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  • यहोवा के लिए गवाही दो और थक न जाओ

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  • यहोवा के लिए गवाही दो और थक न जाओ
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1990
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1990
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1990
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यहोवा के लिए गवाही दो और थक न जाओ

“उस पर ध्यान करो, जिस ने . . . पापियों का इतना वाद-विवाद सह लिया, कि तुम निराश होकर हियाव न छोड़ दो।”—इब्रानियों १२:३

१, २. यीशु ने उसके शिष्यों को कौनसा विश्‍वासोत्पादक प्रमाण दिया कि उसका पुनरुत्थान किया गया था?

“मैंने प्रभु को देखा है!” इन चौंकानेवाले शब्दों से मरियम मगदलीनी ने यीशु के पनरुत्थान के समाचार को घोषित किया। (यूहन्‍ना २०:१८) यह उन चालीस दिनों की शुरुआत को चिन्हित किया, जो मसीह के शिष्यों के लिए, जो पहले उसकी मृत्यु से दुःखी हुए थे, उत्तेजक घटनाओं से भरा हुआ था।

२ यीशु अपने शिष्यों के मन में कोई भी संदेह नहीं छोड़ना चाहता था कि वह वास्तव में जीवित था। इस प्रकार, जैसे लूका वर्णन करता है: “दुःख उठाने के बाद बहुत से पक्के प्रमाणों से [यीशु ने] अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा।” (प्रेरितों के काम १:३) वस्तुतः, एक बार वह “पाँच सौ से अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिया।” (१ कुरिन्थियों १५:६) अवश्‍य, अब तो संदेह के लिए जगह ही नहीं थी। यीशु जीवित था!

३. राज्य के सम्बन्ध में यीशु के शिष्यों ने कौन-सा प्रश्‍न पूछा, और उसके उत्तर ने उन्हें क्यों आश्‍चर्यचकित किया?

३ उस समय यीशु के शिष्य केवल एक पार्थिव “परमेश्‍वर के राज्य” के बारे में सोच रहे थे, जो इस्राएल को वापस दिया जाएगा। (लूका १९:११; २४:२१) इसलिए उन्होंने यीशु से पूछा: “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल को राज्य फेर देगा?” निस्सन्देह उसका उत्तर उन्हें आश्‍चर्यचकित कर दिया, क्योंकि उसने कहा: “उन समयों या कालों को जानना, जिन को पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं। परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होंगे।” (प्रेरितों के काम १:६-८) शिष्यों के सामने क्या ही एक चुनौती थी! और कैसा उत्तरदायित्व! कैसे वे ऐसा एक कार्य सम्पादित कर सकते थे? इसका उत्तर जल्द ही एक आश्‍चर्यजनक रीति से आ गया।

चुनौती को स्वीकार करना

४. यह वर्णन करें कि पिन्तेकुस्त के दिन क्या हुआ।

४ लूका वर्णन करता है: “जब पिन्तेकुस्त का दिन आया, तो वे सब एक जगह इकट्ठे थे। और एकाएक आकाश से बड़ी आँधी की सी सनसनाहट का शब्द हुआ, और उस से सारा घर जहाँ वे बैठे थे, गूंज गया। और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं। और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।” आवाज़ इतनी ऊँची थी कि वह, पर्ब के लिए यरुशलेम में रुके हुए यहुदियों की भीड़ का ध्यान आकर्षित किया। वे ‘अपनी अपनी भाषा में उन से परमेश्‍वर की बड़ी बड़ी कामों की चर्चा सुनने’ पर आश्‍चर्यचकित हो गए।—प्रेरितों के काम २:१-११.

५. प्रेरित १:८ की यीशु की भविष्यवाणी किस कदर तक पूर्ण हुई?

५ पतरस ने समय न गँवाते हुए एक परिवर्तनात्मक भाषण दिया, यह सिद्ध करते हुए कि “यीशु नासरी”, जिसे उन्होंने खुँटे पर चढ़ाया था, वही “प्रभु” था जिसकी दाउद ने इन शब्दों में भविष्यवाणी की थी: “यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा: ‘मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों तले की चौकी न कर दूं।’” अत्यन्त दुःखी हो जाने से, पतरस के सुननेवाले पूछते हैं: “हे भाईयों, हम क्या करें?” जवाब में पतरस ने उन्हें उकसाया: “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले।” परिणाम? तीन हज़ार ने बपतिस्मा लिया! (प्रेरितों के काम २:१४-४१) इससे पहले ही, यरुशलेम में गवाही दी जा रही थी। इसके बाद यह सम्पूर्ण यहूदिया, फिर समरिया, और अन्त में “पृथ्वी की छोर तक” फैल गयी। राज्या-प्रचार कार्य का प्रसार इतना तेज़ था कि करीब सामान्य युग ६० में प्रेरित पौलुस कह सका कि सुसमाचार का प्रचार “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया।”—कुलस्सियों १:२३.

