विश्वास और अच्छे विवेक को पकड़े रहो
तीमुथियुस को लिखी पहिली पत्री से विशिष्टताएँ
लगभग ५६ सा.यु. में प्रेरित पौलुस ने इफिसुस की कलीसिया के प्राचीनों को यह चेतावनी दी कि तुम्हारे बीच में से “फाड़नेवाले भेड़िए” उठेंगे “जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी मेढ़ी बातें कहेंगे।” (प्रेरितों के काम २०:२९, ३०) कुछ ही वर्षों में धर्मत्यागी शिक्षा इतनी गंभीर हो गयी थी कि पौलुस ने तीमुथियुस से कलीसिया की शुद्धता को बनाए रखने और संगी विश्वासियों की सहायता के लिए कलीसिया में आत्मिक युद्ध लडने के लिए उकसाया। यह एक मुख्य कारण था जिस लिए पौलुस ने मकिदुनिया से लगभग ६१-६४ सा.यु. में अपनी पहिली पत्री तीमुथियुस को लिखी।
तीमुथियुस को एक प्राचीन के कर्तव्य, परमेश्वर-निर्धारित स्त्रियों का स्थान, प्राचीनों और सहायक सेवकों की योग्यताएँ और अन्य विषयों पर आदेश दिए गए थे। इस प्रकार के आदेश आज भी लाभदायक है।
विश्वास के लिए उपदेश
पौलुस ने शुरूआत विश्वास और अच्छे विवेक को पकड़े रहने की सलाह से किया। (१:१-२०) उसने तीमुथियुस को प्रोतसाहित किया कि वह इफिसुस में रहे और “कुछ को आज्ञा दे कि भिन्न प्रकार की शिक्षा न दें।” पौलुस अपनी सेवकाई की नियुक्ति के लिए आभारी था और यह स्वीकार करता था कि उसने यीशु के चेलों को अज्ञानता और विश्वास की कमी के कारण सताया था। प्रेरित ने तीमुथियुस को आत्मिक युद्ध लड़ते रहने और “विश्वास और अच्छे विवेक को पकड़े रहे” ताकि वह उनके समान न बने जिनका “विश्वास रूपी जहाज डूब गया।”
उपासना पर सलाह
उसके बाद पौलुस ने “अन्यजातियों के लिए विश्वास और सत्य का उपदेशक” होने के नाते सलाह दी। (२:१-१५) ऊँचे पदवालों के लिए प्रार्थनाएँ करनी थी जिससे की मसीही शाँति से रह सके। यह परमेश्वर की इच्छा है कि सब मनुष्यों का उद्धार हो और एक महत्वपूर्ण शिक्षा यह है कि मसीह ने “अपने आपको सबके छुटकारे के दाम में दे दिया।” पौलुस ने बताया कि स्त्रियाँ सुहावने वस्त्रों से अपने आपको संवारें और पुरूष पर आज्ञा न चलाएँ।
कलीसया को सुव्यवस्थित होना चाहिए। (३:१-१६) इसलिए पौलुस ने अध्यक्षों और सहायक सेवकों की योग्यताएँ घोषित की। जो प्रेरित ने लिखा था उससे तीमुथियुस को पता चलता कि उसने कलीसिया में “सत्य का खंभा और नेंव” जैसा बरताव करना चाहिए।
झूठी शिक्षा से बचने के लिए पौलुस ने तीमुथियुस को व्यक्तिगत सलाह दी। (४:१-१६) आनेवाले समयों में कुछ लोग विश्वास से बहक जाएंगे। परन्तु, अपनी और अपने उपदेश की चौकसी रखने से, तीमुथियुस ‘अपनी और अपने सुननेवालों के लिए भी उद्धार का कारण होगा।’
तीमुथियुस को जवानों और बूढ़ों के प्रति व्यवहार पर भी सलाह मिली। (५:१-२५) उदाहरण के लिए, उन बूढ़ी विधवाओं के लिए उचित प्रबन्ध करना था जिनको अच्छी मसीही प्रतिष्ठा थी। गपशप करने के बजाय जवान विधवाओं को ब्याह करके बच्चे जनना चाहिए। जो प्राचीन अच्छा प्रबन्ध करते थे उन्हें दो गुने आदर के योग्य समझा जाना था।
आत्मनिर्भरता सहित परमेश्वरीय भक्ति
पौलुस ने अपनी पत्री की समाप्ति परमेश्वरीय भक्ति पर सलाह के साथ किया। (६:१-२१) “संतोषसहित परमेश्वरीय भक्ति” बड़ी कमाई है परन्तु धनी बनने की लालसा विनाश की ओर ले जाती है। पौलुस ने तीमुथियुस से आग्रह किया कि वह “विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़े और अनन्त जीवन को दृढ़ता से पकड़ ले।” उस असली जीवन को वश में करने के लिए धनवानों को “चंचल धन पर आशा न रखकर, परन्तु परमेश्वर पर” रखनी थी।
[पेज 27 पर बक्स/तसवीरें]
बच्चे जनने के द्वारा उद्धार: पौलुस अनन्त जीवन के उद्धार के विषय में नहीं बल्कि एक परमेश्वरीय स्त्री के सही कर्तव्य की चर्चा कर रहा था जब उसने लिखा: “वह बच्चे जनने के द्वारा उद्धार पाएगी, यदि वह संयम सहित विश्वास, प्रेम और पवित्रता में स्थित रहे।” (१ तीमुथियुस २:११-१५) बच्चे जनने, उनकी देख-रेख करने और घरबार संभालने से एक स्त्री आलसी बकबक और औरों के काम में हाथ डालने से बची रहेगी। (१ तीमुथियुस ५:११-१५) उसके घरेलू कामकाज उसकी परमेश्वरीय सेवा को पूरा करेंगे। निश्चय, सभी मसीहियों को अपने आचरण की रक्षा करनी चाहिए और अपने समय का बुद्धिमत्ता से उपयोग करना चाहिए।—इफिसियों ५:१५, १६.