परमेश्वर के लोगों में जनन
“यहोवा तुम को हज़ारगुणा और भी बढ़ाए।”—व्यवस्थाविवरण १:११.
१. बाइबल जनन के बारे में किस तरह बोलती है?
“देखो! लड़के यहोवा के दिए हुए भाग हैं, गर्भ का फल उसकी ओर से प्रतिफल है। जैसे वीर के हाथ में तीर, वैसे ही जवानी के लड़के होते हैं। क्या ही धन्य है वह पुरुष जिस ने अपने तर्कश को उन से भर लिया हो!” इस प्रकार हम भजन १२७:३-५ में पढ़ते हैं। जी हाँ, जनन एक अद्भुत विशेषाधिकार है जिसे सृजनहार यहोवा ने पहली मानवी दम्पत्ति और उसके वंशजों को दिया।—उत्पत्ति १:२८.
इस्राएल में जनन
२. क्यों इब्राहीम, इसहाक, और याकूब के वंशजों में बड़े परिवार वांछनीय थे?
२ इसहाक और याकूब के ज़रिए इब्राहीम के वंशजों में बड़े परिवार बहुत ही वांछनीय समझे जाते थे। द्वितीयक पत्नियों और रखैलियों से जन्मे बच्चें भी जाइज़ माने जाते थे। यही स्थिति याकूब के कुछ बेटों की थी, जो इस्राएल के १२ गोत्रों के आदि संस्थापक बन गए। (उत्पत्ति ३०:३-१२; ४९:१६-२१; तुलना २ इतिहास ११:२१ से करें) जबकि विवाह के लिए परमेश्वर का मौलिक उद्देश्य एकविवाह-प्रथा था, उसने इब्राहीम के वंशजों में बहुपत्नी-प्रथा और रखैलपन बरदाश्त किया, और इस से जनसंख्या में और शाघ्र वृद्धि हुई। इस्राएलियों को “भूमि की धूल के किनकों के समान बहुत” होना था। (२ इतिहास १:९; उत्पत्ति १३:१४-१६) उस जाति में प्रतिज्ञात “वंश” आता जिसके कारण “पृथ्वी की सारी जातियाँ” अपने को धन्य घोषित कर सकती थीं।—उत्पत्ति २२:१७, १८; २८:१४; व्यवस्थाविवरण १:१०, ११.
३. सुलैमान के शासनकाल के दौरान इस्राएल में स्थिति क्या थी?
३ प्रत्यक्षतः, इस्राएल में जनन को यहोवा के आशीर्वाद का चिह्न माना जाता था। (भजन १२८:३, ४) परंतु, यह नोट किया जाना चाहिए कि, भजन १२७ से उद्धृत किए गए, इस लेख के आरंभिक शब्द, राजा सुलैमान ने लिखे थे, और इस राजा का प्रायः सारा शासनकाल इस्राएल के लिए एक विशेष रूप से अनुकूल समय था। उस कालावधि के बारे में बाइबल कहती है: “यहूदा और इस्राएल के लोग बहुत थे, वे समुद्र के तीर पर की बालू के किनकों के समान बहुत थे, और खाते-पीते और आनन्द करते रहे। और [उत्तर में] दान से [दक्षिण में] बेर्शेबा तक के सब यहूदी और इस्राएली अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे।”—१ राजा ४:२०, २५.
इस्राएल में बच्चों के लिए कठिन समय
४, ५. (अ) इस्राएल में जनन हमेशा आनन्द का एक कारण क्यों न था? (ब) यरूशलेम में कम से कम दो प्रसंगों पर कौनसे मर्मभेदी दृश्य देखने को मिले?
४ लेकिन इस्राएल के इतिहास में दूसरे कालावधि थे जब जनन आनन्दित होने के बजाय कुछ और ही था। यरूशलेम के पहले विनाश के समय, भविष्यद्वक्ता यिर्मयाह ने लिखा: “मेरी आँखें आँसू बहाते रह गई हैं। . . . क्योंकि बच्चे वरन दूधपिउवे बच्चे भी नगर के चौकों में मूर्च्छित होते हैं। . . . क्या स्त्रियाँ अपना फल अर्थात् अपनी गोद के बच्चों को खा डालें?” “दयालु स्त्रियों ने अपने ही हाथों से अपने बच्चों को पकाया है।”—विलापगीत २:११, २०; ४:१०.
