ग़रीब लेकिन अमीर—यह कैसे हो सकता है?
सदियों पहले एक बुद्धिमान पुरुष ने प्रार्थना की कि वह कंगाल न हो। ऐसी बिनती क्यों? क्योंकि उसे डर था कि कहीं ग़रीबी ऐसे मनोभाव न उत्पन्न करे और ऐसे कार्यों के लिए न उकसाये जो परमेश्वर के साथ उसके संबंध को ख़तरे में डाल दें। यह उसके शब्दों से स्पष्ट है: “प्रतिदिन की रोटी मुझे खिलाया कर कहीं ऐसा न हो कि . . . मैं घटी में पड़कर चोरी करूं और अपने परमेश्वर का नाम कलंकित करूं।”—नीतिवचन ३०:८, ९, NHT.
क्या इसका यह अर्थ है कि एक ग़रीब इनसान के लिए वफ़ादारी से परमेश्वर की सेवा करना असंभव है? बिलकुल नहीं! पूरे इतिहास के दौरान यहोवा परमेश्वर के अनगिनत सेवकों ने ग़रीबी के साथ आनेवाली कठिनाइयों के बावजूद, उसके प्रति खराई बनाए रखी है। बदले में, यहोवा उस पर भरोसा रखनेवालों से प्रेम करता है और उनका भरण-पोषण करता है।
प्राचीन समय के वफ़ादार लोग
प्रेरित पौलुस ने भी तंगी का समय झेला। (२ कुरिन्थियों ६:३, ४) उसने वफ़ादार मसीही-पूर्व गवाहों के एक ‘बड़े बादल’ का भी वर्णन किया। उनमें से कुछ “कंगाली में . . . भेड़ों और बकरियों की खालें ओढ़े हुए, इधर उधर मारे मारे फिरे। और जंगलों, और पहाड़ों, और गुफ़ाओं में और पृथ्वी की दरारों में भटकते फिरे।”—इब्रानियों ११:३७, ३८; १२:१.
इनमें से एक वफ़ादार जन था भविष्यवक्ता एलिय्याह। साढ़े तीन साल के सूखे के दौरान, यहोवा ने उसके लिए नियमित रूप से भोजन प्रदान किया। पहले, परमेश्वर ने कौवों से उस भविष्यवक्ता के लिए रोटी और मांस मँगवाया। (१ राजा १७:२-६) बाद में, यहोवा ने चमत्कार करके उस आटे और तेल को ख़त्म नहीं होने दिया जिसमें से एक विधवा एलिय्याह को भोजन बनाकर देती थी। (१ राजा १७:८-१६) भोजन एकदम सादा था, लेकिन उसने उस भविष्यवक्ता, उस स्त्री और उसके पुत्र को जीवित रखा।
इसी तरह यहोवा ने वफ़ादार भविष्यवक्ता यिर्मयाह को कठिन आर्थिक समय में सँभाले रखा। यिर्मयाह यरूशलेम पर बाबुलीय घेराव से बचा, जब लोगों को ‘तौल तौलकर और चिन्ता कर करके रोटी खानी’ पड़ी। (यहेजकेल ४:१६) अंततः, नगर में अकाल इतना प्रचंड हो गया कि कुछ स्त्रियों ने अपने ही बच्चों का मांस खाया। (विलापगीत २:२०) जबकि यिर्मयाह अपने निडर प्रचार के कारण हिरासत में था, यहोवा ने ध्यान रखा कि “जब तक नगर की सब रोटी न चुक गई,” तब तक उसको प्रतिदिन “एक रोटी” मिले।—यिर्मयाह ३७:२१.
