अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए यहोवा पर भरोसा रखिए
“धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” —भजन ३७:२९.
१. मनुष्यों और इस पृथ्वी के लिए यहोवा का क्या उद्देश्य है?
जब यहोवा ने हमारे प्रथम माता-पिता, आदम और हव्वा को सृजा, उसने उन्हें परिपूर्ण बनाया। और उसने उन्हें इसलिए बनाया कि वे इस पृथ्वी पर सर्वदा जीवित रह सकें—यदि वे उसके नियमों का पालन करते। (उत्पत्ति १:२६, २७; २:१७) इसके अतिरिक्त, परमेश्वर ने उन्हें परादीसीय परिस्थितियों में रखा। (उत्पत्ति २:८, ९) यहोवा ने उन से कहा: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो।” (उत्पत्ति १:२८) अतः, उनकी सन्तान अन्त में पृथ्वी-भर में भर जाती, और यह ग्रह परिपूर्ण, ख़ुश मानवजाति से भरा हुआ एक परादीस बन जाता। मानव परिवार की क्या ही उत्तम शुरूआत थी! “परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।”—उत्पत्ति १:३१.
२. मानवजाति की अवस्था कौनसे प्रश्न खड़े करती है?
२ फिर भी, हज़ारों साल से मानवजाति जिस अवस्था में है वह परमेश्वर के मूल उद्देश्य की समानता में नहीं है। मानवजाति परिपूर्णता से कहीं दूर है और निश्चित ही ख़ुश नहीं है। संसार की परिस्थितियाँ दुःखद हैं, और जैसे भविष्यवाणी की गई थी वे हमारे समय में उल्लेखनीय रूप से बिगड़ गई हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५, १३) तो हम किस प्रकार निश्चित हो सकते हैं कि मनुष्यों के लिए परमेश्वर का उद्देश्य निकट भविष्य में पूरा होगा? क्या दुःखद परिस्थितियों में ही अभी और लम्बी समय-अवधियाँ बीतेंगी?
क्या ग़लत हो गया?
३. यहोवा ने मानवजाति के विद्रोह का अन्त तुरंत ही क्यों नहीं किया?
३ जिनके पास परमेश्वर के उत्प्रेरित वचन का यथार्थ ज्ञान है वे जानते हैं कि यहोवा ने पृथ्वी पर इन बुरी परिस्थितियों को क्यों अनुमति दी है। वे यह भी जानते हैं कि वह उनके बारे में क्या करेगा। बाइबल वृत्तांत से उन्होंने सीखा है कि हमारे प्रथम माता-पिता ने स्वतंत्र-चुनाव की उस अद्भुत देन का दुरुपयोग किया जो परमेश्वर ने मनुष्यों को दी थी। (१ पतरस २:१६ से तुलना कीजिए.) उन्होंने अनुचित रीति से परमेश्वर से स्वतंत्रता का मार्ग चुना। (उत्पत्ति, अध्याय २ और ३) उनके विद्रोह ने अति महत्त्वपूर्ण प्रश्न खड़े किए, जैसे: क्या विश्व सर्वसत्ताधारी के पास मनुष्यों पर शासन करने का अधिकार है? क्या उसका शासन उनके लिए सर्वोत्तम है? क्या परमेश्वर के निरीक्षण के बिना मनुष्यों का शासन सफ़ल हो सकता है? इन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने का निश्चित तरीक़ा यह था कि मानव शासन की शताब्दियाँ गुज़रने दी जाएँ। परिणाम स्पष्ट दिखाएँगे कि क्या मनुष्य अपने रचयिता से अलग होकर सफ़ल हो सकते हैं।
४, ५. (क) मानव द्वारा परमेश्वर के शासन को अस्वीकार करने का क्या परिणाम हुआ है? (ख) समय ने निर्णायक रूप से क्या प्रदर्शित किया है?
