आपका भाईचारे का प्रेम बना रहे!
“[आपका] भाईचारे का प्रेम बना रहे।”—इब्रानियों १३:१, NHT.
१. एक ठंडी रात में आग को जलाए रखने के लिए आप क्या करेंगे, और इसी के समान कौन-सी ज़िम्मेदारी हम सब पर है?
बाहर कड़ाके की ठंड पड़ रही है, और तापमान तेज़ी से गिर रहा है। गर्मी का एकमात्र स्रोत आपके घर की अँगीठी में चरचराती हुई आग है। इसे जलाए रखने पर ही जीवन निर्भर करता है। क्या आप बैठकर बस देखते रहेंगे जब तक आग बुझती नहीं और लाल कोयले बुझकर, ठंडी राख नहीं बन जाते? बिलकुल नहीं। आप मेहनत से उसे जलाए रखने के लिए उसमें लगातार इंधन डालते रहते हैं। एक मायने में हम सभी के पास ऐसा ही एक काम है जब एक ज़्यादा महत्त्वपूर्ण “आग” की बात आती है—जिसे हमारे दिलों में जलते रहना चाहिए—प्रेम।
२. (क) यह क्यों कहा जा सकता है कि इन अंतिम दिनों में प्रेम ठंडा हो गया है? (ख) सच्चे मसीहियों के लिए प्रेम कितना महत्त्वपूर्ण है?
२ हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जब संसार-भर में तथाकथित मसीहियों में प्रेम ठंडा हो रहा है, जैसा यीशु ने बहुत पहले पूर्वबताया था। (मत्ती २४:१२) यीशु सबसे महत्त्वपूर्ण प्रेम की ओर इशारा कर रहा था, यहोवा परमेश्वर और उसके वचन, बाइबल के प्रति प्रेम। अन्य प्रकार के प्रेम भी ख़त्म होते जा रहे हैं। बाइबल ने पूर्वबताया था कि “अन्तिम दिनों” में अनेक लोग “स्नेहरहित” होंगे। (२ तीमुथियुस ३:१-५, NHT) यह कितना सच है! परिवार को स्नेह का आशियाना होना चाहिए, लेकिन यहाँ पर भी, हिंसा और दुर्व्यवहार—कभी-कभी भयानक रूप से निर्दयता—आम बातें बन गई हैं। फिर भी, इस संसार के स्नेहरहित माहौल में, मसीहियों को एक दूसरे के लिए न केवल प्रेम रखने की, बल्कि आत्म-बलिदानी प्रेम रखने की आज्ञा दी गई है, दूसरों के बारे में पहले सोचना। हमें यह प्रेम इतनी स्पष्ट रीति से प्रदर्शित करना है कि इसे सब देख सकें, और यह सच्ची मसीही कलीसिया का पहचान चिन्ह बन जाए—यूहन्ना १३:३४, ३५.
३. भाईचारे का प्रेम क्या है, और इसे बनाए रखने का क्या अर्थ है?
३ प्रेरित पौलुस यह आज्ञा देने के लिए उत्प्रेरित हुआ: “[आपका] भाईचारे का प्रेम बना रहे।” (इब्रानियों १३:१) एक विद्वत्तापूर्ण लेख के अनुसार, यहाँ अनुवादित यूनानी शब्द “भाईचारे का प्रेम” (फिलादेलफिया) “स्नेही प्रेम, कृपा, सहानुभूति दिखाने, मदद प्रदान करने को सूचित करता है।” और पौलुस का क्या तात्पर्य था जब उसने कहा कि ऐसा प्रेम बना रहे? “इसे कभी ठंडा नहीं होना था,” वही लेख कहता है। सो अपने भाइयों के प्रति स्नेह महसूस करना ही काफ़ी नहीं है; हमें इसे दिखाना ज़रूरी है। इसके अलावा, हमें इस प्रेम को क़ायम रखना ज़रूरी है, इसे कभी-भी ठंडा नहीं होने देना चाहिए। क्या यह चुनौतीपूर्ण है? जी हाँ, लेकिन यहोवा की आत्मा हमें भाईचारे का प्रेम विकसित करने और उसे बनाए रखने में मदद कर सकती है। आइए हम अपने दिलों में इस आग को जलाए रखने के लिए इंधन डालने के तीन तरीक़ों पर ग़ौर करें।
सहानुभूति दिखाइए
४. सहानुभूति क्या है?
