यहोवा पर भरोसा प्रकट करें सीखी हुई बातों पर अमल करने से
“यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर; देश में बसा रह और सच्चाई में मन लगाए रह।”—भजन ३७:३.
१, २. (अ) निजी अध्ययन का इच्छित परिणाम क्या होना चाहिए? (ब) याकूब कौनसा दृष्टान्त देता है, और क्या उसके द्वारा वर्णन किया गया देखना सिर्फ़ सरसरी देखना है?
परमेश्वर के वचन का अध्ययन केवल ज़ाती मज़ा के लिए नहीं है। अध्ययन को यहोवा पर भरोसा विकसित करने का एक साधन होना चाहिए। (नीतिवचन ३:१-५) भजनकार के उपर्युक्त शब्द दिखाते हैं कि ईश्वरीय भरोसा, पारी से, किसी व्यक्ति में उसके ‘भला करने’ से खुद को प्रकट करता है।
२ याकूब ने प्रोत्साहित किया: “परन्तु वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। क्योंकि जो कोई वचन का सुननेवाला हो, और उस पर चलनेवाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुँह दर्पण में देखता है। इसलिए कि वह अपने आप को देखकर चला जाता, और तुरन्त भूल जाता है कि मैं कैसा था।” (याकूब १:२२-२४) तो यह देखना सिर्फ़ एक क्षणिक नज़र नहीं होनी थी। “देखना” का यूनानी शब्द जिसे यहाँ इस्तेमाल किया गया है मूल रूप से “किसी बात के विषय अमुक वास्तविकताएँ समझने में दिमाग़ की क्रिया सूचित करता है।”—डब्ल्यू. ई. वाईन द्वारा, ॲन एक्सपॉज़िटरी डिक्शनरी ऑफ़ न्यू टेस्टामेन्ट वर्डस्; प्रेरितों के काम ७:३१ से तुलना करें, किंग्डम इंटर्लीनियर.
३. आइने में देखनेवाला आदमी किस तरह जल्द ही भूल सकता है कि “मैं कैसा था”?
३ तो फिर, एक ऐसा आदमी की कल्पना करें, जो किसी आइने में खुद की संवीक्षा करता है, और शायद प्रतिबिम्ब को कुछ-कुछ अप्रिय पाता है। वह शायद ज़रूरत से ज़्यादा खाने-पीने से उत्पन्न एक दोहरी ठोड़ी, निद्राहीनता की वजह से आँखों के नीचे फूली हुई चमड़ी, और तंग करनेवाली परेशानियों की वजह से माथे पर झुर्रियाँ देखेगा। अपने आप से सम्मुख, वह अपनी आदतों और जीवन-शैली में बहुत देर से आवश्यक परिवर्तन करने का दृढ़निश्चय करता है। फिर वह “चला जाता” है। अब चूँकि वह विक्षुब्ध कर देनेवाला प्रतिबिम्ब आराम से आँखों से दूर है, वह “तुरन्त भूल जाता है,” यह नहीं कि वह कैसे दिखता है, लेकिन “कि मैं कैसा था।” परिवर्तन करने का उसका दृढ़निश्चय गुज़रता है।
४. याकूब का दृष्टान्त हमारे शास्त्रों के अध्ययन के विषय किस तरह लागू होता है?
४ उसी तरह, आप शायद बाइबल के एक योग्य विद्यार्थी होंगे। फिर भी, परमेश्वर के वचन के आइने में जो आप देखते हैं, उसके प्रति आप कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं? जब आत्मिक दाग़ और दोष प्रतिबिम्बित होते हैं, क्या इस से आप में सिर्फ़ क्षणिक चिन्ता उत्पन्न होती है, या क्या आप उन दोषों को ठीक करने का पक्का दृढ़निश्चय करते हैं? याकूब ने आगे कहा: “पर जो व्यक्ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिए आशीष पाएगा कि सुनकर भूलता नहीं, पर वैसा ही काम करता है।” (याकूब १:२५) भजनकार ने प्रार्थना की: “हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग दिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूँगा।”—भजन ११९:३३.
अपने बारे में हमारी आदतें क्या बताती हैं
५. (अ) अपना व्यवहार हमारे बारे में क्या बताता है? (ब) “अनर्थ करनेवालों” का अन्त क्या है?