राज्य प्रसार और उत्पीड़न

६, ७. (अ) राज्य प्रसार और मसीहियों का उत्पीड़न पहली सदी के दौरान कैसे साथ-साथ रहा? (ब) यरुशलेम के मसीहियों के बीच कौनसा अत्यावश्‍यक ज़रूरत आ गयी, और इस आवश्‍यकता को कैसे पूर्ण किया गया?

६ सामान्य युग पिन्तेकुस्त ३३ के तुरन्त बाद, यीशु के शिष्यों को उसके शब्दों का स्मरण करने की आवश्‍यकता हुई: “दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता। यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे।” (यूहन्‍ना १५:२० न्यू. व.) जब “परमेश्‍वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गयी” तब यहूदी अगुए बहुत क्रोधित हुए। झूठे आरोपों पर स्तीफानूस को पत्थर मारकर मार डाला गया। यह वह चिन्ह प्रतीत हआ है जिसकी बहुतों द्वारा प्रतीक्षा की गयी थी, क्योंकि “उसी दिन यरूशलेम की कलीसिया पर बड़ा उपद्रव होने लगा और प्रेरितों को छोड़ सब के सब यहूदिया और सामरिया देशों में तित्तर बित्तर हो गए।”—प्रेरितों के काम ६:७; ७:५८-६०; ८:१.

७ अस्थायी रूप से उत्पीड़न समाप्त हो गया। लेकिन थोड़े ही समय के बाद हेरोद अग्रिप्पा I ने प्रेरत याकूब की हत्या की। पतरस को गिरफ्तार किया गया लेकिन एक स्वर्गदूत द्वारा छुडाया गया। इसके बाद, यरूशलेम के भाई भौतिक रूप से दरिद्र हो गए, और अन्य जगहों के भाइयों द्वारा सहायता भेजी जानी पड़ी। (प्रेरतों के काम ९:३१; १२:१-११; १ कुरिन्थियों १६:१-३) धार्मिक मतान्धता प्रत्यक्ष था, जब प्रेरित पौलुस की यरुशलेम की एक भेंट के दौरान एक भीड़ ने ऐसे चिल्लाया: “ऐसे मनुष्य का अन्त करो; उसका जीवित रहना उचित नहीं।” (प्रेरितों के काम २२:२२) अवश्‍य, उन मसीहियों को जो यरूशलेम और यहूदिया में जी रहे थे, राज्य की गवाही विश्‍वसनीय रीति से देते रहने के लिए काफी प्रोत्साहन की आवश्‍यकता थी। यीशु ने उसके शिष्यों को वचन दिया था कि वह “पवित्र आत्मा जो पिता मेरे नाम से भेजेगा” एक “सहायक” के रूप में कार्य करेगा। (यहून्‍ना १४:२६) लेकिन अब पिता ऐसी आवश्‍यक सहायता या सांतवना कैसे प्रदान कर सकता है? अंशतः उत्तर प्रेरित पौलुस के द्वारा था।

इब्रानियों के लिए पौलुस का पत्र

८. (अ) इब्रानियों को पत्र लिखने के लिए पौलुस को क्या प्रेरित किया? (ब) उसके पत्र के किस पहलू को हम देखनेवाले हैं और क्यों?

८ करीब सा.यू. ६१ में, पौलुस को रोम में गिरफ्तार किया गया था, किन्तु वह इस बात से अवगत था कि यरूशलेम में उसके भाइयों पर क्या बीत रहा था। इसलिए, यहोवा की आत्मा के निर्देशन के अनुसार, उन्होंने इब्रानियों के लिए उसकी समयोचित चिट्ठी लिखी। वह उनके इब्रानी भाइयों और बहनों के प्रति प्रेममय चिन्ता से भरी हुई है। पौलुस जानता था कि यहोवा में, उनके सहायक के रूप में, विश्‍वास और भरोसा का निर्माण करने के लिए उन्हें क्या आवश्‍यक था। तब वे ‘उस दौड़ में जिसमें दौड़ना है, धीरज से दोड़ सकते हैं’ और विश्‍वासपूर्वक कह सकते हैं: “यहोवा मेरा सहायक है; मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है?” (इब्रानियों १२:१; १३:६, न्यू.व.) इब्रानियों (अध्याय ११-१३) के लिए पौलुस के पत्र के इस पहलू पर हम अब हमारा ध्यान केंद्रित करना चाहेंगे। क्यों? क्योंकि वह परिस्थिति जिनका वे प्राचीन मसीहियों ने सामना की, वही परिस्थितियों के समान है जो आज यहोवा के गवाहों के द्वारा सामना किया गया है।

