ईश्वरीय भक्ति का पवित्र भेद सीखना
“मसीह भी तुम्हारे लिए दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया, कि तुम उसके पदचिह्न पर चलो।”—१ पतरस २:२१, न्यू.व.
१. ‘ईश्वरीय भक्ति के पवित्र भेद’ के संबंध में यहोवा का उद्देश्य क्या रहा है?
“ईश्वरीय भक्ति का यह पवित्र भेद” अब एक भेद नहीं! (१ तीमुथियुस ३:१६) यह झूठे धर्म के भेदों, जैसे रहस्यमय त्रियेक, से कितना अलग है, जो कि भेद ही रहते हैं! कोई भी इन्हें समझ नहीं सकता। इसके विपरीत, यहोवा ने यह प्रयोजन किया है कि यीशु मसीह के व्यक्तित्व में प्रकट पवित्र भेद को यथासंभव सुविस्तृत प्रचार दिया जाए। यीशु खुद परमेश्वर के राज्य के एक जोशीले उद्घोषक का सर्वोत्तम मिसाल बन गया। जैसा कि हम अब देखेंगे, उसके संदेश और प्रचार करने के ढंग से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
२. यीशु की सेवकाई को छुड़ौती के आगे क्यों रखा गया है? (मत्ती २०:२८)
२ तो फिर, आइए, हम यीशु के “शरीर में प्रकट” होने के विषय पर अधिक विचार करें। (१ तीमुथियुस ३:१६) मत्ती २०:२८ में हम ने पढ़ा कि यीशु “इसलिए नहीं आया कि उस की सेवा टहल की जाए, परन्तु इसलिए आया कि आप सेवा टहल करे; और बहुतों की छुड़ौती के लिए अपने प्राण दे।” यह उसकी सेवकाई को उसके छुड़ौती देने के कार्य के आगे रखता है। ऐसा क्यों? ख़ैर, वहाँ अदन में उस चालाक अज़गर ने मनुष्यजाति पर यहोवा की न्यायोचित प्रभु-सत्ता के विषय प्रतिवाद किया था, यह संकेत करते हुए कि परमेश्वर की सृष्टि में खोट थी और कि जब परीक्षा का सामना करना पड़े, तब कोई भी मानव सर्वश्रेष्ठ की ओर ख़राई बनाए नहीं रख सकता था। (अय्यूब १:६-१२; २:१-१० से तुलना करें।) एक पूर्ण मानव, “अन्तिम आदम,” के रूप में यीशु की अनिंदनीय सेवकाई ने चुनौती देनेवाले शैतान को एक दुष्ट मिथ्याभाषी साबित किया। (१ कुरिन्थियों १५:४५) इसके अतिरिक्त, यीशु ने परमेश्वर के “प्रधान कर्ता और उद्धारक” के तौर से, तथा “धर्म से जगत का न्याय” करने के लिए अपनी योग्यता पूर्ण रूप से प्रामाणित की, जो कि यहोवा की प्रभु-सत्ता को न्यायसंगत ठहराने के लिए था।—प्रेरितों के काम ५:३१, न्यू.व.; १७:३१.
३. यीशु ने पूर्ण रूप से शैतान की चुनौती का खण्डन कैसे किया?
३ यीशु ने पूर्ण रूप से शैतान की ताने-भरी चुनौती का खण्डन किया! सारे इतिहास में, इस पृथ्वी पर किसी भी मनुष्य ने परमेश्वर की सेवा—उपहास, कोड़ों की मार, और शारीरिक तथा मानसिक संत्रास के बावजूद भी—इतनी लगन से नहीं की थी। इन सब में से—एक क्रूर और शर्मनाक़ मृत्यु तक भी—वह अपने पिता की ओर वफ़ादारी में स्थिर और अडिग रहा। फिलिप्पियों २:८, ९ में पौलुस लिखते हैं कि चूँकि यीशु ने यहाँ तक आज्ञापालन किया, ‘कि मृत्यु, हाँ, यातना खंभे पर की मृत्यु सह ली, इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।’ (न्यू.व.) यीशु ने शैतान को एक ज़हरीला मिथ्याभाषी होने के तौर से बेपरदा किया, जो कि वह है!
४. यीशु पिलातुस से क्यों कह सका कि वह दुनिया में सत्य पर गवाही देने के लिए आया था?
