“यहोवा का हाथ उन पर था”
“यों यहोवा का वचन बल पूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।”—प्रेरितों के काम १९:२०.
१. (अ) सा.यु. पहली सदी में ईसाईयत के शत्रुओं ने कौनसा दुःखड़ा रोया? (ब) जहाँ कहीं मिशनरी पौलुस ने परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया, उसके बाद क्या होता था, और प्रारंभिक मसीहियों पर हमेशा क्या होता था?
१,९०० से भी अधिक वर्ष पहले, मसीही संदेश के शत्रु और मिशनरी प्रेरित पौलुस के विरोधी यह दुखड़ा रोए: “ये लोग जिन्होंने जगत को उलटा-पुलटा कर दिया है, यहाँ भी आए हैं, . . . और ये . . . [यह कहकर कि] यीशु राजा है, कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं।” (प्रेरितों के काम १७:६, ७) जहाँ कहीं मसीही मिशनरी पौलुस ने यहोवा के राज्य का सुसमाचार बताया, क्रिया और प्रतिक्रिया होती थी, और अक़्सर उत्पीड़न भी। दूसरे प्रारंभिक मसीहियों ने भी उत्पीड़न झेला। पर हमेशा “यहोवा का हाथ उन पर था।”—प्रेरितों के काम ११:२१.
२. मसीही मिशनरी कार्यकलाप का प्रवर्तन किसने किया, और कैसे?
२ इस अत्यावश्यक मसीही मिशनरी कार्यकलाप किसने प्रवर्तित की थी? यह यीशु था, एक अनन्य मनुष्य, जिस का एक भावोत्तेजक संदेश था और उसे फैलाने का एक असाधारण तरीक़ा भी। याद रखें कि यीशु, परमेश्वर का पुत्र, परमेश्वर के राज्य के बारे में एक चौंका देनेवाली घोषणा सहित यहूदी लोगों के पास आया। लेकिन वे केवल व्यवस्था के कार्यों के ज़रिए अपने ही उद्धार में दिलचस्पी लेते थे।—मत्ती ४:१७; लूका ८:१; ११:४५, ४६.
“सब जातियों को”
३. यीशु की कौनसी भविष्यवाणी से उसके यहूदी चेले आश्चर्यचकित हुए होंगे, और क्यों?
३ इसलिए, हम यीशु के यहूदी चेलों के आश्चर्य का अनुमान लगा सकते हैं, जब उसने अपनी मृत्यु से तीन दिन पहले उन्हें यह बताया: “और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में, एक गवाही के रूप में सब जातियों को प्रचार किया जाएगा, और तब अन्त आ जाएगा।” (न्यू.व.) उसके चेलों ने ज़रूर ताज्जुब किया होगा कि वे किस तरह सुसमाचार “सब जातियों को” प्रचार कर सकते थे। विश्वासियों का ऐसा छोटा समूह, ऐसा चौंका देनेवाला नियत कार्य किस तरह पूरा कर सकते थे?—मत्ती २४:१४; मरकुस १३:१०.
४. पुनर्जीवित यीशु ने अपने चेलों को कौनसा आदेश दिया?
४ बाद में, पुनर्जीवित यीशु ने यह कहकर एक और आदेश दिया: “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” इस प्रकार, उन्हें अपने स्वामी का संदेश “सब जातियों के लोगों” के पास ले जाने का कार्य सौंपा गया।—मत्ती २८:१८-२०.
५, ६. (अ) परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार अन्यजातियों तक किस तरह पहुँचा, और उसका क्या नतीजा हुआ? (ब) यरूशलेम में के प्राचीनों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी जब पतरस ने उन्हें अन्यजातीय कुरनेलियुस के साथ अपना अनुभव बताया?