९. वह कौन-सा विषय है जो पहली सदी के मसीहियों के और आज के मसीहियों के सामने है, और उसका सामना केवल कैसे किया जा सकता है?

९ हमारी पीढ़ी के दौरान, हज़ारों ने अपने आप को यहोवा के लिए समर्पित करने के और उसके गवाहों के रूप में बपतिस्मा लेने के द्वारा राज्य संदेश की ओर सकारात्मक रीति से अनुक्रिया दिखाया है। लेकिन, सच्ची उपासना के यह प्रसार के साथ हिंसक उत्पीड़न आ गया, जिस में कई मसीहियों ने उनके जीवन को खोया जैसे कि, स्तीफानूस, याकूब, और पहली सदी के अन्य गवाह के साथ हुआ। इसलिए विषय अब भी वही है जो तब था: राज्य संदेश की ओर बढ़ते हुए विरोध के सामने कौन अपनी खराई की परीक्षा का सामना कर सकेगा? इसके अतिरिक्‍त, कौन उन विस्मयकारी घटनाओं का सामना कर सकेगा जब वह निरुपम “बड़ी क्लेश” जल्द ही इस वर्तमान पीढ़ी पर आ जाएगी? (मत्ती २४:२१) जवाब है, वे जो “विश्‍वास की अच्छी कुश्‍ती लड़ने” के लिए तैयार हैं, वे जो “विश्‍वास में दृढ़ हैं”। यही वे लोग हैं जो अन्त में कह सकेंगे: “वह विजय जिस से संसार पर जय प्राप्त होती है, हमारा विश्‍वास है।”—१ तीमुथियुस ६:१२; १ पतरस ५:९; १ यूहन्‍ना ५:४.

वफादार उदाहरणों से लाभ उठाना

१०. (अ) विश्‍वास क्या है? (ब) पुराने समय के वफादार पुरुषों और स्त्रियों के बारे में परमेश्‍वर को कैसे महसूस हुआ?

१० विश्‍वास क्या है? पौलुस उत्तर देता है: “अब विश्‍वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्‍चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है। क्योंकि इसी के विषय में प्राचीनों की अच्छी गवाही दी गई।” (इब्रानियों ११:१, २) पौलुस विश्‍वास को कार्य के द्वारा प्रदर्शित करने से विश्‍वास की परिभाषा का समर्थन करता है। वह कुछ “प्राचीनों” और साथ ही साराह और राहाब जैसे स्त्रियों के जीवन की मुख्य बातों को ले लेता है। यह जानना कितना प्रोत्साहनदायक है कि “परमेश्‍वर उन का परमेश्‍वर कहलाने में उन से नहीं लजाता”! (इब्रानियों ११:१६) क्या परमेश्‍वर हमारे बारे में भी हमारे विश्‍वास के कारण ऐसे ही कह सकता है? हर दिन जब समाप्त होता है, हम उसे हमारे कारण लज्जित होने का कोई कारण ना दें।

११. हम कैसे “गवाहों का ऐसा बड़ा बादल” से लाभ उठा सकते हैं?

११ इन वफादार पुरुषों और स्त्रियों का वर्णन करने के पश्‍चात हुए, पौलुस कहता है: “इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु, और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिस में हमें दोड़ना है, धीरज से दौड़े।” (इब्रानियों १२:१) यद्यपि ये अब कबर में सो रहे हैं, क्या ये उदाहरणीय वफादार गवाह हमारे मन में जीवित हैं? क्या आप उनको और उनके अनुभवों के बारे में अच्छी तरह जानते हैं कि आप, हाँ, में उत्तर दे सकते हैं? नियमित बाइबल अध्ययन के कई प्रतिफलों में यह एक है, जिससे हम “गवाहों का ऐसा बड़ा बादल” के उत्तेजक अनुभवों का पुनः अनुभव कर सकेंगे। यह सच है, कि उनके वफादार उदाहरण को अपने दिल में प्रभाव डालने से कोई विश्‍वास की कमी पर विजय पाने के लिए हमें बहुत सहायता दे सकती है। परिणामस्वरूप, यह हमें किसी भी परिस्थिति में सच्चाई की एक साहसी ओर निर्भय गवाही देने में मदद करेगी।—रोमियों १५:४.

