क्या पूर्वनियति और परमेश्वर के प्रेम के बीच सामंजस्य किया जा सकता है?
“हम पूर्वनियति को परमेश्वर की अनन्त योजना के तौर पर परिभाषित करते हैं, जिसके द्वारा उसने निर्धारित किया कि वह हर व्यक्ति के साथ क्या करना चाहता था। क्योंकि उसने सभी को समान परिस्थिति में सृष्ट नहीं किया, लेकिन कुछ को अनन्त जीवन के लिए और दूसरों को अनन्त दण्ड के लिए पूर्व-निर्धारित करता है।”
इस तरह प्रोटेस्टेंट धर्मसुधारक जॉन कैलविन ने पूर्वनियति की अपनी धारणा को मसीही धर्म के संस्थान (अंग्रेज़ी) पुस्तक में परिभाषित किया। यह धारणा इस विचार पर आधारित है कि परमेश्वर सर्वज्ञ है और उसके द्वारा सृष्ट लोगों के कार्य उसके उद्देश्यों में संदेह पैदा नहीं कर सकते या उसे परिवर्तन करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।
लेकिन क्या बाइबल परमेश्वर के बारे में वास्तव में ऐसा संकेत देती है? उससे भी महत्त्वपूर्ण, क्या ऐसी एक व्याख्या परमेश्वर के गुणों, विशेषकर उसके प्रमुख गुण—प्रेम के सामंजस्य में है?
भविष्य को पूर्वबताने में समर्थ परमेश्वर
परमेश्वर भविष्य को पूर्वबताने में समर्थ है। वह अपना वर्णन इस तरह करता है, “मैं तो अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूं जो अब तक नहीं हुई। मैं कहता हूं, मेरी युक्ति स्थिर रहेगी और मैं अपनी इच्छा को पूरी करूंगा।” (यशायाह ४६:१०) सारे मानव इतिहास में, परमेश्वर ने अपनी भविष्यवाणियों को अभिलिखित करवा कर रखा है यह दिखाने के लिए कि वह अपने पूर्वज्ञान का प्रयोग कर सकता है और घटनाएँ होने से पहले उनको पूर्वबता सकता है।
अतः, बाबुल के राजा बेलशस्सर के दिनों में, जब भविष्यवक्ता दानिय्येल को दो जंगली पशुओं के बारे में स्वप्न दिखा, जिसमें एक पशु दूसरे का स्थान हथिया लेता है, तो यहोवा ने उसे इसकी व्याख्या दी: “जो दो सींगवाला मेढ़ा तू ने देखा है, उसका अर्थ मादियों और फ़ारसियों के राज्य से है। और वह रोंआर बकरा यूनान का राज्य है।” (दानिय्येल ८:२०, २१) स्पष्टतया, परमेश्वर ने विश्व साम्राज्यों के क्रम को प्रकट करने के लिए अपने पूर्वज्ञान का प्रयोग किया। उस समय मौजूद बाबुलीय साम्राज्य के बाद मादी-फ़ारस और उसके बाद यूनान का साम्राज्य आता।
भविष्यवाणियाँ एक व्यक्ति के बारे में भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, भविष्यवक्ता मीका ने घोषणा की कि मसीहा को बेतलेहेम में पैदा होना था। (मीका ५:२) एक बार फिर, इस मामले में परमेश्वर ने अपना पूर्वज्ञान प्रयोग किया। लेकिन, इस घटना को एक विशेष उद्देश्य—मसीह की पहचान—के लिए घोषित किया गया था। यह उदाहरण पूर्वनियति के सिद्धान्त को, जिसमें हरेक व्यक्ति शामिल है, एक सामान्य नियम का रूप देना न्यायसंगत नहीं ठहराता।
इसके विपरीत, शास्त्रवचन दिखाते हैं कि ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जहाँ परमेश्वर परिणाम का पहले से ज्ञान रखने का चुनाव नहीं करता। सदोम और अमोरा के विनाश से कुछ ही समय पहले, उसने घोषणा की: “मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्हों ने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं: और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा।” (उत्पत्ति १८:२१) यह पाठ हमें स्पष्टतया दिखाता है कि मामले की जाँच करने से पहले परमेश्वर को उन नगरों में भ्रष्टता की हद का पूर्वज्ञान नहीं था।
