परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता सिद्ध करना
“आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।”—२ कुरिन्थियों ७:१.
१. हम कैसे जानते हैं कि उच्च-स्थान रखनेवाले स्वर्गदूत यहोवा की पवित्रता को स्वीकार करते हैं?
यहोवा पवित्र परमेश्वर हैं। स्वर्ग में उच्च स्थान रखने वाले स्वर्गदूत उसकी पवित्रता की घोषणा किन्हीं अनिश्चित शब्दों में नहीं करते हैं। “सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र हैं; सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है।” आठवीं शताब्दी सा.यु.पूर्व में भविष्यद्वक्ता यशायाह ने दर्शन में सारापों को उत्तेजक स्वर में पुकारते देखा था। पहली शताब्दी सा.यु. के अन्त में, प्रेरित यूहन्ना ने “प्रभु के दिन” में जिसमें हम अभी हैं, जो कुछ होने वाला था उसके दर्शन देखे थे। उस ने यहोवा के सिंहासन के चारों ओर चार जीवित प्राणियों को देखा था और उन्हें लगातार यह घोषणा करते हुए सुना: “पवित्र, पवित्र, पवित्र यहोवा परमेश्वर, सर्वशक्तिमान, जो था, और जो है, और जो आनेवाला है।” यहोवा के स्वर्गीय आत्मिक प्राणियों द्वारा ये तिगुना घोषणाएं सृष्टिकर्त्ता की सर्वोत्तम पवित्रता पर ज़ोर देती है।—यशायाह ६:२, ३. प्रकाशितवाक्य १:१०; ४:६-८.
पवित्रता और पृथकता
२. (अ) पवित्रता के दो पहलू क्या है, और कैसे यहोवा इन दो बातों में पवित्र है? (ब) मूसा ने यहोवा की पवित्रता पर कैसे जोर दिया था?
२ पवित्रता का अर्थ न केवल धार्मिक स्वच्छता और शुद्धता है बरन् पृथकता और पवित्रीकरण भी है। यहोवा अत्यधिक स्वच्छ, या शुद्ध है; वह राष्ट्रों के सब अशुद्ध देवताओं से पूर्णतया अलग हैं। उसकी पवित्रता, या पवित्रीकरण का यह पहलू को मूसा ने रेखांकित किया था जब वह यह गीत गा रहा था: “यहोवा, देवताओं में तेरे तुल्य कौन है? तू तो पवित्रता के कारण महा-प्रतापी” है।—निर्गमन १५:११.
३. किन तरीकों से सब इस्राएलियों पवित्र रहने की ज़रूरत थी, और यहोवा ने कैसे इस सम्बन्ध में उनकी सहायता की थी?
३ पवित्र परमेश्वर यहोवा चाहते थे कि, पृथ्वी पर उसके लोग, प्राचीन इस्राएलियों को भी पवित्र होना चाहिए। ऐसी माँग न केवल याजकों और लेवियों से की गयी थी पर पूरी राष्ट्र से की गयी थी। यहोवाने मूसा से कहा था: “इस्राएलियों की सारी मण्डली से कह, कि ‘तुम पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूँ।’” (लैव्यव्यवस्था १९:२) उस हद तक, यहोवा ने उन्हें आत्मिक, नैतिक, मानसिक, शारीरिक, और रस्मी रूप से शुद्ध रहने में सहायता के लिए नियम दिये थे, रस्मी रूप से जो नियम थे, वे तम्बू में और, उसके पश्चात मन्दिर में उनकी उपासना के सम्बन्ध में थे।
अलग किए हुए लोग
४, ५. (अ) शारीरिक इस्राएल कैसे एक पवित्रित राष्ट्र थी? (ब) आत्मिक इस्राएलियों से क्या माँग है, और कैसे प्रेरित पौलुस इसकी पुष्टि करता है?
