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  • “परमेश्‍वर की उपासना कर”

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  • “परमेश्‍वर की उपासना कर”
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  • पहली बात: सिर्फ और सिर्फ यहोवा की उपासना करें
  • दूसरी बात: एकता में रहें और ध्यान रखें कि हमारी उपासना दूषित न हो
  • तीसरी बात: दूसरों से प्यार करें
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सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
rr अध्या. 22 पेज 226-237
यीशु ने अपना ताज उतार दिया है और यहोवा परमेश्‍वर को राज लौटा रहा है

अध्याय 22

“परमेश्‍वर की उपासना कर”

प्रकाशितवाक्य 22:9

अध्याय किस बारे में है: यहेजकेल किताब से हमने कौन-सी खास बातें सीखीं और हम ये बातें आज कैसे लागू कर सकते हैं और भविष्य में कैसे लागू करेंगे

1, 2. (क) हर इंसान को क्या फैसला करना है? (ख) जब यूहन्‍ना ने स्वर्गदूत की उपासना करनी चाही, तो उसने क्या कहा?

‘आपको किसकी उपासना करनी चाहिए?’ यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब हर इंसान को देना होगा। कुछ लोग शायद कहें कि यह बड़ा ही मुश्‍किल सवाल है, क्योंकि दुनिया में इतने धर्म और इतने ईश्‍वर हैं कि समझ में नहीं आता किसकी उपासना करें। पर सच तो यह है कि दुनिया में सिर्फ दो ही ईश्‍वर हैं। एक यहोवा और दूसरा शैतान। हम या तो यहोवा की उपासना करते हैं या फिर शैतान की।

2 शैतान हमेशा इस ताक में रहता है कि किसी तरह लोगों से अपनी उपासना करवाए। उसकी यह नीयत तब खुलकर सामने आयी जब उसने यीशु को लुभाने की कोशिश की। जैसे हमने इस किताब के अध्याय 1 में देखा था, शैतान ने यीशु को लालच दिया कि अगर वह ‘बस एक बार उसके सामने गिरकर उसकी उपासना करे,’ तो वह दुनिया की सारी हुकूमतें उसे दे देगा। (मत्ती 4:9) मगर बाइबल में एक और स्वर्गदूत के बारे में बताया गया है जिसका नज़रिया शैतान से बिलकुल अलग था। (प्रकाशितवाक्य 22:8, 9 पढ़िए।) जब उस स्वर्गदूत ने प्रेषित यूहन्‍ना को भविष्य में होनेवाली कुछ बातें बतायीं, तो यूहन्‍ना ने उसकी उपासना करनी चाही। मगर स्वर्गदूत ने उसे मना करते हुए कहा, “नहीं, नहीं, ऐसा मत कर!” वह स्वर्गदूत कितना नम्र था। शैतान की तरह यह कहने के बजाय कि ‘मेरी उपासना कर’ उसने कहा, “परमेश्‍वर की उपासना कर।”

3. (क) इस किताब ने हमारे किस इरादे को मज़बूत किया है? (ख) अब हम कौन-सी बातें जानेंगे?

3 हम भी वही करना चाहते हैं जो स्वर्गदूत ने कहा था। हम सिर्फ और सिर्फ यहोवा की उपासना करना चाहते हैं। (व्यव. 10:20; मत्ती 4:10) इस किताब ने हमारे इस इरादे को और मज़बूत किया है। तो आइए याद करें कि हमने इस पूरी किताब में यहेजकेल की भविष्यवाणियों और दर्शनों से शुद्ध उपासना के बारे में क्या सीखा। इसके बाद हम बाइबल से जानेंगे कि भविष्य में कैसे हर इंसान को एक अंतिम परीक्षा का सामना करना होगा। जो लोग इसमें खरे उतरेंगे, उन्हें यह देखने का मौका मिलेगा कि शुद्ध उपासना कैसे सही मायनों में और हमेशा के लिए बहाल की जाती है।

यहेजकेल किताब से हमने तीन खास बातें सीखीं

4. यहेजकेल किताब में कौन-सी तीन खास बातें बतायी गयी हैं?

