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परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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सही तरीके से जवाब देना सीखिए

कुछ सवाल, पानी में तैरते हिम-शैल या बर्फीली चट्टानों की तरह होते हैं। जिस तरह हिम-शैल का बड़ा हिस्सा पानी के नीचे छिपा होता है, उसी तरह अकसर सवाल से बढ़कर, उसके पीछे का मसला ज़्यादा अहमियत रखता है।

चाहे सवाल पूछनेवाला, जवाब जानने के लिए कितना ही बेताब क्यों न हो, सही तरीके से जवाब देने के लिए आपको यह मालूम होना चाहिए कि आपको किस हद तक जवाब देना है और विषय के किस पहलू पर बात करनी है। (यूह. 16:12) और यीशु ने प्रेरितों से जो कहा उससे पता लगता है कि कई बार लोग ऐसी जानकारी के बारे में सवाल करते हैं, जिसे जानने का उन्हें कोई हक नहीं है या जिससे उन्हें कुछ फायदा नहीं होनेवाला।—प्रेरि. 1:6, 7.

बाइबल हमें सलाह देती है: “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।” (कुलु. 4:6) इसलिए, किसी भी सवाल का जवाब देने से पहले हमें सिर्फ यह नहीं सोचना चाहिए कि हम क्या कहेंगे बल्कि यह भी कि हम किस तरीके से कहेंगे।

सवाल पूछनेवाले का नज़रिया समझने की कोशिश कीजिए

सदूकियों ने यीशु को फँसाने के लिए एक ऐसी स्त्री के पुनरुत्थान के बारे में सवाल किया जिसने कई शादियाँ की थीं। लेकिन यीशु अच्छी तरह जानता था कि सदूकी असल में पुनरुत्थान में विश्‍वास नहीं करते। इसलिए यीशु ने उनके सवाल का जवाब इस तरीके से दिया कि सवाल के पीछे छिपी उनकी गलत धारणा को सुधार सके। लाजवाब तर्क देकर और बाइबल के एक जाने-माने वृत्तांत से यीशु ने साफ साबित किया कि परमेश्‍वर मरे हुओं को ज़रूर जिलाएगा। जबकि सदूकियों ने उस वृत्तांत के बारे में इस तरीके से पहले कभी नहीं सोचा था। उसके जवाब से विरोधी ऐसे दंग रह गए कि उन्होंने फिर उससे सवाल करने की हिम्मत नहीं की।—लूका 20:27-40.

उसी तरह सही तरीके से जवाब देने के लिए आपको यह समझने की ज़रूरत है कि सवाल पूछनेवाला क्या मानता है और वह आपसे क्या जानना चाहता है। उदाहरण के लिए, आपके स्कूल या कॉलेज का साथी या साथ काम करनेवाला शायद आपसे पूछे कि आप क्रिसमस क्यों नहीं मनाते हैं। तब आपको यह समझना चाहिए कि वह यह सवाल क्यों पूछ रहा है। क्या वह सचमुच यह त्योहार न मनाने की वजह जानना चाहता है या सिर्फ उसे यह जानना है कि आपको मौज-मस्ती करने की छूट है या नहीं? सही वजह जानने के लिए शायद आपको उससे पूछना पड़े कि उसने वह सवाल क्यों किया। फिर उसके मुताबिक जवाब दीजिए। तब आप यह भी बता सकते हैं कि किस तरह बाइबल के मार्गदर्शन पर चलने से हमें त्योहारों की वजह से उठनेवाली परेशानियों और बोझ से छुटकारा मिलता है।

