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  • मसीहा की उपस्थिति तथा उसका शासन
    प्रहरीदुर्ग—1993 | अप्रैल 1
    • १, २. (क) जब यीशु का स्वर्गारोहण हुआ तब उसके प्रेरितों को दो स्वर्गदूत ने कैसे सांत्वना दी? (ख) मसीह की वापसी की प्रत्याशा से क्या प्रश्‍न उठते हैं?

      ग्यारह आदमी आकाश की ओर ताकते हुए, जैतून पहाड़ की पूर्वी ढाल पर खड़े थे। कुछ ही क्षण पहले उनके बीच में से यीशु मसीह का आरोहण हुआ था, और उसका रूप मन्द पड़ता गया जब तक कि बादलों ने उसे छिपा न लिया। उसके साथ बिताए वर्षों में, इन आदमियों ने यीशु को पर्याप्त प्रमाण देते हुए देखा था कि वह ही मसीहा था; उन्होंने उसकी मृत्यु के गहरे दुःख और उसके पुनरुत्थान के उल्लास का भी अनुभव किया था। अब वह चला गया था।

      २ अचानक दो स्वर्गदूत दिखाई पड़े और ये सांत्वनापूर्ण शब्द कहे: “हे गलीली पुरुषो, तुम क्यों खड़े स्वर्ग की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।” (प्रेरितों १:११) कितना आश्‍वासन मिलता है—यीशु के स्वर्गारोहण का यह अर्थ नहीं था कि उसे अब पृथ्वी और मानवजाति की कोई चिंता नहीं! इसके विपरीत, यीशु वापस आएगा। निःसंदेह इन शब्दों को सुनकर प्रेरित आशा से भर गए। आज भी लाखों लोग यीशु की वापसी की प्रतिज्ञा को बहुत महत्त्व देते हैं। कुछ लोग इसे “दूसरा आना” या “आगमन” कहते हैं। परन्तु, अधिकतर लोग अनिश्‍चित प्रतीत होते हैं कि मसीह की वापसी का वास्तव में अर्थ क्या है। मसीह किस रीति से वापस आएगा? कब? और आज हमारे जीवन पर यह कैसे प्रभाव डालता है?

      मसीह की वापसी का ढंग

      ३. बहुत से लोग मसीह की वापसी के विषय में क्या विश्‍वास करते हैं?

      ३ ऐन इवैंजिलिकल क्रिस्टॉलिजी (An Evangelical Christology) पुस्तक के अनुसार, “मसीह का दूसरा आना या वापसी (पेरूसिया), परमेश्‍वर के राज्य को आख़िरकार, खुलेआम, और अनादिकाल के लिए स्थापित करता है।” यह व्यापक रूप से मानी गई बात है कि मसीह की वापसी प्रकट रूप से दृश्‍य होगी, और पृथ्वी-ग्रह पर हरेक व्यक्‍ति को यह शाब्दिक रूप से नज़र आएगी। इस धारणा का समर्थन करने के लिए, बहुत से लोग प्रकाशितवाक्य १:७ की ओर संकेत करते हैं, जो कहता है: “देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है; और हर एक आंख उसे देखेगी, बरन जिन्हों ने उसे बेधा था, वे भी उसे देखेंगे।” परन्तु क्या इस आयत को शाब्दिक रूप में लेना चाहिए?

      ४, ५. (क) हम कैसे जानते हैं कि प्रकाशितवाक्य १:७ का अर्थ शाब्दिक नहीं है? (ख) यीशु के अपने शब्द इस समझ को कैसे निश्‍चित करते हैं?

      ४ याद रखिए, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक “चिह्नों में” पेश की गई है। (प्रकाशितवाक्य १:१, NW) यह परिच्छेद, फिर, प्रतीकात्मक होगा; फिर भी, “जिन्हों ने उसे बेधा था” वे लोग मसीह को वापस आते हुए कैसे देख सकते थे? उन्हें मरे तो तक़रीबन २० शताब्दियाँ बीत चुकी हैं! इसके अतिरिक्‍त, दूतों ने कहा कि मसीह “जिस रीति से” गया उसी रीति से लौटेगा। तो फिर, वह कैसे गया था? लाखों लोगों के देखते-देखते? नहीं, कुछ ही वफ़ादार जनों ने उस घटना को देखा। और जब स्वर्गदूतों ने उन से बात की, तब क्या प्रेरित स्वर्ग तक यीशु के सफ़र को शाब्दिक रूप से देख रहे थे? नहीं, बादलों ने यीशु को उनकी नज़रों से छिपा लिया था। इसके कुछ ही समय बाद, वह आत्मिक स्वर्ग में एक आत्मिक व्यक्‍ति के रूप में गया होगा, जो मानवी आंखों को अदृश्‍य था। (१ कुरिन्थियों १५:५०) सो, अधिक से अधिक, प्रेरितों ने केवल यीशु की यात्रा का आरंभ ही देखा; वे यात्रा का अन्त, उसका अपने पिता, यहोवा की स्वर्गीय उपस्थिति में लौटना, न देख सके। यह बात वे सिर्फ़ अपनी विश्‍वास की नज़रों से देख सकते थे।—यूहन्‍ना २०:१७.