४ जब तक इस्राएलियों ने परमेश्वर के नियमों का पालन किया, अपने चारों ओर के भ्रष्ट राष्ट्रों से प्रमुख दिखाई दिए। वे, पवित्र परमेश्वर यहोवा की सेवकाई के लिए, अलग या पवित्रित लोगों जैसे प्रतिष्ठित थे। मूसा ने उनसे कहा था: “तू अपने परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा है; यहोवा ने पृथ्वी भर के सब देशों के लोगों में से तुझ को चुन लिया है कि तू उसकी प्रजा और निज धन ठहरे।”—व्यवस्थाविवरण ७:६
५ ऐसी स्वच्छता और पृथकता आत्मिक इस्राएल से भी आवश्यक है। प्रेरित पतरस ने आत्मिक इस्राएली बनने के लिए चुने गये लोगों को लिखा था: “और आज्ञाकारी बालकों की नाईं अपनी अज्ञानता के समय की पुरानी अभिलाषाओं के सदृश न बनो। पर जैसा तुम्हारा बुलाने वाला पवित्र है, वैसा तुम भी अपने सारे चालचलन में पवित्र बनो।” क्योंकि लिखा है: ‘तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ।’”—१ पतरस १:१, १४-१६.
६, ७. (अ) प्रकाशितवाक्य ७ में “बड़ी भीड़” के सदस्य का वर्णन कैसे किया गया है, और तार्किक रीति से उनसे क्या माँग है? (ब) अगले परिच्छेदों में क्या विचार किया जाएगा?
६ प्रकाशितवाक्य अध्याय ७ में, “बड़ी भीड़” के सदस्यों का वर्णन ऐसे किया गया है कि वे, “श्वेत वस्त्र पहिने, [यहोवा के] सिंहासन के सामने और मेम्ने के सामने खड़ी है” जिन्होंने “अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।” (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) उनका श्वेत वस्त्र यहोवा के सामने उनकी स्वच्छ, धार्मिक स्थिति को चित्रित करता है, जिसे वह मसीह के मोल लिए गए लोहू में उनके विश्वास के कारण उन्हें देते हैं। तब, स्पष्ट रीति से, न केवल अभिषिक्त मसीहियों को बल्कि “दूसरी भेड़ों” को भी यहोवा की उपासना को स्वीकार-योग्य बनाने के लिए आत्मिक और नैतिक रीति से स्वच्छ रहना है।—यूहन्ना १०:१६.
७ अब आइये विचार करें कि कैसे अतीत में यहोवा के लोगों ने स्वयं को स्वच्छ और पवित्र प्रमाणित करने की आवश्यकता थी और क्यों वही सिद्धान्त आज भी परमेश्वर के लोगों पर लागू होते हैं।
आत्मिक शुद्धता
८. किन कारणों के लिए इस्राएलियों ने स्वयं को कनान के धर्मों से अलग रखना था?
८ शारीरिक इस्राएलियों को दूसरी जातियों की अशुद्ध धार्मिक प्रथाओं से स्वयं को कर्तव्यनिष्ठता से अलग रखना था। मूसा के द्वारा बोलते हुए, यहोवा ने इस्राएल से कहा था: “इसलिए सावधान रहना कि जिस देश में तू जानेवाला है उसके निवासियों से वाचा न बान्धना; कहीं ऐसा न हो कि वह तेरे लिए फंदा ठहरे। वरन उनकी वेदियों को गिरा देना, उनकी लाठों [जो घृणित लैंगिक उपासना के लिए काम में आते थे] को तोड़ डालना, और उनकी अशेरा नाम मूर्तियों को काट डालना। क्योंकि तुम्हें किसी दूसरे को ईश्वर करके दण्डवत् करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील है, वह जल उठनेवाला ईश्वर है ही [या, “एक अनन्य भक्ति माँगने वाला परमेश्वर”, न्यू वर्ल्ड ट्रान्सलेशन रेफरन्स बाइबल, फुटनोट]; ऐसा न हो कि तू उस देश के निवासियों से वाचा बान्धे, और वे अपने देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करें, और उनके लिये बलिदान भी करें।”—निर्गमन ३४:१२-१५.
९. उन विश्वासी शेष लोगों को जिन्होंने ५३७ सा.यु.पूर्व में बाबुल छोड़ा था क्या सुनिश्चित निर्देश दिए गए थे?
