बाइबल की किताब नंबर 52—1 थिस्सलुनीकियों
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: कुरिन्थुस
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 50
सामान्य युग 50 का समय था। प्रेरित पौलुस अपनी दूसरी मिशनरी यात्रा के दौरान मकिदुनिया के थिस्सलुनीके नगर में आया और उसने वहाँ एक मसीही कलीसिया शुरू की। इस कलीसिया को बने एक साल भी नहीं हुआ था कि पौलुस ने उन्हें अपनी पहली पत्री लिखी, ताकि उन्हें ढाढ़स दे सके और उनका विश्वास मज़बूत कर सके। उसने यह पत्री कुरिन्थुस से लगभग सा.यु. 50 के आखिर में लिखी थी। उस वक्त सिलवानुस (जिसे प्रेरितों की किताब में सीलास कहा गया) और तीमुथियुस भी उसके साथ थे। इस पत्री की खासियत यह है कि यह पौलुस की पत्रियों में से पहली पत्री है, जो बाइबल के संग्रह का हिस्सा बनी। साथ ही, यह मसीही यूनानी शास्त्र की बाकी सभी किताबों से पहले लिखी गयी थी। मगर मुमकिन है कि मत्ती की सुसमाचार की किताब इस पत्री से पहले दर्ज़ की गयी हो।
2 इस बात के ढेरों सबूत हैं कि यह पत्री सच्ची है और इसमें कोई फेरबदल नहीं किया गया। पौलुस खुद बताता है कि वह इसका लेखक है। साथ ही, यह पत्री ईश्वर-प्रेरित वचन की बाकी किताबों से पूरी तरह मेल खाती है। (1 थिस्स. 1:1; 2:18) यही नहीं, ईश्वर-प्रेरित शास्त्र की कई पुरानी सूचियों में भी पहला थिस्सलुनीकियों का नाम आता है। उनमें से एक है, मूराटोरी खंड। शुरू के चर्च के लेखकों ने पहला थिस्सलुनीकियों से या तो सीधे-सीधे या दूसरे तरीकों से हवाले दिए। जैसे सा.यु. दूसरी सदी के लेखक आइरीनियस ने इसका नाम लेकर ज़िक्र किया था। करीब सा.यु. 200 के समय के चेस्टर बीटी पपाइरस नं. 2 (P46) में भी पहला थिस्सलुनीकियों की पत्री पायी जाती है। और तीसरी सदी के एक दूसरे पपाइरस (P30) में पहला और दूसरा थिस्सलुनीकियों दोनों के कुछ टुकड़े पाए जाते हैं। यह पपाइरस आज बेल्जियम के गेंट शहर में रखा है।a
3 अगर हम थिस्सलुनीके की कलीसिया के इतिहास पर एक नज़र डालें, तो हम समझ पाएँगे कि पौलुस को वहाँ के भाइयों की फिक्र क्यों खाए जा रही थी। शुरू से ही इस कलीसिया ने ज़बरदस्त ज़ुल्म और विरोध का सामना किया था। प्रेरितों के अध्याय 17 में लूका बताता है कि पौलुस और सीलास थिस्सलुनीके आए, जहाँ “यहूदियों का एक आराधनालय था।” और पौलुस ने तीन सब्त यानी तीन हफ्ते वहाँ लोगों को प्रचार किया और उनके साथ शास्त्रों से तर्क किया। ऐसा भी मालूम होता है कि वह तीन हफ्ते से भी ज़्यादा रुका था, क्योंकि उसने वहाँ काम-धंधा किया और सबसे बढ़कर एक कलीसिया शुरू की।—प्रेरि. 17:1; 1 थिस्स. 1:6, 7; 2:9.
