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  • यहोवा कोमल है!
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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यहोवा कोमल है!

“जो ज्ञान ऊपर से आता है वह . . . कोमल है।”—याकूब ३:१७.

१. कुछ लोगों ने परमेश्‍वर को निष्ठुर व्यक्‍ति के रूप में कैसे वर्णित किया है और परमेश्‍वर के लिए एक ऐसे दृष्टिकोण के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

आप किस प्रकार के परमेश्‍वर की उपासना करते हैं? क्या आप मानते हैं कि वह अपने स्वाभाव में अनम्य, कड़ा न्यायी, कठोर और सख़्त परमेश्‍वर है? प्रोटेस्टेंट सुधारक जॉन कैल्विन को परमेश्‍वर ऐसा ही प्रतीत हुआ होगा। कैल्विन ने दावा किया कि परमेश्‍वर के पास प्रत्येक व्यक्‍ति के संबंध में एक “अनन्त और अपरिवर्तनीय योजना” है, जिसमें प्रत्येक जन के लिए पूर्वनिर्धारित किया गया है कि वह आनन्द में सर्वदा जीएगा या अनन्तकाल के लिए नरकाग्नि में पीड़ित होगा। कल्पना कीजिए: यदि यह सच होता, तो चाहे आप कुछ भी करते, कितनी ही कोशिश क्यों न करते, वह आपके और आपके भविष्य के बारे में परमेश्‍वर की चिरकालिक सख़्त योजना को नहीं बदलता। क्या आप एक ऐसे निष्ठुर परमेश्‍वर की ओर आकर्षित होते?—याकूब ४:८ से तुलना कीजिए।

२, ३. (क) मानवी संस्थानों और संगठनों की निष्ठुरता को हम कैसे सचित्रित कर सकते हैं? (ख) यहोवा के दिव्य रथ का यहेजकेल का दर्शन उसकी अनुकूलनशीलता को कैसे प्रकट करता है?

२ यह जानना कि बाइबल का परमेश्‍वर उत्कृष्ट रूप से कोमल है हमें कितनी राहत पहुँचाता है! वह परमेश्‍वर नहीं बल्कि मनुष्य हैं जो ख़ुद की अपरिपूर्णताओं से बन्धकर, सख़्त और अनम्य होने के लिए प्रवृत्त होते हैं। मानवी संगठन माल-गाड़ी की तरह अनियंत्रणीय हो सकते हैं। जब एक बड़ी माल-गाड़ी पटरी पर किसी बाधा की ओर बढ़ रही है, तब मुड़ना असंभव है, और रुकना भी कुछ आसान नहीं है। कुछ गाड़ियों की आगे बढ़ने की गतिमात्रा इतनी होती है कि ब्रेक लगाने के बाद भी वे एक किलोमीटर से अधिक दूर जाने पर ही रुकती हैं! वैसे ही, एक महाटंकी जहाज़ का इंजन बन्द करने के बाद भी वो और ८ किलोमीटर तक आगे बढ़ता रह सकता है। यदि उसे विपरीत दिशा में भी चलाया जाए तौभी वह शायद तीन किलोमीटर तक पानी में आगे बढ़ता रहेगा! लेकिन अब इन दोनों से कहीं अधिक विस्मयकारी वाहन के बारे में विचार कीजिए, वह जो परमेश्‍वर के संगठन को चित्रित करता है।

