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  • यहोवा के स्तुतिगीत गाइए
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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यहोवा के स्तुतिगीत गाइए

“मैं यहोवा का गीत गाऊंगा, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है।”—निर्गमन १५:१.

१. यहोवा की कौनसी विशेषताओं और गुणों से हमें उसकी स्तुति करने का कारण मिलता है?

तेरह बार भजन १५० यहोवा या याह की स्तुति करने की आज्ञा देता है। अन्तिम आयत घोषित करती है: “जितने प्राणी हैं सब के सब याह की स्तुति करें! याह की स्तुति करो!” यहोवा के गवाह होने के कारण हम जानते हैं कि यहोवा हमारी स्तुति के योग्य है। वह विश्‍व सर्वसत्ताधारी, परमप्रधान, सनातन राजा, हमारा सृष्टिकर्ता, हमारा हितकारी है। वह अनेक तरीक़ों से बेजोड़, अद्वितीय, अतुलनीय, अनुपम है। वह सर्वज्ञ, सर्वशक्‍तिमान, न्याय में परिपूर्ण, और प्रेम का प्रतिरूप है। अन्य सभी से बढ़कर, वह भला है; वह निष्ठावान्‌ है। (लूका १८:१९; प्रकाशितवाक्य १५:३, ४) क्या वह हमारी स्तुति के योग्य है? अति निश्‍चित रूप से वह इसके योग्य है!

२. यहोवा को आभार व्यक्‍त करने के लिए हमारे पास क्या कारण हैं?

२ यहोवा न केवल हमारी उपासना और स्तुति के योग्य है बल्कि उसने जो कुछ हमारे लिए किया है उसके कारण वह हमारे आभार और कृतज्ञता के योग्य भी है। वह ‘हर एक अच्छे वरदान और हर एक उत्तम दान’ का देनेवाला है। (याकूब १:१७) वह सभी जीवन का झरना और सोता है। (भजन ३६:९) मानवजाति के सदस्यों के रूप में हम जिन चीज़ों का आनन्द लेते हैं वे सभी उसी से हैं, क्योंकि वह हमारा महान सृष्टिकर्ता है। (यशायाह ४२:५) वह सभी आध्यात्मिक आशिषों का भी देनेवाला है जो हमें उसकी आत्मा, उसके संगठन, और उसके वचन के द्वारा मिलती हैं। उसने हमारी छुड़ौती के रूप में अपने पुत्र को प्रदान किया, जिसके आधार पर हमें पापों की क्षमा मिलती है। (यूहन्‍ना ३:१६) हमारे पास “नए आकाश और नई पृथ्वी” की राज्य आशा है “जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (२ पतरस ३:१३) हमारे पास संगी मसीहियों के साथ उत्तम संगति है। (रोमियों १:११, १२) हमारे पास उसके गवाह होने का सम्मान और आशिष है। (यशायाह ४३:१०-१२) और हमारे पास प्रार्थना का बहुमूल्य विशेषाधिकार है। (मत्ती ६:९-१३) सचमुच, यहोवा को धन्यवाद देने के हमारे पास अनेक कारण हैं!

जिन तरीक़ों से हम यहोवा की स्तुति कर सकते हैं

३. किन विभिन्‍न तरीक़ों से हम यहोवा की स्तुति कर सकते हैं और उसको अपना आभार व्यक्‍त कर सकते हैं?

३ यहोवा के समर्पित सेवकों के रूप में हम कैसे उसकी स्तुति कर सकते हैं और अपना आभार व्यक्‍त कर सकते हैं? हम ऐसा मसीही सेवकाई में भाग लेने के द्वारा कर सकते हैं—घर-घर गवाही देना, पुन:भेंट करना, बाइबल अध्ययन संचालित करना, और सड़क गवाही में हिस्सा लेना। जब भी अवसर मिले अनौपचारिक रूप से गवाही देने के द्वारा भी हम उसकी स्तुति कर सकते हैं। फिर, अपने खरे आचरण के द्वारा, यहाँ तक कि अपने साफ़-सुथरे और शालीन पहनावे और श्रंगार के द्वारा भी हम यहोवा की स्तुति कर सकते हैं। इन पहलुओं में अनुकरणीय होने के लिए अकसर यहोवा के गवाहों की प्रशंसा की गयी है। इसके अलावा, हम प्रार्थना के द्वारा यहोवा की स्तुति कर सकते हैं और उसे धन्यवाद दे सकते हैं।—१ इतिहास २९:१०-१३ देखिए.

४. अपने प्रेममय स्वर्गीय पिता की स्तुति करने का एक सबसे सुन्दर तरीक़ा क्या है?

४ इसके अतिरिक्‍त, अपने प्रेममय स्वर्गीय पिता की स्तुति करने का एक सबसे सुन्दर तरीक़ा है सुरीले राज्य गीतों के द्वारा उसका और उसके सद्‌गुणों का गुणगान करना। अनेक संगीतज्ञ और संगीतकार मानते हैं कि सबसे सुन्दर वाद्य है मानव आवाज़। शास्त्रीय संगीत के गुरुओं ने गीति-नाट्य लिखने की आकांक्षा की क्योंकि किसी को गाते हुए सुनने से बहुत संतुष्टि मिलती है।

५. किन कारणों के लिए हमें अपने राज्य गीतों के गायन को गंभीरता से लेना चाहिए?

५ मनुष्यों को गाते हुए सुनने से यहोवा को कितना आनन्द मिलता होगा, ख़ासकर जब वे स्तुति और आभार के गीत गा रहे हों! तो निश्‍चित ही, हमें अपने विभिन्‍न समूहनों—कलीसिया सभाओं, सर्किट सम्मेलनों, ख़ास सम्मेलन दिनों, ज़िला अधिवेशनों, और अंतरराष्ट्रीय अधिवेशनों—में अपने राज्य गीतों के गायन को गंभीरता से लेना चाहिए। हमारी गीत-पुस्तक सचमुच आनन्दप्रद सुरीले गीतों से भरी हुई है। इनकी सुन्दरता की प्रशंसा बाहरवालों ने बारंबार की है। राज्य गीत गाने की आत्मा में हम जितना ज़्यादा डूबते जाते हैं, उतना ही ज़्यादा हम दूसरों को सुख और स्वयं को लाभ पहुँचाते हैं।

बाइबल के समय में यहोवा के स्तुतिगीत गाना

६. लाल समुद्र पर अपने छुटकारे के लिए इस्राएलियों ने किस प्रकार आभार व्यक्‍त किया?

६ परमेश्‍वर का वचन हमें बताता है कि मूसा और बाक़ी के इस्राएलियों ने लाल समुद्र में फिरौन की सेना से बचने पर प्रफुल्लता से गीत गाया। उनका गीत इन शब्दों से शुरू हुआ: “मैं यहोवा का गीत गाऊंगा, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है; घोड़ों समेत सवारों को उस ने समुद्र में डाल दिया है। यहोवा मेरा बल और भजन का विषय है, और वही मेरा उद्धार भी ठहरा है; मेरा ईश्‍वर वही है, मैं उसी की स्तुति करूंगा।” (निर्गमन १५:१, २) हम उन इस्राएलियों के उत्साह और हर्ष की कल्पना कर सकते हैं जब वे अपने चमत्कारी छुटकारे के बाद इन शब्दों को गा रहे थे!

७. इस्राएलियों द्वारा गीत से यहोवा की स्तुति करने की कौनसी अन्य उल्लेखनीय घटनाएँ इब्रानी शास्त्र में अभिलिखित हैं?

७ पहला इतिहास १६:१, ४-३६ में हम पढ़ते हैं कि जब दाऊद संदूक को यरूशलेम लाया तब यहोवा की स्तुति गाने और वाद्य बजाने के द्वारा की गयी। वह सचमुच एक हर्ष का समय था। जब राजा सुलैमान ने यरूशलेम में मंदिर को समर्पित किया उस समय भी वाद्य-संगीत के साथ यहोवा के स्तुतिगीत गाए गए। दूसरा इतिहास ५:१३, १४ में हम पढ़ते हैं: “जब तुरहियां बजानेवाले और गानेवाले एक स्वर से यहोवा की स्तुति और धन्यवाद करने लगे, और तुरहियां, झांझ आदि बाजे बजाते हुए यहोवा की यह स्तुति ऊंचे शब्द से करने लगे, कि वह भला है और उसकी करुणा सदा की है, तब यहोवा के भवन में बादल छा गया, और बादल के कारण याजक लोग सेवा-टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज परमेश्‍वर के भवन में भर गया था।” यह क्या दिखाता है? यह कि यहोवा इस सुरीली स्तुति को सुन रहा था और उससे प्रसन्‍न भी था, जो कि अलौकिक बादल से सूचित हुआ। बाद में, नहेमायाह के दिनों में यरूशलेम की शहरपनाह के उद्‌घाटन के समय दो गायक-मण्डलियों ने गीत गाए।—नहेमायाह १२:२७-४२.

८. क्या बात दिखाती है कि इस्राएली लोग गायन को गंभीरता से लेते थे?

८ वास्तव में, मंदिर में गायन उपासना का इतना महत्त्वपूर्ण भाग था कि ४,००० लेवी सांगीतिक सेवा के लिए अलग ठहराए गए थे। (१ इतिहास २३:४, ५) इनको गायकों के साथ-साथ होना था। उपासना के लिए सही उत्साह प्रदान करने में संगीत का, ख़ासकर गायकों का एक महत्त्वपूर्ण स्थान था। ज़रूरी नहीं था कि यह व्यवस्था की गंभीर बातों को सिखाने के लिए हो। यह इस्राएलियों को उत्साही ढंग से यहोवा की उपासना करने में मदद करता था। नोट कीजिए कि इस पहलू को कितनी तैयारी और विस्तृत ध्यान मिलता था: “इन सभों की गिनती भाइयों समेत जो यहोवा के गीत सीखे हुए और सब प्रकार से निपुण थे, दो सौ अठासी थी।” (१ इतिहास २५:७) नोट कीजिए कि उन्होंने यहोवा के स्तुतिगीत गायन को कितनी गंभीरता से लिया। वे गीत सीखे हुए और निपुण थे!

९. मसीही यूनानी शास्त्रों में गायन को क्या महत्त्व दिया गया है?

९ हमारे सामान्य युग की पहली शताब्दी में आते हुए, हम क्या पाते हैं? यीशु के पकड़वाए जाने की रात को उसके मन में अनेक गंभीर बातें थीं। फिर भी, उसने यह ज़रूरत महसूस की कि फसह के पर्व और उसकी मृत्यु के स्मारक की स्थापना की समाप्ति यहोवा के स्तुतिगीत गाने के द्वारा हो। (मत्ती २६:३०) और, हम पढ़ते हैं कि पौलुस और सीलास मार खाने और क़ैद किए जाने के बाद “आधी रात के लगभग . . . प्रार्थना करते हुए परमेश्‍वर के भजन गा रहे थे, और बन्धुए उन की सुन रहे थे।”—प्रेरितों १६:२५.

स्तुतिगीत गाना—हमारी उपासना का एक महत्त्वपूर्ण भाग

१०. परमेश्‍वर का वचन गीत के द्वारा उसकी स्तुति करने बारे में क्या आज्ञाएँ देता है?

१० क्या आप शायद महसूस करते हैं कि आपके लिए राज्य गीत गाना इतना महत्त्वपूर्ण नहीं कि आप उसे अपना हार्दिक ध्यान दें? यदि ऐसा है, तो यह ध्यान में रखते हुए कि यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह स्तुतिगीत के गायन को कितना महत्त्व देते हैं, क्या आपको इस बात पर फिर से विचार नहीं करना चाहिए? परमेश्‍वर का वचन यहोवा की स्तुति करने और उसके स्तुतिगीत गाने की आज्ञाओं से भरा हुआ है! उदाहरण के लिए, यशायाह ४२:१० में हम पढ़ते हैं: “हे समुद्र पर चलनेवालो, हे समुद्र के सब रहनेवालो, हे द्वीपो, तुम सब अपने रहनेवालो समेत यहोवा के लिये नया गीत गाओ और पृथ्वी की छोर से उसकी स्तुति करो।”—भजन ९६:१; ९८:१ भी देखिए.

११. गायन के बारे में प्रेरित पौलुस ने क्या सलाह दी?

११ प्रेरित पौलुस जानता था कि गीत गाने से हमारा उत्साह बढ़ सकता है, इसलिए उसने इस बात पर हमें दो बार सलाह दी। इफिसियों ५:१८, १९ में हम पढ़ते हैं: “आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ। और आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाया करो, और अपने अपने मन में प्रभु के साम्हने गाते और कीर्त्तन करते रहो।” और कुलुस्सियों ३:१६ में हम पढ़ते हैं: “मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्‍वर के लिये भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ।”

१२. हमारे पास अपने गीतों के क्या उदाहरण हैं जो एक दूसरे को सिखाने और चिताने में हमारी मदद करते हैं?

१२ नोट कीजिए कि हर घटना में पौलुस गायन का बार-बार ज़िक्र करता है, जब वह ‘भजन, स्तुतिगान, आत्मिक गीत, अपने अपने मन में गाने और कीर्त्तन करने’ का उल्लेख करता है। साथ ही, कुलुस्सियों को अपनी टिप्पणी के आरंभ में वह कहता है कि इस तरीक़े से हम ‘एक दूसरे को सिखा, और चिता’ सकते हैं। और हम निश्‍चित ही ऐसा करते हैं। यह हमारे गीतों के शीर्षकों से देखा जा सकता है—“सारी सृष्टि, यहोवा की स्तुति करो!” (क्रमांक ५), “दृढ़ और अटल रहो!” (क्रमांक १०), “राज्य आशा के लिए मगन रहो!” (क्रमांक १६), “उनसे डरो नहीं!” (क्रमांक २७), “हमारे परमेश्‍वर यहोवा की प्रशंसा करो!” (क्रमांक १००), मात्र कुछ उदाहरण हैं।

१३. “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने हमारी उपासना के एक भाग के रूप में गायन का महत्त्व किस प्रकार दिखाया है?

१३ इन आज्ञाओं के सामंजस्य में, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने प्रबन्ध किया है कि हमारे समूहन—कलीसिया सभाएँ, सर्किट सम्मेलन, ख़ास सम्मेलन दिन, ज़िला अधिवेशन, और अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन—राज्य गीतों के गायन से शुरू और समाप्त हों। (मत्ती २४:४५) इसके अतिरिक्‍त, इन समूहनों के दौरान बीच में भी गीत गाए जाने का प्रबन्ध है। क्योंकि हमारी सभाएँ सामान्यतः राज्य गीत के गायन से शुरू होती हैं, इसलिए क्या हमें समय पर पहुँचने का लक्ष्य नहीं रखना चाहिए, ताकि हमारी उपासना के इस भाग में हम हिस्सा ले सकें? और क्योंकि सभाएँ गायन से समाप्त होती हैं, क्या हमें समाप्ति गीत और उसके तुरंत बाद होनेवाली प्रार्थना तक नहीं रुकना चाहिए?

१४. हमारे कार्यक्रमों के लिए उपयुक्‍त गीत चुने जाने के हमारे पास क्या उदाहरण हैं?

१४ हमारी सभाओं में गीत ध्यानपूर्वक चुने जाते हैं ताकि कार्यक्रम के सामंजस्य में हों। उदाहरण के लिए, १९९३ में “ईश्‍वरीय शिक्षा” ज़िला अधिवेशन में गीत क्रमांक १९१, “सत्य को अपना बनाओ,” जो मसीहियों को शैतान, संसार, और पतित शरीर से संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहन देता है, उन तीन भाषणों के तुरंत बाद हुआ जिनमें इन्हीं शत्रुओं पर विचार किया गया था। उसी समान, गीत क्रमांक १६४, “बच्चे—परमेश्‍वर की अनमोल देन,” जिसमें माता-पिताओं को बहुत सलाह मिलती है, उस भाषण के बाद गाया गया जिसमें अपने बच्चों को प्रशिक्षण देने की माता-पिताओं की बाध्यता को विशिष्ट किया गया। यिर्मयाह की भविष्यवाणियों पर आधारित भाषणों की एक श्रंखला से पहले गीत क्रमांक ७०, “यिर्मयाह की तरह बनो” गाया गया। और हमारी राज्य सेवकाई के विभिन्‍न पहलुओं पर परिचर्चा के बाद आया गीत क्रमांक १५६, “मैं चाहता हूँ,” एक बहुत ही सेवा-अनुकूल गीत। प्रहरीदुर्ग अध्ययन, सेवा सभा, और ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल के लिए गीतों को चुनने में भी उतना ही ध्यान दिया जाता है। इसलिए जब प्राचीन लोग जन भाषण देते हैं और कार्यक्रम की शुरूआत करने के लिए गीत क्रमांक बताते हैं, तो उन्हें ऐसा गीत चुनना चाहिए जो उनके भाषण के मूलविषय पर ठीक बैठता हो।

१५. सभा अध्यक्ष किस प्रकार गाए जानेवाले गीत के लिए मूल्यांकन बढ़ा सकता है?

१५ गाए जानेवाले गीत की घोषणा करते समय, गीत का शीर्षक या मूलविषय बताने के द्वारा अध्यक्ष उस गीत के लिए मूल्यांकन बढ़ा सकता है। हम गीत संख्या नहीं गाते बल्कि शास्त्रीय मूलविषय गाते हैं। साथ ही कलीसिया को गीत का ज़्यादा मूल्यांकन करने में मदद मिलेगी यदि शीर्षक के नीचे दिया गया शास्त्रवचन पढ़ा जाता है। फिर, कुछ टिप्पणियाँ उपयुक्‍त हो सकती हैं, जैसे कि सभी को गीत की आत्मा में आना चाहिए।

गाने के द्वारा यहोवा की भलाई के लिए मूल्यांकन दिखाइए

१६. हम अपने गीतों की आत्मा में कैसे आ सकते हैं?

१६ चूँकि हमारे राज्य गीतों के बोल अर्थ से भरे हैं, उन्हें गाते समय हमें शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। हम हर गीत की आत्मा में आना चाहते हैं। कुछ गीत हार्दिक हैं, जैसे कि जो आत्मा के एक फल, प्रेम के विषय पर हैं। (गलतियों ५:२२) इन्हें हम तीव्र भावना और उत्साह के साथ गाते हैं। अन्य गीत हर्षित हैं, और उनको हमें आनन्द से गाने की कोशिश करनी चाहिए। कुछ अन्य गीत सशक्‍त प्रयाण-गीत हैं, और इन्हें जोश और दृढ़ विश्‍वास के साथ गाया जाना चाहिए। हमारे ईश्‍वरशासित सेवकाई स्कूल में हमें अपनी प्रस्तुतियों में स्नेह, भावना और उत्साह व्यक्‍त करने की सलाह दी जाती है। हमारे गीत गाते समय स्नेह, भावना, और उत्साह दिखाना और भी महत्त्वपूर्ण है।

१७. (क) अविश्‍वासी इस्राएलियों को क्या निन्दा मिली जो हम नहीं चाहेंगे कि हमारे गायन पर लागू हो? (ख) जब हम अपने गीतों में दी गयी सलाह को गंभीरता से लेते हैं तो परिणाम क्या होता है?

१७ यदि राज्य गीत गाते समय हमारा मन कहीं और हो, और हम शब्दों के अर्थ का पूरी तरह मूल्यांकन नहीं कर रहे हों, तो क्या हम कुछ-कुछ उन अविश्‍वासी इस्राएलियों के समान नहीं होंगे जिनको ताड़ना मिली क्योंकि, जबकि वे अपने होठों से परमेश्‍वर की स्तुति कर रहे थे, उनके हृदय उससे कहीं दूर थे? (मत्ती १५:८) हम नहीं चाहते कि वह निन्दा हमारे राज्य गीतों के गायन के तरीक़े पर लागू हो, है ना? हमारे राज्य गीतों का मूल्यांकन करते हुए उन्हें गाने से हम केवल अपने को ही नहीं बल्कि जो हमारे आस-पास बैठे हैं, जिनमें छोटे बच्चे भी होते हैं, उन्हें भी उत्तेजित करेंगे। जी हाँ, यदि वे सभी लोग जो हमारे राज्यगृहों में गाते हैं, इन गीतों में दी गयी सलाह को गंभीरता से लें, तो यह सेवकाई में उत्साही होने और ग़लत काम करने के फंदों से बचने के लिए एक प्रभावशाली प्रोत्साहन होगा।

१८. एक स्त्री पर राज्य गीतों के गायन का क्या प्रभाव हुआ?

१८ बारंबार बाहरवाले हमारे राज्य गीतों के गायन से प्रभावित होते हैं। द वॉचटावर ने एक बार यह विषय प्रकाशित किया था: “[हमारा] गायन लोगों को यहोवा परमेश्‍वर का ज्ञान प्राप्त करने में मदद कर सकता है यह एक स्त्री के अनुभव द्वारा दिखाया गया जिसने १९७३ में ‘ईश्‍वरीय विजय’ सम्मेलन, यैंकी स्टेडियम, न्यू यॉर्क शहर में बपतिस्मा लिया। वह पहली बार स्थानीय राज्यगृह में अकेली आयी और दोनों सभाओं के लिए ठहरी। जब कलीसिया ने . . . ‘अपनी आँखें इनाम पर रखो!’ गाया, तो वह गीत के बोल और जिस तरीक़े से वे गाए जा रहे थे दोनों से इतनी प्रभावित हुई कि उसने निर्णय लिया कि वह इसी स्थान पर होना चाहती थी। बाद में वह एक गवाह के पास गयी और एक बाइबल अध्ययन माँगा, और [उसने] यहोवा की एक मसीही गवाह बनने की हद तक प्रगति की।”

१९. पूर्ण हृदय से हमारे राज्य गीतों को गाने के बारे में क्या अन्तिम प्रोत्साहन दिया गया है?

१९ हमारी अधिकांश सभाओं में, अपनी भावनाएँ और मूल्यांकन व्यक्‍त करने के लिए श्रोताओं के पास तुलनात्मक रूप से कम अवसर होते हैं। लेकिन हम यहोवा की भलाई के बारे में कैसा महसूस करते हैं इसे राज्य गीतों के गायन में हार्दिक रूप से हिस्सा लेने के द्वारा हम सभी व्यक्‍त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्‍त, जब हम एकसाथ मिलते हैं, तब क्या हम ख़ुश नहीं होते? तो हमें गाने की इच्छा होनी चाहिए! (याकूब ५:१३) सचमुच, जिस हद तक हम यहोवा की भलाई और उसके अपात्र अनुग्रह का मूल्यांकन करते हैं, हम पूरे मन से उसके स्तुतिगीत गाएँगे।

आप कैसे उत्तर देते हैं?

▫ यहोवा की स्तुति करने के दो मूल कारण क्या हैं?

▫ किन विभिन्‍न तरीक़ों से हम यहोवा की स्तुति कर सकते हैं?

▫ यहोवा की स्तुति करने का एक सबसे सुन्दर तरीक़ा क्या है?

▫ गीत से यहोवा की स्तुति करने के हमारे पास क्या शास्त्रीय उदाहरण हैं?

▫ किस प्रकार हम अपने राज्य गीतों का मूल्यांकन करते हुए उन्हें गा सकते हैं?

[पेज 17 पर बक्स]

उन गीतों का आनन्द लीजिए!

ऐसा लगता है कि कई लोगों को कुछ गीतों को सीखने में थोड़ी मुश्‍किल हुई है। लेकिन, कुछ कलीसियाओं को इन में से अधिकांश गीतों को गाने में कोई समस्या नहीं हुई है। जो शुरू में अपरिचित-सा लगता है उसे सीखने के लिए शायद सिर्फ़ थोड़ी ज़्यादा मेहनत की ज़रूरत हो। एक बार ऐसे गीतों से परिचित होने पर कलीसिया अकसर इन गीतों का उन गीतों से ज़्यादा मूल्यांकन करती है जिनको सीखने में कोई मेहनत नहीं लगी। फिर कलीसिया में सभी लोग विश्‍वस्त होकर उन्हें गा सकते हैं। हाँ, वे उन गीतों का आनन्द ले सकते हैं!

[पेज 18 पर बक्स]

सामाजिक समूहनों पर राज्य गीत गाइए

हमारे राज्य गीतों के गायन को राज्यगृह तक ही सीमित रखने की ज़रूरत नहीं। पौलुस और सीलास ने जेल में यहोवा के स्तुतिगीत गाए। (प्रेरितों १६:२५) और शिष्य याकूब ने कहा: “यदि कोई आनन्दित हो, तो वह स्तुति के भजन गाए।” (याकूब ५:१३) सामाजिक समूहनों में हर कोई आनन्दित होता है। तो क्यों न राज्य गीत गाएँ? यह ख़ासकर आनन्दपूर्ण हो सकता है यदि गायन पियानो या गिटार के साथ हो। अन्यथा, हमारे राज्य गीतों के पियानो कैसेट हैं; अनेक गवाह परिवारों के पास इन कैसेटों के एलबम हैं। वे गाते समय बजाने के लिए तो हैं ही अच्छे लेकिन सुन्दर पार्श्‍व संगीत के लिए भी आदर्श हैं।

[पेज 14, 15 पर तसवीर]

लाल समुद्र पर अपने छुटकारे के बाद, इस्राएल ने अपना हर्ष गीत से व्यक्‍त किया

[पेज 16 पर तसवीर]

हर्षपूर्ण गीत आज मसीही उपासना का एक भाग है

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