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  • सच्चे न्याय की प्रत्याशा हम किस से कर सकते हैं?
    प्रहरीदुर्ग—1989 | सितंबर 1
    • ५. अथेनियों को पौलुस ने जो भाषण दिया उसका अवस्थापन क्या था? (प्रेरितों के काम १७:१६-३१ पढ़वा लें।)

      ५ पौलुस का भाषण सचमुच ही प्रभावशाली है और हमारे ध्यानपूर्वक मनन के योग्य है। चूँकि हम बड़े अन्यायों से घेरे हुए हैं, हम उस में से बहुत कुछ सीख सकते हैं। प्रथम दृश्‍य ग़ौर करें, जो आप प्रेरितों के काम १७:१६-२१ में पढ़ सकते हैं। अथेनी लोगों को विद्या के ऐसे सुप्रसिद्ध केंद्र में रहने का अभिमान था, जहाँ सॉक्रेटीज़, प्लेटो, और ॲरिस्टॉटल्‌ ने सिखाया था। अथेने एक अति धार्मिक शहर भी था। अपने इर्द-गिर्द पौलुस को मूर्तियाँ नज़र आती थीं​—युद्ध देवता ॲरीज़, या मार्ज़ की मूर्तियाँ; ज़ीयुस की; एसक्युलापीयस, औषधि के देवता की; हिंसात्मक समुद्र-देवता, पोसाइडन की; डायोनिसियस, ॲथेना, ईरॉस, इत्यादि, देवताओं की भी।

  • सच्चे न्याय की प्रत्याशा हम किस से कर सकते हैं?
    प्रहरीदुर्ग—1989 | सितंबर 1
    • एक चुनौती-भरा श्रोतागण

      ८. (अ) कौनसे विश्‍वास और दृष्टिकोण इपिकूरियों को चिह्नित करते हैं? (ब) स्तोइकियों का क्या विश्‍वास था?

      ८ कुछ यहूदी और यूनानी लोगों ने दिलचस्पी से सुना, लेकिन प्रभावशाली इपिकूरी और स्तोईकी तत्त्वज्ञ किस तरह प्रतिक्रिया दिखाते? जैसे कि आप देखेंगे, उनके विचार कई अंश तक आज के सामान्य विश्‍वासों के समान थे, उन के समान भी, जो पाठशाला में युवजन को सिखाए जाते हैं। इपिकूरियों ने इस तरह का जीना प्रोत्साहित किया कि जितना संभव हो उतना सुखविलास हासिल करें, खासकर मानसिक सुखविलास। उनका ‘खाए-पीए, क्योंकि कल मर ही जाएँगे’ तत्त्वज्ञान की विशेषता थी सिद्धान्त और सद्‌गुण का अभाव। (१ कुरिन्थियों १५:३२) वे विश्‍वास नहीं करते थे कि देवताओं ने इस ब्रह्‍मांड की सृष्टि की; उसके बजाय, वे सोचते थे कि जीवन एक सहज ब्रह्‍मांड में संयोग से उत्पन्‍न हुआ। इसके अतिरिक्‍त, देवता इन्सानों में दिलचस्पी नहीं रखते थे। स्तोइकियों का कैसा तत्त्वज्ञान था? वे तर्क पर ज़ोर देते थे, यह विश्‍वास करके कि भौतिक द्रव्य और शक्‍ति ब्रह्‍मांड में प्रारंभिक मूलतत्त्व थे। परमेश्‍वर पर एक व्यक्‍ति के तौर से विश्‍वास करने के बजाय, स्तोइकियों ने उसकी कल्पना एक अव्यक्‍तिक देवता के तौर से की। उन्हें यह भी लगा कि क़िस्मत मानवी मामलों को संचालित करती थी।

      ९. जिस स्थिति में पौलुस था, उस में प्रचार करना एक चुनौती क्यों थी?

      ९ ऐसे तत्त्वज्ञों ने पौलुस के सरेआम शिक्षण के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? उस समय दिमाग़ी दर्प से मिश्रित कुतूहल एक अथेनी विशेषता थी, और ये तत्त्वज्ञ पौलुस से तर्क-वितर्क करने लगे। आख़िकार, वे उसे अरयुपगुस ले गए। अथेने के बाज़ार के ऊपर, लेकिन बुलन्द ॲक्रॉपोलिस के नीचे, एक चट्टानी पहाड़ी थी जिसका नाम युद्ध के देवता, मार्ज़, या एरीज़, के नाम के अनुसार रखा गया था, अतः मार्ज़ पहाड़ी, या अरियुपगुस। पुरातन समय में, वहाँ एक अदालत या परिषद्‌ जमा होती थी। पौलुस को शायद किसी अदालत में लिया गया होगा, जो कि शायद ऐसी जगह जमा हुई होगी, जहाँ से अन्य मन्दिरों और मूर्तियों के साथ साथ ॲक्रॉपोलिस और उसके लोकप्रिय पार्थेनोन नज़र आते थे। कुछेक सोचते हैं कि प्रेरित पौलुस ख़तरे में था इसलिए कि रोमी नियम में नए देवताओं का परिचय करना निषिद्ध था। लेकिन अगर पौलुस अरियुपगुस मात्र अपने विश्‍वासों को ही स्पष्ट करने के लिए लिया गया था या यह प्रदर्शित करने कि क्या वह एक क़ाबिल शिक्षक था या नहीं, वह एक भयोत्पादक श्रोतागण के सामने खड़ा था। क्या उन्हें दूर करे बग़ैर वह अपने अत्यावश्‍यक संदेश की व्याख्या दे सकता था?

  • सच्चे न्याय की प्रत्याशा हम किस से कर सकते हैं?
    प्रहरीदुर्ग—1989 | सितंबर 1
    • “१६ जब पौलुस अथेने में उन की बाट जोह रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल गया। १७ सो वह आराधनालय में यहूदियों और भक्‍तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उन से हर दिन वाद-विवाद किया करता था। १८ तब इपिकूरी और स्तोईकी पण्डितों में से कितने उस से तर्क करने लगे, और कितनों ने कहा, ‘यह बकवादी क्या कहना चाहता है?’ परन्तु औरों ने कहा: ‘वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है,’ क्योंकि वह यीशु का, और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था। १९ तब वे उसे अपने साथ अरियुपगुस पर ले गए और पूछा, ‘क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है? २० क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिए हम जानना चाहते हैं, कि इन का अर्थ क्या है?’ २१ (इसलिए कि सब अथेनवी और परदेशी जो वहाँ रहते थे नई नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे)। २२ तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा:

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