४ इस तरह, ज़ोरदार प्रचार करने के सिर्फ़ कुछ ही सालों के ख़त्म होने पर, यीशु पुन्तियुस पिलातुस से कह सका: “तू ही तो कहता है कि मैं राजा हूँ। मैं ने इसलिए जन्म लिया, और इसलिए जगत में आया हूँ कि सत्य पर गवाही दूँ। जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।” (यूहन्ना १८:३७, न्यू.व.) पूरे पलिश्तीन में परमेश्वर के राज्य सच्चाई की घोषणा करने में यीशु ने अत्युत्तम ईश्वरीय भक्ति दर्शायी थी। उसने अपने शिष्यों को भी जोशीले प्रचारक बनने के लिए प्रशिक्षित किया। उसका मिसाल हमें उसके पदचिह्न पर चलने के लिए कितना प्रोत्साहित करता है!
हमारे आदर्श व्यक्ति से सीखना
५. यीशु की ओर ताकने के द्वारा, हम ईश्वरीय भक्ति के बारे में क्या सीख सकते हैं?
५ यहोवा की सेवा करने में अपनी ईश्वारीय भक्ति से, हम भी इब्लीस को एक झूठा साबित कर सकते हैं। हम पर जितनी भी परीक्षाएँ आएँगी, उन में से कोई उस घोर-व्यथा और अपमान के बराबर न होगी, जो यीशु ने झेलीं। तो फिर, आइये, हम हमारे आदर्श व्यक्ति से सीखें। जैसा इब्रानियों १२:१, २ हमें प्रोत्साहित करता है, हम वह दौड़ धीरज से दौड़ें, “और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें।” आदम के विपरीत, जो ईश्वरीय भक्ति के संबंध में परखे जाने पर विफल हुआ, यीशु पृथ्वी पर एकमात्र पुरुष बना जो पूर्ण रूप से सारी परीक्षाओं के बराबर हुआ। मृत्यु तक, वह “वफ़ादार, और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग” साबित हुआ। (इब्रानियों ७:२६, न्यू.व.) अनिंदनीय ख़राई दिखाकर, वह अपने शत्रुओं से कह सका: “तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है?” यीशु ने शैतान की चुनौती वापस फेंक दी, यह घोषित करते हुए: “इस संसार के सरदार का . . . मुझ पर कोई अधिकार नहीं।” और अपने विश्वासघात और गिरफ़्तारी से पहले, अपने शिष्यों को अपने आख़री भाषण को समाप्त करते-करते, उसने उन से कहा: “ढाढ़स बाँधो! मैं ने संसार को जीत लिया है।”—यूहन्ना ८:४६; १४:३०, न्यू.व.; १६:३३.
६. (अ) यीशु को क्यों मालूम है कि मनुष्यजाति को किस प्रकार की विश्रांति की ज़रूरत है? (ब) यीशु ने किस हद तक ईश्वरीय भय दर्शाया?
६ यहाँ पृथ्वी पर शरीर के रूप में, यीशु ने अनुभव किया कि मानव होने का मतलब क्या है, “स्वर्गदूतों से कुछ ही कम।” (इब्रानियों २:७) वह मानवी कमज़ोरियों से परिचित हुआ और इसलिए एक हज़ार वर्ष के लिए मनुष्यजाति के राजा और न्यायी के तौर से सेवा करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है। परमेश्वर के इस पुत्र को मालूम है कि मनुष्यजाति को किस प्रकार की विश्रांति की ज़रूरत है, क्योंकि उसी ने कहा, “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।” (मत्ती ११:२८) इब्रानियों ५:७-९ हमें बताता है: “उस ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊँचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आँसू बहा बहाकर उस से जो उस को मृत्यु से उद्धार कर सकता था, प्रार्थनाएँ और बिनतियाँ की और उसके ईश्वरीय भय के कारण उस की भली-भाँति सुनी गयी। और पुत्र होने पर भी, उस ने दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी। और (आज्ञाकारिता में) परिपूर्ण बनकर, अपने सब आज्ञा माननेवालों के लिए सदा काल के उद्धार का कारण हो गया।” (न्यू.व.) यीशु नहीं डगमगाया, हालाँकि उसे, उस घृणित अज़गर द्वारा ‘एड़ी पर डसे’ जाने में मानवी मृत्यु का डंक अनुभव करने की हद तक सहन करना पड़ा। (उत्पत्ति ३:१५) यीशु की तरह, हम हमेशा, अगर आवश्यक हो तो मृत्यु तक भी, ईश्वरीय भय प्रकट करें, इस बात का यक़ीन होकर कि यहोवा परमेश्वर हमारी बिनतियाँ सुनेंगे और हमें उद्धार देंगे।
‘धार्मिकता के लिए जीवन बिताना’
७. १ पतरस २:२१-२४ के अनुसार, मसीह हमारे लिए कौनसा आदर्श छोड़ गया, और उसके आचरण से हम पर कैसा असर होना चाहिए?