५ प्रकट रूप से, समान मर्मभेदी दृश्य लगभग सात शताब्दियों बाद घटीं। यहूदी इतिहासकार योसीफस बताता है कि सामान्य युग ७० में यरूशलेम के घेरे के दौरान, बच्चों ने अपने पिताओं के मुँह से खाना छीना, और माँओं ने अपने शिशुओं के मुँह से खाना ले लिया। वह बतलाता है कि कैसे एक यहूदी औरत ने अपने दुधमुहे बच्चे को मार डाला, और शरीर को भुनकर उसका कुछ भाग खा डाला। सामान्य युग पूर्व ६०७ और सा.यु. ७० में यरूशलेम के ख़िलाफ़ यहोवा के न्यायदंडों के निष्पादन तक ले जानेवाले वर्षों में, यहूदी दुनिया में बच्चों को जन्म देना ज़िम्मेवार जनन बिल्कुल नहीं कहा जा सकता था।
प्रारंभिक मसीहियों में जनन
६, ७. (अ) यीशु ने मसीहियों के लिए कौनसे अभ्यास समाप्त कर डाले? (ब) आत्मिक इस्राएल को किस ज़रिए से बढ़ना था, और कौनसी बात इसे सिद्ध करती है?
६ प्रारंभिक मसीहियों में जनन का कैसा विचार किया जाता था? प्रथम यह नोट किया जाना चाहिए कि यीशु ने अपने चेलों में से बहुपत्नी-प्रथा और रखैलपन समाप्त कर दिया। उसने यहोवा का मौलिक आदर्श, अर्थात् एकविवाह-प्रथा, या एक आदमी के एक औरत से शादी, पुनःस्थापित की। (मत्ती १९:४-९) जबकि शारीरिक इस्राएल जनन के ज़रिए घना आबाद हुआ, आत्मिक इस्राएल को चेले बनाने के कार्य के ज़रिए बढ़ना था।—मत्ती २८:१९, २०; प्रेरितों के काम १:८.
७ अगर ईसाईयत का प्रसार मुख्यतः जनन से घटित होना था, तो यीशु ने अपने चेलों को “स्वर्ग के राज्य” के लिए कुँवारेपन को “ग्रहण” करने के लिए प्रोत्साहित न किया होता। (मत्ती १९:१०-१२) प्रेरित पौलुस ने यह न लिखा होता: “सो जो अपना कौमार्य विवाह में अर्पण करता है, वह अच्छा करता है, पर जो विवाह नहीं करता, वह बेहतर करता है।”—१ कुरिन्थियों ७:३८, न्यू.व.
८. क्या दिखाता है कि अनेक प्रारंभिक मसीही शादी-शुदा होकर बाल-बच्चोंवाले थे?
८ परंतु, राज्य हितों का समर्थन करने के लिए ब्रह्मचार्य प्रोत्साहित करते समय, यीशु और पौलुस दोनों ने यह ज़बरदस्ती नहीं करवाया। दोनों ने अनुमान कर लिया कि कुछ मसीही शादी करते। निस्संदेह, स्वाभाविक बात थी कि इन के कुछों को बच्चें होते। मसीही यूनानी शास्त्रों में अनेक लेखांश हैं जिस में प्रारंभिक मसीहियों को बच्चों की प्रशिक्षा के विषय सीधी सलाह दी गयी है। (इफिसियों ६:१-४; कुलुस्सियों ३:२०, २१) अगर प्राचीन या सहायक सेवक शादी-शुदा थे, तो उन्हें अनुकरणीय माता-पिता होना था।—१ तीमुथियुस ३:४, १२.
९. प्रेरित पौलुस के मुताबिक़, कुछ मसीही औरतें किस तरह जनन से संरक्षित होती, लेकिन उसके अतिरिक्त उन्हें किस की ज़रूरत होती?
९ प्रेरित पौलुस ने यह भी बताया कि कुछ मसीही औरतों का बच्चें जनना उनके लिए एक संरक्षण होता। ज़रूरतमंद विधवाओं के लिए भौतिक राहत के विषय, उसने लिखा: “जवान विधवाओं के नाम न लिखना, . . . साथ ही साथ वे घर घर फिरकर आलसी होना सीखती हैं, और केवल आलसी नहीं, पर बकबक करती रहती और औरों के काम में हाथ भी डालती हैं और अनुचित बातें बोलती हैं। इसलिए मैं यह चाहता हूँ, कि जवान विधवाएँ ब्याह करें; और बच्चे जनें और घरबार सँभालें, और किसी विरोधी को बदनाम करने का अवसर ने दें। क्योंकि कई एक तो बहककर शैतान के पीछे हो चुकी हैं।” ऐसी औरतों को “बच्चे जनने के द्वारा सुरक्षित रखा” जाता “बशर्ते कि वे संयम सहित विश्वास, प्रेम, और पवित्रता में स्थिर” रहतीं।—१ तीमुथियुस ५:११-१५; २:१५.
