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  • राज्य के आशा में आनंदित रहो
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राज्य के आशा में आनंदित रहो

“आशा में आनंदित रहो; क्लेश में स्थिर रहो।”—रोमियों १२:१२.

१. यहोवा के साथ सम्बन्ध रखने से हमें हर्ष क्यों मिल सकता है, और पौलुस मसीहियों को क्या करने के लिए उकसाता है?

“ख़ुश परमेश्‍वर।” (१ तीमुथियुस १:११, न्यू.व.) यहोवा का क्या ही उचित वर्णन! क्यों? क्योंकि उन के सभी कार्य उन्हें बहुत ख़ुशी देती हैं। चूँकि यहोवा सभी अच्छे और आनंददायक चिज़ों का स्रोत हैं, उन के साथ सम्बन्ध से उन के सभी बुद्धिमान सृष्ट जीव ख़ुशी पा सकते हैं। उपयुक्‍त ढंग से, प्रेरित पौलुस मसीहियों को यहोवा परमेश्‍वर को जानने का हर्षमय ख़ास अनुग्रह के प्रति क़दर, सृष्टि के उन के सभी अद्‌भुत तोहफ़ों के लिए शुक्रग़ुजारी, और उन्हें दिखाए गए कृपा में आनंद मनाने के लिए उकसाते हैं। पौलुस लिखते हैं: “प्रभु में आनंदित रहो; मैं फिर कहता हूँ, आनंदित रहो!”—फिलिप्पियों ४:४; भजन १०४:३१.

२. कौनसी आशा बहुत हर्ष लाती है, और इस आशा के विषय में मसीहियों को क्या करने का प्रोत्साहन दिया जाता है?

२ क्या मसीही पौलुस ने दिया हुआ उपदेश को ध्यान में रखते हैं? वाक़ई! परमेश्‍वर ने उपलब्ध किया हुआ शानदार आशा में यीशु मसीह के आत्मिक भाई आनंद मनाते हैं। (रोमियों ८:१९-२१; फिलिप्पियों ३:२०, २१) हाँ, वे जानते हैं कि यीशु के साथ उन के स्वर्गीय शाही शासन में सेवा करने से वे मानवजाति, दोनों जीवित और मृत, के भविष्य के महान आशा को पूरा करने में हिस्सा लेंगे। कल्पना कीजिए कि राजा और याजकों की हैसियत से सेवा करने में वे सह-वारिस बनने का ख़ास अनुग्रह में कितना ख़ुश होंगे! (प्रकाशितवाक्य २०:६) विश्‍वासी मानवजाति को परिपूर्णता तक पहुँचाने और हमारी पृथ्वी पर परादीस का पुनःस्थापन को नियंत्रित करने की सहायता से उनकी क्या ही ख़ुशी होगी! सचमुच, परमेश्‍वर के सभी सेवकों को “उस अनन्त जीवन की आशा है, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्‍वर ने जो झूठ बोल नहीं सकता सनातन से की है।” (तीतुस १:२) इस भव्य आशा को ध्यान में रखते हुए, प्रेरित पौलुस सभी मसीहियों को प्रोत्साहित करते हैं: “आशा में आनंदित रहो।”—रोमियों १२:१२.a

सच्चा हर्ष—दिल का एक गुण

३, ४. (अ) “आनंदित रहना” इस शब्द का मतलब क्या है, और मसीहियों ने कितनी बारंबारता से आनंद मनाना चाहिए? (ब) सच्चा हर्ष क्या है, और यह किस पर निर्भर है?

३ “आनंदित रहने” का मतलब हर्ष महसूस और व्यक्‍त करना है; लगातार सुख-बोध, या उल्लास, के दशा में रहना नहीं। “हर्ष,” “उल्लास,” और “आनंद” के लिए बाइबल में उपयोग किए गए इब्रानी और यूनानी शब्दों का अनुकूल क्रियापद दोनों हर्ष का आंतरिक भाव और बाहरी प्रदर्शन अभिव्यक्‍त करते हैं। मसीहियों को “आनंदित रहने,” और “हर समय आनंदित रहने” के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।—२ कुरिन्थियों १३:११; १ थिस्सलुनीकियों ५:१६, न्यू.व.

