यकीन दिलाने की कला से—दिलों तक पहुँचना
अनेक लोग “यकीन दिलाना” शब्द को शक की निगाह से देखते हैं। इससे एक व्यक्ति के मन में कोई अड़ियल सेल्समेन का विचार आए या ऐसा कोई विज्ञापन का, जो उपभोक्ता को धोखा देने या उल्लू बनाने के लिए बनाया गया हो। बाइबल में भी, यकीन दिलाने के विचार के कभी-कभी नकारात्मक भाव हैं, जो भ्रष्ट करने या गुमराह करने को सूचित करता है। मसलन, मसीही प्रेरित पौलुस ने गलतिया के लोगों को लिखा: “तुम तो भली भांति दौड़ रहे थे, अब किस ने तुम्हें रोक दिया, कि सत्य को न मानो। ऐसी सीख [यकीन दिलाया जाना] तुम्हारे बुलानेवाले की ओर से नहीं।” (गलतियों ५:७, ८) पौलुस ने कुलुस्सियों को किसी मनुष्य की “लुभानेवाली [यकीन दिलानेवाली] बातों से धोखा न” खा जाने की भी चेतावनी दी। (कुलुस्सियों २:४) ऐसी लुभानेवाली बातें झूठी नींव पर बने चालाक तर्कों पर आधारित होती हैं।
लेकिन तीमुथियुस को लिखी अपनी दूसरी पत्री में, प्रेरित पौलुस ने इस विचार को एक अलग अर्थ में इस्तेमाल किया। उसने लिखा: “तू उन बातों पर जो तू ने सीखी थीं और जिन का यक़ीन तुझे दिलाया गया था, यह जान कर क़ायम रह कि तू ने उन्हें किन लोगों से सीखा था।” (२ तीमुथियुस ३:१४, हिंदुस्तानी बाइबल) ‘यक़ीन दिलाए जाने’ में, तीमुथियुस की माँ और उसकी नानी ने उससे छल नहीं किया था। इनके द्वारा ही उसने शास्त्रीय सच्चाइयाँ सीखी थीं।—२ तीमुथियुस १:५.a
रोम में जब वह घर पर ही बंदी था, पौलुस ने अनेक लोगों को अच्छी तरह गवाही दी, और “मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों से यीशु के विषय में समझा समझाकर [यकीन दिला-दिलाकर] भोर से सांझ तक वर्णन करता रहा।” (प्रेरितों २८:२३) क्या पौलुस अपने श्रोतागण को धोखा दे रहा था? कतई नहीं! तो फिर स्पष्ट है कि यकीन दिलाकर कहना हमेशा एक बुरी बात नहीं है।
“यकीन दिलाना” अनुवादित यूनानी मूल शब्द का इस्तेमाल एक सकारात्मक अर्थ में होता है और इसका अर्थ है कायल करना, ठोस तर्कसंगत बातों से मन को बदल देना। इस प्रकार एक शिक्षक शास्त्रीय बुनियाद पर निर्माण कर सकता है और यकीन दिलाने की कला का इस्तेमाल करते हुए दूसरों के दिलों में बाइबल सच्चाई के लिए विश्वास बिठा सकता है। (२ तीमुथियुस २:१५) वाकई, यह पौलुस की सेवकाई की खासियत थी। मसीही शिक्षाओं को गलत समझनेवाले सुनार देमेत्रियुस ने भी नोट किया: “सिर्फ़ इफ़िसुस ही में नहीं बल्कि क़रीब क़रीब सारे आसिया में इस पौलुस ने बहुत से लोगों को यह यकीन दिला कर भरमा दिया कि जो हाथ के बनाए हुए हैं, वे परमेश्वर नहीं हैं।”—प्रेरितों १९:२६, HB.
