अध्याय 17
यहोवा के संगठन के करीब रहिए
शिष्य याकूब ने लिखा, “परमेश्वर के करीब आओ और वह तुम्हारे करीब आएगा।” (याकू. 4:8) जी हाँ, यहोवा न तो इतनी ऊँची जगह पर विराजमान है, न ही इतना दूर है कि हमारी प्रार्थनाएँ न सुन सके। हमारी खामियों के बावजूद वह हमारी सुनता है। (प्रेषि. 17:27) हम परमेश्वर के करीब कैसे आ सकते हैं? उसके साथ एक नज़दीकी रिश्ता कायम करके। इसके लिए ज़रूरी है कि हम सच्चे दिल से उससे प्रार्थना करें। (भज. 39:12) उसके साथ नज़दीकी रिश्ता कायम करने के लिए नियमित तौर पर उसके वचन, बाइबल का अध्ययन करना भी ज़रूरी है। इससे हम जान पाएँगे कि यहोवा कैसा परमेश्वर है, उसके मकसद क्या हैं और हमारे लिए उसकी मरज़ी क्या है। (2 तीमु. 3:16, 17) जितना ज़्यादा हम यहोवा को जानेंगे उतना ही ज़्यादा हम उससे प्यार करने लगेंगे। हम उसका डर भी मानेंगे यानी ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे वह दुखी हो जाए।—भज. 25:14.
2 लेकिन यहोवा के साथ करीबी रिश्ता, सिर्फ उसके बेटे यीशु के ज़रिए ही मुमकिन है। (यूह. 17:3; रोमि. 5:10) यहोवा की सोच और उसकी भावनाओं के बारे में यीशु ने हमें जितनी अच्छी समझ दी है, उतनी कोई और नहीं दे सकता। वह अपने पिता को इतने करीब से जानता है कि वह यह कह सका, “बेटा कौन है, यह कोई नहीं जानता सिवा पिता के। और पिता कौन है, यह कोई नहीं जानता सिवा बेटे के और उसके, जिस पर बेटा उसे प्रकट करना चाहे।” (लूका 10:22) खुशखबरी की किताबों में बताया गया है कि फलाँ हालात के बारे में यीशु क्या सोचता है और कैसा महसूस करता है। जब हम इन किताबों का अध्ययन करते हैं, तो हम दरअसल यहोवा की सोच और उसकी भावनाओं के बारे में जान रहे होते हैं। इस तरह हम यहोवा के और करीब आते हैं।
3 आज यहोवा के संगठन का जो हिस्सा धरती पर मौजूद है, वह हमें सिखाता है कि हम परमेश्वर की मरज़ी कैसे पूरी कर सकते हैं। जब हम इसके साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलते हैं, तो हम यहोवा के साथ करीबी रिश्ता कायम कर पाते हैं। साथ ही, ऐसा करके हम दिखाते हैं कि हम अपने मुखिया यीशु के अधीन हैं। मत्ती 24:45-47 में दर्ज़ भविष्यवाणी के मुताबिक हमारे मालिक यीशु ने परमेश्वर के सभी सेवकों को “सही वक्त पर खाना” देने के लिए “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को नियुक्त किया है। आज विश्वासयोग्य दास हमें भरपूर मात्रा में यह भोजन दे रहा है। इस इंतज़ाम के ज़रिए यहोवा हमें सलाह देता है कि हम रोज़ाना उसका वचन पढ़ें, मसीही सभाओं में नियमित तौर पर हाज़िर हों और ‘राज की खुशखबरी’ का प्रचार करने में अच्छी तरह हिस्सा लें। (मत्ती 24:14; 28:19, 20; यहो. 1:8; भज. 1:1-3) हमें कभी-भी विश्वासयोग्य दास को इंसानी नज़रिए से नहीं देखना चाहिए। यहोवा के संगठन का जो हिस्सा धरती पर मौजूद है, हमें उसके साथ-साथ चलना चाहिए और उससे मिलनेवाली हिदायतें माननी चाहिए। इससे हम परमेश्वर यहोवा के करीब आते जाएँगे और परीक्षाओं के वक्त मज़बूत रहेंगे और हमारा विश्वास कमज़ोर नहीं पड़ेगा।
परीक्षाएँ क्यों बढ़ रही हैं?
