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  • सर्वसम्मति से यहोवा की सेवा करो
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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सर्वसम्मति से यहोवा की सेवा करो

“फिर मैं देश-देश के लोगों से एक शुद्ध भाषा बुलवाऊँगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें, और एक मन से उसकी सेवा करें।”​—सपन्याह ३:९, अमेरिकन स्टॅन्डर्ड वर्शन।

१, २. (अ) यहोवा अब कौन-सी भविष्यवाणी की पूर्ति ला रहा है? (ब) यह भविष्यवाणी कौन-से प्रश्‍नों को उठाती है?

यहोवा परमेश्‍वर आज ऐसा कुछ कर रहा है जो मानव अकेले कभी नहीं कर सकेंगे। इस विभाजित संसार में कुछ ३,००० भाषाएं बोली जा रही हैं, लेकिन परमेश्‍वर अब इस भविष्यवाणी को पूर्ण कर रहा है: “मैं देश-देश के लोगों से एक नई और शुद्ध भाषा बुलवाऊँगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें, और एक मन से कन्धे से कन्धा मिलाए हुए उसकी सेवा करें।”​—सपन्याह ३:९.

२ यह “शुद्ध भाषा” क्या है? कौन इसे बोलते हैं? और ‘कन्धे से कन्धा मिलाए हुए परमेश्‍वर की सेवा’ करने का अर्थ क्या है?

वे “शुद्ध भाषा” बोलते हैं

३. “शुद्ध भाषा” क्या है और उसे बोलनेवाले विभाजित क्यों नहीं?

३ सामान्य युग पिन्तेकुस्त ३३ के दिन परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा यीशु मसीह के शिष्यों पर उँडेल दी गई, जिससे वे ऐसी भाषाएं बोलने में समर्थ हो गए जो वे नहीं जानते थे। यह उन्हें अनेक भाषाओं के लोगों से “परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” के बारे में कहने के योग्य बनें। इस तरह, यहोवा सभी जातीय पृष्ठभूमि के लोगों को एकता में लाना आरम्भ कर दिया। (प्रेरित २:१-२१, ३७-४२) बाद में, जब विश्‍वास करनेवाले गैर-यहूदी लोग यीशु के शिष्य बन गए, तब परमेश्‍वर के सेवक सचमुच एक अनेक जिह्वीय, अनेक जातीय लोग थे। किन्तु, उन में, सांसारिक बाधाओं के कारण कभी भी फूट उत्पन्‍न नहीं हुए क्योंकि वे सब “शुद्ध भाषा” बोलते हैं। आध्यात्मिक सच्चाई की यही पारस्परिक भाषा की भविष्यवाणी सपन्याह ३:९ में की गई है। (इफिसियों ४:२५) वे जो यह “शुद्ध भाषा” बोलते हैं, विभाजित नहीं, बल्कि “एक ही मन और एक ही मत होकर मिले” रहने से “एक ही बात” कहते हैं।​—१ कुरिन्थियों १:१०.

४. सपन्याह ३:९ कैसे अनेक-जिह्वीय और अनेक-जातीय सहयोग सूचित करता है, और यह आज कहाँ पाया गया है?

४ यह “शुद्ध भाषा” सभी राष्ट्र और जाति के लोगों को “कँधे से कँधा” मिलाकर, अक्षरशः ‘एक कँधे से’ यहोवा की सेवा करने में समर्थ बनाने के लिए था। वे परमेश्‍वर की सेवा ‘पूरी सहमति से’ (द न्यू इंग्लिश बाइबल); ‘सर्वसम्मति से’ (द न्यू अमेरिकन बाइबल); या ‘एकमत मंजूरी और एक संगठित कँधे’ से करेंगे। (द ॲम्पलिफाइड बाइबल) एक और वृत्तान्त ऐसे कहता है: “फिर मैं सभी लोगों के होंठों को साफ कर दूँगा, कि वे सब यहोवा के नाम से प्रार्थना करें और उसकी सेवा मिलकर करें।” (बायिंगटन) परमेश्‍वर की सेवा में ऐसा अनेक​—जिह्वीय और अनेक-जातीय सहयोग केवल यहोवा के गवाहों में पाया गया है।

५. यहोवा के गवाह किसी भी मानवीय भाषा का कैसे उपयोग करते हैं?