३ यहोवा ने भविष्यवक्‍ता यहेजकेल को, २,६०० से अधिक वर्ष पहले एक दर्शन दिया जिसने आत्मिक प्राणियों के उसके स्वर्गीय संगठन को चित्रित किया। वह विस्मय-प्रेरक आकार का रथ था, यहोवा का अपना “वाहन” जो हमेशा उसके नियंत्रण में है। उसके चलने का ढंग सबसे दिलचस्प था। उसके विशाल पहिए चारों ओर घूमनेवाले और आँखों से भरे थे, ताकि वे चारों तरफ़ देख सकें और बिना रुके या मुड़े क्षण-भर में दिशा बदल सकें। और इस विशाल वाहन को किसी महाटंकी जहाज़ या माल-गाड़ी की तरह मानो धीरे-धीरे रेंगने की ज़रूरत नहीं थी। समकोण मोड़ भी लेता हुआ, यह बिजली की रफ़्तार से आगे बढ़ सकता था! (यहेजकेल १:१, १४-२८) यहोवा उस परमेश्‍वर से जिसका प्रचार कैल्विन ने किया उतना ही भिन्‍न है जितना कि उसका वाहन भद्दी मानव-निर्मित मशीनों से भिन्‍न है। वह पूर्ण रूप से अनुकूलनशील है। यहोवा के व्यक्‍तित्व के इस पहलू का मूल्यांकन करने से हमें अनुकूलनशील रहने और निष्ठुरता के फन्दे से बचे रहने के लिए सहायता मिलनी चाहिए।

यहोवा—विश्‍व का सबसे अनुकूलनशील व्यक्‍ति

४. (क) किस तरह स्वयं यहोवा का नाम प्रकट करता है कि वह एक अनुकूलनशील परमेश्‍वर है? (ख) यहोवा परमेश्‍वर को कौन-सी कुछ उपाधियाँ दी गयी हैं, और वे उपयुक्‍त क्यों हैं?

४ यहोवा का नाम ही अनुकूलनशीलता को सूचित करता है। “यहोवा” का शाब्दिक अर्थ है “वह अस्तित्व में लाता है”। स्पष्ट रूप से इसका अर्थ है कि यहोवा स्वयं को अपनी सारी प्रतिज्ञाओं को पूर्ण करनेवाला बनाता है। जब मूसा ने परमेश्‍वर से उसका नाम पूछा, तब यहोवा ने इस प्रकार अपने नाम का विस्तृत अर्थ दिया: “मैं जो हूं सो हूं।” (निर्गमन ३:१४) रॉदरहैम का अनुवाद स्पष्टता के साथ कहता है: “जो कुछ मुझे भाता है मैं वही बनूँगा।” अपने धर्मी उद्देश्‍यों और प्रतिज्ञाओं को पूर्ण करने के लिए जो भी आवश्‍यकता होती है उसके अनुसार यहोवा वैसा हो जाता या बन जाता है। अतः, उसकी अनेक प्रभावशाली उपाधियाँ हैं जैसे सृष्टिकर्ता, पिता, सर्वसत्ताधारी प्रभु, चरवाहा, सेनाओं का यहोवा, प्रार्थना का सुननेवाला, न्यायी, महान उपदेशक, छुड़ानेवाला। अपने प्रेममय उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए उसने अपने आप को ये सब और इनसे भी अधिक बनाया है।—यशायाह ८:१३; ३०:२०; ४०:२८; ४१:१४; भजन २३:१; ६५:२; ७३:२८; ८९:२६; न्यायियों ११:२७; न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन, परिशिष्ट 1J भी देखिए।

५. हमें यह निष्कर्ष क्यों नहीं निकालना चाहिए कि यहोवा की अनुकूलनशीलता सूचित करती है कि उसका स्वभाव या स्तर परिवर्तित होते हैं?

