अधिकार के बारे में मसीही दृष्टिकोण
“कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो।”—रोमियों १३:१.
१. यह क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा सर्वोच्च अधिकारी है?
अधिकार सृष्टिकर्तृत्व से जुड़ा हुआ है। वह सर्वोच्च व्यक्ति जो, सजीव और निर्जीव, सारी सृष्टि को अस्तित्व में लाया, यहोवा परमेश्वर है। वह अविवाद्य रूप से सर्वोच्च अधिकारी है। सच्चे मसीहियों की भावनाएँ भी स्वर्गीय प्राणियों की भावनाओं के समान हैं, जो घोषणा करते हैं: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।”—प्रकाशितवाक्य ४:११.
२. प्रारंभिक मानवी शासकों ने एक अर्थ में कैसे स्वीकार किया कि उनके पास अपने संगी मनुष्यों पर प्रभुता करने का कोई स्वाभाविक अधिकार नहीं था, और यीशु ने पुन्तियुस पीलातुस से क्या कहा?
२ यह दावा करने के द्वारा कि वे एक ईश्वर हैं, या एक ईश्वर के प्रतिनिधि हैं, अनेक प्रारंभिक मानवी शासकों ने अपने अधिकार को वैध बनाने की कोशिश की। यह तथ्य ही इस बात की मौन स्वीकृति था, कि किसी मनुष्य के पास दूसरे मनुष्यों पर शासन करने का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है।a (यिर्मयाह १०:२३) अधिकार का एकमात्र न्यायसंगत स्रोत यहोवा परमेश्वर है। मसीह ने यहूदिया के रोमी हाकिम, पुन्तियुस पीलातुस से कहा: “यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता।”—यूहन्ना १९:११.
“कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो”
३. “प्रधान अधिकारियों” के बारे में प्रेरित पौलुस ने क्या कहा, और यीशु और पौलुस के कथन कौन-से सवाल उठाते हैं?
३ प्रेरित पौलुस ने रोमी साम्राज्य के शासन के अधीन जी रहे मसीहियों को लिखा: “हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं।” (रोमियों १३:१) यीशु का मतलब क्या था जब उसने कहा कि पीलातुस का अधिकार उसे “ऊपर से” दिया गया था? और पौलुस ने किस तरह समझा कि उसके समय के राजनैतिक अधिकारी परमेश्वर द्वारा ठहराए गए थे? क्या उनका मतलब था कि यहोवा इस संसार के प्रत्येक राजनैतिक शासक की नियुक्ति के लिए व्यक्तिगत रूप से ज़िम्मेदार है?
४. यीशु और पौलुस ने शैतान को क्या पुकारा, और शैतान के कौन-से दावे का यीशु ने इनकार नहीं किया?
४ यह कैसे हो सकता था, जबकि यीशु ने शैतान को “इस जगत का सरदार,” कहा और प्रेरित पौलुस ने उसे “इस संसार के ईश्वर” का नाम दिया? (यूहन्ना १२:३१; १६:११; २ कुरिन्थियों ४:४) इसके अतिरिक्त, यीशु की परीक्षा लेते वक्त, शैतान ने उसे ‘जगत के सारे राज्यों’ पर “अधिकार” प्रस्तुत किया। उसने दावा किया कि यह अधिकार उसे सौंपा गया था। यीशु ने उसके प्रस्ताव को ठुकराया, लेकिन उसने इस बात से इनकार नहीं किया कि ऐसा अधिकार शैतान दे सकता था।—लूका ४:५-८.
५. (क) मानवी अधिकार के बारे में यीशु और पौलुस के शब्दों को हमें कैसे समझना चाहिए? (ख) किस अर्थ में प्रधान अधिकारी “परमेश्वर के ठहराए हुए हैं”?