५ इसलिए कि सभी यहोवा के गवाह शास्त्रीय सच्चाई की शुद्ध भाषा बोलते हैं, वे किसी भी मानवीय भाषा का सब से उत्तम उपयोग​—परमेश्‍वर की स्तुति करना और राज्य के सुसमाचार घोषित करना। (मरकुस १३:१०; तीतुस २:७, ८; इब्रानियों १३:१५) यह कितना अत्त्युत्तम है कि यह “शुद्ध भाषा” इस तरह सभी जातीय समूहों के लोगों को सर्वसम्मति से यहोवा की सेवा करने के योग्य बनाती है!

६. यहोवा लोगों को कैसे देखता है, लेकिन क्या सहायक होगा अगर एक अमुक मसीही के हृदय में पक्षपात का एक अंश रह जाता है?

६ जब पतरस कुरनेलियुस और अन्य गैर-यहूदियों को गवाही दे रहा था, उसने कहा: “अब मुझे निश्‍चय हुआ, कि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता बरन, हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है वह उसे भाता है।” (प्रेरित १०:३४, ३५, बायिंगटन) अन्य वृत्तान्तों के अनुसार यहोवा “पक्षपाती नहीं,” “लोगों के बीच भेदभाव नहीं रखता” और “तरफ़दारी नहीं दिखाता।” (एम्फाटिक डायग्लट; फिलिप्स; न्यू इन्टरनॅशनल वर्शन) यहोवा के सेवक होने के नाते, हमें सभी जातीय समूहों के लोगों को जैसे वह देखता है, वैसे देखना है। लेकिन क्या होगा, अगर एक अमुक मसीही के हृदय में पक्षपात का एक अंश रह जाता है? तो इस पर ध्यान देना लाभदायक होगा कि कैसे हमारा निष्पक्ष परमेश्‍वर हर राष्ट्र, जाति, लोग और भाषा में के अपने सेवकों के साथ व्यवहार करता है।​—नवम्बर ८, १९८४ का अवेक!, पृष्ठ ३-११ भी देंखें।

वे वांछनीय हैं

७. परमेश्‍वर के साथ के सम्बन्ध के विषय में, कैसे एक मसीही किसी दूसरे से अलग नहीं जो अन्य राष्ट्र या जाति का हो?

७ अगर आप यहोवा का बपतिस्मा पाया हुआ एक गवाह है, तो बहुत सम्भव है कि कभी आप भी इस दुष्ट व्यवस्था में ‘किए जानेवाले सब घृणित कामों के कारण सांसे भरते और दुःख के मारे चिल्लाते’ थे।’ (यहेजकेल ९:४) आप ‘अपने पापों के कारण मरे हुए’ थे लेकिन परमेश्‍वर दयालु होकर यीशु मसीह के द्वारा आपको अपनी ओर खींच लिया है। (इफिसियों २:१-५; यूहन्‍ना ६:४४) इन विषयों में आप उन लोगों से अलग नहीं थे जो अब आपके सह-विश्‍वासी हैं। वे भी दुष्टता के कारण दुःखी थे, ‘अपने पापों के कारण मरे हुए थे, और यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर की दया पानेवाले बनें। और हमारी जाति और राष्ट्रीयता जो भी हो, हम में से किसी को भी यहोवा परमेश्‍वर के साथ उसके गवाहों के रूप में एक स्तर होना केवल विश्‍वास के द्वारा है।​—रोमियों ११:२०.

८. हग्गै २:७ की पूर्ति अब कैसे हो रही है?

८ यह देखने के लिए कि सह-विश्‍वासियों की ओर हमारा दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए, हग्गै २:७ के भविष्यसूचक शब्द हमें मदद करेंगे। वहाँ यहोवा ने घोषित किया: “मैं सारी जातियों को कम्पकपाउँगा, और सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं आएंगी, और मैं इस भवन को अपनी महिमा के तेज से भर दूँगा।” यह भविष्यवाणी किया गया सच्चे धर्म का उन्‍नयन, परमेश्‍वर के सच्चे मन्दिर, उसकी उपासना के क्षेत्र में, घटित हो रहा है। (यूहन्‍ना ४:२३, २४) लेकिन “सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं” क्या हैं? वे उन हज़ारों धार्मिकता के प्रेमी हैं जो राज्य-प्रचार की ओर अनुक्रिया दिखाते हैं। सभी राष्ट्रों और जातियों से, वे उसके बपतिस्मा पाए हुए गवाह और अन्तर्राष्ट्रीय “बड़ी भीड़” का हिस्सा बनते हुए ‘यहेवा के भवन के पर्वत’ की ओर निकल रहे हैं। (यशायाह २:२-४; प्रकाशितवाक्य ७:९) यहोवा की पार्थिव संस्था के भाग के रूप में जो उसकी स्तुति कर रहे हैं, वे साफ, नैतिक, धार्मिक लोग हैं​—सचमुच वांछनीय। निश्‍चय ही, फिर हर सच्चा मसीही इन अभिष्ट लोगों की ओर, जो हमारे स्वर्ग के पारस्परिक पिता के सामने स्वीकार्य हैं, भ्रातृवत्‌ प्रेम दिखाना चाहेंगे।