सेवकाई में यकीन दिलाने की कला इस्तेमाल करना
यीशु मसीह ने अपने अनुयायियों को आदेश दिया: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती २८:१९, २०) २३० से भी ज़्यादा देशों में, यहोवा के साक्षी इस आज्ञा का पालन कर रहे हैं। अपने १९९७ सेवा वर्ष के दौरान हर महीने, उन्होंने दुनिया भर में औसतन ४५,५२,५८९ गृह बाइबल अध्ययन संचालित किए।
यदि आपके पास एक गृह बाइबल अध्ययन संचालित करने का विशेषाधिकार है, तो आप उन चुनौतियों का पहले से ही अंदाज़ा लगा सकते हैं, जिनके लिए यकीन दिलाने की कला इस्तेमाल करनी पड़े। मसलन, मान लीजिए कि आपके अगले अध्ययन पर त्रियेक के बारे में एक सवाल उठता है। तब क्या करेंगे जब आपको मालूम है कि आपका विद्यार्थी इस धर्म-सिद्धांत को मानता है? आप उसे उसी विषय पर चर्चा करनेवाला कोई प्रकाशन दे सकते हैं। उसके पढ़ लेने के बाद आप शायद पाएँ कि उसे यह यकीन हो गया है कि परमेश्वर व यीशु एक नहीं हैं। लेकिन यदि कोई सवाल रह जाता है, तो आप कैसे आगे बढ़ेंगे?
ध्यान से सुनिए। इससे आपको यह निर्धारित करने में मदद मिलेगी कि किसी अमुक विषय के बारे में आपका विद्यार्थी पहले से क्या विश्वास करता है। मसलन, यदि आपका विद्यार्थी कहता है, “मैं त्रियेक में विश्वास करता हूँ,” तो आप इस धर्म-सिद्धांत को गलत साबित करने के लिए तुरंत एक शास्त्रीय चर्चा शुरू कर सकते हैं। लेकिन त्रियेक के संबंध में भिन्न-भिन्न विश्वास हैं। आपका विद्यार्थी शायद कुछ ऐसा विश्वास करता हो जो त्रियेक सिद्धांत की आपकी परिभाषा से बिलकुल ही भिन्न हो। यही बात पुनर्जन्म, आत्मा के अमरत्व, व उद्धार जैसे अन्य विश्वासों के बारे में कही जा सकती है। सो बोलने से पहले ध्यान से सुनिए। विद्यार्थी क्या विश्वास करता है, इस बात का पहले से ही अंदाज़ा मत लगाइए।—नीतिवचन १८:१३.
सवाल पूछिए। इनमें शायद निम्नलिखित सवाल शामिल हों: ‘क्या आप हमेशा से त्रियेक में विश्वास करते आए हैं? क्या आपने इस विषय पर बाइबल जो कहती है, उसका कभी-भी पूरा-पूरा अध्ययन किया है? यदि परमेश्वर त्रियेक का एक हिस्सा होता, तो क्या उसका वचन, बाइबल हमें इसके बारे में साफ-साफ व सीधी तरह से नहीं बताता?’ विद्यार्थी को सिखाते समय, बीच-बीच में निम्नलिखित प्रकार के सवाल पूछिए: ‘अब तक हमने जो सीखा है, क्या वह आपको तर्कसंगत लगता है?’ ‘क्या आप इस व्याख्या से सहमत हैं?’ कुशलतापूर्वक सवाल पूछने के द्वारा, आप विद्यार्थी को सीखने में शामिल कर रहे होंगे। जब आप किसी विषय को समझाते हैं तो विद्यार्थी को बस यूँ ही सुनते रहना नहीं चाहिए।
ठोस तर्क प्रयोग कीजिए। मिसाल के तौर पर, त्रियेक धर्म-सिद्धांत की चर्चा करते वक्त आप अपने विद्यार्थी से कह सकते हैं: ‘जब यीशु का बपतिस्मा हुआ था, तब आकाश से एक आवाज़ यह कहते हुए गूँजी: “तू मेरा प्रिय पुत्र है।” यदि परमेश्वर वास्तव में पृथ्वी पर बपतिस्मा ले रहा था, तो क्या वह अपनी आवाज़ स्वर्ग तक पहुँचाकर वापस लाता ताकि पृथ्वी पर वे शब्द सुने जा सकें? क्या यह धोखा देनेवाली बात न होगी? क्या परमेश्वर, “जो झूठ बोल नहीं सकता,” ऐसी धोखाधड़ी का काम करेगा?’—लूका ३:२१, २२; तीतुस १:१, २.
व्यवहार-कुशल तरीके से प्रस्तुत किया गया ठोस तर्क प्रायः बहुत प्रभावकारी होता है। इस स्त्री की मिसाल पर गौर फरमाइए जिसे हम बार्बरा कहेंगे। ताउम्र उसने विश्वास किया कि यीशु परमेश्वर था व उस त्रियेक का हिस्सा था जिसमें पवित्र आत्मा शामिल है। लेकिन फिर यहोवा के एक साक्षी ने उसे बताया कि परमेश्वर व यीशु दो भिन्न-भिन्न व्यक्ति हैं, और उसने अपने कथन की पुष्टि में उसे शास्त्रवचन दिखाए।b बार्बरा बाइबल की बात को काट न सकी। उसी समय, वह कुंठित भी हो गयी। आखिर, त्रियेक का धर्म-सिद्धांत उसके दिल को अज़ीज़ जो था।
उस साक्षी ने बार्बरा के साथ धैर्य से तर्क किया। “यदि आप मुझे यह सिखाने की कोशिश कर रही हैं कि दो व्यक्ति एक हैं,” उसने पूछा, “तो इसे समझाने के लिए आप परिवार के कौन-से रिश्ते का उदाहरण देंगी?” उसने कुछ देर सोचा और फिर जवाब दिया: “मैं शायद दो भाइयों का उदाहरण दूँ।” “बिलकुल सही,” उस साक्षी ने जवाब दिया। “शायद दो एक-जैसे दिखनेवाले जुड़वे भाइयों का। लेकिन हमें यह सिखाने में कि हम परमेश्वर को पिता के तौर पर देखें और उसे पुत्र के तौर पर देखें, यीशु के कहने का मतलब क्या था?” “अच्छा, तो अब समझी,” बार्बरा ने जवाब दिया और उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं। “वह एक को बड़े व ज़्यादा अधिकार रखनेवाले के तौर पर वर्णन कर रहा है।”
“जी हाँ,” साक्षी ने जवाब दिया, “और यीशु के यहूदी श्रोतागण जो ऐसे समाज में रहते थे जिसमें कुलपिता हुआ करते थे, खासकर उसी निष्कर्ष पर पहुँचे होंगे।” अपनी बात पर बल देते हुए साक्षी ने अंत में कहा: “यदि बराबरी सिखाने के लिए हम ऐसा एक उपयुक्त उदाहरण सोच सकते हैं—यानी दो भाइयों या एक-जैसे दिखनेवाले जुड़वे भाइयों का—तो निश्चय ही महान शिक्षक, यीशु भी ऐसा कर सकता था। इसके बजाय, उसने अपने व परमेश्वर के बीच के रिश्ते का वर्णन करने के लिए ‘पिता’ व ‘पुत्र’ जैसे शब्द इस्तेमाल किए।”
आखिरकार बार्बरा को बात समझ में आ ही गयी, और उसने इस बात को स्वीकारा। यकीन दिलाने की कला से बात उसके दिल तक पहुँची थी।
भावनाओं को समझकर निपटना
ठोस रूप से स्थापित धार्मिक विश्वासों में अकसर एक भावात्मक पहलू शामिल होता है। एक कैथोलिक भक्त एडना के किस्से पर गौर फरमाइए। उसके किशोर पोतों ने उसे स्पष्ट शास्त्रीय सबूत दिखाए कि परमेश्वर व यीशु एक ही व्यक्ति नहीं हैं। जो बात एडना ने सुनी, उसने उसे समझा। फिर भी, उसने कृपापूर्वक लेकिन दृढ़ता से कहा: “मैं पवित्र त्रियेक में विश्वास करती हूँ।”
शायद आपका भी कुछ इसी प्रकार का अनुभव रहा हो। कई लोग अपने धर्म के सिद्धांतों को ऐसा मानते हैं मानो वे उनकी खुद की पहचान हो। बाइबल के ऐसे विद्यार्थियों को यकीन दिलाने के लिए, संवेदनहीन तर्क या ढेर सारे शास्त्रवचनों से ज़्यादा की ज़रूरत होती है जो साबित करे कि व्यक्ति की धारणा गलत है। यकीन दिलाने की कला के साथ-साथ करुणा दिखाने के द्वारा ऐसी स्थितियों से बखूबी निपटा जा सकता है। (रोमियों १२:१५; कुलुस्सियों ३:१२ से तुलना कीजिए।) माना कि एक प्रभावकारी शिक्षक का विश्वास मज़बूत होना चाहिए। मिसाल के तौर पर, पौलुस ने ऐसे वाक्यांश इस्तेमाल किए जैसे “मुझ को यक़ीन है,” व “मुझे मालूम है बल्कि प्रभु यीशु मसीह में मुझे यक़ीन है।” (रोमियों ८:३८; १४:१४, HB) लेकिन, अपना यकीन व्यक्त करने में, हमें एक हठधर्मी, आत्म-धर्मी लहज़ा नहीं अपनाना चाहिए। साथ ही हमें बाइबल सच्चाइयों को पेश करते वक्त व्यंग्यात्मक नहीं होना चाहिए या फिर सामनेवाले व्यक्ति का अपमान नहीं करना चाहिए। हम विद्यार्थी को कतई नाराज़ करना या बेइज़्ज़त करना नहीं चाहते।—नीतिवचन १२:१८.
