‘एक दूसरे के अपराध क्षमा करते रहो’
“एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।”—कुलुस्सियों ३:१३.
१. (क) जब पतरस ने यह सुझाव दिया कि हम दूसरों को “सात बार” क्षमा करें, तो उसने शायद यह क्यों सोचा हो कि वह बहुत उदारता दिखा रहा था? (ख) यीशु का क्या मतलब था जब उसने कहा कि हमें “सात बार के सत्तर गुने तक” क्षमा करना चाहिए?
“हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करू, क्या सात बार तक?” (मत्ती १८:२१) पतरस ने शायद सोचा हो कि अपने सुझाव में वह बहुत उदारता दिखा रहा था। उस समय पर, रब्बीनी परंपरा कहती थी कि एक व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए तीन बार से ज़्यादा क्षमा नहीं दी जानी चाहिए।a तब, पतरस के आश्चर्य की कल्पना कीजिए जब यीशु ने जवाब दिया: “मैं तुझ से यह नहीं कहता, कि सात बार, बरन सात बार के सत्तर गुने तक”! (मत्ती १८:२२) सात को दोहराने का मतलब था “हमेशा।” यीशु की नज़र में, दरअसल इसकी कोई सीमा नहीं है कि एक मसीही दूसरों को कितनी बार क्षमा करे।
२, ३. (क) ऐसी कौन-सी कुछ परिस्थितियाँ हैं जिनमें दूसरों को क्षमा करना शायद कठिन लगे? (ख) हम क्यों विश्वस्त हो सकते हैं कि दूसरों को क्षमा करना हमारे अपने फ़ायदे के लिए है?
२ लेकिन इस सलाह को लागू करना, हमेशा आसान नहीं होता। हममें ऐसा कौन है जिसने बेजा चोट का ज़ख़्म न खाया हो? शायद जिस पर आपका यक़ीन था उसने आपको धोखा दिया हो। (नीतिवचन ११:१३) शायद एक पक्के दोस्त का बिना सोचे-समझे बोलना ‘आपको तलवार की नाईं चुभ गया हो।’ (नीतिवचन १२:१८) शायद जिसे आपने प्यार किया या जिस पर भरोसा किया उसके बुरे सलूक ने आपको गहरी चोट पहुँचाई हो। जब ऐसी बातें होती हैं, तो जवाब में शायद हमें सहज ही गुस्सा आए। हम शायद उस व्यक्ति से बात करना न चाहें या जहाँ तक संभव हो उससे दूर ही रहें। ऐसा लग सकता है कि उसे क्षमा करने का मतलब है उसे यूँ ही छोड़ देना। फिर भी, मन में नफ़रत रखने से हमारा ही नुक़सान होगा।
३ इसीलिए यीशु हमें—“सात बार के सत्तर गुने तक”—क्षमा करने की शिक्षा देता है। निश्चित ही उसकी शिक्षा से हमें कभी नुक़सान नहीं होगा। जो कुछ उसने सिखाया वह यहोवा से था, जो ‘हमें हमारे लाभ के लिये शिक्षा देता है।’ (यशायाह ४८:१७; यूहन्ना ७:१६, १७) तर्कसंगत है कि दूसरों को क्षमा करना हमारे लाभ के लिए ही होगा। इस पर चर्चा करने से पहले कि हमें क्यों क्षमा करना चाहिए और हम यह कैसे कर सकते हैं, यह स्पष्ट करना शायद फ़ायदेमंद हो कि क्षमा क्या है और क्या नहीं। क्षमा के बारे में हमारी धारणा का दूसरों को क्षमा करने की हमारी योग्यता पर शायद कुछ असर पड़े जब वे हमें चोट पहुँचाते हैं।
४. दूसरों को क्षमा करने का मतलब क्या नहीं है, लेकिन क्षमा को कैसे परिभाषित किया गया है?
