संसार में लेकिन उसका भाग नहीं
“इस कारण कि तुम संसार के नहीं, . . . संसार तुम से बैर रखता है।”—यूहन्ना १५:१९.
१. मसीहियों का संसार के साथ क्या नाता है, फिर भी संसार उन्हें किस नज़र से देखता है?
अपने शिष्यों के साथ अपनी आख़िरी रात को यीशु ने उनसे कहा: “तुम संसार के नहीं।” वह किस संसार की बात कर रहा था? क्या उसने पहले भी एक बार नहीं कहा था: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए”? (यूहन्ना ३:१६) यह बिलकुल साफ़ है कि शिष्य उस संसार का भाग थे क्योंकि अनंत जीवन के लिए यीशु में विश्वास करनेवाले वे पहले थे। तो फिर, यीशु ने क्यों कहा कि उसके शिष्य संसार से अलग थे? और उसने ऐसा भी क्यों कहा: “इस कारण कि तुम संसार के नहीं, . . . इसी लिये संसार तुम से बैर रखता है”?—यूहन्ना १५:१९.
२, ३. (क) मसीहियों को किस “संसार” का भाग नहीं होना था? (ख) बाइबल उस “संसार” के बारे में क्या कहती है जिसके भाग मसीही नहीं हैं?
२ इसका जवाब यह है कि शब्द “संसार” (यूनानी, कॉसमॉस) को बाइबल अलग-अलग तरीक़े से इस्तेमाल करती है। जैसे पिछले लेख में समझाया गया, बाइबल में “संसार” कभी-कभी सामान्य रूप से मनुष्यजाति को सूचित करता है। यही वह संसार है जिससे परमेश्वर ने प्रेम रखा और जिसके लिए यीशु मरा। लेकिन, दी ऑक्सफ़र्ड हिस्ट्री ऑफ़ क्रिस्चियानिटी कहती है: “ईसाइयों में शब्द ‘संसार’ कुछ ऐसी चीज़ के लिए भी इस्तेमाल होता है जो परमेश्वर से दूर है और उसके विरोध में है।” यह कैसे सही है? कैथोलिक लेखक रॉलाँ मिनॆरात, अपनी पुस्तक ले क्रेत्याँ ए लॆ माँड (मसीही और संसार) में समझाता है: “नकारात्मक अर्थ में लिया जाए, तो संसार को एक ऐसा क्षेत्र समझा जाता है . . . जहाँ सरकारें परमेश्वर के विरुद्ध अपने कार्य करती हैं और जो मसीह के विजयी शासन का विरोध करने के द्वारा एक शत्रु साम्राज्य बनती हैं जो शैतान की मुट्ठी में हैं।” यह “संसार” मनुष्यों का जनसमूह है जो परमेश्वर से दूर है। सच्चे मसीही इस संसार के भाग नहीं हैं और इस कारण यह उनसे बैर रखता है।
३ पहली सदी के आख़िरी भाग में, यूहन्ना के मन में यही संसार था जब उसने लिखा: “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है।” (१ यूहन्ना २:१५, १६) उसने यह भी लिखा: “हम जानते हैं, कि हम परमेश्वर से हैं, और सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (१ यूहन्ना ५:१९) ख़ुद यीशु ने शैतान को “इस जगत का सरदार” कहा।—यूहन्ना १२:३१; १६:११.
विश्व-शक्तियों का उदय
४. विश्व-शक्तियाँ अस्तित्व में कैसे आयीं?
४ अब मौजूदा मनुष्यजाति का संसार जो परमेश्वर से दूर है, नूह के दिन के जलप्रलय के थोड़े समय बाद से ही विकसित होने लगा, जब नूह के अनेक वंशजों ने यहोवा परमेश्वर की उपासना करना छोड़ दिया। उन आरंभिक दिनों में प्रमुख था निम्रोद, जो एक शहर बसानेवाला और “यहोवा की दृष्टि [“के विरोध,” NW] में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला” था। (उत्पत्ति १०:८-१२) उन दिनों में इस संसार के अधिकतर भाग छोटे-छोटे शहरी-राज्यों में संगठित थे, जो समय-समय पर गठबंधन करते और एक दूसरे पर धावा बोल देते थे। (उत्पत्ति १४:१-९) कुछ शहरी-राज्य दूसरों पर क़ब्ज़ा कर प्रांतीय शक्तियाँ बन गए। कुछ प्रांतीय शक्तियाँ आहिस्ते-आहिस्ते बढ़कर महा विश्व-शक्तियाँ बन गईं।
५, ६. (क) बाइबल इतिहास की सात विश्व-शक्तियाँ कौन-सी हैं? (ख) इन विश्व-शक्तियों का चित्रण कैसे किया गया है और उन्हें उनकी सामर्थ कहाँ से मिलती है?
