अपने विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखिए
“जो खरी बातें तू ने मुझ से सुनी हैं, उन को उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, अपना आदर्श बनाकर रख।”—२ तीमुथियुस १:१३.
१. अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य एक क़ीमती सम्पत्ति क्यों है, जिसे बनाए रखना ज़रूरी है?
अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य क़ीमती सम्पत्ति है। जब हम तन्दुरुस्त होते हैं, तब हम बहुत कुछ कर सकते हैं और जीवन का और भी ज़्यादा आनन्द उठा सकते हैं। लेकिन जब हम हमेशा ही बीमार या दुर्बल रहते हैं, तब ज़िन्दगी कहीं ज़्यादा दुशवार होती है। बेशक, अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखना ही चाहिए। अनेक लोग अपने स्वास्थ्य की उपेक्षा करते हैं या ऐसे काम करते हैं जिन से बीमारी पैदा होती है। बहरहाल, जो लोग अपना ख़याल रखते हैं, आम तौर से अपनी अधिकांश ज़िन्दगी में उनका स्वास्थ्य और ताक़त काफ़ी हद तक अच्छा रहता है।
२. (अ) आध्यात्मिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य से ज़्यादा क़ीमती क्यों है? (ब) विश्वास में स्वस्थ रहने के लिए क्या आवश्यक है?
२ आध्यात्मिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य से कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। अच्छे से अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य किसी को परमेश्वर की ओर से अनन्त जीवन की भेंट नहीं दिला सकता। अच्छा आध्यात्मिक स्वास्थ्य यथार्थ ज्ञान पर आधारित स्वच्छ उपासना और विश्वास से उत्पन्न होता है। (यूहन्ना १७:३; इब्रानियों ११:६; याकूब १:२७) प्रेरित पौलुस ने कहा: “बूढ़े पुरुष, सचेत और गम्भीर और संयमी हों, और उन का विश्वास और प्रेम और धीरज पक्का हो।” (तीतुस २:२) जो कोई विश्वास में स्वस्थ होना चाहता है, उसे अध्यवसाय से परिश्रम करना चाहिए और सतत चौकसी बनाए रखनी चाहिए। पक्के आध्यात्मिक स्वास्थ्य को ख़तरा हमारे भीतर से या बाहर से आ सकता है। अगर हमें इस बीमार दुनिया में विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखना है, तो हमें इन ख़तरों के बारे में अवगत रहना चाहिए।
यह दुनिया कितनी बीमार है?
३, ४. इस दुनिया में और लोगों के कार्यों में नैतिक बीमारी किस तरह प्रतिबिंबित है?
३ इस बात का कोई शक नहीं कि यह दुनिया नैतिक रूप से बहुत ही बीमार है। हम इस दुनिया के सभी “अंगों” में घातक रोग देखते हैं—उसके धर्मों में, उसकी राजनीतिक व्यवस्थाओं में, उसके आर्थिक संस्थानों में, और उसके मनोरंजन में। बहुत ही कम लोगों को परमेश्वर के लिए और उन नियमों के लिए, जो उन्होंने मानवजाति के हित के लिए दिए हैं, आदर है। जैसे इतिहास से दिखायी देता है, नैतिक पतन के परिणामस्वरूप हमेशा ही शारीरिक बीमारियाँ और दुःख उत्पन्न होती हैं। विडम्बनापूर्ण रूप से, अधिकांश लोग इस रोगी नैतिक अवस्था को ठीक करने के लिए कुछ भी करना नहीं चाहते इसलिए कि उनको वे बातें बहुत ही अच्छी लगती हैं, जिनके परिणामस्वरूप ये बीमारियाँ होती हैं।
४ यह दुनिया कितनी बीमार है! रोमांच की खोज करने में या असलियतों से भागने में, अनेक लोगों ने शराब या नशीली पदार्थों के ज़रिए अपनी ज़िन्दगी को तबाह कर दिया है। हर कहीं हिंसा है, ज़िन्दगी सस्ती है, और क़ैदखाने अपराधियों से बहुत ज़्यादा भरे हुए हैं। अनेक देशों में, सम्पन्न किए गए सभी विवाहों में से आधे विवाह तलाक़ में ख़त्म हो जाते हैं। माता-पिता के उचित निरीक्षण के अभाव के कारण बच्चे बड़े होकर अपराधी बन जाते हैं। चूँकि लैंगिक अनैतिकता की भरमार है, एड्स और अन्य यौन-संबंध द्वारा संचारित रोग भी तेज़ी से फैल रहे हैं।
५. यशायाह ने प्राचीन यहूदा के परिस्थितियों का वर्णन किस तरह किया?
