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  • “हे छोटे झुण्ड, मत डर”
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
w95 2/15 पेज 18-22

“हे छोटे झुण्ड, मत डर”

“हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे।” —लूका १२:३२.

१. यीशु के शब्दों, “हे छोटे झुण्ड, मत डर” के लिए आधार क्या था?

‘परमेश्‍वर के राज्य की खोज में रहो।’ (लूका १२:३१) जब यीशु ने अपने शिष्यों को ये शब्द कहे, उसने एक सिद्धान्त व्यक्‍त किया जिसने उसके समय से हमारे समय तक मसीहियों के सोच-विचार को मार्गदर्शित किया है। परमेश्‍वर के राज्य को हमारे जीवन में पहला स्थान मिलना चाहिए। (मत्ती ६:३३) लेकिन, लूका के वृत्तान्त में इसके बाद यीशु ने मसीहियों के एक विशेष समूह को प्रीतिकर और आश्‍वासन देनेवाले शब्द कहे। उसने कहा: “हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे।” (लूका १२:३२) अच्छे चरवाहे के तौर पर, यीशु जानता था कि उसके घनिष्ठ शिष्यों पर आगे चलकर कठिनाई आनेवाली थी। लेकिन यदि वे परमेश्‍वर के राज्य की खोज करते रहते तो उनके लिए डरने का कोई कारण नहीं था। इसलिए, यीशु का आग्रह कठोर आज्ञा नहीं थी। इसके बजाय, यह एक प्रेमपूर्ण प्रतिज्ञा थी जिसने विश्‍वास और साहस को प्रेरित किया।

२. छोटा झुण्ड किनसे बना है, और वे विशेष रूप से विशेषाधिकार-प्राप्त क्यों हैं?

२ यीशु अपने शिष्यों से बात कर रहा था, और उसने उन्हें एक ‘छोटा झुण्ड’ कहा। वह उनसे भी बात कर रहा था जिन्हें यहोवा ‘राज्य देता।’ उस विशाल भीड़ की तुलना में जो बाद में यीशु को स्वीकार करती, इस समूह के लोग वाक़ई संख्या में थोड़े थे। उन्हें इसलिए भी मूल्यवान समझा गया क्योंकि उन्हें एक अद्‌भुत भविष्य के लिए, राजकीय सेवा में प्रयोग किए जाने के लिए चुना गया था। उनका पिता, महान चरवाहा यहोवा, मसीह के मसीहाई राज्य के सम्बन्ध में छोटे झुण्ड को एक स्वर्गीय उत्तराधिकार हासिल करने के लिए बुलाता है।

छोटा झुण्ड

३. छोटे झुण्ड का कौन-सा महिमायुक्‍त दर्शन यूहन्‍ना ने देखा?

३ ऐसी बढ़िया प्रत्याशा रखनेवाला यह छोटा झुण्ड किससे बना है? यीशु मसीह के अनुनायी जो पवित्र आत्मा से अभिषेक हासिल करते हैं। (प्रेरितों २:१-४) उनको अपने हाथों में वीणा लिए हुए स्वर्गीय गायकों के तौर पर देखते हुए, प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “मैं ने दृष्टि की, और देखो, वह मेम्ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौआलीस हजार जन हैं, जिन के माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है। ये वे हैं, जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुंवारे हैं: ये वे ही हैं, कि जहां कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं: ये तो परमेश्‍वर के निमित्त पहिले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं। और उन के मुंह से कभी झूठ न निकला था, वे निर्दोष हैं।”—प्रकाशितवाक्य १४:१, ४, ५.

४. छोटे झुण्ड का आज पृथ्वी पर क्या पद है?

४ पिन्तेकुस्त सा.यु. ३३ से, इन अभिषिक्‍त, आत्मा से जन्मे व्यक्‍तियों ने पृथ्वी पर मसीह के राजदूतों के तौर पर काम किया है। (२ कुरिन्थियों ५:२०) आज, उनका सिर्फ़ शेष भाग ही बचा है, जो एकसाथ मिलकर विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग के तौर पर कार्य करता है। (मत्ती २४:४५; प्रकाशितवाक्य १२:१७) विशेषकर १९३५ से, उनके साथ ‘अन्य भेड़ें’ जुड़ गयी हैं, अर्थात्‌ ऐसे मसीही जिनके पास एक पार्थिव आशा है और जिनकी गिनती अब लाखों में है। ये सारी पृथ्वी पर सुसमाचार का प्रचार करने में सहायता करते हैं।—यूहन्‍ना १०:१६, NW.