थक नहीं जाना

१२. (अ)कैसे यीशु का उदाहरण हमें ‘निराश होकर हियाव छोड़ न देने’ में मदद करेगा? (ब) न थकनेवालों के कुछ वर्तमान उदाहरण कौन-कौन-से हैं?

१२ विश्‍वास का सब से बड़ा उदाहरण यीशु है। पौलुस उकसाता है: “वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़े, और विश्‍वास के कर्त्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की और एकाग्रता से ताकते रहें। . . . इसलिए उस पर ध्यान करों, जिस ने अपने विरोध में पापियों का इतना वाद-विवाद सह लिया, कि तुम निराश होकर हियाव न छोड़ दो।” (इब्रानियों १२:१-३, न्यू.व.) यीशु के उदाहरण पर आपने कितना “ध्यान” दिया है? उसकी ओर आप कितनी “एकाग्रता” से ताकते हैं? (१ पतरस २:२१) शैतान चाहता है कि हम ‘निराश होकर हियाव छोड़ दे।’ वह यह इच्छा रखता है कि हम गवाही देने का यह कार्य बन्द कर दें। वह ऐसे कैसे करता है? कभी-कभी पहली सदी के समान धार्मिक और सांसारिक अधिकारियों की ओर से साफ विरोध के द्वारा। गए वर्ष कुछ ४० देशों में राज्य प्रचार कार्य पर प्रतिबन्ध लगाया गया था। लेकिन क्या यह हमारे भाइयों को थक जाने का कारण बन गया? जी नहीं! १९८८ में उन देशों में उनके वफादार कार्य के कारण १७,००० से अधिक व्यक्‍तियों ने बपतिस्मा लिया। यह उन सब के लिए जो उन देशों मे जी रहे हैं जहाँ तुलना में कम स्वतंत्रता है, क्या ही एक प्रोत्साहन है! हम कभी भी राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने में थक न जाए!

१३. (अ) हमारे प्रचार कार्य में थका देनेवाली कुछ गूढ़ बातें क्या हैं? (ब) ‘यीशु के सामने रखा गया आनन्द’ क्या था, और हम एक समान आनन्दपूर्ण मनोवृत्ति कैसे पा सकते हैं?

१३ किन्तु, कुछ दूसरी भी गूढ़ बातें हैं जिस के कारण हम थक सकते हैं। इन में एक विभाजित परिवार की ओर से उत्पीड़न, मानसिक तनाव, स्वास्थ्य की समस्याएं, साथियों से दबाव, हमारे प्रचार कार्य में सकारात्मक परिणाम की कमी के कारण निरुत्साह, या शायद इस व्यवस्था का अन्त अब तक न आने से बेचैनी का एक भाव सम्मिलित हैं। खैर, यीशु को मानसिक और शारीरिक पीड़ा सहने में किस बात ने मदद की? वह बात “उस आनन्द के लिए जो उसके आगे धरा था” थी। (इब्रानियों १२:२) यीशु को उस आनन्द ने बल दिया जो उसके पिता के दिल को, उसका समर्थन करने के द्वारा, खुश कर सकता है और मसीही राज्य की उत्कृष्ट आशिषों को प्रदान करने से अनुभव किये जानेवाले आनन्द की प्रतीक्षा करेनेवाला था। (भजन २:६-८; ४०:९, १०; नीतिवचन २७: ११) क्या हम अधिक एकाग्रता से यीशु के इस उदाहरण पर ध्यान दे सकते हैं? और १ पतरस ५:९ में पतरस का आश्‍वासन का स्मरण करो: “तुम्हारे भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुःख भुगत रहे हैं।” यह जानना कि यहोवा समझ रहा है, विश्‍वव्यापी भातृत्व का स्नेह अनुभव करना, और राज्य शासन के अधीन उन खुशियों पर अपनी निगाहें रखना—यह सब हमें यहोवा की सेवा विश्‍वास के साथ करने से और जब अन्त इतना निकट है प्रचार करने से थक नहीं जाने में सहायता देगी।

यहोवा क्यों अनुशासित करता है

१४. उन परीक्षाओं और सताहटों से, जिसका हमें सामना करना पड़ेगा उससे क्या परिणाम निकलेगा?