५ कुछ समय बाद इस कार्य में अन्यजातियों को प्रचार करना भी समाविष्ट हुआ, जो कि एक चुनौती साबित हुई। तीन से भी ज़्यादा साल बाद पतरस की अभिवृत्ति उसका सबूत है। एक दर्शन के ज़रिए, पतरस को अपवित्र प्राणी भोजन के तौर से खाने को कहा गया। जब परमेश्वर ने उसे संकेत किया जो पहले अपवित्र समझे जाते थे, उन्हें अब पवित्र समझना था, पतरस हैरान हुआ। फिर परमेश्वर की आत्मा ने पतरस को अन्यजातीय कुरनेलियुस नाम के रोमी शतपति के घर भेंट देने का निदेश दिया। वहाँ, उसने समझ लिया कि यह परमेश्वर की इच्छानुसार था कि वह कुरनेलियुस को प्रचार करे, हालाँकि उसने पहले सोचा था कि दूसरे जातियों के लोगों के साथ संबंध अवैध थे। जैसे ही पतरस बोल रहा था, पवित्र आत्मा उस अन्यजातीय परिवार पर गिरी, और वस्तुतः, इस से संकेत हुआ कि मसीही मिशनरी कार्यकलाप का क्षेत्र अब ग़ैर-यहूदी जगत् को सम्मिलित करने के लिए विस्तृत होना चाहिए।—प्रेरितों के काम १०:९-१६, २८, ३४, ३५, ४४.
६ जब पतरस ने यह नयी परिस्थिति यरूशलेम के प्राचीनों को समझा दी, तब “उन्होंने सम्मति दी, और परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे: ‘तब तो परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी जीवन के लिए मन फिराव का दान दिया है।’” (प्रेरितों के काम ११:१८; न्यू.व.) अब अन्यजातीय देश भी मसीह और उसके राज्य का सुसमाचार अबाधित रूप से प्राप्त कर सकते थे!
जातियों के लिए मिशनरी
७. महासागर के इर्द-गिर्द के देशों में मसीही मिशनरी कार्यकलाप किस तरह फैलना शुरु हुआ, और यहोवा ने इसका कैसे विचार किया?
७ प्रचार कार्य ने, जो कि स्तिफनुस की शहादत के बाद तेज़ी से बढ़ता गया था, अब एक अलग विस्तार ग्रहण किया। प्रेरितों को छोड़, यरूशलेम की मण्डली के बाक़ी सभी तितर-बितर हो गए थे। पहले-पहले, उन उत्पीड़ित यहूदी विश्वासियों ने फीनीके, कुप्रुस और अन्ताकिया के यहूदियों को ही प्रचार किया। “परंतु उन में से कितने कुप्रुसी और कुरेनी थे, जो . . . यूनानियों को भी प्रभु यीशु के सुसमाचार की बातें सुनाने लगे।” यहोवा ने जातियों के लिए इस मिशनरी कार्य का कैसे विचार किया? “और यहोवा का हाथ उन पर था, और बहुत लोग विश्वास करके प्रभु की ओर फिरे।” उन प्रारंभिक मसीहियों के हिम्मत के कारण, महा सागर के इर्द-गिर्द देशों में प्रभावकारी मिशनरी कार्यकलाप फैलना शुरु हुआ। लेकिन और भी ज़्यादा बातें होनेवाली थीं।—प्रेरितों के काम ४:३१; ८:१; ११:१९-२१.
८. परमेश्वर ने मिशनरी कार्य के विस्तार के लिए एक निर्णायक क़दम का संकेत किस तरह किया?
८ सामान्य युग लगभग ४७-४८ में, पवित्र आत्मा के ज़रिए, परमेश्वर ने मिशनरी कार्य के विस्तार के लिए एक निर्णायक क़दम संकेत किया। प्रेरितों के काम १३:२-४ पर का विवरण हमें बताता है कि: “पवित्र आत्मा ने कहा: ‘मेरे निमित्त बरनबास और शाऊल को उस काम के लिए अलग करो जिस के लिए मैं ने उन्हें बुलाया है।’ . . . सो वे पवित्र आत्मा के भेजे हुए सिलूकिया [सूरियाई अन्ताकिया का बन्दरगाह] को गए; और वहाँ से जहाज़ पर चढ़कर कुप्रुस को चले।” पौलुस और बरनबास को वह कितना रोमांचक लगा होगा—अपने पहले विदेशी नियतकार्य की ओर प्रस्थान करना! प्रेरित पौलुस मसीही मिशनरी कार्यकलाप में अगुआई कर रहा था। वह एक ऐसे कार्य के लिए भी नींव डाल रहा था, जो हमारी २०वीं सदी में पूरा किया जाता।
९. प्रेरित पौलुस ने अपने मिशनरी यात्राओं के ज़रिए क्या पूरा किया?
