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  • क्या मसीह की व्यवस्था अनुज्ञात्मक है?
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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मसीह की व्यवस्था

“मैं . . . मसीह की व्यवस्था के आधीन हूं।”—१ कुरिन्थियों ९:२१.

१, २. (क) मानवजाति की अनेक ग़लतियों को शायद कैसे रोका जा सकता था? (ख) यहूदी धर्म के इतिहास से मसीहीजगत क्या सीखने में असफल रहा है?

“इतिहास से लोगों और सरकारों ने कभी कुछ नहीं सीखा, या कभी उससे लिए गए सिद्धान्तों पर कार्य नहीं किया।” १९वीं शताब्दी के एक जर्मन तत्त्वज्ञानी ने ऐसा कहा। वास्तव में, मानव इतिहास के दौर को इस प्रकार वर्णित किया गया है: “ग़लतियों का क्रम,” भयंकर भूलों और संकटों की एक श्रंखला, जिनमें से अनेक को रोका जा सकता था यदि मनुष्यजाति केवल पिछली ग़लतियों से सीखने की इच्छुक होती।

२ पिछली ग़लतियों से सीखने के उसी इनकार को ईश्‍वरीय व्यवस्था की इस चर्चा में ख़ास महत्त्व दिया गया है। यहोवा परमेश्‍वर ने मूसा की व्यवस्था को उससे भी एक श्रेष्ठ—मसीह की व्यवस्था—से बदल दिया। फिर भी, मसीहीजगत के अगुवे, जो कि इस व्यवस्था को सिखाने और उसके अनुसार जीवन बिताने का दावा करते हैं, फरीसियों की गंभीर ग़लतियों से सीखने में असफल रहे हैं। सो मसीहीजगत ने मसीह की व्यवस्था को तोड़-मरोड़ दिया है और उसका दुरुपयोग किया है ठीक जैसे यहूदी धर्म ने मूसा की व्यवस्था के साथ किया था। ऐसा कैसे हो सकता है? आइए सबसे पहले हम इस व्यवस्था के बारे में ही चर्चा करें—यह क्या है, यह किसे नियंत्रित करती है और कैसे, और क्या बात इसे मूसा की व्यवस्था से भिन्‍न करती है। उसके बाद हम जाँच करेंगे कि कैसे मसीहीजगत ने इसका दुरुपयोग किया है। ऐसा हो कि इस प्रकार हम इतिहास से सीखें और इससे लाभ उठाएँ!

नई वाचा

३. नई वाचा के सम्बन्ध में यहोवा ने क्या प्रतिज्ञा की?

३ परिपूर्ण व्यवस्था में यहोवा परमेश्‍वर को छोड़ और कौन सुधार कर सकता था? मूसा की व्यवस्था वाचा परिपूर्ण थी। (भजन १९:७) इसके बावजूद यहोवा ने प्रतिज्ञा की: “सुन, ऐसे दिन आनेवाले हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों से नई वाचा बान्धूंगा। वह उस वाचा के समान न होगी जो मैं ने उनके पुरखाओं से . . . बान्धी थी।” वे दस आज्ञाएँ—मूसा की व्यवस्था का केन्द्र-बिन्दु—पत्थर की पट्टियाओं पर लिखी गई थीं। लेकिन नई वाचा के बारे में, यहोवा ने कहा: “मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा।”—यिर्मयाह ३१:३१-३४.

४. (क) नई वाचा में कौन-सा इस्राएल शामिल है? (ख) आत्मिक इस्राएल के अलावा और कौन मसीह की व्यवस्था के अधीन हैं?