५ सचमुच, जो कुछ हम करते हैं या आदतन करते हैं, वह साबित करता है कि हम अन्दर से क्या हैं। और कभी न कभी एक व्यक्ति अच्छा या बुरा करके “गुप्त व्यक्तित्व” प्रकट करता है। (भजन ५१:६) सुलैमान ने कहा: “लड़का भी अपने कामों से पहचाना जाता है, कि उसका काम पवित्र और सीधा है, वा नहीं।” (नीतिवचन २०:११) तरुण याकूब और एसाव के बारे में यह सच था। जैसा समय गुज़रता गया, एसाव के व्यवहार ने आत्मिक मूल्यांकन की उसकी कमी को प्रकट किया। (उत्पत्ति २५:२७-३४; इब्रानियों १२:१६) यह उन हज़ारों के बारे में भी सच है जिन्होंने यहोवा पर भरोसा रखने का दावा तो किया लेकिन जो बाइबल में बताए ‘अनर्थ करनेवाले’ साबित हुए। (अय्यूब ३४:८) भजनकार ने लिखा: “दुष्ट जो घास की नाईं फूलते-फलते हैं, और सब अनर्थकारी जो प्रफुल्लित होते हैं, यह इसलिए होता है, कि वे सर्वदा के लिए नाश हो जाएँ।”—भजन ९२:७.
६. यह अत्यावश्यक क्यों है कि हम यहोवा पर अपना भरोसा अभी प्रकट करें?
६ दुष्ट लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, और उनका नाश जल्द ही होगा; परमेश्वर अपराधियों को अनन्त काल तक बरदाश्त नहीं करेगा। (नीतिवचन १०:२९) इसलिए यह अत्यावश्यक है कि हम सीखी हुई बातों के अनुसार करने के द्वारा यहोवा पर अपना भरोसा प्रकट करें। “अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिए कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर; उन्हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्वर की महिमा करें।” (१ पतरस २:१२) तो फिर, कुछेक क्षेत्र क्या हैं जिन में हम सुधार कर सकेंगे?
दूसरों से हमारा व्यवहार
७. “बाहरवालों” के साथ अपने व्यवहार में हमें सावधान रहना क्यों ज़रूरी है?
७ एक क्षेत्र शायद हमारा दूसरों से व्यवहार करने का तरीक़ा होगा। नीतिवचन १३:२० (न्यू.व.) सावधान करता है: “मूर्खों से व्यवहार रखनेवाले बुरी तरह विफल होंगे।” इस प्रेरित उपदेश लागू करने से रहकर, कुछेक अपने आप को कार्यस्थल पर और पाठशाला में सांसारिक व्यक्तियों से ज़रूरत से ज़्यादा बेतकल्लुफ़ बनने देते हैं। इस प्रकार एक शादी-शुदा भाई अपने कार्यस्थल में एक औरत के साथ अपवित्र आचरण में उलझ गया। वह पुरुष सहकर्मियों के साथ स्थानीय शराब-खानों की फेरी लगाने में शामिल हो गया, जिस के परिणामस्वरूप वह नशे में धुत हुआ। बेशक, हमें “बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव” करने की ज़रूरत है।—कुलुस्सियों ४:५.
८. कुछ लोग संगी मसीहियों के साथ अपने बर्ताव में सुधार कैसे ला सकते हैं?
८ लेकिन संगी मसीहियों के साथ हमारे बर्ताव का क्या? उदाहरणार्थ, मान लें कि आप किसी भाई के देनदार हैं। क्या आप बिना कारण उसे पैसे अदा करने में देर करेंगे, यह तर्क करते हुए कि चूँकि भाई अच्छी परिस्थितियों में नज़र आता है, उस से ज़्यादा तुम्हें उसकी ज़रूरत है? “दुष्ट ऋण लेता है, और भरता नहीं,” भजन ३७:२१ कहता है। या अगर आप मालिक हैं, जब गवाह कर्मचारियों को तनख़्वाह देने का सवाल उठता है, क्या आप यह सिद्धान्त लागू करते हैं कि “मज़दूर अपनी मज़दूरी का हक्कदार है”? (१ तीमुथियुस ५:१८) पौलुस खुद अपने व्यवहार के विषय कह सका: “जगत में और विशेष करके तुम्हारे बीच हमारा चरित्र . . . पवित्रता और सच्चाई सहित था।”—२ कुरिन्थियों १:१२.
शालीन पोशाक और बनाव-श्रृंगार
९. कुछ प्राचीनों ने पोशाक और बनाव-श्रृंगार में कैसी प्रवृत्ति पायी है?
९ जर्मनी के एक सफ़री-अध्यक्ष ने कुछेक स्थानीय मसीहियों का सभाओं में अत्यंत लापरवाह पोशाक की वजह से उनका वर्णन “टेनिस-जूतों की पीढ़ी” के तौर से किया। शाख़ा कार्यालय ने आगे कहा कि सभाओं में उपस्थित होनेवाले कुछ लोग “बेढंगा होने की सीमा पर होते हैं,” हालाँकि “हमारे अधिकांश भाई शालीनता से प्रसाधन करते हैं।” एक और देश उसी तरह विवरण देता है कि “यहाँ निजी स्वास्थ्य-सिद्धान्त का अभाव एक समस्या है . . . कुछ भाई स्वच्छ कपड़े नहीं पहनते। सभाओं या क्षेत्र सेवकाई में जाते समय वे अपने बाल बिना कंघा किए और गंदे रखते हैं।” यहोवा के सेवकों को हर विषय में सुव्यवस्थित और साफ़ रहना कितना महत्त्वपूर्ण है!—२ कुरिन्थियों ७:१.
१०. (अ) हमारे पोशाक और बनाव-श्रृंगार का चयन किस सिद्धान्त से नियंत्रित होना चाहिए? (ब) सलाह कब उचित होगी, और हमें किस तरह प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?
१० हमें “शालीनता से, मर्यादा और औचित्य से कपड़े पहनने” चाहिए, ख़ासकर जब हम आत्मिक कार्यकलाप में हिस्सा लेते हैं। (१ तीमुथियुस २:९, न्यू इंटरनॅशनल वर्शन) विषय यह नहीं कि क्या फ़लाँ शैली अत्यंत फ़ैशनेबुल है या नहीं, लेकिन यह कि क्या यह एक ऐसे व्यक्ति के लिए उपयुक्त है जो परमेश्वर का सेवक होने का दावा करता है। (रोमियों १२:२; २ कुरिन्थियों ६:३) अत्यंत बेढंगे या तंग कपड़े हमारे संदेश के महत्त्व को कम कर सकते हैं। ऐसी शैलियाँ जो स्पष्ट रूप से और जान-बूझकर आदमियों को औरत जैसा और औरतों को आदमी जैसा बनाती हैं निश्चित रूप से अनुचित हैं। (व्यवस्थाविवरण २२:५ से तुलना करें।) निश्चय ही, चूँकि मौसम, व्यवसाय की ज़रूरतों, इत्यादि के अनुसार स्थानीय रिवाज अलग-अलग होंगे, मसीही मण्डली विश्व-व्यापी भाईचारे पर लगाने के लिए पक्के नियम नहीं बनाते। और ना ही प्राचीनों को अपने ज़ाती पसन्द झुण्ड पर लागू कराने चाहिए। परन्तु, अगर किसी राज्य प्रचारक की बनाव-श्रृंगार की शैली प्रायः मण्डली को क्षुब्ध कर देती है या सेवकाई के महत्त्व को कम करती है, तो स्नेही सलाह उचित है। क्या आप यहोवा पर भरोसा प्रकट करते हुए, ऐसी सलाह के प्रति विनम्रता से प्रतिक्रिया दिखाएँ?—इब्रानियों १२:७.
राज्य खोजनेवालों के वास्ते प्रबन्ध करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना
११. भौतिक चीज़ों की खोज में कुछेक किस तरह फँस गए हैं, और यह अविवेकी क्यों है?
११ “इसलिए पहले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करते रहो, तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।” (मत्ती ६:३३, न्यू.व.) जब कुछ लोग उन शब्दों की ओर ध्यान देने से रह जाते हैं, तो यह कितनी दुःखी बात है! आर्थिक सुरक्षा की कल्पित कथा को तत्काल मानकर, वे अत्यधिक उत्तेजन से धन-दौलत, सांसारिक शिक्षा, और दुनियावी पेशों की खोज में लगे रहते हैं, और “अपनी सम्पत्ति पर भरोसा रखते” हैं। (भजन ४९:६) सुलैमान चिताता है: “धनी होने के लिए परिश्रम न करना। . . . क्या तू अपनी दृष्टि उस वस्तु पर लगाएगा, जो है ही नहीं? वह उकाब पक्षी की नाईं पंख लगाकर निःसन्देह आकाश की ओर उड़ जाता है।”—नीतिवचन २३:४, ५.
