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  • पैसा बनाने में हर्ज क्या है?

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  • पैसा बनाने में हर्ज क्या है?
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सजग होइए!–1997
g97 10/8 पेज 12-14

युवा लोग पूछते हैं . . .

पैसा बनाने में हर्ज क्या है?

“सचमुच पैसा दुनिया में सबसे बड़ी चीज़ है।” ब्रिटिश नाटककार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने यह दावा किया। क्या आप उससे सहमत हैं? शायद आपकी राय १७-वर्षीय टान्या से ज़्यादा मिलती-जुलती हो, जो कहती है: “मैं अमीर नहीं बनना चाहती, बस इतना हो कि आराम से गुज़ारा हो जाए।” इसी तरह युवा एवयन पैसे को दुनिया में सबसे बड़ी चीज़ नहीं मानता, लेकिन वह मानता है कि यह काफ़ी कुछ कर सकता है। उसका कहना है: “पैसा मेरी ज़रूरतों के लिए ज़रूरी है, जैसे कपड़ों के लिए और आने-जाने के लिए।”

क्या आप जानते हैं कि बाइबल भी कुछ ऐसा ही कहती है? सभोपदेशक ७:१२ (NHT) में, यह कहती है कि ‘रुपया-पैसा संरक्षण प्रदान करता है।’ ग़रीबी को “इनसान की ख़ुशी का बड़ा दुश्‍मन” कहा गया है। और पर्याप्त पैसा होने से आप एक हद तक उन समस्याओं से बच सकते हैं जिन्हें ग़रीबी अकसर साथ लाती है। पैसा एकाएक आयी विपत्तियों का झटका भी कम कर सकता है। “बाइबल कहती है कि ‘समय और अप्रत्याशित घटना हम सब पर आ पड़ती है,’” युवा फ़िलिस कहती है। “कौन जाने कब हम पर संकट का पहाड़ टूट जाए, सो पैसा बचाकर रखना ज़रूरी है।” (सभोपदेशक ९:११, NW) और जबकि अभी आपको पैसा ज़रूरी लग सकता है, आपके भविष्य में यह शायद और भी ज़रूरी हो जाए।

“भौतिकवाद की उठती-गिरती लहर”

जबकि पर्याप्त पैसा होने के बारे में कुछ चिंता सामान्य और उचित है, लेकिन कुछ युवा पैसे के लिए मानो पागल हो गये हैं। जब १,६०,००० से ज़्यादा युवाओं से पूछा गया, “ज़िंदगी में आपकी सबसे बड़ी तमन्‍ना क्या है?” तो २२ प्रतिशत ने कहा, “अमीर होना।”

इसमें शक नहीं कि पैसे की इस ललक को बढ़ाती है वह चीज़, जिसे न्यूज़वीक पत्रिका ने “भौतिकवाद की उठती-गिरती लहर” कहा, जो दुनिया को बहा ले गयी है। “मैं बहुत भौतिकवादी व्यक्‍ति हूँ और मेरे लिए नाम का बहुत महत्त्व है,” १८-वर्षीय मार्टिन कहता है। “मैं पूरी तरह मानता हूँ कि जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा। इसलिए, मैं अपनी पसंद की चीज़ों पर ख़ूब पैसा ख़र्च करता हूँ।” मार्टिन अकेला युवा नहीं है जो ‘ख़ूब पैसा ख़र्च करता है।’ यू.एस.न्यूज़ और वर्ल्ड रिपोर्ट बताती है: “पिछले साल, [अमरीका में] १२-से-१९-साल की उम्रवालों ने ख़रीदारी में अब तक सबसे ज़्यादा पैसा ख़र्च किया, कुल मिलाकर १.०९ खरब डॉलर की चीज़ें ख़रीदीं, जो १९९० से ३८ प्रतिशत की वृद्धि है।”