४ यदि आप अपने मसीही भाई-बहनों के लिए अधिक प्रेम की इच्छा रखते हैं तो पहले आपको उनके लिए संवेदनशील होने और जीवन में वे जिन परीक्षाओं और चुनौतियों का सामना करते हैं उनमें उनके साथ हमदर्दी जताने की शायद ज़रूरत हो। प्रेरित पतरस ने इसी की सलाह दी जब उसने लिखा: “सब के सब एक मन और कृपामय [“सहानुभूति दिखानेवाले,” NW] और भाईचारे की प्रीति रखनेवाले, और करुणामय, नम्र बनो।” (१ पतरस ३:८) यहाँ “सहानुभूति” को दिखाने के लिए इस्तेमाल किया गया यूनानी शब्द “साथ में दुःख उठाने” को सूचित करता है। बाइबलीय यूनानी भाषा का एक विशेषज्ञ इस शब्द के बारे में कहता है: “यह मन की उस दशा को बताता है जो तब होती है जब हम दूसरों की भावनाओं को महसूस करते हैं मानो यह हमारी अपनी भावनाएँ हों।” अतः, हमदर्दी की ज़रूरत है। यहोवा के एक वफ़ादार, बुज़ुर्ग सेवक ने एक बार कहा: “हमदर्दी, मेरे दिल में आपका दर्द है।”
५. हम यह कैसे जानते हैं कि यहोवा सहानुभूति रखता है?
५ क्या यहोवा ऐसी सहानुभूति रखता है? बेशक़। उदाहरण के लिए, हम उसके लोगों, इस्राएल की सताहटों के बारे में पढ़ते हैं: “उनके सारे संकट में उस ने भी कष्ट उठाया।” (यशायाह ६३:९) यहोवा ने उनकी परेशानियों को मात्र देखा नहीं; उसने लोगों के लिए संवेदना महसूस की। वह कितना संवेदनशील है यह यहोवा के अपने ही शब्दों में जकर्याह २:८ में अभिलिखित है: “जो तुम को छूता है, वह मेरी आंख की पुतली ही को छूता है।”a एक व्याख्याकार इस आयत के बारे में नोट करता है: “मानव रचना में आँख सबसे जटिल और कोमल संरचना है; और आँख की पुतली—वह झरोखा जिसके द्वारा दृष्टि के लिए बाहर से रोशनी प्रवेश करती है—उस संरचना का सबसे संवेदनशील, साथ ही साथ सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। कोई भी अन्य वस्तु यहोवा के प्यारों के प्रति उसके प्रेम की अत्यधिक कोमल परवाह को इससे अच्छी तरह व्यक्त नहीं कर सकती।”
६. यीशु मसीह ने सहानुभूति कैसे दिखाई?
६ यीशु ने भी हमेशा अत्यधिक सहानुभूति दिखाई थी। उसने बारंबार अपने संगी मनुष्यों के कष्ट पर ‘तरस खाया’ जो बीमार अथवा व्याकुल थे। (मरकुस १:४१; ६:३४) उसने सूचित किया कि जब कोई व्यक्ति उसके अभिषिक्त अनुयायियों के साथ कृपापूर्ण बर्ताव नहीं करता, तो उसे लगता था कि ख़ुद उसके साथ वैसा व्यवहार किया जा रहा था। (मत्ती २५:४१-४६) और आज हमारे स्वर्गीय “महायाजक” के रूप में वही ऐसा व्यक्ति है जो “हमारी निर्बलताओं में हमसे सहानुभूति” जता सकता है।—इब्रानियों ४:१५, NHT.
७. सहानुभूति तब हमारी मदद कैसे करेगी जब एक भाई या बहन से हमें चिड़चिड़ाहट होती है?