५ निम्रोद की लीक पर चलते हुए, विश्व-शक्तियों के शासकों ने यहोवा की उपासना नहीं की। यह हक़ीक़त उनके ज़ालिम, हिंसक कार्यों में दिखायी दी। इन विश्व-शक्तियों को शास्त्र में जंगली पशुओं द्वारा चित्रित किया गया है और सदियों के दौरान, बाइबल छः जंगली पशुओं की पहचान कराती है जिनका यहोवा के लोगों पर एक शक्तिशाली प्रभाव था। ये थे मिस्र, अराम, बाबुल, मादी-फारस, यूनान और रोम। रोम के बाद, यह भविष्यवाणी की गयी कि एक सातवीं विश्व-शक्ति का उदय होगा। (दानिय्येल ७:३-७; ८:३-७, २०, २१; प्रकाशितवाक्य १७:९, १०) यह आंग्ल-अमरीकी विश्व-शक्ति थी, जो ब्रिटिश साम्राज्य और उसके संगी अमरीका के साथ बनी थी। आहिस्ते-आहिस्ते, अमरीका ने ब्रिटॆन को पीछे छोड़ दिया। रोमी साम्राज्य की आख़िरी निशानी के ग़ायब हो जाने के बाद ब्रिटिश साम्राज्य विकसित होने लगा।a
६ एक के बाद एक आनेवाली सात विश्व-शक्तियों को प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में सात सिरवाले जंगली पशु के सिर द्वारा चित्रित किया गया है। यह पशु मनुष्यजाति के बौखलाए हुए समुद्र में से निकलता है। (यशायाह १७:१२, १३; ५७:२०, २१; प्रकाशितवाक्य १३:१) इस शासन करनेवाले पशु को उसकी सामर्थ कौन देता है? बाइबल जवाब देती है: “उस अजगर ने अपनी सामर्थ, और अपना सिंहासन, और बड़ा अधिकार, उसे दे दिया।” (प्रकाशितवाक्य १३:२) वह अजगर शैतान अर्थात् इब्लीस के अलावा और कोई नहीं है।—लूका ४:५, ६; प्रकाशितवाक्य १२:९.
परमेश्वर के राज्य का आनेवाला शासन
७. मसीही किस की आशा करते हैं और यह संसार की सरकारों के साथ उनके रिश्ते को कैसे प्रभावित करती है?
७ क़रीब २,००० साल से, मसीहियों ने दुआ माँगी है: “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती ६:१०) यहोवा के साक्षी जानते हैं कि सिर्फ़ परमेश्वर का राज्य ही धरती पर असली शांति ला सकता है। बाइबल भविष्यवाणी को निकटता से देखनेवालों की हैसियत से, वे क़ायल हैं कि इस दुआ को जल्द ही क़बूल किया जाएगा और थोड़े ही समय में यह राज्य धरती की बागडोर को अपने हाथ में ले लेगा। (दानिय्येल २:४४) इस राज्य के प्रति उनका लगे रहना संसार की सरकारों के मसलों से उन्हें तटस्थ कर देता है।
८. जैसे कि भजन २ में पूर्वबताया गया था, सरकारें परमेश्वर के राज्य के शासन के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाती हैं?
