बाइबल की किताब नंबर 56—तीतुस
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: मकिदुनिया (?)
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 61-64
“पौलुस की ओर से जो परमेश्वर का दास और यीशु मसीह का प्रेरित है, . . . तीतुस के नाम जो विश्वास की सहभागिता के विचार से मेरा सच्चा पुत्र है।” (तीतु. 1:1, 4) इस तरह पौलुस, तीतुस को लिखी अपनी पत्री की शुरूआत करता है। तीतुस, उसका सहकर्मी और लंबे अरसे से उसका साथी था। उसे पौलुस क्रेते द्वीप में छोड़ आया था, ताकि वह वहाँ की कलीसियाओं को अच्छी तरह संगठित कर सके। यह कोई आसान काम नहीं था। कहा जाता है कि क्रेते द्वीप “देवताओं और इंसानों के पूर्वज” का धाम था। लेकिन इसी द्वीप के नाम पर यह कहावत निकली थी: “क्रेतेवासी को क्रेत करना,” जिसका मतलब है, “एक छली को छलना।”a क्रेते के लोग बेईमानी के लिए इतने बदनाम थे कि खुद पौलुस ने उनके एक नबी का हवाला देते हुए कहा: “क्रेती लोग सदा झूठे, दुष्ट पशु और आलसी पेटू होते हैं।” (1:12) पौलुस के दिनों के क्रेतेवासियों के बारे में यह भी कहा गया है: “वे बेईमान, मक्कार और झगड़ालू थे; साथ ही उन्होंने लालच, लुचपन, झूठ बोलने और पियक्कड़पन की सारी हदें पार कर दी थीं। और ऐसा मालूम होता है कि जो यहूदी वहाँ बसे थे, वे बदचलनी में क्रेते के निवासियों से भी गए गुज़रे थे।”b ऐसे माहौल में ही क्रेते की कलीसियाओं की शुरूआत हुई थी। इसलिए यह निहायत ज़रूरी था कि मसीही, पौलुस की इस सलाह को मानें: “अभक्ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फेरकर . . . संयम और धर्म और भक्ति से जीवन बिताएं।”—2:12.
2 पौलुस और तीतुस के कैसे ताल्लुकात थे, इस बारे में हमें तीतुस की पत्री से ज़्यादा जानकारी नहीं मिलती। लेकिन पौलुस की बाकी पत्रियों से काफी जानकारी मिलती है। तीतुस एक यूनानी था और अकसर पौलुस के साथ सफर करता था। एक मौके पर वह पौलुस के संग यरूशलेम भी गया था। (गल. 2:1-5) पौलुस तीतुस के बारे में कहता है कि वह “मेरा साथी, और . . . सहकर्मी है।” जब पौलुस ने इफिसुस से कुरिन्थियों को अपनी पहली पत्री लिखी, तब उसने तीतुस के हाथ ही उसे भिजवाया था। कुरिन्थुस में रहते वक्त, तीतुस यरूशलेम के भाइयों के लिए दान जमा करने के काम में शरीक हुआ। इसके बाद वह पौलुस से मिलने मकिदुनिया गया। फिर पौलुस के कहने पर वह दूसरी बार कुरिन्थुस गया, ताकि दान जमा करने का काम पूरा कर सके। इस बार पौलुस ने उसके हाथ कुरिन्थियों के नाम दूसरी पत्री भिजवायी थी।—2 कुरि. 2:13; 7:5-7; 8:16-24.