९ आगे जाकर पौलुस ने तीन अभिलिखित मिशनरी यात्राएँ और एक क़ैदी के रूप में रोम तक का सफ़र किया। इन के दौरान, उसने यूरोप के कई शहरों में कार्य आरंभ किया और राज्य संदेश का प्रचार उन देशों में किया जो आज सिरिया, साइप्रस, क्रीट, तुर्की, ग्रीस, माल्टा, और सिसिली के नाम से जाने जाते हैं। वह शायद स्पेन तक भी पहुँच गया। उसने अनेक शहरों में कलीसियाएँ स्थापित करने में मदद की होगी। उसके प्रभावकारी मिशनरी कार्यकलाप का रहस्य क्या था?
प्रभावकारी शिक्षण
१०. पौलुस अपने मिशनरी कार्यकलाप में इतना प्रभावकारी क्यों था?
१० पौलुस ने मसीह के सीखाने के तरीक़े का अनुकरण किया। इसलिए उसे लोगों के साथ सार्थक पारस्पारिक संबंध जोड़ना मालूम था। वह सीखाना और दूसरों को शिक्षकों के तौर से प्रशिक्षित करना जानता था। उसने अपना उपदेश धर्मशास्त्रों पर आधारित किया। उसने दूसरों को खुद अपनी बुद्धि से प्रभावित करने की कोशिश नहीं की, पर, उसके बजाय, उसने धर्मशास्त्रों में से विवेक से तर्क किया। (प्रेरितों के काम १७:२, ३) पौलुस अपने श्रोतागण के अनुकूल होना, और अपने संदेश का परिचय करने के लिए स्थानीय परिस्थितियों को एक र्स्प्रिग बोर्ड (गोता तख़्ता) के तौर से इस्तेमाल करना भी जानता था। जैसा उसने कहा: “मैं ने अपने आप को सब का दास बना दिया है कि अधिक लोगों को खींच लाऊँ। मैं यहूदियों के लिए यहूदी बना . . . व्यवस्थाहीनों के लिए मैं . . . व्यवस्थाहीन सा बन गया . . . मैं निर्बलों के लिए निर्बल सा बना, कि निर्बलों को खींच लाऊँ। मैं सब मनुष्यों के लिए सब कुछ बना हूँ, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊँ।”—१ कुरिन्थियों ९:१९-२३; प्रेरितों के काम १७:२२, २३.
११. कौनसी बात संकेत करती है कि पौलुस और उसके साथी प्रभावकारी मिशनरी थे, और मसीही सेवकाई कितनी दूर तक फैली थी?
११ पौलुस और उसके साथी प्रभावकारी मिशनरी थे। वे जहाँ जहाँ गए, वहाँ वहाँ उन्होंने अध्यवसाय और सहिष्णुता से मसीही कलीसियाओं को स्थापित करके उनका बल बढ़ाया। (प्रेरितों के काम १३:१४, ४३, ४८, ४९; १४:१९-२८) प्रारंभिक मसीही सेवकाई इतनी दूर तक फैली कि आख़िर में पौलुस “सुसमाचार के सत्य” के बारे में लिख सकता था “जो तुम्हारे पास पहुँचा है और जैसा (सारे; न्यू.व.) जगत में भी फल लाता, और बढ़ता जाता है . . . , जिस का प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया।” सचमुच, प्रारंभिक मसीही कार्यकलाप ने लोगों पर असर किया।—कुलुस्सियों १:५, ६, २३.
१२. कौनसी बात ने कुछ समय के लिए असली मसीही मिशनरी कार्य को बन्द किया?