4 थिस्सलुनीके में पौलुस के प्रचार का क्या असर हुआ, इस बारे में प्रेरितों 17:4-7 में जीता-जागता ब्यौरा दिया गया है। पौलुस के प्रचार से बहुत-से लोग यीशु के चेले बनने लगे। यह देखकर यहूदी जलन से भर गए। उन्होंने भीड़ इकट्ठी की और पूरे नगर में दंगा मचा दिया। फिर पौलुस को पकड़ने के इरादे से वे यासोन के घर आ धमके। लेकिन उसे न पाकर वे यासोन और दूसरे भाइयों को घसीटकर नगर के हाकिमों के पास ले गए। और उनसे शिकायत करने लगे: “ये लोग जिन्हों ने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, यहां भी आए हैं। और यासोन ने उन्हें अपने यहां [ठहराया] है, और ये सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है, और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं।” हाकिमों ने यासोन और दूसरे भाइयों को तभी रिहा किया, जब उन्होंने ज़मानत दी। इसके बाद, पौलुस और सीलास को रातों-रात बिरिया भेज दिया गया, ताकि वे सही-सलामत रहें और थिस्सलुनीके के भाइयों को भी कोई खतरा न हो। पौलुस के जाते-जाते थिस्सलुनीके में कलीसिया बन चुकी थी।
5 मगर यहूदी, पौलुस का पीछा करते हुए बिरिया में भी आ पहुँचे और उसके प्रचार काम को बंद करने की कोशिश की। इसलिए पौलुस यूनान के अथेने शहर के लिए रवाना हो गया। वहाँ रहते हुए भी वह यह जानने के लिए बेचैन था कि थिस्सलुनीके के भाइयों का क्या हाल है। उसने दो बार उनके पास जाने की कोशिश की, मगर हर बार ‘शैतान उसे रोके रहा।’ (1 थिस्स. 2:17, 18) पौलुस को इस नयी कलीसिया की बहुत फिक्र थी और उसे अच्छी तरह मालूम था कि उन्हें क्या-क्या क्लेश झेलने पड़ रहे हैं। इसलिए उसने तीमुथियुस को वहाँ भेजा, ताकि वह भाइयों को ढाढ़स दे सके और उन्हें विश्वास में और भी मज़बूत कर सके। जब तीमुथियुस वापस लौटा, तो उसने पौलुस को यह अच्छी खबर दी कि भयानक ज़ुल्मों के बावजूद थिस्सलुनीके के भाई अपनी खराई में बने हुए हैं। यह सुनकर पौलुस का दिल बाग-बाग हो गया। इस वक्त तक थिस्सलुनीके के भाई खराई रखने में मकिदुनिया और अखया के सब मसीहियों के लिए एक मिसाल बन चुके थे। (1:6-8; 3:1-7) उन भाइयों की वफादारी और धीरज के लिए पौलुस ने यहोवा का लाख-लाख शुक्र माना। लेकिन उसे यह भी एहसास था कि जैसे-जैसे वे प्रौढ़ता की ओर बढ़ते जाएँगे, उन्हें मार्गदर्शन और सलाह की ज़रूरत होगी। इसलिए जब पौलुस कुरिन्थुस में तीमुथियुस और सिलवानुस के साथ था, तब उसने थिस्सलुनीकियों को अपनी पहली पत्री लिखी।
क्यों फायदेमंद है
13 पौलुस की इस पत्री से पता चलता है कि उसे अपने भाइयों के लिए प्यार और परवाह थी। उसने और उसके साथियों ने थिस्सलुनीके के भाइयों के लिए कोमल स्नेह दिखाने में बेहतरीन मिसाल रखी थी। कैसे? वे उन्हें न सिर्फ परमेश्वर का सुसमाचार सुनाने बल्कि उनके लिए अपनी जान तक दाँव पर लगाने को तैयार थे। ऐसा हो कि उनकी तरह कलीसिया के अध्यक्ष भी मसीही भाइयों के लिए कोमल स्नेह दिखाएँ। जब वे ऐसा करेंगे, तो कलीसिया का हर सदस्य एक-दूसरे को प्यार दिखाने के लिए उकसाया जाएगा। और यही बात पौलुस ने भी बतायी थी: “प्रभु ऐसा करे, कि जैसा हम तुम से प्रेम रखते हैं; वैसा ही तुम्हारा प्रेम भी आपस में, और सब मनुष्यों के साथ बढ़े, और उन्नति करता जाए।” जब परमेश्वर के सेवक खुशी-खुशी ऐसा प्यार दिखाते हैं, तो इसके बहुत बढ़िया नतीजे निकलते हैं। यह प्यार उनके ‘मनों को ऐसा स्थिर करता है, कि जब प्रभु यीशु अपने सब पवित्र लोगों के साथ आएगा, तो उनका मन परमेश्वर और पिता के साम्हने पवित्रता में निर्दोष ठहरेगा।’ इतना ही नहीं, इस प्यार की वजह से मसीही इस भ्रष्ट और बदचलन दुनिया से जुदा रहते हैं, ताकि वे पवित्रता के मार्ग पर चलते रहें और परमेश्वर को खुश करें।—2:8; 3:12, 13; 4:1-8.