८ कुछ राष्ट्र धार्मिक सिद्धांतों का पालन करने का दावा करते हैं। फिर भी, अपने कार्यों में वे इस हक़ीक़त को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं कि यहोवा विश्व सर्वसत्ताधारी है और उसने यीशु को इस पृथ्वी पर अधिकार के साथ स्वर्गीय राजा के रूप में सिंहासनारूढ़ किया है। (दानिय्येल ४:१७; प्रकाशितवाक्य ११:१५) एक भविष्यसूचक भजन कहता है: “यहोवा के और उसके अभिषिक्त [यीशु] के विरुद्ध पृथ्वी के राजा मिलकर, और हाकिम आपस में सम्मति करके कहते हैं, कि आओ, हम उनके बन्धन तोड़ डालें, और उनकी रस्सियों को अपने ऊपर से उतार फेंके।” (भजन २:२, ३) सरकारें ऐसे कोई ईश्वरीय “बन्धन” या ‘रस्सियाँ’ स्वीकार नहीं करतीं जो राष्ट्रीय सर्वसत्ता के उनके कार्यों को सीमित करें। इसलिए, यहोवा अपने चुने हुए राजा, यीशु से कहता है: “मुझ से मांग, और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्पति होने के लिये, और दूर दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूंगा। तू उन्हें लोहे के डण्डे से टुकड़े टुकड़े करेगा, तू कुम्हार के बर्तन की नाईं उन्हें चकना चूर कर डालेगा।” (भजन २:८, ९) लेकिन, मनुष्यजाति के उस संसार को जिसके लिए यीशु मरा, पूरी तरह “चकना चूर” नहीं किया जाएगा।—यूहन्ना ३:१७.
“पशु” की “छाप” से दूर रहो
९, १०. (क) प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में हमें किस के बारे में आगाह किया गया है? (ख) ‘पशु की छाप’ लेने के द्वारा क्या चित्रित किया जाता है? (ग) परमेश्वर के सेवक कौन-सी छाप लेते हैं?
९ प्रेरित यूहन्ना द्वारा प्राप्त प्रकटीकरण ने आगाह किया कि मनुष्यजाति का वह संसार जो परमेश्वर से दूर है, अपने अंत से थोड़े ही समय पहले बढ़ती हुई माँगें रखेगा, कि “छोटे, बड़े, धनी, कंगाल, स्वतंत्र, दास सब के दहिने हाथ या उन के माथे पर एक एक छाप करा [दे] कि उस को छोड़ जिस पर छाप . . . हो, और कोई लेन देन न कर सके।” (प्रकाशितवाक्य १३:१६, १७) इसका मतलब क्या है? दाहिने हाथ पर छाप सक्रिय समर्थन का एक उपयुक्त चिन्ह है। माथे पर छाप का क्या? दी एक्स्पॉज़िटर्स ग्रीक टॆस्टमॆंट कहती है: “यह अति लाक्षणिक संकेत सैनिकों और दासों को एक सुस्पष्ट गोदाई या ब्रांड से चिन्हित करने की आदत की ओर; या और भी प्रभावी, परमेश्वर के नाम को एक तिलस्म के रूप में पहनने की धार्मिक रस्म की ओर इशारा करता है।” अनेक मनुष्य अपने कार्यों और शब्दों से लाक्षणिक रूप में इस छाप को पहनते हैं और उस “पशु” के “दासों” या “सैनिकों” के रूप में अपनी पहचान कराते हैं। (प्रकाशितवाक्य १३:३, ४) जहाँ तक उनके भविष्य का सवाल है, थिओलॉजिकल डिक्शनरी ऑफ़ द न्यू टॆस्टमॆंट कहती है: “परमेश्वर के शत्रु पशु की [छाप को], अर्थात् उस रहस्यमय संख्या को जिसमें उसका नाम है, अपने माथे और एक हाथ पर लगाने देते हैं। यह उन्हें आर्थिक और व्यावसायिक प्रगति के बड़े-बड़े अवसर देता है, लेकिन उन पर परमेश्वर का क्रोध लाता है और उन्हें हज़ार-वर्षीय राज्य से वर्जित करता है, प्रका. १३:१६; १४:९; २०:४।”
१० ‘उस छाप’ को प्राप्त करने के दबाव का विरोध करने के लिए अधिकाधिक साहस और धीरज लगता है। (प्रकाशितवाक्य १४:९-१२) लेकिन, परमेश्वर के सेवकों के पास ऐसी ताक़त है और इसलिए अकसर उनसे बैर रखा जाता है और उन्हें बुरा-भला कहा जाता है। (यूहन्ना १५:१८-२०; १७:१४, १५) उस पशु की छाप को लेने के बजाय, यशायाह ने कहा कि वे लोग लाक्षणिक रूप से अपने हाथ पर लिख लेंगे, “मैं यहोवा का हूं।” (यशायाह ४४:५) इसके अलावा, क्योंकि वे धर्मत्यागी धर्मों द्वारा किए गए घृणास्पद कार्यों पर “सांसें भरते और दुःख के मारे चिल्लाते हैं,” वे अपने माथे पर एक लाक्षणिक छाप प्राप्त करते हैं जो उनकी पहचान ऐसे लोगों के रूप में कराती है जो बख़्श दिए जानेलायक़ हैं जब यहोवा के न्यायदंड की तामील की जाती है।—यहेजकेल ९:१-७.