4 हो सकता है, आप कई सालों से सच्चाई में हों। आप बेशक जानते होंगे कि परीक्षाओं के दौरान परमेश्वर के वफादार रहना क्या होता है। लेकिन अगर आपने हाल ही में सच्चाई सीखी हो और यहोवा के लोगों के साथ संगति करना शुरू किया हो, तब भी आप साफ देख सकते हैं कि शैतान ऐसे हर इंसान का विरोध करता है, जो यहोवा की हुकूमत मानता है। (2 तीमु. 3:12) तो फिर चाहे आप काफी समय से तकलीफें झेल रहे हों या थोड़े समय से, आपको घबराने या निराश होने की कोई ज़रूरत नहीं। यहोवा वादा करता है कि वह आपको सँभालेगा, आपको छुटकारा दिलाएगा और भविष्य में हमेशा की ज़िंदगी का इनाम देगा।—इब्रा. 13:5, 6; प्रका. 2:10.
5 शैतान की दुनिया के इन बचे हुए दिनों में हम सबको और भी मुश्किल परीक्षाओं से गुज़रना पड़ सकता है। सन् 1914 में जब परमेश्वर का राज शुरू हुआ, तब से शैतान को स्वर्ग में यहोवा के सामने जाने की इजाज़त नहीं है। उसे और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों को धरती पर फेंक दिया गया है। शैतान बड़े क्रोध में है जिस वजह से धरती पर पहले से कहीं ज़्यादा मुसीबतें हैं और यहोवा के समर्पित सेवकों पर और भी ज़्यादा ज़ुल्म किए जा रहे हैं। इससे साफ पता चलता है कि हम दुष्ट शैतान की हुकूमत के आखिरी दिनों में जी रहे हैं।—प्रका. 12:1-12.
6 आज शैतान यह देखकर आग-बबूला हो रहा है कि उसकी हालत बहुत खराब है। वह जानता है कि उसका बहुत कम वक्त बाकी रह गया है। अपने दुष्ट दूतों के साथ मिलकर वह यहोवा के लोगों का प्रचार काम रोकने और उनकी एकता तोड़ने की पूरी कोशिश कर रहा है। इस वजह से हम एक मायने में उससे लड़ रहे हैं। इस लड़ाई के बारे में बाइबल कहती है, “हमारी लड़ाई हाड़-माँस के इंसानों से नहीं बल्कि सरकारों, अधिकारियों, दुनिया के अंधकार के शासकों और उन शक्तिशाली दुष्ट दूतों से है जो आकाश में हैं।” अगर हम यहोवा के पक्ष में रहकर लड़ाई जीतना चाहते हैं, तो हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, बल्कि उसके दिए सारे हथियार बाँध लेने चाहिए और “शैतान की धूर्त चालों का डटकर सामना” करना चाहिए। (इफि. 6:10-17) इसके लिए हमारे अंदर धीरज का गुण होना ज़रूरी है।
धीरज का गुण पैदा कीजिए
7 धीरज का मतलब है, “कोई मुश्किल या मुसीबत सहने की काबिलीयत।” बाइबल में इसका मतलब है, मुसीबतें, विरोध, ज़ुल्म या दूसरी तकलीफें झेलते वक्त हिम्मत न हारना और सही काम करते रहना। ऐसा करना तब और ज़रूरी हो जाता है, जब हम पर तकलीफें इसलिए लायी जाती हैं ताकि हम परमेश्वर की सेवा करना छोड़ दें। मसीहियों से जिस तरह के धीरज की उम्मीद की जाती है, वह अपने आप नहीं आता। उसे बढ़ाना होता है और इसमें वक्त लगता है। जैसे-जैसे हम सच्चाई में तरक्की करते हैं, धीरज धरने की हमारी काबिलीयत भी बढ़ती है। जब हम अपने मसीही जीवन की शुरूआत में छोटी-छोटी परीक्षाओं का धीरज से सामना करते हैं, तो हमारा विश्वास मज़बूत होता है और हम आगे आनेवाली मुश्किल परीक्षाओं का भी सामना कर पाते हैं। (लूका 16:10) लेकिन हमें विश्वास में मज़बूत बने रहने का अटल इरादा कब करना चाहिए? क्या तब करना चाहिए जब हम पर बड़ी-बड़ी परीक्षाएँ आती हैं? जी नहीं। हमें बहुत पहले यानी कोई भी परीक्षा आने से पहले ठान लेना चाहिए कि हम हर हाल में यहोवा के वफादार रहेंगे। प्रेषित पतरस ने बताया कि धीरज के साथ-साथ हमें परमेश्वर को भानेवाले दूसरे गुण भी बढ़ाने चाहिए। उसने लिखा, “तुम जी-जान से कोशिश करो कि अपने विश्वास के साथ सद्गुण बढ़ाओ, सद्गुण के साथ ज्ञान, ज्ञान के साथ संयम, संयम के साथ धीरज, धीरज के साथ परमेश्वर की भक्ति, परमेश्वर की भक्ति के साथ भाइयों जैसा लगाव और भाइयों जैसे लगाव के साथ प्यार बढ़ाते जाओ।”—2 पत. 1:5-7; 1 तीमु. 6:11.