४ इस नई वाचा में किसे शामिल किया जाता? निश्‍चित ही शाब्दिक ‘इस्राएल का घराना’ नहीं, जिसने इस वाचा के मध्यस्थ को ठुकरा दिया। (इब्रानियों ९:१५) जी नहीं, यह नया “इस्राएल,” आत्मिक इस्राएलियों की एक जाति, ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ होता। (गलतियों ६:१६; रोमियों २:२८, २९) बाद में सभी जातियों से एक “बड़ी भीड़” द्वारा इस छोटे, आत्मा-अभिषिक्‍त मसीहियों के समूह का साथ दिया जाता जो यहोवा की उपासना करना चाहेंगे। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १०; जकर्याह ८:२३) हालाँकि इसकी नई वाचा में कोई सहभागिता नहीं होती, ये लोग भी व्यवस्था के अनुसार बाध्य होते। (लैव्यव्यवस्था २४:२२; गिनती १५:१५ से तुलना कीजिए।) जैसा प्रेरित पौलुस ने लिखा, ‘एक ही चरवाहे’ के अधीन “एक ही झुण्ड” के तौर पर सभी “मसीह की व्यवस्था के आधीन” होते। (यूहन्‍ना १०:१६; १ कुरिन्थियों ९:२१) पौलुस ने इस नई वाचा को “उत्तम वाचा” कहा। क्यों? एक बात तो यह है कि यह आनेवाली वस्तुओं के प्रतिबिम्ब के बजाय पूर्ण हुई प्रतिज्ञाओं पर आधारित है।—इब्रानियों ८:६; ९:११-१४.

५. नई वाचा का उद्देश्‍य क्या है, और यह क्यों सफल होगी?

५ इस वाचा का उद्देश्‍य क्या है? इसे पूरी मानवजाति को आशिष देने के लिए राजाओं और याजकों की एक जाति को उत्पन्‍न करना है। (निर्गमन १९:६; १ पतरस २:९; प्रकाशितवाक्य ५:१०) मूसा की व्यवस्था वाचा ने पूरे अर्थ में इस जाति को कभी उत्पन्‍न नहीं किया, क्योंकि कुल मिलाकर सारे इस्राएल ने विद्रोह किया और अपने अवसर को गँवा दिया। (रोमियों ११:१७-२१ से तुलना कीजिए।) लेकिन, नई वाचा निश्‍चित ही सफल होगी, क्योंकि इसका सम्बन्ध बिलकुल भिन्‍न प्रकार की व्यवस्था के साथ है। किन तरीक़ों से भिन्‍न?

स्वतंत्रता की व्यवस्था

६, ७. मूसा की व्यवस्था से मसीह की व्यवस्था ज़्यादा स्वतंत्रता कैसे प्रस्तुत करती है?

६ मसीह की व्यवस्था को बार-बार स्वतंत्रता के साथ जोड़ा गया है। (यूहन्‍ना ८:३१, ३२) इसे “स्वतंत्र लोगों की व्यवस्था” और “स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था” बताया गया है। (याकूब १:२५; २:१२, NW) निश्‍चिय ही, मनुष्यों के बीच सारी स्वतंत्रता सापेक्षिक है। फिर भी, यह व्यवस्था अपनी पूर्वाधिकारी, मूसा की व्यवस्था से कहीं ज़्यादा स्वतंत्रता देती है। वह कैसे?

७ एक बात तो यह कि कोई भी मसीह की व्यवस्था के अधीन पैदा नहीं होता। जाति और जन्म-स्थान जैसे तत्व असंगत हैं। सच्चे मसीही इस व्यवस्था के प्रति आज्ञाकारिता के जुए को स्वीकार करने का अपने हृदय में स्वतंत्रतापूर्वक चुनाव करते हैं। ऐसा करने में, वे पाते हैं कि यह एक सहज जुआ, एक हल्का बोझ है। (मत्ती ११:२८-३०) आख़िरकार मूसा की व्यवस्था मनुष्य को यह सिखाने के लिए भी बनायी गई थी कि वह पापपूर्ण है और उसे छुड़ाने के लिए छुड़ौती बलिदान की सख़्त ज़रूरत में है। (गलतियों ३:१९) मसीह की व्यवस्था सिखाती है कि मसीहा आ चुका है, अपने जीवन से छुड़ौती का मूल्य चुकाया है, और पाप और मृत्यु के भयंकर उत्पीड़न से हमें मुक्‍त करने का मार्ग खोल चुका है! (रोमियों ५:२०, २१) उससे लाभ उठाने के लिए, हमें उस बलिदान में ‘विश्‍वास करने’ की ज़रूरत है।—यूहन्‍ना ३:१६.

८. मसीह की व्यवस्था में क्या शामिल है, लेकिन उसके अनुसार जीने के लिए सैकड़ों कानूनी विधियों को रटने की ज़रूरत क्यों नहीं है?

