अपने प्रकाश को निरन्तर चमकाते रहना
प्रकाश क्या है? कोश इसे इस तरह परिभाषित करता है, “ऐसी वस्तु जो दृष्टि संभव बनाती है।” लेकिन वास्तव में, अपनी उच्च तकनीक के बावजूद, मनुष्य अब भी यहोवा द्वारा उठाए गए उस प्रश्न का उत्तर पूरी तरह नहीं जानता जो अय्यूब ३८:४ में अभिलिखित है। क्या हम प्रकाश के बिना काम चला सकते हैं? प्रकाश बिना हम अस्तित्व में नहीं रह सकते। प्रकाश भौतिक दृष्टि के लिए अनिवार्य है, और बाइबल हमें बताती है कि एक आध्यात्मिक अर्थ में, “परमेश्वर ज्योति है।” (१ यूह. १:५) हम पूरी तरह से उस पर निर्भर हैं जो ‘हम को प्रकाश देता है।’—भज. ११८:२७.
२ यह एक भौतिक अर्थ में सच है लेकिन एक आध्यात्मिक रूप से और भी सही है। झूठे धर्म ने जनता को पथभ्रष्ट किया है, उन्हें आध्यात्मिक अन्धकार में छोड़ दिया है, वे “अन्धों के समान भीत टटोलते हैं।” (यशा. ५९:९, १०) अपने असीम प्रेम और करुणा से प्रेरित होकर, यहोवा ‘अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेजता है।’ (भज. ४३:३) आक्षरिक रूप से मूल्यांकन दिखानेवाले लाखों लोगों ने प्रतिक्रिया दिखायी है, ‘अन्धकार में से उसकी अद्भुत ज्योति में’ आए हैं।—१ पत. २:९.
३ यीशु मसीह इस प्रकाश को संसार तक लाने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उसने कहा: “मैं जगत में ज्योति होकर आया हूं ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे, वह अन्धकार में न रहे।” (यूह. १२:४६) उसने सत्य का प्रकाश देने में अपना सारा समय, शक्ति और साधन लगा दिया। लगभग हर नगर और गाँव में प्रचार करते और सिखाते हुए उसने अपने पूरे स्वदेश की यात्रा की। उसने हर तरफ़ से कड़ी सताहट सही, लेकिन वह सत्य के प्रकाश को फैलाने की अपनी कार्य-नियुक्ति में अडिग रहा।
४ यीशु ने एक ख़ास लक्ष्य को मन में रखते हुए, शिष्यों को चुनने, प्रशिक्षित और संगठित करने पर ध्यान लगाया। मत्ती ५:१४-१६ में हम उसके द्वारा उनको दिए निर्देशन पढ़ते हैं: “तुम जगत की ज्योति हो; . . . तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।” यीशु की तरह उन्हें भी ‘जगत में दीपक’ होना था, सत्य के प्रकाश को चहुँ-ओर बिखेरना था। (फिलि. २:१५) उन्होंने ख़ुशी से उस ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया, उसे अपने जीवन का मूल उद्देश्य माना। कुछ समय बाद, पौलुस कह सका कि सुसमाचार का “प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया।” (कुलु. १:२३) उस महान कार्य को पूरा करने में समस्त मसीही कलीसिया संयुक्त थी।
५ आज हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि हम उन लोगों में हो गए हैं जिन्होंने “अन्धकार के कामों को तज” दिया है। (रोमि. १३:१२, १३) अतीत में यीशु और विश्वासी मसीहियों द्वारा रखे गए उदाहरण का अनुकरण करने के द्वारा हम अपना मूल्यांकन दिखा सकते हैं। पूरे मानव इतिहास में अभी सत्य को सुनने की दूसरों की ज़रूरत सबसे ज़्यादा है और महत्त्वपूर्ण है। कोई अन्य गतिविधि इस कार्य के जितनी ज़रूरी नहीं है और उसके लाभ इतने व्यापक नहीं हैं।