जब हम हर दिन परीक्षाओं का सामना करने में कामयाब होते हैं, तो हम अपने अंदर धीरज का गुण बढ़ाते जाते हैं
8 धीरज का गुण बढ़ाना कितना ज़रूरी है, यह हमें याकूब की चिट्ठी से पता चलता है। उसने कहा, “मेरे भाइयो, जब तुम तरह-तरह की परीक्षाओं से गुज़रो तो इसे बड़ी खुशी की बात समझो क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारा परखा हुआ विश्वास धीरज पैदा करता है। मगर धीरज को अपना काम पूरा करने दो ताकि तुम सब बातों में खरे और बेदाग पाए जाओ और तुममें कोई कमी न हो।” (याकू. 1:2-4) याकूब कहता है कि मसीहियों को खुशी-खुशी परीक्षाओं का सामना करना चाहिए, क्योंकि ये धीरज का गुण बढ़ाने में हमारी मदद करती हैं। क्या आपने कभी परीक्षाओं के बारे में इस तरह सोचा है? इसके बाद, याकूब समझाता है कि हमें अपनी मसीही शख्सियत निखारने के लिए धीरज को अपना काम पूरा करने देना चाहिए ताकि परमेश्वर हमें पूरी तरह कबूल कर सके। जी हाँ, जब हम हर दिन परीक्षाओं का सामना करने में कामयाब होते हैं, तो हम अपने अंदर धीरज का गुण बढ़ाते जाते हैं। बदले में, धीरज हमारे अंदर दूसरे मनभावने गुण पैदा करता है जो हममें होने चाहिए।
9 हमारे धीरज धरने से यहोवा खुश होता है और वह हमें इनाम के तौर पर हमेशा की ज़िंदगी देगा। याकूब ने भी यह बात कही, “सुखी है वह इंसान जो परीक्षा में धीरज धरे रहता है क्योंकि परीक्षा में खरा उतरने पर वह जीवन का ताज पाएगा, जिसका वादा यहोवा ने उनसे किया है जो हमेशा उससे प्यार करते हैं।” (याकू. 1:12) जी हाँ, हम इसलिए धीरज धरते हैं क्योंकि यह हमारी ज़िंदगी का सवाल है। धीरज धरे बिना हम सच्चाई में टिके नहीं रह सकते। अगर हम दुनिया से आनेवाले दबावों के आगे हार मान लें, तो हम वापस दुनिया में चले जाएँगे। अगर हम धीरज न धरें, तो हम पर यहोवा की पवित्र शक्ति काम करना बंद कर देगी और हम अपनी ज़िंदगी में उसका फल पैदा नहीं कर पाएँगे।
10 इस मुश्किल-भरे दौर में अगर हम लगातार धीरज धरना चाहते हैं, तो हमें अपनी तकलीफों के बारे सही नज़रिया रखना होगा। याद कीजिए कि याकूब ने लिखा था, “इसे बड़ी खुशी की बात समझो।” ऐसा करना शायद आसान न हो, क्योंकि हमें शारीरिक तकलीफ या मानसिक पीड़ा सहनी पड़े। मगर याद रखिए कि हमारी आनेवाली ज़िंदगी दाँव पर लगी है। प्रेषितों के एक अनुभव से हम समझ पाते हैं कि हम तकलीफों के दौरान कैसे खुश रह सकते हैं। यह अनुभव प्रेषितों की किताब में दर्ज़ है। वहाँ लिखा है, “उन्होंने . . . प्रेषितों को बुलवाकर उन्हें कोड़े लगवाए और हुक्म दिया कि यीशु के नाम से बोलना बंद कर दें, फिर उन्हें जाने दिया। तब वे महासभा के सामने से इस बात पर बड़ी खुशी मनाते हुए अपने रास्ते चल दिए कि उन्हें यीशु के नाम से बेइज़्ज़त होने के लायक तो समझा गया।” (प्रेषि. 5:40, 41) प्रेषित समझ गए कि उनका दुख झेलना, इस बात का सबूत है कि उन्होंने यीशु की आज्ञा मानी है और उन्हें यहोवा की मंज़ूरी मिली है। सालों बाद जब पतरस ने ईश्वर-प्रेरणा से अपनी पहली चिट्ठी लिखी, तो उसमें बताया कि नेकी की खातिर दुख झेलना कितना मायने रखता है।—1 पत. 4:12-16.