८ ‘विश्‍वास करने’ में मसीह की व्यवस्था के अनुसार जीवन बिताना शामिल है। इसमें मसीह की सभी आज्ञाओं को मानना शामिल है। क्या इसका यह अर्थ है कि सैकड़ों नियमों और विधियों को रट लिया जाए? जी नहीं। जबकि मूसा की व्यवस्था को पुरानी वाचा के मध्यस्थ ख़ुद मूसा ने लिखा, नई वाचा के मध्यस्थ, यीशु ने एक भी नियम नहीं लिखा। इसके बजाय, वह इस नियम के अनुसार जीया। अपनी परिपूर्ण जीवन-रीति के माध्यम से, उसने सभी के अनुसरण के लिए एक नमूना रखा। (१ पतरस २:२१) संभवतः इसीलिए प्रारंभिक मसीहियों की उपासना को “पंथ” के तौर पर सूचित किया गया था। (प्रेरितों ९:२; १९:९, २३; २२:४; २४:२२) उनके लिए, मसीह की व्यवस्था मसीह के जीवन में प्रदर्शित हुई थी। यीशु का अनुसरण करने का अर्थ था इस व्यवस्था का पालन करना। उससे उनका गहरा प्रेम रखने का अर्थ था कि वास्तव में यह व्यवस्था उनके हृदयों पर लिखी गई थी, जैसे कि भविष्यवाणी की गई थी। (यिर्मयाह ३१:३३; १ पतरस ४:८) और जो व्यक्‍ति प्रेम के कारण आज्ञाकारी होता है वह कभी उत्पीड़ित महसूस नहीं करता—एक और कारण कि मसीह की व्यवस्था को क्यों “स्वतंत्र लोगों की व्यवस्था” कहा जा सकता है।

९. मसीह की व्यवस्था का सार क्या है, और किस तरीक़े से यह व्यवस्था नई आज्ञा को शामिल करती है?

९ यदि मूसा की व्यवस्था में प्रेम महत्त्वपूर्ण था, तो मसीही व्यवस्था का यह सार है। इस प्रकार मसीह की व्यवस्था एक नई आज्ञा को शामिल करती है—मसीहियों को एक दूसरे के लिए आत्म-बलिदानी प्रेम होना चाहिए। उन्हें वैसा प्रेम करना है जैसे यीशु ने किया; उसने अपने मित्रों के लिए अपना जीवन स्वेच्छा से दे दिया। (यूहन्‍ना १३:३४, ३५; १५:१३) तो यह कहा जा सकता है कि मसीह की व्यवस्था, मूसा की व्यवस्था से भी ईशतंत्र की एक कहीं श्रेष्ठ अभिव्यक्‍ति है। जैसे इस पत्रिका ने पहले सूचित किया था: “ईशतंत्र परमेश्‍वर द्वारा शासन है; परमेश्‍वर प्रेम है; इसलिए ईशतंत्र प्रेम द्वारा शासन है।”

यीशु और फरीसी

१०. यीशु की शिक्षा फरीसियों की शिक्षाओं की विषमता में कैसे थी?

१० तब, यह शायद ही आश्‍चर्य की बात है कि यीशु अपने दिन के यहूदी धार्मिक अगुवों के विरोध में था। एक “स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था” शास्त्रियों और फरीसियों के मन से इतनी दूर थी जितनी कोई भी चीज़ हो सकती है। उन्होंने मानव-निर्मित विधियों के माध्यम से लोगों के जीवन को क़ाबू करने की कोशिश की। उनकी शिक्षा उत्पीड़क, निन्दात्मक, नकारात्मक बन गई। इसकी पूर्ण विषमता में यीशु की शिक्षा हद से ज़्यादा प्रोत्साहक और सकारात्मक थी! वह व्यावहारिक था और उसने लोगों की असली ज़रूरतों और चिन्ताओं के बारे में बात की। रोज़मर्रा के जीवन से दृष्टान्तों का प्रयोग करके और परमेश्‍वर के वचन का अधिकार लेकर उसने सरलता से और असली भावनाओं के साथ सिखाया। अतः, “भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई।” (मत्ती ७:२८) जी हाँ, यीशु की शिक्षा उनके हृदयों तक पहुँच गई!