५ तब क्या इसका अर्थ है कि परमेश्‍वर का स्वभाव या स्तर परिवर्तित होते हैं? नहीं; जैसे याकूब १:१७ कहता है, ‘उस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, और न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है।’ क्या यहाँ कोई अन्तर्विरोध है? बिलकुल नहीं। उदाहरण के लिए, कौन-से प्रेममय माता-पिता बच्चों के लाभ के लिए अलग-अलग भूमिकाएँ नहीं निभाते? एक ही दिन के दौरान, माता-पिता शायद एक सलाहकार, रसोइया, गृहिणी, शिक्षक, अनुशासक, दोस्त, मेकैनिक, नर्स हों—सूची बढ़ती ही जाती है। इन भूमिकाओं को निभाते वक़्त माता-पिता अपने व्यक्‍तित्व को नहीं बदलते; वे केवल अपने आप को वर्तमान ज़रूरत के अनुकूल बनाते हैं। यहोवा के साथ भी ऐसा ही है लेकिन एक कहीं बड़े पैमाने पर। अपने प्राणियों के लाभ के लिए वह अपने आप को क्या बना सकता है इसकी कोई सीमा नहीं। उसकी बुद्धि की गहराई वाक़ई विस्मित करनेवाली है!—रोमियों ११:३३.

कोमलता परमेश्‍वरीय बुद्धि का एक विशिष्ट लक्षण

६. परमेश्‍वरीय बुद्धि का वर्णन करने के लिए याकूब ने जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया उसका शाब्दिक अर्थ और निहितार्थ क्या हैं?

६ इस अत्यंत अनुकूलनशील परमेश्‍वर की बुद्धि का वर्णन करने के लिए शिष्य याकूब ने एक दिलचस्प शब्द का इस्तेमाल किया। उसने लिखा: “जो ज्ञान ऊपर से आता है वह . . . कोमल है।” (याकूब ३:१७) उस यूनानी शब्द (एपीआइकेस्‌) को जिसे उसने यहाँ इस्तेमाल किया, अनुवाद करना कठिन है। अनुवादकों ने ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जैसे “विनम्र,” “मृदुल,” “धैर्यशील,” और “विचारशील”। न्यू वर्ल्ड ट्रांसलेशन इसे “कोमल” अनुवाद करती है, एक फुटनोट के साथ जो सूचित करता है कि इसका शाब्दिक अर्थ “सुनम्य” है।a वह शब्द लकीर का फ़कीर न होने, ज़रूरत से ज़्यादा कड़ा या कठोर न बनने का अर्थ भी ज़ाहिर करता है। न्यू टेस्टामेन्ट वर्ड्‌स्‌ (अंग्रेज़ी) में विद्वान विल्यम बारक्ली टिप्पणी करता है: “एपीआइकाइ के बारे में मूल और आधारभूत बात यह है कि वह परमेश्‍वर से प्रारंभ होती है। यदि परमेश्‍वर अपने अधिकारों पर अड़ा रहता, यदि परमेश्‍वर हम पर सिर्फ़ विधि के सख़्त स्तरों को ही लागू करता, तो हम कहाँ होते? परमेश्‍वर ही वह सर्वोच्च उदाहरण है जो एपीआइकेस्‌ है और जो दूसरों के साथ एपीआइकाइ से व्यवहार करता है।”

७. अदन की वाटिका में यहोवा ने किस तरह कोमलता प्रदर्शित की?

७ उस समय के बारे में विचार कीजिए जब मानवजाति ने यहोवा की सर्वसत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया। यहोवा के लिए उन तीन कृतघ्न विद्रोहियों—आदम, हव्वा, और शैतान—को प्राणदण्ड देना कितना आसान होता! ऐसा करने से वह ख़ुद को कितनी वेदना से बचा सकता था! और कौन बहस कर सकता था कि ऐसे कड़े न्याय की माँग करने का उसके पास कोई अधिकार नहीं है? फिर भी, यहोवा अपने दिव्य रथ-समान संगठन को न्याय के किसी सख़्त, अपरिवर्तनीय स्तर में कभी बान्ध कर नहीं रखता। सो उस रथ ने मानव परिवार और मानवजाति के सुखी भविष्य के लिए सारी प्रत्याशाओं को निर्दयता से नहीं कुचला। इसके विपरीत, यहोवा ने अपने रथ को बिजली-समान स्फूर्ति के साथ कुशलतापूर्वक चलाया। विद्रोह के तुरंत बाद यहोवा परमेश्‍वर ने एक दीर्घकालिक उद्देश्‍य की रूपरेखा दी, जिसने आदम के सारे वंशजों को दया और आशा प्रस्तुत की।—उत्पत्ति ३:१५.