४ पर कैसे कोई हर वक्‍त आनंदी रह सकता है? यह मुमकिन है क्योंकि सच्चा हर्ष दिल का एक गुण, एक गहरी आध्यात्मिक आंतरिक गुण। (व्यवस्थाविवरण २८:४७; नीतिवचन १५:१३; १७:२२) यह परमेश्‍वर के आत्मा का एक फल है, जिसे पौलुस ने प्रेम के बाद सूचीबद्ध किया। (गलतियों ५:२२) एक भीतरी गुण के रूप में, यह बाहरी चिज़ों, यहाँ तक कि हमारे भाइयों, पर भी निर्भर नहीं करता। लेकिन यह परमेश्‍वर के पवित्र आत्मा पर निर्भर करता है। और यह गहरी आंतरिक मनस्तोष इस जानकारी से आती है कि आप के पास सच्चाई, राज्य की आशा, है और जो कुछ आप कर रहे हैं वह यहोवा को अच्छा लगता है। इसलिए, हर्ष न सिर्फ़ एक व्यक्‍तित्व की विशेषता है जिस के साथ हम जन्मे हैं; बल्कि यह “नए व्यक्‍तित्व,” यीशु मसीह की विशेषता बतानेवाले गुणों का संग्रह, का हिस्सा है।—इफिसियों ४:२४; कुलुस्सियों ३:१०.

५. हर्ष के बाहरी प्रदर्शन कब और कैसे हो सकते हैं?

५ हालाँकि हर्ष दिल का एक आंतरिक गुण है, फिर भी इसे कभी-कभी बाहरी तौर पर दिखाया जा सकता है। हर्ष के यह अवसरिक, बाहरी प्रदर्शन क्या है? वे मुख-संबंधी शांतता से लेकर हर्ष से हक़ीक़ी उछाल हो सकते हैं। (१ राजा १:४०; लूका १:४४; प्रेरितों के काम ३:८; ६:१५) तो फिर, क्या इसका यह अर्थ लगाया जा सकता है कि जो लोग बकबादी नहीं और सदा हँसते नहीं उन में हर्ष नहीं है? नहीं! सच्चा हर्ष निरन्तर बकबक, हँसी, मुस्कान, या मुस्कराहट में अभिव्यक्‍त नहीं होता। हालात विभिन्‍न तरिक़ों से हर्ष प्रकट कराता है। सिर्फ़ हर्ष ही नहीं, बल्कि हमारी भाई जैसा स्नेह और मुहब्बत हमें राज्य सभागृहों में सद्‌भावी बनाता है।

६. अप्रिय हालात का सामना करते समय मसीह क्यों सदा आनंद मना सकते हैं?

६ हर्ष का निरन्तर पहलू मसीही नयी व्यक्‍तित्व का हार्दिक विशेषता के जैसे उसका भीतरी स्थायित्व है। इसी के वजह से कोई सदा आनंदित रह सकता है। अवश्‍य, कभी-कभी हम किसी कारणवश अशांत हो सकते हैं, या हम अप्रिय हालात का सामना कर सकते हैं। लेकिन हमारे दिल में हम हर्ष क़ायम रख सकते हैं। कई प्रारंभिक मसीही ग़ुलाम थे, जिनके मालिकों को प्रसन्‍न करना काफी मुश्‍क़िल था। क्या ऐसे मसीही सदा आनंदित रह सकते हैं? हाँ, उन के दिलों में हर्ष और राज्य की आशा के वजह से यह हो सकता है।—यूहन्‍ना १५:११; १६:२४; १७:१३.

७. (अ) क्लेश के दौरान हर्ष के बारे में यीशु ने क्या कहा था? (ब) क्लेश में स्थिर रहने के लिए क्या हमें मदद करता है, और इस विषय में किसने सब से बढ़िया आदर्श रखा?

७ “आशा में आनंदित रहो,” कहने के बाद प्रेरित पौलुस आगे कहते हैं: “क्लेश में स्थिर रहो।” (रोमियों १२:१२) क्लेश के दौरान हर्ष के बारे में भी यीशु मत्ती ५:११, १२ में कहते हैं: “ख़ुश हो तुम, जब लोग तुम्हे सताएँगे और तुम्हारी निन्दा करेंगे . . . आनंदित रहो और हर्ष से उछलो, क्योंकि तुम्हारे लिए स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है।” (न्यू.व.) आनंदित रहना और हर्ष से उछलना एक शाब्दिक बाहरी प्रकटीकरण नहीं; मुख्यतः यह यहोवा और यीशु मसीह को तक़लीफ के दौरान प्रसन्‍न करनेवाली हमारी गहरी भीतरी मनस्तोष है। (प्रेरितों. ५:४१) दरअसल, हर्ष ही हमें क्लेश सहने में मदद करता है। (१ थिस्सलुनीकियों १:६) इस में, सब से बढ़िया आदर्श यीशु ने रखा है। शास्त्र कहता है: “उस आनंद के लिए जो उसके आगे धरा था, . . . उसने यातना स्तंभ का दुःख सहा।“—इब्रानियों १२:२, न्यू.व.