७ ‘हमारी निर्बलताओं में हमसे सहानुभूति रख सकता है’—क्या यह एक सांत्वनादायक विचार नहीं है? तब, निश्चित ही, हम एक दूसरे के साथ यही करना चाहेंगे। वाक़ई, दूसरे व्यक्ति की कमज़ोरी को देखना इससे कितना आसान है। (मत्ती ७:३-५) लेकिन अगली बार जब एक भाई या बहन से आपको चिड़चिड़ाहट होती है, तो क्यों न इसे आज़माएँ? कि उस व्यक्ति की परिस्थिति में, उसकी पृष्ठभूमि में, उसके व्यक्तित्त्व में, जिन व्यक्तिगत कमज़ोरियों के साथ उसे जीना है, ख़ुद को रखकर सोचें। क्या आप विश्वास से कह सकते हैं कि आप वही ग़लती—या उससे भी बदतर नहीं करेंगे? दूसरों से हद से ज़्यादा अपेक्षा करने के बजाय, हमें सहानुभूति दिखानी चाहिए, जो हमें यहोवा की तरह संतुलित होने में मदद देगा, जिसे ‘स्मरण रहता है कि हम मिट्टी ही हैं।’ (भजन १०३:१४; याकूब ३:१७) वह हमारी सीमाएँ जानता है। वह हमसे उससे ज़्यादा की अपेक्षा नहीं रखता जो हम पर्याप्त रूप से कर सकते हैं। (१ राजा १९:५-७ से तुलना कीजिए।) आइए हम सभी दूसरों के लिए ऐसी ही सहानुभूति दिखाएँ।
८. जब एक भाई या बहन किसी कठिनाई से गुज़र रहा है तो उस वक़्त हमें क्या प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
८ पौलुस ने लिखा कि कलीसिया एक शरीर के समान है, जिसमें विभिन्न अंग होते हैं जिन्हें संयुक्त रूप से काम करना ज़रूरी है। उसने आगे कहा: “यदि एक अंग दुःख पाता है, तो सब अंग उसके साथ दुःख पाते हैं।” (१ कुरिन्थियों १२:१२-२६) जो लोग कुछ कठिन परीक्षाओं से गुज़र रहे हैं हमें उनके साथ दुःख उठाने, या हमदर्दी जताने की ज़रूरत है। प्राचीन ऐसा करने में आगे रहते हैं। पौलुस ने यह भी लिखा: “किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता? किस के ठोकर खाने से मेरा जी नहीं दुखता?” (२ कुरिन्थियों ११:२९) प्राचीन और सफ़री ओवरसियर इस संबंध में पौलुस का अनुकरण करते हैं। अपने भाषणों में, अपने चरवाही कार्य में, और न्यायिक मामलों से निपटते वक़्त भी वे सहानुभूति दिखाने का प्रयास करते हैं। पौलुस ने सिफ़ारिश की: “रोनेवालों के साथ रोओ।” (रोमियों १२:१५) जब भेड़ को यह लगता है कि चरवाहे वाक़ई उनके प्रति संवेदनशील हैं, उनकी सीमाओं को पहचानते हैं, और जिन कठिनाइयों का वे सामना कर रही हैं उनमें उनसे हमदर्दी रखते हैं, तो वे आम तौर पर सलाह, निर्देशन, और अनुशासन स्वीकार करने के लिए ज़्यादा इच्छुक होती हैं। वे उत्सुकतापूर्वक सभाओं में हाज़िर होती हैं, और इस बात से आश्वस्त होती हैं कि वे अपने ‘मन में विश्राम पाएँगी।’—मत्ती ११:२९.
क़दर करना
९. यहोवा कैसे दिखाता है कि वह हमारे अंदर की अच्छाई की क़दर करता है?
९ भाईचारे के प्रेम में इंधन डालने का दूसरा तरीक़ा है क़दर करना। दूसरों की क़दर करने के लिए हमें उनके अच्छे गुणों और प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने और उन्हें मूल्यवान समझने की ज़रूरत है। जब हम ऐसा करते हैं तब हम स्वयं यहोवा का अनुकरण करते हैं। (इफिसियों ५:१) रोज़ वह हमारे छोटे-मोटे पापों को क्षमा करता है। वह गंभीर पापों को भी क्षमा करता है जब तक कि उसमें सच्चा पश्चाताप शामिल है। और एक बार हमारे पापों को क्षमा करने के बाद वह, उनके बारे में सोचता नहीं रहता। (यहेजकेल ३३:१४-१६) भजनहार ने पूछा: “हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा?” (भजन १३०:३) यहोवा जिन बातों पर ध्यान लगाता है वे ऐसी अच्छी बातें हैं जिन्हें हम उसकी सेवा में करते हैं।—इब्रानियों ६:१०.
१०. (क) एक दूसरे के प्रति क़दर खो देना विवाहित साथियों के लिए ख़तरनाक क्यों है? (ख) एक ऐसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए जिसकी, अपने साथी के प्रति क़दर घट रही है?