९ शताब्दियों बाद, यहोवा ने यशायाह को इन भविष्यसूचक वचनों से विश्वासी शेष लोगों को सम्बोधित करने के लिए प्रेरित किया था जो बाबुल से यहूदा लौट जानेवाले थे: “दूर हो, दूर हो, वहाँ से निकल जाओ, कोई अशुद्ध वस्तु मत छुओ; उसके बीच से निकल जाओ; हे यहोवा के पात्रों [जो यरूशलेम के मन्दिर में पुनः स्थापित शुद्ध उपासना में प्रयोग किए जानेवाले थे] के ढोनेवाले, अपने को शुद्ध करो।”—यशायाह ५२:११.
१०, ११. (अ) पहली शताब्दी सा.यु. में आत्मिक इस्राएलियों को उसी तरह के क्या निर्देश दिए गए थे? (ब) विशेष रूप से १९१९ और १९३५ से कैसे इन निर्देशों का पालन किया गया साथीयों और किस रीति से अभिषिक्त और उनके साथीयों आत्मिक रूप से शुद्ध रहते हैं?
१० इसी तरह, आत्मिक इस्राएलियों और उनके साथियों को इस संसार के मूर्तिपूजक धर्मों से स्वयं को निष्कलंक रखना है। कोरिन्थ की मंडली के अभिषिक्त मसीहियों को लिखते हुए, प्रेरित पौलुस ने बताया था: “मूरतों के साथ परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध? क्योंकि हम तो जीवते परमेश्वर के मन्दिर है; जैसा परमेश्वर ने कहा है कि ‘मैं उन में बसूँगा और उन में चला फिरा करूँगा; और मैं उन का परमेश्वर हूँगा, और वे मेरे लोग होंगे।’ इसलिए प्रभु कहता है, कि ‘उन के बीच में से निकलों और अलग रहो; और अशुद्ध वस्तु को मत छूओ, तो मैं तुम्हें ग्रहण करूँगा।’”—२ कुरिन्थियों ६:१६, १७.
११ १९१९ से अभिषिक्त अवशेष के शुद्ध और परिष्कृत सदस्य बड़े बाबुल के अशुद्ध, मूर्त्तिपूजक धर्मों से स्वतंत्र हैं। (मलाकी ३:१-३) उन्होंने इस स्वर्गीय पुकार के अनुसार काम किया है: “हे मरे लोगों, उस में से निकल आओ; कि तुम उसके पापों में भागी न हो, और उसकी विपत्तियों में से कोई तुम पर आ न पड़े।” (प्रकाशितवाक्य १८:४) १९३५ से “दूसरी भेड़ों” की बढ़ती हुई बड़ी भीड़ उसी तरह उस पुकार की ओर ध्यान दे रही है और अशुद्ध बाबुल के धर्म को त्याग चुकी है। अभिषिक्त जन और उनके साथी भी धर्म-त्यागियों के विनाशक विचारों के सम्पर्क में आने से बच कर आत्मिक रीति से शुद्ध रहते हैं।—यूहन्ना १०:१६; २ यूहन्ना ९-११.
नैतिक शुद्धता
१२. (अ) किन नियमों के माध्यम से यहोवा ने इस्राएलियों के नैतिक स्तर को उनके चारों ओर की राष्ट्रों से बहुत ऊपर रखा था? (ब) कौनसे नियम विशेष रूप से याजक-वर्ग के लिए कड़े थे?
१२ व्यवस्था की वाचा के द्वारा, यहोवा ने इस्राएलियों के नैतिक स्तर को उनके चारों ओर के राष्ट्रों भ्रष्ट दशा से बहुत उँचा किया था। विवाह और पारिवारिक जीवन इस्राएल में सुरक्षित संस्थान थे। दस आज्ञाओं में से सातवीं आज्ञा व्यभिचार को निषेध करती थी। दोनों परगमन और व्यभिचारी को कठोर दण्ड दिया जाता था। (व्यवस्थाविवरण २२:२२-२४) कुवाँरीयाँ व्यवस्था के आधीन सुरक्षित थीं। (व्यवस्थाविवरण २२:२८, २९) विशेषतः याजक वर्ग के लिए विवाह के कड़े नियम थे। महायाजक को अपनी पत्नी बनाने के लिए एक पवित्र कुवाँरी को चुनना था।—लैव्यव्यवस्था २१:६, ७, १०, १३.