७ जब शरीर में प्रकट था, यीशु ने वफ़ादारी से ईश्वरीय भक्ति के पवित्र भेद को अनावृत किया। हम १ पतरस २:२१-२४ में पढ़ते हैं: “मसीह भी तुम्हारे लिए दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया, कि तुम उसके पदचिह्न पर चलो। न तो उस ने पाप किया, और न उसके मुँह से छल की कोई बात निकली। वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था। वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए यातना खंभे पर चढ़ गया, जिस से हम पापों के लिए मर करके धार्मिकता के लिए जीवन बिताएँ।” (न्यू.व.) जैसे हम यीशु के आचरण पर मनन करते हैं, यह हमें उसके जैसे ईश्वरीय भक्ति में लगे रहने, ख़राई बनाए रखने और धार्मिकता के लिए जीवन बिताने के लिए कितना प्रोत्साहित करता है!
८. यीशु के समान हम किस तरह धार्मिकता के लिए जीवन बिता सकेंगे?
८ यीशु वास्तव में धार्मिकता के लिए जीवन बिताता था। उसके बारे में भजन ४५:७ ने भविष्यवाणी की: “तू ने धर्म से प्रीति और दुष्टता से बैर रखा है।” उन शब्दों को यीशु पर लागू करते हुए, प्रेरित पौलुस ने इब्रानियों १:९ में कहा: “तू ने धर्म से प्रेम और अधर्म से बैर रखा।” अपनी इस ईश्वरीय भक्ति के पवित्र भेद की समझ को ध्यान में रखते हुए, हम यीशु की तरह, हमेशा धर्म से प्रेम और अधर्म से बैर रखें। मसीही आचरण में, जिस पर आज शैतान का संसार इतने तीव्र रूप से हमला कर रहा है, और परमेश्वर के संगठन के भीतर और बाहर के लोगों के साथ हमारे सारे व्यवहार में, हम यहोवा के धार्मिक सिद्धान्तों का समर्थन करके, धार्मिकता के लिए जीवन बिताने के लिए कृतसंकल्प रहें। और उस ईश्वरीय अन्तर्दृष्टि को पाने के लिए, जो इब्लीस तथा उसकी युक्तियों का प्रतिरोध करने के लिए इतनी अत्यावश्यक है, हम निरन्तर रूप से परमेश्वर के वचन से जी भरकर आत्मिक भोजन लेकर तृप्त हों!
९. सेवकाई में यीशु का जोश किस बात से बढ़ा, और इस में झूठे धार्मिक चरवाहों से संबंधित क्या सम्मिलित था?
९ यीशु का अपनी सेवकाई में जोशीला होना किसी और बात से प्रोत्साहित हुआ। वह क्या बात थी? मत्ती ९:३६ में हम पढ़ते हैं: “जब उस ने भीड़ को देखा तो उस को लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे।” तो यीशु “उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।” (मरकुस ६:३४) आवश्यक रूप से, इस में झूठे धार्मिक चरवाहों की दुष्टता और अधर्म का परदा फ़ाश करना सम्मिलित था। मत्ती १५:७-९ के अनुसार, यीशु ने इन में से कुछेक व्यक्तियों से कहा: “हे कपटियो, यशायाह ने तुम्हारे विषय में यह भविष्यद्वाणी ठीक की। कि ‘ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उन का मन मुझ से दूर रहता है। और ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि मनुष्यों की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।’”
एक घिनौना भेद
१०. आज, “अधर्म का भेद” किस पर संकेंद्रित है, और वे किस बात के दोषी हैं?