४ हमारे प्रति किए गए अपराधों के लिए उन्हें क्षमा करने का यह मतलब नहीं है कि जो उन्होंने किया है हम उसे नज़रअंदाज़ कर रहे हैं या उसे हलका समझ रहे हैं; न ही इसका यह मतलब है कि आप दूसरों को अपना नाजायज़ फ़ायदा उठाने दें। आख़िरकार जब यहोवा हमें क्षमा करता है तो वह निश्चित ही हमारे पापों को कम नहीं समझता और वह कभी-भी पापमय मनुष्यों को अपनी दया को पैरों तले रौंदने की अनुमति नहीं देगा। (इब्रानियों १०:२९) शास्त्र पर अंतर्दृष्टि (अंग्रेज़ी) के अनुसार, क्षमा को इस तरह परिभाषित किया गया है “एक अपराधी को माफ़ करने का कार्य; उसके अपराध की वज़ह से उससे नफ़रत न करना और उससे बदला लेने की कोई कोशिश न करना।” (खंड १, पृष्ठ ८६१)b दूसरों को क्षमा करने के लिए बाइबल हमें अच्छे कारण प्रदान करती है।
दूसरों को क्षमा क्यों करें?
५. इफिसियों ५:१ में दूसरों को क्षमा करने का कौन-सा महत्त्वपूर्ण कारण बताया गया है?
५ दूसरों को क्षमा करने का एक महत्त्वपूर्ण कारण इफिसियों ५:१ में दिया है: “इसलिये प्रिय, बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो।” किस तरह हमें ‘परमेश्वर के सदृश्य बनना’ चाहिए? शब्द “इसलिये” इस पद को पिछली आयत के साथ जोड़ता है, जो कहती है: “एक दूसरे पर कृपाल, और करुणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।” (तिरछे टाइप हमारे।) (इफिसियों ४:३२) जी हाँ, जब क्षमा करने की बात आती है तो हमें परमेश्वर के सदृश्य बनना चाहिए। जैसे एक छोटा लड़का बिलकुल अपने पिता की तरह बनना चाहता है वैसे ही उन बच्चों के नाते जिन्हें यहोवा बहुत अज़ीज़ समझता है, हमें क्षमा करनेवाले अपने स्वर्गीय पिता की तरह बनने की इच्छा होनी चाहिए। स्वर्ग से यह देखकर यहोवा का दिल कितना ख़ुश होता होगा कि उसके पार्थिव बच्चे एक दूसरे को क्षमा करने के द्वारा उसके सदृश्य बनने की कोशिश कर रहे हैं!—लूका ६:३५, ३६. मत्ती ५:४४-४८ से तुलना कीजिए।
६. यहोवा की क्षमा और हमारी क्षमा में किस प्रकार ज़मीन-आसमान का अंतर है?
६ सच है कि हम उस संपूर्ण अर्थ में क्षमा नहीं कर सकते जैसे यहोवा करता है। लेकिन यह और भी बड़ा कारण है कि क्यों हमें एक दूसरे को क्षमा करना चाहिए। ग़ौर कीजिए: यहोवा की क्षमा में और हमारी क्षमा में ज़मीन-आसमान का अंतर है। (यशायाह ५५:७-९) जब हम अपने ख़िलाफ़ पाप करनेवालों को क्षमा करते हैं तो अकसर यह इस बात को जानते हुए होता कि कभी-न-कभी हमें भी उनकी ज़रूरत पड़ेगी कि वे हमें क्षमा करके हम पर अनुग्रह करें। मनुष्यों में हमेशा पापी ही पापी को क्षमा करता है। लेकिन यहोवा के मामले में क्षमा हमेशा एकतरफ़ा ही होती है। वह हमें क्षमा करता है, लेकिन हमें कभी-भी उसे क्षमा करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। अगर यहोवा, जो कभी पाप नहीं करता, इस क़दर प्रेमपूर्वक और पूरी तरह से हमें क्षमा कर सकता है, तो क्या हम पापी मनुष्यों को एक दूसरे को क्षमा करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए?—मत्ती ६:१२.
७. जब दया दिखाने का आधार होता है और हम दूसरों को क्षमा करने से इनकार कर देते हैं, तो यह यहोवा के साथ हमारे अपने संबंध पर कैसे बुरा असर डाल सकता है?