१० परिवार में इस उदाहरण पर चलना ख़ासकर महत्त्वपूर्ण है। जब माता-पिता दिखाते हैं कि वे एक दूसरे की क़दर करते हैं, तो वे परिवार के लिए आदर्श रखते हैं। कामचलाऊ विवाहों के इस युग में, अपने साथी को सस्ता समझना और कमियों को तिल का ताड़ बनाना और अच्छे गुणों को तुच्छ समझना बहुत आसान है। ऐसे नकारात्मक विचार विवाह को खा जाते हैं, उसे एक मनहूस बोझ बना देते हैं। यदि आपके साथी के लिए आपकी क़दर घट रही है, तो ख़ुद से पूछिए, ‘क्या मेरे साथी में सचमुच अच्छे गुण नहीं हैं?’ उस कारण पर दोबारा विचार कीजिए जिस कारण से आप प्रेम में पड़ गए और आपने शादी की। क्या इस अनोखे व्यक्ति को प्रेम करने के सभी कारण ख़त्म हो गए हैं? निश्चित ही नहीं; सो अपने साथी की अच्छाइयों की क़दर करने के लिए मेहनत कीजिए, और अपनी क़दर का शब्दों में इज़हार कीजिए।—नीतिवचन ३१:२८.
११. यदि वैवाहिक प्रेम को कपटरहित होना है तो किन कामों से दूर रहना ज़रूरी है?
११ क़दर वैवाहिक साथियों को अपने प्रेम को कपटरहित रखने में भी मदद करती है। (२ कुरिन्थियों ६:६; १ पतरस १:२२ से तुलना कीजिए।) ऐसा प्रेम, जिसमें हार्दिक क़दर का इंधन हो, बंद दरवाज़ों के पीछे क्रूरता करने, चोट पहुँचानेवाले और बेइज़्ज़ती करनेवाले शब्दों का इस्तेमाल करने, और ठंडे बर्ताव के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता, जिसमें बिना कोई कृपालु या शिष्ट शब्द बोले शायद दिनों गुज़र जाएँ, और निश्चित ही यह शारीरिक हिंसा के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ेगा। (इफिसियों ५:२८, २९) एक पति-पत्नी जो सचमुच एक दूसरे की क़दर करते हैं एक दूसरे का आदर करते हैं। वे ऐसा न केवल तब करते हैं जब वे लोगों के बीच होते हैं, बल्कि तब भी जब वे यहोवा की नज़रों में होते हैं—दूसरे शब्दों में हर समय।—नीतिवचन ५:२१.
१२. माता-पिता को अपने बच्चों की अच्छाइयों के प्रति क़दर क्यों प्रदर्शित करनी चाहिए?
१२ बच्चों की भी क़दर करने की ज़रूरत है। यह नहीं कि माता-पिता को उनकी सूखी तारीफ़ करनी चाहिए, बल्कि उन्हें अपने बच्चों के प्रशंसनीय गुणों की और जो आम अच्छी बातें वे करते हैं उनकी तारीफ़ करनी चाहिए। यीशु मसीह को अनुमोदित करने के यहोवा के उदाहरण को याद कीजिए। (मरकुस १:११) एक दृष्टांत में “स्वामी” के रूप में यीशु के उदाहरण को भी याद रखिए। उसने उन दो ‘अच्छे और विश्वासयोग्य दासों’ की समान रूप से प्रशंसा की, हालाँकि जो उन्हें दिया गया था और जो उन दोनों ने किया था उसमें समान भिन्नता थी। (मत्ती २५:२०-२३. मत्ती १३:२३ से तुलना कीजिए।) इसी तरह बुद्धिमान माता-पिता हरेक बच्चे के अनोखे गुणों, योग्यताओं, और उपलब्धियों के प्रति क़दर दिखाने के तरीक़े खोजते हैं। साथ ही, वे उपलब्धियों पर इतना अधिक ज़ोर नहीं देते कि बच्चों को अव्वल रहने के लिए हमेशा बाध्य महसूस करना पड़े। वे नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चे कुढ़ते हुए या निराशा के साथ बड़े हों।—इफिसियों ६:४; कुलुस्सियों ३:२१.
१३. कलीसिया के हरेक सदस्य के प्रति क़दर दिखाने में कौन आगे रहता है?
