वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • bt अध्या. 21 पेज 165-172
  • “मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ”

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • “मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ”
  • ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • वह “मकिदुनिया के सफर पर निकल पड़ा” (प्रेषि. 20:1, 2)
  • “उसके खिलाफ साज़िश रची” जाती है (प्रेषि. 20:3, 4)
  • “उन्हें इतना दिलासा मिला कि उसका बयान नहीं किया जा सकता” (प्रेषि. 20:5-12)
  • “सरेआम और घर-घर जाकर” (प्रेषि. 20:13-24)
  • “तुम अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो” (प्रेषि. 20:25-38)
  • यहोवा के राज्य की निडरता से घोषणा करें!
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
  • “प्रचार किए जा, चुप मत रह”
    ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
  • उसने “अच्छी तरह गवाही दी”
    ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
  • यहोवा का वचन प्रबल होता है!
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
और देखिए
‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
bt अध्या. 21 पेज 165-172

अध्याय 21

“मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ”

पौलुस जोश से प्रचार करता है और प्राचीनों को सलाह देता है

प्रेषितों 20:1-38 पर आधारित

1-3. (क) बताइए कि त्रोआस में पौलुस की आखिरी शाम क्या-क्या होता है। (ख) युतुखुस की मौत पर पौलुस क्या करता है? इस घटना से पौलुस के बारे में क्या पता चलता है?

पौलुस अब त्रोआस शहर में है। वह एक घर की तीसरी मंज़िल पर भाषण दे रहा है। कमरा लोगों से खचाखच भरा है। वहाँ मौजूद भाई-बहनों के साथ पौलुस की यह आखिरी शाम है, इसलिए वह काफी देर तक उन्हें कुछ बता रहा है। देखते-ही-देखते आधी रात हो जाती है। बहुत-से दीए जल रहे हैं, इस वजह से कमरे में काफी गरमी और घुटन है। युतुखुस नाम का एक जवान, खिड़की पर बैठा पौलुस की बातें सुन रहा है। लेकिन उसकी आँख लग जाती है और वह तीसरी मंज़िल से नीचे गिर जाता है!

2 लोग भागे-भागे सीढ़ियों से नीचे उतरते हैं। शायद वैद्य लूका सबसे आगे रहा होगा ताकि युतुखुस की जाँच कर सके। पर अफसोस, जब तक वे पहुँचे युतुखुस “मर चुका था।” (प्रेषि. 20:9) लोगों में हलचल मच जाती है। मगर तभी पौलुस एक चमत्कार करता है। वह झुककर युतुखुस से लिपट जाता है और भीड़ से कहता है, “शांत हो जाओ क्योंकि यह अब ज़िंदा हो गया है।” पौलुस ने सच में उस जवान को ज़िंदा कर दिया!​—प्रेषि. 20:10.

3 यह घटना दिखाती है कि यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति से कितने ज़बरदस्त काम कर सकता है! हालाँकि युतुखुस की मौत के लिए पौलुस ज़िम्मेदार नहीं है फिर भी वह नहीं चाहता कि भाई-बहन इस खास सभा से दुखी होकर जाएँ या उनका विश्‍वास कमज़ोर पड़ जाए। इसलिए वह युतुखुस को ज़िंदा कर देता है। इस चमत्कार से मंडली को बहुत दिलासा मिलता है और प्रचार में लगे रहने के लिए उनमें जोश भर आता है। इस घटना से साफ पता चलता है कि पौलुस दूसरों की जान को बहुत कीमती समझता था। इससे हमें पौलुस के कहे ये शब्द याद आते हैं, “मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ।” (प्रेषि. 20:26) आइए देखें कि हम कैसे लोगों की जान को कीमती समझ सकते हैं, ठीक जैसे पौलुस ने समझा था।

वह “मकिदुनिया के सफर पर निकल पड़ा” (प्रेषि. 20:1, 2)

4. इफिसुस में पौलुस के साथ क्या होता है?