७ इससे भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है कि अगर हम दूसरों को क्षमा नहीं करते जबकि दया दिखाने का आधार होता है, तो यह परमेश्वर के साथ हमारे संबंध पर बुरा असर डाल सकता है। यहोवा हमसे एक दूसरे को क्षमा करने के लिए सिर्फ़ कहता ही नहीं; वह हमसे ऐसी उम्मीद भी रखता है। शास्त्र के अनुसार, हमें क्षमाशील होने की कुछ प्रेरणा इस बात से भी मिलती है कि यहोवा हमें भी क्षमा करेगा या क्योंकि उसने हमें क्षमा किया है। (मत्ती ६:१४; मरकुस ११:२५; इफिसियों ४:३२; १ यूहन्ना ४:११) तब अगर हम अच्छे कारण होने के बावजूद भी दूसरों को क्षमा नहीं करना चाहते, तो क्या हम सचमुच यहोवा से ऐसी क्षमा की उम्मीद कर सकते हैं?—मत्ती १८:२१-३५.
८. क्षमाशील होना हमारे अपने फ़ायदे के लिए क्यों है?
८ यहोवा अपने लोगों को “वह भला मार्ग” सिखाता है “जिस पर उन्हें चलना चाहिये।” (१ राजा ८:३६) जब वह हमें एक दूसरे को क्षमा करने का निर्देश देता है, तो हम आश्वस्त हो सकते हैं कि वह हमारी भलाई चाहता है। अच्छे कारणों से बाइबल हमें “क्रोध को अवसर” देने के लिए बताती है। (रोमियों १२:१९) नफ़रत ज़िंदगी में भारी बोझ को लिए फिरने के समान है। जब हम इसे दिल में रखते हैं, तो यह हमारे विचारों में हमेशा रहती है, हमारी शांति छीन लेती है और ख़ुशी को ख़त्म कर देती है। बहुत समय तक गुस्सा रखना, जलन की तरह, हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है। (नीतिवचन १४:३०) और जबकि हम इन बातों से गुज़र रहे हैं, हमारा अपराधी शायद हमारी बुरी दशा से बेख़बर हो! हमारा प्रेममय सृष्टिकर्ता जानता है कि हमें दूसरों को न सिर्फ़ उनके फ़ायदे के लिए, बल्कि हमारे अपने फ़ायदे के लिए भी खुलकर क्षमा करने की ज़रूरत है। क्षमा करने की बाइबल की सलाह वाक़ई ‘चलने के लिए भला मार्ग’ है।
‘एक दूसरे की सहते रहो’
९, १०. (क) किस तरह की परिस्थितियों में औपचारिक क्षमा ज़रूरी नहीं है? (ख) अभिव्यक्ति ‘एक दूसरे की सहते रहो’ से क्या सलाह दी गयी है?
९ शारीरिक चोटें छोटी-मोटी ख़रोंच से लेकर गहरे घाव तक हो सकती हैं और सभी का एक जैसा ध्यान रखने की ज़रूरत नहीं होती। जब भावनाओं को चोट लगती है तब भी ऐसा ही होता है—कुछ घाव बाक़ी घावों से गहरे होते हैं। तो क्या दूसरों के साथ हमारे संबंध में हमें जो छोटी-से-छोटी ख़रोंच लगती है उसके लिए वाक़ई हंगामा खड़ा करने की ज़रूरत है? थोड़ी-बहुत चिड़चिड़ाहट, अपमान और खीझ ज़िंदगी का हिस्सा हैं और इनके लिए औपचारिक रूप से क्षमा ज़रूरी नहीं। अगर हम एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं जो हर छोटी बात का बुरा मानकर दूसरों से कटने लगता है और फिर आइंदा अच्छा व्यवहार करने से पहले जो माफ़ी माँगने पर तूल देता है, तो शायद हम उन्हें हमारे साथ सतर्कता बरतने—या दूर ही रहने के लिए मजबूर करें!