१४ पौलुस अब उस बात पर रोशनी डालता है जिसके कारण हमें परीक्षाएँ और सताहटों का सामना करना पड़ सकता है। वह यह सुझाव देता है कि हम उन्हें अनुशासन के रूप में देखें। पौलुस समझाता है: “हे मेरे पुत्र, यहोवा की ताड़ना को हलकी बात न जान, ओर जब वह तुझे धुड़के तो हियाव न छोड़। क्योंकि यहोवा, जिस से प्रेम करता हे; उस की ताड़ना भी करता हे।” (इब्रानियों १२:५, ६, न्यू.व.) यीशु ने भी “दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी।” (इब्रानियों ५:८) अवश्‍य, हमें भी आज्ञाकारिता सीखने की आवश्‍यकता है। अनुशासन को अपने आप असर करने देने के फायदों पर ध्यान दो। पौलुस ने कहा: “जो उस को सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता हे।” यह कितना प्रोत्साहनदायक है!—इब्रानियों १२:११.

१५. ‘हमारे पांवों के लिए सीधे मार्ग बनाने’ के पौलुस के सलाह को हम कैसे लागू कर सकते हैं?

१५ अगर हम “यहोवा की ताड़ना” इस दृष्टि से स्वीकार करते हैं तो हम पौलुस का यह सकारात्मक सलाह पर गंभीरतापूर्वक विचार करेंगे: “इसलिए ढ़ीले हाथों और निर्बल घुटनों को सीधे करो। ओर अपने पांवों के लिये सीधे मार्ग बनाओ।” (इब्रानियों १२:१२, १३) कभी कभी ‘जीवन को पहुँचानेवाला सकेत और सकरा मार्ग’ से विचलित होना बहुत आसान है। (मत्ती ७:१४) प्रेरित पतरस और अन्ताकिया के कुछ दूसरे इसके दोषी बनें। क्यों? क्योंकि “वे सुसमाचार की सच्चाई पर सीधी चाल नहीं चल” रहे थे। (गलतियों २:१४) आज हमें हमारे महान उपदेशक, यहोवा परमेश्‍वर की सुनते रहना है। हमें “विश्‍वासी और बुद्धिमान दास” द्वारा दी गयी सभी सहायताओं का पूर्ण उपयोग करने की आवश्‍यकता है। यह हमारे पांवों के लिए एक ‘सीधा मार्ग’ निश्‍चित करेगा।—मत्ती २४:४५-४७; यशायाह ३०:२०, २१.

१६. (अ) एक मण्डली में एक “कड़वी जड़” कैसे स्थापित हो सकती है? (ब) पौलुस क्यों अनैतिकता को पवित्र बातों की ओर मूल्यांकन की कमी के साथ मिलाता है, और हम अपने आप को ऐसे खतरों से कैसे बचा सकते हैं?

१६ पौलुस फिर हमें यह चेतावनी देता है कि “ध्यान से देखते रहो, ऐसा न हो, कि कोई परमेश्‍वर के अनुग्रह से वंचित रह जाए, या कोई कड़वी जड़ फूटकर कष्ट दे, और उसके द्वारा बहुत से लोग अशुद्ध हो जाएं।” (इब्रानियों १२:१५) जिस रीति से मण्डली में कार्य सम्पादित किया जा रहा है उससे असन्तुष्ट, चिड़चिड़ा, या दोष की खोज करना एक “कड़वी जड़” के समान बन सकता है जो तेज़ी से फैल सकती है और मण्डली के दूसरों के हितकर विचारों को भी विषाक्‍त कर सकता है। हम उन अनगिनत आशिषों पर विचार करने के द्वारा जो सच्चाई ने हमारे जीवन में लाया है, ऐसे नकारात्मक विचारों का विरोध कर सकते हैं। (भजन ४०:५) एक और खतरा अनैतिक प्रवृत्तियाँ होने या ‘एसाव की नाई पवित्र बातों के लिए मूल्यांकन की कमी’ है। (इब्रानियों १२:१६) पौलुस इन दो खतरों के बीच सम्बन्ध स्थापित करता हे क्योंकि इन में से एक दूसरे की ओर ले जा सकता है। कोई भी मसीही ऐसी स्वार्थी अभिलाषाओं से पराजित नहीं होंगा अगर वह पतरस के इन शब्दों का विनियोग करेगा: “विश्‍वास में दृढ़ होकर, [शैतान] का साम्हना करो।” (१ पतरस ५:९, न्यू.व)

