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  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2018
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  • 5-11 नवंबर
  • 12-18 नवंबर
  • 19-25 नवंबर
  • 26 नवंबर–2 दिसंबर
मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2018
mwbr18 नवंबर पेज 1-8

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

5-11 नवंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | यूहन्‍ना 20-21

“क्या तू इनसे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?”

अ.बाइ. यूह 21:15, 17 अध्ययन नोट

यीशु ने शमौन पतरस से कहा: यीशु और पतरस की इस बातचीत के कुछ ही दिन पहले पतरस ने तीन बार यीशु को जानने से इनकार किया था। अब यीशु जानना चाहता था कि पतरस के दिल में उसके लिए कितनी जगह है, इसलिए उसने पतरस से तीन सवाल किए। यीशु ने बार-बार वही सवाल किया इसलिए “पतरस दुखी” हो गया। (यूह 21:17) यूह 21:15-17 में यूहन्‍ना ने जो वाकया लिखा, उसमें दो यूनानी क्रियाएँ हैं: अगापेओ और फीलियो। हिंदी में दोनों शब्दों का अनुवाद प्यार करता किया गया है। यीशु ने तीन बार पतरस से पूछा, ‘क्या तू मुझसे प्यार करता है?’ हर बार पतरस ने यीशु को यकीन दिलाया कि वह उससे प्यार करता है। यीशु ने उससे ज़ोर देकर कहा कि अगर वह उससे प्यार करता है, तो वह उसके मेम्नों या “छोटी भेड़ों” को खिलाए और ‘चरवाहे की तरह उनकी देखभाल करे।’ (यूह 21:16, 17; 1पत 5:1-3) मेम्नों का मतलब यीशु के चेले है। पतरस को उन्हें परमेश्‍वर के वचन की खुराक देनी थी। यीशु ने पतरस को तीन बार अपने प्यार का यकीन दिलाने का मौका दिया और इसके बाद उसे भेड़ों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी सौंपी। पतरस ने तीन बार यीशु को जानने से इनकार कर दिया था इसलिए अगर उसके मन में ज़रा भी शक था कि यीशु ने उसे माफ किया है या नहीं, तो अब यह शक यीशु ने पूरी तरह दूर कर दिया।

क्या तू इनसे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?: व्याकरण के हिसाब से देखें तो शब्द “इनसे ज़्यादा” के कई मतलब हो सकते हैं। कुछ विद्वान कहते हैं कि “इनसे ज़्यादा” का मतलब है “तू इन बाकी चेलों से जितना प्यार करता है, क्या उससे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?” या “ये चेले मुझसे जितना प्यार करते हैं, क्या तू उससे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?” लेकिन जब यीशु ने “इनसे ज़्यादा” कहा, तो शायद उसके कहने का मतलब था कि क्या तू इन मछलियों से ज़्यादा यानी इनके कारोबार से ज़्यादा मुझसे प्यार करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो आयत का मतलब है, ‘क्या तू पैसे या कारोबार से ज़्यादा मुझसे प्यार करता है? अगर हाँ, तो मेरे मेम्नों को खिला।’ पतरस के गुज़रे दिनों को ध्यान में रखते हुए यीशु ने बिलकुल सही सवाल किया था। पतरस यीशु की सेवा की शुरूआत में ही उसका चेला बना (यूह 1:35-42), लेकिन उसने तुरंत पूरे समय यीशु के साथ सेवा करनी शुरू नहीं की। वह मछुवाई करने लौट गया। कुछ महीनों बाद यीशु के कहने पर उसने मछुवाई का फलता-फूलता कारोबार छोड़ दिया और वह ‘इंसानों को पकड़ने’ का काम करने लगा। (मत 4:18-20; लूक 5:1-11) मगर यीशु की मौत के कुछ दिन बाद, पतरस ने दूसरे प्रेषितों से कहा कि वह फिर से मछुवाई करने जा रहा है। वे भी उसके साथ चल पड़े। (यूह 21:2, 3) तो अब शायद यीशु पतरस को एहसास दिला रहा था कि उसे पक्का फैसला करना होगा कि वह अपनी ज़िंदगी में किस बात को पहली जगह देगा। उसके सामने मछलियों का जो ढेर था, उनके कारोबार को या यीशु के चेलों को सच्चाई सिखाने के काम को?​—यूह 21:4-8.