लेकिन, युवाओं को इतने सारे नये कपड़ों, कैसॆटों और कंप्यूटर उपकरणों के लिए पैसा मिलता कहाँ से है? यू.एस.न्यूज़ एण्ड वर्ल्ड रिपोर्ट के अनुसार: “१६-से-१९-साल की उम्रवालों में से क़रीब आधों के पास अंशकालिक नौकरियाँ हैं।” यदि संतुलन रखा जाए, तो स्कूल-उपरांत नौकरी के अपने लाभ हो सकते हैं, जैसे कि यह युवा को ज़िम्मेदार बनना सिखाती है। लेकिन, साफ़ है कि इस संबंध में कुछ युवा बहुत दूर चले जाते हैं। न्यूज़वीक पत्रिका कहती है: “मनोवैज्ञानिक और शिक्षक [कमाऊ] छात्रों पर आये दबाव को देखते हैं। उनके पास गृहकार्य के लिए समय नहीं होता और जब शिक्षक हमेशा यही देखते हैं कि पस्त छात्र ढंग से आँखें भी खुली नहीं रख पा रहे, तब बदले में प्रायः वे भी स्तर गिरा देते हैं।”

फिर भी, शायद ही कोई कमाऊ युवा अपनी आमदनी का ज़रिया छोड़ने को तैयार हो। “स्कूल ज़रूरी है,” युवा वनॆसा कहती है, “लेकिन पैसा भी ज़रूरी है। गृहकार्य से पैसा नहीं मिलता।” पैसा बनाना आपके लिए कितना ज़रूरी है? क्या ढेर सारा पैसा बनाना जीवन में आपका मुख्य लक्ष्य है?

“धनी होना चाहते हैं”

बाइबल में इन्हीं प्रश्‍नों पर बात की गयी है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं। क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्‍वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।”—१ तीमुथियुस ६:९, १०.

पौलुस अच्छी तरह जानता था कि वह क्या कह रहा है। मसीही बनने से पहले, वह एक धार्मिक अगुवा था जो “फरीसी” कहलाते थे, जिन्हें बाइबल “धन के लोभी” कहती है। (लूका १६:१४, NHT) फिर भी, प्रेरित ने अपने आपमें पैसा बनाने की भर्त्सना नहीं की। इसके बजाय, उसने उन्हें चेतावनी दी जो “धनी होना चाहते हैं,” या जैसे एक और अनुवाद कहता है, जिन्होंने “धनी होने की ठान ली है।” (फ़िलिप्स) लेकिन ऐसा करने में इतना बुरा क्या है?

जैसा पौलुस ने समझाया, ऐसे लोग ‘परीक्षा और फंदे में फंसते हैं।’ नीतिवचन २८:२० भी यही बात स्पष्ट करता है, वहाँ लिखा है: “जो धनी होने में उतावली करता है, वह निर्दोष नहीं ठहरता।” यह सोचकर कि उनके पास काफ़ी नहीं है, कुछ युवाओं ने चोरी का सहारा लिया है।

यह सच है कि अधिकतर युवा चोरी करने के बारे में नहीं सोचेंगे। लेकिन कुछ युवा उतने ही जोख़िम-भरे काम कर सकते हैं। क्रिस्टिऐनिटी टुडे रिपोर्ट करती है: “कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बहुत जूआ खेलना किशोरों के बीच सबसे तेज़ी से बढ़ती लत है।” अमरीका के एक क्षेत्र में, “लगभग ९० प्रतिशत किशोर १०वीं कक्षा तक आते-आते ग़ैरकानूनी तरह से लॉटरी टिकट ख़रीद चुके थे।” कुछ युवा तो और भी गंभीर क़दम उठाते हैं। “ढंग का काम मिलना मुश्‍किल है,” १६-वर्षीय मैथ्यू कहता है। “सो मैं अपना अधिकतर पैसा चीज़ों की ख़रीद-फ़रोख़्त से बनाता हूँ। . . . कभी-कभार मैं [ड्रग्स] बेचता [था]।”

‘विनाश के समुद्र में डुबा देना’

यह सच है कि पैसा व्यक्‍ति को स्वतंत्रता का भाव दे सकता है। लेकिन जैसे पौलुस समझाता है, पैसे का पीछा करना आगे चलकर व्यक्‍ति को असल में ‘बहुतेरी व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं’ का दास बना सकता है “जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं, और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं।” जी हाँ, एक बार जब पैसे का प्रेम आपके अंदर अपने दाँत गाड़ देता है, तब लालच, घातक जलन और दूसरी हानिकर लालसाएँ हावी हो सकती हैं। (कुलुस्सियों ३:५ से तुलना कीजिए।) टीन पत्रिका में एक लेख ने कहा कि कुछ किशोर दूसरे युवाओं की गाड़ियों और कपड़ों को देख इतने ईर्ष्यालु हो सकते हैं “कि वे आपा खो बैठते हैं।” ऐसी ईर्ष्या कभी-कभी “बढ़कर व्याकुलता में बदल जाती है,” लेख आगे कहता है, “और किशोर इसे छोड़ कि उसके पास क्या नहीं है, दूसरी कोई बात नहीं सोच पाता।”