८. (क) कोमलता के बारे में मसीहीजगत का ग़लत दृष्टिकोण कैसे यहोवा की निष्कपट कोमलता की विषमता में है? (ख) हम यह क्यों कह सकते हैं कि यहोवा की कोमलता यह नहीं सूचित करती कि वह शायद परमेश्‍वरीय सिद्धान्तों का समझौता करेगा?

८ लेकिन, यहोवा की कोमलता यह नहीं सूचित करती है कि वह शायद परमेश्‍वरीय सिद्धान्तों का समझौता करेगा। आज के मसीहीजगत के गिरजे शायद यह सोच सकते हैं कि वे कोमल बन रहे हैं जब वे अनैतिकता की उपेक्षा मात्र अपने निरंकुश झुंड की ख़ुशामद करके अनुमोदन प्राप्त करने के लिए करते हैं। (२ तीमुथियुस ४:३ से तुलना कीजिए।) यहोवा अपनी ख़ुद की विधियों को कभी नहीं तोड़ता, ना ही वह अपने सिद्धान्तों का समझौता करता है। बल्कि, वह सुनम्य बनने की तथा परिस्थितियों के अनुकूल होने की इच्छा दिखाता है, ताकि वे सिद्धान्त ईमानदारी और दयालुता दोनों से लागू किए जा सकें। वह न्याय और शक्‍ति के अपने प्रयोग को अपने प्रेम और कोमल बुद्धि के साथ संतुलित करने के प्रति हमेशा चिंतनशील रहता है। आइए हम तीन तरीक़ों पर विचार करें जिनसे यहोवा कोमलता प्रदर्शित करता है।

“क्षमा करने को तत्पर”

९, १०. (क) “क्षमा करने को तत्पर” होने का कोमलता के साथ क्या संबंध है? (ख) यहोवा की क्षमा करने की तत्परता से दाऊद ने किस प्रकार लाभ उठाया, और क्यों?

९ दाऊद ने लिखा: “क्योंकि हे प्रभु [यहोवा, NW], तू भला और क्षमा करनेवाला है [क्षमा करने को तत्पर है, NW], और जितने तुझे पुकारते हैं उन सभों के लिये तू अति करुणामय है।” (भजन ८६:५) जब इब्रानी शास्त्रों को यूनानी में अनुवाद किया गया, तब “क्षमा करने को तत्पर” के लिए शब्द को एपीआइकेस्‌, या “कोमल” अनुवाद किया गया। वाक़ई, क्षमा करने को तत्पर होना और दया दिखाना कोमलता प्रदर्शित करने का शायद मुख्य तरीक़ा है।