समस्याओं के बावजूद आशा में आनंदित रहना

८. मसीही कौनसी समस्याओं का सामना कर सकते हैं, और समस्या मसीही का हर्ष को क्यों नहीं छीन सकते?

८ यहोवा का सेवक होने से किसी को समस्याओं से छूट नहीं मिलती। पारिवारिक समस्याएँ, आर्थिक मुसीबत, दुर्बल स्वास्थ्य, या किसी प्रिय जन की मौत हो सकती है। यद्यपि यह घटनाएँ दुःख उत्पन्‍न कर सकते है, वे राज्य की आशा, हमारे दिल की भीतरी हर्ष, में आनंद मनाने का आधार को हम से छीन नहीं सकते।—१ थिस्सलुनीकियों ४: १३.

९. इब्राहीम की क्या समस्याएँ थीं, और उनके दिल में हर्ष था यह हम किस तरह जानते हैं?

९ मसलन, इब्राहीम पर ग़ौर करें। उसके लिए जिंदगी सदा सुखकर नहीं थी। उन्हें पारिवारिक समस्याएँ थीं। उसकी उपपत्नी, हाजिरा, और पत्नी, सारा, में मतभेद था। वे झगड़ा करते थे। (उत्पत्ति १६:४, ५) इश्‍माएल इसहाक का मज़ाक उड़ाकर उसे सताता था। (उत्पत्ति २१:८, ९; गलतियों ४:२९) आख़िरकार, इब्राहीम की प्यारी पत्नी, सारा, मर गयी। (उत्पत्ति २३:२) इन समस्याओं के बावजूद, वह राज्य का वंश, इब्राहीम का वंश, की आशा पर आनंदित रहा, जिसके ज़रिये पृथ्वी के सब परिवार ख़ुद को आशिष देंगे। (उत्पत्ति २२:१५-१८) अपने गृह नगर ऊर से चले जाने के बाद, अपने दिल में हर्ष के साथ, वह यहोवा के सेवा में सौ साल के लिए बना रहा। इसलिए उसके बारे में लिखा है: “वह उस स्थिर नेववाले नगर की बाट जोहता था, जिसका रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्‍वर है।” इब्राहीम का आनेवाले मसीही राज्य में विश्‍वास के कारण, प्रभु यीशु, जिसे परमेश्‍वर द्वारा राजा नियुक्‍त किया गया, कह सके: “इब्राहीम मेरा दिन देखने की आशा में मगन था, और उसने देखा, और आनंद किया।”—इब्रानियों ११:१०; यूहन्‍ना ८:५६.

१०, ११. (अ) मसीही होने के नाते हमें किस तरह का संघर्ष करना है, और कैसे हमें बचाया जा सकता है? (ब) परिपूर्णता से हमारे पापमय शरीर के ख़िलाफ़ लड़ाई करने की हमारी असमर्थता को क्या पूरा करता है?

१० अपरिपूर्ण इंसान होने से, हमें हमारी पापमय शरीर से संघर्ष करनी है, और यह अच्छा करने की संघर्ष बहुत दुःखद हो सकता है। हमारे कमज़ोरियों के ख़िलाफ़ हमारी लड़ाई का अर्थ यह नहीं कि हमें कोई आशा नहीं है। इस संघर्ष के विषय में पौलुस दुःख महसूस करता है, और कहता है: “मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? मैं अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ।” (रोमियों ७:२४, २५) हमारी छुटकारा यीशु मसीह और उसने दिया हुआ छुड़ौती के ज़रिये होता है।—रोमियों ५:१९-२१.

