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मरकुस ‘सेवा के लिए बहुत काम का’प्रहरीदुर्ग—2010 | मार्च 15
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ईसवी सन् 65 के आस-पास जब पौलुस दूसरी बार रोम में कैद था, तब उसने इफिसुस में रहनेवाले तीमुथियुस को एक खत लिखा और उसे अपने पास बुलाया। खत में उसने तीमुथियुस से यह भी कहा: “मरकुस को अपने साथ लेते आना।” (2 तीमु. 4:11) इससे पता चलता है कि मरकुस उस वक्त इफिसुस में था। इसमें दो राय नहीं कि पौलुस के कहे मुताबिक मरकुस, तीमुथियुस के साथ ज़रूर रोम गया होगा। उन दिनों सफर करना आसान नहीं होता था, फिर भी मरकुस ने खुशी-खुशी इतनी यात्राएँ कीं।
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मरकुस ‘सेवा के लिए बहुत काम का’प्रहरीदुर्ग—2010 | मार्च 15
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“सेवा के लिए मेरे बहुत काम का”
रोम में मरकुस ने सिर्फ खुशखबरी की किताब ही नहीं लिखी। याद कीजिए कि पौलुस ने मरकुस के बारे में तीमुथियुस से क्या कहा था: “मरकुस को अपने साथ लेते आना।” पौलुस ने क्या वजह बतायी? उसने कहा: “वह सेवा के लिए मेरे बहुत काम का है।”—2 तीमु. 4:11.
बाइबल की किताबें जिस क्रम में लिखी गयी थीं, उसके हिसाब से देखा जाए तो ऊपर दी गयी आयत में ही आखिरी बार मरकुस का ज़िक्र मिलता है। इससे हमें मरकुस के बारे में काफी अहम जानकारी मिलती है। मरकुस के बारे में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि वह कोई प्रेषित या अगुवा या भविष्यवक्ता था। वह बस एक सेवक था जो हरदम दूसरों की सेवा करने के लिए तैयार रहता था। पौलुस ने दूसरा तीमुथियुस का खत शायद अपनी मौत से कुछ ही वक्त पहले लिखा था और उसने अपनी मौत से पहले ज़रूर मरकुस की सेवाओं से फायदा पाया होगा।
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