१० दाऊद ख़ुद भी अच्छी तरह अवगत था कि इस संबंध में यहोवा कितना कोमल है। जब दाऊद ने बतशेबा के साथ परस्त्रीगमन किया और उसके पति की हत्या करवाने का प्रबन्ध किया, तब वह और बतशेबा दोनों संभवतः मृत्यु-दण्ड पाने के योग्य थे। (व्यवस्थाविवरण २२:२२; २ शमूएल ११:२-२७) यदि सख़्त मानवी न्यायियों ने इस मामले का न्याय किया होता, तो शायद दोनों अपनी जान गवाँ देते। लेकिन यहोवा ने कोमलता (एपीआइकेस्‌) दिखायी, जो, जैसे वाईन्स्‌ एक्सपोसिट्‌री डिक्शनरी ऑफ बिबलिकल वर्ड्‌स्‌ (अंग्रेज़ी) कहती है, “उस विचारशीलता को व्यक्‍त करती है जो ‘किसी मामले के तथ्यों पर दयापूर्ण और तर्कसंगत रीति से’ देखती है।” जिन तथ्यों ने यहोवा के दयावन्त निर्णय को प्रभावित किया उनमें संभवतः कुकर्मियों का सच्चा पश्‍चाताप और वह दया शामिल थी जो स्वयं दाऊद ने पहले दूसरों के पक्ष में दिखायी थी। (१ शमूएल २४:४-६; २५:३२-३५; २६:७-११; मत्ती ५:७; याकूब २:१३) बहरहाल, निर्गमन ३४:४-७ में दिए गए यहोवा के अपने विवरण के सामंजस्य में, यह तर्कसंगत था कि यहोवा दाऊद को ताड़ना देता। दाऊद के मन में यह तथ्य बिठाने के लिए कि उसने यहोवा के वचन का तिरस्कार किया था, यहोवा ने भविष्यवक्‍ता नातान को दाऊद के पास एक शक्‍तिशाली संदेश के साथ भेजा। दाऊद ने पश्‍चाताप किया और इस कारण अपने पाप के लिए नहीं मरा।—२ शमूएल १२:१-१४.

११. मनश्‍शे के मामले में यहोवा ने क्षमा करने की तत्परता कैसे दिखायी?

११ इस संबंध में यहूदा के राजा मनश्‍शे का उदाहरण और भी उल्लेखनीय है, चूँकि दाऊद से भिन्‍न, मनश्‍शे लंबे समय से बहुत दुष्ट था। मनश्‍शे ने देश में घृणित धार्मिक प्रथाओं को बढ़ावा दिया, जिसमें मानव बलिदान भी शामिल था। वह वफ़ादार भविष्यवक्‍ता यशायाह के “आरे से चीरे” जाने के लिए भी शायद ज़िम्मेदार रहा होगा। (इब्रानियों ११:३७) मनश्‍शे को दण्ड देने के लिए, यहोवा ने उसे एक बन्धुए की नाईं बाबुल ले जाए जाने की अनुमति दी। बहरहाल, मनश्‍शे ने बंदीगृह में पश्‍चाताप किया और दया की विनती की। इस सच्चे पश्‍चाताप के जवाब में यहोवा इस आत्यंतिक मामले में भी “क्षमा करने को तत्पर” था।—२ इतिहास ३३:९-१३.

नयी परिस्थितियाँ उत्पन्‍न होने पर कार्यवाही के तरीक़े को बदलना

१२, १३. (क) नीनवे के मामले में, परिस्थिति के कौन-से परिवर्तन ने यहोवा को अपना मार्ग बदलने के लिए उकसाया? (ख) योना यहोवा से कम कोमल कैसे सिद्ध हुआ?

१२ नयी परिस्थितियों के उत्पन्‍न होने पर जो कार्यवाही उसने करने की सोची थी उसे बदलने की उसकी तत्परता में भी यहोवा की कोमलता दिखती है। उदाहरण के लिए, जब भविष्यवक्‍ता योना प्राचीन नीनवे की सड़कों पर चल रहा था, तो उसका उत्प्रेरित संदेश काफ़ी सरल था: वह शक्‍तिशाली नगर ४० दिन में नाश किया जाएगा। लेकिन, परिस्थितियाँ बदल गयीं—नाटकीय रूप से! नीनवे के लोगों ने पश्‍चाताप किया।—योना, अध्याय ३.