६ हम जलते दीपकों की नाईं कैसे चमक सकते हैं? अपने प्रकाश को चमकाने का मुख्य तरीक़ा है राज्य-प्रचार कार्य में हिस्सा लेना। हर कलीसिया में उसके नियुक्त क्षेत्र में प्रचार के लिए नियमित, संगठित प्रबन्ध हैं। विपुल मात्रा में साहित्य बड़ी विविधता और अनेक भाषाओं में उपलब्ध कराया जाता है। सभाओं के द्वारा विस्तृत शिक्षा प्रदान की जाती है, और जो अनुभवी हैं वे व्यक्तिगत रूप से दूसरों को प्रशिक्षित करने में सहायता देते हैं। भाग लेने के अवसर पुरुषों, स्त्रियों, वृद्ध जनों, और बच्चों के लिए भी खुले होते हैं। कलीसिया में हर व्यक्ति को किसी भी स्तर पर भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है जो उसकी योग्यताओं और परिस्थितियों के अनुकूल हो। कलीसिया के सभी कार्य प्रचार पर केंद्रित होते हैं, जिसमें एक-न-एक तरह से इसमें भाग लेने के लिए हर सदस्य की मदद करने के प्रबन्ध होते हैं। कलीसिया के साथ नियमित, निकट संगति यह निश्चित करने का सर्वोत्तम तरीक़ा है कि हमारा प्रकाश चमकता रहे।
७ हम उन तरीक़ों से चमक सकते हैं जिनमें शायद एक मौखिक गवाही शामिल न हो। हम मात्र अपने आचरण के द्वारा दूसरों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। पतरस के मन में यही बात थी जब उसने आग्रह किया: “अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि . . . वे तुम्हारे भले कामों को देखकर; उन्हीं के कारण . . . परमेश्वर की महिमा करें।” (१ पत. २:१२) अनेक लोग एक कार्य या संगठन को उससे सम्बन्धित लोगों के आचरण के द्वारा तोलते हैं। जब देखनेवाले उन लोगों को नोट करते हैं जो नैतिक रूप से स्वच्छ, ईमानदार, शान्तिप्रिय, और विधि-पालक हैं, तो वे ऐसे लोगों को भिन्न समझते हैं और यह निष्कर्ष निकालते हैं कि वे उन स्तरों के अनुसार जीते हैं जो कि अधिकांश लोगों के स्तरों से कहीं ऊँचे हैं। सो एक पति अपना प्रकाश चमकाता है जब वह प्रेम से अपनी पत्नी का सम्मान करता है और उसे प्रिय समझता है; पत्नी भी अपने पति के मुखियापन का आदर करने के द्वारा ऐसा करती है। बच्चे भिन्न दिखते हैं जब वे अपने माता-पिता की आज्ञा मानते हैं और लैंगिक अनैतिकता तथा नशीले पदार्थों के दुष्प्रयोग से दूर रहते हैं। एक ऐसे कर्मचारी को बहुत मूल्यवान समझा जाता है जो अपने कार्य के बारे में कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार और दूसरों के बारे में विचारशील है। इन मसीही गुणों को प्रदर्शित करने के द्वारा, हम अपने प्रकाश को चमका रहे हैं, दूसरों को हमारी जीवन-रीति अपनाने की सलाह दे रहे हैं।
८ परमेश्वर के वचन से हमने जो सीखा है उसके बारे में दूसरों से बात करना प्रचार करना है। यह सभाओं में भाषण देने के द्वारा अथवा दरवाज़ों पर बात करने के द्वारा किया जाता है, लेकिन किसी भी हालत यह ऐसे अवसरों तक सीमित नहीं है। हमारी दैनिक गतिविधियाँ हमें बीसियों लोगों के संपर्क में लाती हैं। दिन में कितनी बार आप अपने पड़ोसी से बात करते हैं? कितनी बार कोई आपके दरवाज़े को खटखटाता है? जब आप अपनी ख़रीदारी करते, बस में सफ़र करते, या अपनी नौकरी पर काम करते हैं, तब आप कितने लोगों के संपर्क में आते हैं? यदि आप स्कूल में पढ़नेवाले एक युवा हैं, तो क्या आप गिन सकते हैं कि हर दिन आप कितने व्यक्तियों से बात करते हैं? दूसरों से बात करने के अवसर लगभग असीमित हैं। आपको बस कुछ शास्त्रीय विचारों को मन में रखने की, अपने साथ एक बाइबल और कुछ ट्रैक्ट रखने की, और मौक़ा मिलने पर पहल करके अपने विचार व्यक्त करने की ज़रूरत है।