१२ फिर भी, सा.यु. दूसरी सदी की शुरुआत तक, जिस तरह यीशु और प्रेरितों ने चिताया था, उसी तरह धर्म त्याग धीरे-धीरे मसीही कलीसिया में आ रहा था। (मत्ती ७:१५, २१-२३; प्रेरितों के काम २०:२९, ३०; १ यूहन्ना २:१८, १९) आगामी सदियों में, धर्मविज्ञान और मूर्तिपूजक धर्मसिद्धांत ने राज्य संदेश को धुँधला कर दिया। मसीहीजगत् ने मिशनरियों को—परमेश्वर के सच्चे राज्य का प्रचार करने नहीं, लेकिन रक्षाहीन आदिवासियों पर—अक़्सर तलवार सहित—ज़बरदस्ती करने के लिए भेज दिया, कि वे अपने राजनीतिक स्वामियों और समर्थकों का राज्य स्वीकार करें। असली मसीही मिशनरी कार्य बन्द हुआ पर हमेशा के लिए नहीं।
१३. आधुनिक समय में एक मिशनरी अभियान किस तरह शुरु हुआ, और १९१६ की समाप्ति तक क्या पूरा किया गया?
१३ क़रीब १९वीं सदी की समाप्ति के आसपास, वॉचटावर सोसाइटी के पहले सभापति, चार्ल्स टी. रस्सेल ने मिशनरी कार्यकलाप की आवश्यकता महसूस की। इस प्रकार उस ने एक विस्तृत प्रचार कार्य अभियान सुव्यवस्थित किया, और उस ने खुद संयुक्त राज्य अमेरीका में कई शहरों को भेंट की, और इस के अलावा, उसने समुद्री-जहाज़ से जितना संभव था उतने देशों को भेंट करने के उद्देश्य से दुनिया की सैर की। उसके बाइबल-आधारित लेखन ३५ भाषाओं में प्रकाशित किए गए। कहा जाता है कि १९१६ में उसकी मृत्यु से पहले उसने एक सार्वजनिक व्याख़्याता के तौर से दस लाख से भी अधिक मीलों का सफ़र किया और ३०,००० से भी ज़्यादा प्रवचन दिए।
१४. जोसेफ़ एफ. रदरफर्ड ने मिशनरी कार्यकलाप को बढ़ावा देने के लिए क्या किया?
१४ उसके उत्तराधिकारी, जोसेफ़ एफ. रदरफर्ड ने भी मिशनरी कार्यकलाप की अत्यावश्यक ज़रूरत को मान लिया। १९२० के दशक के प्रारंभिक हिस्से में, उसने क़ाबिल आदमियों को अलग अलग देशों में प्रचार कार्य स्थापित करने की मदद करने के लिए भेज दिया। मिशनरियों ने स्पेन, दक्षिण अमरीका, और पश्चिम आफ्रिका में इस राज्य कार्य में अगुवाई ली। १९३१ में स्पेन में कार्य को प्रबलित करने के लिए स्वयं-सेवकों के वास्ते एक निवेदन किया गया। इंग्लैंड से तीन नौजवान सामने आए और, चार वर्षों तक वहाँ सबसे मुश्किल और कठिन परिस्थितियों में, १९३६ में स्पेनी गृहयुद्ध के आरंभ होने तक काम किया। फिर अपनी जान बचाने के लिए उन्हें निकल भागना पड़ा।
१५. मिशनरी कार्य को सार्थक रूप से विस्तृत करने के लिए १९४० के दशक में क्या घटित हुआ?
१५ १९४० के दशक में, मिशनरी कार्यकलाप के संदर्भ में और भी बेहतर बातें घटने वाली थीं। वॉचटावर सोसाइटी के तीसरे सभापति, नेथन एच. नॉर के साथ उत्साही आदमियों की एक टीम काम कर रही थी। प्रकट रूप से पवित्र आत्मा के निर्देशन में, उत्तर-विश्व युद्ध II की चुनौती का सामना करने की तैयारी में, उसने १९४२ में एक मिशनरी स्कूल खोलने की आवश्यकता महसूस की। उस विश्व युद्ध के दौरान, उसने पहल की, और फरवरी १९४३ में उत्तरी न्यू यॉर्क राज्य में वॉचटावर स्कूल ऑफ गिलियड का उद्घाटन हुआ। चार प्रशिक्षकों सहित इस स्कूल ने, हर छः महीने, सौ से भी अधिक उत्साही, पुरुष और स्त्री, पायनियर सेवकों को मिशनरी सेवा के लिए बाइबल-आधारित प्रशिक्षण दिया। क्या उनका परिणामी कार्यकलाप प्रभावकारी रहा है?