१३ परिस्थितियों के इस बदलाव के प्रति यहोवा और योना ने कैसे प्रतिक्रिया दिखायी उसकी तुलना करना शिक्षाप्रद है। यहोवा ने वस्तुतः अपने दिव्य रथ के मार्ग को बदला। इस किस्से में वह अनुकूल बना, एक “योद्धा” बनने के बजाय उसने अपने आपको पापों का क्षमा करनेवाला बनाया। (निर्गमन १५:३) दूसरी तरफ़, योना कहीं कम नम्य था। यहोवा के रथ के साथ क़दम से क़दम मिलाने के बजाय, उसने शुरू में ज़िक्र की गयी माल-गाड़ी या महाटंकी जहाज़ की तरह बर्ताव किया। उसने सर्वनाश उद्‌घोषित किया, तो सर्वनाश ही होना है! शायद उसने महसूस किया कि कार्यवाही में कोई भी परिवर्तन उसे नीनवे के लोगों की दृष्टि में मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगा। लेकिन, यहोवा ने धैर्यपूर्वक अपने ज़िद्दी भविष्यवक्‍ता को कोमलता और दया में एक स्मरणीय सबक़ सिखाया।—योना, अध्याय ४.

१४. अपने भविष्यवक्‍ता यहेजकेल के संबंध में यहोवा ने अपनी कार्यवाही को क्यों परिवर्तित किया?

१४ अन्य अवसरों पर भी यहोवा ने कार्यवाही बदली है—अपेक्षाकृत छोटे विषयों के लिए भी। उदाहरण के लिए, एक बार जब उसने भविष्यवक्‍ता यहेजकेल को एक भविष्यसूचक नाटक का अभिनय करने के लिए नियुक्‍त किया, तो यहोवा के निर्देशनों में एक निर्देश यह था कि यहेजकेल मानव विष्ठा को जलाकर उसकी आग पर अपना खाना बनाए। यह उस भविष्यवक्‍ता के लिए बहुत ज़्यादा था, जिसने पुकारा, “हाय, यहोवा परमेश्‍वर” और विनती की कि उससे ऐसा काम न करवाया जाए जो उसे इतना घिनौना लगता है। यहोवा ने भविष्यवक्‍ता की भावनाओं को असंगत कहकर रद्द नहीं किया; बल्कि उसने यहेजकेल को पशु विष्ठा इस्तेमाल करने की अनुमति दी, जो कि आज तक अनेक देशों में ईंधन का एक आम स्रोत है।—यहेजकेल ४:१२-१५.

१५. (क) कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि यहोवा मनुष्यों की सुनने और प्रतिक्रिया दिखाने को तत्पर रहा है? (ख) यह हमें क्या सबक़ सिखा सकता है?

१५ हमारे परमेश्‍वर यहोवा की विनम्रता पर मनन करना क्या आनन्दपूर्ण नहीं है? (भजन १८:३५) वह हमसे बहुत ही ऊँचा है; फिर भी, वह अपरिपूर्ण मनुष्यों को धैर्यपूर्वक सुनता है और कभी-कभी आवश्‍यकता अनुसार अपनी कार्यवाही भी बदलता है। सदोम और अमोरा के विनाश के विषय में उसने इब्राहीम को अंत तक विनती करने की अनुमति दी। (उत्पत्ति १८:२३-३३) और उसने विद्रोही इस्राएलियों का विनाश करके उसके स्थान पर मूसा से एक बड़ी जाति बनाने के अपने प्रस्ताव पर मूसा को आपत्ति उठाने दी। (निर्गमन ३२:७-१४; व्यवस्थाविवरण ९:१४, १९; साथ ही आमोस ७:१-६ से तुलना कीजिए।) ऐसा करने के द्वारा उसने अपने मानवी सेवकों के लिए एक परिपूर्ण उदाहरण रखा, जिन्हें जब तर्कसंगत हो और ऐसा करना संभव हो तब दूसरों की सुनने के लिए समान तत्परता दिखानी चाहिए।—याकूब १:१९ से तुलना कीजिए।

अधिकार के प्रयोग में कोमलता

१६. यहोवा अपने अधिकार के प्रयोग करने के तरीक़े में अनेक मनुष्यों से कैसे भिन्‍न है?

