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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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यहोवा में आनन्दित रहो!

“प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो।”—फिलिप्पियों ४:४.

१. हम क्यों सोच में पड़ सकते हैं कि पौलुस का क्या मतलब था जब उसने कहा कि मसीहियों को सदा आनन्दित रहना चाहिए?

आजकल, आनन्दित होने के लिए कारण कम और अति दुर्लभ प्रतीत हो सकते हैं। मिट्टी से बने इन्सान, यहाँ तक कि सच्चे मसीही भी ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं जिनसे दुःख होता है—जैसे कि बेरोज़गारी, बीमारी, प्रिय जनों की मृत्यु, व्यक्‍तित्व समस्याएँ, या परिवार के अविश्‍वासी सदस्यों या भूतपूर्व मित्रों से विरोध। सो हमें पौलुस की सलाह को कैसे समझना है, “सदा आनन्दित रहो”? जिन अप्रिय और कष्टकर परिस्थितियों का हम सामना करते हैं, उन्हें मद्दे नज़र रखते हुए, क्या यह सम्भव भी है? इन शब्दों के संदर्भ की चर्चा इस मामले को समझने में हमारी मदद करेगी।

आनन्दित रहो—क्यों और कैसे?

२, ३. जैसे यीशु और प्राचीन इस्राएलियों के मामलों में सचित्रित किया गया है, आनन्द का क्या महत्त्व है?

२ “प्रभु में सदा आनन्दित रहो; मैं फिर कहता हूं, आनन्दित रहो।” यह हमें उन शब्दों की याद दिला सकता है जो इस्राएलियों को कुछ २४ सदियों पहले निर्दिष्ट किए गए थे: “यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है,” या मॉफेट अनुवाद के अनुसार: “उस सनातन में आनन्दित रहना तुम्हारी शक्‍ति है।” (नहेमायाह ८:१०) आनन्द शक्‍ति प्रदान करता है और वह एक दृढ़ गढ़ के समान है जिसमें एक व्यक्‍ति सांत्वना और सुरक्षा पाने के लिए जा सकता है। परिपूर्ण मनुष्य यीशु को भी धीरज धरने में मदद करने के लिए आनन्द सहायक था। “जिस ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस [स्तंभ, NW] का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्‍वर के दहिने जा बैठा।” (इब्रानियों १२:२) स्पष्टतः, समस्याओं के बावजूद आनन्दित हो सकना उद्धार के लिए अनिवार्य है।

३ प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से पहले, इस्राएलियों को आज्ञा दी गयी थी: “जितने अच्छे पदार्थ तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझे और तेरे घराने को दे, उनके कारण तू लेवीयों और अपने मध्य में रहनेवाले परदेशियों सहित आनन्द करना।” आनन्दित न होकर यहोवा की सेवा करने के परिणाम गंभीर होते। “ये सब शाप तुझ पर आ पड़ेंगे, और तेरे पीछे पड़े रहेंगे, और तुझ को पकड़ेंगे, और अन्त में तू नष्ट हो जाएगा। . . . तू जो सब पदार्थ की बहुतायत होने पर भी आनन्द और प्रसन्‍नता के साथ अपने परमेश्‍वर यहोवा की सेवा नहीं करेगा।”—व्यवस्थाविवरण २६:११; २८:४५-४७.

४. हम आनन्दित होने से क्यों चूक सकते हैं?

४ अतः, यह अत्यावश्‍यक है कि आज के अभिषिक्‍त शेषवर्ग और उनके ‘अन्य भेड़’ साथी आनन्द मनाएँ! (यूहन्‍ना १०:१६) पौलुस ने अपनी सलाह, “मैं फिर कहता हूं,” दोहराने के द्वारा उन सभी अच्छी बातों के लिए जो यहोवा ने हमारे लिए की हैं, आनन्दित रहने के महत्त्व पर ज़ोर दिया। क्या हम ऐसा करते हैं? या क्या हम जीवन के दैनिक नित्यक्रम में इतने उलझ जाते हैं कि आनन्दित होने के हमारे अनेक कारणों को हम कभी-कभी भूल जाते हैं? क्या समस्याओं का ढेर इतना बढ़ जाता है, कि उसके कारण हम राज्य और उसकी आशिषों को ठीक से नहीं देख पाते? क्या हम अन्य बातों—परमेश्‍वर के नियमों की अवज्ञा करने, परमेश्‍वरीय सिद्धान्तों को नज़रअंदाज़ करने, या मसीही कर्त्तव्यों की उपेक्षा करने—को हम से हमारा आनन्द चुराने देते हैं?