तीसरी बार: पतरस ने तीन बार अपने प्रभु यीशु को जानने से इनकार किया था। अब यीशु ने उसे तीन बार मौका दिया कि वह उसे अपने प्यार का यकीन दिलाए। जब पतरस ने यीशु को यकीन दिलाया, तो यीशु ने उससे कहा कि अगर वह उससे प्यार करता है, तो वह बाकी सब कामों से ज़्यादा पवित्र सेवा को ज़िंदगी में अहमियत दे। पतरस को ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले बाकी भाइयों के साथ मिलकर मसीहियों को सच्चाई की खुराक देनी थी, उन्हें मज़बूत करना था और एक चरवाहे की तरह उनकी देखभाल करनी थी। हालाँकि वे मसीही अभिषिक्‍त थे, फिर भी यह ज़रूरी था कि उन्हें सच्चाई की खुराक दी जाए।​—लूक 22:32.

प्र12 8/1 पेज 18-20, अँग्रेज़ी

बाइबल के ज़माने में मछुवारों की ज़िंदगी

“गलील झील के किनारे चलते-चलते उसने [यीशु ने] शमौन को, जो पतरस कहलाता है और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा। वे दोनों मछुवारे थे। उसने उनसे कहा, ‘मेरे पीछे हो लो और जिस तरह तुम मछलियाँ पकड़ते हो, मैं तुम्हें इंसानों को पकड़नेवाले बनाऊँगा।’”​—मत्ती 4:18, 19.

मछलियों, मछुवारों और मछुवाई का ज़िक्र खुशखबरी की किताबों में अकसर आता है। यीशु ने भी कई बार मछुवाई की मिसाल दी थी। यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है क्योंकि उसने ज़्यादातर गलील झील के किनारे और उसके आस-पास के इलाकों में लोगों को सिखाया था। (मत्ती 4:13; 13:1, 2; मरकुस 3:7, 8) यह खूबसूरत झील करीब 20 किलोमीटर लंबी और 11 किलोमीटर चौड़ी है। यीशु के कम-से-कम सात प्रेषित शायद मछुवारे थे। वे थे पतरस, अन्द्रियास, याकूब, यूहन्‍ना, फिलिप्पुस, थोमा और नतनएल।​—यूहन्‍ना 21:2, 3.

यीशु के दिनों में मछुवारों की ज़िंदगी कैसी होती थी? उनके बारे में थोड़ी जानकारी लेने से आप यीशु के कामों और उसकी मिसालों को और अच्छी तरह समझ पाएँगे। सबसे पहले आइए जानें कि गलील झील में मछुवाई करना कैसा होता था।

‘झील में ज़ोरदार आँधी उठी’

गलील झील की सतह समुंदर तल से 690 फुट नीचे है। इसके किनारे पथरीली ढलानें हैं और उत्तर में विशाल हेरमोन पहाड़ है। सर्दियों में बर्फ जैसी ठंडी हवाएँ कभी-कभी इस झील की लहरों में हलचल मचा देती हैं। गर्मियों में गरम हवा झील की सतह पर तैरती रहती है। आस-पास के पहाड़ों से अचानक कभी-कभी तेज़ आँधी चलने लगती है और नाविकों को अपनी चपेट में ले लेती है। एक बार यीशु और उसके चेले भी इसी तरह की एक आँधी में फँस गए थे।​—मत्ती 8:23-27.

मछुवारे लकड़ी की नावों में सफर करते थे। ये नावें करीब 27 फुट लंबी होती थीं और उनमें करीब 7 फुट लंबी एक शहतीर लगी होती थी। कई नावों में एक मस्तूल होता था और पिछले हिस्से में डेक के नीचे आराम करने के लिए एक खाने जैसा कुछ बना होता था।​—मरकुस 4:35-41.

मछुवारे नाव की दोनों तरफ चप्पू चलाते थे। उनकी टोली में करीब छः आदमी होते थे।​—मरकुस 1:20.

“ढेर सारी मछलियाँ उनके जाल में आ फँसीं”

यीशु के ज़माने में मछुवारे अकसर रात को मछुवाई करते थे। एक बार यीशु के चेलों को सारी रात मेहनत करने पर भी मछलियाँ नहीं मिलीं। मगर अगले दिन उन्होंने वहाँ जाल डाला जहाँ यीशु ने उन्हें डालने के लिए कहा था। तब इतनी मछलियाँ उनके जाल में फँस गयीं कि उनकी नावें डूबने लगीं।​—लूका 5:6, 7.

