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“अधर्म के पुरुष” की पहचान करना

“वह अधर्मी प्रगट होगा, जिसे प्रभु यीशु . . . मार डालेगा।”—२ थिस्सलुनीकियों २:८.

१, २. “अधर्म के पुरुष” की पहचान करना हमारे लिए अत्यावश्‍यक क्यों है?

हम अधर्म के युग में जी रहे हैं। यह एक विश्‍वव्यापी दृश्‍य घटना है। हर कहीं अधर्मी परभक्षी और उनकी तरफ़ से हमारी जान और सम्पत्ति को पेश होनेवाले खतरे का भय मौजूद है। फिर भी, इस से भी कहीं ज़्यादा छिपा हुआ अधर्मी तत्त्व मौजूद है जो सदियों से कार्य कर रहा है। बाइबल में इसे “अधर्म का पुरुष” कहा गया है।

२ यह अत्यावश्‍यक है कि हम इस “अधर्म के पुरुष” की पहचान करें। क्यों? क्योंकि वह परमेश्‍वर के साथ हमारी अच्छी स्थिति और अनन्त जीवन की हमारी आशा को धीरे-धीरे क्षति पहुँचाने पर तुला हुआ है। कैसे? हम से सच्चाई का त्याग करवाने और उसकी जगह झूठ पर विश्‍वास करवाने से, जिस से हमारा ध्यान “आत्मा और सच्चाई के साथ” परमेश्‍वर की उपासना करने से हट जाएगा। (यूहन्‍ना ४:२३) उसके कार्यों से यह ज़ाहिर है कि यह विशेष अधर्मी तत्त्व परमेश्‍वर और उसके उद्देश्‍य, और साथ-साथ उसके समर्पित लोगों का विरोध करता है।

३. बाइबल किस तरह हमारा ध्यान अधर्मी की ओर आकृष्ट करती है?

३ बाइबल २ थिस्सलुनीकियों २:३ में इस अधर्म के पुरुष के बारे में बताती है। परमेश्‍वर के आत्मा से प्रेरित होकर, प्रेरित पौलुस ने लिखा: “किसी रीति से किसी के धोखे में न आना क्योंकि [इस रीति-व्यवस्था को नष्ट करने के लिए यहोवा का दिन] न आएगा, जब तक पहले धर्मत्याग न हो ले, और वह अधर्म का पुरुष अर्थात्‌ विनाश का पुत्र प्रगट न हो।” (न्यू.व.) यहाँ पौलुस ने भविष्यद्वाणी की कि इस व्यवस्था के अंत से पहले धर्मत्याग विकसित होता और एक अधर्म का पुरुष प्रकट होता। दरअसल, पौलुस ने सातवें आयत में कहा: “क्योंकि अधर्म का भेद अब भी कार्य करता जाता है।” तो, पहली सदी में, यह अधर्मी खुद को प्रकट करने लगा था।

अधर्मी पुरुष का आरंभ

४. अधर्म के पुरुष का आरंभकर्ता और समर्थक कौन है?

४ इस अधर्म के पुरुष का आरंभ किसने किया और इसका पोषण कौन करता है? पौलुस जवाब देता है: “उस अधर्मी की मौजूदगी शैतान के कार्य के अनुसार सब प्रकार की झूठी सामर्थ, और चिन्ह, और अद्‌भुत काम के साथ, और नाश होनेवालों के लिए अधर्म के सब प्रकार के धोखे के साथ है; एक दण्ड के तौर से, क्योंकि उन्होंने सत्य के प्रेम को ग्रहण नहीं किया जिस से उन का उद्धार होता।” (२ थिस्सलुनीकियों २:९, १०, न्यू.व.) तो शैतान अधर्म के पुरुष का पिता और पोषक है। और जिस तरह शैतान, यहोवा, उसके उद्देश्‍यों और उसके लोगों के विरुद्ध है, उसी तरह अधर्म का पुरुष भी इनके विरुद्ध है, चाहे वह यह बात जानता है या नहीं।

५. अधर्मी और उसके अनुयायियों के लिए कैसा अंत तैयार खड़ा है?

५ “अधर्म के पुरुष” के हाँ में हाँ मिलानेवाले लोगों का अंत उसके ही जैसे होगा—विनाश: “वह अधर्मी प्रगट होगा, जिसे प्रभु यीशु . . . मार डालेगा, और अपनी मौजूदगी के प्रकटन से भस्म करेगा।” (२ थिस्सलुनीकियों २:८, न्यू.व.) अधर्म के पुरुष और उसके समर्थकों (“नाश होनेवालों”) के विनाश का समय बहुत जल्द आ जाएगा जब “प्रभु यीशु अपने सामर्थी दूतों के साथ, धधकती हुई आग में स्वर्ग से प्रगट होगा। और जो परमेश्‍वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते, उन से पलटा लेगा। वे . . . अनन्त विनाश का दण्ड पाएँगे।”—२ थिस्सलुनीकियों १:६-९.

६. पौलुस अधर्म के पुरुष के बारे में कौनसी अधिक जानकारी देता है?

६ पौलुस इस अधर्मी पुरुष का अधिक वर्णन यह कहकर करता है: “[वह] विरोध करता है, और हर एक से जो परमेश्‍वर, या पूज्य कहलाता है, अपने आप को बड़ा ठहराता है, यहाँ तक कि वह परमेश्‍वर के मन्दिर में बैठकर अपने आप को एक ईश्‍वर प्रगट करता है।” (२ थिस्सलुनीकियों २:४, न्यू.व.) तो पौलुस चेतावनी देता है कि शैतान एक अधर्म का पुरुष खड़ा करता, भक्‍ति का एक नक़ली पात्र, जो खुद को परमेश्‍वर के नियम से भी ऊपर रखता।

अधर्म के पुरुष की पहचान करना

७. हम यह निष्कर्ष क्यों निकालते हैं कि पौलुस किसी एक व्यक्‍ति के बारे में बात नहीं कर रहा था, और अधर्म के पुरुष का मतलब क्या है?

७ क्या पौलुस एक ही व्यक्‍ति के बारे में बात कर रहा था? नहीं, इसलिए कि वह कहता है कि यह “पुरुष” पौलुस के समय में प्रगट था और वह तब तक अस्तित्व में रहता जब यहोवा उसे इस व्यवस्था के अंत में नष्ट कर देता। इस प्रकार, वह कई सदियों से अस्तित्व में रहा है। प्रत्यक्षतः, कोई वास्तविक आदमी उतनी देर तक ज़िन्दा नहीं रहा है। तो “अधर्म का पुरुष,” इस अभिव्यक्‍ति का मतलब लोगों का एक समूह, या वर्ग ही होगा।

८. अधर्म का पुरुष कौन है, और कुछ पहचान देनेवाली विशेषताएँ क्या हैं?

८ वे कौन हैं? प्रमाण सूचित करता है कि वे ईसाईजगत्‌ के गर्वीले, उच्चाकांक्षी पादरियों का वर्ग हैं, जिन्होंने सदियों से खुद को ही क़ानून माना है। यह इस वास्तविकता से स्पष्ट है कि ईसाईजगत्‌ में हज़ारों अलग-अलग धर्म और संप्रदाय हैं, प्रत्येक को जिनका अपना पादरी-वर्ग है, और फिर भी जो धर्ममत या अभ्यास के किसी न किसी पहलू में एक दूसरे के परस्पर विरोधी हैं। यह अविभक्‍त दशा स्पष्ट सबूत है कि वे परमेश्‍वर के नियम का पालन नहीं करते। वे परमेश्‍वर की ओर से नहीं हो सकते। (मीका २:१२; मरकुस ३:२४; रोमियों १६:१७; १ कुरिन्थियों १:१० से तुलना करें।) इन धर्मों में जो बात सर्वसामान्य है, वह यह है कि वे बाइबल शिक्षाओं का पालन दृढ़ता से नहीं करते, चूँकि उन्होंने इस नियम का उल्लंघन किया है: “लिखे हुए से आगे न बढ़ना।”—१ कुरिन्थियों ४:६; मत्ती १५:३, ९, १४ भी देखें।

९. अधर्मी ने बाइबल सच्चाइयों के स्थान पर कौनसे बाइबल-विरुद्ध विश्‍वास सिखाए हैं?

९ इस प्रकार, यह अधर्मी एक सामूहिक व्यक्‍ति है: ईसाईजगत्‌ का धार्मिक पादरी-वर्ग। ईसाईजगत्‌ के धार्मिक पापों की ज़िम्मेदारी में उन सभी का भाग है, चाहे वे पोप हों, पादरी हों, धर्माध्यक्ष हों, या प्रोटेस्टेन्ट प्रचारक। उन्होंने परमेश्‍वर की सच्चाइयों के बदले में मूर्तिपूजक झूठ ग्रहण करके, मानव जीव की अमरता, नरकाग्नि, पापमोचन-स्थान, एवं त्रियेक जैसे बाइबल-विरुद्ध धर्ममत सिखाए हैं। वे उन धार्मिक अगुओं के जैसे हैं जिनके विषय में यीशु ने कहा: “तुम अपने पिता इब्लीस से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। . . . वह झूठा है और झूठ का पिता है।” (यूहन्‍ना ८:४४) उनके अभ्यास भी उन्हें अधर्मी होने के तौर से बेपरदा करते हैं, इसलिए कि वे ऐसे कार्यों में हिस्सा लेते हैं जिनसे परमेश्‍वर के नियम भंग होते हैं। ऐसों से यीशु कहता है: “हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ।”—मत्ती ७:२१-२३.

खुद को उन्‍नत करते हैं

१०. अधर्मी का राजनीतिक शासकों से कैसा नाता रहा है?

१० इतिहास दिखाता है कि इस अधर्म के पुरुष वर्ग के सदस्यों ने ऐसा गर्व और घमण्ड दिखाया है कि उन्होंने दरअसल संसार के शासकों पर हुक्म चलाया है। ‘राजाओं के दैवी अधिकार’ के धर्ममत के बहाने, पादरी-वर्ग ने दावा किया है कि वे राजाओं और परमेश्‍वर के बीच आवश्‍यक मध्यस्थ हैं। उन्होंने राजाओं और सम्राटों को सिंहासन पर चढ़ाया और उस पर से उतारा है और वे जनता को शासकों के पक्ष में या उनके ख़िलाफ़ कर सके हैं। असल में, उन्होंने उन यहूदी महायाजकों की तरह कहा है, जिन्होंने यीशु को ठुकरा दिया: “क़ैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।” (यूहन्‍ना १९:१५) फिर भी, यीशु ने स्पष्टतः सिखाया: “मेरा राज्य इस जगत का नहीं।”—यूहन्‍ना १८:३६.

११. पादरी-वर्ग ने खुद को किस तरह उन्‍नत किया है?

११ अपने आप को जनता से और भी ज़्यादा ऊँचा उठाने के लिए, इस अधर्मी वर्ग ने विभिन्‍न पहनावों को अपनाया है, आम तौर से काले रंग को। इसके अलावा, उन्होंने अपने आप को मुकुट, क्रूस, और मिट्रों (ऊँचे शिरोवस्त्र) के साथ-साथ हर तरह के प्रभावक राज-आभूषण तथा वस्त्रादि से आभूषित किया है। (मत्ती २३:५, ६ से तुलना करें।) लेकिन यीशु और उसके अनुयायियों का ऐसा कोई पहनावा न था; वे ऐसे कपड़े पहनते जैसे आम लोग पहनते थे। पादरी-वर्ग ने “फ़ादर,” “होली फ़ादर,” “रेवरेंड,” “मोस्ट रेवरेंड,” “हिज़ एक्सलेंसी,” और “हिज़ एमिनेंस” जैसी उपाधियाँ ग्रहण की है, जिस से उनका ‘अपने आप को हर एक से बड़ा ठहराना’ और भी बढ़ गया है। फिर भी, यीशु ने धार्मिक उपाधियों के बारे में सिखाया: “पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना।” (मत्ती २३:९) उसी तरह, अय्यूब के पाखण्डी दिलासा देनेवालों का खण्डन करने में, एलीहू ने कहा: “मुझे किसी आदमी का पक्ष करने न देना; और न मैं किसी मनुष्य को चापलूसी की पदवी दूँगा।”—अय्यूब ३२:२१, न्यू.व.

१२. पौलुस ने कहा कि पादरी-वर्ग दरअसल किसकी सेवा कर रहा था?

१२ जब पौलुस ने अपने समय में कहा कि अधर्म के पुरुष ने अपना कार्य पहले ही शुरू किया था, उसने उन लोगों के विषय में भी, जो उस व्यक्‍ति की अधर्मी अभिवृत्ति प्रतिबिंबित करते हैं, कहा: “क्योंकि ऐसे लोग झूठे प्रेरित, और छल से काम करनेवाले, और मसीह के प्रेरितों का रूप धरनेवाले हैं। और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्योंकि शैतान आप भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का रूप धारण करता है। सो यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं परन्तु उन का अन्त उन के कामों के अनुसार होगा।”—२ कुरिन्थियों ११:१३-१५.

सच्ची उपासना के ख़िलाफ़ बग़ावत

१३. पौलुस द्वारा पूर्वबतलाया गया धर्मत्याग क्या है?

१३ पौलुस ने कहा कि यह अधर्म का पुरुष धर्मत्याग के साथ साथ विकसित होता। दरअसल, पौलुस ने इस अधर्मी वर्ग की पहचान के विषय में जो पहला सुराग दिया वह यह था कि “यहोवा का दिन [जब यहोवा इस दुष्ट रीति-व्यवस्था को नष्ट करेगा] . . . न आएगा, जब तक पहले धर्मत्याग न हो ले।” (२ थिस्सलुनीकियों २:२, ३, न्यू.व.) लेकिन “धर्मत्याग” का मतलब क्या है? इस संदर्भ में, इसका मतलब सिर्फ़ एक भूल या आध्यात्मिक कमज़ोरी की वजह से पतित हो जाना नहीं है। “धर्मत्याग” के लिए यहाँ इस्तेमाल किए गए यूनानी शब्द का मतलब, अन्य मतलबों के अलावा, “पक्षत्याग” या “विद्रोह” है। कई अनुवादों में इसे “बग़ावत,” यों भाषान्तर किया गया है। विलियम बार्क्ले का अनुवाद कहता है: “जब तक बड़ी बग़ावत नहीं होती तब तक वह दिन नहीं आ सकता।” द जेरूसलेम बाइबल में इसे “बड़ा विद्रोह” कहा गया है। इसलिए, जिस बात पर पौलुस विचार-विमर्श कर रहा है, उसके संदर्भ में, “धर्मत्याग” का मतलब है सच्ची उपासना के ख़िलाफ़ एक विद्रोह।

१४. धर्मत्याग गंभीर रूप से कब विकसित होने लगा?

१४ यह धर्मत्याग, यह बग़ावत, किस तरह विकसित हुई? २ थिस्सलुनीकियों २:६ में, अपने समय से संबंधित, पौलुस ने “उस वस्तु” के विषय में लिखा, जो अधर्मी को “रोक रही है।” वह क्या था? वह प्रेरितों की रोक लगानेवाली ताक़त थी। पवित्र आत्मा द्वारा दी गयी उनके प्रभावशाली भेंटों समेत, उनकी मौजूदगी से धर्मत्याग उस समय एक महामारी के रूप में फैलने से रुक गया। (प्रेरितों के काम २:१-४; १ कुरिन्थियों १२:२८) लेकिन, लगभग पहली सदी के अंत तक, जब प्रेरित मर चुके थे, नियंत्रण देनेवाली रोक हटा दी गयी।

बाइबल-विरुद्ध पादरी-वर्ग विकसित होता है

१५. मसीही कलीसिया के लिए यीशु ने कौनसी व्यवस्था स्थापित की?

१५ यीशु ने जो कलीसिया स्थापित की थी, उसका विकास पहली सदी में बुज़ुर्गों (अध्यक्षों) और सहायक सेवकों की निगरानी में हुआ। (मत्ती २०:२५-२७; १ तीमुथियुस ३:१-१३; तीतुस १:५-९) ये लोग कलीसिया में से लिए गए थे। वे बिना किसी खास धर्मवैज्ञानिक प्रशिक्षण के, कुशल आध्यात्मिक पुरुष थे, उसी तरह जैसे यीशु का ऐसा कोई प्रशिक्षण न हुआ था। वास्तव में, उसके विरोधियों ने अचम्भा किया: “इसे बिन पढ़े विद्या कैसे आ गयी?” (यूहन्‍ना ७:१५) और प्रेरितों के संबंध में, धार्मिक अगुओं ने वही ग़ौर किया: “जब उन्होंने पतरस और यूहन्‍ना का हियाव देखा, और यह जाना कि ये अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उन को पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं।”—प्रेरितों के काम ४:१३.

१६. धर्मत्याग के कारण कलीसियाई संघटन के लिए पहली-सदी के मसीही प्रतिमान से एक विचलन कैसे घटित हुआ?