१० इसके बजाय, “कोमल होने के लिए जाने जाना” कहीं बेहतर है। (फिलिप्पियों ४:५, फिलिप्पस्) कंधे-से-कंधा मिलाकर काम कर रहे अपरिपूर्ण प्राणियों के नाते, उचित ही हम इस बात की उम्मीद रख सकते हैं कि कभी-कभी हमारे भाई हमें क्रोध दिलाएँगे ही और हम भी शायद उन्हें क्रोध दिलाएँ। कुलुस्सियों ३:१३ हमें सलाह देता है: “एक दूसरे की सह लो।” यह अभिव्यक्ति दूसरों के साथ धीरजवंत बनने की सलाह देती है, उनकी जो बातें हमें बुरी लगती हैं या जो आदतें हमें खीझ दिलाती हैं, उन्हें बर्दाश्त करना। ऐसा धीरज और आत्म-संयम हमें ऐसी छोटी-छोटी ख़राशों और ख़रोंचों से—कलीसिया की शांति भंग किए बिना—निपटने में मदद कर सकते हैं जो हमें दूसरों के साथ अपने व्यवहार में लगती हैं।—१ कुरिन्थियों १६:१४.
जब घाव गहरे होते हैं
११. जब दूसरे हमारे ख़िलाफ़ पाप करते हैं, तो उन्हें क्षमा करने में क्या हमारी मदद कर सकता है?
११ लेकिन तब क्या जब दूसरे हमारे ख़िलाफ़ ऐसा पाप करें जिससे हमें काफ़ी चोट पहुँचे? अगर पाप बहुत गंभीर नहीं, तो हमें शायद बाइबल की ‘एक दूसरे के अपराध क्षमा करने’ की सलाह लागू करने में ज़्यादा कठिनाई न हो। (इफिसियों ४:३२) क्षमा करने की ऐसी तत्परता पतरस के उत्प्रेरित शब्दों से मेल खाती है: “सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।” (१ पतरस ४:८) यह बात मन में रखना कि हम भी पापी हैं दूसरों की ग़लतियों को माफ़ करने की गुंजाइश प्रदान करने में समर्थ करता है। जब हम इस तरह क्षमा करते हैं, तब हम नफ़रत को पालने के बजाय, निकाल देते हैं। इसके परिणामस्वरूप, अपराधी के साथ हमारा रिश्ता शायद हमेशा के लिए नहीं टूटे और हम कलीसिया की क़ीमती शांति बनाए रखने के लिए भी काम करते हैं। (रोमियों १४:१९) कुछ समय के बाद, दूसरे ने जो किया था वह शायद दिमाग़ से निकल जाए।
१२. (क) ऐसे व्यक्ति को क्षमा करने में जिसने हमें गहरी चोट पहुँचाई है हमें कौन-से क़दम उठाने की शायद ज़रूरत पड़े? (ख) इफिसियों ४:२६ के शब्द यह कैसे सूचित करते हैं कि हमें जल्द-से-जल्द मामलों को सुलझाना चाहिए?
१२ तब क्या अगर कोई हमारे ख़िलाफ़ और ज़्यादा गंभीर पाप करता है जो हमें गहराई तक चोट पहुँचाता है? उदाहरण के लिए, शायद एक भरोसेमंद दोस्त ने दूसरे व्यक्ति को एक बहुत ही निजी मामला बताया हो जो आपने उस पर ज़ाहिर किया था। आपको गहरा आघात पहुँचता है, आप शर्मिंदा हो जाते हैं और आपको महसूस होता है कि आपके साथ विश्वासघात हुआ है। आपने उसे भूलने की कोशिश की लेकिन मामला टलता नहीं। ऐसे मामले में, शायद आपको बात सुलझाने के लिए क़दम उठाने में पहल करनी पड़े, संभवतः अपराधी से बात करने के द्वारा। बात फैलने से पहले ही ऐसा करना बुद्धिमानी होगी। पौलुस ने हमसे आग्रह किया: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे।” (इफिसियों ४:२६) पौलुस के शब्दों को यह बात अर्थ देती है कि यहूदियों के बीच सूर्य अस्त एक दिन के समाप्त होने और दूसरे दिन के शुरू होने को सूचित करता था। इसलिए सलाह यह है: मामला जल्द-से-जल्द सुलझाइए!—मत्ती ५:२३, २४.
