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  • नम्र होकर प्यार करनेवाले चरवाहों के अधीन रहिए
    प्रहरीदुर्ग—2007 | अप्रैल 1
    • 7. मसीही अध्यक्षों की तरफ हमारा रवैया कैसा होना चाहिए, इस बारे में प्रेरित पौलुस ने क्या सलाह दी?

      7 स्वर्ग में रहनेवाले हमारे चरवाहे, यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह चाहते हैं कि हम उन उपचरवाहों का कहा मानें और उनके अधीन रहें जिन्हें वे कलीसिया में ज़िम्मेदारी का पद सौंपते हैं। (1 पतरस 5:5) प्रेरित पौलुस ने ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखा: “जो तुम्हारे अगुवे [हैं], और जिन्हों ने तुम्हें परमेश्‍वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्मरण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्‍वास का अनुकरण करो। अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते [हैं], जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।”—इब्रानियों 13:7, 17.

      8. पौलुस हमें क्या ‘ध्यान से देखने’ का बढ़ावा देता है, और हमें किस तरह अपने अगुवों का कहा ‘मानना’ चाहिए?

      8 गौर कीजिए कि पौलुस हमें प्राचीनों के अच्छे चालचलन का नतीजा ‘ध्यान से देखने’ का बढ़ावा देता है और उनके जैसा विश्‍वास दिखाने के लिए कहता है। यही नहीं, वह हमें उनकी हिदायतों को मानने और उनके अधीन रहने की भी सलाह देता है। बाइबल विद्वान आर. टी. फ्रांस समझाते हैं कि बाइबल की इस आयत में जिस मूल यूनानी शब्द के लिए “मानो” अनुवाद किया गया है, वह “आम तौर पर आज्ञा मानने के लिए इस्तेमाल [नहीं] किया जाता। इसके बजाय, उस शब्द का शाब्दिक अर्थ है, ‘यकीन दिलाया जाना।’ इससे उनके अधिकार को दिल से मानने का विचार मिलता है।” हम प्राचीनों की आज्ञा दो वजहों से मानते हैं। एक तो यह कि परमेश्‍वर का वचन हमें ऐसा करने की हिदायत देता है। और दूसरी, हमें इस बात का यकीन दिलाया जाता है कि इन प्राचीनों को न सिर्फ परमेश्‍वर के राज्य से जुड़े कामों की, बल्कि हमारी भलाई की भी चिंता है। अगर हम दिल से उनकी अगुवाई को मानें, तो हम सही मायनों में खुश रहेंगे।

  • नम्र होकर प्यार करनेवाले चरवाहों के अधीन रहिए
    प्रहरीदुर्ग—2007 | अप्रैल 1
    • 10, 11. पहली सदी में और आज के समय में, अध्यक्षों ने किस तरह अपने मसीही भाइयों को “परमेश्‍वर का वचन सुनाया है”?

      10 इब्रानियों 13:7, 17 में प्रेरित पौलुस चार कारण बताता है कि हमें क्यों मसीही अध्यक्षों की आज्ञा माननी चाहिए और उनके अधीन रहना चाहिए। पहला यह कि उन्होंने हमें “परमेश्‍वर का वचन सुनाया है।” याद कीजिए कि यीशु कलीसियाओं को ‘मनुष्यों के रूप में दान’ इसलिए देता है ताकि “पवित्र लोग सिद्ध हो [“सुधारे,” NW] जाएं।” (इफिसियों 4:11, 12) यीशु ने पहली सदी के मसीहियों की सोच और चालचलन को सुधारने के लिए अपने वफादार उपचरवाहों को इस्तेमाल किया था। इनमें से कुछ उपचरवाहों ने इस मकसद को पूरा करने के लिए ईश्‍वर-प्रेरणा से कलीसियाओं को पत्रियाँ लिखी थीं। इसके अलावा, यीशु ने आत्मा से ठहराए इन अध्यक्षों के ज़रिए शुरू के मसीहियों का मार्गदर्शन किया था और उनकी हिम्मत बँधायी थी।—1 कुरिन्थियों 16:15-18; 2 तीमुथियुस 2:2; तीतुस 1:5.

      11 आज यीशु “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए हमें राह दिखाता है। (मत्ती 24:45) शासी निकाय और आत्मा से ठहराए प्राचीन इस दास के नुमाइंदे हैं। हम अपने ‘प्रधान रखवाले’ यीशु मसीह का आदर करते हैं, इसलिए हम पौलुस की इस सलाह को मानते हैं: “जो तुम में परिश्रम करते हैं, और प्रभु में तुम्हारे अगुवे हैं, और तुम्हें शिक्षा देते हैं, उन्हें मानो।”—1 पतरस 5:4; 1 थिस्सलुनीकियों 5:12; 1 तीमुथियुस 5:17.

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