१६ बहरहाल, धर्मत्याग से यहूदी पादरी-वर्ग में से और आख़िरकार मूर्तिपूजक रोमी धर्मसमाज में से व्युत्पन्‍न धारणाएँ अपनायी गयीं। जैसे-जैसे समय बीतता गया, और सच्चे विश्‍वास से धर्मच्युति घटित हुई, एक बाइबल-विरुद्ध पादरी-वर्ग विकसित हुआ। एक मुकुटधारी पोप कार्डिनलों के मण्डल पर शासन करने लगा, जो कि पारी से सैंकड़ों बिशपों और आर्चबिशपों से चुने गए थे, और जो पारी से धर्मप्रशिक्षणालय-प्रशिक्षित पादरियों से पदोन्‍नत किए गए थे। इस प्रकार, पहली सदी के कुछ ही समय बाद, एक रहस्यवादी पादरी-वर्ग ने ईसाईजगत्‌ में अधिकार ले लिया। इस वर्ग को पहली-सदी के मसीही बुज़ुर्गों और सहायक सेवकों के अनुरूप नहीं बनाया गया, बल्कि इसे मूर्तिपूजक धार्मिक व्यवस्थाओं के अनुरूप बनाया गया था।

१७. खास तौर से, अधर्म के पुरुष का अधिकार कब पक्का किया गया?

१७ सामान्य युग तीसरी सदी तक, आम विश्‍वासियों को अयाजकवर्ग के दूसरे-दर्जे तक पदावनीत कर दिया गया था। धर्मत्यागी अधर्म के पुरुष ने धीरे-धीरे अधिकार की बागडोर अपने हाथ में ले ली। यह अधिकार रोमी सम्राट्‌ कौंस्टेंटाइन के शासनकाल में पक्का किया गया, खासकर सा.यु. ३२५ में निकेइया की परिषद्‌ के बाद। तब गिरजा और सरकार जोड़ दिए गए। इस प्रकार, अधर्म का पुरुष—ईसाईजगत्‌ का पादरी-वर्ग—सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा, के विरोध में धर्मत्यागियों की एक सदियों-लंबी कतार बन गया। उन्होंने जिन नियमों और व्यवस्थाओं का पालन किया है, वे परमेश्‍वर के नहीं, उन्हीं के हैं।

मूर्तिपूजक शिक्षाएँ

१८. अधर्मी ने कौनसी ईशनिन्दक मूर्तिपूजक शिक्षाएँ ग्रहण की?

१८ विकासशील अधर्म के पुरुष ने मूर्तिपूजक शिक्षाएँ भी उधार में लीं। उदाहरणार्थ, एक रहस्यमय, अबोध्य त्रित्ववादी देवता को उस व्यक्‍ति के बदले में लाया गया, जो कहता है: “मैं यहोवा हूँ, मेरा नाम यही है; अपनी महिमा मैं दूसरे को न दूँगा।” “मैं यहोवा हूँ और दूसरा कोई नहीं। मुझे छोड़ कोई परमेश्‍वर नहीं।” (यशायाह ४२:८; ४५:५) परमेश्‍वर की सच्चाइयों के बदले में मानवी तथा मूर्तिपूजक धारणाओं की स्थानापत्ति एक और ईशनिन्दा सम्मिलित करने के लिए बढ़ा दी गयी: ईसाईजगत्‌ की “परमेश्‍वर की माता” के तौर से बाइबल की विनम्र मरियम की पूजा। इस प्रकार, ऐसी झूठी शिक्षाओं के प्रवर्तक, पादरी-वर्ग, सबसे भद्दे “जंगली दानें” बन गए, जो शैतान ने यीशु के लगाए अच्छे बीजों को नष्ट करने की कोशिश में लगाए थे।—मत्ती १३:३६-३९.

१९. शताब्दियों से ईसाईजगत्‌ के टुकड़े-टुकड़े किस तरह हो चुके हैं, लेकिन किस बात को बनाए रखा गया?

१९ जैसे-जैसे फूट और दरारें पड़ीं, ईसाईजगत्‌ के टुकड़े-टुकड़े होकर सैंकड़ों धर्म और संप्रदाय उत्पन्‍न हुए। पर, कुछेकों को छोड़कर, हर नए धर्म या संप्रदाय ने अपना पादरीवर्ग-अयाजकवर्ग विभाजन बनाए रखा है। इस प्रकार, अधर्मी पुरुष वर्ग को आज तक बनाए रखा गया है। और यह अब भी अपने विशिष्ट पहनावे और आडंबरी उपाधियों से खुद को जनता के ऊपर उठाता रहता है। जब पौलुस ने कहा था कि अधर्मी पुरुष वर्ग अपनी ही महिमा करता और खुद को एक ईश्‍वर-समान स्थिति तक उन्‍नत करता, तो स्पष्ट रूप से, उसने बात को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहा था।

पोपतंत्र

२०. एक कैथोलिक सूत्र पोप का वर्णन किस तरह करता है?