11 एक और अनुभव पौलुस और सीलास का है। जब वे फिलिप्पी में मिशनरी सेवा कर रहे थे, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर यह इलज़ाम लगाया गया कि वे शहर में गड़बड़ी मचा रहे हैं और गैर-कानूनी रिवाज़ों का प्रचार कर रहे हैं। नतीजा यह हुआ कि उन्हें बुरी तरह पीटा गया और कैदखाने में डाल दिया गया। बाइबल बताती है कि जब वे जेल में थे और उनके ज़ख्मों पर मरहम लगानेवाला कोई न था, तब “आधी रात के वक्त, पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और गीत गाकर परमेश्वर का गुणगान कर रहे थे और बाकी कैदी सुन रहे थे।” (प्रेषि. 16:16-25) पौलुस और उसके साथी ने मसीह की खातिर जो दुख झेला, उसके बारे में उन्होंने सही सोच रखी। उन्होंने समझा कि ये तकलीफें इस बात का सबूत हैं कि वे परमेश्वर और इंसानों के सामने निर्दोष हैं। यही नहीं, उन्होंने इस मौके पर उन लोगों को गवाही दी जो शायद खुशखबरी सुनना चाहते थे। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि यह दूसरों की ज़िंदगी का सवाल था। उसी रात जेलर और उसके घराने ने खुशखबरी सुनी और चेले बन गए। (प्रेषि. 16:26-34) पौलुस और सीलास ने यहोवा और उसकी ताकत पर भरोसा रखा और उन्हें पक्का यकीन था कि तकलीफें सहने में वह उनकी मदद करना चाहता है। यहोवा ने उनका भरोसा नहीं तोड़ा।
12 आज भी यहोवा चाहता है कि हम धीरज धरते हुए परीक्षाओं का सामना करें। उसने हमारे लिए वे सारे इंतज़ाम किए हैं जिनकी मदद से हम परीक्षा के वक्त हिम्मत रख सकते हैं और सही काम करते रह सकते हैं। उसने हमें अपना वचन बाइबल दिया है, ताकि हम उसके मकसद के बारे में सही-सही ज्ञान हासिल कर सकें। इससे हमारा विश्वास मज़बूत होता है। हमें मसीही भाई-बहनों की संगति करने और पवित्र सेवा करने का सुनहरा मौका मिला है। हमें प्रार्थना के ज़रिए यहोवा के साथ करीबी रिश्ता बनाए रखने का भी सम्मान मिला है। जब हम प्रार्थना करते वक्त उसकी तारीफ करते हैं और गिड़गिड़ाकर बिनती करते हैं कि वह शुद्ध बने रहने में हमारी मदद करे, तो वह ध्यान से हमारी सुनता है। (फिलि. 4:13) इन सबके अलावा, हमारे सामने जो आशा है, उस पर मनन करने से भी हमें बहुत हिम्मत मिलती है।—मत्ती 24:13; इब्रा. 6:18; प्रका. 21:1-4.