५. एक कठोर व्यक्‍ति आनन्दित होना कठिन क्यों पाता है?

५ “तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो: प्रभु निकट है।” (फिलिप्पियों ४:५) एक कठोर व्यक्‍ति में संतुलन की कमी होती है। वह अपने शरीर को अनावश्‍यक तनाव या चिन्ता के प्रभाव में व्यर्थ ही लाते हुए, अपने स्वास्थ्य की ठीक से परवाह करने में असफल हो सकता है। संभवतः उसने अपनी सीमाओं को स्वीकार करना और उसी अनुसार जीना नहीं सीखा है। वह शायद अपने लक्ष्यों को बहुत ऊँचा रखे और फिर उन्हें हर क़ीमत पर पाने की कोशिश करे। या वह शायद अपनी सीमाओं को धीमा होने या कम परिश्रमी होने के लिए एक बहाने के रूप में इस्तेमाल करे। संतुलन की कमी और कठोर होने के कारण वह आनन्दित होना कठिन पाता है।

६. (क) संगी मसीहियों को हम में क्या दिखना चाहिए, और यह सिर्फ़ कब संभव होगा? (ख) दूसरा कुरिन्थियों १:२४ और रोमियों १४:४ में पौलुस के शब्द हमें कोमल होने में किस तरह मदद करते हैं?

६ चाहे विरोधी हमें कट्टर ही क्यों न समझें, संगी मसीहियों को हमेशा हमारी कोमलता देखने में समर्थ होना चाहिए। और वे देख सकेंगे, अगर हम संतुलित हैं और ख़ुद से या दूसरों से परिपूर्णता की आशा नहीं करते हैं। सबसे बढ़कर, परमेश्‍वर का वचन जो माँग करता है, उससे ज़्यादा बोझ दूसरों पर लादने से हमें परे रहना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने कहा: “यह नहीं, कि हम विश्‍वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं।” (२ कुरिन्थियों १:२४) एक भूतपूर्व फरीसी होने के कारण, पौलुस अच्छी तरह जानता था कि अधिकार में लोगों द्वारा बनाए और लादे गए सख़्त नियम आनन्द को दबा देते हैं, जबकि सहकर्मियों द्वारा पेश किए गए सहायक सुझाव इसे बढ़ा देते हैं। इस तथ्य को कि “प्रभु निकट है,” एक कोमल व्यक्‍ति को याद दिलाना चाहिए कि हमें ‘दूसरे के सेवक पर दोष नहीं लगाना है। उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है।’—रोमियों १४:४.

७, ८. मसीहियों को समस्याओं के होने की अपेक्षा क्यों करनी चाहिए, फिर भी उन के लिए आनन्द मनाते रहना कैसे संभव है?

७ “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्‍वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं।” (फिलिप्पियों ४:६) हम आज “कठिन समय” का सामना कर रहे हैं, जिस के बारे में पौलुस ने लिखा। (२ तीमुथियुस ३:१-५) सो मसीहियों को समस्याओं का सामना करने की अपेक्षा करनी चाहिए। पौलुस के शब्द “सदा आनन्दित रहो” इस संभावना को रद्द नहीं करते हैं कि एक निष्ठावान मसीही को कभी-कभी होनेवाली आशाहीनता या निरुत्साह की अवधियों से गुज़रना पड़ सकता है। ख़ुद पौलुस के मामले में, उसने वास्तविकता से स्वीकार किया: “हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते। सताए तो जाते हैं; पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नाश नहीं होते।” (२ कुरिन्थियों ४:८, ९) फिर भी, एक मसीही का आनन्द, चिन्ता और दुःख की तात्कालिक अवधियों को कम करता है और आख़िरकार समाप्त कर देता है। यह आनन्दित होने के लिए अनेक कारणों को भूले बिना, आगे बढ़ते रहने के लिए ज़रूरी शक्‍ति प्रदान करता है।