कभी-कभी मछुवारे मछलियाँ पकड़ने गहरे समुंदर में जाते थे। वहाँ दो नावों के मछुवारे साथ मिलकर मछलियाँ पकड़ते थे। वे दोनों नावों के बीच जाल फैलाते और फिर नावों को अलग-अलग दिशा में खेते और गोलाई बनाते हुए मछलियों को घेर लेते थे। जाल में मछलियाँ फँस जातीं और तब वे जाल को बंद कर देते थे। इसके बाद वे जाल के कोनों में लगे रस्सों से पूरा ज़ोर लगाकर उसे खींचते थे। जाल 100 फुट से ज़्यादा लंबा होता था और समुंदर में करीब 8 फुट गहराई तक जाता था। मछलियों के एक पूरे झुंड को फँसाने के लिए इतना बड़ा जाल काफी होता था। जाल के ऊपरी सिरे पर हलकी चीज़ें लगी होती थीं और निचले सिरे पर भारी चीज़ें लगी होती थीं। मछुआरों को जाल घसीटने में घंटों लग जाते थे।

जहाँ पानी की गहराई कम होती, वहाँ मछुआरों की टोली अलग तरकीब अपनाती थी। वे नाव से जाल का एक सिरा समुंदर किनारे से बिछाते हुए समुंदर में ले जाते और मछलियाँ फँसाकर वापस किनारे ले आते थे। फिर किनारे पर खड़े मछुआरे जाल को घसीटकर मछलियों को किनारे पर डाल देते और वहाँ उन्हें छाँटते थे। वे अच्छी मछलियों को बरतनों में डालकर ले जाते थे। कुछ मछलियाँ पास के इलाके के बाज़ार में ही बेच दी जाती थीं। पर ज़्यादातर मछलियों पर नमक डालकर सुखाया जाता था या उनका अचार बनाया जाता था। फिर उन्हें मिट्टी के मर्तबानों में रखकर यरूशलेम या दूसरे देशों में भेज दिया जाता था।

जाल बहुत महँगे होते थे और उनका रख-रखाव करने में बहुत मेहनत लगती थी। इसलिए मछुआरे उनका इस्तेमाल करते वक्‍त काफी एहतियात बरतते थे। एक मछुवारे का ज़्यादातर समय जाल की मरम्मत करने, उसे धोने और सुखाने में चला जाता था। जब भी वे मछली पकड़ते, तो आखिर में ये सब काम करते थे। (लूका 5:2) जब यीशु ने याकूब और उसके भाई यूहन्‍ना को अपने पीछे हो लेने को कहा, तो वे उस वक्‍त नाव में बैठे जाल ठीक कर रहे थे।​—मरकुस 1:19.

उस ज़माने के मछुवारे सब्र से काम लेते, मेहनती होते और हर मुश्‍किल सहने के लिए तैयार रहते थे, तभी उनकी मेहनत रंग लाती थी। यही गुण उन लोगों में भी होने ज़रूरी थे, जो यीशु का न्यौता स्वीकार करके चेले बनाने का काम करते। तभी वे ‘इंसानों को पकड़ने’ में कुशल बन पाते।​—मत्ती 28:19, 20.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

अ.बाइ. यूह 20:17 अध्ययन नोट

मुझसे लिपटी मत रह: यूनानी क्रिया हैप्टोमाइ का मतलब या तो “छूना” हो सकता है या “लिपटे रहना; चिपके रहना।” मरियम मगदलीनी यीशु को सिर्फ छू नहीं रही थी वरना यीशु उसे मना नहीं करता। यीशु के ज़िंदा होने के बाद जब कुछ औरतों ने “उसके पैर पकड़ लिए” थे, तो उसने उन्हें भी मना नहीं किया था। (मत 28:9) शायद मरियम मगदलीनी ने सोचा कि यीशु उसी वक्‍त स्वर्ग लौट जाएगा। उसका बहुत मन था कि वह अपने प्रभु के साथ कुछ समय रहे, इसलिए वह उसे पकड़े रही। वह उसे जाने नहीं दे रही थी। तब यीशु ने उसे यकीन दिलाया कि वह अभी स्वर्ग नहीं जा रहा है इसलिए वह उससे लिपटी न रहे बल्कि जाकर दूसरे चेलों को खबर दे कि वह ज़िंदा हो गया है।