५ शैतान ने बग़ावत की, और वह आदम और हव्वा को प्रलोभित करके उनके द्वारा यहोवा की सर्वसत्ता के विरुद्ध बग़ावत करवाने का कारण बना। ऐसा करने के बाद उसे जीने की अनुमति देने के द्वारा यहोवा ने शैतान को इस संसार का शासकत्व सौंप दिया। (उत्पत्ति ३:१-६; साथ ही निर्गमन ९:१५, १६ से तुलना कीजिए।) इसलिए, यीशु और पौलुस के शब्दों का यह मतलब होना चाहिए कि अदन में पहले मानव दंपति द्वारा ईशतंत्र या परमेश्वर-शासन को ठुकराने के बाद, यहोवा ने विरक्त मनुष्यों को अधिकार व्यवस्थाएँ बनाने की अनुमति दी, जो उन्हें एक सुव्यवस्थित समाज में रहने देतीं। कभी-कभी, अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए, यहोवा ने कुछ शासकों अथवा सरकारों को गिरवाया है। (दानिय्येल २:१९-२१) दूसरों को उसने सत्ता में रहने दिया है। जिन शासकों का अस्तित्व यहोवा बरदाश्त करता है, उनके बारे में कहा जा सकता है, कि वे “परमेश्वर के ठहराए हुए हैं।”
प्रारंभिक मसीही और रोमी अधिकारी
६. रोमी अधिकारियों के प्रति प्रारंभिक मसीहियों का क्या दृष्टिकोण था, और क्यों?
६ प्रारंभिक मसीही यहूदी पंथों के साथ नहीं मिले। इन पंथों ने उन रोमियों के विरुद्ध षड्यंत्र रचा और लड़ाई की जिन्होंने इस्राएल पर कब्ज़ा किया हुआ था। जिस हद तक रोमी अधिकारी अपनी विधिबद्ध क़ानूनी व्यवस्था से ज़मीन और समुद्र पर व्यवस्था बनाए रखते; अनेक उपयोगी कृत्रिम जल-प्रणालों, सड़कों, और पुलों का निर्माण करते; और सामान्य रूप से जन हित के लिए काम करते थे, मसीही उन्हें ‘अपनी भलाई के लिए परमेश्वर का सेवक’ मानते थे। (रोमियों १३:३, ४) क़ानून और व्यवस्था ने एक ऐसा वातावरण उत्पन्न किया जिससे मसीही लोग यीशु की आज्ञानुसार सब जगह सुसमाचार प्रचार कर सके। (मत्ती २८:१९, २०) बिल्कुल साफ अंतःकरण से वे रोमियों द्वारा लगाए गए महसूल दे सकते थे, चाहे उसमें से कुछ पैसा ऐसे उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल हो जो परमेश्वर द्वारा स्वीकृत नहीं थे।—रोमियों १३:५-७.
७, ८. (क) रोमियों १३:१-७ का ध्यानपूर्ण पठन क्या प्रकट करता है, और संदर्भ क्या दिखाता है? (ख) कौन-से हालातों में रोमी अधिकारी “परमेश्वर के सेवक” के रूप में काम नहीं करते थे, और इस मामले में प्रारंभिक मसीहियों ने कौन-सा रवैया अपनाया?
७ रोमियों के १३वें अध्याय की पहली सात आयतों का ध्यानपूर्ण पठन प्रकट करता है कि राजनैतिक “प्रधान अधिकारी” अच्छा काम करनेवालों की प्रशंसा करने और बुराई का अभ्यास करने वालों को दण्ड देने के लिए “परमेश्वर के सेवक” थे। संदर्भ दिखाता है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा इसे प्रधान अधिकारी नहीं, बल्कि परमेश्वर निर्धारित करता है। इसलिए, अगर रोमी सम्राट या कोई अन्य राजनैतिक अधिकारी ऐसी बातों की माँग करता था जिसे परमेश्वर ने निषिद्ध किया था, या उसके विपरीत, ऐसी बातों को निषिद्ध करता था जिसकी परमेश्वर माँग करता था, तो फिर वह परमेश्वर के एक सेवक के रूप में काम नहीं करता था। यीशु ने कहा: “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” (मत्ती २२:२१) अगर रोमी सरकार ऐसी बातों की माँग करती थी जो परमेश्वर की थीं, जैसे कि उपासना या एक व्यक्ति का जीवन, तो सच्चे मसीही प्रेरितिक सलाह का अनुकरण करते थे: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”—प्रेरितों ५:२९.