११ परिपूर्णता से लड़ाई करने की हमारी असमर्थता को मसीह का छुड़ौती की क़ुरबानी पूरा करती है। हम इस छुड़ौती में आनंद मना सकते हैं क्योंकि यह एक शुद्ध ज़मीर और हमारी पापों की माफ़ी सम्भव कराती है। इब्रानियों ९:१४ में, पौलुस “मसीह का लोहू” के बारे में बोलते हैं जिसे “विवेक के मरे हुए कामों को शुद्ध करने” की सामर्थ है। इस प्रकार, निन्दा और दोष के भावनाओं से मसीहियों को अपने ज़मीरों पर भार डालने की ज़रूरत नहीं। यह, हमारी आशा के साथ, हमारे हर्षमय ख़ुशी के लिए एक दृढ़ शक्‍ति बनता है। (भजन १०३:८-१४; रोमियों ८:१, २, ३२) हमारी आशा पर ध्यान करते हुए, हम सब सफलतापूर्वक लड़ने के लिए प्रोत्साहित किए जाएँगे।

हमारी आशा को सदा मन में रखना

१२. अभिषिक्‍त मसीही कौनसी आशा पर ध्यान कर सकते हैं?

१२ दोनों आत्मा-अभिषिक्‍त अवशेष और अन्य भेड़ के लिए महत्त्वपूर्ण है कि अपना “उद्धार की आशा” को मन में रखते हुए एक संरक्षी टोप के जैसे उसे पहने रहें। (१ थिस्सलुनीकियों ५:८) अभिषिक्‍त मसीहियों को स्वर्ग में अमरत्व, यहोवा परमेश्‍वर की ओर पहुँच, और महिमावान्‌ यीशु मसीह, प्रेरित और १,४४,००० के अन्य जन, जिन्होंने सदियों से होकर अपना सत्यनिष्ठा क़ायम रखा, के साथ वैयक्‍तिक सम्बन्ध का अनुभव करने का उत्कृष्ट ख़ास अनुग्रह पर ध्यान दे सकते हैं। साहचर्य की क्या ही अकथनीय प्रचुरता!

१३. अपने आशा के विषय में अभिषिक्‍त जन कैसा महसूस करते हैं?

१३ राज्य की आशा के बारे में पृथ्वी के कुछ अभिषिक्‍त जन कैसा महसूस करते हैं? १९१३ में बपतिस्मा प्राप्त व्यक्‍ति के शब्दों से इसे सारांश किया जा सकता है: “हमारी आशा निश्‍चित है, और छोटे झुण्ड के १,४४,००० सदस्यों में से हर किसी में इसकी पूर्ति पूरी तरह एक ऐसे हद तक होगी जिसे हम कभी कल्पना ही नहीं कर सकते। अवशेष वर्ग के उन जनों ने जो १९१४ में उपस्थित थे, जब उन्होंने स्वर्ग जाने की अपेक्षा की थी, कभी आशा की क़द्र के भाव को खोया नहीं। लेकिन हम उसके लिए उतने ही दृढ़ हैं जितने कि हम पहले थे, और जितना ज़्यादा हमें उसकी इंतज़ार करना पड़े उतना ही हम उसकी क़दर करते हैं। चाहे इसके लिए दस लाख साल लग भी जाए, यह आशा राह देखने के लायक़ है। मैं हमारी आशा को पहले से ज़्यादा मुल्यांकन करता हूँ, और उसके लिए अपनी क़दरदानी कभी नहीं खोना चाहता। छोटी झुण्ड की आशा आश्‍वासन देती है कि अन्य भेड़ के बड़ी भीड़ की प्रत्याशा, विफलता की संभावना के बिना, हमारी तेज़ कल्पना के पार पूरी हो जाएगी। इसलिए हम इस घड़ी तक जकड़े हुए हैं, और तब तक जकड़े रहेंगे जब तक परमेश्‍वर सचमुच साबित करते हैं कि वह अपनी ‘बहुमूल्य और बहुत बड़ी प्रतिज्ञाओं’ के प्रति सच्चे हैं।”—२ पतरस १:४; गिनती २३:१९; रोमियों ५:५.

परादीस की आशा में अब आनंद मनाना

१४. कौनसी आशा को बड़ी भीड़ ने मन में रखनी चाहिए?