१६. (अ) १९४३ में कितने गवाह प्रचार कर रहे थे, और आज की संख्या से उसकी तुलना कैसे होती है? (ब) इस बढ़ती में मिशनरियों का क्या भाग रहा है? व्याख्या करें।
१६ १९४३ में, ५४ देशों में केवल १,२६,३२९ गवाह प्रचार कर रहे थे। आज स्थिति क्या है? अब, ४५ वर्षों बाद, उस संख्या से २८ गुना ज़्यादा लोग हैं, जो कि २१२ देशों और समुद्र के द्वीपों में पैंतीस लाख से ज़्यादा क्रियाशील सेवक हैं। इस बढ़ती का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा, उस उत्तम नींव की वजह से है, जो ६,००० से ज़्यादा गिलियड स्कूल से स्नातक उपाधि प्राप्त मिशनरियों ने डाली। ये लोग ५९ देशों से आए हैं और पिछले पाँच वर्षों के दौरान उन्हें १४८ अलग देशों में भेज दिया गया है। उनकी सहायता से, पूरी दुनिया के लिए एक लाख से बस कुछ ही ज़्यादा गवाह होने के बजाय, जैसा कि ४५ वर्ष पहले थे, अब दस ऐसे देश हैं जिन के हरेक में एक लाख से ज़्यादा सेवक सुसमाचार का प्रचार करके लोगों को सीखा रहे हैं। इन में के अधिकतम देशों में, गिलियड के मिशनरी सुसमाचार-प्रचार कार्य के अग्रणियों में रहे हैं।
१७. वे तीन आधारभूत तत्त्व क्या हैं जिन से प्रारंभिक और आधुनिक मिशनरी कार्य, दोनों, इतने प्रभावकारी रहे हैं?
१७ हम चाहे प्रारंभिक या आधुनिक मसीही मिशनरी कार्य का ज़िक्र करें, कुछ आधारभूत तत्त्व हैं जिन के कारण यह प्रभावकारी रहा है। एक तो लोगों से सीधा संपर्क है जो घर-घर की सेवकाई और अनौपचारिक गवाही के कार्य के साथ-साथ गृह बाइबल अध्ययन व्यवस्था का परिणाम है। (यूहन्ना ४:७-२६; प्रेरितों के काम २०:२०) एक और तत्त्व है वह सीधा और सरल बाइबल-आधारित संदेश है जो परमेश्वर के राज्य को मानवजाति के समस्याओं का एकमात्र स्थायी हल के तौर से विशिष्ट करता है। (प्रेरितों के काम १९:८; २८:१६, २३, ३०, ३१) और हमारे कई मिशनरी अल्पविकसित राष्ट्रों में सेवा कर रहे हैं जहाँ परमेश्वर के धार्मिक शासन की ज़रूरत बहुत ही ज़ाहिर है। तीसरा तत्त्व है वह प्रेम जिसके बारे में मसीह ने सिखाया और जो हमारे आधुनिक मिशनरी सभी जाति और वंश के लोगों से अपने दैनिक व्यवहारों में प्रकट करते हैं। इसका कोई संदेह नहीं कि पिछले ४५ वर्षों में, वॉचटावर मिशनरियों ने यहोवा के संगठन के सार्वभौमिक विस्तार में एक प्रधान योग किया है।—रोमियों १:१४-१७; १ कुरिन्थियों ३:५, ६.
पायनियर मनोवृत्ति जड़ पकड़ती है
१८. गिलियड स्नातकों की तरह और किसने वही मिशनरी सरगर्मी की मनोवृत्ति आत्मसात् की है?
१८ निस्संदेह गिलियड स्नातकों के जोशीले उदाहरण से दूसरे लोगों में भी पूरे-समय के सेवक बनने की इच्छा उत्तेजित हुई। आज, यहोवा के अन्य लाखों गवाह हैं जिन्होंने वही मिशनरी उत्साह की मनोवृत्ति आत्मसात् की है। ये भी असली भावार्थ में पायनियर हैं, यीशु के पदचिह्नों पर चलते हैं, जो कि “उनके उद्धार का पथप्रदर्शक है।”—इब्रानियों २:१०; १२:२, मॉफ्फॅट.