सो एलिय्याह की तरह यिर्मयाह के पास खाने के लिए बहुत थोड़ा था। शास्त्र हमें यह नहीं बताता कि यरूशलेम में रोटी चुक जाने के बाद यिर्मयाह ने क्या खाया अथवा कितनी बार खाया। फिर भी, हम जानते हैं कि यहोवा ने उसे सँभाले रखा और वह अकाल के उस कठिन समय से बचा।
आज, संसार के हर भाग में ग़रीबी है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सबसे ज़्यादा ग़रीबी अफ्रीका में है। यूएन की एक प्रॆस विज्ञप्ति ने १९९६ में कहा: “कम-से-कम आधे अफ्रीकी कंगाल हैं।” और भी कठिन होती आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद, सदा-बढ़ती संख्या में अफ्रीकी लोग अपने जीवन में बाइबल सिद्धांतों को लागू कर रहे हैं और वफ़ादारी से परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि परमेश्वर उन्हें सँभालेगा। हमारे समस्या-ग्रस्त संसार के एक भाग से कुछ उदाहरणों पर विचार कीजिए।
ईमानदारी बनाए रखना
नाइजीरिया में रहनेवाला, माइकलa एक किसान है। उसे छः बच्चों का पेट पालना पड़ता है। “जब आपके पास अपने परिवार को सँभालने के लिए पैसा नहीं होता, तब ईमानदार होना कठिन होता है,” वह कहता है। “लेकिन जब मुझे बेईमानी करने का प्रलोभन आता है, तब मैं अपने आपको इफिसियों ४:२८ याद दिलाता हूँ, जो कहता है: ‘चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे; बरन भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करे।’ सो यदि मुझे प्रलोभन आता है, तो मैं अपने आपसे पूछता हूँ, ‘क्या मैंने इस पैसे के लिए परिश्रम किया है?’”
“उदाहरण के लिए,” माइकल आगे कहता है, “एक दिन जब मैं चलता हुआ जा रहा था, मैंने एक मोटरसाइकिल से एक बैग गिरते हुए देखा। मैं चालक को रोक तो नहीं सका, सो मैंने वह बैग उठाया और देखा कि वह पैसों से भरा पड़ा है! बैग में से मिली जानकारी इस्तेमाल करके, मैंने उसके मालिक को ढूँढ़ा और उसे वह बैग लौटा दिया।”
हताशा से लड़ना
उत्तर अफ्रीका में एक व्यक्ति ने कहा: “ग़रीबी एक गहरे गड्ढे में फँसने के [जैसे] है, आप बाहर रोशनी को और आराम से चलते-फिरते लोगों को देख सकते हैं, परंतु मदद के लिए पुकार नहीं सकते अथवा बाहर निकलने के लिए सीढ़ी नहीं माँग सकते।” इसमें आश्चर्य नहीं कि ग़रीबी प्रायः हताशा और कुंठा की भावनाएँ लाती है! परमेश्वर के सेवक भी दूसरों के धन को देखकर यह सोचना शुरू कर सकते हैं कि खराई का जीवन लाभकर नहीं है। (भजन ७३:२-१३ से तुलना कीजिए।) ऐसी भावनाओं को कैसे दूर किया जा सकता है?
पश्चिम अफ्रीकावासी, पीटर १९ साल तक सरकारी नौकरी करने के बाद सेवा-निवृत्त हुआ। अब वह मुख्यतः एक छोटी-सी पॆंशन पर जीता है। “जब मैं निराशा के दौर से गुज़रता हूँ,” पीटर कहता है, “मैं अपने आपको उन बातों की याद दिलाता हूँ जो मैंने बाइबल में और वॉच टावर सोसाइटी के प्रकाशनों में पढ़ी हैं। यह पुरानी व्यवस्था जानेवाली है, और हम एक बेहतर व्यवस्था की आस देख रहे हैं।
“साथ ही, मैं १ पतरस ५:९ के बारे में सोचता हूँ, जो कहता है: ‘विश्वास में दृढ़ होकर, और यह जानकर [शैतान] का साम्हना करो, कि तुम्हारे भाई जो संसार में हैं, ऐसे ही दुख भुगत रहे हैं।’ सो कष्ट उठानेवाला मैं ही अकेला नहीं हूँ। इन बातों को याद करना मुझे निराश और हताश करनेवाले विचारों को दूर करने में मदद देता है।”
“इसके अलावा,” पीटर आगे कहता है, “पृथ्वी पर रहते समय यीशु ने अनेक चमत्कार किये, लेकिन उसने किसी को भौतिक रूप से अमीर नहीं बनाया। तो मैं क्यों उससे अपेक्षा करूँ कि मुझे धनी बनाए?”