4 जैसा हमने पिछले अध्याय में देखा, इफिसुस में पौलुस जोश से प्रचार कर रहा था। यह देखकर अरतिमिस देवी की मूर्तियाँ बनानेवाले कारीगर भड़क उठते हैं। वे पौलुस और उसके साथियों को पकड़ने के लिए भीड़ जमा कर लेते हैं और बहुत हंगामा मचाते हैं। पौलुस बाल-बाल बच निकलता है। इसके बाद क्या होता है? प्रेषितों 20:1 बताता है, “जब हुल्लड़ थम गया, तो पौलुस ने चेलों को बुलवाया और उनका हौसला बढ़ाने के बाद उन्हें अलविदा कहा और मकिदुनिया के सफर पर निकल पड़ा।”

5, 6. (क) पौलुस मकिदुनिया में शायद कितने समय तक रहता है? वह वहाँ के भाइयों के लिए क्या करता है? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि पौलुस अपने भाई-बहनों से प्यार करता था?

5 मकिदुनिया जाते वक्‍त पौलुस त्रोआस के बंदरगाह पर रुकता है और वहाँ कुछ समय बिताता है। पौलुस इस आस में बैठा था कि तीतुस त्रोआस आएगा और फिर वे दोनों साथ मिलकर सफर पर आगे बढ़ेंगे। उस वक्‍त तीतुस कुरिंथ में था। (2 कुरिं. 2:12, 13) मगर काफी इंतज़ार करने के बाद जब पौलुस को लगता है कि तीतुस नहीं आ पाएगा, तो वह अकेला मकिदुनिया के लिए निकल पड़ता है। मकिदुनिया में वह शायद एक साल तक रहता है और “बहुत-सी बातें कहकर वहाँ के चेलों का हौसला” बढ़ाता है।a (प्रेषि. 20:2) आखिरकार तीतुस मकिदुनिया पहुँचता है और पौलुस को एक अच्छी खबर देता है। वह बताता है कि कुरिंथ के मसीहियों ने पौलुस का पहला खत पढ़ने के बाद उसकी सलाह मानी और सही कदम उठाया। (2 कुरिं. 7:5-7) यह खबर सुनकर पौलुस को इतनी खुशी होती है कि वह कुरिंथ के भाइयों को एक और खत लिखता है। इसे आज हम 2 कुरिंथियों के नाम से जानते हैं।

6 गौर कीजिए, जब पौलुस इफिसुस में था और बाद में मकिदुनिया गया, तो दोनों जगह उसने भाइयों का हौसला बढ़ाया। इससे पता चलता है कि पौलुस अपने भाई-बहनों से कितना प्यार करता था! वह उन फरीसियों की तरह नहीं था जो दूसरों को तुच्छ समझते थे और उन्हें नीचा दिखाते थे। (यूह. 7:47-49) पौलुस ने भाई-बहनों को अपने बराबर समझा और खुशी-खुशी उनके साथ मिलकर यहोवा की सेवा की। (1 कुरिं. 3:9) कभी-कभी उसे भाई-बहनों को सख्ती से सलाह देनी पड़ी लेकिन तब भी उसने उन्हें नीचा नहीं दिखाया।​—2 कुरिं. 2:4.

7. आज मसीही निगरान कैसे पौलुस की तरह बनने की कोशिश करते हैं?

7 आज मंडली के प्राचीन और सर्किट निगरान पौलुस की तरह बनने की कोशिश करते हैं। जब उन्हें किसी को सख्ती से सलाह देनी होती है तब भी वे उन्हें नीचा नहीं दिखाते। वे उनके हालात को समझने की कोशिश करते हैं। उन्हें दोषी महसूस कराने के बजाय वे उनका हौसला बढ़ाते हैं। एक अनुभवी सर्किट निगरान का कहना है, “हमारे कई भाई-बहन सही काम करना चाहते हैं लेकिन यह उनके लिए आसान नहीं है। ज़िंदगी की चिंताओं और परेशानियों से वे इतना निराश हो जाते हैं, इतना डर जाते हैं कि उन्हें समझ में नहीं आता कि क्या करें।” ऐसे में प्राचीन भाई-बहनों की हिम्मत बढ़ा सकते हैं ताकि वे सही काम करें।​—इब्रा. 12:12, 13.