१६ क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जैसे-जैसे व्यक्‍तियों को ज़्यादा अधिकार प्राप्त होता है, वैसे-वैसे अनेक लोग कम कोमल बनते प्रतीत होते हैं? इसके विपरीत, यहोवा के पास विश्‍व में अधिकार का सर्वोच्च पद है, फिर भी वह कोमलता का सर्वोत्तम उदाहरण है। वह अपने अधिकार का प्रयोग एक अचूक कोमल तरीक़े से करता है। अनेक मनुष्यों से भिन्‍न, यहोवा अपने अधिकार के बारे में असुरक्षित नहीं है, सो वह ईर्ष्यालु रूप से इसकी रक्षा करने को बाध्य महसूस नहीं करता—मानो दूसरों को थोड़ा अधिकार देने से शायद उसके अपने अधिकार पर किसी तरह का ख़तरा आ सकता है। वास्तव में, जब विश्‍व में सिर्फ़ एक ही और व्यक्‍ति था, तब यहोवा ने उसे काफ़ी अधिकार प्रदान किया। उसने लोगोस को अपना “कारीगर” बनाया, और तब से सब कुछ अपने इस प्रिय पुत्र के द्वारा अस्तित्व में लाया। (नीतिवचन ८:२२, २९-३१; यूहन्‍ना १:१-३, १४; कुलुस्सियों १:१५-१७) बाद में उसने उसे “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार” सौंप दिया।—मत्ती २८:१८; यूहन्‍ना ५:२२.

१७, १८. (क) यहोवा ने सदोम और अमोरा में स्वर्गदूतों को क्यों भेजा? (ख) अहाब को किस तरह से बहकाया जाए इसके लिए यहोवा ने स्वर्गदूतों से सुझाव क्यों माँगे?

१७ समान रीति से, यहोवा अपने अनेक प्राणियों को ऐसे कार्य सौंपता है जिन्हें वह ख़ुद बेहतर तरीक़े से कर सकता है। उदाहरण के लिए, जब उसने इब्राहीम से कहा, “मैं उतरकर [सदोम और अमोरा में] देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्हों ने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं,” तब उसका अर्थ यह नहीं था कि वह वहाँ व्यक्‍तिगत रूप से जाएगा। इसके बजाय, अपने लिए वह जानकारी इकट्ठा करने के लिए स्वर्गदूतों को नियुक्‍त करते हुए, यहोवा ने अधिकार सौंपने का निर्णय किया। उसने उन्हें सच्चाई का पता लगाने के इस ख़ास कार्य का नेतृत्व करने और लौट कर उसे रिपोर्ट देने का अधिकार दिया।—उत्पत्ति १८:१-३, २०-२२.

१८ एक दूसरे अवसर पर, जब यहोवा ने दुष्ट राजा अहाब पर दण्डादेश देने का निर्णय किया, तब उसने एक स्वर्गीय सम्मेलन में स्वर्गदूतों को सुझाव पेश करने के लिए आमंत्रित किया कि कैसे उस धर्मत्यागी राजा को लड़ाई में सम्मिलित होने के लिए ‘बहकाया’ जाए जो उसके जीवन को अंत कर देगी। निश्‍चय ही, सारी बुद्धि के स्रोत, यहोवा को सर्वोत्तम कार्यवाही पता करने के लिए मदद की ज़रूरत नहीं थी! फिर भी, उसने अपने स्वर्गदूतों को हल पेश करने का विशेषाधिकार देकर और जिस हल को वह चुनेगा उस पर कार्य करने का अधिकार देकर प्रतिष्ठित किया।—१ राजा २२:१९-२२.

१९. (क) यहोवा जो विधियाँ बनाता है उनकी संख्या को वह क्यों सीमित रखता है? (ख) यहोवा हमसे जो अपेक्षा करता है उस संबंध में वह ख़ुद को किस प्रकार कोमल दिखाता है?