१३. जब हम ऐसे व्यक्ति के पास जाते हैं जिसने हमें ठेस पहुँचायी है, तब हमारा क्या उद्देश्य होना चाहिए और इसे पाने में कौन-से सुझाव हमारी मदद कर सकते हैं?
१३ आपको अपराधी के पास कैसे जाना चाहिए? १ पतरस ३:११ कहता है कि “मेल मिलाप को ढूंढ़े, और उसके यत्न में रहे।” तो फिर, आपका उद्देश्य क्रोध दिखाना नहीं बल्कि अपने भाई के साथ मेल मिलाप करना है। ऐसा करने के लिए, कटु शब्द बोलने और हाव-भाव दिखाने से बचे रहना उत्तम है; ऐसा करना शायद दूसरे व्यक्ति को भी ऐसा ही व्यवहार करने के लिए प्रेरित करे। (नीतिवचन १५:१८; २९:११) इसके अलावा, इस तरह की बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बातों से दूर रहिए जैसे, “तुम हमेशा ही . . . !” या, “तुम कभी-भी नहीं . . . !” बढ़ा-चढ़ाकर कही गईं ऐसी बातों की वज़ह से वह अपना बचाव करने की और ज़्यादा कोशिश करेगा। इसके बजाय, आपकी आवाज़ के लहज़े और चेहरे के हाव-भाव से यह ज़ाहिर होना चाहिए कि जिस बात से आपको गहरी चोट पहुँची है आप उसे सुलझाने की इच्छा रखते हैं। जो हुआ, उसके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं, उसे नपे-तुले शब्दों में कहिए। दूसरे व्यक्ति को उसके कार्य के लिए अपनी सफ़ाई देने का मौक़ा दीजिए। जो वह कहता है उसे सुनिए। (याकूब १:१९) इससे क्या फ़ायदा होगा? नीतिवचन १९:११ समझाता है: “जो मनुष्य बुद्धि [अंतर्दृष्टि] से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को भुलाना उसको सोहता है।” दूसरे व्यक्ति की भावनाओं और उसके ऐसा करने की वज़ह को समझना शायद उसके प्रति हमारे बुरे विचारों और भावनाओं को निकाल दे। जब हम मेल-मिलाप करने के और वैसा ही रवैया क़ायम रखने के नज़रिए से स्थिति का सामना करते हैं, तो किसी-भी ग़लतफ़हमी के दूर होने, उचित माफ़ी माँगे जाने और क्षमा करने की बहुत संभावना है।
१४. जब हम दूसरों को क्षमा करते हैं, तो किस अर्थ में हमें भूल जाना चाहिए?
१४ क्या दूसरों को क्षमा करने का यह मतलब है कि जो हुआ हमें उसे सचमुच भूल जाना चाहिए? इस मामले में ख़ुद यहोवा के उदाहरण पर ध्यान दीजिए, जैसी चर्चा पिछले लेख में की गई है। जब बाइबल कहती है कि यहोवा हमारे पाप स्मरण नहीं करता, तब इसका यह मतलब नहीं कि वह उन्हें याद करने में समर्थ नहीं है। (यशायाह ४३:२५) इसके बजाय, वह इस अर्थ में स्मरण नहीं करता कि वह जब एक बार क्षमा कर देता है तो वह भविष्य में हमें उन पापों का दोषी नहीं ठहराता। (यहेजकेल ३३:१४-१६) इसी तरह, संगी मनुष्यों को क्षमा करने का यह मतलब होना ज़रूरी नहीं कि उन्होंने जो किया उसे याद करने में हम समर्थ नहीं होंगे। लेकिन, हम इस अर्थ में भूल सकते हैं कि हम अपराधी को उसका दोषी नहीं ठहराएँ या भविष्य में उसके ख़िलाफ़ फिर से उसे नहीं उठाएँ। जब इस तरह मामला सुलझ जाता है तो उसके बारे में गप्प फैलाना उचित नहीं होगा; न ही अपराधी से एकदम कट जाना, उसके साथ एक बहिष्कृत व्यक्ति की तरह बर्ताव करना प्रेमपूर्ण होगा। (नीतिवचन १७:९) सच है कि उसके साथ हमारे संबंधों को ठीक होने में शायद थोड़ा वक़्त लगे; और हम शायद पहले जैसी नज़दीकी का आनंद न ले पाएँ। लेकिन हम अब भी उसे अपने मसीही भाई की तरह प्रेम करते हैं और शांतिमय संबंधों को क़ायम रखने के लिए अपनी भरसक कोशिश करते हैं।—लूका १७:३ से तुलना कीजिए।
जब क्षमा करना असंभव लगता है
१५, १६. (क) क्या मसीहियों को ऐसे अपराधी को क्षमा करना ज़रूरी है जो अपश्चातापी है? (ख) भजन ३७:८ में पायी गई बाइबल की सलाह को हम कैसे लागू कर सकते हैं?
