“सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करो”
कुरिन्थियों को लिखी पहली पत्री से विशिष्टताएँ
यहोवा परमेश्वर की महिमा उन सब के लिए अत्यंत महत्त्व रखती है जो उनका “भजन आत्मा और सच्चाई से” करते हैं। (यूहन्ना ४:२३, २४) इसलिए, प्रेरित पौलुस ने प्राचीन कुरिन्थुस में संगी मसीहियों से कहा: “तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करो।” (१ कुरिन्थियों १०:३१) ऐसा करने से यह आवश्यक हो जाता है कि झूठे धर्म में मग्न इस भौतिकवादी, अनैतिक दुनिया में, हम यहोवा का हमारी समस्याओं का समाधान करने का तरीक़ा स्वीकार करें।
कुरिन्थुस के मसीहियों को ईश्वरीय मदद की ज़रूरत थी, इसलिए कि वे झूठे धर्म से भरे, एक समृद्ध तथा अनैतिक शहर में रहते थे। महाद्वीपीय यूनान और पेलॉपॉन्नाईसस् के बीच के एक इस्थमस (भू-संधि) पर स्थित, कुरिन्थुस अखाया नाम के रोमी प्रान्त की राजधानी थी और उसकी अनुमानित जनसंख्या ४,००,००० थी। पौलुस ने लगभग सामान्य युग ५० में वहाँ एक मण्डली स्थापित की।—प्रेरितों के काम १८:१-११.
कुरिन्थियों ने पौलुस को विवाह और मूर्तियों को चढ़ाए गए गोश्त खाने के बारे में पूछने के लिए लिख भेजा था। (७:१) वह दुःखी इसलिए थे कि उनके बीच कई मतभेद थे और घोर अनैतिकता का एक मामला मौजूद था। उन्हें प्रभु के संध्या भोजन मनाने के उचित तरीक़े के विषय में सलाह की ज़रूरत थी। धर्मत्याग का भी ख़तरा था, और मण्डली को प्रेम के विषय में सलाह की ज़रूरत थी। ऐसे कारणों से, पौलुस ने कुरिन्थियों को अपनी पहली प्रेरित चिट्ठी लगभग सा.यु. ५५ में इफिसुस से लिख भेजी। लेकिन हम भी उस से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
एकता और नैतिक विशुद्धता अत्यावश्यक हैं
अगर हम “सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करेंगे,” तो हम मण्डली में विभाजन उत्पन्न करना चाहने वाले किसी भी व्यक्ति का अनुसरण नहीं करेंगे—एक ऐसी समस्या जिसका सामना कुरिन्थी कर रहे थे। (१:१-४:२१) पौलुस ने प्रोत्साहित किया कि वे ‘सब एक ही बात कहें और एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहें।’ अगर हम इस उपदेश का पालन करके आत्मिक गुण विकसित करेंगे, तो ही एकता बनी रह सकती है। किसी पापी मनुष्य में घमण्ड करने के बजाय, हमें याद रखना चाहिए कि हालाँकि हम ‘लगाते और सींचते हैं, परन्तु परमेश्वर’ ही उसे आत्मिक रूप से ‘बढ़ाते हैं।’ कुरिन्थुस के घमण्डी व्यक्तियों के पास ऐसा कुछ न था जो उन्होंने नहीं पाया; तो हम अपने आप को कभी संगी विश्वासियों से बेहतर न समझें। ऐसा विनम्र मनोभाव हमें एकता बढ़ाने में मदद करेगा।
अगर एकता को बना रहना है, तो नियुक्त बुज़ुर्गों को मण्डली को आत्मिक रूप से साफ़ रखने के लिए क़दम लेने ही चाहिए। (५:१-६:२०) चूँकि “थोड़ा सा खमीर पूरे गूंधे हुए आटे को खमीर कर देता है,” पश्चाताप रहित वेश्यागामी, लोभी, मूर्तिपूजक, गाली देनेवाले, पियक्कड़ या लुटेरे व्यक्तियों को जाति बहिष्कृत किया जाना ही चाहिए। नैतिक अशुद्धता, जिस से परमेश्वर का मंदिर दूषित होता है, यहोवा के लोगों के बीच बरदाश्त नहीं होनी चाहिए। उलटा, उन्हें ऐसे ऐसे काम करने चाहिए जिस से परमेश्वर की महिमा हो।
दूसरों का लिहाज़ करें
“सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए” करने के वास्ते, हमें शादी और कुँवारेपन के विषय पर पौलुस की सलाह लागू करनी चाहिए। (७:१-४०) जो लोग शादी के रिश्ते में जोड़े गए हैं, उन्हें यौन हक़ को लिहाज़ से पूरा करना चाहिए। एक शादी-शुदा मसीही को अविश्वासी साथी से अलहदा नहीं होना चाहिए, क्योंकि साथ रहने से शायद उस साथी को उद्धार पाने की मदद हो। जबकि शादी से ज़्यादा फ़िक्र रहती है, कुँवारापन एक ऐसे व्यक्ति के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है, जो बिना दुचित्तापन से प्रभु की सेवा करके दूसरों को आत्मिक रूप से मदद करना चाहता हो।
दूसरों के आत्मिक हित का लिहाज़ करना सभी मसीहियों का फ़र्ज़ है, चाहे वे कुँवारे हों या शादी-शुदा। (८:१-१०:३३) इसलिए, कुरिन्थियों को सलाह दी गयी कि वे मूर्तियों को चढ़ाया गया माँस खाकर दूसरों के लिए ठोकर का कारण न बनें। किसी भी व्यक्ति को सुसमाचार स्वीकार करने में विघ्न डालने से बचे रहने के लिए, पौलुस ने भौतिक सहायता प्राप्त करने के अपने हक़ का भी प्रयोग नहीं किया। उन्होंने ‘अपनी देह को मारा ताकि ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके वह किसी रीति से निकम्मा ठहरे।’ पापी इस्राएल के विराने के अनुभवों पर ध्यान देने से हमें मूर्तिपूजा और अपराध से बचे रहने की मदद होगी। इसके अतिरिक्त, ‘सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करना’ हमें किसी भी व्यक्ति के लिए ठोकर का कारण बनने से बचे रहने की मदद कर सकता है।
आदर दिखाना और व्यवस्था बनाए रखना
‘सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करने’ से आवश्यक होता है कि हम उचित आदर दिखाएँ। (११:१-३४) पहली-सदी की औरत मण्डली में प्रार्थना या भविष्यद्वाणी करते वक्त सिर ढककर अध्यक्षता के लिए आदर दिखाती थी। आज धर्मपरायण औरतें अध्यक्षता के लिए समान आदर दिखाती हैं। इसके अतिरिक्त, उन कुरिन्थियों के जैसे बनने से बचे रहने के लिए, जिन्हें सुधार की ज़रूरत थी, हम सब को प्रभु के संध्या भोजन के लिए आदर दिखाना चाहिए।
“सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए” करने के वास्ते, हमें सभाओं को व्यवस्थित तरीक़े से संचालित करना चाहिए। (१२:१-१४:४०) जब प्रारंभिक मसीही एकत्र होते थे, तब आत्मा के वरदानों का उपयोग, जैसा कि अनेक भाषाओं में बोलना, उनके स्रोत और उद्देश्य के लिए आदर और क़दर के साथ होना था। हालाँकि ये वरदान अब हमारे पास नहीं हैं, हम प्रेम दिखाकर, परमेश्वर को महिमा प्रदान करते हैं, जो कि उन वरदानों से बढ़कर है। हम यहोवा को महिमा इस से भी प्रदान करते हैं कि हमारी सभाएँ सुव्यवस्थित हैं, और हम पौलुस की सलाह पर आदरपूर्वक अमल करते हैं: “सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएँ।”
‘सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करने’ से हम से यह आवश्यक होता है कि हम बाइबल के धर्मसिद्धान्त का आदर करें और आत्मिक रूप से अडिग रहें। (१५:१-१६:२४) संभवतः यूनानी तत्त्वज्ञान से प्रभावित होकर, कुरिन्थुस की मण्डली के कुछेकों ने कहा: “मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं।” (प्रेरितों १७:१८, ३२ से तुलना करें।) शायद वे उस धर्मत्यागी मत के थे कि कोई भावी पुनरुत्थान नहीं होता, पर कि जीवित मसीहियों ने एक प्रतीकात्मक, आत्मिक पुनरुत्थान का अनुभव किया था। (२ तीमुथियुस २:१६-१८) पौलुस ने यीशु के पुनरुत्थान का ज़िक्र करके सच्ची आशा का समर्थन किया और उन्होंने यह भी प्रतिपादित किया कि अमर स्वर्गीय जीवन में पुनरुत्थित होने के लिए अभिषिक्त मसीहियों को मरना ही पड़ेगा। अन्य रीति से भी, उनके शब्द हमें धर्मत्याग से बचे रहने और “विश्वास में स्थिर” रहने की मदद करते हैं।
हमेशा सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करें