४ जब आदम और हव्वा ने परमेश्वर को छोड़ दिया, तो उसने उन्हें परिपूर्णता में बनाए नहीं रखा। उसके सहारे के बिना, वे विकृत होते गए। परिणाम था अपरिपूर्णता, बुढ़ापा, और अन्त में मृत्यु। आनुवंशिकता के नियमों के द्वारा, हमारे प्रथम माता-पिता ने वे हानिकर विशेषताएँ अपने सभी वंशजों को दीं, जिनमें हम भी सम्मिलित हैं। (रोमियों ५:१२) और हज़ारों साल के मानव शासन के परिणाम के बारे में क्या? यह अनर्थकर रहा है, जैसा कि सभोपदेशक ८:९ सच सच कहता है: “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।”
५ समय ने निर्णायक रूप से दिखाया है कि मनुष्यों के पास अपने सृष्टिकर्ता से अलग होकर सफलतापूर्वक अपने मामलों को निर्देशित करने की क्षमता नहीं है। उत्प्रेरित बाइबल लेखक यिर्मयाह ने घोषित किया: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।”—यिर्मयाह १०:२३; व्यवस्थाविवरण ३२:४, ५; सभोपदेशक ७:२९.
परमेश्वर का उद्देश्य नहीं बदला है
६, ७. (क) क्या हज़ारों साल के इतिहास ने यहोवा का उद्देश्य बदल दिया है? (ख) यहोवा के उद्देश्य में क्या सम्मिलित है?
६ क्या हज़ारों साल के मानव इतिहास ने—जो दुष्टता और दुःखों से इतना भरा हुआ है—परमेश्वर का उद्देश्य बदल दिया? उसका वचन कहता है: “यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उस ने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।” (यशायाह ४५:१८) इस प्रकार परमेश्वर ने पृथ्वी को मनुष्यों के बसने के लिए रचा, और वही अब भी उसका उद्देश्य है।
७ यहोवा ने पृथ्वी को सिर्फ़ बसने के लिए ही नहीं बनाया बल्कि उसने यह उद्देश्य भी रखा कि वह एक परादीस बने जिसका आनन्द परिपूर्ण, ख़ुश लोग ले सकें। इसीलिए बाइबल ने पूर्वबताया कि एक “नई पृथ्वी” होगी, एक नया मानव समाज, जिसमें “धार्मिकता बास करेगी।” (२ पतरस ३:१३) और प्रकाशितवाक्य २१:४ में, परमेश्वर का वचन हमें बताता है कि उसके नए संसार में, “वह [मानवजाति] की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी।” ऐसे कारणों के लिए यीशु पृथ्वी पर उस आनेवाले नए संसार को “परादीस” कह सकता था।—लूका २३:४३, NW.
८. हम क्यों विश्वस्त हो सकते हैं कि यहोवा अपना उद्देश्य पूरा करेगा?
८ क्योंकि यहोवा विश्व का सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञानी सृष्टिकर्ता है, कोई भी व्यक्ति उसके उद्देश्य को विफल नहीं कर सकता। “सेनाओं के यहोवा ने यह शपथ खाई है, निःसन्देह जैसा मैं ने ठाना है, वैसा ही हो जाएगा, और जैसी मैं ने युक्ति की है, वैसी ही पूरी होगी।” (यशायाह १४:२४) अतः, जब परमेश्वर कहता है कि वह इस पृथ्वी को एक परादीस बनाएगा जिसमें परिपूर्ण लोग बसेंगे, तो वही होगा। यीशु ने कहा: “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” (मत्ती ५:५; साथ ही भजन ३७:२९ से तुलना कीजिए.) हम उस प्रतिज्ञा की पूर्ति पर विश्वस्त हो सकते हैं और उसके सामंजस्य में कार्य कर सकते हैं। वास्तव में, इसके लिए हम अपनी जान तक जोख़िम में डाल सकते हैं।
उन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा
९. इब्राहीम ने ऐसा क्या किया जिससे यहोवा पर उसका भरोसा दिखा?