मकिदुनिया से लिखीं पौलुस की चिट्ठियाँ

कुरिंथियों  के नाम अपनी दूसरी चिट्ठी में पौलुस कहता है कि जब वह मकिदुनिया आया था, तो उसे कुरिंथ के भाइयों की चिंता सता रही थी। मगर जब तीतुस ने आकर उसे उन भाइयों के बारे में अच्छी खबर दी, तो उसे राहत मिली। फिर उसने उन्हें यह दूसरी चिट्ठी लिखी। यह करीब ईसवी सन्‌ 55 की बात है। और इस चिट्ठी से पता चलता है कि पौलुस अब भी मकिदुनिया में था। (2 कुरिं. 7:5-7; 9:2-4) जब पौलुस ने यह चिट्ठी लिखी तो उसके मन में क्या चल रहा होगा? एक तो यह कि उसे यरूशलेम के ज़रूरतमंद भाइयों के लिए दान इकट्ठा करना है। (2 कुरिं. 8:18-21) वह इस बात से भी परेशान था कि कुरिंथ की मंडली में कुछ “झूठे प्रेषित” उठ खड़े हुए थे जो ‘छल से काम कर रहे थे।’​—2 कुरिं. 11:5, 13, 14.

ऐसा लगता है कि पौलुस ने तीतुस  के नाम चिट्ठी मकिदुनिया से ही लिखी थी। ईसवी सन्‌ 61 से 64 के बीच पौलुस क्रेते द्वीप गया। इससे कुछ समय पहले वह रोम की कैद से रिहा हुआ था। क्रेते में तीतुस भी उसके साथ था। पौलुस ने तीतुस को क्रेते में ही छोड़ दिया ताकि वह बिगड़े हुए हालात सुधारे और प्राचीनों को नियुक्‍त करे। (तीतु. 1:5) चिट्ठी में उसने तीतुस से कहा कि वह उससे नीकुपुलिस में आकर मिले। उस ज़माने में भूमध्य सागर के आस-पास नीकुपुलिस नाम के कई शहर थे, लेकिन पौलुस जिस नीकुपुलिस की बात कर रहा था वह शायद उत्तर-पश्‍चिम यूनान का एक शहर था। जब पौलुस ने मकिदुनिया से तीतुस को लिखा, तो पौलुस शायद नीकुपुलिस के आस-पास ही कहीं प्रचार कर रहा था।​—तीतु. 3:12.

पौलुस ने तीमुथियुस  के नाम पहली चिट्ठी भी ईसवी सन्‌ 61 से 64 के बीच लिखी थी। यानी जब वह रोम में पहली बार कैद से रिहा हुआ तब से लेकर दोबारा कैद होने तक का समय। इस चिट्ठी की शुरूआत में पता चलता है कि पौलुस ने तीमुथियुस को इफिसुस में ही रुकने के लिए कहा और वह खुद मकिदुनिया चला गया। (1 तीमु. 1:3) ऐसा मालूम होता है कि पौलुस ने मकिदुनिया से ही तीमुथियुस को यह चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी में पौलुस ने तीमुथियुस से ऐसे बात की जैसे एक पिता अपने बेटे से बात करता है। पौलुस ने तीमुथियुस को ज़रूरी सलाह दी, उसका हौसला बढ़ाया और हिदायतें दीं कि मंडली में कुछ मामले कैसे निपटाए जाने चाहिए।

“उसके खिलाफ साज़िश रची” जाती है (प्रेषि. 20:3, 4)

8, 9. (क) पौलुस जहाज़ से सीरिया जाने की अपनी योजना क्यों बदल देता है? (ख) कुरिंथ के यहूदी पौलुस की जान क्यों लेना चाहते हैं?

8 अब पौलुस मकिदुनिया से कुरिंथ जाता है।b वहाँ वह तीन महीने रुकता है, फिर किंख्रिया जाने की सोचता है ताकि वहाँ से जहाज़ लेकर सीरिया जा सके। सीरिया से वह आगे यरूशलेम जाना चाहता है और वहाँ के ज़रूरतमंद भाइयों तक दान पहुँचाना चाहता है।c (प्रेषि. 24:17; रोमि. 15:25, 26) लेकिन अचानक कुछ ऐसा होता है जिस वजह से पौलुस को अपनी योजना बदलनी पड़ती है। जैसा प्रेषितों 20:3 बताता है, पौलुस को पता चलता है कि कुरिंथ के “यहूदियों ने उसके खिलाफ साज़िश रची [है]।”

