बाइबल की किताब नंबर 51—कुलुस्सियों
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: रोम
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 60-61
दोमुसाफिर इफिसुस से रवाना हुए और जहाँ से मीएंडर (मेनडरस) नदी बहती थी, उस रास्ते से एशिया माइनर से होते हुए वे पूरब की दिशा में बढ़े। जब वे फुग्रिया देश में लाइकस नाम की एक उपनदी के पास पहुँचें, तो वे दक्षिण-पूर्वी दिशा की तरफ मुड़े। और उस नदी के साथ-साथ आगे बढ़ने लगे, जो एक घाटी से होकर जा रही थी। फिर उन्हें एक बहुत ही खूबसूरत नज़ारा दिखायी दिया: हरे-भरे मैदानों में भेड़ों के बड़े-बड़े झुंड चर रहे थे। (उस इलाके में कमाई का खास ज़रिया, ऊनी सामान थे।a) ये दोनों मुसाफिर घाटी में आगे बढ़ते रहे और फिर उनके दाहिने तरफ लौदीकिया का रईस शहर आया। इसी शहर से रोमी सरकार पूरे ज़िले पर हुकूमत करती थी। उनकी बायीं तरफ यानी उपनदी की दूसरी ओर, हियरापुलिस शहर दिखायी दिया, जो अपने मंदिरों और गरम पानी के झरनों के लिए मशहूर था। इन दोनों शहर में मसीही कलीसियाएँ थीं। इसी घाटी में करीब 16 किलोमीटर आगे कुलुस्से नाम का एक छोटा-सा कसबा था, जहाँ एक और कलीसिया थी।
2 दरअसल ये दोनों मुसाफिर मसीही थे और उन्हें कुलुस्से जाना था। उनमें से एक इस इलाके के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था, क्योंकि वह कुलुस्से का ही रहनेवाला था। उसका नाम था उनेसिमुस। वह एक गुलाम था और अपने मालिक के पास लौट रहा था। उसका मालिक कुलुस्से कलीसिया का एक सदस्य था। उनेसिमुस के साथी का नाम था तुखिकुस। लेकिन वह उनेसिमुस की तरह एक गुलाम नहीं था। इनके हाथों प्रेरित पौलुस ने ‘मसीह में उन विश्वासी भाइयों के नाम’ एक पत्री भेजी थी, “जो कुलुस्से में रहते” थे। जहाँ तक हमें पता है, पौलुस कभी कुलुस्से नहीं गया था। इस कलीसिया में ज़्यादातर भाई-बहन गैर-यहूदी थे। शायद इस कलीसिया को इपफ्रास ने शुरू किया था। उसने इस कलीसिया को बनाने में बहुत मेहनत की थी। मगर फिलहाल वह पौलुस के साथ रोम में था।—कुलु. 1:2, 7; 4:12.
3 इस पत्री का लेखक प्रेरित पौलुस था, जैसा कि उसने खुद इसकी शुरूआत और समाप्ति में कहा। (1:1; 4:18) पत्री की समाप्ति यह भी बताती है कि उसने इसे कैदखाने से लिखा था। यह उस समय की बात थी, जब उसे पहली बार यानी सा.यु. 59-61 के दौरान रोम में कैद किया गया था। उस वक्त उसने हौसला बढ़ानेवाली कई पत्रियाँ लिखी थीं। कुलुस्सियों को लिखी अपनी पत्री के साथ-साथ उसने फिलेमोन के नाम भी एक पत्री भेजी थी। (कुलु. 4:7-9; फिले. 10, 23) ऐसा लगता है कि जब कुलुस्सियों की पत्री लिखी गयी, तब उसी दौरान इफिसियों की पत्री भी लिखी गयी थी क्योंकि इनमें कई विचार और शब्द एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं।
4 कुलुस्सियों की पत्री की सच्चाई पर शक करने का कोई आधार नहीं है। लगभग सामान्य युग 200 के चेस्टर बीटी पपाइरस नं. 2 (P46) में इस पत्री का पौलुस की दूसरी पत्रियों के साथ शुमार होना दिखाता है कि शुरू के मसीही इसे पौलुस की पत्री मानते थे। शुरू के विद्वानों ने पौलुस की जिन पत्रियों की सच्चाई को पुख्ता किया था, उन्हीं विद्वानों ने इस पत्री की सच्चाई को भी पुख्ता किया है।
5 पौलुस ने कुलुस्सियों के नाम पत्री लिखने की क्यों सोची? एक वजह यह थी कि उनेसिमुस वापस कुलुस्से जा रहा था। दूसरी वजह, इपफ्रास हाल ही में पौलुस के पास लौटा था और उसने कुलुस्से के हालात के बारे में पौलुस को काफी कुछ बताया था, जिस वजह से उसने यह पत्री लिखने की सोची। (कुलु. 1:7, 8; 4:12) दरअसल वहाँ की कलीसिया को एक खतरा था। वह क्या था? पुराने धर्म धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे और उनकी जगह नए-नए धर्म उभरने लगे थे, जो इन्हीं पुराने धर्मों से मिलकर बने थे। इसके अलावा, चारों तरफ ऐसे फलसफे फैले हुए थे जो सन्यास, भूतविद्या और मूर्तिपूजा के साथ-साथ अंधविश्वास का बढ़ावा दे रहे थे। यही नहीं, कुछेक भोजन से परहेज़ करना और दिनों को मानने जैसे यहूदी रिवाज़ों को भी बढ़ावा दिया जा रहा था। इन सब बातों का कलीसिया के कुछ लोगों पर असर होने लगा था। समस्या चाहे जो भी रही हो, लेकिन एक बात पक्की है कि समस्या काफी गंभीर थी