तरह-तरह की परीक्षाएँ सहते वक्त
13 आज हमें वैसी ही परीक्षाएँ सहनी पड़ती हैं, जैसी यीशु के शुरू के चेलों को सहनी पड़ी थीं। हमारे दिनों में यहोवा के साक्षियों ने ऐसे विरोधियों के हाथों ज़ुल्म और गाली-गलौज सहा है, जिन्हें साक्षियों के बारे में गलत जानकारी दी गयी थी। प्रेषितों के दिनों की तरह आज अकसर धर्म के कट्टरपंथियों के भड़काने पर साक्षियों का विरोध किया जाता है, क्योंकि परमेश्वर का वचन इन कट्टरपंथियों की झूठी शिक्षाओं और उनके बुरे कामों का परदाफाश करता है। (प्रेषि. 17:5-9, 13) कभी-कभी यहोवा के लोगों ने सरकार से मिले कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करके ज़ुल्मों से राहत पायी है। (प्रेषि. 22:25; 25:11) लेकिन कभी-कभी तो खुद शासकों ने हमारे काम पर रोक लगा दी ताकि हमारी मसीही सेवा बंद हो जाए। (भज. 2:1-3) इन हालात में, हम निडर होकर परमेश्वर की सेवा जारी रखते हैं, ठीक जैसे पहली सदी के वफादार प्रेषितों ने किया था। उन्होंने कहा था, “इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है।”—प्रेषि. 5:29.
14 आज जब सारी दुनिया में देश-भक्ति की भावना बढ़ती जा रही है, तो खुशखबरी के प्रचारकों पर पहले से ज़्यादा दबाव डाला जा रहा है कि वे अपनी सेवा बंद कर दें। प्रकाशितवाक्य 14:9-12 में “जंगली जानवर और उसकी मूरत की पूजा” के बारे में जो चेतावनी दी गयी है, उसकी गंभीरता आज परमेश्वर के सभी सेवक और अच्छी तरह समझते हैं। हम जानते हैं कि यूहन्ना के ये शब्द कितने मायने रखते हैं, “ऐसे में पवित्र जनों का धीरज धरना ज़रूरी है, जो परमेश्वर की आज्ञाएँ मानते हैं और यीशु पर विश्वास करना नहीं छोड़ते।”
15 युद्धों, क्रांतियों या ज़ुल्मों और सरकार की तरफ से लगी रोक की वजह से शायद आपके लिए खुलेआम उपासना करना मुमकिन न हो। ऐसे में पूरी मंडली शायद एक-साथ मिलकर सभा न चला पाए। शायद शाखा दफ्तर से भी संपर्क न हो पाए। हो सकता है सर्किट निगरान भी दौरा करने न आ पाएँ। शायद नए प्रकाशन वगैरह न मिलें। अगर ऐसा कुछ होता है, तो आपको क्या करना चाहिए?
16 जवाब है: हालात के मुताबिक, शुद्ध उपासना करने के लिए आपसे जो हो सके और जितना हो सके, उतना कीजिए। आप अकेले में अध्ययन तो ज़रूर कर सकते हैं। आम तौर पर भाई-बहनों के घरों में अध्ययन के लिए छोटे-छोटे समूह इकट्ठा हो सकते हैं। पहले जिन प्रकाशनों का अध्ययन हो चुका है, उनका और बाइबल का इस्तेमाल करके सभाएँ चलायी जा सकती हैं। बहुत ज़्यादा परेशान मत होइए या चिंता मत कीजिए। थोड़े समय के अंदर शासी निकाय किसी-न-किसी तरह ज़िम्मेदार भाइयों से संपर्क करेगा।
17 आपको चाहे मसीही भाई-बहनों से अलग कर दिया जाए, फिर भी याद रखिए कि आप यहोवा और उसके बेटे, यीशु मसीह से बिलकुल दूर नहीं हैं। आपकी आशा पक्की बनी रह सकती है। जब आप अकेले होते हैं, तब भी यहोवा आपकी प्रार्थनाएँ सुन सकता है और अपनी पवित्र शक्ति से आपको मज़बूत कर सकता है। उससे मार्गदर्शन माँगिए। याद रखिए कि आप यहोवा के सेवक और यीशु मसीह के चेले हैं, इसलिए जब भी आपको गवाही देने के मौके मिलते हैं, तो उनका पूरा-पूरा फायदा उठाइए। यहोवा आपकी कोशिशों पर आशीष देगा और शायद जल्द ही दूसरे भी आपके साथ मिलकर सच्ची उपासना करेंगे।—प्रेषि. 4:13-31; 5:27-42; फिलि. 1:27-30; 4:6, 7; 2 तीमु. 4:16-18.