9 यहूदी लोग पौलुस की जान क्यों लेना चाहते थे? एक तो पौलुस खुद यहूदी धर्म छोड़कर मसीही बन गया था। और जब वह पिछली बार कुरिंथ में प्रचार कर रहा था तो उसका संदेश सुनकर सभा-घर का अधिकारी क्रिसपुस भी मसीही बन गया था। (प्रेषि. 18:7, 8; 1 कुरिं. 1:14) इतना ही नहीं, एक बार कुरिंथ के यहूदी अखाया प्रांत के राज्यपाल गल्लियो के पास गए। उन्होंने पौलुस पर कानून तोड़ने का इलज़ाम लगाया लेकिन गल्लियो ने उनके आरोपों को बेबुनियाद बताया और मामले को रफा-दफा कर दिया। इस वजह से भी यहूदी भड़क उठे। (प्रेषि. 18:12-17) इसलिए जब कुरिंथ के यहूदियों को पता चलता है कि पौलुस पास के किंख्रिया बंदरगाह से रवाना होनेवाला है, तो वे उसे जान से मारने की साज़िश रचते हैं। अब पौलुस क्या करेगा?

10. पौलुस किंख्रिया नहीं जाता, क्या इसका मतलब वह डरपोक है? समझाइए।

10 पौलुस बेवजह अपनी जान जोखिम में नहीं डालना चाहता और दान के पैसों को सँभालकर ले जाना चाहता है। इसलिए पौलुस फैसला करता है कि वह किंख्रिया नहीं जाएगा लेकिन सड़क के रास्ते से होकर वापस मकिदुनिया लौट जाएगा। इस सफर में भी कई खतरे होंगे। उन दिनों सड़कों पर चोर-लुटेरे छिपकर बैठते थे और लोगों को लूटते थे। मुसाफिरखाने भी सुरक्षित नहीं होते थे। फिर भी पौलुस को लगता है कि किंख्रिया जाने से अच्छा है कि वह सड़क के रास्ते से मकिदुनिया जाए। अच्छी बात यह है कि इस सफर पर वह अकेला नहीं है। उसके साथ अरिस्तरखुस, गयुस, सिकुंदुस, सोपत्रुस, तीमुथियुस, त्रुफिमुस और तुखिकुस भी हैं।​—प्रेषि. 20:3, 4.

11. आज मसीही प्रचार में कैसे सावधानी बरतते हैं? इस मामले में यीशु ने कैसी मिसाल रखी?

11 आज मसीही भी प्रचार में, पौलुस की तरह सावधानी बरतते हैं। कुछ जगहों में जहाँ अकेले जाना खतरनाक हो सकता है, वहाँ वे समूह के साथ या दो-दो की जोड़ियों में प्रचार करते हैं। विरोध या ज़ुल्म के बारे में क्या कहा जा सकता है? मसीही जानते हैं कि वे इससे पूरी तरह नहीं बच सकते। (यूह. 15:20; 2 तीमु. 3:12) मगर वे जानबूझकर मुसीबत को दावत नहीं देते। गौर कीजिए कि यीशु ने क्या किया था। एक बार यरूशलेम में जब विरोधियों ने उसे मारने के लिए पत्थर उठा लिए, तो “वह छिप गया और मंदिर से बाहर निकल गया।” (यूह. 8:59) एक और मौके पर जब यहूदी उसे जान से मारना चाहते थे, तो ‘यीशु खुल्लम-खुल्ला यहूदियों के बीच नहीं घूमा, बल्कि वह इलाका छोड़कर वीराने के पास चला गया।’ (यूह. 11:54) इस तरह यीशु ने अपनी जान बचाने के लिए जो हो सका वह किया ताकि वह यहोवा की मरज़ी पूरी करता रहे। आज मसीही भी यही करते हैं।​—मत्ती 10:16.

पौलुस ज़रूरतमंदों तक दान पहुँचाता है

ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के बाद के सालों में यरूशलेम के मसीहियों को बहुत दुख झेलना पड़ा। उनके यहाँ अकाल पड़ा, उन पर ज़ुल्म किए गए और उनकी चीज़ें लूट ली गयीं। इस वजह से यरूशलेम के बहुत-से भाई-बहनों को गरीबी का सामना करना पड़ा। (प्रेषि. 11:27–12:1; इब्रा. 10:32-34) करीब ईसवी सन्‌ 49 में यरूशलेम के प्राचीनों ने पौलुस से कहा कि वह गैर-यहूदियों को प्रचार करे। तब उन्होंने यह भी कहा कि वह ‘गरीब भाइयों को याद रखे।’ पौलुस ने ठीक वैसा ही किया। उसने ज़रूरतमंद भाइयों के लिए अलग-अलग मंडलियों से राहत का सामान इकट्ठा किया।​—गला. 2:10.