१३. मसीह का “दुल्हन” के सदस्य किसके समान बताए गए हैं, और क्यों?
१३ इसी रीति से, महान महायाजक, यीशु मसीह का “दुल्हन” १,४४,००० अभिषिक्त मसीहियों से बनी है, जो “कुवाँरियों” के समान हैं। (प्रकाशितवाक्य १४:१-५; २१:९) वे स्वयं को शैतान के संसार से निष्कलंक रखते हैं और सैद्धान्तिक रीति तथा नैतिक रीति से शुद्ध हैं। प्रेरित पौलुस ने कोरिन्थ के अभिषिक्त मसीहियों को लिखा था: “मैं तुम्हारे विषय में ईश्वरीय धुन लगाए रहता हूँ, इसलिए कि मैं ने एक ही पुरुष से तुम्हारी बात लगाई है कि तुम्हें पवित्र कुँवारी की नाई मसीह को सौंप दूँ।” (२ कुरिन्थियों ११:२) पौलुस ने यह भी लिखा था: “मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिए दे दिया। कि उस को वचन के द्वारा जल के स्नान से शुद्ध कर के पवित्र बनाए। और उसे एक ऐसी तेजस्वी कलीसिया बनाकर अपने पास खड़ी करे, जिस में न कलंक, न झुर्री, न कोई और ऐसी वस्तु हो, बरन पवित्र और निर्दोष हो।”—इफिसियों ५:२५-२७.
१४, १५. (अ) दूल्हन वर्ग की आत्मिक शुद्धता किससे संलग्न है, और कौन सा पदस्थल इसे दिखाता है? (ब) यह कैसे स्पष्ट है कि उसी तरह की नैतिक शुद्धता की माँग दूसरी भेड़ों पर भी लागू होती है?
१४ मसीह की दुल्हन की यह आत्मिक शुद्धता, उसके सदस्यों की नैतिक स्वच्छता से संलग्न होनी चाहिये। प्रेरित पौलुस ने बताया था: “धोखा न खाओ, न वेश्यगामी,न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी . . . परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे। और तुम में से कितने ऐसे ही थे, परन्तु तुम . . . पवित्र हुए और धर्मी ठहरे।”—१ कूरिन्थियों ६:९-११.
१५ जब उन लोगों पर विचार किया जाता है जिन्हें यहोवा अपने प्रतिज्ञा किए हुए नए आकाश और नई पृथ्वी से बहिष्कृत करेंगे तब यह बात स्पष्ट हो जाती है कि नैतिक शुद्धता की यह आवश्यकताएँ दूसरी भेड़ों पर भी लागू होती है। हम पढ़ते हैं: “पर . . . घिनौनों, और हत्यारों ओर व्यभिचारियों . . . का भाग उस झील में मिलेगा, जो आग और गन्धक से जलती रहती है. यह दूसरी मृत्यु है।”—प्रकाशितवाक्य २१:१, ८.
आदरणीय विवाह
१६, १७. (अ) कौनसे पदस्थल दिखाते हैं कि अविवाहित रहना नैतिक शुद्धता की माँग नहीं है? (ब) एक मसीही कैसे एक विवाह के साथी के चुनाव में परमेश्वर के प्रति उचित भय दिखा सकता है, और क्यों प्रेरितीक पाबंदी को अस्वीकार करना मूर्खता की बात होगी?
१६ नैतिक रीति से शुद्ध रहने के लिए, दुल्हन वर्ग के अभिषिक्त सदस्यों और दूसरी भेड़ों को अविवाहित रहने की आवश्यकता नहीं है। अनिवार्य अविवाहित जीवन, धर्मशास्त्र के अनुसार नहीं है। (१ तीमुथियुस ४:१-३) विवाह के बन्धन में लैंगिक सम्बन्ध अशुद्ध नहीं है। परमेश्वर का वचन बताता है: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।”—इब्रानियों १३:४.
