‘हमारे ही जैसी भावना रखनेवाले’ मनुष्य
वह एक राजा और भविष्यवक्ता था लेकिन वह एक प्रेमी पिता भी था। उसका एक पुत्र बड़ा होकर अक्खड़ और अहंकारी इंसान निकला। राजगद्दी हथियाने के अपने दृढ़ प्रयास में, इस पुत्र ने अपने पिता की मौत के मंसूबे से गृह युद्ध छेड़ दिया। परंतु जो संग्राम हुआ, उसमें पुत्र ही मौत के मुँह में जा गिरा। जब पिता ने अपने पुत्र की मौत की खबर सुनी, वह अटारी पर चढ़ा और एकांत में रोया: “हाय मेरे बेटे अबशालोम! मेरे बेटे, हाय! मेरे बेटे अबशालोम! भला होता कि मैं आप तेरी सन्ती मरता, हाय! अबशालोम! मेरे बेटे, मेरे बेटे!” (२ शमूएल १८:३३) पिता राजा दाऊद था। यहोवा के अन्य भविष्यवक्ताओं की तरह, वह “हमारे ही जैसी भावना रखनेवाला मनुष्य था”—याकूब ५:१७, NW.
बाइबल समय में, पुरुष और स्त्री जिन्होंने यहोवा की ओर से बात की, वे हर पृष्ठभूमि से थे और साधारण इंसान थे। हमारी ही तरह उन्हें भी समस्याएँ थीं और अपरिपूर्णता को झेल रहे थे। इन भविष्यवक्ताओं में से कुछ लोग कौन थे और उनकी भावनाएँ कैसे हमारी ही तरह थीं?
मूसा अति आत्मविश्वास से विनम्र बना
मसीही-पूर्व युग का एक प्रमुख भविष्यवक्ता था, मूसा। लेकिन, ४० की उम्र में भी वह यहोवा के प्रवक्ता के तौर पर सेवा करने के काबिल न था। भला क्यों? मूसा फिरौन के घराने में पला-बड़ा था और “वह बातों और कामों में सामर्थी था,” जबकि उसके भाई मिस्र के फिरौन द्वारा सताए जाते थे। रिकॉर्ड हमें बताता है: “उस ने सोचा, कि मेरे भाई समझेंगे कि परमेश्वर मेरे हाथों से उन का उद्धार करेगा।” अति आत्मविश्वास के साथ उसने इब्री दास को बचाने के लिए आक्रमणशील तरीके से कार्य किया और एक मिस्री की हत्या कर दी।—प्रेरितों ७:२२-२५; निर्गमन २:११-१४.
अब मूसा को मजबूरन फरार होना पड़ा और उसने अगले चार दशक दूरस्थ मिद्यान देश में चरवाहे की नाईं बिताए। (निर्गमन २:१५) उन चार दशकों के आखिर में, मूसा जब ८० वर्ष का था तब उसे यहोवा द्वारा भविष्यवक्ता बनने का आदेश मिला। पर मूसा में अब वह अति आत्मविश्वास नहीं रह गया था। उसने इतना अयोग्य महसूस किया कि उसने यहोवा द्वारा भविष्यवक्ता नियुक्त होने के आदेश पर यूँ कहते हुए प्रश्न उठाया, ‘मैं कौन हूं जो फिरौन के पास जाऊं?’ और “मैं उनको क्या बताऊं?” (निर्गमन ३:११, १३) यहोवा के प्रेममय आश्वासन और सहयोग द्वारा मूसा अपनी नियुक्ति के लिए चल पड़ा और कामयाब हुआ।