१३ मसीही कलीसिया में, प्राचीन और सफ़री ओवरसियर परमेश्वर के झुण्ड के हरेक सदस्य के लिए क़दर दिखाने में आगे रहते हैं। यह एक कठिन स्थिति है, क्योंकि उनके पास धर्म में अनुशासित करने, ग़लती करनेवालों को नम्रता की आत्मा में संभालने, और जिन्हें ज़रूरत है उन्हें कठोर सलाह देने की भारी ज़िम्मेदारी भी है। वे ऐसी भिन्न ज़िम्मेदारियों को कैसे संतुलित करते हैं?—गलतियों ६:१; २ तीमुथियुस ३:१६.
१४, १५. (क) कठोर सलाह देने के मामले में पौलुस ने संतुलन कैसे दिखाया? (ख) मसीही ओवरसियर ग़लतियों के सुधारने की ज़रूरत के साथ प्रशंसा करने की ज़रूरत को कैसे संतुलित कर सकते हैं? समझाइए।
१४ पौलुस का उदाहरण बहुत सहायक है। वह एक असाधारण शिक्षक, प्राचीन, और चरवाहा था। उसे ऐसी कलीसियाओं के साथ व्यवहार करना पड़ा जिनमें भारी समस्याएँ थीं, और जब ज़रूरत पड़ी तो वह डर के मारे कठोर सलाह देने से पीछे नहीं हटा। (२ कुरिन्थियों ७:८-११) पौलुस की सेवकाई पर एक नज़र डालने से यह सूचित होता है कि उसने डाँट का कम प्रयोग किया—केवल तभी जब हालात ने इसे ज़रूरी या उचित बना दिया। ऐसा करने में उसने ईश्वरीय बुद्धि दिखाई।
१५ यदि कलीसिया में एक प्राचीन की सेवकाई की समानता संगीत से की जाए, तो डाँट और ताड़ना उस एकमात्र स्वर के समान होगीं जो उस संगीत में ठीक बैठता है। वह स्वर अपनी जगह उचित है। (लूका १७:३, NHT; २ तीमुथियुस ४:२) कल्पना कीजिए कि एक गीत में केवल वही स्वर बार-बार दोहराया जाए। वह जल्द ही हमारे कानों को अखरने लगेगा। मसीही प्राचीन अपनी शिक्षाओं को संपूर्ण बनाने और विविधता से उसमें संवृद्धि करने की कोशिश करते हैं। वे अपनी शिक्षाओं को समस्या को ठीक करने तक ही नहीं रखते। इसके बजाय, इनका पूरा भाव ही सकारात्मक होता है। यीशु मसीह की तरह, प्रेममय प्राचीन प्रशंसा करने के लिए पहले अच्छाई को देखते हैं, न कि आलोचना करने के लिए बुराई को। वे उस कठिन परिश्रम की क़दर करते हैं जो उनके संगी मसीही कर रहे हैं। वे इस बात से आश्वस्त हैं कि कुल मिलाकर कहा जाए तो, हरेक व्यक्ति यहोवा की सेवा करने में अपना सर्वोत्तम कर रहा है। और प्राचीन बेझिझक इस भावना को शब्दों में कहते हैं।—२ थिस्सलुनीकियों ३:४ से तुलना कीजिए।
१६. पौलुस के क़दर करने और हमदर्दी दिखाने के रवैये का उसके संगी मसीहियों पर क्या प्रभाव पड़ा?
१६ निःसंदेह, जिन मसीहियों की पौलुस ने सेवा की उनमें से अधिकांश ने यह महसूस किया कि वह उनकी क़दर करता था और उनके लिए सहानुभूति रखता था। हम यह कैसे जानते हैं? ज़रा ध्यान दीजिए की उन्होंने पौलुस के बारे में कैसे महसूस किया। हालाँकि उसके पास बड़ा अधिकार था, वे उससे डरे नहीं। जी नहीं, वह प्रिय और दोस्ताना था। जब उसने एक क्षेत्र छोड़ा तो प्राचीनों ने ‘उसके गले से लिपट कर उसे चूमा’! (प्रेरितों २०:१७, ३७) प्राचीन—और हम सभी—कितने कृतज्ञ हो सकते हैं कि हमारे पास अनुकरण करने के लिए पौलुस का उदाहरण है! जी हाँ, आइए हम एक दूसरे के प्रति क़दर दिखाएँ।
प्रेममय-कृपा के कार्य
१७. कलीसिया में कृपा के कार्यों से पैदा होनेवाले कुछ प्रभाव क्या हैं?