ईसवी सन्‌ 55 में, पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को लिखा, “मैंने गलातिया की मंडलियों को जो आदेश दिए हैं, तुम भी उनका पालन कर सकते हो। हर हफ्ते के पहले दिन तुममें से हर कोई अपनी आमदनी के मुताबिक कुछ अलग रखे ताकि जब मैं आऊँ तो उस वक्‍त दान जमा न करना पड़े। मगर जब मैं वहाँ आऊँगा, तो तुम अपनी चिट्ठियों में जिन आदमियों की सिफारिश करते हो, उन्हें भेजूँगा ताकि तुम खुशी-खुशी जो तोहफा दोगे, उसे वे यरूशलेम पहुँचा दें।” (1 कुरिं. 16:1-3) कुछ ही समय बाद, पौलुस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से उन्हें दूसरी चिट्ठी लिखी। इसमें पौलुस भाइयों से गुज़ारिश करता है कि वे अपने-अपने दान तैयार रखें। वह यह भी बताता है कि मकिदुनिया के मसीही भी दान दे रहे हैं।​—2 कुरिं. 8:1–9:15.

ईसवी सन्‌ 56 में अलग-अलग मंडलियों के भाई, पौलुस से मिलते हैं ताकि जो दान उन्होंने इकट्ठा किया था उसे यरूशलेम के भाइयों तक पहुँचा सकें। इतना सारा पैसा लेकर पौलुस के लिए अकेले सफर करना खतरे से खाली नहीं था। और-तो-और उस पर यह इलज़ाम भी लग सकता था कि उसने पैसों की हेरा-फेरी की है। इसलिए पौलुस अपने साथ आठ भाइयों को लेकर चलता है ताकि यरूशलेम तक दान का पैसा सही-सलामत पहुँचा सके। (2 कुरिं. 8:20) इस बार पौलुस के यरूशलेम जाने का खास मकसद था, भाइयों तक दान पहुँचाना। (रोमि. 15:25, 26) यही बात पौलुस ने बाद में राज्यपाल फेलिक्स से भी कही थी। उसने कहा, “कई सालों बाद मैं अपने लोगों के लिए दान लेकर आया था और परमेश्‍वर को चढ़ावे अर्पित करने आया था।”​—प्रेषि. 24:17.

“उन्हें इतना दिलासा मिला कि उसका बयान नहीं किया जा सकता” (प्रेषि. 20:5-12)

12, 13. (क) जब युतुखुस को ज़िंदा किया जाता है तो मंडली के भाई-बहनों को कैसा लगता है? (ख) जिन्होंने अपनों को खोया है, उन्हें बाइबल की किस आशा से दिलासा मिलता है?

12 पौलुस और उसके साथी मकिदुनिया तक साथ जाते हैं। फिर वे अलग हो जाते हैं और ऐसा मालूम होता है कि त्रोआस में वे एक बार फिर मिल जाते हैं।d आयत बताती है, ‘हम पाँच दिन के अंदर उनके पास त्रोआस पहुँच गए।’e (प्रेषि. 20:6) त्रोआस में ही युतुखुस नाम के उस जवान को ज़िंदा किया जाता है जिसका ज़िक्र इस अध्याय की शुरूआत में किया गया है। ज़रा सोचिए, जब भाई-बहनों ने देखा होगा कि युतुखुस जिंदा हो गया है और सही-सलामत है, तो उन्हें कैसा लगा होगा! आयत बताती है, “उन्हें इतना दिलासा मिला कि उसका बयान नहीं किया जा सकता।”​—प्रेषि. 20:12.

13 माना कि आज ऐसे चमत्कार नहीं होते, मगर बाइबल वादा करती है कि भविष्य में मरे हुए ज़रूर ज़िंदा किए जाएँगे। (यूह. 5:28, 29) इसलिए आज भी जिन्होंने अपनों को खोया है, उन्हें बाइबल की इस आशा से ‘इतना दिलासा मिलता है कि उसका बयान नहीं किया जा सकता।’ ध्यान दीजिए, भले ही युतुखुस को ज़िंदा किया गया था, मगर बाद में बाकी इंसानों की तरह उसकी भी मौत हो गयी। (रोमि. 6:23) लेकिन नयी दुनिया में जो लोग दोबारा ज़िंदा होंगे, उनके आगे हमेशा-हमेशा तक जीने का मौका होगा। यही नहीं, जिन लोगों के पास स्वर्ग में जीने की आशा है, उन्हें अमरता का वरदान मिलेगा। (1 कुरिं. 15:51-53) इसलिए चाहे अभिषिक्‍त मसीही हों या “दूसरी भेड़ें,” सभी को बाइबल की इस आशा से ‘इतना दिलासा मिलता है कि उसका बयान नहीं किया जा सकता।’​—यूह. 10:16.