क्योंकि तभी तो इपफ्रास ने पौलुस से मिलने के लिए रोम तक का इतना लंबा सफर तय किया। मगर मोटे तौर पर कलीसिया को कोई बड़ा खतरा नहीं था। यह हमें इस बात से पता चलता है कि इपफ्रास ने उनके बारे में अच्छी रिपोर्ट दी कि वे प्यार और अपने विश्वास को थामे हुए हैं। यह सुनकर पौलुस ने कुलुस्से की कलीसिया को एक पत्री लिखी, जिसमें उसने सही ज्ञान और शुद्ध उपासना के पक्ष में ज़बरदस्त दलीलें दी। पत्री में उसने ज़ोर दिया कि परमेश्वर ने मसीह को जो पद दिया है, वह झूठे धर्मों के फलसफों, स्वर्गदूतों की उपासना और यहूदी परंपराओं से कहीं ज़्यादा महान है।
क्यों फायदेमंद है
12 हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि रोम से आए उन दो भाइयों की खबर कुलुस्से के भाई-बहनों में कितनी जल्दी फैल गयी होगी। वे सुनने को बेताब होंगे कि पौलुस ने अपनी पत्री में क्या लिखा है। इसलिए वे शायद फिलेमोन के घर इकट्ठे हुए होंगे, जहाँ उस पत्री को पढ़ा जाता। (फिले. 2) इसमें मसीह के पद और सही ज्ञान लेने के बारे में क्या ही तरो-ताज़ा करनेवाली सच्चाइयाँ दी गयीं! इसमें साफ-साफ बताया गया कि इंसानी फलसफे और यहूदी परंपराएँ श्रेष्ठ नहीं, बल्कि मसीह की शांति और उसका वचन सबसे श्रेष्ठ है! इस पत्री में अध्यक्षों, पति-पत्नियों, पिताओं, बच्चों, मालिकों और गुलामों, सभी की आध्यात्मिक बढ़ोतरी के लिए बढ़िया सलाहें दी गयी हैं। बेशक इसमें फिलेमोन और उनिसेमुस के लिए भी अच्छी सलाह थी, क्योंकि अब वे फिर से मालिक-नौकर की तरह एक हो गए थे। अध्यक्षों को क्या ही बढ़िया निर्देशन दिया गया है कि वे भटके हुए झुंड को वापस लाएँ और उन्हें सही शिक्षा मानने में मदद दें! पौलुस के शब्दों को सुनकर इस बात के लिए कुलुस्से के भाइयों की कदर और भी गहरी हुई होगी कि उन्हें यहोवा की तन-मन से सेवा करने का बड़ा सम्मान मिला है। उन्हें यह भी सलाह दी गयी थी कि वे दुनिया की विचारधाराओं और कामों के ज़ंजीरों को तोड़ दें। यह सलाह आज की कलीसियाओं के लिए भी बहुत मायने रखती है।—कुलु. 1:9-11, 17, 18; 2:8; 3:15, 16, 18-25; 4:1.
13 कुलुस्सियों 4:6 में मसीही सेवकों के लिए यह उम्दा सलाह दी गयी है: “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।” सच्चाई के सलोने शब्द नेकदिल लोगों को भाएँगे और उन शब्दों को मानने से उन्हें हमेशा के फायदे होंगे। इसके अलावा, पौलुस ने कहा: “प्रार्थना में लगे रहो, और धन्यवाद के साथ उस में जागृत रहो।” अगर एक मसीही एहसान-भरे दिल से प्रार्थना करने में लगा रहे, तो उसे यहोवा से बेशुमार आशीषें मिलेंगी। इतना ही नहीं, मसीही कलीसिया में भाई-बहनों के साथ मेल-जोल रखने से हमें क्या ही खुशी और हौसला मिलता है! पौलुस ने कहा था: ‘एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने अपने मन में परमेश्वर के लिये गीत गाओ।’ (4:2; 3:16) कुलुस्सियों की पत्री की गहराई से जाँच करने पर आपको बढ़िया और व्यवहारिक हिदायतों के और भी रत्न मिलेंगे।
14 जहाँ तक व्यवस्था को मानने की बात है, पत्री कहती है: “ये आनेवाली बातों की छाया मात्र हैं: मूल सत्य तो मसीह हैं।” (2:17, नयी हिन्दी बाइबिल) कुलुस्सियों की पत्री में इसी सत्य पर ज़ोर दिया गया है। इसमें स्वर्ग में रखी हुई उस शानदार आशा के बारे में बार-बार बताया गया है, जो मसीह में एक हुए लोगों को मिलती है। (1:5, 27; 3:4) ये लोग इस बात के लिए शुक्रगुज़ार हो सकते हैं कि पिता ने उन्हें अंधकार के वश से छुड़ाकर “अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया” है। इस तरह वे उस शख्स के अधीन हो गए हैं, जो “अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है। क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएं, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार।” मसीह जैसा काबिल शासक और कोई नहीं है, जो परमेश्वर के राज्य में धार्मिकता से हुकूमत कर सके। इसीलिए पौलुस अभिषिक्त मसीहियों को यह सलाह देता है: “सो जब तुम मसीह के साथ जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहां मसीह वर्तमान है और परमेश्वर के दहिनी ओर बैठा है।”—1:12-16; 3:1.
[फुटनोट]
a द न्यू वेस्टमिन्स्टर डिक्शनरी ऑफ द बाइबल, 1970, पेज 181.