दी कि संसार के साथ उनका रिश्‍ता कैसा होना चाहिए और यह भी बताया कि वे “ज्योति के सन्तान” के नाते कैसे संसार पर जीत पा सकते हैं। (14:16, 17; 3:19-21; 12:36) यीशु ने कहा: “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” इसके बिलकुल उलट उसने अंधकार के पुत्रों से कहा: “तुम अपने पिता शैतान से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह . . . सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उस में है ही नहीं।” आइए हम ठान लें कि हम हमेशा सत्य में स्थिर रहेंगे, और “पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई” (NHT) से करते रहेंगे। साथ ही, यह ठान लें कि हम यीशु के इन शब्दों से हिम्मत पाते रहेंगे: “ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।”—8:31, 32, 44; 4:23; 16:33.

35 इन सारी बातों का ताल्लुक परमेश्‍वर के राज्य से भी है। अपने मुकद्दमे की सुनवाई में यीशु ने गवाही दी: “मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहां का नहीं।” फिर पीलातुस के सवाल के जवाब में उसने कहा: “तू [खुद] कहता है, कि मैं राजा हूं; मैं ने इसलिये जन्म लिया, और इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।” (18:36, 37) वाकई वे लोग खुश हैं जो यीशु का शब्द सुनते हैं और ‘नये सिरे से जन्म’ लेते हैं, क्योंकि “परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश” करके वे अपने राजा मसीह के साथ एक होंगे। वे “अन्य भेड़ें” भी खुश हैं, जो अपने चरवाहे और राजा का शब्द सुनती हैं और आगे चलकर जीवन पाएँगी। सचमुच हम यूहन्‍ना की सुसमाचार की किताब के लिए एहसानमंद हो सकते हैं, क्योंकि यह इसलिए लिखी गयी थी ताकि ‘हम विश्‍वास करें, कि यीशु ही परमेश्‍वर का पुत्र मसीह है: और विश्‍वास करके उसके नाम से जीवन पाएँ।’—3:3, 5; 10:16, NW; 20:31.

[फुटनोट]

a चर्च का इतिहास (अँग्रेज़ी), यूसेबियस, पाँचवीं किताब अध्याय 8, 4.

b इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 1, पेज 323.

c इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 2, पेज 57-8.

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें