“अर्धम के पुरुष” के ख़िलाफ़ परमेश्वर का न्यायदण्ड
“जो जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है।”—मत्ती ७:१९.
१, २. अधर्म का पुरुष क्या है, और यह किस तरह विकसित हुआ?
जब प्रेरित पौलुस एक “अधर्म के पुरुष” का आगमन पूर्वबतलाने के लिए परमेश्वर द्वारा उत्प्रेरित हुआ, उसने कहा कि यह उसके समय में भी प्रकट होना शुरू हो रहा था। जैसा कि पूर्ववर्ती लेख में व्याख्या की गयी, पौलुस ऐसे व्यक्तियों के एक वर्ग के बारे में बता रहा था जो सच्ची मसीहियत से धर्मत्याग करने में अगुआई करता। सच्चाई से ऐसा मोड़ पहली सदी के आख़री हिस्से में शुरू हुआ, खास तौर से आख़री प्रेरितों की मृत्यु के बाद। उस अधर्मी वर्ग ने ऐसे धर्ममत और अभ्यास प्रवर्तित किए जो परमेश्वर के वचन के विरोध में थे।—२ थिस्सलुनीकियों २:३, ७; प्रेरितों के काम २०:२९, ३०; २ तीमुथियुस ३:१६, १७; ४:३, ४.
२ आख़िरकार, यह अधर्मी वर्ग बढ़ते-बढ़ते ईसाईजगत् का पादरी-वर्ग बन गया। चौथी सदी में रोमी सम्राट् कौंस्टेंटाइन ने धर्मत्यागी चर्चों को सरकार से जोड़कर इसके प्रभाव को पक्का कर दिया। जैसे-जैसे ईसाईजगत् के टुकड़-टुकड़े होकर बहुसंख्य संप्रदाय बन गए, वैसे-वैसे पादरी-वर्ग अपने आप को अयाजकवर्ग के ऊपर और अक्सर सांसारिक शासकों के ऊपर भी उठाते रहे।—२ थिस्सलुनीकियों २:४.
३. अधर्म के पुरुष का भाग्य क्या होनेवाला है?
३ अधर्म के पुरुष का भाग्य क्या होता? पौलुस ने पूर्वबतलाया: “तब वह अधर्मी प्रगट होगा, जिसे प्रभु यीशु . . . मार डालेगा, और अपनी मौजूदगी के प्रकटन से भस्म करेगा।” (२ थिस्सलुनीकियों २:८, न्यू.व.) इसका यह मतलब है कि पादरी-वर्ग का नाश उस समय होगा जब परमेश्वर शैतान की संपूर्ण व्यवस्था का नाश करेगा। परमेश्वर अपने स्वर्गीय राजा, मसीह यीशु, को दंड देनेवाली दिव्य सेनाओं की अगुआई करने के लिए इस्तेमाल करता है। (२ थिस्सलुनीकियों १:६-९; प्रकाशितवाक्य १९:११-२१) यही भाग्य पादरी-वर्ग के लिए इसलिए तैयार है कि उन्होंने परमेश्वर और मसीह को बदनाम करके करोड़ों लोगों को सच्ची उपासना से पथभ्रष्ट किया है।
४. अधर्म के पुरुष का न्याय किस नियम के आधार पर होगा?
४ यीशु ने वह नियम दिया जिस से अधर्म के पुरुष का न्याय होता, यह कहकर: “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्दर फाड़नेवाले भेड़िए हैं। उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या झाड़ियों से अंगूर, वा ऊँटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं? इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है। जो जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है। . . . जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु, कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।”—मत्ती ७:१५-२१; तीतुस १:१६; १ यूहन्ना २:१७ भी देखें।
उत्तम मसीही फल
५. उत्तम मसीही फल का आधार क्या है, और एक मूलभूत आज्ञा क्या है?
५ उत्तम मसीही फल का आधार १ यूहन्ना ५:३ में लिखा गया है, जो कहता है: “और परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें।” और एक मूलभूत आज्ञा यह है: “तुम अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।” (मत्ती २२:३९, न्यू.व.) इस प्रकार, परमेश्वर के सच्चे दासों को अपने पड़ोसियों से प्रेम रखना चाहिए, उनकी जाति या राष्ट्रिकता चाहे जो हो।—मत्ती ५:४३-४८; रोमियों १२:१७-२१.
६. मसीही प्रेम खास तौर से किस से दिखाया जाना चाहिए?
६ परमेश्वर के दासों को खास तौर से अपने आत्मिक भाइयों से प्रेम रखना चाहिए। “यदि कोई कहे, कि ‘मैं परमेश्वर से प्रेम रखता हूँ,’ और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है: क्योंकि जो अपने भाई से, जिसे उस ने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्वर से भी जिसे उस ने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता। और उस से हमें यह आज्ञा मिली है, कि जो कोई परमेश्वर से प्रेम रखता है, वह अपने भाई से भी प्रेम रखे।” (१ यूहन्ना ४:२०, २१) यीशु ने कहा कि वह प्रेम सच्चे मसीहियों की पहचान देने वाला चिह्न होता: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”—यूहन्ना १३:३५; रोमियों १४:१९; गलतियों ६:१०; १ यूहन्ना ३:१०-१२ भी देखें।
७. दुनिया भर में सच्चे मसीही किस तरह एक दूसरे से बँधे हैं?
७ भाइयों जैसा प्रेम वह “गोंद” है जो परमेश्वर के दासों को एकता के बंधन में बाँधता है: “अपने आप को प्रेम से ढाँप लो, क्योंकि यह एकता का पूर्ण बंधन है।” (कुलुस्सियों ३:१४, न्यू.व.) और सच्चे मसीहियों को दुनिया भर में अपने भाइयों के साथ एक होना चाहिए, इसलिए कि परमेश्वर का वचन आदेश देता है: “तुम सब एक ही बात कहो . . . तुम में फूट न हो . . . एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो।” (१ कुरिन्थियों १:१०) इस प्रेम और एकता को विश्व पैमाने पर बनाए रखने के लिए, परमेश्वर के दासों को इस संसार के राजनीतिक मामलों के विषय में तटस्थ होना चाहिए। यीशु ने कहा: “जैसे मैं संसार का कोई भाग नहीं, वैसे ही वे भी संसार के कोई भाग नहीं।”—यूहन्ना १७:१६, न्यू.व.
८. मसीहियों को क्या करना चाहिए, यह बात यीशु ने कैसे प्रदर्शित की?
८ यीशु के मन में जो बात थी, उसका हद उसने तब प्रदर्शित किया जब पतरस ने तलवार चलाकर यीशु को गिरफ़्तार करने आए एक आदमी का कान काट डाला। क्या यीशु ने परमेश्वर के पुत्र की विरोधियों से रक्षा करने के लिए ऐसे बल प्रयोग को बढ़ावा दिया? नहीं, बल्कि उसने पतरस से कहा: “अपनी तलवार काठी में रख ले।” (मत्ती २६:५२) इस प्रकार, सच्चे मसीही राष्ट्रों के युद्धों में या किसी अन्य रीति से मानवी लहू बहाने में हिस्सा नहीं लेते, चाहे ऐसे अस्वीकार के फलस्वरूप उन्हें अपने तटस्थ पक्ष के लिए शहीद ही क्यों न होना पड़े, जैसा कि अनेक शताब्दियों से और हमारे समय में भी हुए हैं। वे जानते हैं कि सिर्फ़ मसीह के अधिकार में परमेश्वर का राज्य ही युद्ध और रक्तपात हमेशा के लिए हटाएगा।—भजन ४६:९; मत्ती ६:९, १०; २ पतरस ३:११-१३.
९. (अ) इतिहास हमें पहले मसीहियों के बारे में क्या बताता है? (ब) इसकी तुलना ईसाईजगत् के धर्मों से कैसे होती है?
९ इतिहास प्रमाण देता है कि पहली सदी के मसीही मानव लहू नहीं बहाते। इंग्लैंड से धर्मविज्ञान का एक भूतपूर्व प्राध्यापक, पीटर डी रोज़ा, लिखता है: “लहू बहाना एक घोर पाप था। इसलिए मसीही पेशेवर अखाड़ियों के साथ भिडंत के विरुद्ध थे। . . . जबकि रोम को सुरक्षित रखने के लिए युद्ध और बल प्रयोग ज़रूरी था, मसीहियों को लगा कि वे हिस्सा नहीं ले सकते थे। . . . मसीही अपने आप को, यीशु की तरह, शान्ति के दूत समझते थे; वे किसी भी सूरत में मृत्यु के कर्ता नहीं बन सकते थे।” दूसरी तरफ़, ईसाईजगत् के फूट पड़े हुए धर्मों ने प्रेम के आदेश का उल्लंघन करके बहुत ज़्यादा खून बहाया है। वे शान्ति के दूत नहीं बल्कि बारंबार मृत्यु के कर्ता बने हैं।
हत्यारिन बड़ी बाबेलोन
१०. बड़ी बाबेलोन क्या है, और उसे इस तरह के नाम से क्यों बुलाया जाता है?
१० शैतान “इस जगत का सरदार,” और “इस संसार का ईश्वर” है। (यूहन्ना १२:३१; २ कुरिन्थियों ४:४) शैतान की दुनिया का एक हिस्सा, ईसाईजगत् और उसके पादरी-वर्ग समेत, झूठे धर्म की जग-व्याप्त व्यवस्था है, जो उसने सदियों से विकसित की है। झूठे धर्म की इस जग-व्याप्त व्यवस्था को बाइबल “बड़ी बाबेलोन” कहती है, जो कि “पृथ्वी की [आत्मिक] वेश्याओं और घृणित वस्तुओं की माता” है। (प्रकाशितवाक्य १७:५) आज के झूठे धर्मों की जड़ें बाबेलोन के प्राचीन शहर में जमी हैं, जो कि झूठे धर्म और ईश-निन्दक धर्ममत तथा अभ्यासों में तल्लीन था। इसीलिए प्राचीन बाबेलोन के प्रतिरूप को बड़ी बाबेलोन कहा जाता है, जो कि झूठे धर्म का विश्व साम्राज्य है।
११. बाइबल बड़ी बाबेलोन के बारे में क्या कहती है, और क्यों?
११ धार्मिक बाबेलोन के संबंध में, परमेश्वर का वचन कहता है: “भविष्यद्वक्ताओं और पवित्र लोगों, और पृथ्वी पर सब घात किए हुओं का लोहू उसी में पाया गया।” (प्रकाशितवाक्य १८:२४) इस संसार के धर्म किस तरह सब घात किए हुओं के लहू के लिए ज़िम्मेवार हैं? इस तरह कि इन सभी धर्मों ने—ईसाईजगत् की गिरजाएँ और ग़ैर-मसीही धर्मों ने समान रूप से—राष्ट्रों के युद्धों का समर्थन तथा उनकी अनदेखी की है, या युद्ध में अग्रसर भी रहे हैं; उन्होंने उनसे असहमत होनेवाले धर्म-भिरु लोगों को उत्पीड़ित किया और जान से मार डाला है।
एक ईश-निन्दक विवरण
१२. ईसाईजगत् का पादरी-वर्ग अन्य धार्मिक अगुओं से ज़्यादा निन्द्य क्यों है?
१२ रक्तपात करने में ईसाईजगत् का पादरी-वर्ग अन्य धार्मिक अगुओं से ज़्यादा निन्द्य है। क्यों? इसलिए कि अपने ऊपर परमेश्वर का नाम लेने के अतिरिक्त, उन्होंने मसीह का नाम भी लिया है। उस के द्वारा उन्होंने यीशु की शिक्षाओं का अनुसरण करने के लिए खुद को बाध्य किया। (यूहन्ना १५:१०-१४) लेकिन उन्होंने उन शिक्षाओं का पालन नहीं किया है, और इस प्रकार उन्होंने परमेश्वर और मसीह, दोनों पर बड़ी निन्दा लायी है। पादरी-वर्ग के हाथों हुए रक्तपात की ज़िम्मेदारी दोनों, प्रत्यक्ष रही है, क्रूस युद्ध, अन्य धार्मिक युद्ध, धर्माधिकरण और उत्पीड़न में, तथा अप्रत्यक्ष भी रही है, उन युद्धों की अनदेखी करने में जिन में गिरजाओं के सदस्यों ने अन्य देशों में अपने संगी मनुष्यों की हत्या की।
१३. ११वीं से १३वीं सदी तक पादरी-वर्ग किस के लिए ज़िम्मेवार था?
१३ उदाहरणार्थ, ११वीं से १३वीं सदी तक, ईसाईजगत् के पादरी-वर्ग ने क्रूस युद्ध प्रवर्तित किए। इनके फलस्वरूप परमेश्वर और मसीह के नाम में भयंकर रक्तपात और लूट-मार हुई। लाखों लोग मारे गए। क्रूस युद्धों में हज़ारों बच्चों की निरर्थक मौत भी सम्मिलित थी, जो सन् १२१२ के बच्चों के क्रूस युद्ध में हिस्सा लेने के लिए फुसलाए गए थे।
१४, १५. १३वीं सदी में कैथोलिक चर्च ने जो प्रवर्तित किया, उस बात पर एक कैथोलिक लेखक टिप्पणी कैसे करता है?