सच है, परमेश्वर कुछ घटनाओं को पहले से जान सकता है, लेकिन अनेक मामलों में, उसने अपने पूर्वज्ञान का प्रयोग नहीं करने का चुनाव किया है। क्योंकि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, वह अपनी योग्यताओं को जैसे वह चाहता है वैसे प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र है, वैसे नहीं जैसे अपरिपूर्ण मनुष्य चाहते हैं।
परमेश्वर जो मामलों को ठीक कर सकता है
कैलविन की तरह, कुछ लोग कहते हैं कि परमेश्वर ने मनुष्य का पतन उसकी सृष्टि के पहले पूर्वनिर्धारित किया था और कि उसने ‘चुने हुओं’ को उस पतन से पहले पूर्वनियत किया था। लेकिन यदि यह सच होता, तो आदम और हव्वा को अनन्त जीवन की प्रत्याशा प्रस्तुत करना क्या परमेश्वर का पाखण्ड न होता, जबकि वह पूर्णतया जानता था कि वे उसे प्राप्त करने में असमर्थ होंगे? इसके अतिरिक्त, शास्त्रवचन कहीं भी इस बात से इनकार नहीं करते कि पहले मानव दम्पति को एक चुनाव दिया गया था: या तो ईश्वरीय निर्देशों का पालन करना और अनन्तकाल तक जीना या फिर उनका तिरस्कार करना और मरना।—उत्पत्ति, अध्याय २.
लेकिन आदम और हव्वा के पाप ने क्या वास्तव में परमेश्वर के उद्देश्य को विफल कर दिया? नहीं, क्योंकि उनके पाप करने के तुरंत बाद, परमेश्वर ने घोषित किया कि वह शैतान और उसके दूतों को नष्ट करने के लिए एक “वंश” को उत्पन्न करेगा और वह दुबारा पृथ्वी पर मामलों को ठीक करेगा। जैसे कुछ कीड़े-मकौड़े एक बाग़बान को अच्छी उपज उत्पन्न करने से रोक नहीं सकते, उसी तरह आदम और हव्वा की अवज्ञाकारिता परमेश्वर को इस पृथ्वी को परादीस बनाने से नहीं रोकेगी।—उत्पत्ति, अध्याय ३.
परमेश्वर ने बाद में प्रकट किया कि राजा दाऊद के एक वंशज को सौंपी गयी एक राज्य सरकार होगी और अन्य व्यक्ति इस राज्य से जुड़े हुए होंगे। इन अन्य व्यक्तियों को “परमप्रधान के पवित्र लोग” कहा गया है।—दानिय्येल ७:१८; २ शमूएल ७:१२; १ इतिहास १७:११.a
पूर्वबताना पूर्वनियत करना नहीं है
परमेश्वर ने यह जानने का चुनाव नहीं किया कि मानवजाति कौन-सा मार्ग अपनाएगी, इस तथ्य ने उसे मानव के अच्छे या बुरे कार्यों के परिणामों की भविष्यवाणी करने से नहीं रोका। यदि एक मेकैनिक किसी चालक को उसकी गाड़ी की बुरी हालत के बारे में चेतावनी देता है, तो दुर्घटना होने पर उसे उसका ज़िम्मेदार या उसे पूर्वनियत करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। समान रूप से, लोगों के कार्यों के दुःखद परिणामों को पूर्वनियत करने का दोष परमेश्वर पर नहीं लगाया जा सकता।
पहले मानव दम्पति के वंशजों के बारे में यही बात सच थी। इससे पहले कि कैन ने अपने भाई को मारा, यहोवा ने कैन के सामने एक चुनाव रखा। क्या वह पाप पर विजय पाएगा, या क्या पाप उस पर विजय पाएगा? वृत्तान्त में ऐसा कुछ भी नहीं है जो सूचित करता है कि यहोवा ने यह पूर्वनिर्धारित किया था कि कैन एक ग़लत चुनाव करेगा और अपने भाई की हत्या करेगा।—उत्पत्ति ४:३-७.