मूसा की तरह, क्या आपने कभी अति आत्मविश्वास के साथ कुछ ऐसा कर दिया या कह दिया जो बाद में मूर्खता साबित हुई? यदि हाँ, तो नम्रता के साथ आगे और प्रशिक्षण स्वीकार कीजिए। या क्या आपने अमुक मसीही ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए अपने को अयोग्य महसूस किया है? पीछे हटने के बजाय, यहोवा और उसके संगठन द्वारा दी गयी मदद स्वीकार कीजिए। जिसने मूसा की मदद की वह आपकी भी सहायता कर सकता है।
अनुशासन देते समय एलिय्याह की हमारे ही जैसी भावनाएँ थीं
“एलिय्याह भी हमारे ही जैसी भावना रखनेवाला मनुष्य था; और उसने वर्षा न होने के लिए गिड़गिड़ा कर प्रार्थना की; और साढ़े तीन वर्षों तक धरती पर वर्षा न हुई।” (याकूब ५:१७, NW) एलिय्याह की प्रार्थना यहोवा की इच्छा के सामंजस्य में उस राष्ट्र को अनुशासित करने के लिए थी जिसने यहोवा से मुँह फेर लिया था। फिर भी, एलिय्याह जानता था कि जिस सूखे की वह प्रार्थना कर रहा है वह मानवी दुःख का ही कारण होगा। इस्राएल मुख्यतः कृषि-प्रधान देश था; ओस और वर्षा लोगों की जीविका थी। लगातार सूखा पड़ा रहना बड़ा ही क्लेशकर होता। वनस्पति सूख जाती; फसलें तबाह हो जातीं। पालतू जानवर मर जाते जिनका उपयोग काम और भोजन के लिए किया जाता था और कुछ परिवारों को भुखमरी का खतरा रहता। कौन सबसे अधिक कष्ट भोगता? आम इंसान। एक विधवा ने बाद में एलिय्याह से कहा कि उसके पास केवल मुट्ठी भर मैदा और थोड़ा-सा तेल रह गया है। उसे पूरा यकीन था कि उसके साथ उसका पुत्र भी जल्द ही भूख से मर जाएगा। (१ राजा १७:१२) एलिय्याह ने जिस तरह प्रार्थना की, उसके लिए उसे दृढ़ विश्वास की ज़रूरत थी कि यहोवा अपने सेवकों की—अमीर चाहे गरीब—जिन्होंने सच्ची उपासना को नहीं तजा था, परवाह करेगा। जैसा कि रिकॉर्ड बताता है, एलिय्याह को निराश नहीं होना पड़ा था।—१ राजा १७:१३-१६; १८:३-५.
तीन साल बाद जब यहोवा ने संकेत दिया कि वह जल्दी ही मेंह बरसाएगा, तब सूखे का अंत देखने की एलिय्याह की तीव्र इच्छा उसकी बार-बार की गयी गहरी प्रार्थना में नज़र आती है, जब उसने “भूमि पर गिर कर अपना मुंह घुटनों के बीच किया।” (१ राजा १८:४२) कुछ ऐसे चिन्ह पाने के लिए कि यहोवा ने उसकी प्रार्थनाएँ सुन ली हैं, उसने बार-बार अपने सेवक से आग्रह किया: “चढ़कर समुद्र की ओर दृष्टि कर देख।” (१ राजा १८:४३) उसने क्या ही ख़ुशी महसूस की होगी जब आखिरकार उसकी प्रार्थना के जवाब में “आकाश से वर्षा हुई, और भूमि फलवन्त हुई”!—याकूब ५:१८.