२० ऐसी महिमा-प्राप्ति की एक मिसाल रोम के पोपतंत्र की है। इट्‌ली में प्रकाशित, लूचिओ फेरारिस्‌ द्वारा लिखे गए चर्च-संबंधी शब्दकोश में पोप का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि “उसकी प्रतिष्ठा और उच्चता इतनी है कि वह मात्र पुरुष नहीं बल्कि, मानो परमेश्‍वर ही है, और परमेश्‍वर का परमधर्माध्यक्ष है।” “स्वर्ग, पृथ्वी और नरक के राजा” की हैसियत से उसका मुकुट तिगुना है। उसी शब्दकोश में आगे बताया गया है: “पोप, पृथ्वी पर मानो परमेश्‍वर ही है, मसीह के वफ़ादारों का इकलौता राजकुमार, सभी राजाओं में सबसे महान्‌ राजा।” यह और आगे कहता है: “पोप कभी-कभी ईश्‍वरीय नियम को प्रभावहीन कर सकता है।” और, द न्यू कैथोलिक डिक्शनरी पोप के बारे में बताता है: “उसके राजदूतों को राजनयिक समूह के अन्य सदस्यों पर पूर्ववर्तिता प्राप्त है।”

२१. पोप के कार्यों की तुलना पतरस और स्वर्गदूत के कार्यों से करें।

२१ यीशु के शिष्यों से विपरीत, पोप अक्सर बहुत ही अलंकृत पोशाक पहनता है और मानवों की चाटुकारी प्रसन्‍नता से स्वीकार करता है। पोप लोगों को उसके सामने झुकने, उसकी अँगूठी चूमने और उसे उनके कँधों पर एक खास कुर्सी में उठाकर ढोने देता है। शताब्दियों से पोपों ने क्या ही गर्व दिखाया है! वास्तव में यह पतरस की विनम्र सादगी से कितना विपरीत है, जिसने रोमी सेना अधिकारी, कुरनेलियुस, से कहा, जिस ने कि पतरस को प्रणाम करने के लिए उसके सामने घुटने टेके: “उठ जा, . . . आख़िर मैं भी तो मनुष्य ही हूँ”! (प्रेरितों के काम १०:२५, २६, कैथोलिक जेरूसलेम बाइबल) और यह उस स्वर्गदूत से कितना विपरीत है, जिसने प्रेरित यूहन्‍ना को प्रकाशितवाक्य दिया था! यूहन्‍ना ने उस स्वर्गदूत के सामने श्रद्धास्पद रूप से झुकने की कोशिश की, लेकिन उस स्वर्गदूत ने कहा: “देख, ऐसा मत कर; क्योंकि मैं तेरा और तेरे भाई भविष्यद्वक्‍ताओं और इस पुस्तक की बातों के माननेवालों का संगी दास हूँ; परमेश्‍वर ही को दण्डवत कर।”—प्रकाशितवाक्य २२:८, ९.

२२. अधर्मी की पहचान कौनसे धर्मशास्त्रीय नियम से किया जा सकेगा?

२२ क्या पादरी-वर्ग का यह मूल्यांकन बहुत ही कड़ा है? झूठे भविष्यद्वक्‍ताओं की पहचान करने के लिए यीशु का दिया नियम लागू करके हम यह बात तय कर सकते हैं: “उन के फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे।” (मत्ती ७:१५, १६) तो फिर, शताब्दियों से लेकर और हमारी अपनी शताब्दी में पादरी-वर्ग का फल क्या रहा है? इस अधर्म के पुरुष का भाग क्या होगा, और उस भाग में कौन हिस्सा लेंगे? इस अधर्मी के संबंध में, सचमुच परमेश्‍वर का भय माननेवालों को कौनसी ज़िम्मेदारी है? उत्तरवर्ती लेखों में इन मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाएगा।

समीक्षा के लिए प्रश्‍न:

◻ अधर्म का पुरुष क्या है, और यह कब प्रकट हुआ?

◻ बाइबल इस अधर्मी वर्ग के रचयिता की पहचान किस तरह करती है?

◻ पादरी-वर्ग ने खुद को लोगों के ऊपर कैसे उठाया है?

◻ पादरी-वर्ग ने कौनसी धर्मत्यागी शिक्षाएँ और अभ्यास विकसित किए?

◻ पोपों की मनोवृत्ति पतरस और स्वर्गदूत की मनोवृत्ति से विपरीत कैसे है?

[पेज 16 पर तसवीरें]

प्रेरित पतरस ने, पोपों से विपरीत, किसी मानव को उसे प्रणाम करने नहीं दिया

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