११. यीशु ने कैसे प्रदर्शित किया कि मूसा की व्यवस्था करुणा और दया के साथ लागू की जानी चाहिए थी?

११ मूसा की व्यवस्था में और विधियाँ जोड़ने के बजाय, यीशु ने दिखाया कि यहूदियों को व्यवस्था को किस प्रकार लागू करना चाहिए था—कोमलता और दया के साथ। उदाहरण के लिए, उस अवसर को याद कीजिए जब एक लहू बहने के रोग से ग्रस्त स्त्री उसके पास आई। मूसा की व्यवस्था के अनुसार, वह जिसे भी छूती वह अशुद्ध हो जाता, सो उसे निश्‍चित ही भीड़ के साथ शामिल होना नहीं चाहिए था! (लैव्यव्यवस्था १५:२५-२७) लेकिन वह चंगी होने के लिए इतनी आतुर थी कि उसने भीड़ में से रास्ता बनाया और यीशु के ऊपरी वस्त्र को छू लिया। उसी समय लहू बहना थम गया। क्या उसने उसे व्यवस्था का उल्लंघन करने के लिए डाँटा? जी नहीं; इसके बजाय, वह उसकी हताश परिस्थिति को समझ गया और व्यवस्था के सर्वश्रेष्ठ आदेश—प्रेम—को प्रदर्शित किया। तदनुभूतिपूर्वक उसने उसे कहा: “पुत्री तेरे विश्‍वास ने तुझे चंगा किया है: कुशल से जा, और अपनी इस बीमारी से बची रह।”—मरकुस ५:२५-३४.

क्या मसीह की व्यवस्था अनुज्ञात्मक है?

१२. (क) हमें यह अनुमान क्यों नहीं लगाना चाहिए कि मसीह अनुज्ञात्मक है? (ख) क्या दिखाता है कि अनेक नियमों का बनाना बच निकलने के अनेक रास्ते बनने की ओर ले जाता है?

१२ तब, क्या हमें यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि क्योंकि मसीह की व्यवस्था “स्वंतत्रता की” है, इसलिए यह अनुज्ञात्मक है, जबकि फरीसियों ने अपनी सभी मौखिक परम्पराओं द्वारा कम-से-कम लोगों के आचरण को सख़्त दायरे में रखा था? जी नहीं। कानूनी ढाँचे यह दिखाते हैं कि अकसर जितने ज़्यादा नियम होते हैं, लोग उनमें उतने ही ज़्यादा बच निकलने के रास्ते ढूँढ निकालते हैं।a यीशु के दिनों में फरीसियों के नियमों की बहुतायत ने, बच निकलने के रास्ते खोजने, प्रेम रहित नाम मात्र के लिए कार्य करने, और आन्तरिक भ्रष्टता को आत्म-धर्मी मुखौटे से छिपाने के लिए बढ़ावा दिया।—मत्ती २३:२३, २४.

१३. मसीह की व्यवस्था किसी भी लिखित नियम संहिता से कहीं ऊँचे आचरण स्तर में कैसे परिणित होती है?

१३ इसकी विषमता में, मसीह की व्यवस्था इस प्रकार की मनोवृत्तियों को पोषित नहीं करती। वास्तव में, ऐसी व्यवस्था का पालन करना जो यहोवा के लिए प्रेम पर आधारित है और जिसका पालन दूसरों के लिए मसीह के आत्म-बलिदानी प्रेम का अनुसरण करने के द्वारा किया जाता है, एक औपचारिक कानूनी संहिता का पालन करने से कहीं ज़्यादा ऊँचे आचरण के स्तर में परिणित होता है। प्रेम बच निकलने के रास्ते नहीं खोजता; यह हमें ऐसी नुक़सानदेह बातों को करने से रोकता है जिसे एक नियम संहिता शायद स्पष्ट रूप से वर्जित न करे। (मत्ती ५:२७, २८ देखिए।) अतः, मसीह की व्यवस्था दूसरों के लिए ऐसे तरीक़ों से कार्य करने के लिए—उदारता, पहुनाई, और प्रेम दिखाने के लिए—हमें उकसाएगी जिसे कोई भी औपचारिक नियम हमसे नहीं करवा सकता।—प्रेरितों २०:३५; २ कुरिन्थियों ९:७; इब्रानियों १३:१६.

१४. प्रथम-शताब्दी मसीही कलीसिया पर मसीह की व्यवस्था के अनुसार जीने का क्या प्रभाव पड़ा था?

१४ जिस हद तक प्रारंभिक मसीही कलीसिया के सदस्य मसीह की व्यवस्था के अनुरूप जीए, उन्हों ने एक स्नेही, प्रेममय वातावरण का आनन्द उठाया, जो उन कठोर, दोष लगानेवाली, और कपटपूर्ण मनोवृत्तियों से अपेक्षाकृत रूप से मुक्‍त था जो उस समय के आराधनालयों में इतनी व्यापक थीं। इन नई कलीसियाओं के सदस्यों ने यह सचमुच महसूस किया होगा कि वे “स्वतंत्र लोगों की व्यवस्था” के अनुसार जी रहे थे!

१५. मसीही कलीसिया को भ्रष्ट करने के शैतान के कुछ प्रारंभिक प्रयास क्या थे?

१५ लेकिन, शैतान मसीही कलीसिया को भीतर से भ्रष्ट करने के लिए उतारू था, ठीक जैसे उसने इस्राएल जाति को भ्रष्ट किया था। प्रेरित पौलुस ने भेड़िए समान लोगों के बारे में चेतावनी दी जो ‘टेढ़ी मेढ़ी बातें’ कहते और जो परमेश्‍वर के झुण्ड को सताते। (प्रेरितों २०:२९, ३०) उसको यहूदी मत-समर्थकों से संघर्ष करना पड़ा, जो मसीह की व्यवस्था की सापेक्षिक स्वतंत्रता को मूसा की व्यवस्था की दासता से बदलना चाहते थे, जो मसीह में पूरी हो चुकी थी। (मत्ती ५:१७; प्रेरितों १५:१; रोमियों १०:४) अन्तिम प्रेरित के मरने के बाद, इस प्रकार के धर्मत्याग के सामने कोई बाधा नहीं थी। इसलिए भ्रष्टता व्यापक हो गयी।—२ थिस्सलुनीकियों २:६, ७.

मसीहीजगत मसीह की व्यवस्था को दूषित करता है

१६, १७. (ख) मसीहीजगत में भ्रष्टता ने कौन-सा रूप धारण किया है? (ख) कैथोलिक चर्च के नियमों ने सॆक्स के बारे में एक विकृत दृष्टिकोण को कैसे बढ़ावा दिया?

१६ जैसा यहूदी धर्म के साथ हुआ, भ्रष्टता ने मसीहीजगत में एक से ज़्यादा रूप धारण कर लिए। वह भी झूठे धर्मसिद्धान्तों और गिरी हुई नैतिकता का शिकार हो गया। और अपने झुण्ड को बाहर के प्रभावों से बचाने के उसके प्रयास थोड़ी-बहुत बची हुई शुद्ध उपासना के लिए अकसर क्षयकारी सिद्ध हुए। कठोर और अशास्त्रीय नियम प्रचुर मात्रा में तैयार किए गए।

१७ कैथोलिक चर्च बड़ी संख्या में गिरजा नियम बनाने में सबसे आगे रहा है। ये नियम सॆक्स से सम्बन्धित मामलों में ख़ास तौर पर विकृत थे। पुस्तक लैंगिकता और कैथोलिकवाद (अंग्रेज़ी) के अनुसार, गिरजे ने यूनान के स्टोइकवादी तत्वज्ञान को ग्रहण कर लिया था, जो सभी प्रकार के सुख के प्रति संदेही था। गिरजे ने सिखाया कि सभी लैंगिक सुख, जिसमें सामान्य विवाह सम्बन्ध शामिल हैं, पापपूर्ण था। (नीतिवचन ५:१८, १९ से विषमता कीजिए।) मैथुन को जनन के लिए छोड़ किसी और उद्देश्‍य के लिए न होने का दावा किया जाता था। इस प्रकार गिरजे के नियम ने किसी भी प्रकार के गर्भनिरोध की एक बहुत ही गंभीर पाप के रूप में भर्त्सना की, कभी-कभी जिसके लिए अनेक वर्षों तक प्रायश्‍चित की ज़रूरत होती। इसके अलावा, पादरीवर्ग को विवाह करने से मनाही थी, एक ऐसा धर्मादेश जिसने काफ़ी हद तक नाजायज़ यौन सम्बन्धों को बढ़ा दिया, जिसमें बाल-दुर्व्यवहार शामिल है।—१ तीमुथियुस ४:१-३.