“सरेआम और घर-घर जाकर” (प्रेषि. 20:13-24)

14. जब पौलुस इफिसुस के प्राचीनों से मिलता है तो उनसे क्या कहता है?

14 पौलुस और उसके साथी त्रोआस से अस्सुस आते हैं। इसके बाद वे मितुलेने, खियुस, सामुस और मीलेतुस जाते हैं। पौलुस पिन्तेकुस्त के त्योहार से पहले यरूशलेम पहुँचना चाहता है। इसलिए वह इस बार इफिसुस ना जाकर मीलेतुस में रुकता है। मगर पौलुस इफिसुस के प्राचीनों से मिलना चाहता है इसलिए वह उन्हें खबर भेजता है कि वे उससे मिलने मीलेतुस आएँ। (प्रेषि. 20:13-17) जब प्राचीन वहाँ पहुँचते हैं तो पौलुस उनसे कहता है, “तुम अच्छी तरह जानते हो कि जिस दिन से मैंने एशिया प्रांत में कदम रखा उस दिन से मैंने तुम्हारे बीच किस तरह जीवन बिताया। मैं प्रभु का दास बनकर पूरी नम्रता से उसकी सेवा करता रहा और यहूदियों की साज़िशों की वजह से मैंने बहुत आँसू बहाए और कई परीक्षाओं का सामना किया। इस दौरान मैं तुम्हें ऐसी कोई भी बात बताने से पीछे नहीं हटा जो तुम्हारे फायदे की थी, न ही तुम्हें सरेआम और घर-घर जाकर सिखाने से रुका। मगर मैंने यहूदी और यूनानी, दोनों को परमेश्‍वर के सामने पश्‍चाताप करने और हमारे प्रभु यीशु पर विश्‍वास करने के बारे में अच्छी तरह गवाही दी।”​—प्रेषि. 20:18-21.

15. घर-घर जाकर प्रचार करने के कुछ फायदे क्या हैं?

15 पौलुस की तरह, हमारी भी यही कोशिश रहती है कि हम ऐसी हर जगह जाकर प्रचार करें जहाँ लोग मिलते हैं। जैसे बस स्टॉप पर, बाज़ारों में और सड़कों पर। फिर भी हमारे प्रचार का मुख्य तरीका है, घर-घर जाकर प्रचार करना। इसके क्या फायदे हैं? एक तो यह कि जब हम घर-घर जाते हैं तो सब लोगों को खुशखबरी सुनने का पूरा मौका मिलता है। इससे वे समझ पाते हैं कि परमेश्‍वर भेदभाव नहीं करता। दूसरा फायदा, अगर हमें कोई नेकदिल व्यक्‍ति मिलता है, तो हम उसके हालात के मुताबिक उसकी और भी अच्छी तरह मदद कर पाते हैं। इतना ही नहीं, घर-घर का प्रचार करने से खुद हमारा भी विश्‍वास मज़बूत होता है और हम धीरज रखना सीखते हैं। दरअसल, आज सच्चे मसीही “सरेआम और घर-घर” के प्रचार के लिए जाने जाते हैं।

16, 17. पौलुस ने कैसे दिखाया कि वह हिम्मतवाला है? आज मसीही भी कैसे पौलुस की तरह बन सकते हैं?

16 पौलुस इफिसुस के प्राचीनों को बताता है कि उसे नहीं पता कि यरूशलेम लौटने पर उसे किन खतरों का सामना करना पड़ेगा। फिर भी वह उनसे कहता है, “मैं अपनी जान को ज़रा भी कीमती नहीं समझता। बस इतना चाहता हूँ कि मैं किसी तरह अपनी दौड़ और अपनी सेवा पूरी कर सकूँ। यह सेवा मुझे प्रभु यीशु ने सौंपी थी कि मैं परमेश्‍वर की महा-कृपा की खुशखबरी के बारे में अच्छी गवाही दूँ।” (प्रेषि. 20:24) पौलुस ने ठान लिया है कि चाहे उसे कड़े विरोध का सामना करना पड़े, उसकी सेहत ठीक ना रहे या कोई और मुश्‍किल आ जाए, फिर भी वह परमेश्‍वर का काम करता रहेगा। सच में, पौलुस कितना हिम्मतवाला था!