मान लीजिए कि आपको अपने स्कूल के बच्चों या कॉलेज के विद्यार्थियों के आगे यहोवा के साक्षियों के बारे में कुछ बताने के लिए कहा जाता है। जब आप अपनी बात पूरी कर लेते हैं, तब शायद वे आपसे कुछ सवाल पूछें। अगर वे सच्चे दिल से सवाल पूछते हैं और उनके सवाल सीधे हैं, तो सरल और सीधे जवाब देना सबसे बेहतर होगा। लेकिन अगर उनके सवालों से साक्षियों के खिलाफ लोगों की गलत धारणाओं का आभास होता है, तो यह अच्छा होगा कि आप जवाब देने से पहले थोड़े शब्दों में बताएँ कि लोगों में ऐसी धारणाएँ पनपने की वजह क्या है और यह भी कि यहोवा के साक्षी, बाइबल के स्तरों पर चलने का चुनाव क्यों करते हैं। कई बार हो सकता है कि लोग हमसे इस तरह सवाल करें मानो हमें चुनौती दे रहे हों, लेकिन हमारे लिए यही मानना अच्छा होगा कि वे सच्चे दिल से उन सवालों के जवाब जानना चाहते हैं। इसलिए जब आप जवाब देते हैं, तो आपको सुननेवालों की समझ बढ़ाने, उन्हें सही-सही जानकारी देने और हमारे विश्‍वासों का बाइबल से आधार समझाने का मौका मिलेगा।

अगर आपका मालिक, आपको अधिवेशन के लिए छुट्टी देने को तैयार नहीं है, तब आप क्या करेंगे? सबसे पहले इस मामले को उसके नज़रिए से देखिए। अगर आप किसी और समय ओवरटाइम करने की पेशकश करें, तो क्या वह राज़ी हो सकता है? अगर आप उसे यह समझाएँ कि हमारे अधिवेशनों में दी जानेवाली शिक्षा से हमें ईमानदार और भरोसेमंद कर्मचारी बनने में मदद मिलती है, तो क्या उस पर अच्छा असर पड़ सकता है? अगर आप यह दिखाएँगे कि आपको उसका कारोबार बढ़ाने की चिंता है, तो वह भी शायद उन बातों की कदर करेगा जो आपकी ज़िंदगी में अहमियत रखती हैं। लेकिन अगर वह आपको कुछ बेईमानी करने के लिए कहता है, तब क्या? अगर आप बेईमानी करने से साफ इनकार करेंगे और बाइबल से इसकी वजह बताएँगे, तो आप क्या चाहते हैं, यह साफ ज़ाहिर होगा। लेकिन अगर आप पहले अपने मालिक से यह तर्क करें कि जो इंसान उसकी खातिर झूठ बोलने या चोरी करने के लिए तैयार हो सकता है, क्या वही इंसान उससे झूठ नहीं बोल सकता और उसकी ही चीज़ नहीं चुरा सकता? तो शायद इसका अच्छा नतीजा निकले।

दूसरी तरफ, मान लीजिए कि आप एक विद्यार्थी हैं और आप स्कूल के कुछ ऐसे कामों में हिस्सा नहीं लेना चाहते जो बाइबल के खिलाफ हैं। याद रखिए कि क्लास में अनुशासन बनाए रखने की ज़िम्मेदारी आपके टीचर पर है और उसकी धारणाएँ शायद आपके विश्‍वासों से मेल न खाएँ। तो फिर, अब आपके सामने ये चुनौतियाँ हैं: (1) उसे जिस बात की चिंता है, उसका लिहाज़ करना, (2) आदर के साथ समझाना कि आप इनमें क्यों हिस्सा नहीं ले रहे हैं और (3) यहोवा जिस बात से खुश होता है, उसे मानने से कभी न डगमगाना। अच्छा नतीजा पाने के लिए, सीधे-सीधे सिर्फ यह बता देना काफी नहीं है कि आप क्या विश्‍वास करते हैं। (नीति. 15:28) अगर आप उम्र में छोटे हैं, तो बेशक अपने माता-पिता की मदद से आपको जो कहना है, उसकी तैयारी कर सकते हैं।