१४ उल्लसित विश्‍वास का ऐसा अभिव्यक्‍ति अन्य भेड़ की बड़ी भीड़ के जनों में आनंद के महान्‌ कारण उँडेलती है। (प्रकाशितवाक्य ७:१५, १६) ऐसे जनों ने अरमगिदोन से बच जाने की आशा को याद रखना चाहिए। हाँ, महा क्लेश लाकर, जहाँ पृथ्वी पर के दुष्ट जनों को निकाला जाएगा जिनका परमेश्‍वर शैतान रहा है, परमेश्‍वर का राज्य यहोवा परमेश्‍वर के सार्वभौमिक प्रभुसत्ता को दोषमुक्‍त करने और उनके महिमावान्‌ नाम को पवित्र करने की प्रत्याशा को उत्सुकता से देखिए। उस महा क्लेश से बच जाना क्या ही एक हर्ष होगा!—दानिय्येल २:४४; प्रकाशितवाक्य ७:१४.

१५. (अ) यीशु ने पृथ्वी पर किस तरह का स्वस्थ करने का कर्म किया, और क्यों? (ब) अरमगिदोन के बचनेवालों का क्या स्वास्थ्य के ज़रूरतें हैं, और क्यों यह पुनरूत्थित जनों से भिन्‍न हैं?

१५ बड़ी भीड़ के विषय में, प्रकाशितवाक्य ७:१७ कहता है: “मेम्ना . . . उनकी रखवाली करेगा, और जीवन रूपी जल के सोतों के पास ले जाया करेगा। और परमेश्‍वर उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा।” हालाँकि इस भविष्यवाणी की आत्मिक पूर्ति अब है, अरमगिदोन से बचनेवाले उसे अक्षरशः पूरा देखेंगे। यह कैसा? खैर, यीशु ने पृथ्वी पर क्या किया था? उसने अपंगों को स्वस्थ किया, लंगडों को चलने के योग्य बनाया, बहरों के कान और अंधों के आँख खोलीं, और उसने कोढ़, लक़वा, और “हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा।” (मत्ती ९:३५; १५:३०, ३१) क्या मसीही यह नहीं चाहते? बड़ी भीड़ अपनी पूरानी-संसार की बीमारियों और कमज़ोरियों को नए संसार में ले जाएगी। इसके बारे में हम मेम्ने से क्या उम्मीद कर सकते हैं? अरमगिदोन उत्तरजीवियों और पुनरूत्थित लोगों की ज़रूरतों में काफी फ़र्क़ होगा। हालाँकि वे अब तक मानवीय परिपूर्णता नहीं पाएँगे, पुनरूत्थित जन संभवतः भला-चंगा, तन्दुरुस्त बदनों में पुनःसृष्ट होंगे। पुनरूत्थान के चमत्कार के वजह से, उन्हें स्पष्ट रूप से स्वस्थ बनाने के चमत्कार के ज़रिये इसके बाद अपने भूतपूर्व दुर्बलताओं की मरम्मत ज़रूरी नहीं होगी। दूसरी ओर, अरमगिदोन से बच जाने के अपने अनोखे अनुभव के वजह से बड़ी भीड़ के अनेक लोगों के लिए चमत्कारिक मरम्मत ज़रूरी होगा और वे इसे पाएँगे। स्पष्टतया, यीशु के स्वस्थ करने के कार्यों का एक मुख्य इरादा बड़ी भीड़ का प्रोत्साहन के ख़ातिर उस हर्षमय प्रत्याशा चित्रित करना था कि वे सिर्फ़ बच ही नहीं जाएँगे बल्कि उसके बाद स्वस्थ किए जाएँगे।

१६. (अ) अरमगिदोन के बचनेवालों का चमत्कारिक चंगाई कब होगा, और किस परिणाम के साथ? (ब) सहस्राब्दि के दौरान हम कौनसी आशा में आनंद मनाते रहेंगे?