९ पूरे इतिहास के दौरान परमेश्वर का भय माननेवाले अनेक लोगों ने पृथ्वी के लिए परमेश्वर के उद्देश्य की ख़ातिर अपनी जान तक जोख़िम में डाली क्योंकि वे विश्वस्त थे कि वह उसे पूरा करेगा। हालाँकि हो सकता है उनका ज्ञान सीमित हो, उन्होंने परमेश्वर पर भरोसा रखा और इस क़िस्म का जीवन व्यतीत किया कि उसकी इच्छा पूरी करें। उदाहरण के लिए, इब्राहीम था जो यीशु के पृथ्वी पर आने से २,००० साल पहले जीया—बाइबल के लेखन की शुरूआत से बहुत पहले। उसने यहोवा पर भरोसा रखा कि वह अपनी प्रतिज्ञाएँ पूरी करेगा। संभव है कि, इब्राहीम ने सृष्टिकर्ता के बारे में अपने वफ़ादार पूर्वज शेम से सीखा था, जो नूह द्वारा सिखाया गया था। इसलिए जब परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा कि कसदियों के समृद्ध उर से निकल कर कनान के अपरिचित और ख़तरनाक देश में जाए, तो वह कुलपिता जानता था कि वह यहोवा पर भरोसा रख सकता था, और इसलिए वह गया। (इब्रानियों ११:८) कुछ समय बाद, यहोवा ने उसे कहा: “मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊंगा।”—उत्पत्ति १२:२.
१०, ११. इब्राहीम अपने एकलौते पुत्र, इसहाक को चढ़ाने के लिए क्यों तैयार था?
१० इब्राहीम को इसहाक पैदा होने के बाद क्या हुआ? यहोवा ने इब्राहीम को संकेत दिया कि इसहाक के द्वारा उसके वंशज एक बड़ी जाति में विकसित होंगे। (उत्पत्ति २१:१२) अतः, यह बड़ा अन्तर्विरोध प्रतीत हुआ होगा जब यहोवा ने इब्राहीम से कहा कि, अपने विश्वास की परीक्षा के रूप में, अपने पुत्र इसहाक को बलिदान करे। (उत्पत्ति २२:२) फिर भी, यहोवा पर पूरा भरोसा रखते हुए, इब्राहीम ने आज्ञा का पालन करने के लिए क़दम उठाए, इसहाक का वध करने के लिए वास्तव में अपनी छुरी उठाई। आख़िरी क्षण, इब्राहीम को रोकने के लिए परमेश्वर ने एक स्वर्गदूत भेजा।—उत्पत्ति २२:९-१४.
११ इब्राहीम इतना आज्ञाकारी क्यों था? इब्रानियों ११:१७-१९ प्रकट करता है: “विश्वास ही से इब्राहीम ने, परखे जाने के समय में, इसहाक को बलिदान चढ़ाया, और जिस ने प्रतिज्ञाओं को सच माना था। और जिस से यह कहा गया था, कि इसहाक से तेरा वंश कहलाएगा; वह अपने एकलौते को चढ़ाने लगा। क्योंकि उस ने विचार किया, कि परमेश्वर सामर्थी है, कि मरे हुओं में से जिलाए, सो उन्हीं में से दृष्टान्त की रीति पर वह उसे फिर मिला।” इसी प्रकार रोमियों ४:२०, २१ कहता है: “[इब्राहीम ने] न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया, . . . और निश्चय जाना, कि जिस बात की [परमेश्वर] ने प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरी करने को भी सामर्थी है।”
१२. इब्राहीम को अपने विश्वास के लिए कैसे प्रतिफल मिला?