अ.बाइ. यूह 20:28 अध्ययन नोट

हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्‍वर!: कुछ विद्वान मानते हैं कि जब थोमा ने हैरानी जताते हुए ऐसा कहा तो वह भले ही यीशु से बात कर रहा था, मगर असल में उसने यीशु के पिता यानी परमेश्‍वर को ध्यान में रखकर ऐसा कहा था। मगर कुछ लोग कहते हैं कि मूल यूनानी पाठ के मुताबिक उसने यीशु को ही प्रभु और परमेश्‍वर कहा था। अगर हम यह मानकर चलें कि थोमा ने यीशु को ही प्रभु और परमेश्‍वर कहा था, तो हमें यह जानना होगा कि पूरी बाइबल के मुताबिक इन शब्दों का क्या मतलब हो सकता है। इस वाकए में पहले बताया गया है कि यीशु ने अपने चेलों के पास यह संदेश भेजा था: “मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता और अपने परमेश्‍वर और तुम्हारे परमेश्‍वर के पास ऊपर जा रहा हूँ।” इसलिए थोमा ने यह नहीं सोचा होगा कि यीशु सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर है। उसने यीशु को अपने “पिता” से प्रार्थना करते हुए भी सुना था जिसमें यीशु ने पिता को ‘एकमात्र सच्चा परमेश्‍वर’ कहा था। (यूह 17:1-3) तो जब थोमा ने यीशु को “मेरे परमेश्‍वर” कहा, तो शायद उसकी ये वजह रही होंगी: एक यह कि वह यीशु को “एक ईश्‍वर” मानता था, न कि सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर। दूसरी यह कि उसने यीशु को ठीक उसी तरह परमेश्‍वर पुकारा होगा जैसे इब्रानी शास्त्र में बताए कुछ लोगों ने यहोवा के भेजे स्वर्गदूतों को यहोवा या परमेश्‍वर पुकारा था। थोमा उन घटनाओं से ज़रूर वाकिफ रहा होगा जिनमें कुछ लोगों ने किसी स्वर्गदूत से ऐसे बात की जैसे वे यहोवा से बात कर रहे हों। वह यह भी जानता होगा कि बाइबल के कुछ लेखकों ने स्वर्गदूतों का ज़िक्र यहोवा के नाम से किया था। (उत 16:7-11, 13; 18:1-5, 22-33; 32:24-30; न्या 6:11-15; 13:20-22 से तुलना करें।) इसलिए जब थोमा ने यीशु को “मेरे परमेश्‍वर” कहा, तो वह बस यह कहना चाह रहा था कि यीशु सच्चे परमेश्‍वर का भेजा हुआ है और उसकी तरफ से बोलता है।

12-18 नवंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 1-3

“मसीही मंडली पर पवित्र शक्‍ति उँडेली गयी”

प्र87 9/1 पेज 28 पै 4-5, 7

अंशदान जो हृदय को आनंदित बना देते हैं

ई.सन 33 में मसीही मण्डली के जन्म के पहले दिन पर, 3,000 नव बपतिस्मा प्राप्त धर्मांतरित व्यक्‍तियों ने ‘संगति रखने, रोटी तोड़ने और प्रार्थना’ को अमल किया। किस भले कारण से? ‘प्रेरितों से शिक्षा पाने के लिए लौलीन रहने’ के द्वारा, उन्हें अपने नौसिखिया विश्‍वास को सहारा देने के लिए संभव बनाने के कारण से।​—प्रेरितों के काम 2:41, 42.

यहूदी और यहूदी मत धारण करनेवाले लोग यह निश्‍चित करके यरूशलेम आए थे कि वे पिन्तेकुस्त के त्योहार के अवधि के लिए ही रहते। लेकिन जो लोग मसीही बन गए, वे अधिक समय रहकर, उनके नए विश्‍वास को शक्‍तिशाली बनाने के लिए अधिक सीखना चाहते थे। इस से खाद्य और घरों के प्रबंध की एक आपतिक समस्या उत्पन्‍न हुई। कुछ अतिथियों के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे जबकि दूसरों के पास आधिक्य था। इसलिए अस्थायी रूप से भौतिक वस्तुओं को इकट्ठा करके जरूरतमंदों को बाँट दिया गया।​—प्रेरितों के काम 2:43–47.