१५ लेकिन, तब क्या अगर दूसरे व्यक्ति हमारे ख़िलाफ़ ऐसा पाप करें जो हमें सबसे गहरी चोट पहुँचाए और इतना करने पर भी न तो पाप स्वीकार करें, न पश्चाताप दिखाएँ और न ही ख़ुद कोई माफ़ी माँगें? (नीतिवचन २८:१३) शास्त्र स्पष्ट रूप से सूचित करता है कि यहोवा अपश्चातापी, कठोर पापियों को क्षमा नहीं करता। (इब्रानियों ६:४-६; १०:२६, २७) हमारे बारे में क्या? शास्त्र पर अंतर्दृष्टि कहता है: “मसीहियों को ऐसे लोगों को क्षमा करना ज़रूरी नहीं जो दुर्भावनापूर्ण, जानते-बूझते पाप करते हैं और कोई पश्चाताप नहीं दिखाते। ऐसे लोग परमेश्वर के शत्रु बन जाते हैं।” (खंड १, पृष्ठ ८६२) किसी-भी मसीही को जो एकदम अनुचित, घृणित, या जघन्य व्यवहार का शिकार हुआ है, ऐसे अपराधी को क्षमा करने या माफ़ी देने के लिए मजबूर महसूस नहीं करना चाहिए जो पश्चातापी न हो।—भजन १३९:२१, २२.
१६ ज़ाहिर है कि जो लोग क्रूर दुर्व्यवहार के शिकार बने हैं वे शायद दुःखी और क्रोधित महसूस करें। लेकिन याद रखिए कि क्रोध और नफ़रत रखना हमारे लिए बहुत नुक़सानदेह हो सकता है। ऐसे इक़रार या माफ़ी का इंतज़ार करने से जो कभी नहीं मिलते, हम और भी ज़्यादा परेशान हो जाएँ। अन्याय के बारे में सोचते रहना शायद हमारे अंदर क्रोध भड़काए और हमारे आध्यात्मिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव डाले। दरअसल, जिसने हमें चोट पहुँचाई है हम उसे लगातार चोट पहुँचाते रहने का अवसर देते हैं। बुद्धिमत्ता से बाइबल सलाह देती है: “क्रोध से दूर रह और रोष को छोड़।” (भजन ३७:८, NW) इसलिए, कुछ मसीहियों ने पाया है कि वे कुछ समय बाद इस अर्थ में भूल जाने का फ़ैसला कर पाए थे कि उन्होंने नफ़रत करनी छोड़ दी—जो उनके साथ हुआ उसकी गंभीरता को कम नहीं किया, लेकिन क्रोध करते नहीं रहे। न्याय के परमेश्वर के हाथों में पूरी तरह मामले को सौंपने से, वे बहुत राहत महसूस कर पाए और आगे ज़िंदगी बिताने में समर्थ हुए।—भजन ३७:२८.