१८. गिरजा नियमों की बढ़ोतरी का क्या परिणाम हुआ?

१८ जैसे-जैसे गिरजा नियम बढ़ते गए, उन्हें पुस्तकों में लेखबद्ध किया गया। ये गूढ़ बनती गयीं, और बाइबल की जगह लेने लगीं। (मत्ती १५:३, ९ से तुलना कीजिए।) यहूदी धर्म के समान, कैथोलिकवाद ने लौकिक लेखन पर अविश्‍वास प्रकट किया और उसे एक ख़तरे की तरह देखा। इस मामले में यह दृष्टिकोण जल्द ही बाइबल की तर्कसंगत चेतावनी से कहीं आगे निकल गया। (सभोपदेशक १२:१२; कुलुस्सियों २:८) सामान्य युग चौथी शताब्दी के एक गिरजा लेखक, जेरोम ने घोषित किया: “हे प्रभु, अगर दोबारा कभी मैं सांसारिक पुस्तकें रखूँ या उन्हें पढ़ूँ, तो इसका मतलब मैं तुझसे इनकार करता हूँ।” बाद में, गिरजे पुस्तकों को सॆन्सर करने का काम करने लगे—उन पुस्तकों को भी जो लौकिक विषयों पर थीं। अतः यह लिखने के लिए कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है १७वीं शताब्दी के खगोलशास्त्री गलीलियो पर सॆन्सर लगा दिया गया। सभी बातों पर—यहाँ तक कि खगोलशास्त्र के बारे में सवालों पर—अन्तिम अधिकारी होने का गिरजे का हठ—आगे चलकर यह बाइबल में विश्‍वास को खोखला बनाने का काम करता।

१९. कैसे मठों ने कठोर अधिकारवाद को बढ़ावा दिया?

१९ गिरजे का नियम-बनाना मठों में फलने-फूलने लगा, जहाँ मठवासी आत्म-त्याग का जीवन बिताने के लिए ख़ुद को इस संसार से अलग कर लेते थे। अधिकांश कैथोलिक मठ “सॆन्ट बेनेडिक्ट के मत” पर चले। एबोट (“पिता” के लिए आरामी शब्द से लिया गया एक शब्द) निरंकुश अधिकार के साथ शासन करता था। (मत्ती २३:९ से तुलना कीजिए।) यदि एक मठवासी को अपने माता-पिता से कोई उपहार मिलता, तो एबोट यह निर्णय करता कि यह उस मठवासी को या किसी और को मिलना चाहिए। अश्‍लील बातों की भर्त्सना करने के अलावा एक नियम ने सभी प्रकार की हल्की-फुल्की बातचीत, और चुटकुलों को यह कहते हुए वर्जित किया कि “कोई भी चेला ऐसी बातें नहीं करेगा।”

२०. क्या दिखाता है कि प्रोटॆस्टॆन्टवाद भी अशास्त्रीय सत्तावाद में कुशल सिद्ध हुआ है?

२० प्रोटॆस्टॆन्टवाद, जिसने कैथोलिकवाद की अशास्त्रीय ज़्यादतियों को सुधारने की कोशिश की, जल्द ही समान रूप से ऐसे अधिकारयुक्‍त नियमों को बनाने में उतना ही कुशल हो गया जिनका मसीह की व्यवस्था में कोई आधार नहीं है। उदाहरण के लिए, अग्रिम सुधारक जॉन केलविन “पुनःनिर्मित चर्च का विधिकर्ता” कहलाया जाने लगा। उसने जीनिवा पर अनेक सख़्त नियमों से नियंत्रण किया, जो “प्राचीनों” द्वारा लागू किया गया जिनके “कार्य” केलविन बताता है, “सभी के जीवन का निरीक्षण करना है।” (२ कुरिन्थियों १:२४ से विषमता कीजिए।) गिरजे ने इन सरायों पर नियंत्रण रखा और निर्धारित किया कि किन विषयों पर बातचीत की अनुमति थी। नाचने या छिछोरे गीत गाने जैसे अपराधों के लिए कड़ी सज़ा थी।b

मसीहीजगत की ग़लतियों से सीखना

२१. ‘लिखे हुए से आगे बढ़ने’ की मसीहीजगत की प्रवृत्ति के कुल मिलाकर क्या प्रभाव पड़े हैं?