१२ न सिर्फ़ इसहाक के बचाए जाने और उसके ज़रिए एक “बड़ी जाति” के आने के द्वारा बल्कि एक और तरीक़े से भी इब्राहीम को अपने विश्वास का प्रतिफल मिला। परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा: “पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।” (उत्पत्ति २२:१८) कैसे? परमेश्वर के स्वर्गीय राज्य का राजा इब्राहीम की वंशावली से आता। वह राज्य शैतान के अधीन इस दुष्ट संसार को चूर चूर करके मिटा देगा। (दानिय्येल २:४४; रोमियों १६:२०; प्रकाशितवाक्य १९:११-२१) तब, राज्य शासन के अधीन साफ़ की गई पृथ्वी पर, विश्वव्यापी रूप से परादीस विकसित किया जाएगा, और ‘सारी जातियों’ से वे लोग जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं परिपूर्ण स्वास्थ्य और अनन्तकालीन जीवन का आनन्द लेंगे। (१ यूहन्ना २:१५-१७) और जबकि इब्राहीम के पास उस राज्य का केवल सीमित ज्ञान था, उसने परमेश्वर पर भरोसा रखा और उसकी स्थापना की प्रतीक्षा की।—इब्रानियों ११:१०.
१३, १४. अय्यूब ने परमेश्वर पर भरोसा क्यों रखा?
१३ कई सैकड़ों साल बाद, अय्यूब था जो सा.यु.पू. १७वीं और १६वीं शताब्दियों के बीच उस स्थान पर रहता था जो अब अरब कहलाता है। वह भी बाइबल के लेखन की शुरूआत से पहले जीया। अय्यूब “खरा और सीधा था और परमेश्वर का भय मानता और बुराई से परे रहता था।” (अय्यूब १:१) जब शैतान ने अय्यूब को एक घृणित, दर्दनाक बीमारी से पीड़ित किया, तो उस वफ़ादार पुरुष ने अपनी पूरी कठिन परीक्षा के दौरान “अपने मुंह से कोई पाप नहीं किया।” (अय्यूब २:१०) अय्यूब ने परमेश्वर पर भरोसा रखा। और जबकि वह विस्तार से नहीं जानता था कि वह इतना दुःख क्यों उठा रहा था, उसने परमेश्वर और उसकी प्रतिज्ञाओं के लिए अपनी जान तक जोख़िम में डाली।
१४ अय्यूब जानता था कि यदि वह मर भी जाए, तो भी परमेश्वर एक दिन उसे पुनरुत्थान के द्वारा जीवन वापस दे सकता था। उसने इस आशा का संकेत दिया जब उसने यहोवा परमेश्वर से कहा: “भला होता कि तू मुझे अधोलोक [क़ब्र] में छिपा लेता, . . . और मेरे लिये समय नियुक्त करके फिर मेरी सुधि लेता। यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? . . . तू मुझे बुलाता, और मैं बोलता।” (अय्यूब १४:१३-१५) पीड़ा में होने के बावजूद, अय्यूब ने यह कहते हुए यहोवा की सर्वसत्ता में विश्वास प्रदर्शित किया: “जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपनी खराई से न हटूंगा।”—अय्यूब २७:५.
१५. दाऊद ने यहोवा के उद्देश्य में अपना विश्वास कैसे व्यक्त किया?
१५ अय्यूब के कुछ छः शताब्दियों बाद और यीशु के पृथ्वी पर आने से लगभग एक हज़ार साल पहले, दाऊद ने एक नए संसार में अपना विश्वास व्यक्त किया। उसने भजन में कहा: “जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वही पृथ्वी के अधिकारी होंगे। थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; . . . परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे। धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” अपनी दृढ़ आशा के कारण, दाऊद ने आग्रह किया: “यहोवा पर भरोसा रख, . . . यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा।”—भजन ३७:३, ४, ९-११, २९.
१६. ‘गवाहों के एक बड़े बादल’ के पास क्या आशा थी?