भूसंपत्ति की विक्री और सब चीजों की सार्वजनिक सहभागीदारी पूरी–पूरी स्वैच्छिक थी। बेचने या अंशदान करने के लिए कोई बाध्य न था; ना ही यह गरीबी का प्रोत्साहन था। अभिव्यक्‍त किया गया विचार यह न था कि ज्यादा दौलतमंद लोग उनकी सारी संपत्ति बेचे और इस प्रकार गरीब बन जाएँ। उल्टे, उस समय के परिस्थितियों में सह–विश्‍वासियों के प्रति संवेदना से, उन्होंने जायदाद बेची और सारी प्राप्ति को अंशदान किया ताकि, जो राज्य हितों का बढ़ावा देने के लिए जरूरी था, उसे दे सके।​—तुलना 2 कुरिंथियों 8:12–15 से करें।

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

इंसाइट-2 पेज 61 पै 1

यीशु मसीह

‘जीवन दिलानेवाला खास अगुवा।’ मसीह यीशु ने अपना परिपूर्ण इंसानी जीवन बलिदान कर दिया जो कि उसके पिता की महा-कृपा का एक सबूत था। उसके बलिदान की वजह से उसके कुछ चेलों के लिए स्वर्ग में उसके साथ राज करने का रास्ता खुला है और कुछ लोगों को धरती पर उसकी प्रजा बनने की आशा मिलती है। (मत 6:10; यूह 3:16; इफ 1:7; इब्र 2:5) इसी मायने में यीशु पूरी मानवजाति के लिए ‘जीवन दिलानेवाला खास अगुवा’ [“अधिपति,” वाल्द-बुल्के अनुवाद] बना। (प्रेष 3:15) यहाँ इस्तेमाल हुए यूनानी शब्द का असल में मतलब है, “खास अगुवा।” इससे मिलते-जुलते एक शब्द का अनुवाद एक आयत में “अधिकारी” किया गया है, जहाँ मूसा की बात की गयी है।​—प्रेष 7:27, 35.

यहोवा के करीब पेज 265 पै 14

परमेश्‍वर जो “क्षमा करने को तत्पर” रहता है

14 यहोवा की माफी के बारे में प्रेरितों 3:19 में और ज़्यादा बताया गया है: “मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं।” (तिरछे टाइप हमारे।) इस आयत के ये आखिरी शब्द एक ऐसी यूनानी क्रिया का अनुवाद हैं, जिसका मतलब “पोंछ देना, . . . रद्द या नष्ट करना” हो सकता है। कुछ विद्वानों के मुताबिक, यहाँ जो तसवीर पेश की गयी है, वह है किसी की लिखावट को मिटाना। यह कैसे मुमकिन था? प्राचीनकाल में जो स्याही आम तौर पर इस्तेमाल होती थी, वह कोयले, गोंद और पानी का मिश्रण होती थी। ऐसी स्याही से लिखने के फौरन बाद, एक इंसान चाहे तो उस लिखाई को गीले स्पंज से मिटा सकता था। यह, यहोवा की दया की एक बढ़िया तसवीर पेश करता है। जब वह हमारे पाप माफ करता है, तो मानो वह स्पंज लेकर इन्हें पूरी तरह मिटा देता है।

बढ़ाएँ प्रचार में हुनर

इंसाइट-1 पेज 129 पै 2-3

यहूदा इस्करियोती की जगह बारहवाँ प्रेषित किसे चुना गया?

यहूदा इस्करियोती अपनी मौत से पहले विश्‍वासघाती निकला था, इसलिए प्रेषितों की गिनती 11 रह गयी थी। कई दिन तक उसके बदले किसी और को प्रेषित नहीं चुना गया। यीशु ज़िंदा होने के 40 दिन बाद स्वर्ग लौटा। उसके स्वर्ग लौटने के बाद और पिन्तेकुस्त से पहले के दस दिनों के दौरान यह ज़रूरत महसूस हुई कि यहूदा की जगह किसी और को प्रेषित चुना जाए। लेकिन किसी और को प्रेषित चुनने की वजह यह नहीं थी कि यहूदा की मौत हो गयी है, बल्कि यह थी कि वह विश्‍वासघाती निकला। पतरस ने शास्त्र का हवाला देकर यही बात बतायी। (प्रेष 1:15-22; भज 69:25; 109:8; कृपया प्रक 3:11 से तुलना करें।) जब प्रेषित याकूब को मार डाला गया, तो उसकी जगह किसी और को प्रेषित नहीं चुना गया क्योंकि वह एक वफादार प्रेषित था।​—प्रेष 12:2.