कभी-कभी आपके सामने ऐसे हालात भी आ सकते हैं, जब कोई अधिकारी आप पर झूठा इलज़ाम लगाए और आपको अपनी सफाई पेश करने के लिए कहा जाए। एक पुलिस अफसर, सरकारी अफसर या जज शायद आपसे जवाब माँगे कि आप फलाँ-फलाँ नियम को क्यों नहीं मानते। या शायद वह आपकी मसीही निष्पक्षता के बारे में या देश-भक्‍ति के जलसों में शामिल न होने के बारे में आपका रवैया जानने के लिए सवाल पूछे। तब आपको कैसे जवाब देना चाहिए? बाइबल सलाह देती है: “विनम्रता और आदर के साथ।” (1 पत. 3:16, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इसके अलावा, खुद से पूछिए कि वे इन मामलों के बारे में क्यों चिंतित हैं और फिर आदर के साथ उन्हें बताइए कि आप उनकी चिंता समझते हैं। इसके बाद? जिस तरह प्रेरित पौलुस ने रोमी कानून के तहत हर नागरिक को मिलनेवाले हक का ज़िक्र किया था, उसी तरह आप भी ऐसे कानूनी हक के बारे में कह सकते हैं जो आपके मामले में लागू होते हैं। (प्रेरि. 22:25-29) अगर आप उसके सामने बड़ी तसवीर पेश करना चाहते हैं, तो आप शुरू के मसीहियों या संसार भर में यहोवा के साक्षियों के विश्‍वास के बारे में बता सकते हैं। या आप यह भी बता सकते हैं कि कैसे परमेश्‍वर के अधिकार को कबूल करने से, इंसान अच्छे नागरिक बनते हैं और वे इंसानी सरकारों के उचित कायदे-कानूनों का हर वक्‍त, हर जगह पालन करते हैं। (रोमि. 13:1-14) अगर आप सबसे पहले यह जानकारी देंगे और फिर आपका जो विश्‍वास है, उसे समझाने के लिए बाइबल से आयतें दिखाएँगे, तो हो सकता है कि अधिकारी आपके जवाब को मान ले।

सवाल पूछनेवाले का बाइबल के बारे में नज़रिया

सवाल पूछनेवाले को कैसे जवाब दें, यह सोचते वक्‍त आपको शायद इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि बाइबल के बारे में उसका नज़रिया क्या है। जब यीशु ने पुनरुत्थान के बारे में सदूकियों के सवाल का जवाब दिया, तब उसने ठीक ऐसा ही किया था। यीशु अच्छी तरह जानता था कि सदूकी सिर्फ मूसा की पाँच किताबों को परमेश्‍वर का वचन मानते थे, इसलिए उसने बाइबल की इन्हीं किताबों में दिए एक वृत्तांत के आधार पर उनसे तर्क किया। उसने सबसे पहले कहा: ‘परन्तु इस बात को कि मरे हुए जी उठते हैं, मूसा ने भी प्रगट किया।’ (लूका 20:37) उसी तरह, अगर आप बाइबल के उन हिस्सों का हवाला देंगे जिन्हें आपका सुननेवाला मानता है और जिनसे वह वाकिफ है, तो यह ज़्यादा फायदेमंद होगा।

लेकिन अगर आपका सुननेवाला बाइबल को नहीं मानता, तब आप क्या करेंगे? गौर कीजिए कि ऐसे हालात में प्रेरित पौलुस ने क्या किया। जैसा कि प्रेरितों 17:22-31 में दर्ज़ है, अरियुपगुस पर भाषण देते समय उसने बाइबल से सीधे हवाला दिए बगैर ही, उसकी सच्चाइयाँ समझायीं। ज़रूरत पड़ने पर आप भी पौलुस की तरह कर सकते हैं। कुछ जगहों पर किसी के साथ कई बार चर्चा करने के बाद ही आप उसे सीधे बाइबल से आयतें पढ़कर सुना सकते हैं। जब आप अपनी बातचीत में बाइबल इस्तेमाल करना शुरू करते हैं, तब सीधे-सीधे ज़ोर देकर यह बताने के बजाय कि यह परमेश्‍वर का वचन है, समझदारी की बात होगी कि आप पहले उसे कुछ कारण बताएँ कि बाइबल क्यों जाँच करने लायक किताब है। लेकिन, यह बताने में आपका लक्ष्य होना चाहिए कि आप उसे परमेश्‍वर के उद्देश्‍य के बारे में सही-सही गवाही दे सकें और कुछ वक्‍त के बाद आपका सुननेवाला खुद यह देख सके कि बाइबल क्या कहती है। हम खुद जो कहते हैं, उससे बाइबल के शब्द कहीं ज़्यादा असरदार होते हैं।—इब्रा. 4:12.

