युद्धों को ख़त्म करनेवाला युद्ध
एक बड़ा जर्मन ज़ेपेलिन [हवाई जहाज़] रात के आकाश में भिनभिनाता हुआ उड़ा। लंदन पर हवाई हमला करने के बाद वह लौट रहा था, और जैसे वह एस्सेक्स के एक गाँव के ऊपर से उड़ा, बम गिरा दिए गए। मारे गए लोगों में एक नर्स थी जो फ्रांस में हो रहे युद्धकार्य से छुट्टी पर थी।
यह विश्व युद्ध I की एक अप्रधान घटना थी, लेकिन उस में बड़ा निहितार्थ था। यह एक ऐसी मिसाल थी कि किस तरह २०वीं सदी में, एक ऐसे समय की शुरुआत होने के बजाय, जब मनुष्य ‘अब और युद्ध की विद्या न सीखता,’ दोनों अस्त्रों में और युद्ध के मैदानों में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है। (यशायाह २:२-४) हज़ारों साल से, युद्ध ज़मीन पर और समुद्र की सतह पर लड़े गए थे। लेकिन विश्व युद्ध I में, लड़ाई ऊपर वायुमण्डल में और समुन्दर की सतह के नीचे फैल गयी। उसके परिणामस्वरूप, सामान्य नागरिक, जो युद्ध की सीमाओं से सैंकड़ों मील दूर थे, बमों से मारे गए, और अनेक जहाज़ अदृश्य पनडुब्बियों द्वारा महासागर में डुबा दिए गए।
सचमुच, उस पहले भयंकर विश्व युद्ध में, ८० लाख सैनिक लड़ाई में मारे गए, और अनुमानतः १ करोड़, २० लाख नागरिक ऐसे कारणों से मरे जिन में भूखमरी और अनाश्रयता सम्मिलित थीं। इतिहासकार एच. ए. एल. फ़िशर के अनुसार, “महायुद्ध [विश्व युद्ध I] की महाविपदा यह थी कि वह यूरोप के सबसे ज़्यादा सभ्य लोगों के बीच लड़ा गया, और एक ऐसे विषय पर जिसका समाधान कुछेक समझदार आदमी आसानी से कर सकते थे।” उस भयंकर हत्याकांड को उचित सिद्ध करने के लिए, उसे “युद्धों को ख़त्म करनेवाला युद्ध” कहा गया। लेकिन वह वाक्यांश जल्द ही बहुत ही खोखला लगने लगा।
एक शान्ति संघटन
१९१८ में ज्योंही शान्ति घोषित हुई, एक कटु पीढ़ी ने माँग की कि यह निश्चित करने के लिए क़दम लिए जाएँ कि ऐसा युद्ध फिर कभी न हो सके। इस प्रकार, १९१९ में राष्ट्र-संघ ने जन्म लिया। लेकिन संघ निराशजनक साबित हुई। १९३९ में दुनिया को फिर से युद्ध में उलझा दिया गया—एक ऐसा युद्ध जो पहले युद्ध से भी ज़्यादा घातक था।
विश्व युद्ध II में, अनेक शहर ईंट-रोड़ों के ढेर बना दिए गए, जिस से नागरिकों का जीवन एक भयानक सपना बन गया। फिर १९४५ में हिरोशीमा और नागासाकी पर अणुबम गिरा दिए गए, जिस से मानव परमाणु युग में प्रविष्ट हुआ। उन दो जापानी शहरों पर जो विकराल छत्रक बादल उठे, वे एक ऐसी धमकी के अग्रदूत थे, जो तब से मनुष्यजाति के सिर के ऊपर मँडरा रही है।
परन्तु, उन बमों के गिरने से भी पहले, समाप्त राष्ट्र-संघ के समान एक संघटन स्थापित करने की तैयारियाँ हो रही थीं। उसका फल संयुक्त राष्ट्र संघ था, जिसका लक्ष्य मूल रूप से उसके पूर्वाधिकारी के ही जैसे था—विश्व शान्ति बनाए रखने का लक्ष्य। उसकी कार्यसिद्धि क्या रही है? ख़ैर, १९४५ से कोई विश्व युद्ध तो न हुआ, लेकिन ऐसे असंख्य युद्ध हुए हैं जिन में लाखों लोग जान से हाथ धो बैठे हैं।
क्या इसका यह मतलब है कि मनुष्यजाति यशायाह द्वारा परमेश्वर की प्रतिज्ञा की पूर्ति कभी न देखेगी कि मनुष्य ‘अब और युद्ध की विद्या न सीखेंगे?’ नहीं। इसका सिर्फ़ यही मतलब है कि यह मनुष्यों के ज़रिए नहीं होगा। बाइबल, जिसे ‘मेरे मार्ग के लिए उजियाला’ कहा गया है, वही किताब है जिस में वह प्रेरित प्रतिज्ञा है। और यह बाइबल ही है जो दिखाती है कि खुद परमेश्वर ही आख़िर में सभी युद्धों को ख़त्म करेगा।—भजन ११९:१०५.
सभी युद्धों की समाप्ति
जैसे पूर्ववर्ती लेख में उल्लेख किया गया, पहली सदी में एक समुदाय था जिसने एक अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा स्थापित किया, जिस में किसी सदस्य के लिए यह अविचारणीय था कि वह अपने भाई या बहन के ख़िलाफ़ युद्ध करे। यह मसीही कलीसिया थी, जिसके सदस्यों ने एक बहुत ही वास्तविक भावार्थ में ‘अपनी तलवारें पीटकर हल की फाल बनायी थीं।’ आज, जब आम तौर पर मनुष्यजाति युद्ध समाप्त नहीं कर सकती, एक बार फिर एक ऐसा समूह है जिसने यही उल्लेखनीय लक्ष्य पूरा किया है। वे कौन हैं?
१९१४ से पहले के वर्षों में, इस छोटे से समुदाय को बाइबल में विश्वास था। इसीलिए, वे जानते थे कि युद्ध समाप्त करने के लिए मनुष्यों के प्रयत्न सफल न होते। अपने बाइबल अध्ययन से उन्होंने सीखा कि सन् १९१४ मानवी इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ होनेवाला था, और वे ४० वर्ष तक इसकी चेतावनी देते रहे। बाइबल भविष्यद्वाणी के अनुसार, १९१४ एक ऐसे समय का आरंभ था जो युद्ध के साथ-साथ, अकाल, महामारी, और भूचालों से चिन्हित था। (मत्ती २४:३, ७, ८; लूका २१:१०, ११) विश्व युद्ध I के विषय, इतिहासकार जेम्स कॅमेरोन ने लिखा: “१९१४ में दुनिया, जैसे कि वह तब समझी और स्वीकार की जाती थी, समाप्त हो गयी।”
उस युद्ध के समाप्त होने से पहले, एक भयंकर इन्फ़्लूएन्ज़ा महामारी ने विश्व पैमाने पर वार करके २ करोड़ लोगों को मार दिया—युद्ध में मारे गए सैनिकों की संख्या से दोगुना से भी ज़्यादा। तब से, कर्क रोग, और ज़्यादा हाल में, एड्स जैसी बीमारियों ने मनुष्यजाति को भयभीत किया है।
अब एक और बाइबल भविष्यद्वाणी पर ग़ौर करें: “और अधर्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा हो जाएगा।” (मत्ती २४:१२) क्या यह परिपूर्ण हो रहा है? यक़ीनन! हर रोज़, संचार माध्यम विश्वव्याप्त अधर्म को प्रस्तुत करते हैं: हत्याएँ, हमलें, और आम अव्यवस्था। इसके अतिरिक्त, विश्व युद्ध II से संबंधित एक राजनीतिक पूर्वानुमान यह था कि वह “भय से मुक्ति” लाता। इसके विपरीत, बाइबल ने यथार्थता से पूर्वबतलाया कि “भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते देखते” मनुष्यों “के जी में जी न रहेगा।” (लूका २१:२६) एक बार फिर मानवी भविष्यवाणियाँ ग़लत थीं, और परमेश्वर का भविष्यसूचक वचन सही।
प्रधान युद्धोत्तेजक
योद्धोत्तेजक एक ऐसा व्यक्ति होता है जो युद्ध भड़काता है। नेता, पादरी, और व्यवसायियों ने भी यह भूमिका अदा की है। लेकिन सबसे बड़ा युद्धोत्तेजक स्वयं शैतान इब्लीस है, जिसे धर्मशास्त्र में ‘इस संसार का ईश्वर’ कहा गया है।—२ कुरिन्थियों ४:४.
सहस्राब्दियों पहले शैतान ने यहोवा परमेश्वर के ख़िलाफ़ विद्रोह किया, और बाद में उसने स्वर्गदूतों की एक भीड़ को उसके साथ मिलने के लिए बहकाया। लेकिन १९१४ में उसका समय समाप्त हो गया। बाइबल हमें बताती है: “फिर स्वर्ग पर लड़ाई हुई, मीकाईल और स्वर्गदूत अजगर से लड़ने को निकले, और अजगर और उसके दूत उस से लड़े। परन्तु प्रबल न हुए, और स्वर्ग में उन के लिए फिर जगह न रही। और वह बड़ा अजगर अर्थात् वही पुराना साँप, जो इब्लीस और शैतान कहलाता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है, पृथ्वी पर गिरा दिया गया; और उसके दूत उसके साथ गिरा दिए गए।”—प्रकाशितवाक्य १२:७-९.