५ परमेश्वर इस बीमार दुनिया के बारे में वही कह सकते हैं जो उन्होंने यशायाह को पथभ्रष्ट यहूदा के बारे में घोषित करने के लिए प्रेरित किया: “हाय, यह जाति पाप से कैसी भरी है! यह समाज अधर्म से कैसा लदा हुआ है! इस वंश के लोग कैसे कुकर्मी हैं, ये लड़केबाले कैसे बिगड़े हुए हैं! उन्हों ने यहोवा को छोड़ दिया, उन्हों ने इस्राएल के पवित्र को तुच्छ जाना है! वे पराए बनकर दूर हो गए हैं। तुम बलवा कर करके क्यों अधिक मार खाना चाहते हो? तुम्हारा सिर घावों से भर गया, और तुम्हारा हृदय दुःख से भरा है। नख से सिर तक कहीं भी कुछ आरोग्यता नहीं।”—यशायाह १:४-६.
६. प्राचीन यहूदा और हमारे समय में, भलाई करना सीखने के लिए यहोवा के निवेदन के प्रति कैसी प्रतिक्रिया रही है?
६ यहूदा में पश्चाताप करने और ‘भलाई करना सीखने’ के लिए यहोवा के निवेदन की ओर आम तौर से कोई ध्यान न दिया गया। (यशायाह १:१६-२०) आख़िरकार इसका परिणाम यह हुआ कि यरूशलेम का विनाश हुआ और बाबेलोन में यहूदियों की क़ैद हो गयी। सिर्फ़ कुछ ही विश्वसनीय लोगों ने एक बीमार जाति में रहने के बावजूद परमेश्वर के आशीर्वाद और बचाव का अनुभव किया। उसी तरह आज, इस दुनिया में, जो सिर से पाँव तक बीमार है, सिर्फ़ कुछ ही लोग भलाई करना चाहते हैं। यहोवा के ये विश्वसनीय सेवक विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को अब बनाए रखना चाहते हैं, इस आशा के साथ कि वे परमेश्वर की प्रतिज्ञात नयी दुनिया में परिपूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य और अनन्त जीवन पाएँगे।—२ पतरस ३:१३; प्रकाशितवाक्य २१:१-४.
इस बीमार दुनिया में आध्यात्मिक ख़तरे
७. (अ) कौनसे ख़तरों से हमारा विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य जोख़िम में डाला जाता है? (ब) आध्यात्मिक स्वास्थ्य को जोख़िम में डालनेवाले तीन मुख्य तत्त्वों से निपटने के विषय में धर्मशास्त्रों में क्या कहा गया है?
७ विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखना एक चुनौती है इसलिए कि इस दुनिया की नैतिक बीमारी बहुत ही जल्दी फैलनेवाली बीमारी है। मसीहियों को खुद अपनी विरासत में पायी हुई अपरिपूर्णता से भी निपटना पड़ता है। (रोमियों ७:२१-२५) इसके अतिरिक्त, “इस संसार का सरदार,” शैतान, शरीर की कमज़ोरियों को अच्छी तरह जानता है और वह प्रलोभन करने में उस्ताद है। (यूहन्ना १४:३०; १ यूहन्ना ५:१९) विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को जोख़िम में डालनेवाले ये तीन मुख्य ख़तरे—शरीर, दुनिया और इब्लीस—विकट हैं। लेकिन इस दुनिया में रहने के बावजूद इस “संसार का न होना” संभव है। हम ‘परमेश्वर की आत्मा के अनुसार चलते रह सकते हैं और इस प्रकार शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी नहीं’ करेंगे। और ईश्वरीय मदद से हम “इब्लीस की युक्तियों के सामने खड़ा रह” सकते हैं। (यूहन्ना १७:१५, १६; गलतियों ५:१६; इफिसियों ६:११; २ कुरिन्थियों २:११) पर आइए हम अब विचार करें कि हम किस रीति से विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को जोख़िम में डालनेवाले इन तीन मुख्य तत्त्वों से निपट सकते हैं।
८. यीशु हमारे भीतर की ताक़तों का वर्णन किस तरह करता है जो आध्यात्मिक स्वास्थ्य के ख़िलाफ़ काम करती हैं?
८ हमारे अपरिपूर्ण मानवीय स्वभाव में ऐसी ताक़तें हैं जिनके परिणामस्वरूप हम पाप कर सकते हैं और उन से हम आध्यात्मिक रूप से बीमार बन सकते हैं। (याकूब १:१४, १५) यह ख़ास तौर से प्रतीकात्मक हृदय के भीतर सच है। यीशु ने कहा: “क्योंकि भीतर से अर्थात् मनुष्य के मन से, बुरी बुरी चिन्ता, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं। ये सब बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।”—मरकुस ७:२१-२३.
९. (अ) कौनसी लालसाओं की जड़ें प्रतीकात्मक हृदय में हैं? (ब) नीतिवचन ४:२०-२३ के अनुसार, हम हृदय की रक्षा किस तरह कर सकते हैं?
९ हालाँकि हृदय बुरी लालसाओं का स्रोत है, ईश्वर-परायण लोगों में यह यहोवा के प्रति श्रद्धा और सही बातों के लिए प्रेम का स्थान है। (मत्ती २२:३७; इफिसियों ४:२०-२४) हमारे मामले में क्या अच्छाई की जीत होगी या बुराई की, यह उन बातों पर निर्भर है जो हम अपने हृदय में ले लेते हैं। परमेश्वर के वचन में सलाह दी गयी है: “हे मेरे पुत्र, मेरे वचन ध्यान धरके सुन, और अपना कान मेरी बातों पर लगा। इनको अपनी आँखों की ओट न होने दे; वरन अपने मन में धारण कर। क्योंकि जिनको वे प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का, और उनके सारे शरीर के चंगे रहने का कारण होती हैं। सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।”—नीतिवचन ४:२०-२३.
१०. हमारी शारीरिक कमज़ोरियाँ अपनी भावनाओं और इच्छाओं पर किस तरह प्रभाव डालती हैं?
१० हमारी शारीरिक कमज़ोरियाँ अपनी भावनाओं और इच्छाओं पर प्रभाव डालती हैं। कौन है जो कभी-कभी निराशा, बेचैनी, और बुरा मानने से सताया नहीं जाता? अगर हम इन शारीरिक प्रवृत्तियों को फ़ौरन सुधार लेंगे, तो आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखा जा सकता है। लेकिन अभिमान और महत्त्वाकांक्षा जल्द ही दिल में जड़ जमा सकते हैं। लोभ और अत्याधिक सुख-विलास और रंगरलियाँ मनाने की एक लालसा अधिकार ले सकते हैं। और यौन-संबंधी कामना, जबकि स्वाभाविक है इसलिए कि परमेश्वर ने हमें इस रीति से बनाया है, यह हमें धूर्त रूप से पथभ्रष्ट कर सकती है। हम में ऐसी आध्यात्मिक बीमारी का विकसित होना रोकने के लिए, “बुराई से घृणा” करने तथा “भलाई में लगे” रहने के लिए खुद को प्रशिक्षित करते हुए, हमें हर दिन अपने जीवन में परमेश्वर की आत्मा के फलों को विकसित करना चाहिए।—रोमियों १२:९; गलतियों ५:२२, २३.