१६ ऐसा चमत्कारिक स्वस्थ करने का कार्य अरमगिदोन के बचनेवालों में तर्कसंगत रूप से अरमगिदोन के फ़ौरन बाद और पुनरूत्थान का शुरुआत से पहले होगा। (यशायाह ३३:२४; ३५:५, ६; प्रकाशितवाक्य २१:४; मरकुस ५:२५-२९ से तुलना करें.) फिर लोग अपनी ऐनक, लाठी, बैसाखी, पहिएदार कुर्सी, नकली दाँत, श्रवण-सहाय इत्यादि फेंक देंगे। आनंद का क्या ही सबब! यीशु द्वारा ऐसा प्रारंभिक पुनर्नवीकर कर्म अरमगिदोन के बचनेवालों का नए पृथ्वी की बुनियाद की भूमिका के अनुसार है! दुर्बल करनेवाले रोगों को हटा दिया जाएगा ताकि यह उत्तरजीवी जोश के साथ आगे बढ़ सकेंगे, पूराने संसार के दुःखों के तले न दबकर बल्कि आतुरता से भावी सहस्राब्दि के अद्‌भुत गतिविधि को देखकर। हाँ, अरमगिदोन के बाद भी, बड़ी भीड़ हज़ार बरस के आख़िर में परिपूर्ण मानवी ज़िंदगी के उत्कृष्ट आशा हासिल करने में आनंद मनाते रहेंगे। सहस्राब्दि के दौरान, उस ख़ुश मंज़िल तक पाने की आशा में वे आनंद मनाते रहेंगे।

१७. जैसे परादीस पुनःस्थापित करने का कार्य आगे बढ़ता है, वैसे किस तरह का हर्ष प्राप्त होंगे?

१७ अगर वह आपकी आशा है, तो पृथ्वी पर परादीस पुनःस्थापित करने के हर्ष में हिस्सा लेने पर ध्यान दें। (लूका २३:४२, ४३) बेशक अरमगिदोन के बचनेवाले पृथ्वी को साफ़ करने में मदद देंगे और जहाँ मृत जन पुनरूत्थित हुए वहाँ सुहावना जगह तैयार करेंगे। दफ़न को पुनरूत्थान में जिलाए गए जन, जिस में हमारे अपने मृत प्रिय जन भी सम्मिलित होंगे, के स्वागत सत्र से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। और गत सदियों के विश्‍वस्त आदमी और औरतों के साथ संपन्‍न करनेवाला मैत्रीभाव के बारे में सोचिए। ख़ास तौर से आप किससे बात करना चाहेंगे? क्या वह हाबिल, हनोक, नूह, अय्यूब, इब्राहीम, सारा, इसहाक़, याक़ूब, यूसुफ, मूसा, यहोशू, राहाब, दबोरा, समसून, दाऊद, एलिय्याह, एलीशा, यिर्मयाह, यहेजकेल, दानिय्येल, या यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला है? फिर, यह आनंदप्रद प्रत्याशा आपकी आशा का एक हिस्सा है। आप उनके साथ गुफ़्तगू कर सकते हैं, उन से सिख सकते हैं, और सारा पृथ्वी को परादीस बनाने में आप उनके साथ काम कर सकते हैं।

१८. किन अतिरिक्‍त हर्ष पर हम ध्यान दे सकते हैं?

१८ पौष्टिक भोजन, शुद्ध पानी, साफ़ हवा का कल्पना भी कीजिए, साथ ही हमारी पृथ्वी यहोवा ने सृष्ट किया हुआ सही पारिस्थितिक सन्तुलन में वापस लायी जाएगी। तब ज़िंदगी परिपूर्णता का सिर्फ़ निष्क्रिय मज़ा ही नहीं, बल्कि हर्षमय गतिविधियों में एक सक्रिय और अर्थपूर्ण भाग होगा। अपराध, अहंकार, ईर्ष्या, फ़साद से मुक्‍त लोगों का विश्‍वव्यापी समाज का विचार कीजिए—एक भाईचारा जहाँ आत्मा के फलों को विकसित और दिखलाया जाता है। कितना रोमांचकारी!—गलतियों ५:२२, २३.

ज़िंदगी को जीने लायक़ बनानेवाली आशा

१९. (अ) रोमियों १२:१२ में ज़िक्र किया हुआ आनंद कब अनुभव होगा? (ब) क्यों हमने हमारी आशा को ज़िंदगी के बोझ द्वारा न हटा देने का दृढ़निश्‍चय करना चाहिए?

