हमेशा की ज़िंदगी पाने का एक ही मार्ग
“मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं।”—यूहन्ना १४:६.
१, २. यीशु ने अनंत जीवन के मार्ग की तुलना किससे की और उसके दृष्टांत का मतलब क्या है?
अपने मशहूर पहाड़ी उपदेश में यीशु, अनंत जीवन के मार्ग की तुलना एक ऐसे रास्ते से करता है जिसपर पहुँचने के लिए पहले एक फाटक से गुज़रना होता है। ध्यान दीजिए कि यीशु ज़ोर देकर कहता है कि जीवन के इस मार्ग पर चलना आसान नहीं है। वह कहता है: “सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और चाकल है वह मार्ग जो विनाश को पहुंचाता है; और बहुतेरे हैं जो उस से प्रवेश करते हैं। क्योंकि सकेत है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो [अनंत] जीवन को पहुंचाता है, और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।”—मत्ती ७:१३, १४.
२ क्या आप इस दृष्टांत का मतलब समझते हैं? क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होता कि जीवन की ओर ले जानेवाला रास्ता या मार्ग सिर्फ एक ही है और उस मार्ग से न भटकने के लिए हमें बहुत सावधान रहने की ज़रूरत है? तो फिर अनंत जीवन की ओर ले जानेवाला यह एक ही मार्ग कौन-सा है?
यीशु मसीह की भूमिका
३, ४. (क) बाइबल कैसे दिखाती है कि हमारे उद्धार में यीशु की एक अहम भूमिका है? (ख) परमेश्वर ने पहली बार कब बताया था कि मानवजाति हमेशा की ज़िंदगी पा सकती है?
३ यह साफ ज़ाहिर है कि जीवन के उस मार्ग के संबंध में यीशु की एक अहम भूमिका है, जैसे उसके प्रेरित पतरस ने कहा: “किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे [यीशु के नाम के सिवाय] मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें।” (प्रेरितों ४:१२) उसी तरह प्रेरित पौलुस ने भी कहा: “परमेश्वर का बरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।” (रोमियों ६:२३) खुद यीशु ने भी बताया कि वही हमेशा की ज़िंदगी का मार्ग है क्योंकि उसने कहा: “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं।”—यूहन्ना १४:६.
४ इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि अनंत जीवन मुमकिन बनाने में यीशु की भूमिका को हम स्वीकार करें। तो आइए हम ध्यान से उसकी भूमिका की जाँच करें। क्या आप जानते हैं कि आदम के पाप करने के बाद यहोवा परमेश्वर ने पहली बार कब बताया था कि मानवजाति हमेशा की ज़िंदगी पा सकती है? आदम के पाप करने के फौरन बाद। अब आइए हम देखें कि मानवजाति के उद्धारकर्ता के तौर पर यीशु मसीह को भेजने के इंतज़ाम के बारे में पहली बार कैसे बताया गया था।
वादा किया गया वंश
५. हम यह कैसे जान सकते हैं कि हव्वा को बहकानेवाला सर्प कौन था?
५ यहोवा परमेश्वर ने वादा किए गए उद्धारकर्ता के बारे में बताने के लिए लाक्षणिक भाषा का इस्तेमाल किया। परमेश्वर ने यह तब बताया जब वह “सर्प” को सज़ा सुना रहा था। इसी सर्प ने परमेश्वर द्वारा मना किए गए फल को खाने और इस तरह परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने के लिए हव्वा को लुभाया था। (उत्पत्ति ३:१-५) वह सर्प सचमुच का कोई साँप नहीं था। वह एक शक्तिशाली आत्मिक प्राणी था जिसे बाइबल में “पुराना सांप” कहा गया है, “जो इब्लीस और शैतान कहलाता है।” (प्रकाशितवाक्य १२:९) हव्वा को बहकाने के लिए शैतान ने इस जानवर के ज़रिए बात की। इसलिए परमेश्वर ने शैतान को सज़ा सुनाते हुए कहा: “मैं तेरे और . . . स्त्री के बीच में और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूंगा, वह [स्त्री का वंश] तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।”—उत्पत्ति ३:१५.
६, ७. (क) वह स्त्री कौन है जो “वंश” को जन्म देती है? (ख) वादा किया गया वंश कौन है और वह क्या करता है?