अगर आप एक पिता या मसीही कलीसिया में एक प्राचीन हैं, तो आपको ताड़ना देते वक्त शायद गहरी भावनाओं के साथ संघर्ष करना पड़े। लेकिन, ऐसी मानवीय भावनाओं को इस दृढ़ इरादे से संतुलित करने की ज़रूरत है कि कभी-कभार अनुशासन ज़रूरी है और कि जब इसमें प्रेम घुला होता है तब “चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है।” (इब्रानियों १२:११) यहोवा की आज्ञाओं को मानने का नतीजा हमेशा ही मनोहर होता है। एलिय्याह की ही तरह हमारी दिली चाहत यही है कि हम भी इन आज्ञाओं को मानें।
यिर्मयाह ने निराशा के बावजूद साहस दिखाया
बाइबल के सभी लेखकों में से शायद यिर्मयाह ही एक था, जिसने सबसे अधिक अपनी व्यक्तिगत भावनाओं के बारे में लिखा। जब वह जवान था, वह अपनी नियुक्ति स्वीकार करने के लिए अनिच्छुक था। (यिर्मयाह १:६) बहरहाल, वह साहस जुटाकर परमेश्वर के वचन की घोषणा करने आगे तो बढ़ा, लेकिन उसे अपने साथी इस्राएलियों—राजा से लेकर रंक तक—के भीषण विरोध का सामना करना पड़ा। उस विरोध ने कभी उसे क्रोध दिलाया तो कभी रुलाया। (यिर्मयाह ९:३; १८:२०-२३; २०:७-१८) अन्य अवसरों पर उसे भीड़ द्वारा सताया गया, पीटा गया, गले में लोहे का पट्टा डाला गया, कैद किया गया, मौत की धमकी दी गयी और दलदल से भरे गड़हे में मरने के लिए छोड़ दिया गया। कभी-कभी तो यहोवा के संदेश भी उसे चोट पहुँचाते थे, जैसा कि उसके इन शब्दों से ज़ाहिर होता है: “हाय! हाय! मेरा हृदय भीतर ही भीतर तड़पता है!”—यिर्मयाह ४:१९.
फिर भी, वह यहोवा के वचनों से प्यार करता था, उसने कहा: “तेरे वचन मेरे मन के हर्ष और आनन्द का कारण हुए।” (यिर्मयाह १५:१६) पर साथ ही उसकी कुंठा उसे यहोवा से यह कहने को विवश कर देती: “क्या तू सचमुच मेरे लिये धोखा देनेवाली नदी और सूखनेवाले जल के समान होगा?” अर्थात् उस छोटी नदी के समान जो आसानी से सूख जाती है। (यिर्मयाह १५:१८) इन सबके बावजूद, यहोवा ने उसकी विरोधी भावनाओं को समझा और उसे लगातार सहारा देता रहा ताकि वह अपनी कार्य-नियुक्ति पूरी कर सके।—यिर्मयाह १५:२०; और २०:७-९ भी देखिए।
क्या आप भी अपनी सेवकाई को पूरा करने में, यिर्मयाह की तरह ही कुंठा या विरोध का सामना करते हैं? यहोवा की ओर देखिए। उसके निर्देशन के अनुसार चलते रहिए और यहोवा आपके प्रयासों पर भी प्रतिफल देगा।
यीशु की हमारे ही जैसी भावनाएँ थीं
अब तक रहे भविष्यवक्ताओं में से सबसे महान भविष्यवक्ता था परमेश्वर का अपना ही पुत्र, यीशु मसीह। हालाँकि वह परिपूर्ण व्यक्ति था, उसने अपनी भावनाओं को नहीं दबाया। हम अकसर उसकी आंतरिक भावनाओं के विषय में पढ़ते हैं, जो ज़रूर उसके चेहरे पर और दूसरों के साथ उसके व्यवहार करते वक्त साफ नज़र आयी होंगी। यीशु ने अकसर “तरस खाया” था और अपने दृष्टांतों में भी उसने चरित्रों का वर्णन करते वक्त ऐसी भावनाओं को दर्शाया।—मरकुस १:४१; ६:३४; लूका १०:३३.
जब उसने व्यापारियों और जानवरों को मंदिर से बाहर खदेड़ा, उसने ज़रूर ऊँची आवाज़ में चिल्लाकर कहा होगा: “इन्हें यहां से ले जाओ!” (यूहन्ना २:१४-१६) पतरस के सुझाव पर कि “हे प्रभु, परमेश्वर न करे,” उसने ज़बरदस्त प्रतिक्रिया दिखाई, “हे शैतान, मेरे साम्हने से दूर हो।”—मत्ती १६:२२, २३.