१७ तथापि, एक मसीही जो ‘परमेश्वरीय भय में पवित्रता सिद्ध’ करने के लिए इच्छुक है, जिस किसी को भी वह चाहता है या चाहती है विवाह करने के लिए स्वतंत्र नहीं महसूस करना चाहिए। अपने संगी मसीहियों को ‘आत्मा और शरीर की सभी मलिनताओं से स्वयं को शुद्ध करने, और परमेश्वरीय भय में पवित्रता को सिद्ध’ करने की सलाह देने से ठीक पहले, प्रेरित पौलुस ने लिखा था: “अविश्वाससियों के साथ असमान जूए में न जुतो, क्योंकि धार्मिकता और अधर्म का क्या मेल जोल? . . . या विश्वासी के साथ अविश्वासी का क्या नाता?” (२ कुरिन्थियों ६:१४, १५; ७:१) यहोवा के अलग किए गए और शुद्ध लोगों में से एक सदस्य होकर, एक मसीही पुरुष या स्त्री जो विवाह करना चाहता है प्रेरितिक पाबंदी के अनुसार ऐसा “केवल प्रभु में” करेगा, अर्थात्, ऐसे व्यक्ति को चुनना जो एक समर्पित, बपतिस्मा प्राप्त, और यहोवा का वफ़ादार सेवक है। (१ करिन्थियों ७:३९) जैसा प्राचीन समय में था, वैसा आज भी, परमेश्वर के लोगों के बीच समर्पित लोगों के लिए इस शास्त्रीय सलाह को इंकार करना निश्चय ही अविवेकी होगी। (व्यवस्थाविवरण ७:३, ४; नहेमायाह १३:२३-२७ से तुलना करें।) ऐसा करना हमारे महान स्वामी यहोवा, के प्रति स्वास्थ्यकर भय दिखाना नहीं होगा।—मलाकी १:६.
१८. दूसरे कौन से तरीके से मसीह अपने विवाह को आदरणीय बनाए रख सकते हैं?
१८ इसके अतिरिक्त, इस्राएल में, वैवाहिक बन्धन के भीतर भी लैंगिक कार्यों की सीमा निधार्रित करने के लिए नियम थे। एक पति अपनी पत्नी के मासिक धर्म के समय उससे सम्बन्ध नहीं करता था। (लैव्यव्यवस्था १५:२४; १८:१९; २०:१८) इसके लिए इस्राएली पुरूषजाति को प्रेमपूर्ण चिन्ता और आत्मसंयम रखना ज़रूरी था। क्या मसीहियों को अपनी पत्नियों के प्रति इससे कम चिन्ता दिखानी चाहिए? प्रेरित पतरस कहता है कि मसीही पतियों को अपनी पत्नियों के साथ “बुद्धिमानी से” जीवन बिताना चहिए, अर्थात, उनकी बनावट का ज्ञान जिसमे “स्त्री को निर्बल पात्र” जानता है।—१ पतरस ३:७.
“पवित्र मार्ग” पर चलना
१९, २०. (अ) मनुष्यजाति की बड़ी संख्या जिस चाकल मार्ग पर जा रही है उसका वर्णन करें? (ब) यहोवा के लोगों को शैतान के संसार से भिन्न कैसे रहना है? (स) किस राजमार्ग में परमेश्वर के लोग जा रहे हैं, वह कब खोला गया था, और केवल कौन उसमें जाने के लिए स्वीकृत हैं?