६ यह “स्त्री” कौन है जिससे शैतान बैर या घृणा करता है? प्रकाशितवाक्य अध्याय १२ में ‘पुराने सांप’ के साथ-साथ इस स्त्री की भी पहचान कराई गई है जिससे शैतान घृणा करता है। गौर कीजिए कि पहली आयत में कहा गया है कि यह स्त्री “सूर्य्य ओढ़े हुए थी, और चान्द उसके पांवों तले था, और उसके सिर पर बारह तारों का मुकुट था।” यह स्त्री, वफादार स्वर्गदूतों से बने परमेश्वर के स्वर्गीय संगठन को सूचित करती है और वह जिस ‘बेटे’ को जनती है, वह परमेश्वर के राज्य को सूचित करता है जिसका राजा यीशु मसीह है।—प्रकाशितवाक्य १२:१-५.
७ तो फिर, उत्पत्ति ३:१५ में बताया गया स्त्री का “वंश” या संतान कौन है जो शैतान के “सिर को” कुचलकर उसे नाश कर देगा? यह वही मनुष्य यीशु था, जिसे परमेश्वर ने स्वर्ग से भेजा ताकि वह एक चमत्कार के ज़रिए कुँवारी के गर्भ से जन्म ले। (मत्ती १:१८-२३; यूहन्ना ६:३८) प्रकाशितवाक्य का अध्याय १२ कहता है कि पुनरुत्थान किए गए स्वर्गीय राजा की हैसियत से यह वंश यानी यीशु मसीह, शैतान का मुकाबला करके उसे हराने और प्रकाशितवाक्य १२:१० के मुताबिक “परमेश्वर का राज्य, और उसके मसीह का अधिकार” स्थापित करने में सबसे आगे रहेगा।
८. (क) परमेश्वर ने अपना शुरूआती मकसद पूरा करने के लिए कौन-सा नया इंतज़ाम किया? (ख) परमेश्वर की नई सरकार में कौन राज करेंगे?
८ यीशु मसीह के अधिकार में यह राज्य एक नया इंतज़ाम है और परमेश्वर ने यह इंतज़ाम इसलिए किया है ताकि इंसान को पृथ्वी पर अनंत जीवन देने का उसका शुरूआती मकसद पूरा हो। शैतान के विद्रोह के बाद, यहोवा ने दुष्टता के बुरे असर को पूरी तरह मिटाने के लिए फौरन इस नई राज्य सरकार का इंतज़ाम किया। पृथ्वी पर रहते वक्त यीशु ने बताया था कि इस सरकार में वह अकेला राज नहीं करेगा। (लूका २२:२८-३०) मानवजाति में से कई लोगों को चुना जाता जो स्वर्ग में यीशु के साथ राज करते और इस तरह वे स्त्री के वंश का एक अप्रधान हिस्सा बन जाते। (गलतियों ३:१६, २९) यीशु के साथ राज करने के लिए पापी मानवजाति में से मोल लिए गए इन सभी लोगों की गिनती बाइबल में १,४४,००० बताई गई है।—प्रकाशितवाक्य १४:१-३.
९. (क) क्यों यीशु के लिए पृथ्वी पर एक इंसान के रूप में प्रकट होना ज़रूरी था? (ख) किस तरह यीशु ने शैतान के कामों को नाकाम कर दिया?
९ लेकिन उस राज्य का शासन शुरू होने से पहले, यह ज़रूरी था कि स्त्री के वंश का मुख्य भाग, यानी यीशु मसीह पृथ्वी पर प्रकट हो। क्यों? क्योंकि उसे यहोवा परमेश्वर ने ठहराया था ताकि वह “शैतान के कामों को नाश [या नाकाम] करे।” (१ यूहन्ना ३:८) शैतान का एक काम यह भी था कि उसने आदम को पाप करने के लिए उकसाया जिसकी वज़ह से आदम की सारी संतान को पाप और मृत्यु की सज़ा सुनाई गई। (रोमियों ५:१२) यीशु ने छुड़ौती के रूप में अपना जीवन देकर शैतान के इस काम को नाकाम कर दिया। इस तरह उसने मानवजाति को पाप और मृत्यु की सज़ा से छुड़ाने के लिए एक बुनियाद डाली और अनंत जीवन का मार्ग खोल दिया।—मत्ती २०:२८; रोमियों ३:२४; इफिसियों १:७.