१७ भाईचारे के प्रेम के लिए एक सबसे प्रभावशाली इंधन कृपा का एक साधारण कार्य है। जैसा यीशु ने कहा था: “लेने से देना धन्य है।” (प्रेरितों २०:३५) चाहे हम आध्यात्मिक, भौतिक, या समय और शक्ति के रूप में देते हैं, हम न केवल दूसरों को बल्कि ख़ुद को भी ख़ुशी पहुँचाते हैं। कलीसिया में कृपा संक्रामक होती है। एक कृपालु कार्य बदले में वैसे ही कृपालु कार्यों को उत्पन्न करता है। और थोड़े ही समय में, भाईचारे का प्रेम फलने-फूलने लगता है।—लूका ६:३८.
१८. मीका ६:८ में बताई गई “कृपा” का क्या अर्थ है?
१८ यहोवा ने अपने लोग इस्राएल से कृपा प्रदर्शित करने का आग्रह किया। मीका ६:८ में हम पढ़ते हैं: “वह तुझे बता चुका है कि अच्छा क्या है; और यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले?” “कृपा से प्रीति” रखने का क्या अर्थ है? “कृपा” (ख़ॆसॆध) के लिए इस्तेमाल किया गया इब्रानी शब्द अंग्रेज़ी में “mercy” (दया) भी अनुवादित किया गया है। द सोनचीनो बुक्स् ऑफ द बाइबल के अनुसार, यह शब्द “अमूर्त अंग्रेज़ी शब्द mercy (दया) से कहीं अधिक सक्रिय वस्तु को सूचित करता है। इसका अर्थ है ‘दया का कार्यों में रूपांतर,’ न केवल ग़रीब और ज़रूरतमंदों के प्रति, बल्कि एक व्यक्ति के सभी संगी-मनुष्यों के प्रति प्रेममय-कृपा के व्यक्तिगत कार्य।” इसलिए एक अन्य विद्वान कहता है कि ख़ॆसॆध का अर्थ है “प्रेम का कार्यों में रूपांतर।”
१९. (क) कलीसिया में दूसरों के प्रति कृपा दिखाने में हम किन तरीक़ों से पहल कर सकते हैं? (ख) एक उदाहरण दीजिए कि कैसे आपको भाईचारे का प्रेम दिखाया गया।
१९ हमारा भाईचारे का प्रेम सैद्धांतिक, या अमूर्त्त नहीं है। यह एक ठोस सच्चाई है। अतः, अपने भाई-बहनों के लिए कृपालु कार्य करने के तरीक़े खोजिए। यीशु की तरह बनिए, जिसने हमेशा बस लोगों का अपने पास आने और मदद माँगने के लिए इंतज़ार नहीं किया, बल्कि अकसर ख़ुद पहल की। (लूका ७:१२-१६) ख़ासकर उनके बारे में सोचिए जो बहुत ज़रूरतमंद हैं। क्या एक वृद्धजन या एक बीमार व्यक्ति को भेंट की या संभवतः भेजने-लाने के काम में कुछ मदद की ज़रूरत है? क्या एक ‘अनाथ’ को कुछ समय या ध्यान की ज़रूरत है? क्या हताश लोगों को सुननेवाले कान या सांत्वनादायक शब्दों की ज़रूरत है? हम जिसके भी योग्य हैं, आइए कृपा के ऐसे कार्यों के लिए समय निकालें। (अय्यूब २९:१२; १ थिस्सलुनीकियों ५:१४; याकूब १:२७) कभी-भी मत भूलिए कि अपरिपूर्ण लोगों से भरी एक कलीसिया में, कृपा के कार्यों में से सबसे महत्त्वपूर्ण क्षमा करना है—शिकायत करने का उचित कारण होने के बावजूद भी, नाराज़गी को मन से पूरी तरह निकाल देना। (कुलुस्सियों ३:१३) क्षमा करने के लिए तत्परता कलीसिया को ऐसे विभाजनों, दुर्भावनाओं, और झगड़ों से मुक्त रखने में मदद करेगी जो भाईचारे के प्रेम की आग को बुझा देनेवाले गीले कंबलों के समान है।
२०. हम सब को कैसे अपनी जाँच करते रहनी चाहिए?