बाद में, मूसा की व्यवस्था ने इस्राएलियों को इस विषय में चेतावनी दी कि यदि वे यहोवा से दूर हो जाएँगे तो क्या होगा, उदाहरण के लिए, अन्यजातियों की स्त्रियों से विवाह करने के द्वारा। जो पूर्वबताया गया था वही हुआ। यह राजा सुलैमान के उदाहरण से देखा जा सकता है, जो अपने बाद के वर्षों में अपनी अन्यजातीय पत्नियों द्वारा मूर्तिपूजा का अभ्यास करने के लिए प्रेरित किया गया। (१ राजा ११:७, ८) जी हाँ, परमेश्वर ने अपने लोगों को चेतावनी दी, लेकिन उसने पूर्वनियत नहीं किया कि उनके व्यक्तिगत कार्य क्या होंगे।
चुने हुओं को दृढ़ रहने का प्रोत्साहन दिया जाता है यदि वे मसीह के साथ स्वर्ग में शासन करने के प्रतिज्ञात प्रतिफल से वंचित नहीं होना चाहते। (२ पतरस १:१०; प्रकाशितवाक्य २:५, १०, १६; ३:११) जैसे बीते हुए समय में कुछ धर्मविज्ञानियों ने पूछा है, ऐसे अनुस्मारक क्यों दिए गए यदि चुने हुओं का वह बुलावा सुनिश्चित था?
पूर्वनियति और परमेश्वर का प्रेम
मनुष्य को स्वतंत्र इच्छा दी गयी थी, क्योंकि उसकी सृष्टि ‘परमेश्वर के स्वरूप’ में की गयी थी। (उत्पत्ति १:२७) स्वतंत्र इच्छा अनिवार्य थी यदि मनुष्यों को प्रेम से प्रेरित होकर परमेश्वर का आदर करना और उसकी सेवा करनी थी, ना कि यंत्रमानव की तरह जिसकी प्रत्येक हरकत पहले से निर्धारित होती है। बुद्धिमान, स्वतंत्र प्राणियों द्वारा प्रदर्शित किया गया प्रेम, परमेश्वर को अनुचित इल्ज़ामों का खण्डन करने में समर्थ करेगा। वह कहता है: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।”—नीतिवचन २७:११.
यदि परमेश्वर के सेवकों को पूर्वनियत किया गया होता—या यूँ कहें कि पूर्वनिर्धारित किया गया होता—तो अपने सृष्टिकर्ता के प्रति उनके प्रेम की असलियत पर क्या संदेह नहीं किया जा सकता था? साथ ही, क्या यह परमेश्वर की निष्पक्षता के विपरीत नहीं होता कि वह महिमा और ख़ुशी के लिए नियत व्यक्तियों का पूर्वनिर्धारित चुनाव उनकी व्यक्तिगत अच्छाइयों पर विचार किए बिना करता? इसके अतिरिक्त, यदि कुछ व्यक्तियों के पक्ष में व्यवहार किया जाता है, जबकि दूसरों को अनन्त दण्ड के लिए पूर्वनिर्धारित किया जाता है, तो यह शायद ही “चुने हुओं” में सच्ची कृतज्ञता की भावनाएँ पैदा करेगा।—उत्पत्ति १:२७; अय्यूब १:८; प्रेरितों १०:३४, ३५.
आख़िर में, मसीह ने अपने शिष्यों से कहा कि सारी मनुष्यजाति को सुसमाचार प्रचार करें। यदि परमेश्वर ने उद्धार प्राप्त करनेवालों को पहले से चुन लिया है, तो क्या यह सुसमाचार प्रचार करने में मसीहियों के उत्साह को कम नहीं करेगा? क्या यह प्रचार कार्य को वास्तव में अर्थहीन नहीं कर देगा?