छुड़ौती से कौन-सा मकसद पूरा होता है
१०. किस बात में यीशु और आदम एक-जैसे थे?
१० यीशु का जीवन स्वर्ग से निकालकर एक स्त्री के गर्भ में डाला गया इसलिए उसने एक सिद्ध मानव के रूप में जन्म लिया, जिसपर आदम के पाप का कलंक नहीं था। वह पृथ्वी पर हमेशा जीवित रहने के काबिल था। उसी तरह, आदम को भी परमेश्वर ने सिद्ध बनाया था और उसे पृथ्वी पर हमेशा तक जीवित रहने की आशा दी थी। यीशु और आदम में मिलती-जुलती इस बात को मन में रखते हुए प्रेरित पौलुस ने लिखा: “प्रथम मनुष्य, अर्थात् आदम, जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम [यीशु मसीह], जीवनदायक आत्मा बना। प्रथम मनुष्य धरती से, अर्थात् मिट्टी का था; दूसरा मनुष्य स्वर्गीय है।”—१ कुरिन्थियों १५:४५, ४७.
११. (क) मानवजाति पर आदम और यीशु का क्या असर पड़ा? (ख) यीशु के बलिदान के बारे में हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए?
११ पृथ्वी पर अब तक पैदा हुए आदमियों में सिर्फ आदम और यीशु ही सिद्ध थे। उनके बीच यह समानता बाइबल की इस बात से और भी साफ ज़ाहिर होती है कि यीशु ने “अपने आपको सब के लिए समतुल्य छुड़ौती के रूप में दे दिया।” (१ तीमुथियुस २:६, NW) यीशु किसके समतुल्य या बराबर था? सिद्ध मनुष्य, आदम के! पहले आदम के पाप की वज़ह से पूरे मानव परिवार को मौत की सज़ा सुनाई गई। “अन्तिम आदम” का बलिदान पाप और मृत्यु से छुड़ौती का आधार देता है ताकि हम हमेशा तक जी सकें। यीशु का बलिदान कितना अनमोल है! प्रेरित पतरस ने कहा: “तुम्हारा छुटकारा चान्दी सोने अर्थात् नाशमान वस्तुओं के द्वारा नहीं हुआ।” इसके बजाय, “निर्दोष और निष्कलंक मेम्ने अर्थात् मसीह के बहुमूल्य लोहू के द्वारा हुआ [है]।”—१ पतरस १:१८, १९.
१२. हमें मिली मौत की सज़ा के रद्द किए जाने का बाइबल कैसे वर्णन करती है?
१२ बाइबल बड़े अच्छे तरीके से बताती है कि किस तरह मानव परिवार को मिली मौत की सज़ा रद्द की जाएगी। यह कहती है: “[आदम का] एक अपराध सब मनुष्यों के लिये दण्ड की आज्ञा का कारण हुआ, वैसा ही एक धर्म का काम भी [यीशु का मरते-दम तक वफादार रहना] सब मनुष्यों के लिये जीवन के निमित्त धर्मी ठहराए जाने का कारण हुआ। क्योंकि जैसा एक मनुष्य [आदम] के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, वैसे ही एक मनुष्य [यीशु] के आज्ञा मानने से बहुत लोग धर्मी ठहरेंगे।”—रोमियों ५:१८, १९.
एक शानदार भविष्य
१३. कई लोग क्यों हमेशा की ज़िंदगी नहीं चाहते?
१३ परमेश्वर के इस इंतज़ाम से हमें कितना खुश होना चाहिए! यह जानकर कि हमारे लिए एक उद्धारक दिया गया है, क्या आपका रोम-रोम खुशी से भर नहीं जाता? “क्या आपको हमेशा की ज़िंदगी जीना पसंद है?,” यह सवाल जब अमरीका के एक बड़े शहर में एक अखबार द्वारा किए गए सर्वे में पूछा गया, तो ताज्जुब की बात है कि ६७.४ प्रतिशत लोगों का जवाब था, “नहीं।” उन्होंने क्यों कहा कि वे हमेशा की ज़िंदगी नहीं चाहते? ज़ाहिर है इसलिए क्योंकि आज ज़िंदगी समस्याओं से भरी हुई है। एक स्त्री ने कहा: “मुझे २०० साल की बूढ़ी दिखना पसंद नहीं है।”
१४. हमेशा की ज़िंदगी से हमें क्यों पूरी-पूरी खुशी मिलेगी?