५. छोटे झुण्ड के शेष जनों की मनोवृत्ति क्या है, और उन्हें क्यों डरने की कोई ज़रूरत नहीं है?

५ इस छोटे झुण्ड के शेष जन, जो अब भी पृथ्वी पर हैं, उनकी मनोवृत्ति क्या है? यह जानते हुए कि उन्हें ‘राज्य जो हिलने का नहीं’ प्राप्त होनेवाला है, वे अपनी पवित्र सेवा ईश्‍वरीय भक्‍ति और भय सहित करते हैं। (इब्रानियों १२:२८) वे नम्रतापूर्वक समझते हैं कि उनका एक अमूल्य विशेषाधिकार है जिसका परिणाम असीम आनन्द है। उन्हें “एक बहुमूल्य मोती” मिला है, जिसका उल्लेख राज्य के बारे में बात करते वक़्त यीशु ने किया। (मत्ती १३:४६) जैसे-जैसे बड़ा क्लेश निकट आता जाता है, परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त जन निडर खड़े रहते हैं। “प्रभु [यहोवा, NW] के महान और प्रसिद्ध दिन” के दौरान मानवजाति पर जो गुज़रने वाला है उसके बावजूद, उन्हें भविष्य का कोई अहितकर भय नहीं है। (प्रेरितों २:१९-२१) उन्हें डर लगे भी क्यों?

संख्या कम होती है

६, ७. (क) पृथ्वी पर छोटे झुण्ड की संख्या आज काफ़ी कम क्यों है? (ख) प्रत्येक व्यक्‍ति को अपनी आशा के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखना चाहिए?

६ हाल ही के वर्षों में पृथ्वी पर छोटे झुण्ड की संख्या काफ़ी कम हो गयी है। यह १९९४ की स्मारक रिपोर्ट से स्पष्ट था। संसार-भर में यहोवा के लोगों की लगभग ७५,००० कलीसियाओं में, सिर्फ़ ८,६१७ व्यक्‍तियों ने प्रतीकों में भाग लेने के द्वारा उस शेषवर्ग के सदस्य होने की अपनी स्वीकृति प्रदर्शित की। (मत्ती २६:२६-३०) इसके विपरीत, कुल उपस्थिति १,२२,८८,९१७ थी। अभिषिक्‍त मसीही जानते हैं कि इसकी अपेक्षा की जानी चाहिए। यहोवा ने छोटा झुण्ड बनाने के लिए एक सीमित संख्या, १,४४,००० को निर्धारित किया है, और वह उन्हें पिन्तेकुस्त सा.यु. ३३ से इकट्ठा करता रहा है। तर्कसंगत रूप से, छोटे झुण्ड का बुलाया जाना तब समाप्त होता जब उनकी संख्या पूरी होने के क़रीब आती, और प्रमाण यह है कि इन विशेष रूप से आशीष-प्राप्त लोगों का सामान्य एकत्रीकरण १९३५ में समाप्त हुआ। लेकिन, भविष्यवाणी की गयी थी कि अन्त के समय में अन्य भेड़ बढ़कर “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़” हो जाएगी, “जिसे कोई गिन नहीं सकता।” यहोवा ने १९३५ से इस बड़ी भीड़ का सामान्य एकत्रीकरण किया है, जिसकी आशा परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन है।—प्रकाशितवाक्य ७:९; १४:१५, १६; भजन ३७:२९.