प्रार्थना की शक्ति
प्रार्थना में यहोवा परमेश्वर के निकट आना नकारात्मक विचारों से लड़ने का एक और तरीक़ा है। जब १९६० में मेरी एक यहोवा की साक्षी बनी, तब उसके परिवार ने उसे त्याग दिया। अविवाहित और अब ५० साल से ज़्यादा की उम्र में, वह कमज़ोर है और उसके पास भौतिक रूप से बहुत थोड़ा है। फिर भी, वह मसीही सेवकाई में जोशीली है।
मेरी कहती है: “जब मैं निराश होती हूँ, मैं यहोवा से प्रार्थना करती हूँ। मैं जानती हूँ कि मेरी जितनी मदद वह कर सकता है उतनी और कोई नहीं कर सकता। मैंने जाना है कि जब आप यहोवा पर भरोसा रखते हैं, तब वह आपकी मदद करता है। मैं हमेशा राजा दाऊद के इन शब्दों को याद रखती हूँ, जो भजन ३७:२५ में दिये गये हैं: ‘मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है।’
“मैं प्रहरीदुर्ग में बताये गये उम्रदराज़ आध्यात्मिक भाई-बहनों के अनुभवों से भी प्रोत्साहन पाती हूँ। यहोवा परमेश्वर ने उनकी मदद की, सो मैं जानती हूँ कि वह मेरी भी मदद करता रहेगा। फ़ूफ़ू [कसावा दाना] बेचने के मेरे छोटे-से काम पर वह आशीष देता है, और मैं अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा कर लेती हूँ। कभी-कभी जब मेरे पास न के बराबर पैसा होता है और सोच में पड़ जाती हूँ कि क्या करूँ, तब यहोवा किसी को भेज देता है जो मुझे एक उपहार देकर कहता है, ‘बहन, कृपया यह स्वीकार कीजिए।’ यहोवा ने कभी मुझे निराश नहीं किया।”
बाइबल अध्ययन का महत्त्व
यहोवा के साक्षी परमेश्वर के वचन, बाइबल के अध्ययन को महत्त्व देते हैं, और उनके बीच ग़रीब इससे अलग नहीं हैं। साठ-वर्षीय जॉन एक पायनियर (पूर्ण-समय राज्य प्रचारक) और कलीसिया में एक सहायक सेवक के रूप में कार्य करता है। वह एक दो-मंज़िला जर्जर बिल्डिंग में रहता है जिसमें १३ परिवार रहते हैं। उसका कमरा पहली मंज़िल के बरामदे का एक हिस्सा है जिसे प्लाइवुड लगाकर अलग किया गया है। उसमें दो पुरानी कुर्सियाँ और एक मेज़ है जिस पर बाइबल-अध्ययन पुस्तकें लदी हुई हैं। वह फूस की चटाई पर सोता है।
जॉन ब्रॆड बेचकर दिन में एक डॉलर कमा लिया करता था, लेकिन जब गेहूँ का आयात बंद कर दिया गया, तब उसकी यह जीविका जाती रही। वह कहता है: “कभी-कभी गुज़ारा करना बड़ा कठिन लगता है, लेकिन मैं पायनियर काम जारी रखता हूँ। यहोवा ही मुझे सँभालता है। मुझे जो भी काम मिलता है मैं करता हूँ और किसी मनुष्य पर निर्भर नहीं रहता कि मुझे सँभाले या मुझे खिलाये, वैसे तो कलीसिया के भाई बहुत मददगार हैं। वे काम ढूँढ़ने में मेरी मदद करते हैं और कभी-कभी उपहारस्वरूप पैसे भी देते हैं।
“मैं बाइबल और वॉच टावर सोसाइटी के प्रकाशन पढ़ने के लिए समय निकालता हूँ। मैं सुबह-सुबह अध्ययन करता हूँ जब घर में शांति होती है और जब कभी हमारे यहाँ बिजली होती है तब रात को पढ़ता हूँ। मैं जानता हूँ कि मुझे अपना व्यक्तिगत अध्ययन करते रहना है।”
बच्चों को जीवन के लिए प्रशिक्षण देना
डैनियल एक विधुर है जिसके छः बच्चे हैं। वर्ष १९८५ में उसकी वह नौकरी चली गयी जो उसने २५ साल तक की थी, लेकिन उसे भंडारी का काम मिल गया। “आर्थिक रूप से परिवार के लिए जीवन कठिन है,” वह कहता है। “अब हम दिन में बस एक दफ़ा खा सकते हैं। एक बार, हमने तीन दिन तक कुछ नहीं खाया। हम जीवित रहने के लिए बस पानी पी सके।”
डैनियल कलीसिया में एक प्राचीन के रूप में सेवा करता है। “मैं मसीही सभाओं में जाने से कभी नहीं चूकता और मैं ईश्वरशासनिक नियुक्तियों में व्यस्त रहता हूँ,” वह कहता है। “जब भी राज्य गृह में कोई काम करना होता है, मैं निश्चित ही उपस्थित होने का संकल्प करता हूँ। और जब स्थिति कठिन होती है, तब मैं यीशु को कहे पतरस के शब्द याद करता हूँ, जो यूहन्ना ६:६८ में अभिलिखित हैं: ‘हे प्रभु हम किस के पास जाएं?’ यदि मैं यहोवा की सेवा करना छोड़ दूँ, तो कहाँ जाऊँ? पौलुस के जो शब्द हमें रोमियों ८:३५-३९ में मिलते हैं वे भी मेरा निश्चय पक्का करते हैं क्योंकि वे दिखाते हैं कि कोई बात हमें परमेश्वर और मसीह के प्रेम से अलग नहीं करेगी। यही मनोवृत्ति मैं अपने बच्चों में डालता हूँ। मैं हमेशा उनसे कहता हूँ कि हमें कभी यहोवा को नहीं छोड़ना चाहिए।” डैनियल के जोश, साथ ही नियमित पारिवारिक बाइबल अध्ययन का उसके बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव हुआ है।