१४ लेकिन बाइबल यह नहीं कहती कि लोग बीमारी, बुढ़ापे और बाकी दुख-तकलीफों से भरी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी जीएँगे। नहीं, ऐसा नहीं होगा क्योंकि परमेश्वर के राज्य के राजा की हैसियत से यीशु, शैतान द्वारा लाई गई ऐसी सभी समस्याओं को मिटा देगा। बाइबल के मुताबिक, परमेश्वर का राज्य इस दुनिया की सभी दुष्ट सरकारों को “चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा।” (दानिय्येल २:४४) उस वक्त, यीशु द्वारा अपने चेलों को सिखाई गई प्रार्थना के मुताबिक, परमेश्वर की ‘इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी होगी।’ (मत्ती ६:९, १०) पृथ्वी से सारी बुराई मिटाने के बाद, परमेश्वर की नई दुनिया में लोगों को यीशु की छुड़ौती का पूरा-पूरा फायदा दिया जाएगा। जी हाँ, जो लोग उस नई दुनिया में जीने के लायक होंगे, वे सिद्ध किए जाएँगे!
१५, १६. परमेश्वर की नई दुनिया में कैसी परिस्थितियाँ होंगी?
१५ परमेश्वर की नई दुनिया में जीनेवालों पर बाइबल की यह बात पूरी होगी: “उस मनुष्य की देह बालक की देह से अधिक स्वस्थ और कोमल हो जाएगी; उसकी जवानी के दिन फिर लौट आएंगे।” (अय्यूब ३३:२५) तब बाइबल का एक और वादा भी पूरा होगा: “अन्धों की आंखें खोली जाएंगी और बहिरों के कान भी खोले जाएंगे; तब लंगड़ा हरिण की सी चौकड़िया भरेगा और गूंगे अपनी जीभ से जयजयकार करेंगे।”—यशायाह ३५:५, ६.
१६ सोचकर देखिए: तब हमारी उम्र चाहे ८०, ८०० या फिर उससे भी ज़्यादा साल क्यों न हो, हम पूरी तरह तंदुरुस्त होंगे। ठीक जैसा बाइबल में वादा किया गया है, “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।” उस वक्त यह वादा भी पूरा होगा: “[परमेश्वर] उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।”—यशायाह ३३:२४; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.
१७. परमेश्वर की नई दुनिया में हम कैसे-कैसे काम करने की उम्मीद कर सकते हैं?
१७ उस नई दुनिया में हम अपने अद्भुत मस्तिष्क का उसी तरह इस्तेमाल कर पाएँगे जिस तरह हमारा सृष्टिकर्ता चाहता था। क्योंकि उसने हमारे मस्तिष्क को जानकारी लेने की बेहिसाब काबीलियत के साथ बनाया था। ज़रा सोचिए, उस वक्त हम कैसे-कैसे करिश्मे कर पाएँगे! असिद्ध मनुष्य भी पृथ्वी के भण्डार में पाए जानेवाले तत्वों से हमारे चारों ओर नज़र आनेवाली सारी चीज़ें बना पाए हैं, जैसे सॆल्यूलर फोन, माइक्रोफोन, घड़ियाँ, पेजर, कंप्यूटर, हवाईजहाज़ वगैरह-वगैरह। इनमें से कोई भी चीज़ बनाने के लिए, पृथ्वी को छोड़ विश्व-मंडल के किसी और कोने से सामग्री लाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। आनेवाली नई दुनिया में हमारे जीवन का कभी अंत नहीं होगा, इसलिए नई-नई चीज़ें बनाने की हमारी काबीलियत भी कभी खत्म नहीं होगी!—यशायाह ६५:२१-२५.
१८. परमेश्वर की नई दुनिया में ज़िंदगी कभी-भी उबाऊ क्यों नहीं होगी?