१६ शताब्दियों के दौरान, वफ़ादार पुरुषों और स्त्रियों के पास पृथ्वी पर अनन्तकाल के जीवन की यही आशा थी। वास्तव में, वे ‘गवाहों का बड़ा बादल’ बने जिन्होंने अति आक्षरिक रूप से यहोवा की प्रतिज्ञाओं के लिए अपनी जान तक ज़ोखिम में डाली। यहोवा के उन प्राचीन गवाहों में से अनेकों को उनके विश्वास के कारण सताया और मार डाला गया, “इसलिये कि उत्तम पुनरुत्थान के भागी हों।” यह कैसे? नए संसार में, परमेश्वर उन्हें प्रतिफल के रूप में उत्तम पुनरुत्थान और अनन्तकाल के जीवन की प्रत्याशा देगा।—यूहन्ना ५:२८, २९; इब्रानियों ११:३५; १२:१.
मसीही गवाह परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं
१७. प्रथम-शताब्दी के मसीहियों ने कितनी दृढ़ता से यहोवा पर भरोसा रखा?
१७ सामान्य युग प्रथम शताब्दी में, यहोवा ने नई-नई स्थापित मसीही कलीसिया को राज्य और पृथ्वी पर उसके शासन के बारे में अधिक विवरण दिया। उदाहरण के लिए, उसकी आत्मा ने प्रेरित यूहन्ना को यह लिखने के लिए उत्प्रेरित किया कि यीशु मसीह के साथ स्वर्ग के राज्य में १,४४,००० लोग होंगे। ये परमेश्वर के वफ़ादार सेवक होंगे जो “पृथ्वी पर से मोल लिए गए थे।” (प्रकाशितवाक्य ७:४; १४:१-४) वे स्वर्ग में मसीह के साथ “राजाओं के रूप में” पृथ्वी पर राज्य करेंगे। (प्रकाशितवाक्य २०:४-६, NW) प्रथम-शताब्दी के मसीहियों ने इतनी दृढ़ता से यहोवा पर भरोसा रखा कि वह स्वर्गीय राज्य और उसके पार्थिव अधिकार-क्षेत्र के विषय अपने उद्देश्य को पूरा करेगा कि वे अपने विश्वास के लिए मरने को तैयार थे। उनमें से अनेकों ने वैसा ही कर दिखाया।
१८. आज यहोवा के गवाह प्राचीन समय के अपने साथियों की नक़ल कैसे करते हैं?
१८ आज, लगभग ५० लाख यहोवा के गवाहों का परमेश्वर पर वैसा ही भरोसा है जैसा कि उनके साथियों का था जो उनसे शताब्दियों पहले रहते थे। इन वर्तमान-दिन के गवाहों ने भी परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के लिए अपनी जान तक जोख़िम में डाली है। उन्होंने अपने जीवन उसे समर्पित किए हैं और उनके पास अपने विश्वास को दृढ़ रखने के लिए पूरी बाइबल है। (२ तीमुथियुस ३:१४-१७) यहोवा के ये आधुनिक-दिन गवाह यीशु के प्रथम-शताब्दी अनुयायियों की नक़ल करते हैं जिन्होंने घोषित किया कि उनके लिए “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।” (प्रेरितों ५:२९) इस शताब्दी में इन मसीही गवाहों में से अनेकों को क्रूरता से सताया गया है। कुछ लोगों को तो उनके विश्वास के कारण मार डाला गया है। दूसरे बीमारी, दुर्घटना, या बुढ़ापे के कारण मरे हैं। लेकिन, बीते समय के वफ़ादार गवाहों के समान, उन्होंने परमेश्वर पर भरोसा रखा क्योंकि वे जानते थे कि पुनरुत्थान के माध्यम से वह अपने नए संसार में उन्हें फिर से जीवन देगा।—यूहन्ना ५:२८, २९; प्रेरितों २४:१५; प्रकाशितवाक्य २०:१२, १३.
१९, २०. हमारे दिन के लिए बाइबल भविष्यवाणी के बारे में हम क्या पहचानते हैं?