उनका व्यक्‍तित्व नया है

९. अतीत में, अगर हम भी विदेशियों की क़दर नहीं करते थे, अब हम मसीही होने के नाते स्थिति क्यों बदलनी चाहिए?

९ सारी पृथ्वी के हमारे भाई और बहन भी वांछनीय हैं, क्योंकि उन्होंने ‘पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतारकर, नए मनुष्यत्व को पहिन लेने’ के आदेश का पालन किए हैं। “अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिए [वह] नया बनता जाता है। उस में न तो यूनानी रहा, न यहूदी, न खतना, न खतनारहित, न जंगली, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र, केवल मसीह सब कुछ और सब में है। (कुलुस्सियों ३:९-११) अगर कोई व्यक्‍ति पहले, एक यहूदी, एक यूनानी, या अन्य विदेशियों की कदर नहीं करता था, तो अब एक मसीही होने के नाते स्थिति बदल चुकी होगी। चाहे जो भी जाति, राष्ट्र या संस्कृति हो, जो “नए मनुष्यत्व” का धारण करते हैं, परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा के फल​—प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम उत्पन्‍न और प्रदर्शित करते हैं। (गलतियों ५:२२, २३) यह उन्हें, यहोवा के सह-उपासकों के सामने प्रिय बनाते हैं।

१०. अगर हम किसी भी जाति या राष्ट्र के सह-विश्‍वासियों के बारे में भारी अनुचित बातें कहने के लिए प्रलोभित होते हैं तो तीतुस १:५-१२ हमारी मदद कैसे कर सकता है?

१० यहोवा के सेवकों के असमान, कुछ सांसारिक लोग अन्य जातीय पृष्ठभूमि के लोगों के बारे में अपमानजनक बातें कहते हैं। क्यों! अपने ही लोगों के बारे में एक क्रेती भविष्यवक्‍ता ने एक बार कहा था: “क्रेती लोग सदा झूठे, दुष्ट पशु और आलसी पेटू होते हैं।” प्रेरित पौलुस ने उन शब्दों की याद की जब क्रेत द्वीप पर के मसीहियों के बीच में के झूठे शिक्षकों के मुँह बन्द कर देना आवश्‍यक बन गया। परन्तु, निश्‍चित रूप से, पौलुस नहीं कह रहा था कि: ‘सभी क्रेती मसीही झूठ बोलते हैं, और अपमानिक हैं, आलसी हैं और पेटू हैं।’ (तीतुस १:५-१२) नहीं, क्योंकि मसीही दूसरों के विषय में अपमानजनक रूप से बात नहीं करते। इसके अतिरिक्‍त उन क्रेती मसीहियों में से अधिकांश ने “नए मनुष्यत्व” का धारण कर चुके थे और कुछ प्राचीनों के रूप में नियुक्‍ति के लिए आध्यात्मिक रूप से योग्य बने थे। यह गम्भीर सोच-विचार के योग्य हैं अगर हम कभी भी एक अमुक जाति या राष्ट्र के हमारे भाइयों और बहनों के बारे में भारी अनुचित बातें कहने के लिए प्रलोभित होते हैं।

औरों को श्रेष्ठ समझें

११. अगर एक मसीही के हृदय में किसी भी प्रकार का पक्षपात हो, तो वह क्या कर सकता है?

११ दूसरी ओर, अगर एक मसीही एक अमुक जाति के राष्ट्र की ओर पक्षपाती है, तो वह सम्भवतः शब्दों या कार्यों के द्वारा इसे प्रकट करेगा। परिणामस्वरूप यह दुःखी भावनाओं को उत्पन्‍न कर सकता है, विशेष रूप से ऐसी एक सभा में जो विभिन्‍न जातीय पृष्ठभूमि के लोगों से बनी है। निश्‍चय ही, कोई भी मसीही परमेश्‍वर के लोगों की एकता पर ऐसा एक तनाव डालना नहीं चाहेगा। (भजन १३३:१-३) इसलिए अगर एक मसीही के हृदय में पक्षपात है, वह ऐसे प्रार्थना कर सकता है: “हे ईश्‍वर मुझे जांचकर जान ले। मुझे परखकर मेरी चिन्ताओं को जान ले। और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर।”​—भजन १३९:२३, २४.