4 यहेजकेल किताब से हमने सीखा कि शुद्ध उपासना क्या होती है। उपासना का मतलब सिर्फ रस्मों-रिवाज़ों को मानना नहीं है। हमसे माँग की जाती है कि हम (1) सिर्फ और सिर्फ यहोवा की उपासना करें, (2) एकता में रहें और ध्यान रखें कि हमारी उपासना दूषित न हो और (3) दूसरों से प्यार करें। हमने इस किताब में देखा था कि यहेजकेल की भविष्यवाणियों और दर्शनों से ये तीन खास बातें साफ पता चलती हैं। आइए उन पर दोबारा गौर करें।

पहली बात: सिर्फ और सिर्फ यहोवा की उपासना करें

5-9. सिर्फ यहोवा की उपासना करने के बारे में हमने क्या सीखा?

5 अध्याय 3: a एक दर्शन में यहेजकेल देखता है कि यहोवा के चारों तरफ एक मेघ-धनुष है और वह शक्‍तिशाली स्वर्गदूतों के ऊपर सवार है। इस दर्शन में हमने सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा के प्रताप की एक झलक देखी और यह बात हमारे दिमाग में अच्छी तरह बैठ गयी कि सिर्फ यहोवा हमारी उपासना पाने के योग्य है।—यहे. 1:4, 15-28.

6 अध्याय 5:  एक दर्शन में देखा गया कि यहोवा के मंदिर में ऐसे-ऐसे घिनौने काम हो रहे थे कि देखनेवालों के होश उड़ जाएँ। इस दर्शन से हमने सीखा कि कोई भी बात यहोवा की नज़र से नहीं छिपती। जब उसके लोग उससे विश्‍वासघात करते हैं और मूर्तिपूजा जैसे काम करते हैं, तो वह उसे देख सकता है। भले ही वे इंसानों से छिपकर ऐसे काम करें, मगर वे यहोवा की नज़र से नहीं बच सकते। ऐसे लोगों को देखकर यहोवा को दुख होता है और वह उन्हें ज़रूर सज़ा देता है।—यहे. 8:1-18.

7 अध्याय 7:  यहोवा ने इसराएल के उन पड़ोसी राष्ट्रों को सज़ा सुनायी जिन्होंने उसके लोगों को ‘नीचा दिखाया’ था। (यहे. 25:6) इससे हम सीखते हैं कि यहोवा उन सबसे लेखा लेता है जो उसके लोगों से बुरा सुलूक करते हैं। और इसराएल ने पड़ोसी राष्ट्रों के साथ जो मेल-जोल बढ़ाया, उससे हमें सबक मिलता है कि हमें सबसे ज़्यादा यहोवा के वफादार रहना चाहिए। हमारे जो रिश्‍तेदार यहोवा की उपासना नहीं करते, उन्हें खुश करने के लिए हमें कभी-भी यहोवा के स्तरों से समझौता नहीं करना चाहिए। हमें न तो दौलत पर, न ही सरकारों पर भरोसा करना चाहिए। अगर हम सरकारों पर भरोसा रखें, तो हम निष्पक्ष नहीं रहेंगे और अपने दिल में उन्हें वह जगह दे रहे होंगे जो सिर्फ यहोवा को मिलनी चाहिए।

8 अध्याय 13 और 14:  एक दर्शन में देखा गया कि यहोवा का मंदिर एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर है। इससे हमें सीख मिलती है कि हमें यहोवा के ऊँचे स्तरों पर चलना चाहिए, क्योंकि वह सभी ईश्‍वरों से महान है।—यहे. 40:1–48:35.

9 अध्याय 15:  कुछ भविष्यवाणियों में इसराएल और यहूदा राष्ट्र की तुलना वेश्‍याओं से की गयी है। उनसे हमें सबक मिलता है कि यहोवा को छोड़कर किसी और की उपासना करना वेश्‍याओं की तरह बदचलनी करने जैसा है। यहोवा इसे हरगिज़ बरदाश्‍त नहीं कर सकता।—यहे. अध्या. 16 और 23.

दूसरी बात: एकता में रहें और ध्यान रखें कि हमारी उपासना दूषित न हो

10-14. एकता में रहकर शुद्ध उपासना करने के बारे में हमने क्या सीखा?

10 अध्याय 8:  कुछ भविष्यवाणियों में यहोवा ने वादा किया है कि वह अपने लोगों की देखभाल करने के लिए ‘एक ही चरवाहे’ को ठहराएगा। इससे हमें सीख मिलती है कि हमें अपने चरवाहे यीशु के निर्देशों को मानकर एकता से और शांति से काम करना चाहिए।—यहे. 34:23, 24; 37:24-28.