हमेशा ‘मनभावन’ तरीके से

यहोवा खुद प्यार और लिहाज़ से पेश आनेवाला परमेश्‍वर है, इसलिए उसका अपने सेवकों से यह कहना कितना सही है कि उनकी बातचीत हमेशा “मनभावनी और सलोनी हो”! (कुलु. 4:6, नयी हिन्दी बाइबिल; निर्ग. 34:6) इसका मतलब है कि हमें प्यार से बात करनी चाहिए, ऐसे हालात में भी जब शायद लगे कि सामनेवाला इसके लायक नहीं है। हमारी बातचीत हमेशा बढ़िया किस्म की होनी चाहिए और हमें कभी-भी बेरुखी या बेअदबी से बात नहीं करनी चाहिए।

आज बहुत-से लोगों को भारी तनाव का सामना करना पड़ता है और हर रोज़ उन्हें गाली-गलौज सुननी पड़ती है। इसलिए जब हम ऐसे लोगों से मिलते हैं, तो वे शायद रुखाई से बात करें। ऐसे में हमें कैसा जवाब देना चाहिए? बाइबल बताती है: “कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है।” इस तरह कोमलता के साथ जवाब देने से एक ऐसे शख्स को भी शांत किया जा सकता है जिसके विचार हमसे बिलकुल अलग हों। (नीति. 15:1; 25:15) जिन लोगों को आए-दिन कठोर बर्ताव का सामना करना पड़ता है, अगर हम उनके साथ प्यार से पेश आएँ और मीठी आवाज़ में बात करें, तो यह उनके मन को इतना भा सकता है कि वे हमारा सुसमाचार सुनने के लिए तैयार हो जाएँगे।

हमें ऐसे लोगों के साथ बहसबाज़ी करने का कोई शौक नहीं, जो सच्चाई की ज़रा भी कदर नहीं करते। इसके बजाय, हम उन लोगों को बाइबल से दलीलें देकर समझाना चाहते हैं, जो सुनने के लिए तैयार हैं। हमारी मुलाकात चाहे किसी भी तरह के लोगों से क्यों न हो, हम हमेशा याद रखते हैं कि हमें प्यार से और पूरे विश्‍वास के साथ जवाब देना चाहिए कि परमेश्‍वर के अनमोल वादे पक्के हैं और उन पर पूरा भरोसा किया जा सकता है।—1 थिस्स. 1:5.

निजी फैसले और विवेक

जब आपका बाइबल विद्यार्थी या कोई भाई-बहन आपसे पूछे कि उसे किसी खास हालात में क्या करना चाहिए, तो आपको कैसे जवाब देना चाहिए? आप जानते होंगे कि ऐसे हालात में अगर आप खुद होते तो क्या करते। लेकिन हर इंसान अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद करने के लिए ज़िम्मेदार है। (गल. 6:5) प्रेरित पौलुस ने कहा कि उसने जिन लोगों को प्रचार किया, उन्हें ‘विश्‍वास से आज्ञा मानने’ के लिए उकसाया। (रोमि. 16:26) यह हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है। जो विद्यार्थी सिर्फ अपने बाइबल शिक्षक को या किसी और इंसान को खुश करने के लिए फैसले करता है, वह इंसान की मरज़ी पूरी करनेवाला है, विश्‍वास से चलनेवाला नहीं। (गल. 1:10) इसलिए ऐसे सवाल पूछनेवाले को साफ और सीधा जवाब देने से उसकी भलाई नहीं होगी।

तो फिर आप ऐसा जवाब कैसे दे सकते हैं जो बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक सही हो? आप बाइबल के कुछ सिद्धांतों और उसमें दर्ज़ उदाहरणों के बारे में उसे बता सकते हैं। कुछ मामलों में आप उसे बाइबल के उन सिद्धांतों और उदाहरणों की खोजबीन खुद करना सिखा सकते हैं। जिस हालात के बारे में उसने सवाल उठाया है, उसका ज़िक्र किए बिना भी आप उन सिद्धांतों पर चर्चा कर सकते हैं और बाइबल में बताए इन उदाहरणों की अहमियत समझा सकते हैं। उससे पूछिए कि क्या इनमें ऐसी कोई बात है जो आपको सही फैसला करने में मदद कर सकती है? उसे उकसाइए कि वह इन सिद्धांतों और उदाहरणों को मन में रखते हुए ऐसा रास्ता इख्तियार करे जिससे यहोवा खुश हो। इस तरह आप उसे ‘भले बुरे में भेद करने के लिये [उसकी] ज्ञानेन्द्रियों को पक्का करने’ में मदद दे रहे होंगे।—इब्रा. 5:14.