१२. हम हमारी जातीय पृष्ठभूमि के बारे में अपने में या दूसरों में घमण्ड क्यों नहीं करना चाहिए?

१२ यह यथार्थवादी दृष्टि रखना अच्छा होगा कि हम सब असम्पूर्ण मानव है जिनका, अगर यीशु मसीह का बलिदान न होता तो परमेश्‍वर के सामने कोई भी स्तर न होता। (१ यूहन्‍ना १:८-२:२) फिर, दूसरों से हमें क्या अलग बनाता है? इसलिए कि हमारे पास कुछ ही नहीं, जो हम पाए नहीं, क्योंकर हम अपने में या दूसरों में हमारी जातीय पृष्ठभूमि के विषय में घमण्ड करें?​—१ कुरिन्थियों ४:६, ७ से तुलना करें।

१३. हम मण्डली की एकता में कैसे सहयोग दे सकते हैं और फिलिप्पियों २:१-११ से क्या सीख सकते हैं?

१३ हम सभा की एकता में सहयोग दे सकते हैं, अगर हम दूसरों के अच्छे गुणों को मान लेंगे और मूल्यांकन दिखाएंगे। यहूदी प्रेरित पौलुस ने हम सभों को विचार करने के लिए प्रेरित किया जब उसने गैर-यहूदी फिलिप्पियों से कहा: ‘मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त और एक ही मनसा रखो। विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।” हमें, किसी भी जाति या राष्ट्र के सह-मानवों की जो सही मनोवृत्ति दिखानी है, वह यीशु मसीह में प्रदर्शित की गई। हालाँकि वह एक शक्‍तिशाली आत्मिक सृष्टि था, वह “मनुष्य की समानता में हो गया,” और हर जाति और राष्ट्र के पाप मनुष्यों के लिए एक खम्बे पर, आज्ञाकारी रहकर, मृत्यु भी सह ली। (फिलिप्पियों २:१-११) तो फिर यीशु के शिष्य होने के नाते क्या हम, यह स्वीकार करते हुए कि दूसरे हम से श्रेष्ठ हैं, प्रेमी, नम्र और दयालु नहीं बनना है?

सुनो और ध्यान से देखो

१४. दूसरों को हम से श्रेष्ठ समझने के लिए हमारी क्या मदद कर सकता है?

१४ दूसरों को हम से श्रेष्ठ समझने के लिए हमें मदद मिलेगी अगर हम, जब वे बोलते हैं, सचमुच सुनेंगे और ध्यानपूर्वक उनके आचरण को देखेंगे। उदाहरणार्थ, हमें ईमानदारी से यह मानना होगा कि एक सह-प्राचीन​—शायद कोई और जाति का​—थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल में प्रभावशाली सलाह देने की योग्यता में हम से श्रेष्ठ हैं। हम यह देख सकेंगे कि यह अनिवार्यतः उसकी शब्द-योजना या भाषण-शैली नहीं बल्कि उसकी आध्यात्मिकता है, जो उसे सह-विश्‍वासियों को समर्थ राज्य प्रचारक बनाने में मदद करने से अच्छे परिणाम मिलने के योग्य बनाता है। और यह स्पष्ट है कि यहोवा उसके प्रयत्नों पर आशीष दे रहा है।

१५. जब हम सह-विश्‍वासियों की टिप्पणियाँ सुनते हैं, हम क्या देख सकते हैं?

१५ जब हम हमारे भाइयों और बहनों से बात करते हैं या सभाओं में उनकी टिप्पणियों को सुनते हैं, हम जान सकेंगे कि उन में से कुछों को अमुक शास्त्रीय सच्चाइयों के बारे में हम से बेहतर समझ है। हम देख सकेंगे कि उनका भ्रातृवत्‌ प्रेम अधिक मज़बूत प्रतीत हो रहा है, उन में अधिक विश्‍वास प्रतीत हो रहा है, या वे यहोवा में अधिक विश्‍वास का प्रमाण दे रहे हैं। इसलिए वे चाहे हमारी जातीय पृष्ठभूमि के हो या ना हो, वे हमें प्रेम और भले कामों में उकसाते हैं, हमारे विश्‍वास को मज़बूत करने में मदद करते हैं, और हमारे स्वर्गीय पिता में और अधिक पूर्ण रूप से भरोसा रखने के लिए प्रेरित करते हैं। (नीतिवचन ३:५, ६; इब्रानियों १०:२४, २५, ३९) प्रत्यक्षतः यहोवा उनके निकट गए हैं, और इस प्रकार हमें भी जाना है।​—याकूब ४:८ से तुलना करें।