८ प्रारंभिक मसीहियों द्वारा सम्राट उपासना और मूर्तिपूजा का अभ्यास करने, उनकी मसीही सभाओं को त्यागने, और सुसमाचार का प्रचार करना बंद करने से इनकार करना सताहट लाया। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि पौलुस की हत्या सम्राट नीरो की आज्ञा पर हुई थी। दूसरे सम्राटों, विशेष रूप से डामिशन, मारकस ऑरिलियस, सेप्टिमियुस सेवारुस, डेशीयस, और डायक्लीशन ने भी प्रारंभिक मसीहियों को सताया। जब इन सम्राटों और इनके अधीनस्थ अधिकारियों ने मसीहियों को सताया, तब वे निश्चित ही ‘परमेश्वर के सेवक’ के रूप में काम नहीं कर रहे थे।
९. (क) राजनैतिक प्रधान अधिकारियों के बारे में अभी-भी क्या सच है, और राजनैतिक पशु शक्ति और अधिकार किस से प्राप्त करता है? (ख) प्रधान अधिकारियों के प्रति मसीही अधीनता के बारे में तर्कसंगत रूप से क्या कहा जा सकता है?
९ यह सब स्पष्ट करता है कि जबकि राजनैतिक प्रधान अधिकारी कुछ बातों में एक व्यवस्थित मानव समाज को बनाए रखने के लिए ‘परमेश्वर के प्रबंध’ (NW) के रूप में कार्य करते हैं, फिर भी वे सांसारिक रीति-व्यवस्था का एक भाग ही हैं, जिसका ईश्वर शैतान है। (१ यूहन्ना ५:१९) वे उस विश्वव्यापी राजनैतिक संगठन का भाग हैं, जो प्रकाशितवाक्य १३:१, २ के “जंगली पशु” द्वारा चित्रित किया गया है। यह पशु अपनी शक्ति और अधिकार ‘बड़े अजगर,’ शैतान अर्थात् इब्लीस से प्राप्त करता है। (प्रकाशितवाक्य १२:९) इसलिए, तर्कसंगत रूप से, ऐसे अधिकारियों के प्रति मसीही अधीनता सापेक्षिक है, पूर्ण नहीं।—दानिय्येल ३:१६-१८ से तुलना कीजिए।
अधिकार के प्रति उचित आदर
१०, ११. (क) पौलुस ने कैसे दिखाया कि जो लोग अधिकार में हैं उनके प्रति हमें आदरपूर्ण होना चाहिए? (ख) “राजाओं और सब ऊंचे पदवालों” के लिए प्रार्थनाएँ कैसे और क्यों की जा सकती हैं?
१० बहरहाल, इसका यह मतलब नहीं है कि मसीहियों को राजनैतिक प्रधान अधिकारियों के प्रति निर्लज्ज, अवज्ञाकारी रवैया अपनाना चाहिए। यह सच है कि इनमें से अनेक लोग अपने निजी जीवन में या सार्वजनिक जीवन में भी विशेष रूप से आदर के योग्य नहीं हैं। फिर भी, प्रेरितों ने अपने उदाहरण और सलाह के द्वारा दिखाया कि जो लोग अधिकार में हैं उन के साथ आदर से व्यवहार करना चाहिए। जब पौलुस अगम्यागामी राजा हेरोदेस अग्रिप्पा II के सामने आया, तो उसने उसके साथ उचित आदर से बात की।—प्रेरितों २६:२, ३, २५.
११ पौलुस ने यहाँ तक कहा कि अपनी प्रार्थना में सांसारिक अधिकारियों का उल्लेख करना उचित है। ख़ासकर, जब उनसे ऐसे निर्णय करने के लिए अपील की जाती है, जो हमारी ज़िन्दगी और मसीही गतिविधियों पर असर करते हैं। उसने लिखा: “मैं सब से पहिले यह उपदेश देता हूं, कि बिनती, और प्रार्थना, और निवेदन, और धन्यवाद, सब मनुष्यों के लिए किए जाएं। राजाओं और सब ऊंचे पदवालों के निमित्त इसलिए कि हम विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति और गम्भीरता से जीवन बिताएं। यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर को अच्छा लगता, और भाता भी है। वह यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (१ तीमुथियुस २:१-४) ऐसे अधिकारियों के प्रति हमारे आदरपूर्ण रवैये के कारण शायद वे हमें “सब मनुष्यों” को बचाने की कोशिश करने के हमारे काम को और अधिक आज़ादी से करने की अनुमति दें।
१२, १३. (क) पतरस ने अधिकार के सम्बन्ध में कौन-सी संतुलित सलाह दी? (ख) वे लोग जो यहोवा के गवाहों के विरुद्ध पूर्वधारणा उत्पन्न करते हैं ऐसे “निर्बुद्धि लोगों की अज्ञानता की बातों” का हम किस तरह प्रतिकार कर सकते हैं?