11 अध्याय 9:  यहेजकेल की कुछ भविष्यवाणियों में बताया गया है कि परमेश्‍वर के लोगों को बैबिलोन से छुड़ाया जाएगा और दोबारा उनके देश में बसाया जाएगा। इन भविष्यवाणियों से उन लोगों को सीख मिलती है जो यहोवा को खुश करना चाहते हैं। उन्हें झूठे धर्मों से नाता तोड़ लेना चाहिए और किसी भी तरह उनसे दूषित नहीं होना चाहिए। हालाँकि हम अलग-अलग धर्म, देश, भाषा और समाज के अलग-अलग तबके से आए हैं, फिर भी हमें अपनी एकता बनाए रखनी चाहिए ताकि यह साफ नज़र आए कि हम यहोवा के लोग हैं।—यहे. 11:17, 18; 12:24; यूह. 17:20-23.

12 अध्याय 10:  एकता के बारे में हमने एक और दर्शन में सीखा जिसमें देखा गया कि सूखी हड्डियों में दोबारा जान आ जाती है। यहोवा के लोगों को शुद्ध किया गया है और बहाल की गयी मंडली में इकट्ठा किया गया है जहाँ वे एक बड़ी सेना की तरह साथ मिलकर यहोवा की सेवा कर रहे हैं। यह कितनी खुशी की बात है कि हमें भी उनमें से एक होने का मौका मिला है!—यहे. 37:1-14.

13 अध्याय 12:  एकता के बारे में खासकर उस भविष्यवाणी में ज़ोर दिया गया है जिसमें बताया गया कि दो छड़ियों को मिलाकर एक छड़ी बनायी जाएगी। आज अभिषिक्‍त मसीही और दूसरी भेड़ें साथ मिलकर सेवा कर रहे हैं जिससे यह भविष्यवाणी पूरी हो रही है। इसे पूरा होते देखकर हमारा विश्‍वास कितना मज़बूत होता है। आज जहाँ धर्म और राजनैतिक मसलों को लेकर दुनिया में नफरत और फूट है, वहीं हमारे बीच प्यार है और हम एक-दूसरे के वफादार रहते हैं।—यहे. 37:15-23.

14 अध्याय 16:  एक दर्शन में देखा गया कि एक आदमी कलम-दवात लिए हुए है और उसके साथ छः आदमी चूर-चूर करनेवाले हथियार लिए हुए हैं। इस दर्शन से हमने सीखा कि जो लोग “महा-संकट” की शुरूआत के वक्‍त शुद्ध उपासना कर रहे होंगे, सिर्फ उन्हीं को नाश से बचाया जाएगा।—मत्ती 24:21; यहे. 9:1-11.

तीसरी बात: दूसरों से प्यार करें

15-18. (क) हमें क्यों दूसरों से प्यार करते रहना चाहिए? (ख) हम यह कैसे कर सकते हैं?

15 अध्याय 4:  चार जीवित प्राणियों के दर्शन से हमने यहोवा के गुणों के बारे में जाना, जिनमें सबसे खास गुण प्यार है। हमें दूसरों से प्यार से बात करनी चाहिए और अच्छा व्यवहार करना चाहिए। तभी हम कह पाएँगे कि यहोवा हमारा परमेश्‍वर है।—यहे. 1:5-14; 1 यूह. 4:8.

16 अध्याय 6 और 11:  यहोवा लोगों से प्यार करता है, इसीलिए उसने यहेजकेल और कुछ और लोगों को पहरेदार ठहराया। परमेश्‍वर प्यार है इसलिए वह नहीं चाहता कि जब वह शैतान की हुकूमत का अंत करे, तो इसके साथ-साथ किसी और का भी नाश करे। (2 पत. 3:9) अगर हमें भी उसकी तरह लोगों से प्यार होगा, तो हम आज के पहरेदार को सहयोग देकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँगे।—यहे. 33:1-9.

17 अध्याय 17 और 18:  यहोवा जानता है कि ज़्यादातर लोग उसकी दया की कदर नहीं करेंगे और उसके लोगों को मिटाने की कोशिश करेंगे। ‘मागोग देश का गोग’ यहोवा के लोगों पर हमला करेगा, मगर तभी यहोवा उन्हें बचाने के लिए कदम उठाएगा, क्योंकि वह उनसे प्यार करता है। आज हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को बताना चाहते हैं कि जो यहोवा के लोगों को सताते हैं, उनका वह नाश कर देगा।—यहे. 38:1–39:20; 2 थिस्स. 1:6, 7.