‘शरीर में संकट’
१०. पौलुस ने कुरिन्थियों को अपनी पहली पत्री में विधवाओं को क्या निराली सलाह दी?
१० फिर भी, यह उल्लेखनीय है कि कुरिन्थियों को अपनी पहली पत्री में, उसी प्रेरित पौलुस ने विधवाओं को निराला हल दिया। उसने शादी करने से संबंधित उसकी सलाह को विशेषित किया, यह कहकर कि उसने यह “अनुमति के तौर से” दी थी। उसने लिखा: “परन्तु मैं अविवाहितों और विधवाओं के विषय में कहता हूँ, कि उन के लिए ऐसा ही रहना अच्छा है, जैसा मैं हूँ। परन्तु यदि वे संयम न कर सकें, तो विवाह करें; क्योंकि विवाह करना कामातुर रहने से भला है। परन्तु [एक विधवा] जैसी है यदि वैसी ही रहे तो, मेरे विचार में, और भी धन्य है, और मैं समझता हूँ, कि परमेश्वर की आत्मा मुझ में भी है।—१ कुरिन्थियों ७:६, ८, ९, ४०, न्यू.व..
११. (अ) जो शादी करते, वे क्या अनुभव करते, और इस पर १ कुरिन्थियों ७:२८ का पार्श्व-हवाला किस तरह प्रकाश डालता है? (ब) पौलुस का क्या अर्थ था जब उसने कहा, “मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ”?
११ पौलुस ने व्याख्या की: “यदि कुँवारा व्यक्ति विवाह करे, तो यह पाप न करेगा। परन्तु ऐसों को अपने शरीर में संकट होगा। पर मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ।” (१ कुरिन्थियों ७:२८, न्यू.व.) “अपने शरीर में” ऐसे “संकट” से संबंधित, द न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन का पार्श्व-हवाला हमें उत्पत्ति ३:१६ की ओर निर्दिष्ट करता है, जहाँ हम पढ़ते हैं: “फिर स्त्री से उस [यहोवा] ने कहा: ‘मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी, और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।’” संभाव्य वैवाहिक कठिनाइयों के अतिरिक्त, शादी करनेवाले “अपने शरीर में” जिस “संकट” से मुठभेड़ करते, उन में बेशक जनन संबंधी समस्याएँ होतीं। जबकि पौलुस ने न विवाह और ना ही जनन मना किया, स्पष्ट रूप से उसने अपने संगी मसीहियों को चिताने के लिए बाध्यता महसूस की, कि ये ऐसी समस्याएँ और विकर्षण ले आते जो कि यहोवा की उनकी सेवा में शायद अड़चन बनते।
“समय कम है”
१२. प्रेरित पौलुस ने विवाहित मसीहियों को क्या सलाह दी, और किस कारण?
१२ सा.यु. प्रथम शताब्दी में, मसीही सांसारिक लोगों के जैसे अपना जीवन जीने के लिए मुक्त न थे। उनकी स्थिति उनके वैवाहिक जीवन को भी असर करती। पौलुस ने लिखा: “हे भाइयों, इसके अतिरिक्त मैं यह कहता हूँ, कि समय कम है। इसलिए चाहिए कि जिन के पत्नी हों, वे ऐसे हों मानो उन के पत्नी नहीं, . . . और इस संसार के बरतनेवाले, उसे अधिक न बरतें, क्योंकि इस संसार का दृश्य बदलता जा रहा है। सो मैं चाहता हूँ कि तुम्हें चिंता न हो। . . . पर यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिए कहता हूँ, न कि तुम्हें फँसाने के लिए, बरन इसलिए कि जैसा सोहता है, वैसा ही किया जाए कि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो।”—१ कुरिन्थियों ७:२९-३५, न्यू.व.
१३. किस भावार्थ से पहले-शतकीय मसीहियों के लिए ‘समय कम था?’
१३ बाइबल विशेषज्ञ फ्रेदेरिक गोडेट ने लिखा: “जब कि अविश्वासी यह मानते हैं कि यह दुनिया निश्चय ही अनन्त काल तक बनी रहेगी, मसीही यह महत्त्वपूर्ण वास्तविकता, परूसिया [उपस्थिति], अपने नज़रों के सामने हमेशा रखता है।” मसीह ने अपने चेलों को अपनी “उपस्थिति” का चिह्न देकर उन्हें चिताया था: “इसलिए, जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा।” (मत्ती २४:३, ४२) समय “कम” था इस अर्थ से कि उन पहले-शतकीय मसीहियों को सतत मसीह के आगमन की आशा में जीना था। इसके अतिरिक्त, उन्हें यह मालूम न था कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से कितना समय बाक़ी था, इस से पहले कि “समय और संयोग” उनकी जान लेकर, उन्हें ‘अपना बुलाया जाना सिद्ध करने’ की सारी संभावनाएँ ख़त्म कर देता।—सभोपदेशक ९:११; २ पतरस १:१०.
