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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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पाठकों के प्रश्‍न

पहला यूहन्‍ना ४:१८ हमें बताता है: “प्रेम में भय नहीं होता, बरन सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है।” लेकिन पतरस ने लिखा: “भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्‍वर से डरो।” (१ पतरस २:१७) हम इन दोनों आयतों का कैसे सामंजस्य कर सकते हैं?

पतरस और यूहन्‍ना दोनों प्रेरित थे जिन्होंने स्वयं यीशु मसीह से सीधे सीखा था। अतः हम विश्‍वस्त हो सकते हैं कि जो उन्होंने लिखा उसका सामंजस्य वाक़ई होता है। जहाँ तक ऊपर उद्धृत आयतों का सवाल है, कुँजी यह है कि दोनों प्रेरित भिन्‍न प्रकार के भय के बारे में बात कर रहे थे।

आइए पहले हम पतरस की सलाह पर विचार करें। जैसे संदर्भ दिखाता है, पतरस संगी मसीहियों को अधिकार में होनेवालों के प्रति उनकी मनोवृत्ति के बारे में उत्प्रेरित सलाह दे रहा था। दूसरे शब्दों में, किन्हीं क्षेत्रों में अधीनता के प्रति सही नज़रिए के बारे में वह टिप्पणी कर रहा था। अतः, उसने मसीहियों को सलाह दी कि वे राजा और हाकिम जैसे उन मनुष्यों के प्रति अधीन रहें जो मानवीय सरकारों में अधिकार के स्थानों पर हैं। (१ पतरस २:१३, १४) उसी पर आगे बात करते हुए, पतरस ने लिखा: “सब का आदर करो, भाइयों से प्रेम रखो, परमेश्‍वर से डरो, राजा का सम्मान करो।”—१ पतरस २:१७.

संदर्भ को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि जब पतरस ने कहा कि मसीहियों को ‘परमेश्‍वर से डरना चाहिए,’ उसका यह अर्थ था कि हमें परमेश्‍वर के प्रति एक गहरा, श्रद्धामय आदर, सबसे बड़े अधिकारी को नाख़ुश करने का डर होना चाहिए।—इब्रानियों ११:७ से तुलना कीजिए।

प्रेरित यूहन्‍ना की टिप्पणी के बारे में क्या? पहला यूहन्‍ना अध्याय ४ में इससे पहले, प्रेरित ने “उत्प्रेरित अभिव्यक्‍तियों” (NW) को परखने की ज़रूरत के बारे में बात की, जैसे कि वे जो झूठे भविष्यवक्‍ताओं की हैं। ये अभिव्यक्‍तियाँ निश्‍चय ही यहोवा परमेश्‍वर की ओर से नहीं हैं; ये दुष्ट संसार से आती हैं या उसे प्रतिबिंबित करती हैं।

इसकी विषमता में, अभिषिक्‍त मसीही “परमेश्‍वर के हैं।” (१ यूहन्‍ना ४:१-६) इसलिए यूहन्‍ना ने आग्रह किया: “हे प्रियो, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्‍वर से है।” प्रेम प्रदर्शित करने में परमेश्‍वर ने पहल की—उसने “हमारे पापों के प्रायश्‍चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा।” (१ यूहन्‍ना ४:७-१०) हमें कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?

स्पष्टतः, हमें अपने प्रेममय परमेश्‍वर के साथ एकता में बने रहना चाहिए। हमें उससे आतंकित नहीं होना चाहिए ना ही प्रार्थना में उसके सम्मुख जाने की संभावना में काँपना चाहिए। इससे पहले यूहन्‍ना ने सलाह दी: “यदि हमारा मन हमें दोष न दे, तो हमें परमेश्‍वर के साम्हने हियाव होता है। और जो कुछ हम मांगते हैं, वह हमें उस से मिलता है; क्योंकि हम उस की आज्ञाओं को मानते हैं।” (१ यूहन्‍ना ३:२१, २२) जी हाँ, एक अच्छा अंतःकरण शक्‍तिहीन करनेवाले या निरोधी डर के बिना परमेश्‍वर के सम्मुख जाने की हमें स्वतंत्रता प्रदान करता है। प्रेम के कारण, हम प्रार्थना में यहोवा पर ध्यान लगाने, या उसके सम्मुख जाने में स्वतंत्र महसूस करते हैं। इस मामले में, “प्रेम में भय नहीं होता।”

आइए हम इन दोनों विचारों का सामंजस्य करें। एक मसीही को हमेशा यहोवा का एक श्रद्धामय डर होना चाहिए जो उसके स्थान, शक्‍ति, और न्याय के प्रति गहरे आदर से उत्पन्‍न होता है। लेकिन हम परमेश्‍वर से अपने पिता के तौर पर प्रेम भी करते हैं और उसके साथ नज़दीकी तथा उसके सम्मुख जाने के लिए स्वतंत्रता महसूस करते हैं। उसके किसी आतंक से निरोधित होने के बजाय, हम भरोसा करते हैं कि हम उसके सम्मुख जा सकते हैं, जैसे एक बच्चा अपने प्रेममय जनक के सम्मुख जाने के लिए स्वतंत्र महसूस करता है।—याकूब ४:८.

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