१४ १३वीं सदी में, रोमन कैथोलिक चर्च ने औपचारिक रूप से एक और ईश-निन्दक संत्रास मंज़ूर किया—धर्माधिकरण। यह यूरोप में शुरू होकर दोनों अमरीकाओं तक फैल गया, और छः शताब्दियों तक जारी रहा। पोपतंत्र द्वारा प्रवर्तित और अनुमोदित, यह उन सब को, जो चर्च से असहमत थे, यंत्रणा देने और ख़त्म करने की एक हिंसक कोशिश थी। जबकि इस से पहले चर्च ने ग़ैर-मसीहियों को उत्पीड़ित किया था, इस धर्माधिकरण की पहुँच कहीं अधिक विस्तृत थी।
१५ पीटर डी रोज़ा, जो कहता है कि वह एक “देशभक्त कैथोलिक” है, अपनी हाल की किताब, विकर्स ऑफ क्राइस्ट—द डार्क साइड ऑफ द पेपसी (मसीह के धर्माध्यक्ष—पोपतंत्र का काला पहलू) में कहता है: “चर्च यहूदियों को उत्पीड़ित करने के लिए, धर्माधिकरण के लिए, हज़ारों की संख्या में अपधर्मियों को वध करने के लिए और यूरोप में न्यायिक कार्रवाई में यंत्रणा का पुनःप्रवर्तन करने के लिए ज़िम्मेवार था। . . . पोपों ने सम्राटों को भी नियुक्त और बरख़ास्त किया, और यह माँग की कि वे अपनी प्रजा को यंत्रणा और मौत की धमकी देकर उन्हें ज़बरदस्ती मसीही बनाए। . . . सुसमाचार संदेश को पहुँची हानि भयंकर थी।” मारे गए लोगों में से कुछों का बस यही “अपराध” था कि उनके पास एक बाइबल था।
१६, १७. धर्माधिकरण के बारे में कौनसी टिप्पणी की गयी है?
१६ प्रारंभिक १३वीं सदी के पोप इन्नोसेंट III के बारे में, डी रोज़ा कहता है: “यह माना गया है कि [रोमी] सम्राट् डायोक्लीशियन [तीसरी सदी] के अधीन के आख़री और सबसे हिंस्र उत्पीड़न में, दुनिया भर में लगभग दो हज़ार मसीही मर गए। पोप इन्नोसेंट के [फ्रांस में “अपधर्मियों” के ख़िलाफ़] क्रूस युद्ध की पहली घटना में उस संख्या से दस गुना ज़्यादा लोग वध हुए। . . . यह जानकर धक्का पहँचता है कि, एक वार में, किसी पोप ने डायोक्लीशियन से कहीं ज़्यादा मसीहियों को मार डाला। . . . [इन्नोसेंट] को यीशु का नाम इस्तेमाल करने में कोई खटका नहीं लगा, वह सब कुछ करने के लिए जिसकी यीशु आपत्ति करता था।”
१७ डी रोज़ा ग़ौर करता है कि “पोप के नाम में [धर्मपरीक्षक] मानवजाति के इतिहास में मानव शालीनता पर सबसे हिंस्र और दीर्घीकृत आक्रमण के लिए ज़िम्मेवार थे।” स्पेन में टोर्केमाडा नामक डोमिनिकन् धर्मपरीक्षक के बारे में वह कहता है: “१४८३ में नियुक्त, उसने पंद्रह साल तक अत्याचार से शासन किया। उसके द्वारा उत्पीड़ित किए गए व्यक्तियों की संख्या १,१४,००० थी जिन में से १०,२२० लोग जला दिए गए।”
१८. धर्माधिकरण की विशेषताएँ बताते हुए एक लेखक उसका वर्णन किस तरह करता है, और उसका छः से ज़्यादा सदियों तक जारी रहने का वह क्या कारण बताता है?