      ५ बाइबल सिखाती है कि यीशु इसी रीति से वापस आता है। अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले स्वयं यीशु ने कहा: “थोड़ी देर रह गई है कि फिर संसार मुझे न देखेगा।” (यूहन्‍ना १४:१९, तिरछे टाइप हमारे.) उसने यह भी कहा कि “परमेश्‍वर का राज्य प्रगट रूप से नहीं आता” है। (लूका १७:२०) तो फिर, किस अर्थ में “हर एक आंख उसे देखेगी”? उत्तर देने के लिए, पहले आवश्‍यक है कि हम स्पष्ट रूप से उस शब्द को समझें जो यीशु और उसके अनुयायियों ने उसकी वापसी के सम्बन्ध में प्रयोग किया था।

      ६. (क) क्यों ‘वापस आना,’ “पहुँच,” “आगमन,” और “आना,” जैसे शब्द यूनानी शब्द पे·रू·सिʹया के उपयुक्‍त अनुवाद नहीं हैं? (ख) कौन-सी बात दिखाती है कि पे·रू·सिʹया, या “उपस्थिति,” किसी क्षणिक घटना से अधिक लम्बे समय तक रहती है?

      ६ सत्य तो यह है, मसीह सिर्फ़ ‘वापस आता’ ही नहीं, बल्कि उससे भी बढ़कर करता है। वह शब्द, “आना,” “पहुँच” या “आगमन” शब्दों की तरह, समय के एक क्षण में हुई एक ही घटना को संकेत करता है। परन्तु यीशु और उसके अनुयायियों ने जिस यूनानी शब्द का प्रयोग किया था उसका अर्थ इससे बढ़कर है। वह शब्द पे·रू·सिʹया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “साथ होना” या “उपस्थिति।” अधिकतर विद्वान्‌ लोग सहमत हैं कि यह शब्द केवल आगमन ही नहीं बल्कि अनुवर्ती उपस्थिति को भी सम्मिलित करता है—जैसे एक राजकीय व्यक्‍ति की एक सरकारी भेंट। यह उपस्थिति एक क्षणिक घटना नहीं है; यह एक ख़ास युग, समय की एक चिह्नित अवधि है। मत्ती २४:३७-३९ [NW] में, यीशु ने कहा कि “मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति [पे·रू·सिʹया],” “नूह के दिन” की तरह होगी, जो प्रलय के साथ पराकाष्ठा पर पहुँची थी। इससे पहले कि प्रलय ने आकर उस भ्रष्ट व्यवस्था को मिटा दिया, नूह कई दशकों तक जहाज़ बना रहा था और दुष्टों को चेतावनी दे रहा था। तो फिर, वैसे ही, मसीह की अदृश्‍य उपस्थिति कुछ दशकों की अवधि तक रहती है, इससे पहले कि यह भी एक बड़े विनाश के साथ पराकाष्ठा तक पहुँचे।

      ७. (क) कौन-सी बात प्रमाणित करती है कि पे·रू·सिʹया मानवीय आंखों द्वारा दृश्‍य नहीं है? (ख) वे शास्त्रवचन कैसे और कब पूरे होंगे जो वर्णन करते हैं कि यीशु की वापसी “हर एक आंख” द्वारा दृश्‍य होगी?

      ७ निःसंदेह, यह पे·रू·सिʹया मानवीय आंखों को शाब्दिक रूप से दृश्‍य नहीं है। यदि होता, तो यीशु अपने अनुयायियों को चिह्न देने में इतना समय क्यों बिताता, जैसे हम देखेंगे, ताकि उन्हें इस उपस्थिति को समझने में सहायता मिल सके?a तो भी, जब मसीह शैतान की विश्‍व व्यवस्था को नाश करने आएगा, तब उसकी उपस्थिति का तथ्य ज़बरदस्त रीति से सब लोगों पर स्पष्ट होगा। उस समय “हर एक आंख उसे देखेगी।” यहाँ तक कि यीशु के विरोधी भी, निराश होकर, यह समझ सकेंगे कि मसीह का शासन यथार्थ है।—मत्ती २४:३०; २ थिस्सलुनीकियों २:८; प्रकाशितवाक्य १:५, ६ देखिए.

  • मसीहा की उपस्थिति तथा उसका शासन
    प्रहरीदुर्ग—1993 | अप्रैल 1
    • a अठारह सौ चौंसठ में धर्मशास्त्री आर. गोवेट ने इस रीति से कहा: “मुझे यह बहुत निर्णायक प्रतीत होता है। उपस्थिति का चिह्न देना दिखाता है कि यह गुप्त है। जिस चीज़ को हम देखते हैं उसकी उपस्थिति को समझने के लिए हमें कोई संकेत की ज़रूरत नहीं होती है।”

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