पतरस की बातों से पता चलता है कि किसी ऐसे व्यक्‍ति को यीशु मसीह का प्रेषित ठहराया जाता, जो कुछ योग्यताओं पर खरा उतरता। उन योग्यताओं में यह शामिल था कि उस व्यक्‍ति का यीशु के साथ उठना-बैठना रहा हो और उसने अपनी आँखों से यीशु के काम और उसके चमत्कार देखे हों, खासकर उसने यीशु के ज़िंदा होने के बाद उसे देखा हो। इन बातों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि बाद के दिनों में बाकी प्रेषितों की मौत के बाद उनकी जगह दूसरों को प्रेषित चुनना नामुमकिन होता, बशर्ते परमेश्‍वर कुछ ऐसा करता जिससे एक व्यक्‍ति इन योग्यताओं पर खरा उतरता। लेकिन पिन्तेकुस्त से पहले ऐसे कुछ पुरुष थे जिनमें ये योग्यताएँ थीं। इसलिए विश्‍वासघाती यहूदा की जगह लेने के लिए दो भाइयों के नाम का सुझाव दिया गया। फिर नीतिवचन 16:33 के मुताबिक चिट्ठियाँ डाली गयीं और मत्तियाह को चुना गया। इसके बाद से मत्तियाह की गिनती “11 प्रेषितों के साथ” होने लगी। (प्रेष 1:23-26) वह उन “12 प्रेषितों” में से एक था जिन्होंने यूनानी बोलनेवाले चेलों का मसला सुलझाया था। (प्रेष 6:1, 2) पौलुस ने 1 कुरिंथियों 15:4-8 में लिखा कि यीशु ज़िंदा होने के बाद “बारहों” के सामने प्रकट हुआ था। उन बारहों में शायद मत्तियाह भी एक था। इससे साफ पता चलता है कि पिन्तेकुस्त के दिन जब लाक्षणिक इसराएल बना, तो 12 प्रेषित उसकी नींव ठहरे।

19-25 नवंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 4-5

“वे निडर होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाते रहे”

प्र08 9/1 पेज 15, बक्स, अँग्रेज़ी

ज़बानी बातें पवित्र लेखनों में कैसे आयीं​—शुरू के मसीहियों के ज़माने में पढ़ाई-लिखाई

क्या प्रेषित अनपढ़ थे?

जब यरूशलेम के धर्म-अधिकारियों और मुखियाओं ने “देखा कि पतरस और यूहन्‍ना कैसे बेधड़क होकर बोल रहे हैं और यह जाना कि ये कम पढ़े-लिखे, मामूली आदमी हैं, तो वे ताज्जुब करने लगे।” (प्रेषितों 4:13) क्या प्रेषित सच में अनपढ़ थे और लिखना नहीं जानते थे? द न्यू इंटरप्रिटर्स बाइबल कहती है, “कम-पढ़े लिखे का मतलब यह नहीं कि पतरस [और यूहन्‍ना] पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे। इन शब्दों का बस यह मतलब है कि समाज में अधिकारियों और प्रेषितों का दर्जा अलग था।”

प्र08 5/15 पेज 30-31 पै 6

प्रेरितों किताब की झलकियाँ

4:13​—क्या पतरस और यूहन्‍ना सचमुच अनपढ़ थे? जी नहीं। उन्हें “अनपढ़ और साधारण” इसलिए कहा गया था, क्योंकि उन्होंने रब्बियों के स्कूल से तालीम हासिल नहीं की थी।

इंसाइट-1 पेज 128 पै 3

प्रेषित

मसीही मंडली में उनके काम। पिन्तेकुस्त के दिन जब प्रेषितों पर पवित्र शक्‍ति उँडेली गयी, तो उनका हौसला काफी मज़बूत हुआ। प्रेषितों की किताब के शुरू के पाँच अध्यायों से इस बात का सबूत मिलता है कि प्रेषितों ने कैसे हिम्मत से खुशखबरी सुनायी और प्रचार किया कि यीशु ज़िंदा हो गया है। प्रेषितों को अधिकारियों ने जेल में डाल दिया, पिटवाया और मौत की धमकियाँ दीं, फिर भी वे निडरता से इस काम में लगे रहे। पिन्तेकुस्त के बाद के दिनों में प्रेषितों ने पवित्र शक्‍ति से ताकत पाकर बड़े जोश से मसीही भाई-बहनों की अगुवाई की। इसलिए मंडली में दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की हुई। (प्रेष 2:41; 4:4) पहले तो वे सिर्फ यरूशलेम में सेवा करते थे, फिर उन्होंने सामरिया में की और कुछ समय बाद उस वक्‍त की पूरी दुनिया में सेवा की।​—प्रेष 5:42; 6:7; 8:5-17, 25; 1:8.