१८ यह लेखक आख़िर में कहता है: “धर्माधिकरण का विवरण किसी भी संगठन के लिए लज्जाजनक होगी; कैथोलिक चर्च के लिए, यह विध्वंसकारी है। . . . इतिहास दिखाता है कि, बिना किसी अन्तराल के, छः से कहीं ज़्यादा सदियों तक पोपतंत्र मूल न्याय का जानी दुश्मन था। तेरहवीं सदी से लेकर अस्सी पोपों की क्रमावली में, एक ने भी धर्माधिकरण के धर्मविज्ञान और यन्त्र की निन्दा नहीं की। उल्टा, एक के बाद एक, प्रत्येक ने इस घातक यंत्र के कार्यसंचालन से अपनी खुद की क्रूर शैली जोड़ दी। रहस्य यह है: कि पीढ़ी पीढ़ी तक पोप इस व्यावहारिक अपधर्म को कैसे जारी रख सके? वे हर मोड़ पर यीशु के सुसमाचार का इन्कार किस तरह कर सकते थे?” वही जवाब देता है: “पोपों ने किसी ‘निर्भ्रान्त’ पूर्वाधिकारी का खण्डन करने के बजाय, सुसमाचार का खण्डन करना पसंद किया, नहीं तो यह पोपतंत्र को ही गिरा देता।”
१९. अधिकांश पादरी-वर्ग ने और कौनसी अधर्मी गतिविधि की अनदेखी की?
१९ पादरी-वर्ग ने गुलामी के हिंसक संस्थापन में जो भूमिका अदा की, वह भी अधर्मी थी। ईसाईजगत् के देश कई हज़ार आफ्रीकी लोगों का अपहरण करके, उन्हें अपने देशों से बहुत दूर ले गए, और शताब्दियों तक गुलामों के रूप में, उनसे शारीरिक तथा मानसिक रूप से अमानुषिक व्यवहार किया। पादरी-वर्ग के अपेक्षाकृत कम सदस्यों ने सक्रियता से विरोध किया। कुछों ने यह दावा भी किया कि यह परमेश्वर की इच्छा थी।—मत्ती ७:१२ देखें।
२०वीं सदी में हत्यारापन
२०. इस सदी में अधर्म के पुरुष का हत्यारापन एक शिखर पर कैसे पहुँचा है?
२० अधर्म के पुरुष का हत्यारापन हमारी सदी में शिखर पर पहुँचा। पादरी-वर्ग ने ऐसे युद्धों का समर्थन किया है जो सारे इतिहास में सबसे भयंकर युद्ध रहे हैं और जिन में करोड़ों जानें गँवा दी गयी हैं। उन्होंने दो विश्व युद्धों में दोनों पक्षों का समर्थन किया, जिन में एक ही धर्म के लोगों ने, “भाइयों” ने एक दूसरे की हत्या की। उदाहरणार्थ, दूसरे विश्व युद्ध में फ्रांसीसी और अमरीकी कैथोलिकों ने जर्मन और इतालियन कैथोलिकों को जान से मार डाला; बर्तानवी और अमरीकी प्रोटेस्टेन्टों ने जर्मन प्रोटेस्टेन्टों की हत्या की। कभी-कभी, उन्होंने दूसरों की हत्या की, जो न केवल उनके ही धर्म के थे, बल्कि जिनकी राष्ट्रिकता भी एक थी। दो विश्व युद्ध ईसाईजगत् के मध्य में विस्फोटित हुए और अगर पादरी-वर्ग ने प्रेम रखने के नियम का पालन किया होता, और अपने अनुयायियों को वैसा ही करने के लिए सिखाया होता, तो उनका घटित होना संभव ही न हुआ होता।
२१. धर्मनिरपेक्ष सूत्र युद्ध में पादरी-वर्ग के उलझाव के बारे में क्या कहते हैं?
२१ द न्यू यॉर्क टाइमस् ने इस बात की पुष्टि की: “अतीत में स्थानीय कैथोलिक धर्माधिकारी-वर्ग प्रायः हमेशा ही अपने देशों के युद्धों का समर्थन करते थे, सैनिकों को आशिष देते और विजय के लिए प्रार्थना करते थे, जबकि दूसरे पक्ष में बिशपों का एक और वर्ग बिल्कुल ही उलटे नतीजे के लिए सरेआम प्रार्थना करते थे। . . . जैसे-जैसे हथियार और भी ज़्यादा पाशविक बनते जाते हैं, . . . मसीही मनोवृत्ति और युद्ध के आचरण के बीच असंगति . . . अनेकों को वर्धमान रूप से स्पष्ट लगती है।” और यू.एस. न्यूस ॲन्ड वर्ल्ड रिपोर्ट ने ग़ौर किया: “तथाकथित मसीही राष्ट्रों ने जिस वारंवारता से हिंसा का प्रयोग किया है, उस से दुनिया में मसीहियत की प्रतिष्ठा को गंभीर रूप से हानि पहुँची है।”
२२. हमारे समय में पादरी-वर्ग और किस के लिए ज़िम्मेवार है?