आध्यात्मिक रोग के बाहरी स्रोत
११. (अ) कौनसे सांसारिक रवैये और कार्य बहुत ही संक्रामक हैं? (ब) यीशु के अनुसार, हमें किस सम्बन्ध में अपने दिलों की ओर ध्यान देना चाहिए?
११ आध्यात्मिक संक्रामण बाहरी स्रोतों से आ सकता है। यह हम तक उन लोगों से फैल सकता है जो आध्यात्मिक रूप से मरे हुए हैं। (इफिसियों २:१-३) अगर हम उनके बहुत नज़दीक़ होंगे, तो हम उनके रवैयों और जीवन-शैलियों की नक़ल कर सकते हैं। पेशे में आगे बढ़ना, पैसों से मोह करना, भौतिक रूप से सबसे अच्छी बातों का आनन्द उठाना, और मज़े लेना इस दुनिया के लोगों की ज़िन्दगियों में बड़े महत्त्व की बातें हैं। लेकिन ऐसी बातों की इच्छा बहुत ही संक्रामक है, और सीमित रूप से उनके प्रभाव में आना भी हमें आध्यात्मिक रूप से सुस्त बना सकता है। यीशु ने चेतावनी दी: “इसलिए सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएँ, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े। क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा।”—लूका २१:३४, ३५.
१२. ग़लत विचार और उपदेश आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए किस तरह ख़तरनाक़ साबित हो सकते हैं?
१२ इस दुनिया के ग़लत विचार और सीख भी हमें बिगाड़ सकते हैं। पौलुस ने चेतावनी दी: “ऐसा समय आएगा, कि लोग खरा उपदेश न सह सकेंगे पर कानों की खुजली के कारण अपनी अभिलाषाओं के अनुसार अपने लिए बहुतेरे उपदेशक बटोर लेंगे। और अपने कान सत्य से फेरकर कथा-कहानियों पर लगाएँगे।” (२ तीमुथियुस ४:३, ४) झूठे उपदेशक सड़े-घाव के जैसे हैं। (२ तीमुथियुस २:१६, १७) जब यह शुरु होता है, तब आपके माँस का एक हिस्सा मर जाता है, इसलिए कि जीवन-दायक खून शरीर के उस भाग से कट गया है।
१३. अगर आध्यात्मिक बीमारी सड़े-घाव की तरह फैल गया है, तो क्या किया जाना चाहिए?
१३ सड़ा हुआ घाव कितनी तेज़ी से फैल जाता है! मौत को रोकने के लिए, डॉक्टर को शरीर के एक हिस्से को शायद काट देना पड़ेगा। इसलिए, अगर संशय, शिक़ायतों, या धर्म-त्याग से आप आध्यात्मिक रूप से दूषित होने के ख़तरे में हैं, तो उन्हें जल्दी ही काट डालिए! (मत्ती ५:२९, ३० से तुलना करें।) मण्डली के प्राचीनों से मदद लीजिए। उन लोगों की तरह न बनिए जिनका वर्णन पौलुस ने इस तरह किया कि उन्हें “विवाद और शब्दों पर तर्क करने का रोग है,” इसलिए कि उन्होंने “खरी बातों को” नहीं माना।—१ तीमुथियुस ६:३, ४.
१४. मण्डली के आध्यात्मिक स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए प्राचीन क्या करना ज़रूरी समझेंगे?