१९ ऊपर लिखी बातें एक अतिविस्तृत खाई को रेखांकित करती हैं जो यहोवा के लोगों को शैतान के संसार से अलग करती है। वर्तमान रीति-रिवाज तेजी से वैकल्पिक और असंयमी है। यीशुने बताया था: “सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और चाकल है वह मार्ग जो विनाश को पहुँचाता है; और बहुतेरे हैं जो उस से प्रवेश करते हैं।” (मत्ती ७:१३) अधिकतर मनुष्यजाति उस चौड़े मार्ग पर जा रही है। प्रेरित पतरस को उद्धृत करते हुए, यह मार्ग “लुचपन की बुरी अभिलाषाओं, मतवलापन, लीला-क्रीड़ा, पियक्कड़पन, और घृणित मूर्तिपूजा;” का है, वह मार्ग जो “भारी लुचपन” की और ले जाता है। (१ पतरस ४:३, ४) इसका अन्त विनाश है।
२० दूसरी ओर, परमेश्वर के लोग एक दूसरे मार्ग पर चलते हैं, एक शुद्ध मार्ग पर जिस पर शुद्ध लोग चलते हैं। अन्त के दिनों में इस मार्ग के खुलने के बारे में भविष्यवक्ता यशायाह ने भविष्यवाणी किया था, और यह लिखा था: “और वहाँ एक सड़क अर्थात् राजमार्ग होगा, उसका नाम पवित्र मार्ग होगा; कोई अशुद्ध जन उस पर से न चलने पाएगा।” (यशायाह ३५:८) इस भविष्यवाणी पर टीका करते हुए, वर्ल्डवाइड सेक्यूरिटी अंडर द “प्रिन्स ऑफ पीस” किताब बताती है: “१९१९ में परमेश्वर के हर्षित सेवकों के लिए एक लाक्षणिक राजमार्ग खोला गया था। वे जो यहोवा की दृष्टि में पवित्र होना चाहते थे वे उस ‘राजमार्ग,’ ‘पवित्रता के मार्ग’ पर चलते थे। . . . आज, ‘इस रीति-रिवाज के बिलकुल आखिर में,’ दैविक प्रबन्ध किया गया वह ‘राजमार्ग’ अभी भी खुला है। मूल्याकंन करने वाले लोगों की भीड़ . . . ‘पवित्रता के मार्ग’ द्वारा आत्मिक परादीस में प्रवेश कर रही है।”a
२१. कैसे और क्यों यहोवा के सेवक इब्लीस के संसार से अपनी अलग पहचान रखते हैं, और अगले अंक में किस पर विचार किया जाएगा?
२१ जी हाँ, आत्मिक इस्राएल के अभिषिक्त अवशेष और उनके साथीयों, दूसरी भेडें, आज स्वयं को शैतान के उस संसार से अलग अपनी पहचान रखते हैं, जिनके लिए पवित्रता के भाव का कुछ अर्थ नहीं रह गया है। इब्लीस की भीड़ के लिए जो उस “चौड़ा . . . और चाकल . . . मार्ग जो विनाश को पहुँचाता है” चल रही है, कुछ भी पवित्र नहीं है। न केवल वे आत्मिक और नैतिक रीति से अशुद्ध हैं बल्कि कई मामलों में वे शारीरिक रीति से अशुद्ध हैं और कम कहा जाए तो उनका बाहरी दिखावा अव्यवस्थित हैं। फिर भी, प्रेरित पौलुस कहता है: “आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और पमरेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।” (२ कुरिन्थियों ७:१) किन बातों में परमेश्वर के लोगों को मन और शरीर शुद्ध बनाए रखने में सावधानी रखना चाहिए, इस पर अगले अंक में विचार किया जाएगा।
[फुटनोट]
a अध्याय १६, पृष्ठ १३४-५.
समीक्षा के मुद्दे
◻ पवित्रता के लिए कौनसे दो पहलू हैं, और क्यों ऐसा कहा जा सकता है कि यहोवा अति पवित्र है?
◻ किन दो रीतियों से इस्राएलियों ने स्वयं को पवित्र जाति प्रमाणित करना था?
◻ आत्मिक इस्राएलियों और उनके साथीयों, दूसरी भेड़ों से क्या माँग की जाती है?
◻ परमेश्वर के प्रति हमारा भय कैसे विवाह का साथी चुनने के लिए हम को प्रभावित करता है?
◻ आज किन दो मार्गों में चला जा सकता है, और क्यों एक स्पष्ट चुनाव करना चाहिए?
[पेज 24 पर तसवीरें]
परमेश्वर का वचन कहता है: “विवाह आधरनीय हो”