७ छोटे झुण्ड के अधिकांश जन जो अब भी पृथ्वी पर हैं अब अपने जीवन के सातवें, आठवें और नौवें दशक में हैं। कुछ जन अपने जीवन के सौ वर्ष पार कर चुके हैं। ये सभी, चाहे इनकी उम्र कितनी भी हो, जानते हैं कि स्वर्गीय पुनरुत्थान के ज़रिए, वे आख़िरकार यीशु मसीह के साथ मिल जाएँगे और उसके महिमायुक्‍त राज्य में उसके साथ शासन करेंगे। जो बड़ी भीड़ के हैं वे मसीह, अर्थात्‌ राजा की पार्थिव प्रजा होंगे। यहोवा ने उससे प्रेम करनेवालों के लिए जो रखा है, उस में हर एक व्यक्‍ति आनन्द करे। यह चुनाव हमारा नहीं है कि कौन-सी आशा रखें। यहोवा इसे निर्धारित करता है। दोनों समूह एक आनन्दपूर्ण भविष्य की अपनी आशा में हर्षित हो सकते हैं, चाहे वह स्वर्गीय राज्य में हो या उस राज्य के अधीन परादीस पृथ्वी पर हो।—यूहन्‍ना ६:४४, ६५; इफिसियों १:१७, १८.

८. १,४४,००० का मुहर लगाया जाना कहाँ तक पहुँच गया है, और जब यह समाप्त हो जाएगा तब क्या होगा?

८ छोटा झुण्ड जिसकी निश्‍चित संख्या १,४४,००० है, ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ है जिसने परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों में शारीरिक इस्राएल की जगह ली है। (गलतियों ६:१६) इसलिए, यह शेषवर्ग उस आत्मिक जाति का शेषभाग बनता है जो अब भी पृथ्वी पर है। ऐसे शेष जनों पर यहोवा की अन्तिम स्वीकृति के लिए मुहर लगायी जा रही है। एक दर्शन में, प्रेरित यूहन्‍ना ने यह होते हुए देखा, और उसने रिपोर्ट किया: “मैं ने एक और स्वर्गदूत को जीवते परमेश्‍वर की मुहर लिए हुए पूरब से ऊपर की ओर आते देखा; उस ने उन चारों स्वर्गदूतों से जिन्हें पृथ्वी और समुद्र की हानि करने का अधिकार दिया गया था, ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा। जब तक हम अपने परमेश्‍वर के दासों के माथे पर मुहर न लगा दें, तब तक पृथ्वी और समुद्र और पेड़ों को हानि न पहुंचाना। और जिन पर मुहर दी गई, मैं ने उन की गिनती सुनी, कि [आत्मिक] इस्राएल की सन्तानों के सब गोत्रों में से एक लाख चौआलीस हजार पर मुहर दी गई।” (प्रकाशितवाक्य ७:२-४) क्योंकि आत्मिक इस्राएल पर मुहर लगाने का यह काम स्पष्टतया समाप्ति के क़रीब है, जल्द होनेवाली उत्तेजक घटनाओं की पूर्वसूचना दी गयी है। एक बात तो यह है, ‘वह बड़ा क्लेश’ बहुत ही क़रीब होना चाहिए, जब विनाश की चारों हवाओं को पृथ्वी पर छोड़ दिया जाता है।—प्रकाशितवाक्य ७:१४.

९. छोटा झुण्ड बड़ी भीड़ की बढ़ती हुई संख्या को किस नज़र से देखता है?

९ जो बड़ी भीड़ में पहले ही इकट्ठे किए जा चुके हैं उनकी गिनती लाखों में है। यह शेषवर्ग के हृदयों को कितने उत्साह से भर देता है! यद्यपि पृथ्वी पर छोटे झुण्ड के सदस्यों की संख्या कम होना जारी है, परमेश्‍वर के विस्तृत हो रहे पार्थिव संगठन के सम्बन्ध में ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के लिए उन्होंने बड़ी भीड़ के योग्य पुरुषों को प्रशिक्षण दिया और तैयार किया है। (यशायाह ६१:५) जैसे यीशु ने सूचित किया, बड़े क्लेश के उत्तरजीवी होंगे।—मत्ती २४:२२.

“मत डर”

१०. (क) परमेश्‍वर के लोगों पर कौन-सा हमला किया जानेवाला है, और यह किस घटना की ओर ले जाएगा? (ख) हम में से प्रत्येक व्यक्‍ति से कौन-से प्रश्‍न पूछे गए हैं?