९ हालाँकि अनौपचारिक गवाही काफ़ी सरल है, कुछ लोग इसे करने से हिचकिचाते हैं। वे शायद कम बोलते हों, और हठ करते हों कि उन्हें अजनबियों से बात करने में बहुत शर्म आती है या बहुत घबराहट होती है। उन्हें शायद ख़ुद पर ध्यान आकर्षित करवाने या दुतकारे जाने के बारे में डर हो। जिनको अनौपचारिक गवाही का अनुभव है वे आपको बता सकते हैं कि चिन्ता का शायद ही कभी कोई कारण होता है। दूसरे भी मूलतः हमारे ही जैसे हैं; उनकी भी समान ज़रूरतें हैं, समान चिन्ताएँ हैं, और समान चीज़ें अपने और अपने परिवारों के लिए चाहते हैं। एक मधुर मुस्कान या एक दोस्ताना अभिवादन पर अधिकांश लोग शिष्टता से प्रतिक्रिया दिखाएँगे। शुरू करने के लिए, आपको शायद “हियाव” बान्धने की ज़रूरत पड़े। (१ थिस्स. २:२) लेकिन, एक बार शुरू हो गए तो आप शायद परिणामों से चकित और प्रसन्न हो जाएँ।
१० जब हम अपना प्रकाश चमकाते हैं तो हमें आशिष मिलती है: यहाँ अनौपचारिक गवाही से मिले कुछ स्फूर्तिदायक अनुभवों के उदाहरण दिए गए हैं: एक ५५-वर्षीय महिला सड़क पार करने की कोशिश कर रही थी। एक कार उसे टक्कर मारने ही वाली थी कि एक बहन ने उसकी बाँह थामी और खींच कर उसे बचा लिया, और उससे कहा: “कृपया ध्यान रखिए। हम मुश्किल समय में जी रहे हैं!” फिर उसने समझाया कि समय इतना ख़तरनाक क्यों है। उस महिला ने पूछा, “क्या आप एक यहोवा की साक्षी हैं?” उस महिला ने अपनी बहन से हमारी एक पुस्तक प्राप्त की थी, और एक यहोवा के साक्षी से मिलना चाहती थी, जो कि इस मुलाक़ात ने संभव बना दिया।
११ एक बहन ने एक स्त्री के साथ एक क्लिनिक के प्रतीक्षालय में बातचीत शुरू की। उस स्त्री ने ध्यान से सुना और फिर कहा: “कुछ समय से मेरी मुलाक़ात यहोवा के साक्षियों से हो रही है; लेकिन यदि कभी भविष्य में मैं ख़ुद असल में एक यहोवा की साक्षी बन जाऊँ, तो वह आपने जो मुझे अभी बताया है उसी के कारण होगा। आपकी बात सुनना ऐसा है मानो एक अन्धेरे स्थान में प्रकाश देखना शुरू करना।”
१२ कृपा का एक कृत्य दूसरों को सत्य सीखने में मदद देने के लिए एक सीढ़ी हो सकता है। क्षेत्र सेवा से घर पैदल लौटते समय, दो बहनों का ध्यान एक वृद्ध स्त्री पर गया जो बस से उतरते समय बीमार लग रही थी। उन्होंने रुककर उस महिला से पूछा कि क्या उसे मदद चाहिए। वह इतनी चकित हुई कि दो बिलकुल अजनबी उसमें दिलचस्पी दिखातीं कि उसने यह जानने के लिए आग्रह किया कि किस बात ने ऐसे कृपापूर्ण भाव को प्रेरित किया। इसने एक गवाही के लिए द्वार खोला। उस महिला ने बिना हिचकिचाए अपना पता दे दिया और उससे मिलने आने को उन्हें हार्दिक आमंत्रण दिया। एक अध्ययन शुरू किया गया। जल्द ही वह महिला सभाओं में उपस्थित होने लगी और अब दूसरों के साथ सत्य बाँट रही है।
१३ एक वृद्ध बहन समुद्र किनारे सुबह-सुबह गवाही देने के मौक़े का फ़ायदा उठाती है। वह नौकरानियों, बच्चों की देखरेख करनेवालियों, बैंक के क्लर्क, और अन्य लोगों से मिलती है, जो समुद्र-तट पर सुबह की सैर कर रहे होते हैं। वह रेत के पास बेंचों पर बैठकर बाइबल अध्ययन संचालित करती है। अनेक लोगों ने उससे सत्य सीखा है और अब यहोवा के साक्षी हैं।
१४ अपने लौकिक कार्य-स्थल पर एक बहन ने साथ काम करनेवाली एक स्त्री को एक राजनैतिक दल के बारे में बात करते सुना। वह मानती थी कि यह दल संसार की समस्याओं को सुलझा सकता था। बहन बोल पड़ी, और उन प्रतिज्ञाओं के बारे में बताया जो परमेश्वर का राज्य पूरा करेगा। कार्य-स्थल पर यह चर्चा घर पर एक नियमित बाइबल अध्ययन की ओर ले गयी, और कुछ समय बाद वह महिला और उसका पति साक्षी बन गए।
१५ कभी मत भूलिए कि आप एक साक्षी हैं! जब यीशु ने अपने शिष्यों का वर्णन “जगत की ज्योति” के रूप में किया, तो उसने तर्क किया कि उन्हें परमेश्वर के वचन के आध्यात्मिक प्रबोधन से लाभ उठाने में दूसरों की मदद करनी चाहिए। यदि हम यीशु की सलाह को मानते हैं तो हम अपनी सेवकाई को किस दृष्टि से देखेंगे?