विद्यार्थी के विश्वासों का आदर करना और उन्हें मानने के उसके हक को समझना कहीं ज़्यादा प्रभावकारी है। नम्रता इसकी कुंजी है। दीन मन का शिक्षक यह नहीं महसूस करता कि वह अपने विद्यार्थी से श्रेष्ठ है। (लूका १८:९-१४; फिलिप्पियों २:३, ४) ईश्वरीय रूप से यकीन दिलाने में ऐसी नम्रता शामिल है, जिसकी वज़ह से हम दरअसल यह कहते हैं: ‘यहोवा ने दयापूर्वक मुझे यह समझने में मदद दी है। मैं इसे आपके साथ बाँटना चाहता हूँ।’
कुरिन्थ के अपने संगी मसीहियों को पौलुस ने लिखा: “हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं। सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।” (२ कुरिन्थियों १०:४, ५) आज, यहोवा के साक्षी उसे अप्रसन्न करनेवाले झूठे धर्म-सिद्धांतों के मज़बूत गढ़ों को, साथ ही ऐसी गहरी पैठी आदतों व लक्षणों को ढा देने के लिए परमेश्वर का वचन इस्तेमाल कर रहे हैं। (१ कुरिन्थियों ६:९-११) ऐसा करने में, साक्षी याद रखते हैं कि यहोवा ने उनके साथ प्रेमपूर्वक, धैर्य से काम लिया है। उसका वचन, बाइबल पाने और झूठी शिक्षाओं को समूल उखाड़ने तथा यकीन दिलाने की कला से दिलों तक पहुँचने में इस शक्तिशाली औज़ार को इस्तेमाल करने में वे कितने खुश हैं!
[फुटनोट]
a प्रहरीदुर्ग के इस अंक के पृष्ठ ७-९ पर दिया गया लेख “यूनीके व लोइस—आदर्श शिक्षक” देखिए।
b यूहन्ना १४:२८; फिलिप्पियों २:५, ६; कुलुस्सियों १:१३-१५ देखिए। अधिक जानकारी के लिए वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित ब्रोशर क्या आपको त्रियेक में विश्वास करना चाहिए? देखिए।
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अपने विद्यार्थी के दिल तक पहुँचना
◻ बाइबल विद्यार्थी के दिल तक पहुँचने में यहोवा के मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना कीजिए।—नहेमायाह २:४, ५; यशायाह ५०:४.
◻ विद्यार्थी क्या विश्वास करता है तथा उसे क्यों कोई झूठा विश्वास आकर्षक लगता है इसे समझिए।—प्रेरितों १७:२२, २३.
◻ सामान्य आधार कायम रखते हुए कृपालु, धैर्यशील तरीके से एक तर्कसंगत, शास्त्रीय तर्क दीजिए।—प्रेरितों १७:२४-३४.
◻ यदि संभव हो तो प्रभावकारी दृष्टांतों से बाइबल सच्चाइयों को बल दीजिए।—मरकुस ४:३३, ३४.
▫ विद्यार्थी को बाइबल से सही-सही ज्ञान स्वीकार करने के लाभ दिखाइए।—१ तीमुथियुस २:३, ४; २ तीमुथियुस ३:१४, १५.