८ जब समस्याएँ खड़ी होती हैं, तो चाहे वे किसी भी तरीक़े की हो, आनन्दित मसीही नम्रतापूर्वक प्रार्थना के द्वारा यहोवा की मदद के लिए विनती करता है। वह अत्यधिक चिन्ता के आगे झुक नहीं जाता है। समस्या को सुलझाने के लिए वह ख़ुद तर्कसंगत रूप से जो कर सकता है उसे करने के बाद, वह परिणाम को यहोवा के हाथों में इस आमंत्रण के सामंजस्य में छोड़ देता है: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा।” इस बीच, वह मसीही यहोवा को उसकी सभी भलाई के लिए धन्यवाद देता रहता है।—भजन ५५:२२; साथ ही मत्ती ६:२५-३४ भी देखिए।

९. सच्चाई का ज्ञान मन की शान्ति कैसे प्रदान करता है, और यह एक मसीही पर कौन-सा अच्छा प्रभाव डालता है?

९ “तब परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” (फिलिप्पियों ४:७) बाइबल सच्चाई का ज्ञान मसीही के मन को झूठ से मुक्‍त करता है और उसे स्वास्थ्यकर विचार शैली विकसित करने में मदद करता है। (२ तीमुथियुस १:१३, NW) अतः उसे ऐसे बुरे या मूर्खतापूर्ण व्यवहार से दूर रहने में मदद मिलती है, जो दूसरों के साथ शान्तिपूर्ण सम्बन्धों को जोखिम में डाल सकता है। अन्याय और दुष्टता से कुण्ठित होने के बदले, वह राज्य के द्वारा मनुष्यजाति की समस्याओं को सुलझाने के लिए यहोवा पर अपना भरोसा रखता है। ऐसी मन की शान्ति उसके हृदय को सुरक्षित रखती है, उसके अभिप्रायों को शुद्ध रखती है, और उसके विचार को धार्मिकता के मार्ग पर ले जाती है। क्रमशः, शुद्ध अभिप्राय और सही विचार, एक अव्यवस्थित संसार द्वारा लायी गयी समस्याओं और दबावों के बावजूद, आनन्दित रहने के लिए अनगिनत कारण प्रदान करते हैं।

१०. सिर्फ़ किस बारे में बोलने या सोचने से सच्चा आनन्द अनुभव किया जा सकता है?

१० “निदान, हे भाइयो, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरनीय हैं, और जो जो बाते उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सद्‌गुण और प्रशंसा की बातें हैं उन्हीं पर ध्यान लगाया करो।” (फिलिप्पियों ४:८) एक मसीही बुरी बातों के बारे में बोलने या सोचने से कोई सुख नहीं पाता। यह अपने आप ही संसार द्वारा प्रदान किए गए ज़्यादातर मनोरंजन को रद्द कर देता है। अगर एक व्यक्‍ति अपने मन और हृदय को झूठ, ठट्ठे और ऐसी बातों से भरता है जो अधार्मिक, अनैतिक, बग़ैर सद्‌गुण की हैं, घृणास्पद, और घृणित हैं, तो वह मसीही आनन्द को बनाए नहीं रख सकता। साफ़-साफ़ कहें तो, अपने मन और हृदय को गंदगी से भरने से कोई भी सच्चा आनन्द नहीं पा सकता है। शैतान के भ्रष्ट संसार में, यह जानना कितना प्रोत्साहक है कि मसीहियों के पास सोचने और चर्चा करने के लिए कितनी सारी अच्छी बातें हैं!

आनन्दित होने के लिए अनगिनत कारण

११. (क) किस बात को कभी कम महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए, और क्यों नहीं? (ख) एक अर्न्तराष्ट्रीय अधिवेशन में उपस्थिति ने एक प्रतिनिधि और उसकी पत्नी पर क्या प्रभाव डाला?