१२. धन-दौलत की खोज में रहनेवाले ‘खुद को नाना प्रकार के दुःखों से छलनी’ कैसे बनाते हैं?
१२ प्रेरित पौलुस और आगे चिताता है: “क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुःखों से छलनी बना लिया है।” (१ तीमुथियुस ६:१०) यू.एस.न्यूज़ ॲन्ड वर्ल्ड रिपोर्ट की एक भेंटवार्ता में, डॉ. डग्लस लाबियर ने कहा कि धन-दौलत की खेज में लगे अनेक नवयुवक और नवयुवतियाँ “असंतुष्टि, परेशानी, उदासी, ख़ालीपन, संविभ्रम रोग, और साथ साथ हर प्रकार की शारीरिक शिकायतें—सरदर्द, पीठ का दर्द, पेट की समस्याएँ, निद्राहीनता, खाने की समस्याएँ—रिपोर्ट करते हैं।”
१३. “खाने और पहनने” से संतुष्ट होना सबसे बेहतर क्यों है?
१३ जो लोग अपने भरण-पोषण के लिए यहोवा पर भरोसा रखते हैं, वे खुद को बहुत सारे दुःख और परेशानी से बचाते हैं। सच, मात्र “खाने और पहनने” से संतुष्ट होने का मतलब शायद एक ज़्यादा मर्यादित जीवन-स्तर होगा। (१ तीमुथियुस ६:८) मगर “कोप के दिन धन से तो कुछ लाभ नहीं होता।” (नीतिवचन ११:४) इसके अतिरिक्त, जब हम यहोवा के लिए अपनी सेवा बढ़ाते हैं, तब हम खुद को “यहोवा की आशीष” पाने की स्थिति में पाते हैं, जिस ‘से धन मिलता है, और वह उसके साथ दुःख नहीं मिलाता।’—नीतिवचन १०:२२.
“मेल-मिलाप को ढूँढें और उसके यत्न में रहें
१४, १५. (अ) किस प्रकार के विवादों से कभी कभी मण्डली की शान्ति भंग हुई है? (ब) जब झगड़े होते हैं तब मेल-मिलाप को किस तरह ढूँढ़ा जा सकता है?
१४ हमारा यहोवा पर अपना भरोसा प्रकट करने का एक और तरीक़ा है अपने संगी-विश्वासियों के बीच ‘मेल-मिलाप ढूँढना और उसके यत्न में रहना।’ (१ पतरस ३:१०-१२) यद्यपि, कभी कभी मामूली बातों को भाइयों के बीच कटु कहा-सुनी की वजह बनने दिया जाता है: किंग्डम हॉल की सजावट, मण्डली के प्रचार-क्षेत्रों में समझौता, बुक स्टडी के नियतकार्य, पत्रिका और साहित्य की संग्रह। या, कुछ मामलों में, मत्ती १८:१५-१७ के मनोभाव में ज़ाती या व्यावसायिक विवादों को निपटने के बजाय, भाइयों ने एक दूसरे से बोलना बंद किया है या अपने वाद-विवाद से मण्डली को विक्षुब्द किया है।
१५ याकूब कहता है: “धार्मिकता का फल मेल-मिलाप के साथ बोया जाता है।” (याकूब ३:१८) इसलिए, शान्ति के हित में, दूसरों की पसन्द या मतों के सामने झुकने, निजी अधिकार छोड़ देने के लिए भी, तैयार रहें। (उत्पत्ति १३:५-१२ से तुलना करें।) उदाहरणार्थ, अगर दो मण्डली एक ही किंग्डम हॉल का उपयोग करते हैं, तो किसी एक मण्डली को यह स्थिति नहीं लेनी चाहिए कि वे हॉल के “मालिक” हैं और उन्हें सभा के समय तय करने या दूसरी मण्डली से संबंधित अन्य मामलों पर आदेश देने का अधिकार है। परस्पर आदर और सहयोग बने रहने चाहिए।
१६. धर में और मण्डली में ईश्वरशासित व्यवस्था को मानने का मूल्य क्या है?
१६ कई झगड़ों को टाला जा सकता है जब हम ईश्वरशासित व्यवस्था स्वीकार करते हैं और अपना उचित स्थान रखते हैं। (१ कुरिन्थियों ११:३; इफिसियों ५:२२-२७) जब पत्नी अपने पति की इच्छाएँ, बच्चे अपने माता-पिता के आदेश, और सहायक सेवक प्राचीनों के निदेश मानते हैं, तब उनकी कार्रवाई “[मण्डली] को बढ़ाती हैं, कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए।” (इफिसियों ४:१६) माना कि कभी कभी पति, माता-पिता, और प्राचीन पाप करते हैं। (रोमियों ३:२३) पर क्या विद्रोह करने, शिकायत करने, या नेकनीयत निदेशों का प्रतिरोध करने से स्थिति सुधर जाएगी? कितना बेहतर होगा कि हम परमेश्वर से नियत अपने स्थान पर रहें और मेल-मिलाप को ढूँढ़ें!
क्षेत्र में खुद से परिश्रम करवाना
१७. (अ) कुछेक प्रचार कार्य में नाम-मात्र का हिस्सा लेने के क्या कारण देते हैं? (ब) यीशु ने मसीहियों को आज के दबावों से निपटने के लिए कैसे प्रोत्साहित किया?
१७ यद्यपि, अनेक लोगों के लिए सुसमाचार प्राचार करने का मसीही नियतकार्य पूरा करना सबसे बड़ी चुनौती है। (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) कुछेक क्षेत्र सेवकाई में बस कम से कम हिस्सा लेते हैं, शायद यह तर्क करके कि रोज़गारी कमाने और परिवार का भरण-पोषण करने के दबावों से इस से ज़्यादा करना उनके लिए मुश्किल है। माना कि “अन्तिम दिनों” के दबाव विकट हैं। (२ तीमुथियुस ३:१) परन्तु, यीशु ने ‘जीवन की चिन्ताओं से झकने’ के विरुद्ध चिताया। जैसे परिस्थितियाँ बिगड़ती जाती हैं, मसीहियों को ‘सीधे होकर अपने सिर उठाने चाहिए।’ (लूका २१:२८, ३४) शैतान के आक्रमणों के विरुद्ध “स्थिर रहने” का एक बेहतरीन तरीक़ा है “पाँवों में मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहनना”—प्रचार कार्य में नियमित रूप से हिस्सा लेना!—इफिसियों ६:१४, १५, न्यू.व.
१८. कुछ लोगों को प्रचार कार्य में पूरा हिस्सा लेने से पीछे हटने का क्या कारण हो सकता है?
१८ पौलुस के समय में, कई मसीही (कम से कम कुछेक मण्डलियों में) “अपने स्वार्थ की खोज में रहते” थे “न कि यीशु मसीह की।” (फिलिप्पियों २:२१) क्या यह हमारे बीच कुछेकों के बारे में सच होगा? शायद वे राज्य को खोजने का विचार उस आदमी के जैसे नहीं करते जिसे “एक बहुमूल्य मोती” मिला जिसके लिए वह कुछ भी त्याग देता। (मत्ती १३:४५, ४६) स्वार्थ के सामने झुककर, वे कम से कम प्रतिरोध की पद्धति लेते हैं और केवल नाम-मात्र की सेवा देते हैं। फिर भी, याद रखें कि यहोवा और संगी मनुष्यों के लिए प्रेम सच्चे मसीहियों को प्रचार करने के लिए प्रेरित करता है, तब भी अगर अजनबियों से बातें शुरू करना हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति के विरुद्ध है।—मत्ती २२:३७-३९.
१९. यहोवा निरुत्साह कोशिशों से क्या अप्रसन्न है, और उसे दी खुद अपनी सेवा कैसे मूल्यांकित कर सकते हैं?
१९ अगर हम प्रचार करने के लिए प्रेरित नहीं होते, तो यहोवा के लिए हमारा प्रेम और उस पर हमारा भरोसा मानसिक सचेतन से ज़्यादा और कुछ नहीं। “तू अपने पिता के परमेश्वर का ज्ञान रख, और संपूर्ण दिल से उसकी सेवा करता रह,” दाऊद ने सुलैमान को प्रबोधित किया, “क्योंकि यहोवा दिल को जाँचता और विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है उसे समझता है।” (१ इतिहास २८:९, न्यू.व.) निरुत्साही कोशिशों से यहोवा धोखा नहीं दिया जा सकता। अगर हम ‘यत्न कर’ रहे होते तो जो सेवा हम कर सकते हैं, उसकी बस निशानी मात्र देंगे, तब क्षेत्र सेवकाई में नियमित रूप से हिस्सा लेना भी उसे संतुष्ट नहीं करता। (लूका १३:२४) इस प्रकार हर एक मसीही को क्षेत्र सेवा में अपने हिस्सा का सच्चा मूल्यांकन करना चाहिए और खुद को पूछना चाहिए: ‘क्या मैं सचमुच वह सब कर रहा हूँ जो मैं कर सकता हूँ?’ शायद हमारी प्राथमिकताओं में समायोजन करने की ज़रूरत है।
दूसरों के मिसालों से “भला करने” के लिए प्रेरित
२०. संगी मसीहियों द्वारा अच्छे मिसाल जाँचना क्यों उपयुक्त है?