देने की भावना
एक व्यक्ति शायद सोचे कि जो अति ग़रीबी में रहते हैं वे शायद ही राज्य हितों को आर्थिक समर्थन देने की स्थिति में हों। लेकिन ऐसा नहीं है। (लूका २१:१-४ से तुलना कीजिए।) घाना में कुछ साक्षियों का मुख्य पेशा है निर्वाह खेती। वे अपनी भूमि का एक हिस्सा परमेश्वर के राज्य हितों को बढ़ावा देने में इस्तेमाल करने के लिए अलग रखते हैं। जब उनकी भूमि के उस हिस्से की उपज बिकती है, तब वह पैसा मात्र राज्य हितों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें यहोवा के साक्षियों के स्थानीय राज्य गृह में अंशदान देना सम्मिलित है।
केंद्रीय अफ्रीका में रहनेवाली, जोन एक पायनियर है। लकवारोगी पति और चार अन्य आश्रितों को सँभालने के लिए वह ब्रॆड बेचती है। जब उसकी कलीसिया में राज्य गृह के लिए बॆंचों की ज़रूरत पड़ी, तब जोन के परिवार ने फ़ैसला किया कि वे अपना सारा पैसा दान कर देंगे। अब उनके पास कुछ नहीं बचा। लेकिन दूसरे दिन, किसी ने अचानक ही एक पुराना कर्ज़ चुका दिया, उन्हें वह पैसा मिला जिसे पाने की वे आस ही छोड़ बैठे थे!
जोन हँसमुख है और पैसे के बारे में ज़रूरत से ज़्यादा चिंता नहीं करती। “मैं प्रार्थना में यहोवा को अपनी स्थिति बताती हूँ और फिर क्षेत्र सेवकाई में चली जाती हूँ। हम जानते हैं कि इस रीति-व्यवस्था में बेहतर समय की ख़ास आशा नहीं। फिर भी, हम समझते हैं कि यहोवा हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा।”
मेहनत करना
यहोवा के साक्षी अपने आपसी प्रेम से पहचाने जाते हैं। (यूहन्ना १३:३५) जिनके पास पैसा है वे अपने ज़रूरतमंद संगी मसीहियों की मदद करते हैं। प्रायः यह उपहारस्वरूप आती है और कभी-कभी रोज़गार देकर दी जाती है।
कांगो में रहनेवाला, मार्क कोढ़ से पीड़ित है। उसके हाथों और पैरों की उँगलियाँ कुरूप हो गयी हैं। इसलिए, चलने के लिए उसे बैसाखी का सहारा लेना पड़ता है। जब मार्क ने यहोवा की सेवा करने का फ़ैसला किया, तब उसने अपने जीवन में बड़े बदलाव करने शुरू किये। पहले वह भोजन के लिए भीख माँगा करता था, परंतु अब उसने अपना भोजन आप उगाना शुरू किया। उसने मिट्टी की ईंटें भी बनाकर बेचीं।
अपनी शारीरिक अपंगता के बावजूद, मार्क ने मेहनत करना जारी रखा। आख़िरकार उसने एक टुकड़ा ज़मीन ख़रीद ली और उस पर एक छोटा-सा घर बना लिया। आज, मार्क एक कलीसिया प्राचीन के रूप में सेवा करता है और जिस नगर में वह रहता है वहाँ उसका बड़ा आदर किया जाता है। अब वह दूसरे ज़रूरतमंदों की मदद करता है।
इसमें संदेह नहीं कि बहुत-सी जगह काम पाना लगभग असंभव है। एक मसीही प्राचीन ने, जो केंद्रीय अफ्रीका में वॉच टावर सोसाइटी के एक शाखा दफ़्तर में काम करता है, लिखा: “यहाँ अनेक भाइयों के पास कोई काम नहीं है। कुछ अपना रोज़गार करने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह कठिन है। कइयों ने यह तर्क किया है कि चूँकि उन्हें ऐसे भी और वैसे भी तंगी झेलनी ही है, तो क्यों न वे पायनियर सेवक बनकर आर्थिक त्याग करें। अनेक जन पाते हैं कि यदि वे नौकरी करते, जिसमें थोड़ा या कोई पैसा नहीं मिलता, तो उन्हें इतनी आशीष नहीं मिलती जितनी पायनियर काम करके मिलती है।”
यहोवा अपने लोगों को सँभालता है
यीशु मसीह ने अपने बारे में कहा: “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं, पर मनुष्य के पुत्र को सिर धरने की भी जगह नहीं।” (लूका ९:५८) उसी तरह, प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हम इस घड़ी तक भूखे-प्यासे और नंगे हैं, और घूसे खाते हैं और मारे मारे फिरते हैं।”—१ कुरिन्थियों ४:११.