१२ प्रेरित पतरस ने लिखा: “प्रभु के लिए मनुष्यों के ठहराए हुए हर एक प्रबन्ध के आधीन में रहो, राजा के इसलिए कि वह सब पर प्रधान है। और हाकिमों के, क्योंकि वे कुकर्मियों को दण्ड देने और सुकर्मियों की प्रशंसा के लिए उसके भेजे हुए हैं। क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है, कि तुम भले काम करने से निर्बुद्धि लोगों की अज्ञानता की बातों को बन्द कर दो। और अपने आप को स्वतंत्र जानो पर अपनी इस स्वतंत्रता को बुराई के लिए आड़ न बनाओ, परन्तु अपने आप को परमेश्वर के दास समझकर चलो। सब का आदर करो, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्वर से डरो, राजा का सम्मान करो।” (१ पतरस २:१३-१७) क्या ही संतुलित सलाह! हम परमेश्वर के दास होने के नाते उसके प्रति पूर्ण अधीनता दिखाने के लिए बाध्य हैं, और हम कुकर्म करनेवालों को दण्ड देने के लिए भेजे गए राजनैतिक अधिकारियों के प्रति सापेक्षिक और आदरपूर्ण अधीनता दिखाते हैं।
१३ यह पाया गया है कि अनेक सांसारिक अधिकारियों को यहोवा के गवाहों के बारे में अति विचित्र ग़लतफ़हमियाँ हैं। सामान्य रूप से यह इसलिए है क्योंकि परमेश्वर के लोगों के विद्वेषी शत्रुओं द्वारा उन्हें ग़लत जानकारी दी गई है। या हो सकता है कि जो उन्हें पता है, उसे उन्होंने जनसंपर्क-माध्यमों से जाना है। ये माध्यम हमेशा निष्पक्ष बातें नहीं बताते हैं। कभी-कभी हम अपनी आदरपूर्ण मनोवृत्ति से और जहाँ संभव हो वहाँ, अधिकारियों को यहोवा के गवाहों के काम और विश्वासों के बारे में ठीक-ठीक वर्णन देने से इस पूर्वधारणा को मिटा सकते हैं। व्यस्त अफ़सरों के लिए यहोवा के गवाह बीसवीं शताब्दी में ब्रोशर एक संक्षिप्त व्याख्या देता है। ज़्यादा जानकारी के लिए, उन्हें यहोवा के गवाह—परमेश्वर के राज्य के उद्घोषक (अंग्रेज़ी) पुस्तक दी जा सकती है। यह एक उत्तम साधन है जो स्थानीय और राष्ट्रीय सार्वजनिक पुस्तकालयों में रखने योग्य है।
मसीही घरों में अधिकार
१४, १५. (क) एक मसीही घराने में अधिकार का आधार क्या है? (ख) मसीही पत्नियों की उनके पतियों के प्रति कैसी मनोवृत्ति होनी चाहिए, और क्यों?
१४ यह प्रत्यक्ष है कि अगर परमेश्वर मसीहियों से सांसारिक अधिकारियों को उचित आदर देने की माँग करता है, तो उसी प्रकार उन्हें मसीही घरानों में परमेश्वर द्वारा स्थापित अधिकार व्यवस्था का भी आदर करना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने मुखियापन के सिद्धान्त की संक्षिप्त रूप से रूपरेखा दी। यह सिद्धान्त यहोवा के लोगों के मध्य प्रचलित है। उसने लिखा: “मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है: और मसीह का सिर परमेश्वर है।” (१ कुरिन्थियों ११:३) यह ईशतंत्र, या परमेश्वर-शासन का सिद्धान्त है। इसमें क्या सम्मिलित है?