मसीही सभाओं में जवाब देना

मसीही कलीसिया की सभाओं में हमें अकसर अपना विश्‍वास सबके सामने ज़ाहिर करने का मौका मिलता है। ऐसा करने का एक तरीका है, पूछे जा रहे सवालों के जवाब देना। सभाओं में हमें किस तरह जवाब देना चाहिए? यहोवा को धन्य कहने यानी उसकी बड़ाई करने की मंशा से। जब भजनहार दाऊद “सभाओं में” मौजूद था, तब उसने यही किया। (भज. 26:12) हमें भी ऐसे जवाब देने चाहिए जिनसे हमारे भाई-बहनों का हौसला बढ़े और जैसे प्रेरित पौलुस ने गुज़ारिश की कि हम उन्हें “प्रेम, और भले कामों” के लिए उकसाएँ। (इब्रा. 10:23-25) ऐसा करने के लिए हमें सभाओं में चर्चा किए जानेवाले भाग का पहले से अध्ययन करना होगा।

जब आपको जवाब देने का मौका दिया जाता है, तब सरल, साफ और चंद शब्दों में बोलिए। पैराग्राफ के शुरू से आखिर तक की सब बातें मत बोल दीजिए; सिर्फ एक ही मुद्दा बताइए। इस तरह दूसरों को जवाब के बाकी के मुद्दों पर बोलने का मौका मिलेगा। लेख में दी गयी आयतों को शामिल करना खासकर फायदेमंद है। आयतों पर टिप्पणी करते वक्‍त, आयत के उस हिस्से पर ध्यान दिलाने की कोशिश कीजिए जो चर्चा किए जा रहे मुद्दे पर लागू होता है। पैराग्राफ से सीधे पढ़ने के बजाय, अपने शब्दों में जवाब देने की कोशिश कीजिए। अगर आप एकदम ठीक से जवाब नहीं दे पाते हैं, तो परेशान मत होइए। ऐसा अकसर हर जवाब देनेवाले के साथ होता है।

इसमें कोई शक नहीं कि सही तरीके से जवाब देने का मतलब, सिर्फ जवाब जानना नहीं है। इसके लिए समझ भी ज़रूरी है। लेकिन जब आपके दिल से निकला जवाब दूसरों के दिल तक पहुँच जाता है, तो आपको कितना संतोष मिलेगा!—नीति. 15:23.

जवाब देने से पहले, गौर कीजिए

  • सवाल पूछने का मकसद क्या है

  • जवाब अच्छी तरह समझ आए, इसके लिए कैसी बुनियाद डालने की ज़रूरत है

  • सामनेवाला जिन मामलों को लेकर चिंतित है, उसके लिए लिहाज़ दिखाते हुए, आप क्या करना चाहते हैं, यह कैसे समझाएँगे

  • प्यार से और पूरे विश्‍वास के साथ कैसे बात करनी चाहिए

  • आपको सीधा जवाब बता देना चाहिए या बाइबल के सिद्धांतों और उसमें दर्ज़ उदाहरणों के बारे में बताना चाहिए ताकि सवाल पूछनेवाला खुद-ब-खुद फैसला कर सके कि उसे क्या करना है

सभाओं में कैसे जवाब देना चाहिए

  • अगर जवाब देने का मौका सबसे पहले आपको दिया जाता है, तो सरल और सीधा जवाब दीजिए

  • सीधा जवाब मिल जाने के बाद, (1) दिखाइए कि लेख में दी गयी आयत किस तरह चर्चा किए जा रहे मुद्दे पर लागू होती है, (2) बताइए कि इस मामले का हमारी ज़िंदगी पर कैसा असर होना चाहिए (3) समझाइए कि इस जानकारी पर कैसे अमल किया जा सकता है, या (4) किसी खास मुद्दे पर ज़ोर देने के लिए एक छोटा-सा अनुभव सुनाइए

  • दूसरों के जवाब ध्यान से सुनिए ताकि आप जान सके कि आगे आप और क्या कह सकते हैं

  • अपने शब्दों में जवाब देने की कोशिश कीजिए

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