3 रोम में अपनी पहली कैद से रिहा होने के बाद, पौलुस ने अपनी सेवा के आखिरी चंद सालों के दौरान तीमुथियुस और तीतुस के साथ मिलकर प्रचार किया। ऐसा लगता है कि उन्होंने क्रेते, यूनान और मकिदुनिया में सेवा की। फिर हम पढ़ते हैं कि पौलुस उत्तर-पश्चिम यूनान में नीकुपुलिस जाने की सोच रहा था और शायद वहीं से उसे गिरफ्तार करके रोम ले जाया गया। यह उसकी आखिरी कैद थी, क्योंकि इसके बाद उसे मौत की सज़ा दी गयी। क्रेते का दौरा करते वक्त पौलुस तीतुस को वहीं छोड़ आया था, ताकि वह उसकी हिदायतों के मुताबिक “शेष रही हुई [‘बिगड़ी,’ NW] बातों को सुधारे, और . . . नगर नगर प्राचीनों को नियुक्त करे।” ऐसा मालूम होता है कि इसके कुछ समय बाद ही, पौलुस ने मकिदुनिया से तीतुस को पत्री लिखी थी। (तीतु. 1:5; 3:12; 1 तीमु. 1:3; 2 तीमु. 4:13, 20) इस पत्री का मकसद, पहला तीमुथियुस की पत्री के मकसद से काफी मिलता-जुलता है। इसे पौलुस के सहकर्मी तीतुस की हौसला-अफज़ाई करने और क्रेते की कलीसियाओं पर यह ज़ाहिर करने के लिए लिखा गया था कि तीतुस को जो ज़िम्मेदारी मिली है, वह पौलुस ने ही दी है।
4 पौलुस ने यह पत्री लगभग सा.यु. 61 से 64 के बीच लिखी होगी, यानी रोम में अपनी पहली कैद से दूसरी कैद के दरमियान। इस पत्री के सच्चे होने के सबूत और उसी समय के दौरान तीमुथियुस को लिखी पत्रियों के सच्चे होने के सबूत एक-जैसे हैं। दरअसल बाइबल की इन तीनों किताबों को अकसर पौलुस की “पास्टरीय पत्रियाँ” (जो अध्यक्षों की ज़िम्मेदारियों के बारे में बताती हैं) कहा जाता है। इनकी लेखन-शैली काफी मिलती-जुलती है। आइरीनियस और ऑरिजन दोनों तीतुस किताब से हवाला देते हैं। यही नहीं, दूसरे कई विद्वान भी गवाही देते हैं कि तीतुस बाइबल के संग्रह का हिस्सा है। यह किताब, साइनाइटिक और एलैक्ज़ैंड्रीन हस्तलिपियों में पायी जाती है। जॉन राइलैंड्स लाइब्रेरी में एक पपाइरस का टुकड़ा (P32) रखा है, जो लगभग सा.यु. तीसरी सदी के कोडेक्स के एक पन्ने का टुकड़ा है। इसमें तीतुस 1:11-15 और 2:3-8 आयतें पायी जाती हैं।c इसमें कोई दो राय नहीं कि यह किताब सच्ची है और ईश्वर-प्रेरित शास्त्र का हिस्सा है।
क्यों फायदेमंद है
8 क्रेते के मसीही ऐसे माहौल में जी रहे थे जहाँ चारों तरफ झूठ, भ्रष्टाचार और लालच का बोलबाला था। ऐसे में ये मसीही क्या करते? क्या वे क्रेते के लोगों की तरह बन जाते? या खुद को उनसे अलग रखने के लिए ठोस कदम उठाते, ताकि वे पवित्र लोगों के नाते यहोवा की सेवा कर सकें? तीतुस के ज़रिए पौलुस उन मसीहियों को बताना चाहता था कि उन्हें “भले-भले कामों में लगे रहने का ध्यान” रखना चाहिए, इसलिए वह कहता है: “ये बातें भली, और मनुष्यों के लाभ की हैं।” आज हमारे समय में भी देखें तो दुनिया मक्कारी और बेईमानी की दलदल में धँसती चली जा रही है। इसलिए सच्चे मसीहियों के लिए भी ये बातें ‘भली और लाभ की हैं’ कि वे “अच्छे कामों में लगे रहना सीखें” और परमेश्वर की सेवा में अच्छे फल लाएँ। (3:8, 14) पौलुस ने क्रेते की कलीसियाओं को अनैतिकता और बुराई के खिलाफ जो चेतावनी दी, वह आज हमारे लिए भी एक चेतावनी है। ‘परमेश्वर का अनुग्रह हमें चिताता है, कि हम अभक्ति और सांसारिक अभिलाषाओं से मन फेरकर इस युग में संयम और धर्म और भक्ति से जीवन बिताएं।’ इसके अलावा, मसीहियों को “हर एक अच्छे काम के लिये तैयार” रहना चाहिए, जिसमें सरकारों का कहा मानना और एक अच्छा विवेक बनाए रखना शामिल है।—2:11, 12; 3:1.