17 आज मसीही भी तरह-तरह की मुश्‍किलों का सामना करते हैं। कुछ मसीही ऐसे देशों में रहते हैं जहाँ की सरकारें उनके काम पर रोक लगाती हैं और उन पर ज़ुल्म करती हैं। कुछ भाई-बहनों की सेहत ठीक नहीं रहती, तो कुछ मायूस या निराश रहते हैं। फिर भी वे हार नहीं मानते और यहोवा की सेवा करते रहते हैं। जहाँ तक मसीही बच्चों की बात है, उनके स्कूल के साथी उन पर गलत काम करने का दबाव डालते हैं। हो सकता है, आप भी ऐसे किसी हालात का सामना कर रहे हों। फिर भी आपने पौलुस की तरह ठान लिया है कि आप डटे रहेंगे और “खुशखबरी के बारे में अच्छी गवाही” देते रहेंगे।

“तुम अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो” (प्रेषि. 20:25-38)

18. पौलुस कैसे सब लोगों के खून से निर्दोष रहा? इफिसुस के प्राचीन भी दूसरों के खून से निर्दोष कैसे रह सकते हैं?

18 अब पौलुस इफिसुस के प्राचीनों को कुछ ज़रूरी सलाह देता है और उन्हें याद दिलाता है कि कैसे उसने उनके लिए एक मिसाल रखी है। सबसे पहले तो वह उन्हें बताता है कि यह शायद उनकी आखिरी मुलाकात है। फिर वह उनसे कहता है, “मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ। क्योंकि मैं परमेश्‍वर की मरज़ी के बारे में तुम्हें सारी बातें बताने से पीछे नहीं हटा।” इफिसुस के प्राचीन भी दूसरों के खून से निर्दोष रह सकते हैं। वह कैसे? पौलुस उन्हें समझाता है, “तुम अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो जिसके बीच पवित्र शक्‍ति ने तुम्हें निगरानी करनेवाले ठहराया है ताकि तुम चरवाहों की तरह परमेश्‍वर की मंडली की देखभाल करो जिसे उसने अपने बेटे के खून से खरीदा है।” (प्रेषि. 20:26-28) फिर पौलुस उन्हें खबरदार करता है कि “अत्याचारी भेड़िए” उनके बीच घुस आएँगे और “चेलों को अपने पीछे खींच लेने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे।” इसलिए इफिसुस के प्राचीनों को क्या करना होगा? उन्हें ‘जागते रहना’ होगा और पौलुस की मिसाल को याद रखना होगा कि कैसे वह ‘तीन साल तक, रात-दिन आँसू बहा-बहाकर उनमें से हरेक को समझाता रहा।’​—प्रेषि. 20:29-31.

19. पहली सदी के खत्म होते-होते क्या हुआ? इस वजह से बाद की सदियों में क्या हुआ?

19 पहली सदी के खत्म होते-होते मसीही धर्म के खिलाफ बगावत शुरू हो गयी। मंडली में “अत्याचारी भेड़िए” नज़र आने लगे। करीब ईसवी सन्‌ 98 में प्रेषित यूहन्‍ना ने लिखा, ‘मसीह के कई विरोधी आ चुके हैं। वे हमारे ही बीच से निकलकर गए थे मगर वे हमारे जैसे नहीं थे। अगर वे हमारे जैसे होते तो हमारे साथ ही रहते।’ (1 यूह. 2:18, 19) तीसरी सदी के आते-आते इन नकली मसीहियों की गिनती बढ़ गयी और ईसाईजगत का पादरीवर्ग उभर आया। फिर चौथी सदी में रोमी सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने ईसाईजगत को एक धर्म के तौर पर मान्यता दे दी। ईसाईजगत के पादरियों ने किस मायने में “टेढ़ी-मेढ़ी बातें” कही हैं? वे कहने को तो बाइबल से सिखाते हैं। लेकिन असल में उन्होंने बाइबल की शिक्षाओं और दूसरे धर्मों की शिक्षाओं और रीति-रिवाज़ों को मिला दिया है। आज भी चर्चों में लोग इन झूठी शिक्षाओं और रीति-रिवाज़ों को मानते हैं।

20, 21. पौलुस ने किस भावना से भाई-बहनों की सेवा की? आज मसीही प्राचीन भी कैसे पौलुस की तरह बन सकते हैं?