१४ मण्डली के आध्यात्मिक स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए, प्राचीनों को “स्वास्थ्यकर शिक्षा से उपदेश देने और विवादियों का मुँह बन्द करने” की ज़रूरत है। (तीतुस १:९, न्यू.व., १३, १६; २:१) शायद ऐसे लोगों को एक आध्यात्मिक रूप से तन्दुरुस्त अवस्था पाने तक स्वस्थ किया जा सकता है। (२ तीमुथियुस २:२३-२६) लेकिन अगर वे एक पश्चातापहीन रीति से झूठे उपदेशों को बढ़ाएँगे, तब क्या? तो फिर, उन्हें मानो क्वारन्टाइन (संगरोध) कर दिया जाना चाहिए। उन्हें जाति-बहिष्कृत किया जाता है, और हम उन से दूर रहते हैं ताकि उनका आध्यात्मिक संक्रामण हम तक न फैले।—रोमियों १६:१७, १८; १ कुरिन्थियों ५:९-१३; तीतुस ३:९-११.
१५. परमेश्वर के लोगों के आध्यात्मिक स्वास्थ्य को गुप्त रूप से दुर्बल बना देने की कोशिश में, इब्लीस ने कौनसे दो मुख्य तरीक़ों का इस्तेमाल किया है?
१५ विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को ख़तरे का एक और स्रोत इब्लीस है। (इफिसियों ६:११, १२) हमारे समय तक, उसने उत्तेजित भीड़ द्वारा तंग किया जाना, पिटाई, क़ैद, और मार डालने की धमकियों समेत, उत्पीड़न के द्वारा यहोवा के लोगों के विश्वास को कमज़ोर करने की कोशिश की है। (प्रकाशितवाक्य २:१०) चूँकि इन युक्तियों से शैतान परमेश्वर के किसी सेवक की ख़राई तोड़ने में विरले ही क़ामयाब होता है, कुछ लोगों को गिराने की कोशिश में वह इस दुनिया के आकर्षणों को इस्तेमाल करता है, जिसका वह देवता है।—२ कुरिन्थियों ४:४; ११:३, १४.
१६. हमारे विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर इब्लीस के हमलों का विरोध करने के लिए हमारे पास किस तरह की प्रतिरक्षा है?
१६ हम इब्लीस के हमलों का विरोध किस तरह कर सकते हैं? परमेश्वर की ओर से मिले सारे आध्यात्मिक हथियार बान्ध लेने के द्वारा। हमें ख़ास तौर से ‘विश्वास के बड़े ढाल को उठा लेना चाहिए जिस से हम उन सारे जलते हुए तीरों को बुझा सकें,’ जो शैतान हमारी ओर छोड़ता है। हमें यीशु के शब्दों के अनुसार भी प्रार्थना करनी चाहिए: “हमें परीक्षा में न ला, परन्तु उस बुरे से बचा।” (इफिसियों ६:११-१८; मत्ती ६:१३, न्यू.व.) अगर हम उस रीति से प्रार्थना करेंगे, तो हम शैतान के सारे जलते हुए तीरों को बुझाने में हमारे स्वर्ग के पिता से मदद की उम्मीद कर सकते हैं।
विश्वास में स्वस्थ रहना
१७. आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में, “सही समय पर भोजन लेना” और मसीही गतिविधियों में नियमित रूप से हिस्सा लेना कितना महत्त्वपूर्ण है?
१७ अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में रोक-थाम करना एक बड़ा घटक है। पौष्टिक आहार, उचित कसरत, और दिमाग तथा शरीर की आम देख-भाल अत्यावश्यक है। एक तन्दुरुस्त शरीर में रोग के विरुद्ध प्राकृतिक रक्षा भी ज़्यादा सुस्वस्थ है। उसी तरह, आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए, परमेश्वर द्वारा बताए गए आहार का पालन करना और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा ‘सही समय पर दिए गए भोजन’ की क़दर करना अत्यावश्यक है। इस दुनिया के बेकार आध्यात्मिक भोजन को खाना अस्वीकार करते हुए, हमें बाइबल और मसीही प्रकाशनों का अभ्यास करना चाहिए और परमेश्वर के लोगों के साथ नियमित रूप से एकत्र होना चाहिए। (मत्ती २४:४५-४७; इब्रानियों १०:२४, २५) हमें उस कसरत की भी ज़रूरत है जो “प्रभु के काम” में, यानी सेवकाई और अन्य मसीही गतिविधियों में “हमेशा ही बहुत कुछ करने” के परिणामस्वरूप होता है।—१ कुरिन्थियों १५:५८.
