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  • जीवन और शांति पाने के लिए पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलिए
    प्रहरीदुर्ग—2011 | नवंबर 15
    • 8 कानून के नियम इंसान को पापी करार देते थे। इसके अलावा, कानून के तहत सेवा करनेवाले महायाजक असिद्ध थे इसलिए वे पापों को पूरी तरह दूर करनेवाले बलिदान नहीं चढ़ा सकते थे। इस तरह कानून “इंसान की असिद्धता की वजह से कमज़ोर” साबित हुआ। लेकिन “परमेश्‍वर ने अपने बेटे को हाड़-माँस के इंसान की समानता में भेजा” और उसका जीवन फिरौती बलिदान के तौर पर देकर “शरीर में पाप को सज़ा का हुक्म सुनाया” और इस तरह वह किया जो ‘कानून न कर पाया।’ इस वजह से अभिषिक्‍त मसीहियों को यीशु के फिरौती बलिदान में विश्‍वास के आधार पर धर्मी गिना जाता है। उनसे आग्रह किया गया है कि वे ‘शरीर के मुताबिक नहीं बल्कि पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलें।’ (रोमियों 8:3, 4 पढ़िए।) बेशक उन्हें धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी साँस तक वफादारी से पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलना पड़ेगा, तभी उन्हें “ज़िंदगी का ताज” मिलेगा।—प्रका. 2:10.

  • जीवन और शांति पाने के लिए पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलिए
    प्रहरीदुर्ग—2011 | नवंबर 15
    • 10. हम किस मायने में पाप और मौत के कानून के गुलाम हैं?

      10 प्रेषित पौलुस ने लिखा: “एक आदमी से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी, और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।” (रोमि. 5:12) आदम की संतान होने के नाते हम सभी पाप और मौत के कानून के गुलाम हैं। हमारा पापी शरीर हम पर लगातार वही काम करने का दबाव डालता है जो परमेश्‍वर को नाराज़ करते हैं और जिसका अंजाम मौत होता है। गलातियों को लिखे अपने खत में पौलुस ने ऐसे कामों को “शरीर के काम” कहा। फिर उसने लिखा: “जो लोग ऐसे कामों में लगे रहते हैं वे परमेश्‍वर के राज के वारिस न होंगे।” (गला. 5:19-21) शरीर के काम करने का मतलब है शरीर के मुताबिक चलना। (रोमि. 8:4) ऐसे लोग वही काम करते हैं जो उनका असिद्ध शरीर उन्हें करने को कहता है। लेकिन क्या सिर्फ व्यभिचार, मूर्तिपूजा, भूत-विद्या और इस तरह के दूसरे गंभीर पाप करनेवाले ही शरीर के मुताबिक चलते हैं? जी नहीं, शरीर के कामों में जलन, गुस्सा, झगड़ा और ईर्ष्या जैसे अवगुण भी शामिल हैं जिन्हें शायद हम छोटी-मोटी कमी कहकर दरकिनार कर दें। हममें से कौन है जो कह सकता है कि वह शरीर के मुताबिक बिलकुल नहीं चलता?

  • जीवन और शांति पाने के लिए पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलिए
    प्रहरीदुर्ग—2011 | नवंबर 15
    • 12 हमारी हालत उस मरीज़ के जैसी है जिसका किसी गंभीर बीमारी के लिए इलाज हुआ है। अगर हम पूरी तरह ठीक होना चाहते हैं तो हमें आगे भी हर वह काम करना होगा जो डॉक्टर हमें कहता है। हालाँकि फिरौती बलिदान पर विश्‍वास करने से हमें पाप और मौत के कानून से छुटकारा मिल सकता है लेकिन हम अब भी असिद्ध और पापी हैं। परमेश्‍वर के साथ करीबी रिश्‍ता बनाने और उसकी मंज़ूरी और आशीषें पाने के लिए हमें कुछ और भी करना होगा। पौलुस कहता है कि “कानून की धर्मी माँगें” पूरी करने में पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलना भी शामिल है।

      पवित्र शक्‍ति के मुताबिक कैसे चलें?

      13. पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलने का क्या मतलब है?

      13 चलने का मतलब है एक मंज़िल की तरफ बढ़ते जाना। उसी तरह, पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलने के लिए ज़रूरी है कि हम लगातार परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत बनाते रहें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम कभी कोई गलती नहीं करेंगे। (1 तीमु. 4:15) इसके बजाय हमसे जितना हो सकेगा हम हर दिन पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन के मुताबिक जीने की पूरी-पूरी कोशिश करेंगे। “पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते” रहने से परमेश्‍वर की मंज़ूरी मिलती है।—गला. 5:16.

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