9 पहला तीमुथियुस 3:2-7 में अध्यक्षों की जो योग्यताएँ बतायी गयी हैं, उस बारे में तीतुस 1:5-9 में और भी जानकारी दी गयी है। इसमें ज़ोर देकर बताया गया है कि एक अध्यक्ष को ‘विश्वासयोग्य वचन पर स्थिर रहना’ चाहिए और कलीसिया में शिक्षक होना चाहिए। वाकई, अध्यक्षों के लिए ऐसा करना कितना ज़रूरी है, क्योंकि तभी वे कलीसिया में सभी को प्रौढ़ता की तरफ बढ़ने में मदद दे पाएँगे। दरअसल तीतुस को लिखी पत्री में सही शिक्षा की अहमियत पर बार-बार ज़ोर दिया गया है। पौलुस ने तीतुस को उकसाया कि वह ‘ऐसी बातें कहा करे, जो खरे उपदेश के योग्य हैं।’ बूढ़ी स्त्रियों को “अच्छी बातें सिखानेवाली” होना चाहिए। दासों को ‘सब बातों में अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्वर के उपदेश की शोभा’ बढ़ानी चाहिए। (तीतु. 1:9; 2:1, 3, 10) पौलुस ने तीतुस से ज़ोर देकर कहा कि एक अध्यक्ष के नाते उसे दृढ़ और निडर होकर सिखाना चाहिए। उसने कहा: “पूरे अधिकार के साथ ये बातें कह, और समझा और सिखाता रह।” और जो लोग तीतुस की बातें नहीं मानते, उनके बारे में पौलुस ने कहा: “उन्हें कड़ाई से चितौनी दिया कर, कि वे विश्वास में पक्के हो जाएं।” इन्हीं वजहों से तीतुस को लिखी पत्री “शिक्षा, ताड़ना, सुधार और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है।”—तीतु. 1:13; 2:15; 2 तीमु. 3:16, NHT.
10 तीतुस को लिखी पत्री परमेश्वर के अनुग्रह यानी उसकी अपार कृपा के लिए हमारी कदर बढ़ाती है। यह पत्री हमें उकसाती है कि हम दुनिया की अभक्ति के चलन को ठुकराकर “उस धन्य आशा की अर्थात् अपने महान परमेश्वर और उद्धारकर्त्ता यीशु मसीह की महिमा के प्रगट होने की बाट जोहते रहें।” ऐसा करने से जो लोग मसीह यीशु के ज़रिए धर्मी ठहराए जाते हैं, वे परमेश्वर के राज्य में “अनन्त जीवन की आशा के अनुसार वारिस” बनेंगे।—तीतु. 2:13; 3:7.
[फुटनोट]
a मैक्लिंटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया, सन् 1981 में दोबारा छापी गयी, दूसरा भाग, पेज 564; द न्यू शॉफ-हर्टसॉक इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलिजियस नॉलेज, सन् 1958, भाग 3, पेज 306.
b मैक्लिंटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया, सन् 1981 में दोबारा छापी गयी, दसवाँ भाग, पेज 442.
c कर्ट और बारबरा आलान्ट की किताब, द टेक्स्ट ऑफ द न्यू टेस्टामेंट, जिसे ई. एफ. रोड्स ने अनुवाद किया, सन् 1987, पेज 98.