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इंसाइट-1 पेज 514 पै 4

कोने का मुख्य पत्थर

भजन 118:22 में भविष्यवाणी की गयी थी कि जिस पत्थर को राजमिस्त्री ठुकरा देंगे, वह “कोने का मुख्य पत्थर” (इब्रानी, रोशपिन्‍ना) बन जाएगा। यीशु ने इस भविष्यवाणी का हवाला देकर बताया कि वह खुद “कोने का मुख्य पत्थर” है। (यूनानी, केफालेगोनियास, कोने का सिरा) (मत 21:42; मर 12:10, 11; लूक 20:17) अभिषिक्‍त जनों की मंडली की तुलना एक मंदिर से की गयी है और यीशु उस मंदिर की चोटी का पत्थर है। वह एक इमारत की चोटी के पत्थर जैसा है जो बिलकुल साफ नज़र आता है। पतरस ने भी बताया कि भजन 118:22 की भविष्यवाणी मसीह पर पूरी होती है। उसने समझाया कि परमेश्‍वर के चुने हुए जिस “पत्थर” को इंसानों ने ठुकरा दिया, वह “कोने का मुख्य पत्थर” बन गया है।​—प्रेष 4:8-12; कृपया 1पत 2:4-7 भी देखें।

प्र13 4/1 पेज 9 पै 4

पतरस और हनन्याह ने झूठ बोला​—हम क्या सबक सीख सकते हैं?

हनन्याह और उसकी पत्नी भी इन नए चेलों की मदद करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अपनी कुछ जायदाद बेच दी। जब हनन्याह पैसे लेकर चेलों के पास आया, तब उसने पैसे देते हुए कहा कि यह जायदाद की पूरी रकम है। लेकिन यह सच नहीं था, क्योंकि उसने पैसों का कुछ हिस्सा अपने पास रख लिया था। परमेश्‍वर की नज़रों से यह बात छिपी नहीं और इसलिए परमेश्‍वर ने पतरस पर इस बात का खुलासा किया। पतरस ने हनन्याह से कहा: “तू ने इंसानों से नहीं, बल्कि परमेश्‍वर से झूठ बोला है।” इसके तुरंत बाद हनन्याह ज़मीन पर गिरकर मर गया। करीब तीन घंटे बाद उसकी पत्नी आयी। वह नहीं जानती थी कि उसके पति के साथ क्या हुआ, उसने भी झूठ बोला और वहीं गिरकर मर गयी।

26 नवंबर–2 दिसंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 6-8

“नयी मसीही मंडली परखी गयी”

गवाही दो पेज 41-42 पै 17

“परमेश्‍वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा कर्तव्य है”

17 यरूशलेम की नयी मंडली के सामने अब एक और मुसीबत आनेवाली है। अब की बार खतरा मंडली के अंदर से आनेवाला है और यह शुरू-शुरू में इतना साफ नज़र नहीं आता। कौन-सा खतरा? इस मंडली के ज़्यादातर सदस्य दूसरे मुल्कों से आए परदेसी हैं जिन्होंने यहाँ यरूशलेम में बपतिस्मा लिया है। अपने विश्‍वास के बारे में ज्यादा सीखने के लिए वे यरूशलेम में कुछ समय के लिए रुक गए हैं। इन भाई-बहनों को खाना और ज़रूरत की दूसरी चीज़ें मुहैया कराने के लिए यरूशलेम के भाई-बहन खुशी-खुशी दान देते हैं। (प्रेषि. 2:44-46; 4:34-37) मगर इसी दौरान एक नाज़ुक मसला उठता है। “रोज़ के खाने के बँटवारे में यूनानी बोलनेवाली विधवाओं को नज़रअंदाज़” किया जा रहा है। (प्रेषि. 6:1) वहीं दूसरी तरफ, इब्रानी बोलनेवाली विधवाओं की अच्छी देखभाल की जा रही है। ज़ाहिर है कि मसला भेदभाव का है। यह कोई मामूली मसला नहीं, इससे भाइयों के बीच फूट पड़ने का खतरा है।

गवाही दो पेज 42 पै 18

“परमेश्‍वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा कर्तव्य है”