१० शैतान और उसके पिशाचों को पृथ्वी के प्रतिवेश में गिरा दिया गया है। उस पर और उसके दल पर युक्‍ति चलायी जा रही है ताकि वे यहोवा के लोगों पर अपनी पूरी शक्‍ति से हमला करें। बाइबल में पूर्वबताए गए इस हमले का वर्णन मागोग देश के गोग के हमले के तौर पर किया गया है। इब्‌लीस विशेषकर अपना आक्रमण किस पर केंद्रित करता है? क्या छोटे झुण्ड के आख़री सदस्यों, अर्थात्‌ परमेश्‍वर के आत्मिक इस्राएल पर नहीं, जो शांतिपूर्वक “पृथ्वी के केन्द्र में बसे हुए हैं”? (यहेजकेल ३८:१-१२, NHT) जी हाँ, लेकिन विश्‍वासयोग्य अभिषिक्‍त वर्ग का शेष भाग, अपने निष्ठावान्‌ साथी, अन्य भेड़ों के साथ देखेंगे कि कैसे शैतान का हमला, यहोवा परमेश्‍वर की ओर से एक नाटकीय प्रतिक्रिया को जन्म देगा। वह अपने लोगों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करेगा, और यह “यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन” की शुरूआत को प्रेरित करेगा। (योएल २:३१) आज, विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास एक अत्यावश्‍यक, जीवनरक्षक कार्य पूरा कर रहा है, यहोवा द्वारा किए जानेवाले इस हस्तक्षेप के बारे में चेतावनी दे रहा है। (मलाकी ४:५; १ तीमुथियुस ४:१६) क्या आप सक्रिय रूप से इस सेवा को समर्थन दे रहे हैं, यहोवा के राज्य के सुसमाचार के प्रचार में हिस्सा ले रहे हैं? क्या आप एक निडर राज्य उद्‌घोषक के रूप से ऐसा करना जारी रखेंगे?

११. साहसपूर्ण मनोवृत्ति आज अत्यावश्‍यक क्यों है?

११ संसार की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, यीशु द्वारा उनको कहे गए शब्दों को मानना छोटे झुण्ड के लिए कितना समयोचित है: “हे छोटे झुण्ड, मत डर”! यहोवा के उद्देश्‍य के सामंजस्य में अब जो कुछ पूरा किया जा रहा है उसे ध्यान में रखते हुए ऐसी साहसपूर्ण मनोवृत्ति आवश्‍यक है। व्यक्‍तिगत रूप से, छोटे झुण्ड का प्रत्येक जन अन्त तक धीरज धरने की ज़रूरत को महसूस करता है। (लूका २१:१९) जैसे छोटे झुण्ड के प्रभु और स्वामी, यीशु मसीह ने धीरज धरा और अपने पार्थिव जीवन की समाप्ति तक वफ़ादार साबित हुआ, वैसे ही शेषवर्ग के प्रत्येक जन को धीरज धरना है और वफ़ादार साबित होना है।—इब्रानियों १२:१, २.

१२. यीशु की तरह, पौलुस ने कैसे अभिषिक्‍त मसीहियों से न डरने का आग्रह किया?

१२ सभी अभिषिक्‍त जनों का वैसा ही दृष्टिकोण होना चाहिए जैसा प्रेरित पौलुस का था। ध्यान दीजिए कि पुनरुत्थान के एक अभिषिक्‍त सार्वजनिक उद्‌घोषक के तौर पर उसके शब्द कैसे यीशु के आग्रह, मत डर, के सामंजस्य में हैं। पौलुस ने लिखा: “यीशु मसीह को स्मरण रख, जो दाऊद के वंश से हुआ, और मरे हुओं में से जी उठा; और यह मेरे सुसमाचार के अनुसार है। जिस के लिये मैं कुकर्मी की नाईं दुख उठाता हूं, यहां तक कि कैद भी हूं; परन्तु परमेश्‍वर का वचन कैद नहीं। इस कारण मैं चुने हुए लोगों के लिये सब कुछ सहता हूं, कि वे भी उस उद्धार को जो मसीह यीशु में है अनन्त महिमा के साथ पाएं। यह बात सच [विश्‍वासयोग्य, फुटनोट] है, कि यदि हम उसके साथ मर गए हैं तो उसके साथ जीएंगे भी। यदि हम धीरज से सहते रहेंगे, तो उसके साथ राज्य भी करेंगे: यदि हम उसका इन्कार करेंगे तो वह भी हमारा इन्कार करेगा। यदि हम अविश्‍वासी भी हों तौभी वह विश्‍वासयोग्य बना रहता है, क्योंकि वह आप अपना इन्कार नहीं कर सकता।”—२ तीमुथियुस २:८-१३.

