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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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‘औरों की नाईं शोक न करो’

क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि एक तूफ़ान झेलने के बाद किस प्रकार एक फूल मानो उदासी के कारण आगे झुका हुआ प्रतीत होता है? एक तरीक़े से यह एक मार्मिक दृश्‍य है। आख़िरकार, मूसलाधार वर्षा के कारण संभवतः असंख्य जानवरों और लोगों को—जो किसी भी फूल से कहीं ज़्यादा ताक़तवर सृष्टि है—शरण लेने के लिए तेज़ी से भागना पड़ा। फिर भी, वह फूल वहीं खड़ा रहा, जड़ थामे हुए, मौसम की तीव्र प्रचंडता का सामना करते हुए। अभी, वह यहाँ अक्षत है, झुका हुआ लेकिन टूटा नहीं, ऐसी शक्‍ति दिखाते हुए जो उसके नाज़ुक रूप को झुठलाती है। उसकी प्रशंसा करते हुए आप शायद सोच सकते हैं, कि क्या वह अपनी ताक़त फिर से प्राप्त कर सकेगा और अपना ख़ूबसूरत सिर फिर से आकाश की ओर उठा सकेगा।

लोगों के साथ भी ऐसा ही है। इन कठिन समयों में, हम हर क़िस्म के तूफ़ानों का सामना करते हैं। आर्थिक कठिनाइयाँ, हताशा, बिगड़ता स्वास्थ्य, मृत्यु में एक प्रिय जन को खोना—कभी-न-कभी हम सभी को ऐसे तूफ़ानों का सामना करना पड़ता है, और कभी-कभी हम उसी प्रकार इन तूफ़ानों से बच नहीं सकते जिस प्रकार वह फूल अपने आपको जड़ से उखाड़कर शरण लेने के लिए भाग नहीं सकता। उन व्यक्‍तियों को जो दिखने में काफ़ी कमज़ोर हैं, असाधारण शक्‍ति दिखाते हुए और ऐसे आक्रमणों को सहते हुए देखना हृदयस्पर्शी है। वे ऐसा कैसे करते हैं? अकसर इसकी कुंजी विश्‍वास होती है। यीशु मसीह के सौतेले भाई याकूब ने लिखा: “तुम जानते हो कि जब तुम्हारा विश्‍वास ऐसी परीक्षाओं का सामना करने में सफल होता है, तो इससे सहन करने की क्षमता उत्पन्‍न होती है।”—याकूब १:३, टुडेस्‌ इंग्लिश वर्शन।

दूसरी कुंजी है आशा। उदाहरण के लिए, जब एक प्रिय जन पर मृत्यु आती है, तब जो जीवित हैं उनके लिए आशा के कारण काफ़ी फ़र्क पड़ सकता है। प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीकिया के मसीहियों को लिखा: “हम नहीं चाहते, कि तुम उनके विषय में जो सोते हैं, अज्ञान रहो; ऐसा न हो, कि तुम औरों की नाई शोक करो जिन्हें आशा नहीं।” (१ थिस्सलुनीकियों ४:१३) जबकि मृत्यु के कारण मसीही निश्‍चय ही शोक मनाते हैं, लेकिन उसमें एक फ़र्क है। उनके पास मृत जनों की स्थिति के बारे में और पुनरुत्थान की आशा के बारे में यथार्थ ज्ञान है।—यूहन्‍ना ५:२८, २९; प्रेरितों २४:१५.

यह ज्ञान उन्हें आशा देता है। और वह आशा, क्रमशः, उनके शोक को आहिस्ता-आहिस्ता कम कर देती है। यह उन्हें सहने के लिए सहायता करती है और उससे भी अधिक करती है। समय के साथ, तूफ़ान के बाद उस फूल की तरह, वे शायद शोक से निकलकर अपने सिर ऊपर उठाएँ और एक बार फिर ज़िन्दगी में हर्ष और संतुष्टि पाएँ।

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