यीशु को कुछ लोगों के लिए विशेष लगाव था, जो खासकर उसके करीब थे। प्रेरित यूहन्ना का वर्णन ऐसे किया गया है, ‘चेला जिस से यीशु प्रेम रखता था।’ (यूहन्ना २१:७, २०) और हम पढ़ते हैं: “यीशु मरथा और उस की बहन और लाजर से प्रेम रखता था।”—यूहन्ना ११:५.
यीशु को भी पीड़ा होती थी। लाजर की मृत्यु का दुःख अनुभव करते हुए “यीशु के आंसू बहने लगे।” (यूहन्ना ११:३२-३६) यहूदा इस्करियोती के विश्वासघात के कारण हुई अपनी हृदय वेदना प्रकट करते हुए, यीशु भजन में से दिल को चीर देनेवाली अभिव्यक्ति उद्धृत करता है: “जो मेरी रोटी खाता है, उस ने मुझ पर लात उठाई।”—यूहन्ना १३:१८; भजन ४१:९.
सूली पर दर्दनाक पीड़ा का अनुभव करते वक्त भी यीशु ने अपनी गहरी भावना ज़ाहिर की। उसने कोमलता से अपनी माँ “उस चेले को जिस से वह प्रेम रखता था” सौंप दिया। (यूहन्ना १९:२६, २७) जब यीशु को अपने पास लटकाए गए एक कुकर्मी में पश्चाताप साफ नज़र आया तब उसने करुणा दिखाते हुए कहा: “तू मेरे साथ परादीस में होगा।” (लूका २३:४३, NW) हम उसके इस चीत्कार में भावनाओं की हद को महसूस कर सकते हैं: “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?” (मत्ती २७:४६) और मरते वक्त उसके शब्द हार्दिक प्रेम और भरोसे को प्रकट करते हैं: “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं।”—लूका २३:४६.
इन सबसे हमें क्या ही तसल्ली मिलती है! “क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; बरन वह सब बातों में हमारी नाईं परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला।”—इब्रानियों ४:१५.
यहोवा का दृढ़ विश्वास
यहोवा ने प्रवक्ताओं के अपने चुनाव पर कभी भी खेद प्रकट नहीं किया। अपने प्रति उनकी वफादारी को वह जानता था और करुणामय तरीके से उसने उन अपरिपूर्ण लोगों की कमज़ोरियों को नज़रअंदाज़ किया। फिर भी उसने उनसे अपनी कार्य-नियुक्ति पूरी करने की उम्मीद रखी। उसकी मदद से वे उसे पूरा भी कर सके।
आइए, हम धैर्य से अपने वफादार भाइयों और बहनों पर पूरा विश्वास दिखाएँ। हमारी तरह, वे भी इस रीति-व्यवस्था में हमेशा अपरिपूर्ण रहेंगे। फिर भी, हमें कभी ऐसा नहीं समझना चाहिए कि हमारे भाई हमारे प्रेम और ध्यान के लायक नहीं हैं। पौलुस ने लिखा: “निदान हम बलवानों को चाहिए, कि निर्बलों की निर्बलताओं को सहें; न कि अपने आप को प्रसन्न करें।”—रोमियों १५:१; कुलुस्सियों ३:१३, १४.
यहोवा के भविष्यवक्ताओं ने उन सभी भावनाओं का अनुभव किया जिनका अनुभव हम करते हैं। फिर भी, उन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा और यहोवा ने उन्हें पार भी करवाया। इससे भी बढ़कर, यहोवा ने उन्हें आनंद मनाने के कारण भी दिए—अच्छा अंतःकरण, उसके अनुमोदन का एहसास, वफादार साथी जिन्होंने उन्हें सँभाला और आनंदित भविष्य का आश्वासन। (इब्रानियों १२:१-३) आइए, हम भी पूरे विश्वास के साथ यहोवा को थामे रहें, जैसे-जैसे हम पुराने भविष्यवक्ताओं के यानी ‘हमारे ही जैसी भावना रखनेवाले’ मनुष्यों के विश्वास का अनुकरण करते हैं।