११. कौन मानवी सरकारों को तब तक शासन करने की इजाज़त देता है जब तक कि परमेश्वर का राज्य पृथ्वी का शासन अपने हाथों में लेने के लिए नहीं आ जाता?
११ परमेश्वर मानवी सरकारों को तब तक शासन करने देता है जब तक मसीह का स्वर्गीय राज्य इस पृथ्वी के शासन को पूरी तरह से अपने हाथों में नहीं ले लेता। इस ईश्वरीय सहनशीलता के बारे में प्रॉफ़ॆसर ऑस्कर कुलमान अपनी पुस्तक द स्टेट इन द न्यू टॆस्टमॆंट में ज़िक्र करता है। वह लिखता है: “राष्ट्रों के अस्थायी रूप की जटिल धारणा के कारण ही उनके प्रति आरंभिक मसीहियों का दृष्टिकोण स्थायी नहीं है। लेकिन यह दृष्टिकोण इसके विपरीत लगता है। मैं फिर एक बार कहता हूँ, कि ऐसा लगता है। इसे समझाने के लिए केवल रोमियों १३:१, ‘हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे . . . ’ और प्रकाशितवाक्य १३ का ज़िक्र करना ही काफ़ी है: राष्ट्र अथाह कुंड के पशु हैं।”
“पशु” और “कैसर”
१२. मानवी सरकारों के बारे में यहोवा के साक्षियों का कौन-सा संतुलित दृष्टिकोण है?
१२ यह निष्कर्ष निकालना ग़लत होगा कि सरकारी अधिकार के सभी मनुष्य शैतान के हाथ की कठपुतलियाँ हैं। अनेक लोगों ने ख़ुद को एक सिद्धांतवाला व्यक्ति साबित किया है, जैसे कि सूबेदार सिरगियुस पौलुस जिसका वर्णन बाइबल में “बुद्धिमान पुरुष” के रूप में किया गया है। (प्रेरितों १३:७) कुछ शासकों ने हिम्मत के साथ अल्पमतवालों के अधिकारों की हिफ़ाज़त की है और अपने परमेश्वर-प्रदत्त विवेक द्वारा मार्गदर्शित हुए हैं, हालाँकि वे यहोवा और उसके उद्देश्यों को नहीं जानते। (रोमियों २:१४, १५) याद रखिए, बाइबल शब्द “संसार” को दो विपरीत तरीक़ों में इस्तेमाल करती है: मनुष्यजाति का संसार, जिससे परमेश्वर प्रेम करता है और जिससे हमें प्रेम करना चाहिए और यहोवा से दूर मनुष्यों का संसार, जिसका ईश्वर शैतान है और जिससे हमें अलग रहना है। (यूहन्ना १:९, १०; १७:१४; २ कुरिन्थियों ४:४; याकूब ४:४) इस प्रकार, यहोवा के सेवक मानवी शासन के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण रखते हैं। हम राजनैतिक मामलों में तटस्थ हैं क्योंकि हम परमेश्वर के राज्य के राजदूतों के रूप में काम करते हैं और हमारा जीवन परमेश्वर के लिए समर्पित है। (२ कुरिन्थियों ५:२०) दूसरी ओर, अधिकारवालों के प्रति हम ज़िम्मेदारी से अधीनता दिखाते हैं।
१३. (क) यहोवा मानवी सरकारों को किस नज़र से देखता है? (ख) मानवी सरकारों के प्रति मसीही अधीनता किस हद तक होती है?