परमेश्वर की ओर से निष्पक्ष प्रेम सबसे मज़बूत शक्ति है जो मनुष्यों को बदले में उससे प्रेम करने के लिए प्रेरित कर सकती है। परमेश्वर के प्रेम की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति थी, अपरिपूर्ण, पापी मनुष्यजाति की ख़ातिर अपने पुत्र का बलिदान करना। अपने पुत्र के सम्बन्ध में परमेश्वर का पूर्वज्ञान एक अनोखा उदाहरण है, लेकिन यह हमें आश्वस्त करता है कि यीशु पर आधारित पुनःस्थापना की प्रतिज्ञाएँ वाक़ई पूरी होंगी। सो ऐसा हो कि हम उस पुत्र पर विश्वास रखें और परमेश्वर के निकट आएँ। आइए हम अपने सृष्टिकर्ता के साथ एक अच्छे सम्बन्ध में आने के परमेश्वर के आमंत्रण को स्वीकार करने के द्वारा अपना मूल्यांकन दिखाएँ। आज, परमेश्वर इस आमंत्रण को उन सब लोगों को देता है जो अपनी स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग करना चाहते हैं और उसके लिए अपना प्रेम दिखाना चाहते हैं।
[फुटनोट]
a जब यीशु “जगत के आदि से” तैयार किए हुए राज्य की बात करता है (मत्ती २५:३४), तो वह ज़रूर पहले पाप के कुछ समय बाद के काल को सूचित कर रहा होगा। लूका ११:५०, ५१, “जगत की उत्पत्ति [आदि]” को, या छुड़ौती द्वारा उद्धार्थ मानवजाति की आदि को, हाबिल के समय से जोड़ता है।
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एक वर्ग के तौर पर पूर्वनियत
“जिनका परमेश्वर को पूर्वज्ञान था उन्हें उसने पूर्वनियत भी किया कि उसके पुत्र की समानता में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। और जिन्हें उसने पूर्वनियत किया, उन्हें बुलाया भी; और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया; और जिन्हें उसने धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी।” (रोमियों ८:२९, ३०, न्यू इंटरनैशनल वर्शन) इन आयतों में पौलुस द्वारा प्रयोग किया गया शब्द “पूर्वनियत” हमें कैसे समझना चाहिए?
यहाँ पौलुस का तर्क व्यक्तिगत पूर्वनियति के विचार का समर्थन करनेवाली एक निर्विवाद दलील नहीं है। हमारी शताब्दी के आरंभ में, डीक्सयोनार डे तेओलोज़ी काटोलीक ने पौलुस की दलीलों (रोमियों, अध्याय ९-११) को इस प्रकार समझाया: “बढ़ते हुए पैमाने पर, कैथोलिक विद्वानों के बीच मौजूदा विचार है कि अनन्त जीवन के लिए पूर्वनियति की असल धारणा का विवरण नहीं दिया गया है।” वही सन्दर्भ पुस्तक बाद में एम. लग्रान्ज़ का उद्धरण देती है, जो कहता है: “मुख्यतः जिस प्रश्न की पौलुस चर्चा कर रहा था वह पूर्वनियति और पूर्व-अस्वीकृति के बारे में बिल्कुल नहीं है बल्कि सिर्फ़ मसीहियत की कृपा की ओर अन्यजातियों के लिए आमंत्रण के बारे में है, और यहूदियों का अविश्वास इसके बिल्कुल विपरीत है। . . . यह समूहों, अन्यजातियों और यहूदियों के सम्बन्ध में है और सीधे किसी विशेष व्यक्ति के नहीं।”—तिरछे टाईप हमारे।
हाल में, द जरूसलेम बाइबल ने इन अध्यायों (९-११) पर यह कहते हुए समान निष्कर्ष प्रस्तुत किया: “इसलिए, इन अध्यायों का विषय महिमा के लिए या यहाँ तक कि विश्वास के लिए व्यक्तिगत पूर्वनियति की समस्या के बारे में नहीं है, बल्कि मनुष्यजाति के उद्धार के इतिहास के विकास में इस्राएल के भाग के बारे में है, ऐसी एकमात्र समस्या जो पुराने नियम के कथनों से उठती है।”
रोमियों अध्याय ८ की आख़री आयतें इसी सन्दर्भ से सम्बन्धित हैं। इस प्रकार, ये आयतें हमें उचित रूप से यह याद दिला सकती हैं कि परमेश्वर ने मनुष्यजाति में से एक वर्ग या समूह के अस्तित्व को पहले से जान लिया, जो मसीह के साथ शासन करने के लिए बुलाया जाता। साथ ही, ये आयतें हमें उचित रूप से उन माँगों के बारे में याद दिला सकती हैं जो उन्हें पूरी करनी थीं—और यह सब कुछ समय से पहले उन विशिष्ट व्यक्तियों को, जिन्हें चुना जाता, नियत किए बग़ैर किया गया, क्योंकि यह उसके प्रेम और न्याय के विरुद्ध होता।