१९ पूरा किया हुआ प्रत्याशा तनिक भी आशा नहीं होती, इसलिए रोमियों १२:१२ में पौलुस द्वारा प्रोत्साहित आनंद को अभी अनुभव किया जाना चाहिए। (रोमियों ८:२४) सिर्फ़ परमेश्‍वर के राज्य के ज़रिये लाए जानेवाले भावी आशिषों पर चिंतन करना हमें अब उस आशा में आनंद मनाने का सबब है। इसलिए निर्धार कीजिए कि इस भ्रष्ट दुनिया में ज़िंदगी के बोझ को हमारे महिमावान्‌ आशा को एक ओर ढकेलने का मौक़ा न देंगे। भावी आशा खोकर, थका-माँदा न होकर हार न मानिए। (इब्रानियों १२:३) मसीही पथ को छोड़ देने से हमारी समस्याओं का हल नहीं होगा। याद रखिए, अगर कोई ज़िंदगी के भार के वजह से परमेश्‍वर की सेवा छोड़ता है, फिर भी वह भार के तले दबा हुआ है, लेकिन वह आशा खोता है और भावी उत्कृष्ट प्रत्याशाओं में आनंद मनाने का संभावना गँवाता है।

२०. राज्य की आशा स्वीकार करनेवालों में क्या असर लाती है, और क्यों?

२० हर वजह से यहोवा के लोग ख़ुश ज़िंदगी जी सकते हैं। उनका उज्ज्वल, प्रेरक आशा ज़िंदगी को जीने के लायक़ बनाता है। और वे इस हर्षमय आशा को अपने ही पास नहीं रखते। नहीं, वे इसे दूसरों के साथ बाँटने में आतुर हैं। (२ कुरिन्थियों ३:१२) इस प्रकार वे जो राज्य की आशा ग्रहण करते हैं विश्‍वस्त लोग हैं, और दूसरों को परमेश्‍वर से आए ख़ुश ख़बरी बताकर प्रोत्साहित करना चाहते हैं। पैग़ाम स्वीकार करनेवालों के ज़िंदगी में यह सामान्यतः मनुष्यजाति को दिए गए सबसे बढ़िया आशा, राज्य की आशा जो पृथ्वी पर फिर से परादीस लाएगा, से भरता है। अगर लोग इसे स्वीकार नहीं करते, हम आनंद मनाते रहेंगे क्योंकि हमें आशा है। ध्यान नहीं देनेवाले खोनेवाले हैं; हम नहीं।—२ कुरिन्थियों ४:३, ४.

२१. क्या क़रीब है, और हमारी आशा को हम ने कैसे मुल्यांकन करना चाहिए?

२१ परमेश्‍वर का वादा है: “देख! मैं सब कुछ नया कर देता हूँ।” (प्रकाशितवाक्य २१:५) नया संसार अपनी सभी सम्मोहक और अंतहीन आशिषों के साथ क़रीब है। हमारी आशा—स्वर्ग में या इस परादीस पृथ्वी पर जिंदगी—बेशक़ीमत है; उसे डटकर थामना। इन संकटपूर्ण आख़री दिनों में, पहले से कहीं ज़्यादा, उसे “हमारे प्राण के लिए लंगर, स्थिर और दृढ़” मानना चाहिए। यहोवा, “सनातन चट्टान—युगों का चट्टान” में हमारी आशा बाँधे हुए, हमें अब बेशक हमारे सामने निश्‍चित किए हुए “आशा में आनंदित रहने” की दृढ़ और उल्लिसत कारण हैं।—इब्रानियों ६:१९; यशायाह २६:४, दी एम्‌प्लिफ़ाइड बाइबल.

[फुटनोट]

a १९९२ के दौरान, संसार भर के यहोवा के गवाहों का वार्षिक पाठ है: “आशा में आनंदित रहो. . . . प्रार्थना में नित्य लगे रहो।”—रोमियों १२:१२.

समीक्षा के लिए सवाल

▫ मानवजाति की महान आशा क्या है?

▫ सच्चा हर्ष क्या है?

▫ अरमगिदोन के बचनेवालों का चमत्कारिक चंगाई संभवतः कब होगी?

▫ क्यों हमने ज़िंदगी के बोझ को हमारी आशा एक ओर हटाने देना नहीं चाहिए?

▫ नए संसार में आप किस तरह के हर्ष की प्रतीक्षा उत्सुकता से करते हैं?

[पेज 17 पर तसवीरें]

यीशु ने प्रदर्शित किया हुआ चंगाई का गवाह होने से क्या आपका दिल हर्ष से भर नहीं जाता?

[पेज 18 पर तसवीरें]

राज्य में आनंद मनानेवाले अपनी आशा बाँटने से दूसरों को प्रोत्साहित करते हैं

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