१४. (अ) मत्ती २४:१९ को किस तरह समझा जाना चाहिए? (ब) जैसे सा.यु. सन् ६६ निकट आया, यीशु की चेतावनी ने किस तरह अधिक अत्यावश्यकता ग्रहण की?
१४ यहूदा और यरूशलेम के मसीहियों के लिए, ‘जागते रहने’ की ज़रूरत विशेष रूप से आवश्यकरणीय था। जब यीशु ने यरूशलेम के दूसरे विनाश की चेतावनी दी, उसने कहा: “उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उन के लिए हाय, हाय!” (मत्ती २४:१९) यह सही है कि यीशु ने पहले-शतकीय मसीहियों को बच्चे जनने से परहेज़ करने को नहीं कहा। उसने केवल वास्तविकता का एक भविष्यसूचक बयान किया, यह सूचित करके कि जब यरूशलेम के निकटतम विनाश का संकेतक प्रगट होता, गर्भवतियों और नन्हें बाल-बच्चेवालों के लिए तेज़ पलायन ज़्यादा कठिन होता। (लूका १९:४१-४४; २१:२०-२३) फिर भी, सा.यु. ६६ के पूर्वगामी वर्षों में जैसे यहूदियों के बीच अशांति बढ़ती गयी, मसीहियों ने यीशु की चेतावनी बेशक स्मरण की होगी और उन संकटपूर्ण समयों में इस से बच्चों को जन्म देने के प्रति उनकी अभिवृत्ति पर प्रभाव हुआ होगा।
इस ज़माने में जनन
१५, १६. (अ) किस तरह आज जीनेवाले मसीहियों के लिए ‘समय कम’ है? (ब) मसीहियों को खुद से कौनसे प्रश्न पूछने चाहिए?
१५ इस “अन्त समय” में मसीहियों को विवाह और जनन का किस तरह विचार करना चाहिए? (दानिय्येल १२:४) आज पहले से कहीं ज़्यादा सच है कि “इस संसार का दृश्य बदलता जा रहा है,” या, जैसे कि एक और अनुवाद कहता है, “वर्तमान रीति व्यवस्था तेज़ी से गुज़रती जा रही है।”—१ कुरिन्थियों ७:३१, फिल्लिप्स.
१६ अब, जैसे पहले कभी न था, “समय कम है।” जी हाँ, यहोवा के लोगों को उसका दिया काम पूरा करने के लिए सिर्फ़ सीमित समय बाक़ी है, अर्थात्: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती २४:१४) अन्त आने से पहले वह काम पूरा किया जाना चाहिए। इसलिए, यह उचित है कि मसीही अपने आप से पूछें कि कैसे उस अत्यावश्यक काम में उनकी सहभागी पर, शादी करना या, अगर शादी-शुदा हों, तो बच्चे जनना, असर करेगा।
एक प्राचीन उदाहरण
१७. (अ) प्रलय से पहले नूह और उसके तीन बेटों को कौनसा कार्य पूरा करना था, और प्रकट रूप से यह करने को कितना समय लगा? (ब) प्रलय-पूर्व अवधि में नूह के बेटे और उनकी पत्नियों ने किन संभव कारणों से बच्चों को जन्म देने से परहेज़ किया?