18 अध्याय 19, 20 और 21:  यहोवा के प्यार की सबसे खूबसूरत तसवीर उन दर्शनों में मिलती है जिनमें जीवन देनेवाले पानी की नदी और ज़मीन का बँटवारा दिखाया गया है। इन दर्शनों से एक झलक मिलती है कि यहोवा ने अपने बेटे की जो कुरबानी दी, उसकी वजह से क्या-क्या मुमकिन हुआ है। आज हमें पापों की माफी मिलती है और भविष्य में हम परिपूर्ण बनकर यहोवा के परिवार का हिस्सा हो जाएँगे। यहोवा ने हमारे लिए अपना बेटा देकर प्यार का सबसे बड़ा सबूत दिया है। हमें भी दूसरों से प्यार करना चाहिए। उनसे प्यार करने का सबसे बढ़िया तरीका है उन्हें बताना कि यहोवा ने उनकी खातिर क्या किया है। हमें उन्हें बताना चाहिए कि जो यहोवा के बेटे पर विश्‍वास करते हैं, उन्हें वह कैसी ज़िंदगी देनेवाला है।—यहे. 45:1-7; 47:1–48:35; प्रका. 21:1-4; 22:17.

हज़ार साल के राज के बाद नम्रता की एक अनोखी मिसाल

इंसानों को दोबारा परिपूर्ण बना दिया गया है; यीशु ने अपना ताज उतार दिया है और यहोवा परमेश्‍वर को राज लौटा रहा है

बक्स 22क: अंतिम परीक्षा का सामना

19. हज़ार साल के राज के दौरान यीशु क्या करेगा? (यह बक्स देखें: “अंतिम परीक्षा का सामना।”)

19 हज़ार साल के राज के दौरान यीशु मरे हुए अरबों लोगों को ज़िंदा करेगा और हमारे ‘दुश्‍मन मौत’ ने इंसानों को जो बेहिसाब ज़ख्म दिए हैं, उन्हें भर देगा। (1 कुरिं. 15:26; मर. 5:38-42; प्रेषि. 24:15) देखा जाए तो इंसानों का हज़ारों सालों का इतिहास दर्द और आँसुओं की एक लंबी दास्तान है। लेकिन हज़ार साल के दौरान जब यीशु एक-एक पीढ़ी के लोगों को ज़िंदा करेगा, तो वह मानो उनकी दर्द-भरी दास्तान को मिटाता जाएगा और उन्हें अपनी ज़िंदगी की एक नयी कहानी लिखने का मौका देगा। आज तक इंसानों ने युद्ध, अकाल और बीमारियों की वजह से काफी नुकसान झेला है, मगर यीशु अपने फिरौती बलिदान की वजह से इस पूरे नुकसान की भरपाई कर देगा। वह हमारे अंदर से पाप को भी मिटा देगा जो सारी मुसीबतों की जड़ है। (रोमि. 5:18, 19) यीशु ‘शैतान के कामों को नष्ट कर देगा।’ (1 यूह. 3:8) इसके बाद क्या होगा?

जो लोग ज़िंदा किए जाएँगे, उन्हें ज़िंदगी की एक नयी कहानी लिखने का मौका मिलेगा

20. यीशु और 1,44,000 जन कैसे नम्रता की एक अनोखी मिसाल कायम करेंगे? समझाइए। (शुरूआती तसवीर देखें।)

20 पहला कुरिंथियों 15:24-28 पढ़िए। जब सभी इंसान परिपूर्ण हो जाएँगे और यह धरती भी फिरदौस बन जाएगी, तो इसके बाद यीशु और 1,44,000 जन नम्रता की एक अनोखी मिसाल कायम करेंगे। वे अपना राज यहोवा को सौंप देंगे। हज़ार साल तक उनके पास जो अधिकार था, उसे वे खुशी-खुशी यहोवा को सौंप देंगे। उनके राज में जो उपलब्धियाँ हासिल हुई होंगी, वे सदा कायम रहेंगी।

यीशु ने अपना ताज उतार दिया है और यहोवा परमेश्‍वर को राज लौटा रहा है

अंतिम परीक्षा

21, 22. (क) हज़ार साल के आखिर तक दुनिया कैसे बदल चुकी होगी? (ख) यहोवा शैतान और दुष्ट स्वर्गदूतों को क्यों रिहा करेगा?