२० परमेश्वर के प्रति हमारी सेवा ‘दूसरे की तुलना में नहीं’ की जाती। (गलतियों ६:४) फिर भी, दूसरे के अच्छे मिसाल हमें ज़्यादा करने के लिए अक़्सर प्रोत्साहित करते हैं। खुद प्रेरित पौलुस ने कहा: “तुम मेरी सी चाल चलो, जैसे मैं मसीह की सी चाल चलता हूँ।” (१ कुरिन्थियों ११:१) तो फिर, ग़ौर करें कि हमारे भाई हर महीने क्षेत्र सेवा में कितना समय बिता रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में, प्रचारकों के औसत घंटे १९७९ में ८.३ घंटों से १९८७ में ९.७ घंटों तक बढ़े हैं! हमारे भाई क्षेत्र में बिताया समय बराबर बढ़ाते गए हैं। क्या यह आप के विषय सच है?
२१. अनेक पायनियर सेवा में दाख़िल होने के लिए किस बात से प्रोत्साहित हुए?
२१ दूसरों के उत्साही मिसालों से प्रेरित होकर, कीर्तिमान संख्या में लोग नियमित पायनियर सेवा में दाख़िल हो रहे हैं। कॅलिफ़ोर्निया (यू.एस.ए.) में ॲन्जेला नाम की एक जवान बहन को नौकरी का एक आकर्षक प्रस्ताव मिला, जिस में उसकी पसन्द के महाविद्यालय में छात्रावृत्ति भी समाविष्ट थी। उलटा, ॲन्जेला ने पूरे-समय की सेवकाई चुनी। उसका हेतु? “अनेक पायनियरों के साथ मेल-जोल रखकर मैं एक सचमुच ही गहरा आनन्द और संतोष देख सकती थी जो वे न सिर्फ़ अपने में, लेकिन यहोवा के साथ उनके रिश्ते में महसूस करते थे। मुझे भी यह गहरा आनन्द और संतोष चाहिए था।”
२२. सीखी हुई बातों का पालन करने के लाभ क्या हैं?
२२ क्या आप “गहरा आनन्द और संतोष” चाहते हैं? तो फिर “यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर”! यहोवा की सेवा में अधिकाधिक करने के लिए, जो कुछ आप जानते हैं, उसे अपने आप को प्रेरित करने दें। सीखी हुई बातों के अनुसार चलने से आपकी आत्मिक उन्नति सब पर प्रगट होगी और एक प्राणरक्षक रीति से दूसरों को फ़ायदा पहुँचेगा। (१ तीमुथियुस ४:१५, १६) इसलिए, सभी फिलिप्पियों ४:९ में पौलुस के शब्दों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाएँ: “जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनीं, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।”
समीक्षा के विषय
◻ परमेश्वर के वचन के आइने में ताकने के प्रति हमारी कैसी प्रतिक्रिया होनी चाहिए?
◻ हमारा दूसरों से व्यवहार करने के तरीक़े में हम किस तरह सुधर सकते हैं?
◻ भौतिक चीज़ों की खोज में लगे रहना अविवेक क्यों है?
◻ हम मण्डली में किस तरह मेल-मिलाप को ढूँढ़ सकते हैं?
◻ हमें किस बात से क्षेत्र सेवकाई में पूरा हिस्सा लेने के लिए प्रेरित होना चाहिए?
[पेज 16 पर तसवीरें]
आत्मिक दोष और दाग़ों को देखना ही काफ़ी नहीं। उन्हें ठीक करने के लिए हमें क़दम उठाने चाहिए
[पेज 18 पर तसवीरें]
धन-दौलत की खोज में लगे रहनेवाले लोग अक़्सर अपने ऊपर “नाना प्रकार के दुःख” लाते हैं