१६ रोज़गार ढूँढते समय कुछ लोग एक अंशकालिक नौकरी चुनते हैं। वे इसमें कितना समय और मेहनत लगाएँगे उस पर वे सीमाएँ लगाते हैं, क्योंकि वे अपना अधिकांश समय ऐसी गतिविधियों में लगाना पसन्द करते हैं जिन्हें वे ज़्यादा फलदायी पाते हैं। क्या हम अपनी सेवकाई के प्रति समान दृष्टिकोण रख रहे हैं? हालाँकि हम सेवकाई के लिए कुछ समय अलग रखने के लिए शायद बाध्य महसूस करें और इच्छुक भी हों, क्या हमारी मुख्य चिन्ता कहीं और होनी चाहिए?
१७ इस बात को समझते हुए कि एक अंशकालिक मसीही नाम की कोई चीज़ नहीं, हमने “अपने आप का इन्कार” करते और “निरन्तर” (NW) यीशु के पीछे चलने के लिए सहमत होते हुए, अपना समर्पण किया। (मत्ती १६:२४) हमारी अभिलाषा है कि अपने प्रकाश को चमकाने के हर अवसर का लाभ उठाते हुए हम निरन्तर “तन मन से” लगे रहें ताकि लोगों तक पहुँच सकें चाहे वे जहाँ भी हों। (कुलु. ३:२३, २४) हमें सांसारिक मनोवृत्तियों का विरोध करना चाहिए, अपना वही जोश बनाए रखना चाहिए जो शुरू में था, और यह निश्चित करना चाहिए कि हमारा प्रकाश तेज के साथ निरन्तर चमकता रहे। कुछ लोगों ने शायद अपने जोश को ठण्डा होने दिया हो और अपने प्रकाश को मात्र एक ऐसी हलकी-सी चमक बनने दिया हो, जो बड़ी मुश्किल से थोड़ी दूर तक दिखती है। ऐसे व्यक्ति को सेवकाई के लिए खोया हुआ जोश फिर से पाने में शायद मदद की ज़रूरत हो।
१८ कुछ लोग शायद पीछे हटने को प्रवृत्त हों क्योंकि हमारा संदेश बहुतों के लिए अलोकप्रिय है। पौलुस ने कहा कि मसीह के बारे में संदेश “नाश होनेवालों के निकट मूर्खता” थी। (१ कुरि. १:१८) लेकिन, दूसरों ने चाहे जो भी कहा, उसने सशक्त रूप से घोषणा की: “मैं सुसमाचार से नहीं लजाता।” (रोमि. १:१६) जो लजाता है वह तुच्छ या अयोग्य महसूस करता है। जब हम विश्व के सर्वोच्च सर्वसत्ताधारी के बारे में और उन शानदार प्रबन्धों के बारे में बोलते हैं जो उसने हमारे अनन्त सुख के लिए किए हैं तो हम किस हालत लजा सकते हैं? यह तो सोचा भी नहीं जा सकता कि हम इन सच्चाइयों के बारे में दूसरों से बात करते समय तुच्छ या अयोग्य महसूस करेंगे। इसके बजाय, हमें अपना भरसक करने के लिए विवश महसूस करना चाहिए, इस प्रकार हमारा विश्वास दिखाना चाहिए कि हमारे पास ऐसा कुछ नहीं ‘जिससे लज्जित होने पाएँ।’—२ तीमु. २:१५.
१९ सत्य का प्रकाश जो अभी पूरी पृथ्वी के देशों में चमक रहा है प्रोत्साहक रूप से एक परादीस नए संसार में अनन्त जीवन की आशा देता है। आइए हम दिखाएँ कि निरन्तर अपना प्रकाश चमकाने के प्रबोधन को हमने ग्रहण किया है! यदि हम ऐसा करते हैं, तो हमारे पास उन शिष्यों की तरह आनन्द मनाने का कारण होगा जो हर दिन “शिक्षा देने तथा यह उपदेश करने में लगे रहे कि यीशु ही मसीह है।” (तिरछे टाइप हमारे।)—प्रेरितों ५:४२, NHT.