११ आनन्दित होने के लिए कारणों की बात करते वक्‍त, आइए हम अपने अर्न्तराष्ट्रीय भाईचारे को न भूलें। (१ पतरस २:१७) जबकि संसार के राष्ट्रीय और नृजातीय समूह एक दूसरे के प्रति तीव्र घृणा व्यक्‍त करते हैं, परमेश्‍वर के लोग प्रेम में निकट आते हैं। उनकी एकता ख़ासकर अर्न्तराष्ट्रीय अधिवेशनों में दिखायी देती है। एक अधिवेशन के बारे में जो १९९३ में, कीव, यूक्रेन में हुआ था, अमरीका से आए एक प्रतिनिधि ने लिखा: “ख़ुशी के आँसू, चमकती आँखें, लोगों का निरन्तर परिवार-समान गले मिलना, और मैदान के इस पार से उस पार समूहों की लहराती रंगीन छत्रियों और रुमालों द्वारा भेजी गयी शुभकामनाएँ स्पष्ट रूप से ईश्‍वरशासित एकता का प्रमाण थीं। यहोवा ने विश्‍वव्यापी भाईचारे में जो चमत्कार द्वारा संपन्‍न किया है, उससे हमारे हृदय गर्व से फूल जाते हैं। इसने मुझे और मेरी पत्नी को गहराई से छुआ है और हमारे विश्‍वास को नया अर्थ दिया है।”

१२. हमारी अपनी आँखों के सामने यशायाह ६०:२२ कैसे पूरा हो रहा है?

१२ बाइबल भविष्यवाणियों को अपनी आँखों के सामने पूरा होते देखना मसीहियों के लिए कितना विश्‍वास-वर्द्धक है! उदाहरण के लिए, यशायाह ६०:२२ के शब्दों पर विचार कीजिए: “छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा और सब से दुर्बल एक सामर्थी जाति बन जाएगा। मैं यहोवा हूं; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूंगा।” वर्ष १९१४ में राज्य के जन्म के समय, सिर्फ़ ५,१००—छोटे से छोटा—सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे थे। लेकिन पिछले पाँच वर्षों के दौरान, विश्‍वव्यापी भाईचारे की संख्या, हर हफ़्ते ५,६२८ नए बपतिस्मा प्राप्त गवाहों की औसत दर से बढ़ती रही है! वर्ष १९९३ में, ४७,०९,८८९ सक्रिय सेवकों का शिखर प्राप्त हुआ। ज़रा कल्पना कीजिए! इसका मतलब है कि १९१४ का “छोटे से छोटा” शाब्दिक रूप से “एक हजार” होने के क़रीब है!

१३. (क) वर्ष १९१४ से क्या होता रहा है? (ख) यहोवा के गवाह २ कुरिन्थियों ९:७ में दिए गए पौलुस के शब्दों के सिद्धान्त का कैसे पालन करते हैं?

१३ वर्ष १९१४ से मसीहाई राजा ने अपने शत्रुओं के बीच शासन किया है। उसके शासन का समर्थन इच्छुक मानवी अनुयायियों द्वारा किया गया है जो विश्‍वव्यापी प्रचार कार्य और साथ-ही-साथ अर्न्तराष्ट्रीय निर्माण अभियान को जारी रखने के लिए समय, शक्‍ति, और पैसों का अंशदान करते हैं। (भजन ११०:२, ३) यहोवा के गवाह आनन्दित होते हैं कि इन गतिविधियों को पूरा करने के लिए आर्थिक अंशदान किए जा रहे हैं, जबकि उनकी सभाओं में पैसे के बारे में बहुत ही कम ज़िक्र किया जाता है।a (१ इतिहास २९:९ से तुलना कीजिए।) सच्चे मसीहियों को देने के लिए कोंचने की ज़रूरत नहीं होती। जिस हद तक उनकी परिस्थितियाँ अनुमति देती हैं, हर एक ‘जैसा मन में ठानता है, न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से’ अपने राजा का समर्थन करना एक विशेषाधिकार मानता है।—२ कुरिन्थियों ९:७.

१४. वर्ष १९१९ से परमेश्‍वर के लोगों के बीच में कौनसी परिस्थिति स्पष्ट हुई है, और यह उनको आनन्दित होने के लिए कौनसा कारण देती है?