21 हज़ार साल के बाद यहोवा हुक्म देगा कि शैतान और दुष्ट स्वर्गदूतों को अथाह-कुंड से रिहा किया जाए। (प्रकाशितवाक्य 20:1-3 पढ़िए।) वह इसलिए ऐसा करेगा क्योंकि उसे अपने लोगों पर भरोसा होगा कि वे उसके वफादार रहेंगे। तब तक दुनिया बिलकुल बदल चुकी होगी। हर-मगिदोन से पहले शैतान ने नफरत और भेदभाव फैलाकर ज़्यादातर लोगों को गुमराह किया होगा और उनमें फूट डाली होगी। (प्रका. 12:9) लेकिन हज़ार साल के आखिर तक सब लोगों में एकता होगी और वे एक परिवार के नाते यहोवा की उपासना कर रहे होंगे। धरती फिरदौस बन चुकी होगी और हर कहीं शांति होगी।

22 यहोवा शैतान और दुष्ट स्वर्गदूतों को क्यों रिहा करेगा? उन्हें क्यों उस खूबसूरत धरती पर कदम रखने देगा? क्योंकि हज़ार साल के आखिर में धरती पर रहनेवाले ज़्यादातर लोग ऐसे होंगे जिनकी वफादारी कभी परखी नहीं गयी होगी। कई लोगों ने पहले यहोवा को नहीं जाना होगा और यहोवा ने फिरदौस में उन्हें ज़िंदा किया होगा। यहोवा ने उन्हें दोबारा जीवन देने के साथ-साथ उनकी सारी ज़रूरतें पूरी की होंगी और उसके साथ एक रिश्‍ता जोड़ने में उनकी मदद की होगी। हज़ार साल के दौरान उन पर बुरे काम करने का कोई असर नहीं रहा होगा। वे सिर्फ ऐसे लोगों के साथ रहे होंगे जो यहोवा से प्यार करते हैं और उसकी सेवा करते हैं। इसलिए शैतान उन पर वही इलज़ाम लगा सकता है जो उसने अय्यूब पर लगाया था। वह कह सकता है कि वे यहोवा की सेवा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वह उनकी रक्षा करता है और उन्हें आशीष देता है। (अय्यू. 1:9, 10) इसीलिए हमारे नाम जीवन की किताब में लिखने से पहले यहोवा हमें यह साबित करने का मौका देगा कि हम उसे अपना पिता और राजा मानते हैं और हम हर हाल में उसके वफादार रहेंगे।—प्रका. 20:12, 15.

23. हर इंसान की कैसे परख होगी?

23 शैतान को कुछ समय के लिए इंसानों को बहकाने का मौका दिया जाएगा। वह उन्हें यहोवा से दूर ले जाने की कोशिश करेगा। शायद हर इंसान के सामने कुछ ऐसा ही मसला खड़ा होगा जैसा बहुत पहले आदम और हव्वा के सामने उठा था। उस समय हर इंसान की परख होगी कि क्या वह यहोवा के स्तरों को मानेगा, उसके राज में रहना चाहेगा और उसकी उपासना करना चाहेगा? या फिर वह परमेश्‍वर के खिलाफ काम करके शैतान की तरफ होना चाहेगा?

24. बगावती लोगों को गोग और मागोग क्यों कहा गया है?

24 प्रकाशितवाक्य 20:7-10 पढ़िए। हज़ार साल के आखिर में कुछ लोग परमेश्‍वर से बगावत करेंगे। ऐसे लोगों को गोग और मागोग कहा गया है। वह इसलिए क्योंकि उनकी फितरत भी कुछ वैसी होगी जैसे महा-संकट के दौरान परमेश्‍वर के लोगों पर हमला करनेवाले बागियों की होगी। यहेजकेल की भविष्यवाणी में परमेश्‍वर के लोगों पर हमला करनेवालों को ‘मागोग देश का गोग’ कहा गया है। यह गोग अलग-अलग राष्ट्रों में बँटा हुआ है और यहोवा की हुकूमत के खिलाफ काम करता है। (यहे. 38:2) मसीह के हज़ार साल के राज के अंत में जो लोग बगावत करेंगे, उन्हें भी ‘राष्ट्र’ कहा गया है। यह गौर करनेवाली बात है, क्योंकि हज़ार साल के राज में तो लोग आज की तरह अलग-अलग राष्ट्रों में बँटे हुए नहीं होंगे। सब लोग एक ही सरकार यानी परमेश्‍वर के राज की प्रजा होंगे और पूरी दुनिया में एक ही राष्ट्र होगा। तो फिर उन बागियों का वर्णन “राष्ट्रों” के तौर पर क्यों किया गया है? शायद इसलिए क्योंकि शैतान परमेश्‍वर के कुछ लोगों में फूट डालने और उन्हें अलग-अलग गुटों में बाँटने में कामयाब हो जाएगा। इसका यह मतलब नहीं कि लोगों पर शैतान का पक्ष लेने के लिए ज़ोर-ज़बरदस्ती की जाएगी। हर परिपूर्ण इंसान खुद फैसला करेगा कि वह शैतान की तरफ होना चाहेगा या यहोवा की तरफ।

