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  • मैं सत्य को अपना कैसे बनाऊँ?

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  • मैं सत्य को अपना कैसे बनाऊँ?
  • सजग होइए!–1998
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सजग होइए!–1998
g98 11/8 पेज 13-15

युवा लोग पूछते हैं . . .

मैं सत्य को अपना कैसे बनाऊँ?

“मेरी परवरिश एक यहोवा के साक्षी की तरह हुई। और मुझे हमेशा लगता था अगर मेरे मम्मी-डैडी यहोवा के साक्षी हैं तो मैं सचमुच यहोवा को जानती हूँ। मैं बहुत बड़ी भूल कर रहा थी!”—एंटनॆट।

“सत्य क्या है?” यही मशहूर सवाल पुन्तियुस पीलातुस ने किया था, जिसने यीशु को मौत के घाट उतारने के लिए लोगों के हाथों में सौंप दिया था। (यूहन्‍ना १८:३८) मगर पीलातुस यह सवाल उठाकर बातचीत शुरू नहीं, बंद करना चाहता था। वह बस यीशु पर ताना कस रहा था। वह असल में “सत्य” या सच्चाई में दिलचस्पी नहीं रखता था। मगर आपके बारे में क्या? क्या आप सच्चाई में दिलचस्पी रखते हैं?

कई सदियों से तत्त्वज्ञानियों ने इस पर विचार किया है कि सच्चाई   है क्या। मगर उनकी मेहनत ज़्यादा रंग नहीं लाई है। लेकिन आपको पीलातुस के सवाल का जवाब मिल सकता है। यीशु मसीह ने सिखाया कि परमेश्‍वर का वचन ही सच्चाई है। उसने खुद को भी “सच्चाई” कहा। और प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुंची।” (यूहन्‍ना १:१७; १४:६; १७:१७) सभी मसीही शिक्षाओं को, जो बाद में बाइबल का एक भाग बनीं, “सच्चाई” या “सुसमाचार की सच्चाई” कहा जाता है। (तीतुस १:१४; गलतियों २:१४; २ यूहन्‍ना १, २) इन मसीही शिक्षाओं में ऐसी बातें शामिल हैं जैसे परमेश्‍वर का व्यक्‍तिगत नाम, परमेश्‍वर के राज्य की स्थापना, पुनरुत्थान, और यीशु की छुड़ौती।—भजन ८३:१८; मत्ती ६:९, १०; २०:२८; यूहन्‍ना ५:२८, २९.

हज़ारों जवानों को उनके मसीही माता-पिता बाइबल की सच्चाई सिखाते हैं। मगर क्या इसका मतलब यह है कि वे लोग “सत्य पर चलते हैं”? (३ यूहन्‍ना ३, ४) ज़रूरी नहीं है। मिसाल के तौर पर, बीस साल की जॆनिफर की परवरिश एक यहोवा के साक्षी परिवार में हुई। वह याद करती है: “मेरी मम्मी मुझे अधिवेशनों में ले जाती थी और उन्होंने इसकी ओर इशारा भी किया कि मुझे अब बपतिस्मे के बारे में सोचना चाहिए। मगर मैंने सोचा, ‘मैं तो कभी साक्षी नहीं बनना चाहती। मैं तो बस मौज-मस्ती करना चाहती हूँ!’”

कुछ जवान उस पर विश्‍वास कर लेते हैं जो उन्हें सिखाया गया है, मगर बाइबल असल में जो सिखाती है वे उसकी गहरी समझ हासिल नहीं कर पाते। इससे कोई खतरा है? यीशु ने चेतावनी दी कि कुछ लोगों के ‘भीतर जड़ नहीं है।’ ऐसे लोग “थोड़े ही दिनों के लिये रहते हैं; इस के बाद जब वचन के कारण उन पर क्लेश या उपद्रव होता है, तो वे तुरन्त ठोकर खाते हैं।” (मरकुस ४:१७) दूसरे लोग बाइबल पर आधारित अपने विश्‍वासों को कुछ हद तक समझा तो सकते हैं, मगर वे लोग परमेश्‍वर को बहुत करीब से नहीं जानते। एक युवती, ऎनिसा कहती है: “मुझे नहीं लगता कि जब मैं छोटी थी तब मेरा यहोवा के साथ एक सचमुच का रिश्‍ता था . . . शायद मैं इसीलिए विश्‍वास करती थी क्योंकि मेरे मम्मी-डैडी उसमें विश्‍वास करते थे।”

इस मामले में आप कहाँ खड़े हैं? क्या यहोवा सिर्फ आपके मम्मी-डैडी का परमेश्‍वर है? या क्या आप भी बाइबल के भजनहार की तरह कह सकते हैं: “हे यहोवा मैं ने तो तुझी पर भरोसा रखा है, मैं ने कहा, तू मेरा परमेश्‍वर है।” (भजन ३१:१४) शायद हकीकत कड़वी हो। एक नौजवान, ऐलॆक्ज़ांडर कहता है, “सबसे पहले, मैंने अपने गिरेबान में झाँककर देखा।” बस खुद का कुछ परीक्षण करके, आपको शायद पता चल जाए कि आपको सच्चाई (यानी सभी मसीही शिक्षाओं) का यकीन नहीं हुआ है। आपके पास शायद पक्का विश्‍वास नहीं हो, और इसलिए ऐसा लगेगा कि आपकी ज़िंदगी में कोई उद्देश्‍य, कोई दिशा नहीं है।

अपनी सभाओं में, यहोवा के साक्षी अकसर एक गीत गाते हैं, “सच्चाई को अपना बनाइए।”a यह सलाह आपके लिए सही होगी। मगर आप इसे अपना कैसे बना सकते हैं? आप कहाँ से शुरुआत करेंगे?

खुद को यकीन दिलाइए

रोमियों १२:२ में प्रेरित पौलुस की सलाह लिखी है: “परमेश्‍वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो।” इसे कैसे कर सकते हैं? “सत्य की [सही-सही] पहिचान” करने के ज़रिए। (तीतुस १:१) पुराने ज़माने के बीरिया शहर में रहनेवाले लोगों ने सुनी हुई बातों को बस आँखें मूँदकर स्वीकार नहीं कर लिया। इसके बजाय, वे “प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें [जो वे सीख रहे थे] योंहीं हैं, कि नहीं।”—प्रेरितों १७:११.

एक मसीही युवती एरिन ने भी यही करने की ठानी। वह बताती है: “मैंने रिसर्च की। मैंने खुद से पूछा, ‘मैं कैसे मानूँ कि यही सच्चा धर्म है? मैं यह कैसे जानूँ कि सचमुच एक परमेश्‍वर है जिसका नाम यहोवा है?’” क्यों न अपना खुद का स्टडी प्रोग्राम शुरू करें? आप बाइबल पर आधारित किताब ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है से शुरुआत कर सकते हैं।b उसे ध्यान से पढ़िए। दिए गए सभी वचन पढ़िए और देखिए कि जो कहा गया है उससे इनका क्या संबंध है। “अपने आप को . . . ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न करें, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।” (२ तीमुथियुस २:१५) जब आप ऐसा करेंगे तब आप पाएँगे कि आप अब सच्चाई के बारे में वाकई कितना अलग महसूस करते हैं।

प्रेरित पतरस ने कहा कि बाइबल की कुछ बातें ऐसी हैं “जिनका समझना कठिन है।” और आप खुद इसका अनुभव भी करेंगे। (२ पतरस ३:१६) मगर परमेश्‍वर की आत्मा आपको मुश्‍किल-से-मुश्‍किल बातें भी समझने में मदद दे सकती है। (१ कुरिन्थियों २:११, १२) अगर कुछ समझने में आपको दिक्कत हो रही है तो परमेश्‍वर से मदद के लिए प्रार्थना कीजिए। (भजन ११९:१०, ११, २७) वॉच टावर संस्था की कुछ किताबों में और भी रिसर्च करने की कोशिश कीजिए। अगर आपको रिसर्च करना नहीं आता, तो किसी से मदद माँगिए। आपके मम्मी-डैडी या कलीसिया के दूसरे प्रौढ़ भाई-बहन आपकी मदद कर सकते हैं।

याद रहे कि आप दिखावे के लिए या ढींग मारने के लिए स्टडी नहीं कर रहे। कोलिन नाम का एक जवान कहता है: “आपको यहोवा के गुण पता चलेंगे।” आपने जो कुछ पढ़ा है उस पर मनन करने के लिए कुछ समय अलग निकालिए, ताकि ये बातें आपके दिल में समा जाएँ।—भजन १:२, ३.

मसीही सभाओं में अपने भाई-बहनों से साथ मिलने-जुलने से भी आपको मदद मिल सकती है। इसीलिए तो प्रेरित पौलुस ने लिखा कि कलीसिया “सत्य का खंभा” है। (१ तीमुथियुस ३:१५) कुछ जवानों की शिकायत है कि मसीही सभाएँ बोरिंग होती हैं। “लेकिन अगर आप मिटिंग्स की तैयारी नहीं करोगे,” जवान कोलिन याद दिलाता है, “तो इनसे आपको ज़्यादा फायदा नहीं होगा।” सो पहले ही सभाओं की तैयारी कीजिए। सभाएँ ज़्यादा दिलचस्प होती हैं जब आप बस बैठकर सुनते नहीं, मगर हिस्सा लेते हैं।

स्टडी करने के लिए वक्‍त नहीं है?

यह सच है कि आपको स्कूल का और घर का काम होता है, और इसलिए स्टडी करने के लिए वक्‍त निकालना एक बहुत बड़ी चुनौती हो सकती है। एक युवती, सूज़न ने लिखा: “मुझे अरसों से पता था कि मुझे मिटिंग्स की तैयारियाँ करनी चाहिए, पर्सनल स्टडी करनी चाहिए। मगर मैं कभी कर न सकी।”

सूज़न ने ‘अवसर को बहुमोल समझकर’ कम महत्त्वपूर्ण कामों से समय निकालना सीखा। (इफिसियों ५:१५, १६) सबसे पहले तो उसने जो स्टडी करना था उसकी पूरी लिस्ट बनाई। फिर, उसने उन्हें स्टडी करने का समय तय किया। मगर उसने अपने शॆड्यूल में खेलकूद के लिए भी कुछ समय अलग रखा। उसकी सलाह है: “थोड़ा समय खाली भी रखिए। हम सभी को रिलैक्स करने के लिए वक्‍त तो चाहिए ही।” शायद अपने लिए शॆड्यूल बनाने से आपको भी फायदा हो।

सीखी हुई बातें दूसरों को बताना

आपने जो सीखा है उसे इस्तेमाल करना खासकर उसे अपना बनाने के लिए ज़रूरी है। कोशिश कीजिए कि आप सीखी हुई बातें दूसरों को सिखाएँ। भजनहार ने कहा: “मेरे मुंह से बुद्धि की बातें निकलेंगी; और मेरे हृदय की बातें समझ की होंगी।”—भजन ४९:३.

अगर आप सुसमाचार से नहीं लजाते, तो आप इसे अपने स्कूल के दोस्तों और दूसरों को बताने से नहीं झिझकेंगे। (रोमियों १:१६) मौके का फायद उठाकर दूसरों को सच्चाई बताने से आप जो सीखते हैं उसका इस्तेमाल करेंगे; और इस तरह आप सच्चाई को अपने दिलो-दिमाग में बिठाएँगे।

अपने दोस्तों से होशियार

पहली सदी के कुछ मसीहियों ने काफी अच्छी आध्यात्मिक प्रगति की। मगर प्रेरित पौलुस को जल्द ही उन्हें लिखना पड़ा। उसने उनसे पूछा: “किस ने तुम्हें रोक दिया, कि सत्य को न मानो”? (गलतियों ५:७) ऐलॆक्स के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। वह कबूल करता है “गलत दोस्तों के साथ दोस्ती करने” की वज़ह से उसकी अपनी बाइबल स्टडी पर बहुत बुरा असर पड़ा। सो अगर आप आध्यात्मिक रूप से बढ़ना चाहते हैं तो आपको भी इस मामले में परिवर्तन करने होंगे।

दूसरी ओर, अच्छे साथी आगे बढ़ने में आपकी मदद कर सकते हैं। नीतिवचन २७:१७ कहता है: “जैसे लोहा लोहे को चमका देता है, वैसे ही मनुष्य का मुख अपने मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है।” अच्छे आदर्श तलाशिए—ऐसे लोग जो सच्चाई पर चलते हैं। शायद आपको अपने घर में ही वे आदर्श मिल जाएँ। युवा जॆनिफर याद करती है: “मेरे नानाजी मेरे लिए सबसे अच्छी मिसाल थे। वे हर संडे काँग्रीगेशन बाइबल स्टडी की तैयारी में हमेशा तीन घंटे बिताते थे। अगल-अलग बाइबल में उस लेसन के वचन देखते थे और अपनी डिक्शनरी में शब्दों को चेक करते थे। वे बाइबल की छोटी-से-छोटी बातों में भी एक्सपर्ट थे। उनसे कुछ भी पूछिए, और वे जवाब ढूँढकर बता देंगे।”

जब आप सच्चाई को अपना बनाते हैं, तो आपको एक बेशकीमती चीज़ मिलती है—ऐसी चीज़ जो आप किसी हालत खोना या बेचना नहीं चाहेंगे। सो सच्चाई को सिर्फ “अपने मम्मी-डैडी का धर्म” मत समझिए। आपका भरोसा और विश्‍वास भी वैसा ही होना चाहिए जैसा भजनहार का था। उसने कहा: “मेरे माता-पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।” (भजन २७:१०) बाइबल जो सिखाती है उसे अच्छी तरह जानकर, उस पर विश्‍वास करके, अपने विश्‍वास को दूसरों को बताकर, और सबसे बढ़कर अपने विश्‍वास के अनुसार जीकर आप दिखाएँगे कि आपने सच्चाई को अपना बना लिया है।

[फुटनोट]

a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित साँगबुक सिंग प्रेज़ॆज़ टू जॆहोवा से।

b वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित

[पेज 14 पर तसवीर]

खुद रिसर्च और पर्सनल स्टडी करके सच्चाई का खुद को यकीन दिलाइए

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