अनुगृहीत और संपोषित

१६, १७. इस तथ्य को चित्रित करें कि यहोवा किसी भी राष्ट्र या जाति के उसके सेवकों को आशीष देने में पक्षपाती नहीं।

१६ यहोवा किसी भी राष्ट्र या जाति के उसके सेवकों को आशीष देने में पक्षपाती नहीं। उदाहरणार्थ, ब्राज़िल देश की ओर ध्यान दें। लगभग वर्ष १९२० में, विदेशी मिशनरियों से नहीं बल्कि ब्राज़िल के आठ नाविकों से पहली बार ब्राज़िल के लोगों ने राज्य संदेश सुना। परमेश्‍वर की आशीष सुस्पष्ट थी क्योंकि १९८७ सेवकाई वर्ष तक १४,१३,०२,००० निवासियों के उस देश में २१६,२१६ राज्य प्रचारकों का एक शिखर था​—जो ६५४ के विरुद्ध एक प्रचारक का अनुपात है।

१७ एक और ईश्‍वरीय आशीष के उदाहरण की ओर ध्यान दें। अप्रैल १९२३ में करीबियन के ट्रिनिदाद द्वीप के दो अश्‍वेत यहोवा के गवाहों को पश्‍चिम अफ्रीका में राज्य संदेश घोषित करने के लिए भेजे गए। इस तरह भाई और बहन डब्लू. आर. ब्रौन ने वहाँ वर्षों तक सेवा की, वह भाई “बाइबल ब्रौन” के नाम से ज्ञान हो गया। उन्होंने “लगाया” और “परमेश्‍वर ने बढ़ाया,” जैसे दूसरे भी उस विस्तृत क्षेत्र में कार्य किए। (१ कुरिन्थियों ३:५-९) आज घाना में ३४,५०० से अधिक और केवल नायजीरिया में १३४,५०० से अधिक राज्य प्रचारक हैं।

१८, १९. उदाहरण दे कि कैसे सभी जाति और राष्ट्र के उसके सेवकों को, हमारा निष्पक्ष परमेश्‍वर, संपोषित करता है।

१८ यहोवा सभी राष्ट्रों और जातियों के उसके सेवकों को न केवल आशीष देता है बल्कि उन्हें सम्पोषित करता है। उदाहरणार्थ यहोवा के दो जापानी गवाहों के उदाहरण पर ध्यान दें। जून २१, १९३९ को, कतसुओ मियुरा और उसकी पत्नी अन्याय से गिरफ्तार किए गए, कैद किए गए और उनके पाँच-वर्षीय बेटे से अलग रखे गए जिसकी देख-रेख उसकी नानी को करनी पड़ी। आठ महीनों के बाद बहन मियुरा को रिहा कर दिया गया, लेकिन भाई मियुरा को मुक़दमा शुरू होने से पहले दो साल से अधिक समय हवालाव में रखा गया। उसने दुर्व्यवहार का अनुभव किया, दोषी पाया गया, और एक पाँच-वर्षीय दण्डादेश पाया। हिरोशिमा के कैदखाने में परमेश्‍वर ने, उसे शास्त्रों के द्वारा, जो अविरत सांत्वना और शक्‍ति देते हैं, संपोषित रखा। एक प्रतीयमान चमत्कार के द्वारा, भाई मियुरा अगस्त ६, १९४५ को बच निकले, जब एक अणु-बम विस्फोट ने उसके कैदखाने को विध्वंस कर दिया। दो महीनों बाद, वह जापान के उत्तरी भाग में, अपनी पत्नी और अपने बेटे से फिर मिल सका।