यीशु और पौलुस दोनों ने थोड़े में गुज़ारा करने का चुनाव किया ताकि वे अपनी सेवकाई को ज़्यादा अच्छी तरह पूरा कर सकें। अनेक वर्तमान-दिन मसीही ग़रीब हैं क्योंकि उनके पास कोई दूसरा चारा नहीं है। फिर भी, वे जीवन में बाइबल सिद्धांतों को लागू करते हैं और जोश के साथ परमेश्वर की सेवा करने का प्रयत्न करते हैं। वे जानते हैं कि यहोवा उनसे बहुत प्रेम करता है जब वे यीशु के आश्वासन की सत्यता का अनुभव करते हैं: “इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब [भौतिक वस्तुएं] भी तुम्हें मिल जाएंगी।” (मत्ती ६:२५-३३) इसके अलावा, परमेश्वर के इन ग़रीब सेवकों के पास प्रमाण है कि “यहोवा की आशिष—यही है जो धनी बनाती है।”—नीतिवचन १०:२२, NW.
[फुटनोट]
a इस लेख में नाम बदल दिये गये हैं।
[पेज 6 पर बक्स]
“वचन पर चलनेवाले” कौन हैं?
१९९४ में किये गये एक गैलप सर्वेक्षण के अनुसार, ९६ प्रतिशत अमरीकी “परमेश्वर या एक विश्वव्यापी आत्मा में विश्वास करते हैं।” यू.एस.न्यूज़ एण्ड वर्ल्ड रिपोर्ट ने कहा, “अमरीका में पृथ्वी पर किसी अन्य राष्ट्र से अधिक प्रति व्यक्ति गिरजे” भी हैं। ऐसे धर्मी रूप के बावजूद, एक अनुभवी सर्वेक्षण-संचालक, जॉर्ज गैलप जूनियर कहता है: “एकदम असलियत यह है कि अधिकतर अमरीकी नहीं जानते कि वे क्या मानते हैं या क्यों मानते हैं।”
आँकड़े यह भी दिखाते हैं कि अनेक लोगों की धार्मिक मान्यताओं और उनके कार्यों के बीच बड़ा अंतर है। उदाहरण के लिए, “समाजविज्ञानी कहते हैं कि देश के कुछ सबसे अधिक अपराध-ग्रस्त क्षेत्र ऐसे स्थान भी हैं जहाँ धार्मिक विश्वास और अभ्यास सबसे मज़बूत हैं,” ऐसा लेखक जॆफ़री शॆलर का कहना है।
यह हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए। क्यों? क्योंकि प्रथम शताब्दी में, प्रेरित पौलुस ने संगी मसीहियों को चिताया कि ऐसों से सावधान रहें जो “कहते हैं, कि हम परमेश्वर को जानते हैं: पर अपने कामों से उसका इन्कार करते हैं।” (तीतुस १:१६) इसके अलावा, पौलुस ने युवा तीमुथियुस से कहा कि “अन्तिम दिनों” का एक चिन्ह यह होगा कि लोग “भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे।”—२ तीमुथियुस ३:१, ५.
लेकिन, सच्चे मसीही यीशु मसीह की इस आज्ञा का पालन करने की भरसक कोशिश करते हैं, “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ।” (मत्ती २८:१९) इस तरह वे ‘वचन पर चलनेवाले बनते हैं, केवल सुननेवाले ही नहीं।’—याकूब १:२२.
[पेज 7 पर तसवीर]
संसार-भर में लोग बाइबल अध्ययन को महत्त्व देते हैं