कुरिन्थियों को लिखी पहली पत्री में पौलुस की सलाह आज उतनी ही फ़ायदेमंद है जितना कि यह सा.यु. पहली सदी में थी। यह यहोवा के आधुनिक गवाहों को परमेश्वर की सेवा एकता से और एक विशुद्ध जाति के तौर से करने के लिए प्रभावित करती है। प्रेरित के वचनों से हम दूसरों का लिहाज़ करने और उचित आदर दिखाने के लिए प्रेरित होने चाहिए। पौलुस ने जो कहा, उस से हमें धर्मत्याग का प्रतिरोध करने और सच्चे विश्वास के लिए स्थिर रहने की भी शक्ति मिलती है।
यक़ीनन, यह यहोवा के प्रत्येक विश्वसनीय सेवक की हार्दिक इच्छा है कि वह उनकी स्तुति करे, उनके राज्य की घोषणा करे और उनके पवित्र नाम को महिमा प्रदान करे। (भजन १४५:१, २, १०-१३) दरअसल, कुरिन्थियों के नाम पौलुस की पहली पत्री से हमें “सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए” करने की मदद होती है।
[पेज 28 पर बक्स/तसवीरें]
निश्चित ही मरने की अवस्था: कुरिन्थियों को लिखी अपनी पत्रियों में अनेक बार, पौलुस ने अखाड़े में मृत्यु का ज़िक्र किया। उदाहरणार्थ, उन्होंने लिखा: “मेरी समझ में परमेश्वर ने हम प्रेरितों को सब के बाद उन लोगों की नाईं ठहराया है, जिन की मृत्यु की आज्ञा हो चुकी हो; क्योंकि हम जगत और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के लिए एक तमाशा ठहरे हैं।” (१ कुरिन्थियों ४:९) शायद पौलुस बेस्टियाराई (जानवरों के साथ लड़नेवाले पुरुष) और तलवारियों (ऐसे मनुष्य जो मनुष्यों से लड़ते थे) के प्रदर्शनों के बारे में सोच रहे थे। कुछ लोग इनाम के लिए लड़ते थे, लेकिन अपराधियों को लड़ने पर मजबूर किया जाता था। पहले उन्हें हथियार इस्तेमाल करने दिया जाता था, पर बाद में क़ैदियों को वस्त्रहीन, निस्सहाय और निश्चित ही मरने की अवस्था में बाहर लाया जाता था।
जहाँ दर्शकों के तौर से (न सिर्फ़ मनुष्यजाति का “जगत,” बल्कि) “स्वर्गदूत” और “मनुष्य” भी मौजूद थे, प्रेरित उन के जैसे थे जो ऐसे अंतिम घोर तमाशे में मरनेवाले थे। पौलुस ने कहा कि वह “इफिसुस में बन-पशुओं से लड़ा,” लेकिन कुछेक शक करते हैं कि किसी रोमी नागरिक से ऐसा करवाया जाता, और वे कहते हैं कि उसका इशारा पशु-समान विरोधियों की ओर था। (१ कुरिन्थियों १५:३२) फिर भी, पौलुस का बयान कि आसिया के क्षेत्र में (जहाँ इफिसुस स्थित था) परमेश्वर ने उसे “ऐसी बड़ी मृत्यु से बचाया” था, मानव विरोध से ज़्यादा, अखाड़े में जंगली पशुओं के साथ एक अनुभव से बेहतर बैठता है।—२ कुरिन्थियों १:८-१०; ११:२३; प्रेरितों के काम १९:२३-४१.
[पेज 29 पर बक्स/तसवीरें]
इनाम को ध्यान में रखना: पौलुस ने महत्त्वपूर्ण बातें समझाने के लिए पुरातन यूनानी खेलों की कुछ विशेषताओं का प्रयोग किया। (१ कुरिन्थियों ९:२४-२७) इस्थिमियन खेलों जैसी प्रतियोगिताओं में, जो कुरिन्थुस के पास हर दो साल आयोजित किए जाते थे, कार्यक्रम में दौड़, मुक्केबाज़ी, और अन्य खेल शामिल थे। इन प्रतियोगिताओं के लिए तैयार होते समय, धावकों और मुक्केबाज़ों को आत्मसंयम करना था, एक स्वास्थ्यकारी रूप से अपर्याप्त पथ्य का सेवन करना था और दस महीनों तक कोई मदिरा नहीं पीना था। बहरहाल, इस्थिमियन खेल के विजेताओं को दिए नश्वर चीड़ या आइवी के पत्तों से बने छल्लों के बजाय, एक अभिषिक्त मसीही अमर जीवन के अविनाशी मुकुट के लिए प्रयास करता है। उस इनाम को जीतने के लिए, उसे अपना ध्यान उसी पर लगाना चाहिए और आत्मसंयम करना चाहिए। वही सिद्धान्त यहोवा के उन गवाहों पर लागू होता है, जिनके ध्यान में अनन्त पार्थिव जीवन की आशा है।