१३ यह संतुलित तरीक़ा यहोवा परमेश्वर का अपना दृष्टिकोण दिखाता है। जब विश्व-शक्तियाँ या छोटे-छोटे देश भी अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हैं, अपने लोगों का दमन करते हैं, या परमेश्वर की उपासना करनेवालों को सताते हैं, तो वाक़ई वे डरावने पशुओं के अपने भविष्यसूचक वर्णन पर ठीक बैठते हैं। (दानिय्येल ७:१९-२१; प्रकाशितवाक्य ११:७) बहरहाल, जब राष्ट्रीय सरकारें न्याय के साथ क़ानून और व्यवस्था बनाए रखने में परमेश्वर का उद्देश्य पूरा करती हैं, तो वह उन्हें अपने “[जन] सेवक” समझता है। (रोमियों १३:६) यहोवा अपने लोगों से अपेक्षा करता है कि मानवी सरकारों का आदर करें और उनके अधीन रहें, लेकिन उनकी अधीनता बेलगाम नहीं है। जब मनुष्य परमेश्वर के सेवकों से ऐसी चीज़ों की माँग करते हैं जो परमेश्वर के नियम के अनुसार वर्जित हैं, या जब वे ऐसी चीज़ों को वर्जित करते हैं जिन्हें करने की माँग परमेश्वर अपने सेवकों से करता है, तो उसके सेवक प्रेरितों द्वारा ली गयी स्थिति अपनाते हैं, अर्थात्: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”—प्रेरितों ५:२९.
१४. यीशु और पौलुस ने मानवी सरकारों के प्रति मसीही अधीनता को कैसे समझाया?
१४ यीशु ने कहा कि उसके शिष्यों पर सरकारों और परमेश्वर, दोनों की बाध्यताएँ होंगी जब उसने बताया: “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” (मत्ती २२:२१) प्रेरित पौलुस ने प्रेरणा पाकर लिखा: “हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे; . . . परन्तु यदि तू बुराई करे, तो डर; क्योंकि वह तलवार व्यर्थ लिए हुए नहीं और परमेश्वर का सेवक है; कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे। इसलिये आधीन रहना न केवल उस क्रोध से परन्तु डर से अवश्य है, बरन विवेक भी यही गवाही देता है। इसलिये कर भी दो।” (रोमियों १३:१, ४-६) सा.यु. पहली सदी से आज तक, मसीहियों को राष्ट्र द्वारा की गयी माँगों का सामना करना पड़ा है। उन्हें यह समझने की ज़रूरत रही है कि क्या उन माँगों को पूरा करना उनकी उपासना से बेवफ़ाई करने की ओर तो नहीं ले जाएगा या क्या ऐसी माँगें वैध हैं और उन्हें ज़िम्मेदारी से पूरा किया जाना है या नहीं।
ज़िम्मेदार नागरिक
१५. यहोवा के साक्षी जिसके वे क़र्ज़दार उसे कैसर को ज़िम्मेदारी से कैसे देते हैं?
१५ राजनैतिक ‘प्रधान अधिकारी’ परमेश्वर के “सेवक” होते हैं जब वे अपने परमेश्वर अनुमोदित भूमिका को अदा करते हैं, जिसमें अधिकारी का “कुकर्मियों को दण्ड [देना] और सुकर्मियों की प्रशंसा” करना शामिल है। (१ पतरस २:१३, १४) यहोवा के सेवक ज़िम्मेदार ढंग से कैसर को वह चीज़ देते हैं जो वह कर के रूप में वैध रूप से माँगता है और “हाकिमों और अधिकारियों के आधीन [रहने] . . . और हर एक अच्छे काम के लिये तैयार” रहने में वे उस हद तक कार्य करते हैं जिस हद तक उनका बाइबल-प्रशिक्षित अंतःकरण उन्हें करने देता है। (तीतुस ३:१) “अच्छे काम” में दूसरों की मदद करना शामिल है, जैसे उस वक़्त जब आपत्ति आती है। अनेक लोगों ने इन स्थितियों में संगी मनुष्यों के प्रति यहोवा के साक्षियों द्वारा दिखायी गयी कृपा के बारे में गवाही दी है।—गलतियों ६:१०.
१६. यहोवा के साक्षी ज़िम्मेदार ढंग से सरकारों और संगी मनुष्यों के लिए कौन-से भलाई के काम करते हैं?