“अनदेखी वास्तविकताएं”

१७. सीनाई पर्बत पर हुई विस्मयकारी घटनाओं का उन घटनाओं से तुलना करो जो आज मसीहियों के सामने है।

१७ हमारा विश्‍वास उन “अनदेखी वास्तविकताओं” पर बहुत निर्भर है। (इब्रानियों ११:१, न्यू.व) इन अनदेखी वास्तविकताओं में से कुछों के बारे में पौलुस इब्रानियों १२:१८-२७ में बताता है। वह सीनाई पर्बत पर की आश्‍चर्यजनक घटनाओं का वर्णन करता है जब परमेश्‍वर ने सीधा इस्राएल से बात की और जब मूसा ने कहा कि: “मैं बहुत ड़रता और कांपता हूँ।” प्रेरित फिर आगे कहता है: “पर तुम सिय्योन के पहाड़ के पास, और जीवते परमेश्‍वर के नगर स्वर्गीय यरूशलेम के पास। और लाखों स्वर्गदूतों और उन पहिलौठों की साधारण सभा . . . के पास आए हो।” सीनाई पर्बत के उन प्राचीन इस्राएलियों के उदाहरण में पौलुस कहता है कि परमेश्‍वर की आवाज़ ने पृथ्वी को हिला दिया लेकिन अब उसने यह कहते हुए प्रतिज्ञा की है: “एक बार फिर मैं केवल पृथ्वी को नहीं, बरन आकाश को भी हिला दूंगा।” यद्यपि ये शब्द मुख्यतः अभिषिक्‍त मसीहियों के नाम सम्बोधित है वह अन्य भेड़ समान लोगों की वह “बड़ी भीड़” को भी इन शब्दों का स्वीकार कर सकते हैं। (प्रकाशितवाक्य ७:९) क्या आप पूरी तरह यह समझ रहे हैं कि पौलुस क्या कह रहा है? हम हज़ारों स्वर्गदूतों की एक सभा के सामने खड़े हैं। अवश्‍य, हम यहोवा के सामने भी खड़े हैं। उसके दहिनी ओर यीशु मसीह है। सचमुच, हम सीनाई पर्बत के उन प्राचीन इब्रानियों से भी एक अधिक विस्मयकारी स्थान में हैं और एक अधिक महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी के अधीन है! और यह याद कीजिए कि हरमगिदोन के आनेवाले युद्ध में का हिलाना यह वर्तमान स्वर्ग और पृथ्वि को मिटा देगा। आज का समय निश्‍चय ही परमेश्‍वर के वचन को सुनने और उसका पालन करने से “छुटकारा पाने” का समय है!

१८. हम केवल किस तरह यहोवा के लिए गवाही देते रह सकते हैं, बिना थक जाते हुए?

१८ सचमुच, हम मानवीय इतिहास का सब से विस्मयकारी समय में जी रहे हैं। यहोवा के गवाहों के रूप में, हमें परमेश्‍वर के स्थापित राज्य का सुसमाचार का प्रचार करने के लिए पृथ्वी के दूरस्थ भागों मे भेजे गए हैं। ऐसा करने के लिए हमें एक ऐसे विश्‍वास की आवश्‍यकता है जिसे हिलाया नहीं जा सकता, एक ऐसा विश्‍वास जो थक नहीं जाता, एक ऐसा विश्‍वास जो हमें यहोवा के अनुशासन को स्वीकार करने के योग्य बनाएगा। अगर हमारे पास ऐसा विश्‍वास है तो हम उन में पाए जाएंगे जो “उस अनुग्रह को हाथ से न जाने दें, जिस के द्वारा हम भक्‍ति, और भय सहित, परमेश्‍वर की ऐसी आराधना कर सकते हैं जिस से वह प्रसन्‍न होता हे.” (इब्रानियों १२:२८) जी हाँ, और हम यहोवा के लिए गवाही देते रहेंगे और थक नहीं जाएंगे।

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ इब्रानियों के लिए पौलुस का पत्र हमारे लिए क्यों लाभदायक है?

◻ आज मसीहियों को कौन-से विषय का सामना करना पड़ेगा?

◻ अतीत के वफादार गवाहों से हम कैसे लाभ उठा सकेंगे?

◻ यहोवा उन्हें क्यों अनुशासन देता है जिन से वह प्रेम करता है?

◻ बिना थक जाते हुए गवाही कार्य करने की कुँजी क्या है?

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