१९ यहोवा के गवाह इस बात का मूल्यांकन करते हैं कि उनका हर जाति से निकलकर एक विश्वव्यापी भाईचारे में आना बाइबल भविष्यवाणी में बहुत पहले पूर्वबताया गया था। (यशायाह २:२-४; प्रकाशितवाक्य ७:४, ९-१७) और यहोवा अपने अनुग्रह और सुरक्षा में अन्य सत्हृदय लोगों को भी इकट्ठा करने के लिए उनसे एक विश्वव्यापी प्रचार कार्य करवा रहा है। (नीतिवचन १८:१०; मत्ती २४:१४; रोमियों १०:१३) ये सभी लोग यह जानते हुए कि यहोवा जल्द ही अपना अद्भुत नया संसार लाएगा, उस पर अपना पूरा भरोसा रखते हैं।—१ कुरिन्थियों १५:५८ एवं इब्रानियों ६:१० से तुलना कीजिए.
२० बाइबल भविष्यवाणियाँ सूचित करती हैं कि निर्णायक वर्ष १९१४ से, शैतान का संसार अब लगभग ८० साल से अपने अन्तिम दिनों में है। इस संसार का अन्त निकट है। (रोमियों १६:२०; २ कुरिन्थियों ४:४; २ तीमुथियुस ३:१-५) इसलिए यहोवा के गवाहों के पास साहस और दृढ़ निश्चय है क्योंकि वे जानते हैं कि जल्द ही परमेश्वर का राज्य पूरी पृथ्वी के मामलों पर पूर्ण नियंत्रण कर लेगा। इस वर्तमान दुष्ट संसार का अन्त करने और अपने धार्मिक नए संसार को लाने के द्वारा, परमेश्वर उस बुरी परिस्थिति को पूरी तरह मिटा देगा जो पृथ्वी पर इतनी सारी शताब्दियों से है।—नीतिवचन २:२१, २२.
२१. वर्तमान परेशानियों के बावजूद हम क्यों आनन्दित हो सकते हैं?
२१ तब, अनन्तकाल तक, परमेश्वर हम पर ऐसी आशिषें बरसाने के द्वारा, जो बीते समय में हम को लगी किसी भी चोट को पूरी तरह भर देगी, यह दिखाएगा कि वह हमारी बड़ी परवाह करता है। नए संसार में हमारे साथ इतनी सारी अच्छी बातें होंगी कि हमारी पुरानी परेशानियों की यादें धुँधली हो जाएँगी। यह जानना कितना सांत्वनादायक है कि तब यहोवा ‘अपनी मुट्ठी खोलकर हर जीवित प्राणी की इच्छा पूरी करेगा।’—भजन १४५:१६, NW; यशायाह ६५:१७, १८.
२२. हमें अपना भरोसा यहोवा पर क्यों रखना चाहिए?
२२ नए संसार में, विश्वासी मानवजाति रोमियों ८:२१ की पूर्ति देखेगी: “सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।” वे इस प्रार्थना की पूर्ति देखेंगे जो यीशु ने अपने अनुयायियों को सिखायी थी: “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती ६:१०) इसलिए अपना पूरा भरोसा यहोवा पर रखिए क्योंकि उसकी अचूक प्रतिज्ञा है: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।”—भजन ३७:२९.
आप कैसे उत्तर देंगे?
▫ मनुष्यों और इस पृथ्वी के लिए यहोवा का क्या उद्देश्य है?
▫ परमेश्वर ने पृथ्वी पर बुरी परिस्थितियों को अनुमति क्यों दी है?
▫ पुराने समय के वफ़ादार लोगों ने यहोवा पर अपना भरोसा किस तरह दिखाया?
▫ आज परमेश्वर के सेवक यहोवा पर भरोसा क्यों रखते हैं?
[पेज 29 पर तसवीर]
परमेश्वर ने मनुष्यों को परादीस पृथ्वी पर ख़ुशी में सर्वदा जीवित रहने के लिए सृजा था
[पेज 31 पर तसवीर]
इब्राहीम ने मरे हुओं को जिलाने की यहोवा की क्षमता में अपना भरोसा रखा