१६ यहोवा के साक्षी अपने संगी मनुष्य से प्रेम करते हैं। वे जानते हैं कि सबसे लाभदायक काम जो वे उनके लिए कर सकते हैं, वह है धार्मिक “नए आकाश और नई पृथ्वी” लाने के परमेश्वर के उद्देश्य का सही-सही ज्ञान लेने में उनकी मदद करना। (२ पतरस ३:१३) वे बाइबल के उच्च नैतिक सिद्धांतों को सिखाते हैं और उनका पालन करते हैं। ऐसा करने के द्वारा, वे मानव समाज के लिए एक देन साबित होते हैं क्योंकि वे अनेक लोगों को अपराध करने से बचाते हैं। यहोवा के साक्षी नियम का पालन करनेवाले और सरकारी अधिकारियों, अफ़सरों, न्यायधीशों और शहर अधिकारियों का आदर करनेवाले लोग हैं। वे उनका आदर करते हैं “[जिन]का आदर करना चाहिए।” (रोमियों १३:७) ऐसे माता-पिता जो साक्षी हैं, ख़ुशी-ख़ुशी अपने बच्चों के स्कूलटीचरों को सहयोग देते हैं और अच्छी तरह से पढ़ाई करने में अपने बच्चों की मदद करते हैं, ताकि आगे जाकर वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें और समाज पर बोझ न बनें। (१ थिस्सलुनीकियों ४:११, १२) अपनी कलीसियाओं में, साक्षी जातीय पूर्वधारणा और वर्ग भेद का विरोध करते हैं और वे पारिवारिक जीवन को मज़बूत बनाने पर बहुत महत्त्व देते हैं। (प्रेरितों १०:३४, ३५; कुलुस्सियों ३:१८-२१) इस प्रकार, अपने कार्यों से वे दिखाते हैं कि उन पर लगे परिवार-विरोधी या समाज के लिए असहायक होने के इलज़ाम झूठे हैं। सो, प्रेरित पतरस के शब्द सच साबित होते हैं: “क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है, कि तुम भले काम करने से निर्बुद्धि लोगों की अज्ञानता की बातों को बन्द कर दो।”—१ पतरस २:१५.
१७. मसीही “बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव” कैसे करते रह सकते हैं?
१७ सो, जबकि मसीह के असली अनुयायी ‘संसार के नहीं’ हैं, फिर भी वे मानवी समाज के संसार में अब भी मौजूद हैं और उन्हें “बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव” करना है। (यूहन्ना १७:१६; कुलुस्सियों ४:५) जब तक यहोवा प्रधान अधिकारियों को अपने सेवक के रूप में काम करने देता है, हम उनके लिए उचित आदर दिखाएँगे। (रोमियों १३:१-४) राजनीति के सिलसिले में तटस्थ रहते हुए, हम “राजाओं और सब ऊंचे पदवालों” के लिए दुआ माँगते हैं, ख़ासकर जब उन्हें ऐसे फ़ैसले करने पड़ते हैं जो उपासना करने की आज़ादी को प्रभावित कर सकते हैं। हम ऐसा करना जारी रखेंगे “इसलिये कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति और गम्भीरता से जीवन बिताएं,” ताकि “सब [प्रकार के] मनुष्यों का उद्धार हो।”—१ तीमुथियुस २:१-४.
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक प्रकाशितवाक्य—इसकी महान पराकाष्ठा निकट (अंग्रेज़ी), अध्याय ३५ देखिए।
पुनर्विचार के सवाल
◻ मसीही किस “संसार” का भाग हैं, लेकिन वे किस “संसार” का भाग नहीं हो सकते?
◻ व्यक्ति के हाथ या माथे पर “पशु” की ‘उस छाप’ द्वारा क्या चित्रित होता है और यहोवा के वफ़ादार सेवकों के पास कौन-सी छाप है?
◻ मानव सरकारों के प्रति सच्चे मसीहियों का कौन-सा संतुलित दृष्टिकोण है?
◻ ऐसे कौन-से कुछ तरीक़े हैं जिनमें यहोवा के साक्षी मानव समाज के हित में योग देते हैं?
[पेज 16 पर तसवीरें]
बाइबल मानव सरकारों की पहचान परमेश्वर के सेवक और एक जंगली पशु, दोनों के रूप में कराती है
[पेज 17 पर तसवीर]
दूसरों के प्रति प्रेमपूर्ण चिंता दिखाने के कारण, यहोवा के साक्षी अपने समाज के लिए एक देन हैं