१८ ज़िंदगी उबाऊ नहीं होगी। हज़ारों बार भोजन करने के बावजूद भी हम अगली बार के भोजन के लिए हमेशा उत्सुक होते हैं। जब हम सिद्ध होंगे तो पृथ्वी की स्वादिष्ट चीज़ों का पूरा-पूरा मज़ा ले सकेंगे। (यशायाह २५:६) हम पृथ्वी के अलग-अलग किस्म के जानवरों की देखरेख करने और इसके सूर्यास्त, पहाड़ों, नदियों और वादियों के खूबसूरत नज़ारे देखने का मज़ा हमेशा तक लेते रहेंगे। सच, परमेश्वर की नई दुनिया में ज़िंदगी कभी-भी उबाऊ नहीं होगी!—भजन १४५:१६.
परमेश्वर की माँगें पूरी करना
१९. यह मानना क्यों उचित है कि अनंत जीवन का परमेश्वर का तोहफा हासिल करने के लिए कुछ माँगें रखी गई हैं?
१९ क्या आप यह उम्मीद करेंगे कि परमेश्वर की ओर से यह शानदार तोहफा यानी नई दुनिया में अनंत जीवन, आपको बिना किसी कोशिश के मिल जाएगा? क्या यह उचित नहीं कि परमेश्वर हमसे कुछ माँग करे? बेशक, यह उचित है। दरअसल, परमेश्वर यह तोहफा हमारी तरफ यूँ ही नहीं फेंक देता। वह इसे हमारी तरफ बढ़ाता है, लेकिन उसे लेने के लिए हमें खुद आगे बढ़ना है। जी हाँ, इसे पाने के लिए कोशिश करना ज़रूरी है। आप भी शायद वही सवाल पूछें जो उस जवान राजा ने यीशु से पूछा था: “मैं कौन सा भला काम करूं, कि अनन्त जीवन पाऊं?” या फिर आपका सवाल शायद फिलिप्पी नगर के उस जेलर के सवाल जैसा हो जिसने प्रेरित पौलुस से पूछा था: “उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूं?”—मत्ती १९:१६; प्रेरितों १६:३०.
२०. अनंत जीवन पाने के लिए एक बहुत ही ज़रूरी माँग कौन-सी है?
२० इसके लिए, सबसे ज़रूरी माँग क्या है यह बताते हुए यीशु ने अपनी मौत से पहले की रात अपने स्वर्गीय पिता से प्रार्थना करते हुए कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्ना १७:३) क्या यह माँग उचित नहीं है कि हम यहोवा के बारे में ज्ञान लें, जिसने हमारे लिए अनंत जीवन मुमकिन बनाया और यीशु मसीह के बारे में भी ज्ञान लें जो हमारी खातिर मरा? लेकिन, सिर्फ ज्ञान लेना ही काफी नहीं है।
२१. हम कैसे दिखाते हैं कि हम विश्वास रखने की माँग पूरी कर रहे हैं?
२१ बाइबल यह भी कहती है: “जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है।” फिर वह कहती है: “जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।” (यूहन्ना ३:३६) अपनी ज़िंदगी में बदलाव लाने और परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक ज़िंदगी जीने से आप दिखा सकते हैं कि आप पुत्र पर विश्वास कर रहे हैं। अगर आप किसी गलत मार्ग पर चलते रहे हैं, तो उसे छोड़कर आपको परमेश्वर को पसंद आनेवाले काम करने के लिए कदम उठाने चाहिए। आपको प्रेरित पतरस की इस आज्ञा को मानने की ज़रूरत है: “मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं, जिस से प्रभु के सन्मुख से विश्रान्ति के दिन आएं।”—प्रेरितों ३:१९.
२२. यीशु के पद-चिन्हों पर चलने में क्या-क्या शामिल है?