२२ और, हालाँकि आज कोई औपचारिक धर्माधिकरण नहीं, पादरी-वर्ग ने “भविष्यद्वक्ताओं” और “पवित्र लोगों” को, जो उनसे असहमत हैं, उत्पीड़ित करने के लिए सरकार की शक्ति का प्रयोग किया है। उन्होंने राजनीतिक नेताओं पर दबाव डाला है कि वे ‘क़ानून की आड़ में अनिष्ट का षड्यन्त्र रचाए।’ इस तरह, वे हमारी सदी में धर्म-भिरु लोगों पर प्रतिबंध, उनके क़ैद, पीटाई, यंत्रणा, और मृत्यु भी का कारण बने हैं या उन्होंने उसका समर्थन किया है।—प्रकाशितवाक्य १७:६; भजन ९४:२०, द न्यू इंग्लिश बाइबल.
हिसाब माँगा जाएगा
२३. परमेश्वर अधर्म के पुरुष से हिसाब क्यों माँगेगा?
२३ सचमुच, झूठे धर्म में भविष्यद्वक्ताओं, और पवित्र लोगों, और पृथ्वी पर सब घात किए हुओं का लहू पाया गया है। (प्रकाशितवाक्य १८:२४) चूँकि ईसाईजगत् में सबसे बदतर रक्तपात हुआ है, पादरी-वर्ग का दोष सबसे बड़ा है। बाइबल उन्हें कितने उपयुक्त ढंग से “अधर्म का पुरुष” नाम रखती है! लेकिन परमेश्वर का वचन यह भी कहता है: “धोखा न खाओ, परमेश्वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।” (गलतियों ६:७) तो परमेश्वर अधर्मी पादरी-वर्ग से हिसाब माँगेगा।
२४. कौनसी दुनिया-हिला देनेवाली घटनाएँ जल्द ही घटित होने को हैं?
२४ यीशु ने कहा: “हे कुकर्म करनेवालों, मेरे पास से चले जाओ।” (मत्ती ७:२३) और उसने घोषित किया: “जो जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है।” (मत्ती ७:१९) अधर्म के पुरुष के साथ-साथ, संपूर्ण झूठे धर्म के ज्वलित अंत का समय जल्द ही निकट आ रहा है, जब राजनीतिक तत्त्व, जिनके साथ उन्होंने वेश्यावृत्ति की है, उन पर ही वार करेंगे: “वे और पशु उस वेश्या से बैर रखेंगे, और उसे लाचार और नंगी कर देंगे; और उसका माँस खा जाएँगे, और उसे आग में जला देंगे।” (प्रकाशितवाक्य १७:१६) चूँकि ऐसी दुनिया-हिला देनेवाली घटनाएँ जल्द ही घटित होंगी, परमेश्वर के दासों को ये बातें दूसरों को बतानी चाहिए। यह वे किस तरह करते आए हैं, इसकी जाँच अगले लेख में की जाएगी।
समीक्षा के लिए प्रश्न
◻ अधर्म का पुरुष क्या है, और यह किस तरह विकसित हुआ?
◻ सच्चे मसीहियों को कौनसा उत्तम फल उत्पन्न करना चाहिए?
◻ बड़ी बाबेलोन कौन है, और वह किस हद तक हत्यारिन है?
◻ अधर्म के पुरुष ने कौनसा ईश-निन्दक इतिहास कायम किया है?
◻ परमेश्वर अधर्म के पुरुष से किस तरह हिसाब माँगेगा?
[पेज 20 पर तसवीरें]
क्रूस युद्ध के फलस्वरूप परमेश्वर और मसीह के नाम में भयंकर रक्तपात हुआ
[चित्र का श्रेय]
By courtesy of The British Library
[पेज 21 पर तसवीरें]
“स्थानीय कैथोलिक धर्माधिकारी-वर्ग प्राय: हमेशा ही अपने देशों के युद्धों का समर्थन करते थे”
[चित्र का श्रेय]
U.S. Army