१८. “खरी बातों” का प्रतिमान क्या है, और हमें इसे अपने दिल और दिमाग़ में क्यों रखना चाहिए?
१८ विश्वास में स्वस्थ रहने के लिए, परमेश्वर के आध्यात्मिक प्रबन्धों का पूरा उपयोग कीजिए। जैसे पौलुस ने तीमुथियुस से कहा: “जो खरी बातें तू ने मुझ से सुनी हैं, उन को उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, अपना आदर्श बनाकर रख। और पवित्र आत्मा के द्वारा जो हम में वसा हुआ है, इस अच्छी थाती की रखवाली कर।” (२ तीमुथियुस १:१३, १४) किसी भाषा में शब्दों का एक प्रतिमान होता है। उसी तरह, बाइबल सच्चाई की “शुद्ध भाषा” का भी एक प्रतिमान है जो मुख्य रूप से राज्य के ज़रिए यहोवा को सत्य प्रमाणित करने के विषय पर आधारित है। (सपन्याह ३:९) अगर हमें अपने विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखना है, तो हमें इन खरी बातों के प्रतिमान को अपने दिल और दिमाग़ में रखना चाहिए। वरना, हमारे लिए इसका महत्त्व कम होगा। प्रत्यक्ष रूप से, यह कुरिन्थ की मण्डली में हुआ, जहाँ कुछ लोग इसलिए “निर्बल और रोगी” थे कि उन में आध्यात्मिक समझ की कमी थी।—१ कुरिन्थियों ११:२९-३२.
१९. (अ) अगर आध्यात्मिक बीमारी विकसित हो गयी है, तो क्या किया जाना चाहिए? (ब) प्राचीन क्या कर सकते हैं अगर कोई व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से बीमार है?
१९ अगर आप में आध्यात्मिक बीमारी विकसित हो गयी है, तो क्या किया जाना चाहिए? निश्चित रूप से प्रेमपूर्ण मदद की आवश्यकता है और यह उपलब्ध भी है, इसलिए कि याकूब कहता है: “यदि तुम में कोई रोगी हो, तो कलीसिया के प्राचीनों को बुलाए, और वे यहोवा के नाम से उस पर तेल मल कर उसके लिए प्रार्थना करें।” (याकूब ५:१४) जी हाँ, प्राचीनों को बुलाइए। आध्यात्मिक चिकित्सक होने के नाते, वे आपको आध्यात्मिक बीमारी की जड़ तक पहुँचने की मदद कर सकते हैं। वे कोमलता परन्तु प्रभावकारिता से परमेश्वर के वचन का स्वस्थ कर देनेवाला तेल मलेंगे। अगर आपने पाप किए हों, लेकिन पश्चातापी हों, तो यक़ीन मानिए कि यहोवा सचमुच ही माफ़ कर देते हैं। (भजन १०३:८-१४) जैसे प्राचीन आप के साथ और आप के लिए प्रार्थना करते हैं, किस बात की अपेक्षा की जा सकती है? याकूब जवाब देता है: “विश्वास की प्रार्थना के द्वारा रोगी बच जाएगा और यहोवा उस को उठाकर खड़ा करेगा; और यदि उस ने पाप भी किए हों, तो उन की भी क्षमा हो जाएगी।”—याकूब ५:१५.
आध्यात्मिक स्वास्थ्य अनन्त जीवन की ओर ले जाता है
२०. (अ) पहली सदी के शासी वर्ग ने आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के बारे में क्या सलाह दी? (ब) जैसे-जैसे हम नयी दुनिया के आशार्वादों की राह देखते हैं, हमें किस बात से मदद मिलेगी?