20 पौलुस उन अत्याचारी भेड़ियों की तरह नहीं था जिन्होंने आगे चलकर परमेश्‍वर के झुंड का फायदा उठाया। वह अपनी रोज़ी-रोटी के लिए खुद मेहनत करता था ताकि मंडली पर बोझ ना बने। उसने भाई-बहनों की खातिर बहुत मेहनत की और बदले में कुछ पाने की उम्मीद नहीं की। पौलुस ने इफिसुस के प्राचीनों को सलाह दी कि वे भी उसकी तरह भाइयों की सेवा में खुद को पूरी तरह लगा दें। उसने उनसे कहा, “मैंने सब बातों में तुम्हें दिखाया है कि तुम भी इसी तरह मेहनत करते हुए उन लोगों की मदद करो जो कमज़ोर हैं और प्रभु यीशु के ये शब्द हमेशा याद रखो जो उसने खुद कहे थे: ‘लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।’”​—प्रेषि. 20:35.

21 पौलुस की तरह आज मसीही प्राचीन भी बिना किसी स्वार्थ के, खुद को भाई-बहनों की सेवा में लगा देते हैं। वे ईसाईजगत के पादरियों की तरह नहीं हैं जो लोगों को लूटकर अपनी जेबें भरते हैं। मसीही प्राचीनों को एहसास है कि परमेश्‍वर ने उन्हें “मंडली की देखभाल” करने की ज़िम्मेदारी दी है और वे यह काम बिना किसी लालच के करते हैं। मसीही मंडली में ऐसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है जो घमंडी हैं और दूसरों से ऊपर उठना चाहते हैं। जो लोग अपनी “वाह-वाही करवाना” चाहते हैं और अपनी हद में नहीं रहते उन्हें आखिर में अपमान ही सहना पड़ता है।​—नीति. 11:2; 25:27.

पौलुस और उसके साथी जहाज़ पर चढ़नेवाले हैं। इफिसुस के प्राचीन पौलुस से गले मिलकर रो रहे हैं।

“वे सब फूट-फूटकर रोने लगे।”​—प्रेषितों 20:37

22. इफिसुस के प्राचीन पौलुस से क्यों प्यार करते थे?

22 पौलुस भाइयों से सच्चा प्यार करता था और वे भी उससे बहुत प्यार करते थे। इसलिए जब पौलुस के जाने का वक्‍त आया तो “वे सब फूट-फूटकर रोने लगे और पौलुस के गले लगकर उसे प्यार से चूमने लगे।” (प्रेषि. 20:37, 38) आज हमारे बीच ऐसे कई भाई हैं जो पौलुस की तरह झुंड से प्यार करते हैं और उनकी देखभाल करने के लिए अपना समय, ताकत और साधन लगा देते हैं। हम ऐसे भाइयों की दिल से कदर करते हैं और उनसे बहुत प्यार करते हैं। अब तक हमने पौलुस की जो बेहतरीन मिसाल देखी उससे एक बात तो साफ है कि उसे सच में दूसरों की जान की परवाह थी। इसीलिए वह कह पाया, “मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ।”​—प्रेषि. 20:26.

a यह बक्स देखें, “मकिदुनिया से लिखीं पौलुस की चिट्ठियाँ।”

b शायद इस बार कुरिंथ में रहते वक्‍त पौलुस ने रोमियों  के नाम चिट्ठी लिखी थी।

c यह बक्स देखें, “पौलुस ज़रूरतमंदों तक दान पहुँचाता है।”

d प्रेषितों 20:5, 6 में लूका खुद को भी शामिल करता है। यह दिखाता है कि पौलुस लूका को फिलिप्पी से साथ लेकर त्रोआस गया। कुछ समय पहले पौलुस ने ही लूका को फिलिप्पी में छोड़ा था।​—प्रेषि. 16:10-17, 40.

e पिछली बार फिलिप्पी से त्रोआस जाने में उन्हें दो दिन लगे थे। मगर इस बार उन्हें पाँच दिन लगे। शायद तेज़ आँधी और खराब मौसम की वजह से उन्हें ज़्यादा वक्‍त लगा।​—प्रेषि. 16:11.

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें