वफादार हाथों को उठाकर प्रार्थना करें
“मैं चाहता हूं, कि हर जगह पुरुष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र [वफादार] हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें।”—१ तीमुथियुस २:८.
१, २. (क) यहोवा के लोगों के बीच की जानेवाली प्रार्थनाओं पर १ तीमुथियुस २:८ कैसे लागू होता है? (ख) हम अब किस बात पर चर्चा करेंगे?
यहोवा अपने सभी लोगों से वफादारी चाहता है और चाहता है कि उसके लोग एक दूसरे के भी वफादार हों। प्रेरित पौलुस ने वफादारी और प्रार्थना का संबंध बताते हुए लिखा: “मैं चाहता हूं, कि हर जगह पुरुष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र [वफादार] हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें।” (१ तीमुथियुस २:८) ऐसा लगता है कि यहाँ पौलुस “हर जगह,” यानी जहाँ कहीं मसीही इकट्ठा होते हैं वहाँ सबके सामने की जानेवाली प्रार्थना का ज़िक्र कर रहा था। तो फिर कलीसिया की सभाओं में परमेश्वर के लोगों की तरफ से कौन प्रार्थना कर सकता था? सिर्फ पवित्र, धर्मी, और परमेश्वर का भय माननेवाले पुरुष जो उसके प्रति अपने सभी कर्त्तव्य बारीकी से पूरे करते थे। (सभोपदेशक १२:१३, १४) उन्हें आध्यात्मिक रूप से और अपने चालचलन में पूरी तरह शुद्ध होना था और तन-मन से यहोवा परमेश्वर का वफादार होना था।
२ खासकर कलीसिया के प्राचीनों को ‘वफादार हाथ उठाकर प्रार्थना’ करनी चाहिए। दिल से की गई उनकी प्रार्थनाएँ दिखाती हैं कि वे परमेश्वर के वफादार हैं। यीशु मसीह के द्वारा की गई इन प्रार्थनाओं की मदद से वे विवादों और क्रोध से दूर रहते हैं। दरअसल, प्राचीन ही नहीं बल्कि हरेक पुरुष को जिसे मसीही कलीसिया में प्रार्थना करने का सम्मान मिलता है, क्रोध और नफरत नहीं करनी चाहिए, साथ ही यहोवा और उसके संगठन का वफादार होना चाहिए। (याकूब १:१९, २०) बाइबल ऐसे लोगों के लिए और क्या हिदायतें देती है जिन्हें सभा में सबके लिए प्रार्थना करने का सम्मान मिलता है? इसके अलावा अकेले में और परिवार के साथ प्रार्थना करते वक्त हमें कौन-से बाइबल सिद्धांतों को लागू करना चाहिए?
प्रार्थना करने से पहले विचार कीजिए
३, ४. (क) सभाओं में प्रार्थना करने से पहले इसके बारे में थोड़ा विचार करना क्यों फायदेमंद है? (ख) बाइबल के अनुसार हमारी प्रार्थनाएँ कितनी लंबी हो सकती हैं?
३ अगर हमें सभाओं में सबके सामने प्रार्थना करने के लिए कहा जाता है तो शायद हम अपनी प्रार्थना के बारे में पहले से थोड़ा विचार कर सकते हैं। ऐसा करने से हम उस समय के लिए ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण मामलों के बारे में प्रार्थना कर सकेंगे और हमारी प्रार्थना बहुत ज़्यादा लंबी और बेसिरपैर की नहीं होगी। अकेले में की गई प्रार्थनाएँ भी आवाज़ के साथ बोलकर की जा सकती हैं और ये कितनी भी बड़ी हो सकती हैं। यीशु ने अपने १२ प्रेरितों को चुनने से पहले प्रार्थना करते हुए पूरी एक रात बितायी। मगर, उसने अपनी मृत्यु की यादगार मनाने का आदेश देते वक्त रोटी और दाखमधु के लिए जो प्रार्थनाएँ कीं वे काफी छोटी थीं। (मरकुस १४:२२-२४; लूका ६:१२-१६) और हम जानते हैं कि परमेश्वर ने यीशु की छोटी-छोटी प्रार्थनाओं को भी पूरी तरह स्वीकार किया।
४ अगर हमें एक परिवार के लिए खाने से पहले प्रार्थना करने का मौका मिलता है तो ऐसी प्रार्थनाओं को बहुत लंबा होने की ज़रूरत नहीं, मगर जो कुछ भी कहा जाता है उसमें भोजन के लिए धन्यवाद भी कहा जाना चाहिए। अगर हम एक मसीही सभा से पहले या उसके बाद सभी की तरफ से प्रार्थना कर रहे हैं, तो ज़रूरी नहीं कि हम कई बातों को शामिल करके बहुत लंबी प्रार्थना करें। यीशु ने ऐसे धर्मगुरुओं को फटकारा जो “दिखाने के लिये बड़ी देर तक प्रार्थना करते” थे। (लूका २०:४६, ४७) परमेश्वर का कोई भी सेवक ऐसा नहीं करना चाहेगा। लेकिन, कभी-कभी सबके सामने प्रार्थना करते वक्त थोड़ी लंबी प्रार्थना करना शायद मुनासिब हो। मिसाल के तौर पर, जिस प्राचीन को सम्मेलन खत्म होने पर आखिरी प्रार्थना करने के लिए कहा जाता है, उसे पहले से इस बात पर विचार करना चाहिए। वह चाहे तो सीखी गयी कई बातों का ज़िक्र प्रार्थना में कर सकता है। मगर, ऐसी प्रार्थनाएँ भी हद-से-ज़्यादा लंबी नहीं होनी चाहिए।
श्रद्धा के साथ परमेश्वर के पास आना
५. (क) सभाओं में सबके सामने प्रार्थना करते वक्त हमें क्या याद रखना चाहिए? (ख) हमें आदर और सम्मान के साथ क्यों प्रार्थना करनी चाहिए?
५ जब हम सभाओं में सबके सामने प्रार्थना करते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि हम किसी इंसान से बात नहीं कर रहे। इसके बजाय, हम पापी इंसान इस दुनिया के महाराजा और मालिक, यहोवा से बिनती कर रहे हैं। (भजन ८:३-५, ९; ७३:२८) अपनी प्रार्थनाओं में हम जो कुछ कहते हैं और जिस तरीके से कहते हैं उससे यह पता चलना चाहिए कि हम परमेश्वर का भय मानते हैं और इसलिए उसे अप्रसन्न नहीं करना चाहते। (नीतिवचन १:७) भजनहार दाऊद ने गीत गाया: “मैं तो तेरी अपार करुणा के कारण तेरे भवन में आऊंगा, मैं तेरा भय मानकर तेरे पवित्र मन्दिर की ओर दण्डवत् करूंगा।” (भजन ५:७) अगर हमारी भी यही भावना है, तो जब हमें यहोवा के साक्षियों की सभा में सबके सामने प्रार्थना करने के लिए कहा जाए तब हम प्रार्थना में अपने दिल की बात किस तरह कहेंगे? अगर हमें किसी राजा से बात करने का मौका मिले तो हम ज़रूर आदर और सम्मान के साथ बात करेंगे। तो फिर “युग युग के राजा,” यहोवा से प्रार्थना करते वक्त क्या हमें और भी ज़्यादा आदर और सम्मान के साथ पेश नहीं आना चाहिए? (प्रकाशितवाक्य १५:३) इसलिए प्रार्थना में हमें ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए जैसे, “नमस्ते यहोवा,” “आप कैसे हैं,” या “बाय-बाय यहोवा।” बाइबल दिखाती है कि परमेश्वर के एकलौते बेटे, यीशु मसीह ने भी अपने स्वर्गीय पिता से कभी इस तरीके से बात नहीं की।
६. जब “हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट” जाएँ तो हमें क्या याद रखना चाहिए?
६ पौलुस ने कहा: “हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर चलें।” (इब्रानियों ४:१६) यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास करने की वज़ह से, पापी होने पर भी हम “हियाव बान्धकर” यहोवा के सामने जा सकते हैं। (प्रेरितों १०:४२, ४३; २०:२०, २१) मगर, ऐसे “हियाव बान्धकर” बोलने का मतलब यह नहीं है कि हम परमेश्वर के साथ जैसी मर्ज़ी वैसी बात करें, या उसके साथ निरादर से बात करें। अगर सभाओं में अपनी प्रार्थनाओं से हम यहोवा को खुश करना चाहते हैं, तो हम पूरे आदर और सम्मान के साथ प्रार्थना करेंगे। और इन प्रार्थनाओं में घोषणाएँ करना, किसी भाई या बहन को ताड़ना देना या सुननेवालों को लेक्चर देना गलत होगा।
दीन भावना से प्रार्थना कीजिए
७. यहोवा के मंदिर के समर्पण पर राजा सुलैमान ने प्रार्थना करते वक्त दीनता कैसे दिखायी?
७ चाहे हम सभा में प्रार्थना कर रहे हों या अकेले में, बाइबल के इस महत्त्वपूर्ण सिद्धांत को याद रखना अच्छा होगा कि हमें हमेशा दीन होकर प्रार्थना करनी चाहिए। (२ इतिहास ७:१३, १४) यरूशलेम में यहोवा के मंदिर के समर्पण पर राजा सुलैमान ने भी सब के लिए प्रार्थना करते वक्त दीनता दिखायी। सुलैमान ने एक ऐसा आलीशान और शानदार भवन बनाया था जो शायद ही कभी इस दुनिया में बना हो। फिर भी, उसने दीन होकर प्रार्थना की: “क्या परमेश्वर सचमुच पृथ्वी पर वास करेगा, स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में क्योंकर समाएगा।”—१ राजा ८:२७.
८. सभाओं में दूसरों की ओर से प्रार्थना करते वक्त दीनता दिखाने के क्या-क्या तरीके हैं?
८ सभाओं में दूसरों की ओर से प्रार्थना करते वक्त हमें भी सुलैमान की तरह दीन होना चाहिए। हमें ढोंग भरी आवाज़ में प्रार्थना नहीं करनी चाहिए मगर हमारे बोलने के अंदाज़ से दीनता ज़रूर दिखाई देनी चाहिए। दीन प्रार्थनाएँ भारी-भरकम शब्दों से भरा एक तमाशा नहीं होतीं। नम्र प्रार्थनाओं से प्रार्थना करनेवाले व्यक्ति की तरफ नहीं बल्कि जिससे प्रार्थना की जा रही है उसकी तरफ ध्यान जाता है। (मत्ती ६:५) प्रार्थना में जो कहा जाता है उससे भी दीनता दिखाई देती है। अगर हम दीनता से प्रार्थना करते हैं तो हमारी प्रार्थना ऐसी नहीं होगी मानो हम परमेश्वर से कह रहे हों कि हम यह-यह चाहते हैं और ऐसा ही होना चाहिए। इसके बजाय, हम यहोवा से बिनती करेंगे कि वह वही करे जो उसकी पवित्र इच्छा के अनुसार हो। भजनहार ने ऐसा ही सही नज़रिया दिखाते हुए गिड़गिड़ाकर मिन्नत की: “हे यहोवा, हमारी बिनती सुन, बचा ले! हे यहोवा, हमारी बिनती सुन, सुख-समृद्धि दे!”—भजन ११८:२५, NHT; लूका १८:९-१४.
दिल से प्रार्थना कीजिए
९. मत्ती ६:७ में यीशु ने कौन-सी अच्छी सलाह दी है, और हम इसे कैसे लागू कर सकते हैं?
९ अगर हम चाहते हैं कि सभाओं में या अकेले में की गयी हमारी प्रार्थनाओं से यहोवा खुश हो, तो यह ज़रूरी है कि हम दिल से प्रार्थना करें। इसलिए, हम बिना सोचे-समझे बार-बार एक रटी-रटायी प्रार्थना नहीं करेंगे। अपने पहाड़ी उपदेश में, यीशु ने सलाह दी: “प्रार्थना करते समय अन्यजातियों की नाईं बक बक न करो; क्योंकि वे [गलती से यह] समझते हैं कि उनके बहुत बोलने से उन की सुनी जाएगी।” दूसरे शब्दों में कहें तो यीशु ने कहा: “अर्थहीन बातें न दोहरा।”—मत्ती ६:७, NHT.
१०. एक ही बात के बारे में बार-बार प्रार्थना करना क्यों ठीक है?
१० लेकिन हो सकता है कि हमें एक ही बात के बारे में बार-बार प्रार्थना करनी पड़े। पर ऐसा करना गलत नहीं होगा क्योंकि यीशु ने कहा था: “माँगते रहो, और तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ते रहो, और तुम पाओगे; खटखटाते रहो, और तुम्हारे लिए खोला जाएगा।” (मत्ती ७:७, NW) शायद आपके इलाके में प्रचार के काम पर यहोवा की आशीष से बढ़ोतरी हो रही है, और इसलिए आपको नए किंगडम हॉल की ज़रूरत है। (यशायाह ६०:२२) तो इस ज़रूरत के बारे में अकेले में या यहोवा के लोगों की सभाओं में बार-बार प्रार्थना करना ठीक होगा। ऐसा करने का मतलब यह नहीं होगा कि हम “अर्थहीन बातें” दोहरा रहे हैं।
धन्यवाद और स्तुति करना मत भूलिए
११. अकेले में और सभाओं में की गई प्रार्थनाओं पर फिलिप्पियों ४:६, ७ कैसे लागू होता है?
११ कई लोग हमेशा सिर्फ कुछ माँगने के लिए ही प्रार्थना करते हैं। लेकिन अगर हम यहोवा परमेश्वर से प्यार करते हैं तो हमें अकेले में और सभाओ में प्रार्थना करते वक्त उसका धन्यवाद और उसकी स्तुति भी करनी चाहिए। पौलुस ने लिखा: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” (फिलिप्पियों ४:६, ७) जी हाँ, निवेदन और बिनती के अलावा, हमें यहोवा की आशीषों के लिए भी उसका धन्यवाद करना चाहिए, चाहे ये आध्यात्मिक आशीषें हों या भौतिक। (नीतिवचन १०:२२, NW) भजनहार गाता है: “परमेश्वर को धन्यवाद ही का बलिदान चढ़ा, और परमप्रधान के लिये अपनी मन्नतें पूरी कर।” (भजन ५०:१४) और दाऊद के एक गीत में मन को छू लेनेवाले प्रार्थना के ये शब्द भी थे: “मैं गीत गाकर तेरे नाम की स्तुति करूंगा, और धन्यवाद करता हुआ तेरी बड़ाई करूंगा।” (भजन ६९:३०) क्या हमें भी अकेले में और सभाओं में सबके सामने प्रार्थना करते वक्त ऐसा ही नहीं करना चाहिए?
१२. भजन १००:४, ५ की आज कैसे पूर्ति हो रही है, और इसलिए हम किस बात के लिए परमेश्वर का धन्यवाद और स्तुति कर सकते हैं?
१२ भजनहार ने गीत में परमेश्वर के बारे कहा: “उसके फाटकों से धन्यवाद, और उसके आंगनों में स्तुति करते हुए प्रवेश करो, उसका धन्यवाद करो, और उसके नाम को धन्य कहो! क्योंकि यहोवा भला है, उसकी करुणा सदा के लिये, और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।” (भजन १००:४, ५) आज, यहोवा के मंदिर के आंगनों में सभी जातियों से लोग आ रहे हैं और इसके लिए भी हम उसकी स्तुति और धन्यवाद कर सकते हैं। क्या आप परमेश्वर को अपनी कलीसिया के किंगडम हॉल के लिए धन्यवाद देते हैं और इसमें उससे प्रेम करनेवालों के साथ लगातार इकट्ठा होकर अपनी कदरदानी दिखाते हैं? और जब आप वहाँ इकट्ठा होते हैं, तो क्या आप हम सब के प्यारे स्वर्गीय पिता की स्तुति और धन्यवाद करने के लिए पूरे जोश से गीत गाते हैं?
प्रार्थना करने के लिए कभी शर्मिंदा महसूस मत कीजिए
१३. बाइबल का कौन-सा उदाहरण दिखाता है कि जब हम किसी पाप की वज़ह से खुद को प्रार्थना करने के लायक महसूस नहीं करते, तब भी हमें यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करनी चाहिए?
१३ जब हम किसी पाप की वज़ह से खुद को प्रार्थना करने के लायक महसूस नहीं करते, तब भी हमें गिड़गिड़ाकर परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। जब यहूदियों ने विदेशी स्त्रियों से ब्याह करके पाप किया, तो एज्रा ने परमेश्वर के सामने घुटने टेककर, वफादार हाथ उठाकर दीनता से प्रार्थना की: “हे मेरे परमेश्वर! मुझे तेरी ओर अपना मुंह उठाते लाज आती है, और हे मेरे परमेश्वर! मेरा मुंह काला है; क्योंकि हम लोगों के अधर्म के काम हमारे सिर पर बढ़ गए हैं, और हमारा दोष बढ़ते बढ़ते आकाश तक पहुंचा है। अपने पुरखाओं के दिनों से लेकर आज के दिन तक हम बड़े दोषी हैं, . . . और उस सब के बाद जो हमारे बुरे कामों और बड़े दोष के कारण हम पर बीता है, जब कि हे हमारे परमेश्वर तू ने हमारे अधर्म के बराबर हमें दण्ड नहीं दिया, वरन हम में से कितनों को बचा रखा है, तो क्या हम तेरी आज्ञाओं को फिर से उल्लंघन करके इन घिनौने काम करनेवाले लोगों से समधियाना का सम्बन्ध करें? क्या तू हम पर यहां तक कोप न करेगा जिस से हम मिट जाएं और न तो कोई बचे और न कोई रह जाए? हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा! तू तो धर्मी है, हम बचकर मुक्त हुए हैं जैसे कि आज वर्तमान है। देख, हम तेरे साम्हने दोषी हैं, इस कारण कोई तेरे साम्हने खड़ा नहीं रह सकता।”—एज्रा ९:१-१५; व्यवस्थाविवरण ७:३, ४.
१४. जैसे एज्रा के दिनों में लोगों ने किया था, परमेश्वर से माफी पाने के लिए क्या ज़रूरी है?
१४ परमेश्वर द्वारा माफ किए जाने के लिए यह ज़रूरी है कि उसके सामने अपने पाप को मान लेने के अलावा हम पछतावा भी करें और “मन फिराव के योग्य फल” लाएँ। (लूका ३:८; अय्यूब ४२:१-६; यशायाह ६६:२) एज्रा के दिनों में लोगों ने अपने पाप को मानकर सिर्फ पछतावा ही नहीं किया बल्कि अपनी गलती को सुधारने के लिए अपनी विदेशी पत्नियों को वापस भेज दिया। (एज्रा १०:४४. २ कुरिन्थियों ७:८-१३ से तुलना कीजिए।) अगर हम किसी गंभीर पाप के लिए परमेश्वर से माफी पाना चाहते हैं तो आइए हम दीनता से प्रार्थना करते हुए अपने पाप को मान लें, और मन फिराव के योग्य फल लाएँ। अगर हममें पश्चाताप की भावना है और गलती को सुधारने की इच्छा है तो हम मसीही प्राचीनों की आध्यात्मिक मदद भी लेंगे।—याकूब ५:१३-१५.
प्रार्थना से शांति पाइए
१५. हन्ना के उदाहरण से कैसे पता चलता है कि हम प्रार्थना से शांति पा सकते हैं?
१५ जब हमारा दिल किसी दर्द के बोझ तले दबा हुआ है, तब हम प्रार्थना से बहुत शांति पा सकते हैं। (भजन ५१:१७; नीतिवचन १५:१३) वफादार हन्ना को भी ऐसे ही शांति मिली। उस वक्त इस्राएल में अकसर लोगों के बड़े परिवार होते थे लेकिन हन्ना के कोई भी बच्चा नहीं था। उसके पति, एल्काना की दूसरी पत्नी पनिन्ना ने कई बेटे-बेटियों को जन्म दिया था, और वह हन्ना को बाँझ होने का ताना मारती रहती थी। हन्ना ने गिड़गिड़ाकर यहोवा से प्रार्थना की और उससे यह वादा किया कि अगर उसे एक बेटे का वरदान मिलेगा तो ‘वह उसे उसके जीवन भर के लिये यहोवा को अर्पण कर देगी।’ उसे अपनी प्रार्थना से और याजक एली की बातों से शांति मिली और “उसका मुंह फिर उदास न रहा।” हन्ना ने एक बेटे को जन्म दिया और उसका नाम शमूएल रखा। बाद में उसने उस लड़के को यहोवा के भवन में उसकी सेवा करने के लिए दे दिया। (१ शमूएल १:९-२८) यहोवा की दया का एहसान मानते हुए उसने प्रार्थना में उसका धन्यवाद किया। उसने यहोवा की महिमा करते हुए कहा कि उसके तुल्य और कोई भी नहीं है। (१ शमूएल २:१-१०) हन्ना की तरह हम भी प्रार्थना से शांति पा सकते हैं, और पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा उन सभी बिनतियों को ज़रूर सुनता है जो उसकी इच्छा के अनुसार की जाती हैं। तो आइए, हम खुलकर उससे अपने दिल की बात कहें और ‘आगे को उदास न रहें,’ क्योंकि वह हमारा बोझ ज़रूर उतार देगा या उसे उठाने की ताकत देगा।—भजन ५५:२२.
१६. जैसे याकूब ने किया था हमें भी डर के वक्त या भारी चिंता के वक्त प्रार्थना क्यों करनी चाहिए?
१६ अगर हम किसी स्थिति की वज़ह से डर जाएँ, बहुत ही दुःखी हो जाएँ, या भारी चिंता में पड़ जाएँ तो आइए शांति पाने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करना कभी न भूलें। (भजन ५५:१-४) जब याकूब अपने बैर रखनेवाले भाई एसाव से मिलने जा रहा था तब वह डरा हुआ था। फिर भी याकूब ने यह प्रार्थना की: “हे यहोवा, हे मेरे दादा इब्राहीम के परमेश्वर, हे मेरे पिता इसहाक के परमेश्वर, तू ने तो मुझ से कहा, कि अपने देश और जन्मभूमि में लौट जा, और मैं तेरी भलाई करुंगा: तू ने जो जो काम अपनी करुणा और सच्चाई से अपने दास के साथ किए हैं, कि मैं जो अपनी छड़ी ही लेकर इस यरदन नदी के पार उतर आया, सो अब मेरे दो दल हो गए हैं, तेरे ऐसे ऐसे कामों में से मैं एक के भी योग्य तो नहीं हूं। मेरी विनती सुनकर मुझे मेरे भाई एसाव के हाथ से बचा: मैं तो उस से डरता हूं, कहीं ऐसा न हो कि वह आकर मुझे और मां समेत लड़कों को भी मार डाले। तू ने तो कहा है, कि मैं निश्चय तेरी भलाई करुंगा, और तेरे वंश को समुद्र की बालू के किनकों के समान बहुत करुंगा, जो बहुतायत के मारे गिने नहीं जा सकते।” (उत्पत्ति ३२:९-१२) एसाव ने याकूब और उसके घर-बार पर हमला नहीं किया। बेशक, यहोवा ने इस मौके पर याकूब के साथ ‘भलाई की।’
१७. भजन ११९:५२ के मुताबिक चलते हुए, भारी परीक्षा के वक्त नम्र प्रार्थना से हमें कैसे शांति मिल सकती है?
१७ जब हम बिनती करते हैं तब परमेश्वर के वचन में लिखी बातों को याद करने से हमें शांति मिल सकती है। बाइबल में एक सबसे लंबा और बहुत ही खूबसूरत प्रार्थना का भजन दिया गया है। शायद राजकुमार हिजकिय्याह ने यह भजन गाया, जिसमें वह कहता है: “हे यहोवा, मैं ने तेरे प्राचीन नियमों को स्मरण करके शान्ति पाई है।” (भजन ११९:५२) जब हम भारी परीक्षा का सामना करते हैं तब नम्र प्रार्थना में हम बाइबल के ऐसे उसूलों या कानूनों को याद कर सकते हैं, जिनसे हम सही रास्ते पर चलकर यह तसल्ली पाएँगे कि हम अपने स्वर्गीय पिता को खुश कर रहे हैं।
वफादार मसीही प्रार्थना में लगे रहते हैं
१८. यह क्यों कहा जा सकता है कि ‘हर एक वफादार भक्त परमेश्वर से प्रार्थना करेगा’?
१८ यहोवा परमेश्वर के सभी वफादार सेवकों को “प्रार्थना में नित्य लगे” रहना चाहिए। (रोमियों १२:१२) ३२वें भजन में, जिसे दाऊद ने बतशेबा के साथ पाप करने के शायद कुछ समय बाद लिखा हो, वह अपनी मन की वेदना बताता है जब उसने अपने पाप को छिपाए रखा और माफी नहीं माँगी। आगे वह उस राहत और चैन के बारे में भी बताता है जो पश्चाताप करने से और परमेश्वर के सामने अपने अपराधों को मान लेने से उसे मिला। फिर दाऊद ने गीत में कहा: “इस कारण [क्योंकि दिल से सचमुच पश्चाताप करनेवालों को यहोवा माफ करता है] हर एक [वफादार] भक्त तुझ से ऐसे समय में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है।”—भजन ३२:६.
१९. हमें वफादार हाथ उठाकर क्यों प्रार्थना करनी चाहिए?
१९ अगर हम यहोवा परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को कीमती समझते हैं तो हम यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार पर उससे दया के लिए प्रार्थना करेंगे। विश्वास के साथ हम अनुग्रह के सिंहासन के सामने हियाव बाँधकर जा सकते हैं और दया के साथ-साथ ज़रूरी मदद पा सकते हैं। (इब्रानियों ४:१६) प्रार्थना करने के लिए हमारे पास कितने कारण हैं! इसलिए आइए हम ‘निरन्तर प्रार्थना में लगे रहें।’ (१ थिस्सलुनीकियों ५:१७) और आइए इन प्रार्थनाओं में ज़्यादा-से-ज़्यादा परमेश्वर की स्तुति और धन्यवाद करते रहें। ऐसा हो कि हम अपने वफादार हाथों को उठाकर दिन-रात प्रार्थना में लगे रहें।
आप क्या जवाब देंगे?
◻ सभाओं में प्रार्थना करने से पहले इसके बारे में थोड़ा विचार करना क्यों फायदेमंद है?
◻ हमें आदर और सम्मान के साथ क्यों प्रार्थना करनी चाहिए?
◻ हमें किस भावना से प्रार्थना करनी चाहिए?
◻ प्रार्थना करते वक्त क्यों हमें धन्यवाद और स्तुति को कभी नहीं भूलना चाहिए?
◻ बाइबल कैसे दिखाती है कि हम प्रार्थना से शांति पा सकते हैं?
[पेज 17 पर तसवीर]
राजा सुलैमान ने यहोवा के मंदिर के समर्पण पर सभी लोगों के लिए प्रार्थना करते वक्त दीनता दिखायी
[पेज 18 पर तसवीर]
हन्ना की तरह, हम भी प्रार्थना से शांति पा सकते हैं