18 अब प्रेषितों से बना शासी निकाय इस मसले को कैसे हल करेगा? उन पर दिनों-दिन बढ़ रही मंडली की देखरेख करने की भारी ज़िम्मेदारी है इसलिए वे इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि अगर हम “परमेश्‍वर का वचन सिखाना छोड़कर खाना परोसने के काम” को ज़्यादा तवज्जह दें तो यह सही नहीं होगा। (प्रेषि. 6:2) इसलिए वे चेलों को हिदायत देते हैं कि वे ऐसे सात काबिल भाइयों को चुनें “जो पवित्र शक्‍ति और बुद्धि से भरपूर हों” ताकि प्रेषित उन्हें खाना बाँटने के “ज़रूरी काम की देखरेख” का ज़िम्मा सौंप सकें। (प्रेषि. 6:3) इस काम के लिए काबिल भाइयों की ज़रूरत इसलिए है क्योंकि यह काम न सिर्फ खाने की चीज़ें बाँटने का है बल्कि इसमें पैसों का लेन-देन, खरीदारी और हर चीज़ का सही हिसाब-किताब रखना शामिल है। जिन भाइयों को चुना जाता है उन सबके यूनानी नाम हैं। इससे शायद यूनानी बोलनेवाली विधवाओं को तसल्ली मिलती है जिन्हें ठेस पहुँची थी। जब प्रेषितों से इन सात आदमियों की सिफारिश की जाती है तो वे प्रार्थना करके इस बारे में विचार करते हैं और फिर उन सातों को खाना बाँटने के “ज़रूरी काम की देखरेख के लिए” ठहराते हैं।

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गवाही दो पेज 45 पै 2

स्तिफनुस​—‘परमेश्‍वर की बड़ी कृपा और शक्‍ति से भरपूर’

2 इस वक्‍त स्तिफनुस के चेहरे से ऐसा अनोखा सुकून झलक रहा है जो देखने लायक है। महासभा के न्यायी जब उस पर नज़र डालते हैं तो उन्हें उसका चेहरा ऐसा मालूम पड़ता है “जैसे किसी स्वर्गदूत का हो।” (प्रेषि. 6:15) पुराने ज़माने में स्वर्गदूत लोगों तक यहोवा परमेश्‍वर का पैगाम पहुँचाया करते थे इसलिए उनमें डर या घबराहट नहीं होती और वे एकदम शांत होते थे। इस वक्‍त स्तिफनुस के व्यवहार और उसकी शख्सियत में भी ऐसा ही निरालापन है। यहाँ तक कि नफरत से भरे न्यायी भी यह साफ देख सकते थे। मगर ताज्जुब की बात है, ऐसे माहौल में जब किसी के भी पसीने छूट सकते हैं, स्तिफनुस कैसे इतना शांत है?

गवाही दो पेज 58-59 पै 16

“यीशु के बारे में खुशखबरी” का ऐलान करना

16 फिलिप्पुस की तरह आज मसीहियों को भी खुशखबरी सुनाने का एक अनोखा सम्मान मिला है। वे अकसर मौके ढूँढ़कर लोगों को राज का संदेश सुनाते हैं। जैसे, सफर के दौरान। कई बार उनकी मुलाकात ऐन वक्‍त पर ऐसे नेकदिल लोगों से हो जाती है जो सच्चाई की तलाश कर रहे हैं। यह कोई इत्तफाक नहीं है क्योंकि बाइबल बताती है कि प्रचार काम में स्वर्गदूत निर्देश दे रहे हैं। यही वजह है कि राज का संदेश “हर राष्ट्र और गोत्र और भाषा और जाति के लोगों” तक पहुँच रहा है। (प्रका. 14:6) यीशु ने प्रचार काम के बारे में एक भविष्यवाणी में स्वर्गदूतों का खास ज़िक्र किया था। उसने गेहूँ और जंगली पौधे के उदाहरण में कहा था कि कटाई के वक्‍त यानी दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त में “कटाई” का काम स्वर्गदूत करेंगे। फिर उसने कहा कि ये अदृश्‍य प्राणी “उन सब लोगों को बटोरकर निकालेंगे, जो दूसरों के लिए पाप करने की वजह बनते हैं और ऐसों को भी [बटोरेंगे] जो दुराचार करते हैं।” (मत्ती 13:37-41) यीशु ने यह भी दिखाया कि अंत के इस समय में स्वर्गदूत राज के वारिसों को और उनके बाद ‘दूसरी भेड़ों’ से बनी बड़ी भीड़ को भी इकट्ठा करेंगे, जिन्हें यहोवा अपने संगठन की तरफ खींच लाना चाहता है।​—प्रका. 7:9; यूह. 6:44, 65; 10:16.

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