१९. पायनियर मनोवृत्ति रखने वाले अनेक गवाहों ने किस सेवा का भार उठाने में स्वेच्छा दिखायी है, और वे किस तरह खुद को प्रतिफलित महसूस करते हैं?
१९ १९६० के दशक से कई देशों में मिशनरियों को भेजना ज़्यादा कठिन बना है। जिस हद तक संभव है, और विदेशी राष्ट्रों की आवश्यकता के मुताबिक, वॉचटावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड मिशनरियों को भेजती रहती है। परंतु, जिन गवाहों को सच्ची पायनियर मनोवृत्ति है, दुनिया भर में उनको एक विशाल क्षेत्र है। अनेकों ने खुद अपना इंतज़ाम करने का भार स्वेच्छा से उठाया है ताकि उन देशों में सेवा कर सके जहाँ आवश्यकता महत्तर हो। क्या आप उन में से हैं जो उन के साथ शामिल हो सकते हैं? ऐसों ने अक़्सर कहा है कि विकासशील देशों में भेड़-जैसे वृत्ति वालों को राज्य सच्चाईयाँ पहुँचाने के गहरे आनन्द से, कष्ट और त्यागों की बारंबार क्षतिपूर्ति होती है। नए “भाईयों और बहिनों और माताओं और लड़के-बालों” को पाने और उन्हें “आनेवाली रीति-व्यवस्था में” अनन्त जीवन की अत्युत्तम आशा देने से इन्हें सौ गुणा प्रतिफलित किया जाता है।—मरकुस १०:२८-३०.
२०. (अ) कौन कई देशों में प्रचार कार्य का अधिकांश हिस्सा पूरा कर रहे हैं? (ब) यह कैसे है कि जापान सालाना लगभग अन्य किसी भी देश से ज़्यादा, क्षेत्र सेवा में कुल ज़्यादा घंटे रिपोर्ट करता है? (क) किस प्रश्न पर ग़ौर करके हम भली-भाँति करेंगे?
२० इसके अतिरिक्त, आज यहोवा के सैंकड़ों गवाह हैं, जो हर महीने नियमित या सहायक पायनियरों के तौर से पवित्र सेवा रिपोर्ट करते हैं। इन में के अधिकांश लोग अपने अपने गृह-क्षेत्रों में अध्यवसाय से काम करते हैं। कई देशों में, प्रचार कार्य का महत्तर हिस्सा इन लोगों द्वारा किया जाता है, और अक़्सर वे वही घरों को हफ़्ता पर हफ़्ता भेंट करते हैं। उनकी राज्य आशा उनकी प्रसन्नचित्त बाह्याकृति और आनन्दित मनोवृत्ति से प्रतिबिंबित होती है, जैसे वे अपने क्षेत्र में नए मित्र बनाते हैं और बहुत सारी दिलचस्पी विकसित करते हैं। ज़्यादा पायनियरों का मतलब है कि परमेश्वर की स्तुति करने में और भी ज़्यादा घंटे बिताए जाते हैं। जापान ने, जहाँ यहोवा के अधिकांश गवाह भूतपूर्व बौद्ध हैं, एक दशक से ज़्यादा समय में, संयुक्त राज्य अमरीका के अलावा बाक़ी किसी भी देश से ज़्यादा, क्षेत्र सेवा में कुल ज़्यादा घंटे सालाना रिपोर्ट किए हैं। यह इस लिए है कि उसके राज्य प्रकाशकों का लगभग आधा हिस्सा पायनियर सेवा में कार्यरत हैं। क्या आप भी इस सबसे शानदार विशेषाधिकार, पायनियर सेवा, में भाग लेने के लिए अपने मामलों को सुव्यवस्थित कर सकते हैं?
२१. (अ) जिन अन्य गवाहों की स्थिति उन्हें नियमित पायनियरों की हैसियत से भरती होने नहीं देती, वे फिर भी पायनियर मनोवृत्ति किस तरह दिखा सकते हैं? (ब) युवजन पायनियर मनोवृत्ति किस तरह दिखा सकते हैं?