१४ परमेश्‍वर के लोगों के बीच सच्ची उपासना की पूर्वबतायी गयी पुनःस्थापना एक आध्यात्मिक परादीस के निर्माण में परिणित हुई है। वर्ष १९१९ से उसने प्रगतिशीलता से अपनी सीमाओं का विस्तार किया है। (भजन १४:७; यशायाह ५२:९, १०) परिणाम? सच्चे मसीही “हर्ष और आनन्द” का अनुभव करते हैं। (यशायाह ५१:११) परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा अपरिपूर्ण मनुष्यों के द्वारा जो संपन्‍न करवाने में सक्षम है उसका प्रमाण परिणामी अच्छा फल है। सारा श्रेय और आदर यहोवा को जाता है, लेकिन परमेश्‍वर के सहकर्मी बनने से बढ़कर और क्या विशेषाधिकार हो सकता है? (१ कुरिन्थियों ३:९) यहोवा इतना शक्‍तिशाली है कि, अगर ज़रूरत पड़े, तो वह सच्चाई का संदेश पत्थरों से भी दिलवा सकता है। फिर भी, उसने इस तरीक़े का सहारा ने लेकर इसके बजाय, अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मिट्टी से बने इच्छुक प्राणियों को प्रेरित करने का चुनाव किया है।—लूका १९:४०.

१५. (क) कौन-सी आधुनिक घटनाओं को हम दिलचस्पी से ध्यान में रखते हैं? (ख) हम आनन्दित होकर किस घटना की ओर देखते हैं?

१५ विस्मय से भरकर, यहोवा के सेवक अब संसार की घटनाओं को देखते हैं, क्योंकि ये उल्लेखनीय बाइबल भविष्यवाणियों से सम्बन्ध रखती हैं। स्थायी शान्ति प्राप्त करने के लिए राष्ट्र काफ़ी कोशिश कर रहे हैं—लेकिन उनकी कोशिशें व्यर्थ हैं। घटनाएँ उन्हें संसार के पीड़ित क्षेत्रों में कार्य करने के लिए संयुक्‍त राष्ट्र संगठन से मदद माँगने पर मजबूर कर रही हैं। (प्रकाशितवाक्य १३:१५-१७) इस बीच, परमेश्‍वर के लोग अभी से एक अति हर्षपूर्ण घटना की ओर बड़ी प्रत्याशा से देख रहे हैं, ऐसी घटना जो पहले कभी न हुई और जो दिन-ब-दिन नज़दीक आती जा रही है। “आओ, हम आनन्दित और मगन हों, और उस की स्तुति करें; क्योंकि मेम्ने का ब्याह आ पहुंचा: और उस की पत्नी ने अपने आप को तैयार कर लिया है।”—प्रकाशितवाक्य १९:७.

प्रचार करना—एक भार या एक आनन्द?

१६. सचित्रित कीजिए कि एक मसीही ने जो सीखा है उसका अभ्यास न करना किस तरह उससे उसका आनन्द चुरा सकता है।

१६ “जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनीं, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्‍वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।” (फिलिप्पियों ४:९) जो बातें उन्होंने सीखी हैं, उन पर अमल करने से मसीही परमेश्‍वर की आशिषों को पाने की आशा कर सकते हैं। एक सबसे महत्त्वपूर्ण बात जो उन्होंने सीखी है, वह दूसरों को सुसमाचार का प्रचार करने की आवश्‍यकता है। वाक़ई, अगर एक व्यक्‍ति सत्हृदयी लोगों से वह जानकारी को रोके रखता है, जिसे सुनने पर उनका जीवन निर्भर करता है, तो कौन मन की शान्ति का आनन्द ले सकेगा या आनन्दित हो सकेगा?—यहेजकेल ३:१७-२१; १ कुरिन्थियों ९:१६; १ तीमुथियुस ४:१५, १६.

१७. हमारा प्रचार कार्य हमेशा आनन्द का एक स्रोत क्यों होना चाहिए?

१७ यहोवा के बारे में सीखने के लिए इच्छुक भेड़-समान व्यक्‍तियों को पाना क्या ही आनन्द की बात है! वाक़ई, जो सही अभिप्राय से सेवा करते है, वे राज्य सेवा को हमेशा आनन्द का एक स्रोत पाएँगे। यह इसलिए है क्योंकि यहोवा का एक गवाह होने का मुख्य कारण है उसके नाम की स्तुति करना और सर्वसत्ताधारी शासक के रूप में उसके पद का समर्थन करना। (१ इतिहास १६:३१) एक व्यक्‍ति जो इस तथ्य को पहचानता है, तब भी आनन्दित होगा जब लोग मूर्खतापूर्वक उसके द्वारा लाए गए सुसमाचार को अस्वीकार करते हैं। वह जानता है कि अविश्‍वासियों को प्रचार करना एक दिन समाप्त होगा; यहोवा के नाम की स्तुति अनन्तकाल तक चलेगी।

१८. यहोवा की इच्छा करने के लिए एक मसीही को क्या बात प्रेरित करती है?