२० “आगे शुभ!” इन शब्दों के साथ, यहोवा के लोगों के पहली सदी के शासी वर्ग ने अपनी चिट्ठी समाप्त की, उन “आवश्यक बातों” का उल्लेख करते हुए जो मसीहियों से आवश्यक थीं। उन्हें “मूरतों की बलि किए हुओं से, और लोहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से, और व्यभिचार से परे” रहना था। (प्रेरितों १५:२८, २९) अच्छे स्वास्थ्य के लिए वह नुस्ख़ा अब भी वैध है। और जैसे-जैसे हम नयी दुनिया की आशिषों की प्रतीक्षा करते हैं, वैसे-वैसे अगर हम इस बीमार दुनिया में यहोवा के नाम का समर्थन करके राज्य के सुसमाचार का प्रचार उत्साह से करते रहेंगे, तो हम अपने विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रख सकते हैं। इस रीति से व्यस्त रहना हमें उस नयी दुनिया के आशीर्वादों के लिए अधीर होने से रोकेगा, जो अब इतना क़रीब है। यह सच है कि “जब आशा पूरी होने में विलम्ब होता है, तो मन शिथिल होता है, परन्तु जब लालसा पूरी होती है, तब जीवन का वृक्ष लगता है।”—नीतिवचन १३:१२.
२१. इस बीमार दुनिया में अपने विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को सफ़लतापूर्वक बनाए रखने वालों के लिए कौनसे आशीर्वाद रखे गए हैं?
२१ उन शानदार आशीर्वादों में हिस्सेदार होने का मौक़ा हाथ से जाने न दीजिए, जो यहोवा ने उन लोगों के लिए रखे हैं जो उन से प्रेम रखते हैं। सांसारिक प्रभावों का इतना प्रतिरोध करना, आपकी शारीरिक कमज़ोरियों से इतनी ज़्यादा लड़ाई करना, और इब्लीस के जलते हुए तीरों को बार-बार मोड़ना व्यर्थ नहीं होगा। यहोवा की नयी दुनिया में, आप अपनी आँखों से वह समय देखेंगे जब “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूँ।” (यशायाह ३३:२४) यह यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान के ज़रिए परमेश्वर के प्रबन्ध की वजह से सच होगा, जिसने “हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दुःखों को उठा लिया।” (मत्ती ८:१७; यशायाह ५३:४) आप “जीवन के जल की” प्रतीकात्मक “नदी” से पी सकेंगे और “जीवन के पेड़ों” से खा सकेंगे जिनके पत्तों से “जाति जाति के लोग चंगे” हो सकते हैं। (प्रकाशितवाक्य २२:१, २) इस बीमार दुनिया में अपने विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए परिपूर्णता और खुशी के साथ बिताया जानेवाला अन्तहीन जीवन आपका प्रतिफल होगा।
क्या आपको याद है?
◻ विश्वास में स्वस्थ होना अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य से कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण क्यों है?
◻ विश्वास और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को जोख़िम में डालनेवाले तीन मुख्य ख़तरे क्या हैं?
◻ अच्छे आध्यात्मिक स्वास्थ्य और प्रतीकात्मक हृदय के बीच क्या सम्बन्ध है?
◻ अगर कोई आध्यात्मिक रूप से बीमार हो, तो क्या किया जाना चाहिए?
[पेज 24 पर तसवीरें]
एक बीमार दुनिया में भी पक्का विश्वास और अच्छा आध्यात्मिक स्वास्थ्य होना संभव है
[पेज 26 पर तसवीरें]
अच्छा आध्यात्मिक स्वास्थ्य उत्साही मसीही कार्य और नियमित रूप से सही समय पर आध्यात्मिक भोजन लेने पर निर्भर है