१५ ईशतंत्र के लिए आदर घर में शुरू होता है। एक मसीही पत्नी जो अपने पति के अधिकार के लिए उचित आदर नहीं दिखाती है—चाहे वह संगी विश्वासी हो या ना हो—वह ईश्वरशासित नहीं है। पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी: “मसीह के भय से एक दूसरे के आधीन रहो। हे पत्नियो, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्त्ता है। पर जैसे कलीसिया मसीह के आधीन है, वैसे ही पत्नियां भी हर बात में अपने अपने पति के आधीन रहें।” (इफिसियों ५:२१-२४) जैसे मसीही पुरुषों को मसीह के मुखियापन के अधीन होना है, वैसे ही मसीही स्त्रियों को उनके पतियों के परमेश्वर-प्रदत्त अधिकार की अधीनता में रहने की बुद्धिमानी को पहचानना चाहिए। यह उन्हें गहरी आंतरिक संतुष्टि, और उससे भी महत्त्वपूर्ण, यहोवा की आशीष लाएगा।
१६, १७. (क) मसीही घरों में पले हुए बच्चे किस तरह अपने आप को आज अनेक युवाओं से अलग दिखा सकते हैं, और उनके पास कौन-सी प्रेरणा है? (ख) आज युवाओं के लिए किस तरह यीशु एक अच्छा उदाहरण था, और क्या करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है?
१६ ईश्वरशासित बच्चे अपने माता-पिता को उचित आदर दिखाने में ख़ुश होते हैं। अन्तिम दिनों की युवा पीढ़ी के बारे में पूर्वबताया गया था कि वे “माता पिता की आज्ञा टालनेवाले” होंगे। (२ तीमुथियुस ३:१, २) लेकिन मसीही बच्चों को परमेश्वर का उत्प्रेरित वचन कहता है: “हे बालको, सब बातों में अपने अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है।” (कुलुस्सियों ३:२०) माता-पिताओं के अधिकार के लिए आदर, यहोवा को प्रसन्न करता है और उसकी आशीष लाता है।
१७ यह बात यीशु के उदाहरण से स्पष्ट होती है। लूका का वृत्तांत बताता है: “तब वह उन के [अपने माता पिता के] साथ गया, और नासरत में आया, और उन के वश में [अधीन, NW] रहा . . . और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया।” (लूका २:५१, ५२) यीशु उस वक्त १२ साल का था, और यहाँ प्रयुक्त यूनानी क्रिया ज़ोर देती है कि वह अपने माता-पिता के ‘अधीन रहा।’ सो उसका अधीनता-स्वीकरण उसके किशोरावस्था में प्रवेश करने पर समाप्त नहीं हुआ। अगर आप युवजन आध्यात्मिकता में और यहोवा तथा धर्म-परायण मनुष्यों के अनुग्रह में प्रगति करना चाहते हैं, तो आप अपने घर के अंदर और बाहर अधिकार के प्रति आदर दिखाएँगे।
कलीसिया में अधिकार
१८. मसीही कलीसिया का सिर कौन है, और उसने अधिकार किसे सौंपा है?
१८ मसीही कलीसिया में व्यवस्था की ज़रूरत के बारे में कहते हुए, पौलुस ने लिखा: “परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है। . . . सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार [या, “व्यवस्था के अनुसार,” NW फुटनोट] की जाएं।” (१ कुरिन्थियों १४:३३, ४०) मसीही कलीसिया के सिर, मसीह ने विश्वासी पुरुषों को अधिकार सौंपा है, ताकि सब बातें सुव्यवस्थित ढंग से हो सकें। हम पढ़ते हैं: “उस ने कितनों को प्रेरित नियुक्त करके, और कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त करके, और कितनों को सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त करके दे दिया। जिस से पवित्र लोग सिद्ध हो जाएं, और सेवा का काम किया जाए; . . . बरन प्रेम में सच्चाई से चलते हुए, सब बातों में उस में जो सिर है, अर्थात् मसीह में बढ़ते जाएं।”—इफिसियों ४:११, १२, १५.
१९. (क) मसीह ने अपनी सारी पार्थिव संपत्ति पर किसे नियुक्त किया है, और उसने ख़ास अधिकार किसे प्रदान किया है? (ख) मसीही कलीसिया में कैसा अधिकारों का प्रत्यायोजन होता है, और यह हमारी ओर से क्या माँग करता है?