तो फिर, इस पर ध्यान दीजिए कि धन की इच्छा व्यक्‍ति को न केवल ‘परीक्षा में फंसा’ सकती है परंतु उसे ‘बिगाड़ सकती और विनाश के समुद्र में डुबा’ भी सकती है। बाइबल टीकाकार ऐलबर्ट बार्न्ज़ कहता है: “एक ऐसे तहस-नहस की छवि उभरती है जहाँ जहाज़ और उसमें जो कुछ है सब-का-सब एकसाथ डूब जाता है। पूरी तरह बरबादी हो जाती है। सुख, सद्‌गुण, प्रतिष्ठा और प्राण का पूर्ण विनाश होता है।”—१ तीमुथियुस १:१९ से तुलना कीजिए।

तो फिर, उपयुक्‍त रीति से पौलुस कहता है कि सर्वनाशी “रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है।” इसके फलस्वरूप, कितनों ने “विश्‍वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।” एक युवा का उदाहरण लीजिए जिसे हम रोरी नाम देंगे। बारह की उम्र में उसने जूआ खेलना शुरू कर दिया। “यह बिना कुछ किये पैसा पाने का तरीक़ा था,” वह याद करता है। जल्द ही, उस पर सैकड़ों डॉलर का कर्ज़ चढ़ गया और वह दोस्तों, घरवालों और स्कूल-के-काम से कतराने लगा। “मैंने छोड़ने की कोशिश की,” वह स्वीकार करता है, लेकिन वह बार-बार असफल रहा। वह ‘अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बनाता’ रहा, जब तक कि १९ की उम्र में उसने मदद नहीं ली। अतः लेखक डगलस कॆनॆडी बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कह रहा जब वह अपनी पुस्तक धन का पीछा करना (अंग्रेज़ी) में पैसे के पीछे भागने को “सदमा पहुँचानेवाला अनुभव” कहता है।

संतुलन बनाना

अतः सुलैमान की सलाह अब भी उतनी ही उपयुक्‍त है जितनी सदियों पहले थी: “धनी होने के लिये परिश्रम न करना; अपनी समझ का भरोसा छोड़ना। क्या तू अपनी दृष्टि उस वस्तु पर लगाएगा, जो है ही नहीं? वह उकाब पक्षी की नाईं पंख लगाकर, निःसन्देह आकाश की ओर उड़ जाता है।” (नीतिवचन २३:४, ५) भौतिक धन अस्थायी है, सो धन का पीछा करने को अपने जीवन में मुख्य लक्ष्य बनाना मूर्खता है। “मैं एकदम भौतिकवादी लक्ष्यों में उलझना नहीं चाहती,” मॉरीन नाम की एक मसीही युवा कहती है। “मैं जानती हूँ,” उसका कहना है, “कि यदि मैं पैसा बनाने में लग जाऊँ तो मैं अपनी आध्यात्मिकता खो बैठूँगी।”

यह सच है कि पैसा ज़रूरी चीज़ है। और अच्छी आमदनी होने से आप अपनी ज़रूरतें पूरी कर सकेंगे—और शायद कभी-कभी दूसरों को भी आर्थिक मदद दे सकेंगे। (इफिसियों ४:२८) मेहनत करना सीखिए ताकि ईमानदारी से पैसा कमा सकें। साथ ही, अपने पैसे को बुद्धिमानी से बचाना, बजट करना और ख़र्च करना सीखिए। लेकिन पैसे को कभी जीवन में सबसे बड़ी चीज़ मत बनाइए। नीतिवचन ३०:८ के लेखक द्वारा व्यक्‍त संतुलित दृष्टिकोण रखने की कोशिश कीजिए, जिसने प्रार्थना की: “मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना।” आध्यात्मिक हितों को आगे रखने के द्वारा, आप सबसे अच्छे क़िस्म का धन प्राप्त कर सकेंगे। जैसे नीतिवचन १०:२२ (NW) कहता है, “यहोवा की आशीष—यही है जो धनी बनाती है, और वह इसके साथ दुःख नहीं देता।”

[पेज 13 पर तसवीर]

अनेक युवा इसलिए पैसा चाहते हैं कि अपने समकक्षों की बराबरी कर सकें

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