१८ सच्चा धर्म उसके पालन करनेवालों को प्रेरित करता है, कि वे यहोवा द्वारा माँग की गयी बातों को पूरा करें, इसलिए नहीं कि उन्हें ऐसा करना ही है, बल्कि इसलिए कि वे ऐसा करना चाहते हैं। (भजन ४०:८; यूहन्‍ना ४:३४) अनेक लोगों को यह समझने में मुश्‍किल होती है। एक महिला ने एक बार उसके पास आयी एक गवाह से कहा: “आप प्रशंसा के योग्य हैं। मैं अपने धर्म के बारे में घर-घर प्रचार करते निश्‍चित ही कभी भी न जाऊँ जैसे की आप कर रही हैं।” एक मुस्कान के साथ गवाह ने उत्तर दिया: “मैं आपकी भावना समझ सकती हूँ। मेरे एक यहोवा की गवाह बनने से पहले, धर्म के बारे में दूसरे लोगों से बात करने के लिए आप मुझे नहीं भेज सकती थीं। लेकिन अब मैं ऐसा करना चाहती हूँ।” उस महिला ने एक क्षण के लिए विचार किया और फिर कहा: “स्पष्ट है कि आपके धर्म के पास पेश करने के लिए कुछ ऐसा है जो मेरे धर्म के पास नहीं है। शायद मुझे जाँच करनी चाहिए।”

१९. अब पहले से कहीं ज़्यादा आनन्दित होने का समय क्यों है?

१९ वर्ष १९९४ का वार्षिक वचन, जो हमारे राज्य गृहों में सुस्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है, हमें नियमित रूप से याद दिलाता है: “सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।” (नीतिवचन ३:५) क्या आनन्दित होने के लिए इससे बड़ा कोई कारण हो सकता है, कि हम यहोवा, हमारे दृढ़ गढ़ जिसमें हम शरण लेते हैं, पर अपना भरोसा रखने में समर्थ हैं? भजन ६४:१० समझाता है: “धर्मी तो यहोवा के कारण आनन्दित होकर उसका शरणागत होगा।” यह समय लड़खड़ाने या हार मानने का नहीं है। हर एक गुज़रता महीना हमें उस वास्तविकता के और क़रीब लाता है जिसे देखने के लिए हाबिल के दिनों से यहोवा के सेवक तरसते रहे हैं। अब समय है यहोवा पर अपने पूरे हृदय से भरोसा करने का, यह जानते हुए की पहले कभी हमारे पास आनन्दित होने के लिए इतने ज़्यादा कारण नहीं थे!

[फुटनोट]

a अधिवेशनों में और महीने में एक बार कलीसियाओं में प्राप्त स्वैच्छिक अंशदानों की, और साथ-ही-साथ उठाए गए ख़र्च की रक़म दिखाता हुआ एक संक्षिप्त विवरण पढ़ा जाता है। कभी-कभी कलीसियाओं को पत्र भेजे जाते हैं जो बताते हैं कि ऐसे दानों का किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। इस प्रकार हरेक व्यक्‍ति को यहोवा के गवाहों के विश्‍वव्यापी काम की आर्थिक स्थिति के बारे में याद दिलाया जाता है।

आप कैसे उत्तर देंगे?

▫ नहेमायाह ८:१० के अनुसार हमें आनन्दित क्यों होना चाहिए?

▫ व्यवस्थाविवरण २६:११ और २८:४५-४७ आनन्दित होने के महत्त्व को कैसे दिखाते हैं?

▫ फिलिप्पियों ४:४-९ हमें हमेशा आनन्दित होने के लिए कैसे मदद कर सकता है?

▫ वर्ष १९९४ का वार्षिक वचन हमें आनन्दित होने के लिए क्या कारण देता है?

[पेज 16 पर तसवीर]

रूसी और जर्मन गवाह एक अर्न्तराष्ट्रीय भाईचारे का भाग होने में आनन्दित हैं

[पेज 17 पर तसवीर]

दूसरों के साथ सच्चाई बाँटना आनन्दित होने के लिए एक कारण है

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