१९ इस अन्त के समय में, मसीह ने सामूहिक “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को “अपनी सारी संपत्ति,” या पृथ्वी में राज्य हितों पर नियुक्त किया है। (मत्ती २४:४५-४७) पहली सदी की तरह, अभिषिक्त मसीही पुरुषों का एक शासी निकाय इस दास का प्रतिनिधित्व करता है। इन्हें मसीह ने निर्णय लेने और दूसरे ओवरसियर नियुक्त करने का अधिकार दिया है। (प्रेरितों ६:२, ३; १५:२) क्रमशः, यह शासी निकाय शाखा कमेटियों, ज़िला और सर्किट ओवरसियरों, और पूरी पृथ्वी पर ७३,००० से भी ज़्यादा कलीसियाओं में हर कलीसिया के प्राचीनों को अधिकार सौंपता है। ये सब समर्पित मसीही पुरुष हमारे समर्थन और आदर के योग्य हैं।—१ तीमुथियुस ५:१७.
२०. कौन-सा उदाहरण दिखाता है कि यहोवा उनसे अप्रसन्न होता है जो अधिकार वाले संगी मसीहियों के प्रति आदर का अभाव दिखाते हैं?
२० जो आदर हमें मसीही कलीसिया में अधिकार वाले व्यक्तियों को देना है, उस सम्बन्ध में एक दिलचस्प तुलना उस अधीनता से की जा सकती है जो हमें सांसारिक अधिकारियों के प्रति दिखानी है। जब एक व्यक्ति परमेश्वर द्वारा स्वीकृत एक मानवी नियम तोड़ता है, तो “हाकिम” उसे जो दण्ड देते हैं, वह असल में, “बुरे काम करने वाले” पर परमेश्वर के क्रोध की एक अप्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है। (रोमियों १३:३, ४) जब एक व्यक्ति मानवी नियम तोड़ता है और सांसारिक अधिकारियों के प्रति उचित आदर का अभाव दिखाता है, तब यदि यहोवा क्रोधित होता है, तो जब एक समर्पित मसीही बाइबल सिद्धान्तों की अवज्ञा करता है और जो संगी मसीही अधिकार में हैं, उनके प्रति आदर नहीं दिखाता है, तब यहोवा कितना अधिक अप्रसन्न होगा!
२१. कौन-सी शास्त्रीय सलाह का अनुकरण करने में हम ख़ुश होंगे, और अगले लेख में किस बात पर विचार किया जाएगा?
२१ एक विद्रोही या स्वतंत्र मनोवृत्ति अपनाने के द्वारा परमेश्वर की अप्रसन्नता अपने ऊपर लाने के बदले, हम फिलिप्पी के मसीहियों को दी गई पौलुस की सलाह का अनुकरण करेंगे: “सो हे मेरे प्यारो, जिस प्रकार तुम सदा से आज्ञा मानते आए हो, वैसे ही अब भी न केवल मेरे साथ रहते हुए पर विशेष करके अब मेरे दूर रहने पर भी डरते और कांपते हुए अपने अपने उद्धार का कार्य्य पूरा करते जाओ। क्योंकि परमेश्वर ही है, जिस ने अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है। सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के किया करो। ताकि तुम निर्दोष और भोले होकर टेढ़े और हठीले लोगों के बीच परमेश्वर के निष्कलंक सन्तान बने रहो, (जिन के बीच में तुम जीवन का वचन लिए हुए जगत में जलते दीपकों की नाईं दिखाई देते हो)।” (फिलिप्पियों २:१२-१५) वर्तमान टेढ़े और हठीले लोगों की पीढ़ी से भिन्न, जो अपने आप पर अधिकार की संकट-स्थिति लाए हैं, यहोवा के लोग तत्परता से अधिकार के अधीन होते हैं। इसलिए वे बहुत लाभ पाते हैं, जैसे हम अगले लेख में देखेंगे।
[फुटनोट]
a पिछला लेख देखिए।
पुनर्विचार के रूप में
▫ सर्वोच्च अधिकारी कौन है, और उसका अधिकार न्यायसंगत क्यों है?
▫ किस अर्थ में प्रधान अधिकारी “परमेश्वर के ठहराए हुए हैं”?
▫ प्रधान अधिकारी “परमेश्वर के सेवक” कब नहीं रहते?
▫ मसीही परिवारों में कौन-सी अधिकार व्यवस्था अस्तित्व में है?
▫ मसीही कलीसिया में कैसा अधिकारों का प्रत्यायोजन अस्तित्व में है?
[पेज 12 पर तसवीरें]
यीशु ने कहा: “जो कैसर का है वह कैसर को . . . दो”