हज़ार साल के अंत में बगावत करनेवाले लोग, जिन्हें “गोग और मागोग” कहा गया है

बगावत करनेवालों को गोग और मागोग कहा गया है (पैराग्राफ 24 देखें)

25, 26. (क) कितने लोग शैतान की तरफ हो जाएँगे? (ख) उन सबका क्या अंजाम होगा?

25 उस समय कितने लोग शैतान की तरफ हो जाएँगे? बाइबल कहती है कि उन बागियों की गिनती “समुंदर किनारे की रेत के किनकों जितनी” होगी। इसका यह मतलब नहीं कि उनकी तादाद बहुत बड़ी होगी। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। यहोवा ने अब्राहम से कहा था कि उसका वंश “समुंदर किनारे की बालू के किनकों जैसा अनगिनत हो जाएगा।” (उत्प. 22:17, 18) आगे चलकर उसके वंश की गिनती 1,44,001 हुई। (गला. 3:16, 29) यह एक बड़ी संख्या है, लेकिन दुनिया में अब तक पैदा हुए इंसानों की तुलना में बहुत कम है। उसी तरह हज़ार साल के अंत में बहुत-से लोग शैतान का पक्ष लेंगे, मगर उनकी गिनती इंसानों की कुल आबादी के मुकाबले बहुत कम होगी। वे यहोवा के वफादार लोगों को मिटा नहीं पाएँगे।

26 उन बगावती लोगों का कुछ ही समय के अंदर नाश कर दिया जाएगा। शैतान और दुष्ट स्वर्गदूतों के साथ-साथ उनका भी वजूद हमेशा के लिए मिट जाएगा और उन्हें दोबारा कभी ज़िंदगी नहीं मिलेगी। उन्होंने जो बुरे काम किए होंगे और तबाही मचायी होगी, सिर्फ उसकी याद हमेशा के लिए रह जाएगी।—प्रका. 20:10.

27-29. अंतिम परीक्षा में खरे उतरनेवालों को कैसी आशीषें मिलेंगी?

27 मगर जो लोग अंतिम परीक्षा में खरे उतरेंगे, उनका नाम हमेशा के लिए “जीवन की किताब” में लिखा जाएगा। (प्रका. 20:15) इसके बाद यहोवा के सभी वफादार बेटे-बेटियाँ एक परिवार के नाते मिलकर उसकी उपासना करेंगे जिसका वह पूरी तरह हकदार है।

28 ज़रा सोचिए आपको कैसी ज़िंदगी मिलनेवाली है। आप अपने अज़ीज़ों के साथ मिलकर कितनी खुशियाँ पाएँगे। न आपको और न ही उन्हें कोई दुख झेलना पड़ेगा। सच्चे दोस्तों का साथ होगा, आप जो भी काम करेंगे उससे आपको संतुष्टि मिलेगी। आपके अंदर से पाप भी मिट जाएगा। आपको फिरौती बलिदान की ज़रूरत नहीं होगी, इसलिए आप अपने बलबूते यहोवा की नज़र में नेक ठहरेंगे। दुनिया का हर इंसान परमेश्‍वर का दोस्त बन पाएगा। सबसे अहम बात यह है कि स्वर्ग और धरती पर शुद्ध उपासना पूरी तरह बुलंद हो जाएगी। तब सही मायनों में शुद्ध उपासना बहाल हो जाएगी!