14 कलीसिया के भाई-बहनों को प्यार से और सोच-समझकर सलाह देने में पौलुस की यह पत्री एक उम्दा मिसाल है। हालाँकि थिस्सलुनीके के भाई जोशीले और वफादार थे, फिर भी उन्हें कुछ मामलों में सुधार करने की ज़रूरत थी। पौलुस ने हरेक मामले में भाइयों को सलाह देने से पहले उनके अच्छे गुणों की वाह-वाही की। मिसाल के लिए, नैतिक अशुद्धता के बारे में चेतावनी देने से पहले उसने भाइयों की तारीफ की कि वे योग्य चाल चल रहे हैं और परमेश्वर को खुश कर रहे हैं। फिर उसने उन्हें योग्य चाल चलने में ‘और भी बढ़ते जाने’ और अपनी देह को पवित्रता और आदर के साथ वश में रखने के लिए उकसाया। इसके अलावा, उसने भाईचारे का प्यार दिखाने के लिए उनकी तारीफ की और उसके बाद उन्हें प्यार दिखाने में ‘और भी बढ़ते’ जाने का बढ़ावा दिया। साथ ही, उन्हें यह भी सलाह दी कि वे अपने काम से काम रखें और बाहरवालों के साथ सभ्यता से पेश आएँ। पौलुस ने बड़े प्यार से और सोच-समझकर भाइयों को यह सलाह भी दी: “भलाई करने पर तत्पर रहो आपस में और सब से भी भलाई ही की चेष्टा करो।”—4:1-7, 9-12; 5:15.
15 पौलुस ने चार मौकों पर यीशु मसीह की “उपस्थिति” (NW) का ज़िक्र किया। ऐसा मालूम होता है कि थिस्सलुनीके के नए मसीहियों को इस शिक्षा में गहरी दिलचस्पी थी। इसमें कोई शक नहीं कि पौलुस ने उनके नगर में बड़ी हिम्मत के साथ परमेश्वर के राज्य का ऐलान किया था और यह बताया था कि उसका राजा मसीह होगा। हम यह बात इतने यकीन के साथ क्यों कह सकते हैं? क्योंकि पौलुस और उसके साथियों पर यह इलज़ाम लगाया गया था: “ये सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है, और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं।” (प्रेरि. 17:7; 1 थिस्स. 2:19; 3:13; 4:15; 5:23) थिस्सलुनीके के भाई इसी राज्य पर आस लगाए हुए थे और उन्हें परमेश्वर पर पूरा विश्वास था। इसलिए वे ‘स्वर्ग से उसके पुत्र अर्थात् यीशु के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे, जिसे उसने मृतकों में से जिलाया था’ (NHT) और जो आनेवाले कोप से उन्हें बचाता। उसी तरह आज राज्य पर आस लगानेवालों को पहला थिस्सलुनीकियों में दी बेहतरीन सलाह मानते हुए प्यार में बढ़ते जाना और मनों को स्थिर और पवित्र रखना चाहिए। ऐसा करने से उनका ‘चालचलन परमेश्वर के योग्य होगा, जो उन्हें अपने राज्य और महिमा में बुलाता है।’—1 थिस्स. 1:8, 10; 2:12; 3:12, 13.
[फुटनोट]
a कर्ट और बारबरा आलान्ट की किताब, द टेक्स्ट ऑफ द न्यू टेस्टामेंट, जिसे ई. एफ. रोड्स ने अनुवाद किया, सन् 1987, पेज 97, 99.