इस से हमें कारण मिलता है कि यह पृथ्वी १९१४ से क्यों इतनी ख़तरनाक़ जगह रही है। बाइबल में शैतान के पतन का परिणाम पूर्वबतलाया गया: “पृथ्वी, . . . तुम पर हाय! क्योंकि इब्लीस बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाक़ी है।” (प्रकाशितवाक्य १२:१२) कितना थोड़ा समय? यीशु ने कहा: “जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी [वही, जो १९१४ से शुरू होनेवाली घटनाएँ देखती है] जाती न रहेगी।” (मत्ती २४:३४) कौनसी बातें? सभी विपत्तियाँ और अशान्ति जिसकी भविष्यद्वाणी यीशु ने हमारे समय के लिए की।
परन्तु, बाइबल दिखाती है कि राष्ट्र-संघ के आकस्मिक विध्वंस और संयुक्त राष्ट्र संघ की मौजूदा बेबसी के बावजूद, जातियाँ शान्ति लाने की अपनी कोशिशें न रोकतीं। वास्तव में, एक ऐसा समय आएगा जब वे सोचेंगे कि वे सफल हुए हैं। “शान्ति और सुरक्षा” की एक बड़ी घोषणा होगी, लेकिन इसके बाद इस भ्रष्ट दुनिया का “एकाएक विनाश” होगा। चूँकि वे अँधेरे में हैं, मनुष्य घटनाओं के इस मोड़ से आश्चर्यचकित होंगे, जो कि ‘रात को चोर के जैसे आएगा।’—१ थिस्सलुनीकियों ५:२, ३.
यह किस ओर ले जाएगा? उस युद्ध की ओर, जो सचमुच “युद्धों को ख़त्म करनेवाला युद्ध” है: आरमागेडोन का युद्ध, जिसे बाइबल में “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई” कहा गया है। इसका मतलब होगा, सभी दुष्ट तत्त्वों और उनके समर्थकों का विनाश। “कुकर्मी लोग काट डाले जाएँगे।” (प्रकाशितवाक्य १६:१४-१६; भजन ३७:९) अन्त में, शैतान, वह बड़ा युद्धोत्तेजक, एक ऐसी जगह में बन्द किया जाएगा जहाँ वह मनुष्यों पर और अधिक असर न डाल सकेगा। आख़िरकार, उसका भी नाश होना है।—प्रकाशितवाक्य २०:१-३, ७-१०.
परन्तु, ग़ौर करें कि यह बुद्धिहीन विनाश का युद्ध न होगा जिसमें निर्दोष और दोषियों दोनों का निरर्थक हत्याकांड होगा। उसके उत्तरजीवी होंगे, और ये वही होंगे जो “दिन रात [परमेश्वर] की सेवा करते हैं।” जी हाँ, जो लोग अब भी युद्ध की विद्या सीखना बंद करेंगे और जो एक सच्चे मसीही के शान्तिप्रिय मार्गं पर चलेंगे, वे इस आख़री, बड़े युद्ध में से जीवित रहेंगे। क्या वे बहुत लोग होंगे? बाइबल उन्हें “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़” कहती है “जिसे कोई गिन नहीं सकता।”—प्रकाशितवाक्य ७:९, १४, १५.
आँधी के बाद
ये लोग कैसी मुक्ति महसूस करेंगे! अनेक राष्ट्रीयवादी शासनों के बजाय, एक ही शासन होगा: परमेश्वर का राज्य। (दानिय्येल २:४४; मत्ती ६:९, १०) अभिमानी और अभिलाषी लोगों के बजाय, नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे और “शान्ति की बहुतायत में अत्युत्तम आनन्द पाएँगे।” (भजन ३७:१०, ११, न्यू.व.) “यहोवा आप . . . उन की आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी।” (प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) यहोवा “पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाएगा।” तलवारों को पीटकर हल की फाल बनाया जाएगा, भालों को हँसिया बनाया जाएगा, और ‘न वे भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।’—भजन ४६:८, ९; यशायाह २:४.
क्या आप ऐसी दुनिया में जीना नहीं चाहेंगे? यक़ीनन आप चाहेंगे! ख़ैर, संभावना प्रस्तुत है। पहला क़दम परमेश्वर के वचन, बाइबल, का अध्ययन करना है, और खुद के लिए यह सुनिश्चित करना है कि यह आशा सच्ची है और इसकी पक्की बुनियाद है। फिर, बाइबल से पता कर लीजिए कि अब आप के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है और तदनुकूल कार्य कीजिए। सच, अध्ययन का मतलब है प्रयास, लेकिन यह उसके योग्य है। यीशु ने कहा कि अगर आप प्राप्त ज्ञान को उचित रूप से इस्तेमाल करेंगे, तो उसका मतलब “अनन्त जीवन” होगा। (यूहन्ना १७:३) क्या उस से कोई और महत्त्वपूर्ण बात हो सकती है?