१९ विश्‍व युद्ध II के दौरान कई देशों में यहोवा के गवाहों द्वारा सख्त उत्पीड़न अनुभव किए गए। उदाहरणार्थ, रॉबर्ट. ए. विन्क्लर एक जर्मन भाई थे जो जर्मनी और नेदरलैन्ड के नाज़ी नज़रबन्दी-शिविरों में कष्ट पाया। इसलिए कि वह अपने सह-विश्‍वासियों से विश्‍वासघात नहीं करता, उसे इतनी निर्दयता से मारा गया कि उसे पहचाना नहीं जा सकता था। लेकिन उस ने लिखा: “सभी प्रकार की समस्याओं में मदद करने की यहोवा की प्रतिज्ञाओं के विचारों ने मुझे यह सब कुछ सहने की सांत्वना और शक्‍ति दी। . . . शनिवार को मुझे मारा गया, और आगामी सोमवार को उनके द्वारा वापस मुझ से पूछ-ताछ की जानेवाली थी। अब क्या होगा और मुझे क्या करना था? मैं उसकी प्रतिज्ञाओं में भरोसा रखते हुए, प्रार्थना में यहोवा की ओर फिरा। मैं जानता था कि इसका अर्थ, राज्य कार्य और मेरे मसीही भाइयों की सुरक्षा के निमित्त, ईश्‍वरशासित युद्ध-कला का उपयोग करना था। सहन करने के लिए यह मेरे लिए एक बड़ी परीक्षा थी और सत्तरहवाँ दिन मैं पूर्ण रूप से थक गया, लेकिन मैंने यहोवा को धन्यवाद दिया कि उसकी शक्‍ति से मैं इस परीक्षा को सह सका और मेरी खराई बनाए रख सका।​—भजन १८:३५; ५५:२२; ९४:१८.

हमारे भाईचारे के लिए एहसानमन्द

२०. प्रत्येक जाति और राष्ट्र के सह-विश्‍वासियों की ओर हमारा आदर कैसे बढ़ाया जा सकता है?

२० निस्सन्देह, यहोवा प्रत्येक राष्ट्र और जाति के उसके गवाहों को आशीष देता है और संपोषित करता है। वह पक्षपाती नहीं और हमें उसके समर्पित सेवकों के रूप में पक्षपात दिखाने का कोई बहाना या कारण नहीं। इसके अतिरिक्‍त, सभी जाति और राष्ट्र के हमारे भाइयों और बहनों के लिए हमारा आदर बढ़ेगा, अगर हम उन विशेषताओं पर विचार करेंगे जिन में वे हम से श्रेष्ठ हैं। वे भी स्वर्गीय विवेक का उपयोग करते हैं, जो पक्षपाती भेद नहीं करता बल्कि उत्कृष्ट फल उत्पन्‍न करता है। (याकूब ३:१३-१८) जी हाँ, और उनकी दयालुता, उदारता, प्रेम, और अन्य दैवी गुण हमें उत्तम उदाहरण प्रदान करते हैं।

२१. क्या करने के लिए हमें निश्‍चित होना है?

२१ तो फिर, हम हमारे इस अनेक-जातीय, अनेक राष्ट्रीय भाईचारे के लिए कितना एहसानमन्द होना चाहिए। हमारे स्वर्गीय पिता की मदद और आशीष के साथ, भ्रातृवत्‌ प्रेम में और पारस्परिक आदर के साथ हम “कँधे से कँधा मिलाए हुए उसकी सेवा करें।” सचमुच, सर्वसम्मति से यहोवा की सेवा करना, हमारी गम्भीर अभिलाषा और दृढ़ लक्ष्य होना चाहिए।

आपकी टिप्पणियाँ क्या हैं?

◻ यह “शुद्ध भाषा” सभी जातीय पृष्ठ भूमि के यहोवा के सेवकों को क्या करने के योग्य बनाती है?

◻ आज हग्गै २:७ की पूर्ति कैसे होती है, और यह कैसे परमेश्‍वर के अन्य सेवकों की ओर के हमारे दृष्टिकोण पर प्रभाव डालना चाहिए?

◻ कैसे फिलिप्पियों २:३ हर जाति और राष्ट्र के लोगों के साथ के हमारे सम्बन्ध पर प्रभाव डाल सकता है?

◻ अगर सुनेंगे और ध्यानपूर्वक देखेंगे तो अन्य राष्ट्रीय पृष्ठभूमि के सह-विश्‍वासियों के बारे में हम क्या जान सकेंगे?

[पेज 9 पर तसवीरें]

हर जाति और राष्ट्र के लोग सर्वसम्मति से यहोवा की स्तुति कर रहे हैं

[पेज 10 पर तसवीरें]

ध्यानपूर्वक सुनिए और परिदर्शक बनिए। आप यहोवा के अन्य गवाहों के शब्दों और कार्यों में प्रमाणित प्रेम और विश्‍वास से प्रेरित हो जाएंगे

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