१९ दूसरों पर अनुचित नियंत्रण करने के लिए यहोवा अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं करता है। इसमें भी वह अतुलनीय कोमलता दिखाता है। वह जो विधियाँ बनाता है उनकी संख्या को ध्यानपूर्वक सीमित रखता है और अपने सेवकों को स्वयं की बनाई हुई भारी विधियों को जोड़ने के द्वारा ‘लिखे हुए से आगे बढ़ने’ के लिए मना करता है। (१ कुरिन्थियों ४:६; प्रेरितों १५:२८; साथ ही मत्ती २३:४ से तुलना कीजिए।) वह अपने प्राणियों से कभी अन्धी आज्ञाकारिता की माँग नहीं करता है, बल्कि सामान्यतः वह उनके मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त जानकारी प्रदान करता है और आज्ञा मानने के लाभों तथा अवज्ञा करने के परिणामों के बारे में बताते हुए उनके आगे चुनाव रखता है। (व्यवस्थाविवरण ३०:१९, २०) लोगों को दोष, शर्म, या भय द्वारा विवश करने के बजाय, वह हृदय तक पहुँचने की कोशिश करता है; वह चाहता है कि लोग दबाव से नहीं बल्कि निष्कपट प्रेम से उसकी उपासना करें। (२ कुरिन्थियों ९:७) पूरे मन से की गयी ऐसी सारी सेवा यहोवा के हृदय को हर्षित करती है, सो वह निष्ठुर रूप से ‘प्रसन्‍न करने को कठिन’ नहीं है।—१ पतरस २:१८, NW; नीतिवचन २७:११; साथ ही मीका ६:८ से तुलना कीजिए।

२०. यहोवा की कोमलता आपको किस तरह प्रभावित करती है?

२० क्या यह उल्लेखनीय नहीं है कि यहोवा परमेश्‍वर, जिसके पास सृष्टि में किसी भी व्यक्‍ति से अधिक शक्‍ति है, कभी-भी उस शक्‍ति को निष्ठुर रूप से प्रयोग नहीं करता, कभी-भी उसे दूसरों को आतंकित करने के लिए इस्तेमाल नहीं करता? बहरहाल, मनुष्यों का जो तुलना में इतने शक्‍तिहीन हैं, एक दूसरे पर अधिकार जताने का इतिहास है। (सभोपदेशक ८:९) स्पष्टतया, कोमलता एक अनमोल गुण है, ऐसा गुण जो हमें यहोवा से और अधिक प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है। जो, क्रमशः, हमें स्वयं यह गुण विकसित करने के लिए प्रेरित करेगा। यह हम कैसे कर सकते हैं? अगला लेख इस विषय को बताएगा।

[फुटनोट]

a वर्ष १७६९ में, कोशकार जॉन पार्कहर्स्ट ने उस शब्द को “सुनम्य, सुनम्य मनोवृत्ति का, विनम्र, सौम्य, धैर्यवान्‌” परिभाषित किया। दूसरे विद्वानों ने भी “सुनम्य” को एक परिभाषा के रूप में प्रस्तुत किया है।

आप कैसे उत्तर देंगे?

▫ यहोवा का नाम और उसके दिव्य रथ का दर्शन कैसे उसकी अनुकूलनशीलता पर ज़ोर देते हैं?

▫ कोमलता क्या है, और यह परमेश्‍वरीय बुद्धि का एक विशिष्ट लक्षण क्यों है?

▫ किन तरीक़ों से यहोवा ने दिखाया है कि वह “क्षमा करने को तत्पर” है?

▫ यहोवा ने कुछेक अवसरों पर जो कार्यवाही उसने करने की सोची थी उसे परिवर्तित करने का निर्णय क्यों लिया है?

▫ यहोवा अधिकार के प्रयोग करने के अपने तरीक़े में कैसे कोमलता प्रदर्शित करता है?

[पेज 9 पर तसवीर]

यहोवा ने दुष्ट राजा मनश्‍शे को क्यों क्षमा किया?

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