२२ हम यह कभी न भूलें कि यीशु पर अपना विश्वास, कामों से ज़ाहिर करने के ज़रिए ही हम अनंत जीवन हासिल कर सकते हैं। (यूहन्ना ६:४०; १४:६) यीशु के ‘पद-चिन्हों पर चलने’ से हम दिखाते हैं कि हमें उस पर विश्वास है। (१ पतरस २:२१, NHT) यीशु के ‘पद-चिन्हों पर चलने’ का मतलब क्या है? यीशु ने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा: “देख, मैं आ गया हूं . . . ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं।” (इब्रानियों १०:७) यीशु की तरह परमेश्वर की इच्छा पूरी करने को तैयार होना और यहोवा को अपना जीवन समर्पित करना ज़रूरी है। फिर पानी में बपतिस्मा लेने के ज़रिए आपको अपने समर्पण का सबूत देने की ज़रूरत है क्योंकि यीशु ने भी बपतिस्मा लिया। (लूका ३:२१, २२) ऐसे कदम उठाना हर तरह से उचित है। प्रेरित पौलुस ने कहा कि “मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है।” (२ कुरिन्थियों ५:१४, १५) वो कैसे? हमारे लिए प्रेम से प्रेरित होकर यीशु ने हमारी खातिर अपनी जान दी। यीशु के इस प्यार की कदर करने के लिए, क्या हमें उस पर विश्वास रखने को विवश महसूस नहीं करना चाहिए? जी हाँ, इससे हमें विवश महसूस करना चाहिए कि हम यीशु की प्यार भरी मिसाल पर चलते हुए दूसरों की मदद करने में खुद को लगा दें। यीशु, परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए जीया। हमें भी वैसा ही करना चाहिए और आगे को खुद के लिए नहीं जीना चाहिए।
२३. (क) जीवन पानेवालों को किसमें मिल जाना चाहिए? (ख) मसीही कलीसिया के लोगों से क्या करने की माँग की जाती है?
२३ लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। बाइबल बताती है कि सा.यु. ३३ में पिन्तेकुस्त के दिन ३,००० लोग बपतिस्मा लेकर “मिल गए।” वे किसमें मिल गए? लूका बताता है कि “वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और [एक-दूसरे के साथ] संगति रखने में . . . लौलीन रहे।” (लूका २:४१, ४२) जी हाँ, वे बाइबल का अध्ययन करने और संगति करने के लिए इकट्ठा होते थे और इस तरह वे मसीही कलीसिया में मिल गए या उसका एक भाग बन गए। शुरू के मसीही आध्यात्मिक बातें सीखने के लिए हमेशा सभाओं में हाज़िर होते थे। (इब्रानियों १०:२५) आज यहोवा के साक्षी भी ऐसा ही करते हैं और अपने साथ इन सभाओं में हाज़िर होने के लिए आपको भी आमंत्रित करना चाहते हैं।
२४. “सत्य जीवन” क्या है और यह हमें कब मिलेगा?
२४ अब लाखों लोग जीवन की ओर ले जानेवाले सकरे मार्ग पर चल रहे हैं। इस सकरे मार्ग पर बने रहने के लिए कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है! (मत्ती ७:१३, १४) पौलुस ने अपने प्यार-भरे अनुरोध में यही बात कही: “विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; और उस अनन्त जीवन को धर ले, जिस के लिये तू बुलाया गया।” “सत्य जीवन को वश में कर” लेने के लिए यह लड़ाई लड़ना ज़रूरी है। (१ तीमुथियुस ६:१२, १९) यह सत्य जीवन आज का जीवन नहीं है, जो आदम के पाप की वज़ह से दुख-तकलीफों और मुसीबतों से भरा हुआ है। इसके बजाय, यह परमेश्वर की नई दुनिया में मिलनेवाला जीवन है। यह जीवन हमें जल्द ही मिलेगा, जब इस रीति-व्यवस्था के अंत के बाद यहोवा परमेश्वर और उसके पुत्र से प्रेम करनेवालों के लिए मसीह का छुड़ौती बलिदान लागू किया जाएगा। हम सब उसी “सत्य जीवन” को चुनें यानी परमेश्वर की शानदार नई दुनिया में अनंत जीवन।
आपका जवाब क्या होगा?
◻ उत्पत्ति ३:१५ में बताए गए सर्प, स्त्री, और वंश कौन हैं?
◻ किस बात में यीशु आदम के समतुल्य या बराबर था और छुड़ौती ने कौन-सी बात को मुमकिन किया?
◻ परमेश्वर की नई दुनिया में आप क्या-क्या करने की उम्मीद कर सकते हैं जिससे आपको बहुत खुशी मिलेगी?
◻ परमेश्वर की नई दुनिया में जीने के लिए हमें कौन-सी माँगें पूरी करने की ज़रूरत है?
[पेज 10 पर तसवीर]
बच्चों और बड़ों, सभी के लिए हमेशा की ज़िंदगी पाने का एक ही मार्ग यीशु है
[पेज 11 पर तसवीर]
परमेश्वर के नियुक्त समय में बूढ़े फिर से जवान हो जाएँगे