१३. छोटे झुण्ड के सदस्य कौन-से गहरे विश्‍वास पर निरन्तर भरोसा रखते हैं, और यह उन्हें क्या करने के लिए प्रेरित करता है?

१३ प्रेरित पौलुस की तरह, अभिषिक्‍त छोटे झुण्ड के शेष सदस्य जैसे-जैसे परमेश्‍वर के वचन में दिए गए शक्‍तिशाली संदेश की घोषणा करते हैं, वे पीड़ा सहने के लिए तैयार हैं। उद्धार की और मृत्यु तक वफ़ादार साबित होने पर उनको “जीवन का मुकुट” दिए जाने की ईश्‍वरीय प्रतिज्ञाओं पर निरन्तर भरोसा रखते हुए, उनका विश्‍वास गहरा है। (प्रकाशितवाक्य २:१०) एक तात्कालिक पुनरुत्थान और परिवर्तन का अनुभव करने के द्वारा, वे मसीह के साथ एक किए जाएँगे कि उसके साथ राजाओं के तौर पर शासन करें। विश्‍व-विजेताओं के तौर पर उनके खराई रखने के जीवन-क्रम की क्या ही विजय!—१ यूहन्‍ना ५:३, ४.

एक अनोखी आशा

१४, १५. छोटे झुण्ड के पुनरुत्थान की आशा कैसे अनोखी है?

१४ छोटे झुण्ड की पुनरुत्थान की आशा अनोखी है। किन तरीक़ों से? पहले तो, यह “धर्मी और अधर्मी” लोगों के सामान्य पुनरुत्थान से पहले होता है। (प्रेरितों २४:१५) असल में, अभिषिक्‍त जनों का पुनरुत्थान, महत्त्व के एक निश्‍चित क्रम में आता है, जो १ कुरिन्थियों १५:२०, २३ में पाए गए इन शब्दों से स्पष्टतया स्थापित किया गया है: “मसीह मुर्दों में से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उन में पहिला फल हुआ। परन्तु हर एक अपनी अपनी बारी से; पहिला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग।” जैसा यीशु ने प्रदर्शित किया वैसा धीरज और विश्‍वास रखने के द्वारा, छोटा झुण्ड जानता है कि जब वे अपना पार्थिव जीवन समाप्त करते हैं तो उनके लिए क्या रखा है, विशेषकर तब से जब सच्चा प्रभु १९१८ में अपने मंदिर में न्याय के लिए आया।—मलाकी ३:१.

१५ इस पुनरुत्थान को अनोखा समझने के लिए पौलुस हमें एक और कारण देता है। जैसे १ कुरिन्थियों १५:५१-५३ में अभिलिखित है, उसने लिखा: “देखो, मैं तुम से भेद की बात कहता हूं: कि हम सब तो नहीं सोएंगे, परन्तु सब बदल जाएंगे। और यह क्षण भर में, पलक मारते ही पिछली तुरही फूंकते ही होगा . . . क्योंकि अवश्‍य है, कि यह नाशमान देह अविनाश को पहिन ले, और यह मरनहार देह अमरता को पहिन ले।” ये शब्द छोटे झुण्ड के उन व्यक्‍तियों को लागू होते हैं जो मसीह की उपस्थिति के दौरान मरते हैं। मृत्यु में लंबी अवधि तक सोए बिना ही, उन्हें अमरता दी जाती है, “क्षण भर में, पलक मारते ही।”

१६, १७. उनके पुनरुत्थान की आशा के सम्बन्ध में, अभिषिक्‍त मसीही आज विशेष रूप से कैसे आशीष-प्राप्त हैं?