एक परिपूर्ण औरत

जब आप परिपूर्ण हो जाएँगे, तो आपमें पाप नहीं रहेगा और आप अपने बलबूते यहोवा की नज़र में नेक ठहरेंगे (पैराग्राफ 28 देखें)

29 क्या आपको वाकई ऐसे दिन देखने का मौका मिलेगा? ज़रूर मिलेगा, बशर्ते आप उन तीन बातों को लागू करें जो आपने यहेजकेल किताब से सीखी हैं। सिर्फ और सिर्फ यहोवा की उपासना कीजिए, एकता में रहिए और ध्यान रखिए कि आपकी उपासना दूषित न हो और दूसरों से प्यार कीजिए। यहेजकेल की भविष्यवाणियों से हमें एक और सीख मिलती है जो कि बहुत ज़रूरी है। वह क्या है?

स्वर्ग और धरती की सारी सृष्टि में पूरी एकता है और वे मिलकर उपासना कर रहे हैं

वह क्या ही खुशी का समय होगा जब स्वर्ग और धरती की सारी सृष्टि एक होकर शुद्ध उपासना करेगी! (पैराग्राफ 27-29 देखें)

‘जानो कि मैं यहोवा हूँ’

30, 31. (क) “उन्हें जानना होगा कि मैं यहोवा हूँ,” परमेश्‍वर के दुश्‍मनों के लिए इस बात के क्या मायने होंगे? (ख) परमेश्‍वर के लोगों के लिए इस बात के क्या मायने होंगे?

30 पूरी यहेजकेल किताब में यहोवा का यह ऐलान बार-बार गूँज उठता है: “उन्हें जानना होगा कि मैं यहोवा हूँ।” (यहे. 6:10; 39:28) परमेश्‍वर के दुश्‍मन इस बात को तब जानेंगे जब वह उनसे युद्ध करेगा और उन्हें मिटानेवाला होगा। तब वे न सिर्फ यह जानेंगे कि यहोवा नाम का एक परमेश्‍वर है बल्कि उन्हें मजबूर होकर मानना पड़ेगा कि उस महान नाम यहोवा के क्या मायने हैं। वे देखेंगे कि “वह बनने का कारण होता है।” ‘सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा’ “एक शक्‍तिशाली योद्धा” बनकर उनसे युद्ध करेगा। (1 शमू. 17:45; निर्ग. 15:3) वे यहोवा के बारे में इस अहम सच्चाई को समझेंगे कि कोई भी बात उसे अपना मकसद पूरा करने से रोक नहीं सकती। मगर यह सच्चाई जानकर भी उन्हें कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

31 “उन्हें जानना होगा कि मैं यहोवा हूँ,” परमेश्‍वर के लोगों के लिए इस बात के मायने कुछ और होंगे। उन्हें जीवन और शांति मिलेगी। यहोवा हमारे मामले में भी बनने का कारण होगा। कैसे? वह हमें अपने बेटे-बेटियाँ बनाएगा, जैसा उसने शुरू में चाहा था। तब हम उसके गुण पूरी हद तक दर्शा पाएँगे। (उत्प. 1:26) यहोवा आज भी एक पिता की तरह हमारा खयाल रखता है और एक चरवाहे की तरह हमारी रक्षा करता है। बहुत जल्द वह हमारा राजा बनकर जीत हासिल करेगा। उस दिन के आने से पहले आइए उन बातों पर अमल करें जो हमने यहेजकेल किताब से सीखी हैं। अगर हमने जाना है कि यहोवा कौन है और वह कैसा परमेश्‍वर है, तो हम हर दिन ध्यान रखेंगे कि हमारी बोली और हमारे काम सही हों। फिर जब महा-संकट की विनाशकारी हवाएँ छोड़ी जाएँगी, तो हम डरेंगे नहीं। हम सिर उठाकर खड़े होंगे, क्योंकि हमारा छुटकारा करीब होगा। (लूका 21:28) उस समय के आने तक आइए हम लोगों को बताते रहें कि वे यहोवा को जानें और उससे प्यार करें, क्योंकि सिर्फ वही उपासना पाने के योग्य है और उसका नाम यहोवा सब नामों से महान है।—यहे. 28:26.

a ये अध्याय इस किताब के अध्याय हैं, न कि यहेजकेल किताब के अध्याय।

शुद्ध उपासना के बारे में आपने क्या सीखा?

  1. यहेजकेल किताब से हमने कौन-सी बातें सीखीं?

  2. मसीह के हज़ार साल के राज में आप कौन-सी आशीषें पाने का इंतज़ार कर रहे हैं?

  3. अंतिम परीक्षा का सामना करने के लिए आप अभी से कैसे तैयार हो सकते हैं?

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