२१ क्या इन सभी विधियों और नियमों ने मसीहीजगत को भ्रष्टता से बचाने के लिए कार्य किया है? इसके बिलकुल विपरीत! आज मसीहीजगत सैकड़ों सम्प्रदायों में टूट चुका है, जो हद से ज़्यादा सख़्त से लेकर भयंकर रूप से अनुज्ञात्मक तक हैं। एक या दूसरे तरीक़े से, इनमें से सभी ‘लिखे हुए से आगे बढ़ गए,’ मानव सोच-विचार से झुण्ड को नियंत्रित करने और ईश्‍वरीय व्यवस्था के साथ टकराने की अनुमति दी।—१ कुरिन्थियों ४:६.

२२. मसीहीजगत की असफलता का अर्थ मसीह की व्यवस्था का अन्त क्यों नहीं है?

२२ लेकिन, मसीह की व्यवस्था के इतिहास का अन्त बुरा नहीं है। यहोवा परमेश्‍वर कभी-भी नाचीज़ मनुष्यों को ईश्‍वरीय व्यवस्था मिटाने की अनुमति नहीं देगा। सच्चे मसीहियों के बीच मसीही व्यवस्था आज बलपूर्वक कार्य कर रही है, और इनके पास इसके अनुसार जीवन जीने का बड़ा विशेषाधिकार है। लेकिन इसकी जाँच करने के बाद कि यहूदी धर्म और मसीहीजगत ने ईश्‍वरीय व्यवस्था के साथ क्या किया है, उचित ही हम शायद पूछें, ‘परमेश्‍वर के वचन को मानव तर्क और नियमों से, जो ईश्‍वरीय व्यवस्था के मूल तत्व को कमज़ोर बना देते हैं, दूषित करने के फँदे से बचते हुए, हम कैसे मसीह की व्यवस्था के अनुसार जीते हैं? आज मसीह की व्यवस्था को हमारे भीतर कौन-सा संतुलित दृष्टिकोण उत्पन्‍न करना चाहिए?’ अगला लेख इन सवालों पर चर्चा करेगा।

[फुटनोट]

a यहूदी धर्म का जो रूप आज अस्तित्व में है उसके लिए फरीसी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार थे, तो इसमें आश्‍चर्य नहीं कि यहूदी धर्म अब भी अपने अनेक जोड़े गए सब्त निषेधों से बच निकलने के रास्ते खोजता है। उदाहरण के लिए, सब्त के दिन एक रूढ़िवादी यहूदी अस्पताल में आनेवाला व्यक्‍ति शायद पाए कि लिफ़्ट हरेक मंज़िल पर अपने आप रुक जाती है ताकि यात्री लिफ़्ट के बटन को दबाने का पापपूर्ण “कार्य” करने से बच सकें। कुछ रूढ़िवादी डॉक्टर नुस्ख़ों को ऐसी स्याही से लिखते हैं जो कि थोड़े ही दिनों में उड़ जाएगी। क्यों? मिशनाह लेखन को एक “कार्य” में वर्गीकृत करता है, लेकिन यह “लेखन” को एक स्थायी निशान छोड़ना, के रूप में परिभाषित करता है।

b सरवीटस को, जिसने केलविन के कुछ धर्मवैज्ञानिक दृष्टिकोणों पर विवाद किया, एक विधर्मी के तौर पर सूली पर जला दिया गया।

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ मसीह की व्यवस्था का सार क्या है?

◻ यीशु के सिखाने का तरीक़ा फरीसियों से कैसे भिन्‍न था?

◻ मसीहीजगत को भ्रष्ट करने के लिए शैतान ने कैसे सख़्त, नियम बनाने की आत्मा का इस्तेमाल किया?

◻ मसीह की व्यवस्था के अनुसार जीने के कुछ सकारात्मक प्रभाव क्या हैं?

[पेज 16 पर तसवीरें]

यीशु ने मूसा की व्यवस्था कोमलता से और दयापूर्वक लागू की

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