१६ इस समझ की रोशनी में, हम प्रकाशितवाक्य १४:१२, १३ में पाए जानेवाले प्रेरित यूहन्‍ना के शब्दों का अर्थ समझ सकते हैं। उसने लिखा: “पवित्र लोगों का धीरज इसी में है, जो परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु पर विश्‍वास रखते हैं। और मैं ने स्वर्ग से यह शब्द सुना, कि लिख; जो मुरदे प्रभु में मरते हैं, वे अब से धन्य हैं, आत्मा कहता है, हां क्योंकि वे अपने परिश्रमों से विश्राम पाएंगे, और उन के कार्य्य उन के साथ हो लेते हैं।”

१७ छोटे झुण्ड के शेषवर्ग के लिए क्या ही एक अनोखा प्रतिफल रखा गया है! उनका पुनरुत्थान जल्द होगा, उनके मृत्यु में सोने के तुरंत बाद। वे क्या ही एक अनोखे परिवर्तन का अनुभव करेंगे जब वे आत्मिक क्षेत्र में अपनी कार्य-नियुक्‍ति शुरू करेंगे! छोटे झुण्ड की ऐसी महिमा-प्राप्ति चलते वक़्त और मुख्य बाइबल भविष्यवाणियों की क़रीब-क़रीब पूर्ति होते वक़्त, छोटे झुण्ड के आख़री शेष सदस्यों को सचमुच ‘डरने’ की कोई ज़रूरत नहीं। और उनकी निडरता बड़ी भीड़ के उन व्यक्‍तियों को प्रोत्साहित करती है, जिन्हें निडरता की समान मनोवृत्ति विकसित करनी चाहिए जब वे इस पृथ्वी पर अधिकतम मुसीबत की घड़ी से छुटकारा पाने की प्रत्याशा करते हैं।

१८, १९. (क) हम जिस समय में रहते हैं वह महत्त्वपूर्ण क्यों है? (ख) अभिषिक्‍त और अन्य भेड़ दोनों को क्यों कोई डर नहीं होना चाहिए?

१८ छोटे झुण्ड की गतिविधियों का वर्णन करना उन्हें और बड़ी भीड़ को सच्चे परमेश्‍वर का भय मानते रहने के लिए समर्थ करता है। उसके न्याय करने की घड़ी आ चुकी है, और बचा हुआ अनुकूल समय सीमित और इसलिए क़ीमती है। वाक़ई, दूसरों के पास कार्य करने के लिए समय सीमित है। लेकिन, हमें यह डर नहीं है कि परमेश्‍वर का उद्देश्‍य असफल होगा। यह निश्‍चय ही सफल होगा!

१९ अभी से, ऊँची स्वर्गीय आवाज़ों को यह कहते हुए सुना गया है: “जगत का राज्य हमारे प्रभु का, और उसके मसीह का हो गया। और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” (प्रकाशितवाक्य ११:१५, १६) निश्‍चय ही, महान चरवाहा, यहोवा अपनी सारी भेड़ों को ‘धर्म के मार्गों में अपने नाम के निमित्त’ मार्गदर्शन दे रहा है। (भजन २३:३) छोटे झुण्ड को अचूक रूप से उनके स्वर्गीय प्रतिफल की ओर ले जाया जा रहा है। और अन्य भेड़ों को बड़े क्लेश से सुरक्षित छुटकारा प्राप्त होगा ताकि मसीह यीशु के शासन के अधीन परमेश्‍वर के महिमावान राज्य के पार्थिव क्षेत्र में अनन्त जीवन का आनन्द उठाएँ। इसलिए, जबकि यीशु के शब्द छोटे झुण्ड को सम्बोधित थे, निश्‍चय ही पृथ्वी पर परमेश्‍वर के सभी सेवकों को उसके शब्दों को सुनने का कारण है: “मत डर।”

क्या आप समझा सकते हैं?

◻ छोटे झुण्ड की शेष संख्या के कम होने की हमें क्यों अपेक्षा करनी चाहिए?

◻ आज अभिषिक्‍त शेषवर्ग की क्या स्थिति है?

◻ मागोग देश के गोग के आनेवाले हमले के बावजूद, मसीहियों को क्यों कोई डर नहीं होना चाहिए?

◻ १,४४,००० लोगों की पुनरुत्थान की आशा विशेषकर आज अनोखी क्यों है?

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