१७ यीशु ने “मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति” की तुलना “नूह के दिनों” से की। (मत्ती २४:३७) जलप्रलय से पहले नूह और उसके तीन बेटों को एक विशेष काम पूरा करना था। उस में एक विशाल नौका-सी जल-पेटी बनाना और प्रचार करना संबद्ध था। (उत्पत्ति ६:१३-१६; २ पतरस २:५) जब यहोवा ने जल-पेटी के निर्माण के बारे में आदेश दिए, प्रकट रूप से नूह के बेटे पहले से ही शादी-शुदा थे। (उत्पत्ति ६:१८) हम यह नहीं जानते कि जल-पेटी को बनाने में ठीक कितना समय लग गया, लेकिन यह संभव लगता है कि कई दशक लग गए। दिलचस्प रीति से, इस सारे प्रलय-पूर्व अवधि में, नूह के बेटे और उनके पत्नियों के कोई बच्चे न हुए। प्रेरित पतरस विनिर्दिष्ट रूप से कहता है कि ‘आठ प्राणी पानी में से सही-सलामत पार उतारे गए,’ यानी, चार दम्पत्ति, पर कोई बच्चे नहीं। (१ पतरस ३:२०) बेटों का बेऔलाद रहने के संभवतः दो कारण थे। पहला, जलप्रलय द्वारा आनेवाले विनाश को नज़र में रखते हुए, उन्हें एक दैवी रूप से नियुक्त कार्य करना था, जिस के लिए उनका अविभक्त ध्यान आवश्यक था। दूसरा, एक ऐसी दुनिया में बच्चें जन्मने के लिए बेशक उन्होंने अनिच्छा महसूस की होगी, जहाँ ‘मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गयी थी और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता था सो निरन्तर बुरा ही होता था,’ एक ऐसी दुनिया जो ‘उपद्रव से भरी’ थी।—उत्पत्ति ६:५, १३.
१८. हालाँकि अनुपालन करने के लिए यह कोई नियम निर्धारित नहीं करता है, नूह के बेटे और उनकी पत्नियों द्वारा ग्रहण की गयी क्रियाविधि किस तरह विचारार्थ विषय देती है?
१८ इसका मतलब यह नहीं कि प्रलय से पहले नूह के बेटे और उनके पत्नियों ने जो क्रियाविधि ग्रहण की, उस से आज जीवित दत्पत्तियों को प्रशासित होना चाहिए। फिर भी, चूँकि यीशु ने नूह के दिनों की तुलना उस कालावधि से की जिस में हम अब जीवित हैं, उनका उदाहरण हमें विचारार्थ विषय दे सकता है।
“कठिन समय”
१९. (अ) नूह के दिनों से हमारा समय किस तरह तुलता है? (ब) पौलुस ने “अन्तिम दिनों” के लिए क्या भविष्यवाणी की, और उसकी भविष्यवाणी जनन से किस तरह संबंधित है?
१९ नूह और उसके परिवार के जैसे, हम भी “भक्तिहीन संसार” में जी रहे हैं। (२ पतरस २:५) उनके जैसे, हम एक अभी नष्ट होनेवाली दुष्ट वस्तु-व्यवस्था के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। प्रेरित पौलुस ने भविष्यवाणी की, कि शैतान की व्यवस्था के ‘अन्तिम दिन’ ऐसे “कठिन समय” ले आते, “जिनसे निपटना मुश्किल होता।” यह दिखाते हुए कि बच्चों का पालन-पोषण करना उन मुश्किल से निपटनेवाली बातों में से एक बात होती, उसने आगे कहा कि बच्चें “माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले” होते। उसने बतलाया कि आम तौर से लोग, बच्चों समेत, ‘कृतघ्न, बेवफ़ा, और स्वाभाविक स्नेह रहित’ होते। (२ तीमुथियुस ३:१-३, न्यू.व.) जबकि पौलुस यहाँ सांसारिक लोगों के बीच स्थितियों के बारे में भविष्यवाणी कर रहा था, प्रकट रूप से ऐसी प्रचलित अभिवृत्तियाँ मसीहियों को बच्चों का पालन-पोषण करना बराबर बढ़ते हुए कठिन कर देता, जैसे कि अनेकों ने अनुभव किया है।
२०. अगले अंक में किस पर ग़ौर किया जाएगा?
२० पूर्वगामी सारी बातें यह दिखाती हैं कि जनन का एक संतुलित विचार रखना आवश्यक है। जबकि यह अनेक खुशियाँ ला सकता है, इस से कई वेदनाएँ भी आ सकती है। इस के फ़ायदे और नुक़सान हैं। इन में से कुछों पर अगले अंक में ग़ौर किया जाएगा।
समीक्षा के लिए प्रश्न
◻ इस्राएल में बड़े परिवार वांछनीय क्यों थे?
◻ क्या संकेत करता है कि ऐसे समय भी थे जब जनन से यहूदियों को वेदनाएँ भी मिलीं?
◻ संख्या में आत्मिक इस्राएल को किस तरह बढ़ना था?
◻ किस तरह प्रारंभिक मसीहियों के लिए “समय” कम” था?
◻ प्रलय से पहले नूह के बेटे और उनकी पत्नियाँ किस लिए बेऔलाद रहे, इसके लिए कौनसे संभव कारण हैं, और आज की स्थिति के बारे में क्या?
[पेज 25 पर तसवीरें]
नन्हें बाल-बच्चेवालों के लिए यरूशलेम से तेज़ पलायन ज़्यादा कठिन होता