१७. प्रकाशितवाक्य २१:४ में अभिलिखत यहोवा की प्रतिज्ञा कौन-सा सांत्वनादायक आश्वासन प्रदान करती है?
१७ जब चोट बहुत गहरी होती है तब शायद हम उसे अपने दिमाग़ से पूरी तरह मिटाने में क़ामयाब न हों, कम-से-कम इस रीति-व्यवस्था में तो नहीं। लेकिन यहोवा एक नए संसार की प्रतिज्ञा करता है जिसमें “वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” (प्रकाशितवाक्य २१:४) उस वक़्त हमें जो कुछ भी याद रह जाएगा वह हमें गहरी चोट या दर्द नहीं पहुँचाएगा, जिसका बोझ अब हमारे दिल पर है।—यशायाह ६५:१७, १८.
१८. (क) अपने भाई-बहनों के साथ अपने व्यवहार में क्षमाशील होने की ज़रूरत क्यों है? (ख) जब दूसरे हमारे ख़िलाफ़ पाप करते हैं, तब किस अर्थ में हम क्षमा करके भूल सकते हैं? (ग) इससे हमें कैसे फ़ायदा होता है?
१८ इस दौरान, हमें साथ मिलकर भाई-बहनों की तरह काम करना है जो अपरिपूर्ण और पापमय मनुष्य हैं। हम सभी ग़लतियाँ करते हैं। समय-समय पर हम एक दूसरे को निराश करते हैं, यहाँ तक कि चोट भी पहुँचाते हैं। यीशु अच्छी तरह जानता था कि हमें दूसरों को क्षमा करने की ज़रूरत होगी ‘सात बार नहीं, बरन सात बार के सत्तर गुने तक’! (मत्ती १८:२२) सच है कि जिस पूर्णता से यहोवा क्षमा करता है हम नहीं कर सकते। फिर भी, ज़्यादातर मामलों में जब हमारे भाई हमारे ख़िलाफ़ पाप करते हैं तो हम नफ़रत न करने के अर्थ में क्षमा कर सकते हैं और हम भविष्य में हमेशा उस मामले के लिए उन्हें दोषी न ठहराने के अर्थ में उसे भूल सकते हैं। जब हम इस तरह क्षमा करते और भूल जाते हैं, तब हम न केवल कलीसिया की शांति बल्कि हमारे अपने मन और हृदय की शांति क़ायम रखने में भी मदद करते हैं। सबसे बढ़कर, हम उस शांति का आनंद उठाएँगे जो सिर्फ़ हमारा प्रेममय परमेश्वर, यहोवा दे सकता है।—फिलिप्पियों ४:७.
[फुटनोट]
a बाबुलीय तालमूद के मुताबिक़, एक रब्बीनी परंपरा ने कहा: “अगर एक मनुष्य एक, दो या तीन बार अपराध करता है तो उसे क्षमा किया जाएगा, लेकिन चौथी बार उसे क्षमा नहीं मिलेगी।” (योमा ८६ख) यह कुछ हद तक आमोस १:३; २:६; और अय्यूब ३३:२९ जैसे पाठों की ग़लत समझ पर आधारित था।
b वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।
पुनर्विचार के सवाल
◻ हमें दूसरों को क्षमा करने के इच्छुक क्यों होना चाहिए?
◻ किस तरह की परिस्थितियाँ हमसे ‘एक दूसरे की सह लेने’ की माँग करती हैं?
◻ जब दूसरों के पापों से हमें गहरी चोट पहुँचती है, तब हम शांतिपूर्वक मामले को सुलझाने के लिए क्या कर सकते हैं?
◻ जब हम दूसरों को क्षमा करते हैं, तब किस अर्थ में हमें भूल जाना चाहिए?
[पेज 16 पर तसवीर]
जब हम नफ़रत पालते हैं, तब अपराधी हमारी दशा से शायद अनजान हो
[पेज 17 पर तसवीर]
जब आप मेल मिलाप करने के लिए दूसरों के पास जाते हैं तो ग़लतफ़हमियाँ आसानी से दूर हो सकती हैं