२० आइए हम सभी प्रेम की इस महत्त्वपूर्ण आग को अपने सीनों में जलाए रखने का संकल्प करें। आइए हम अपनी जाँच करते रहें। क्या हम दूसरों के प्रति सहानुभूति रखते हैं? क्या हम दूसरों की क़दर करते हैं? क्या हम दूसरों के लिए कृपा के कार्य करते हैं? जब तक हम ऐसा करते रहते हैं, तब तक प्रेम की आग हमारे भाईचारे को गर्माती रहेगी, चाहे यह संसार कितना ही कड़वे रूप से ठंडा या बेरहम क्यों न हो जाए। फिर पूरे ज़ोर-शोर से, “[आपके] भाईचारे का प्रेम बना रहे”—अभी और सर्वदा के लिए!—इब्रानियों १३:१.
[फुटनोट]
a कुछ अनुवाद यहाँ यह अर्थ देते हैं कि जो परमेश्वर के लोगों को छूता है, वह परमेश्वर की नहीं, बल्कि इस्राएल की आँख या ख़ुद अपनी ही आँख को छूता है। यह त्रुटि मध्ययुगीन शास्त्रीयों से आयी है, जिन्होंने उन संदर्भों को जिन्हें वे श्रद्धाहीन समझते थे, सुधारने के अपने ग़लत प्रयासों में इस आयत को बदल दिया। उन्होंने इस प्रकार यहोवा की व्यक्तिगत हमदर्दी की गहराई को कम कर दिया।
आप क्या सोचते हैं?
◻ भाईचारे का प्रेम क्या है, और हमें इसे बनाए रखने की ज़रूरत क्यों है?
◻ सहानुभूति रखना हमें अपना भाईचारे का प्रेम बनाए रखने में कैसे मदद करता है?
◻ क़दर करना भाईचारे के प्रेम में क्या भूमिका निभाता है?
◻ मसीही कलीसिया में कृपा के कार्य कैसे भाईचारे के प्रेम के फलने-फूलने का कारण होते हैं?
[पेज 16 पर बक्स]
कार्यों में दिखता प्रेम
कुछ साल पहले, एक आदमी को जिसने यहोवा के साक्षियों के साथ कुछ समय बाइबल का अध्ययन किया था, अब भी मसीही प्रेम के बारे में कुछ संदेह था। वह जानता था कि यीशु ने कहा था: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना १३:३५) लेकिन उसे इस पर विश्वास करना मुश्किल लगा। एक दिन उसे कार्यों में दिखता मसीही प्रेम देखने को मिला।
व्हील चेएर पर होने के बावजूद यह आदमी अपने घर से लंबी यात्रा पर जा रहा था। वह इस्राएल के बैतलहम में कलीसिया सभा में उपस्थित हुआ। वहाँ एक अरब साक्षी ने एक दूसरे यात्री साक्षी से अपने परिवार के साथ रात गुज़ारने का आग्रह किया, और इस न्योते में यह बाइबल विद्यार्थी भी शामिल था। सोने से पहले विद्यार्थी ने अपने मेज़बान से पूछा कि क्या वह सुबह बाहर बरामदे में जाकर सूर्योदय देख सकता है। उसके मेज़बान ने उसे कहा कि ऐसा ग़लती से भी न करे। अगले दिन इस अरब भाई ने कारण बताया। अनुवादक की मदद से उसने कहा कि अगर मेरे पड़ोसियों को मालूम चलता कि मेरे घर में यहूदी मेहमान आए हैं—जो इस बाइबल विद्यार्थी के बारे में सच था—तो वे उसके साथ उसके घर को और उसके परिवार को जलाकर राख कर देते। हैरान होकर बाइबल विद्यार्थी ने उससे पूछा “तो फिर तुम ने ऐसा ख़तरा मोल क्यों लिया?” अरब भाई ने उसकी आँखों में देखते हुए बिना अनुवादक की मदद के बस यह कहा, “यूहन्ना १३:३५।”
यह बाइबल विद्यार्थी भाईचारे के प्रेम को, सचमुच देखकर दिल की गहराई तक प्रभावित हुआ। और कुछ समय बाद ही उसने बपतिस्मा लिया।
[पेज 18 पर तसवीर]
प्रेरित पौलुस के पहल करने और क़दर दिखाने के स्वभाव ने उसे दोस्ताना बनाया