२१ फिर ऐसे भी गवाह हैं जो “भले भले कामों में सरगर्म” हैं। (तीतुस २:१४) उन में बूढ़े लोग, अस्वस्थ लोग, परिवार की ज़िम्मेदारियाँ उठानेवाले, और अब भी पाठशाला में पढ़ रहे युवजन शामिल हैं, जिन की स्थिति उन्हें नियमित पायनियरों के तौर से भरती हो जाने नहीं देती। ये भी पायनियरों को प्रोत्साहक समर्थन देकर, सेवा में उनके साथ सम्मिलित होकर, और खुद अपनी गवाही देने के मौकों के प्रति एक सकारात्मक मनोवृत्ति रखकर, पायनियर मनावृत्ति दिखा सकते हैं। तरुण लोक पूरे-समय की राज्य सेवा को अपना लक्ष्य बना सकते हैं और, उनका बपतिस्मा-प्राप्त होने पर, सहायक पायनियर सेवा में समय समय पर हिस्सा ले सकते हैं। जवान तीमुथियुस की तरह, वे इन बातों पर मनन कर सकते हैं ताकि परमेश्वर के सभी लोगों के साथ साथ आत्मिक उन्नति कर सकें।—१ तीमुथियुस ४:१५, १६.
२२. ज़िन्दगी में हमारी चाहे जो भी स्थिति हो, हमें कौनसा दृढ़ निश्चय अपनाना चाहिए, और इस से कौनसा अत्युत्तम परिणाम होगा?
२२ ज़िन्दगी में हमारी चाहे जो भी स्थिति हो, ऐसा हो कि हम सभी यहोवा की आत्मा से उसकी सेवा में पूर्ण रूप से हिस्सा लेने के लिए प्रेरित हो जाएँ। हम में से हर एक पर “यहोवा का हाथ” बना रहे ताकि हमारे नम्र कोशिशों के संबंध में कहा जा सकेगा कि “यहोवा का वचन बलपूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।”—प्रेरितों के काम ११:२१; १९:२०.
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
◻ मसीही मिशनरी कार्य का आरंभ किस तरह हुआ, और वह कितना विस्तृत होनेवाला था?
◻ मिशनरी कार्य को फैलाने में प्रेरित पौलुस की क्या भूमिका थी?
◻ आधुनिक समय में मिशनरी कार्य का पुनःप्रवर्तन किस तरह किया गया?
◻ कौनसे तत्त्वों ने मिशनरी और पायनियर सेवा को प्रभावकारी बनाया है?
◻ हम आज पायनियर मनावृत्ति को किस तरह आत्मसात् कर सकते हैं?
[पेज 13 पर चार्ट]
दस देशों में राज्य का कार्यकलाप—१९८८
(इन सभी देशों ने १,००,००० से ज़्यादा प्रचारकों की रिपोर्ट की)
देश प्रचारकों औसत प्रचार कार्य स्मारक समारोह
का उच्चांक पायनियर के घंटे की उपस्थिति
अमरीका ७,९७,१०४ ९६,९४७ १६,१४,७८,७३२ १८,२२,६०७
मेक्सिको २,४८,८२२ ३२,११७ ५,८०,६१,४५७ १०,०४,०६२
ब्राज़िल २,४५,६१० २२,७२५ ४,४२,१८,०२२ ७,१८,४१४
इटली १,६०,५८४ २५,४७७ ४,३३,५४,६८७ ३,३०,४६१
नाइजीरिया १,३४,५४३ १४,०२२ २,७८,००,६२३ ३,९८,५५५
जापान १,२८,८१७ ५२,१८३ ६,०६,२६,८४० २,९७,१७१
जर्मनी १,२५,०६८ ८,४१६ २,२०,२९,९४२ २,१५,३८५
ब्रिटन १,१३,४१२ ११,९२७ २,२१,०३,७१३ २,११,०६०
फिलिप्पीन्स् १,०७,६७९ २१,३२० २,६३,३७,६२१ ३,०५,०८७
फ्रान्स १,०३,७३४ ९,१८९ २,१५,९८,३०८ २,०५,२५६
[पेज 10 पर तसवीरें]
पौलुस और बरनबास पायनियर मिशनरी कार्य के लिए रवाना होते हैं