18 प्रेषितों और दूसरे मसीहियों की तरह, अगर आपको मार डालने की धमकी भी दी जाए, तो परमेश्वर पर भरोसा रखिए “जो मरे हुओं को ज़िंदा करता है।” (2 कुरिं. 1:8-10) इस आशा पर आपका विश्वास, कड़े-से-कड़े विरोध में भी धीरज धरने में आपकी मदद करेगा। (लूका 21:19) मसीह यीशु ने अच्छी मिसाल कायम की। वह जानता था कि परीक्षा के दौरान उसके वफादार रहने से दूसरों को भी धीरज धरने की हिम्मत मिलेगी। उसी तरह आप भी अपने भाइयों की हिम्मत बँधा सकते हैं।—यूह. 16:33; इब्रा. 12:2, 3; 1 पत. 2:21.
19 ज़ुल्म और खुलेआम विरोध सहने के अलावा, ऐसे और भी मुश्किल हालात हैं जिनका शायद आपको सामना करना पड़े। उदाहरण के लिए, कुछ भाई-बहन प्रचार में लोगों की बेरुखी की वजह से निराश हो जाते हैं। कुछ भाई-बहनों को अपरिपूर्णता की वजह से शारीरिक कमज़ोरियों के साथ जीना पड़ता है या किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी से जूझना पड़ता है। प्रेषित पौलुस को भी कोई ऐसी तकलीफ सहनी पड़ी जो उसकी सेवा में रुकावट पैदा कर रही थी या उसके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही थीं। (2 कुरिं. 12:7) एक और मिसाल इपाफ्रोदितुस की है, जो पहली सदी में फिलिप्पी का रहनेवाला एक मसीही था। वह “बहुत हताश हो गया” था, क्योंकि उसके दोस्तों ने “सुना था कि वह बीमार पड़ गया है।” (फिलि. 2:25-27) हमारी और दूसरों की कमज़ोरियों की वजह से ऐसी बड़ी-बड़ी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं जिन्हें सहना बहुत मुश्किल हो सकता है। अलग-अलग स्वभाव की वजह से भाई-बहनों के बीच, यहाँ तक कि परिवार के सदस्यों के बीच मन-मुटाव हो सकता है। लेकिन जो लोग परमेश्वर के वचन की सलाह मानते हैं, वे ऐसी समस्याओं में भी धीरज धरते हैं और उनसे निपट पाते हैं।—यहे. 2:3-5; 1 कुरिं. 9:27; 13:8; कुलु. 3:12-14; 1 पत. 4:8.
वफादार रहने की ठान लीजिए
20 हमें हर वक्त यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलना चाहिए जिसे यहोवा ने मंडली का मुखिया ठहराया है। (कुलु. 2:18, 19) हमें “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” और उन भाइयों को पूरा-पूरा सहयोग देना चाहिए, जिन्हें निगरानी करने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। (इब्रा. 13:7, 17) जब हम संगठन के इंतज़ामों के मुताबिक काम करते हैं और अगुवाई करनेवाले भाइयों को सहयोग देते हैं, तो हम यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए अच्छी तरह संगठित हो पाते हैं। हमें प्रार्थना करने के सम्मान का पूरा-पूरा फायदा उठाना चाहिए। याद रखिए, न जेल की दीवारें और न ही काल-कोठरी हमें अपने प्यारे पिता यहोवा से बात करने से रोक सकती हैं और न ही संगी उपासकों के बीच हमारी एकता तोड़ सकती हैं।
21 आइए हम अटल इरादे के साथ और धीरज धरते हुए, प्रचार करने की ज़िम्मेदारी पूरी करें। जी हाँ, हम कभी हार न मानें और उस काम में लगे रहें जो यीशु मसीह ने अपने चेलों को सौंपा था, “जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ और उन्हें पिता, बेटे और पवित्र शक्ति के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है।” (मत्ती 28:19, 20) यीशु की तरह आइए हम धीरज धरें और परमेश्वर के राज पर और हमेशा की ज़िंदगी की आशा पर अपनी नज़र टिकाए रहें। (इब्रा. 12:2) बपतिस्मा लेकर हम मसीह के चेले बने हैं। इस नाते हम उस भविष्यवाणी के पूरा होने में हिस्सा ले सकते हैं जो यीशु ने “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त” के बारे में की थी। उसने कहा था, “राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों को गवाही दी जाए और इसके बाद अंत आ जाएगा।” (मत्ती 24:3, 14) अगर आज हम इस काम में तन-मन से हिस्सा लें, तो हम यहोवा की नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे, ऐसी दुनिया में जहाँ नेकी का बसेरा होगा!