१० जैसे यीशु ने झूठे धार्मिक अगुवों के ख़िलाफ़ खरी-खरी सुनायी, वैसे ही हम आज उस भेद को घृणा के योग्य समझते हैं, जो कि ईश्वरीय भक्ति के पवित्र भेद के बिल्कुल विपरीत दिखायी देता है। २ थिस्सलुनीकियों २:७ में, पौलुस ने इसे “अधर्म का भेद” कहा। सामान्य युग की पहली सदी में यह एक भेद था क्योंकि यह तब तक अनावृत न होता, जब तक प्रेरितों की मृत्यु के बाद काफ़ी समय बीत चुका न होता। आज, यह ईसाईजगत् के पादरी वर्ग पर ज़्यादा संकेंद्रित है, जो कि परमेश्वर के धार्मिक राज्य का सुसमाचार घोषित करने के बजाय, राजनीति में ज़्यादा रुचि रखते हैं। उनके वर्गों में पाखण्ड प्रचुर है। ईसाईजगत् के प्रोटेस्टेन्ट संप्रदायों के टेलिविशन प्रचारक एक सुस्पष्ट मिसाल हैं: वे ऐसे कपटी हैं जो अपने शिष्यवृन्द को लूटते हैं, कई करोड़ों का व्यापार बनाते हैं, वेश्याओं से मेल-जोल रखते हैं, और जब उनका भाँडा फूटता है, तब बनावटी आँसू बहाते हैं, और पैसों के लिए, हमेशा ही ज़्यादा पैसों के लिए भीख माँगते रहते हैं। रोमी कैथोलिकवाद का वैटिकन भी समान घृणित दृश्य पेश करता है, जिस में उनके बेईमान राजनीतिक मित्र, बाहरी शान-ओ-शौकत, और बैंक से लेन-देन करने की उनकी भ्रष्ट पद्धतियाँ शामिल हैं।
११. ईसाईजगत् के पादरी वर्ग और पूरी बड़ी बाबेलोन को क्या होगा?
११ कोई आश्चर्य की बात नहीं कि ईसाईजगत् के पादरी वर्ग की पहचान “अधर्म के पुरुष” के साथ की जा सकती है! (२ थिस्सलुनीकियों २:३) वेश्या-समान बड़ी बाबेलोन के इस प्रधान भाग को, बाक़ी सारे झूठे धर्म के साथ, संपूर्ण रूप से अनावृत और तबाह किया जाएगा। जैसा कि हम प्रकाशितवाक्य १८:९-१७ में पढ़ते हैं, उस वक्त नेता और व्यापारी (और उनके साहूकार) शोक करेंगे: “हे दृढ़ नगर, हाय! हाय!” बड़ी बाबेलोन और उसके भेद अनावृत किए जा चुके होंगे, जो कि उस सब के बिल्कुल वैषम्य में होगा, जो ईश्वरीय भक्ति के पवित्र भेद को प्रदीप्त करता है।
१२. यीशु के धर्म से प्रीति रखने के कारण वह क्या करने तक प्रोत्साहित हुआ?
१२ यीशु के धर्म से प्रीति और अधर्म से बैर रखने के कारण, वह सच्ची उपासना की ख़ातिर खुद पूरा बल लगाकर परिश्रम करने तक प्रोत्साहित हुआ। परमेश्वर के अभिषिक्त पुत्र के रूप में यरूशलेम को उसकी पहली भेंट के दौरान, मसीह ने मंदिर में से व्यापारियों और सर्राफ़ों को यह कहके भगा दिया: “इन्हें यहाँ से ले जाओ! मेरे पिता के भवन को ब्योपार का घर मत बनाओ!” (यूहन्ना २:१३-१७) मंदिर में कुछ समय बाद की एक भेंट के दौरान, यीशु ने विरोध करनेवाले यहूदियों से कहा: “तुम अपने पिता शैतान से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरंभ से हत्यारा है, और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उस में है ही नहीं। जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, बरन झूठ का पिता है।” (यूहन्ना ८:४४) यीशु ने उन धर्मोत्सहियों को उनके मुँह पर कहकर कैसा साहस दिखाया, कि वे झूठे और शैतान के पुत्र थे!
१३. (अ) यीशु का अधर्म से बैर, खास तौर से कहाँ व्यक्त है? (ब) अधर्मी पादरी वर्ग एक ऐसे दण्ड के योग्य क्यों है, जो कि यीशु के शास्त्रियों और फ़रीसियों पर सुनाए दण्ड के समान है?
१३ यीशु का अधर्म से बैर कहीं भी इतनी बेहतर रीति से व्यक्त नहीं, जितना कि मत्ती अध्याय २३ में लिपिबद्ध, उसकी उन ज़हरीले शास्त्रियों और फ़रीसियों की डँसनेवाली निन्दा में व्यक्त है। वहाँ वह सातगुना “हाय” सुनाता है, और उनकी तुलना ‘चूना फिरी हुई क़ब्रों’ से करता है—जो ‘हर प्रकार की मलिनता, कपट और अधर्म से भरे हुए हैं!’ उसने पुकारकर कहा, “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम; कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे कर लूँ, परन्तु तुम ने न चाहा। देखो! तुम्हारा घर तुम्हारे लिए उजाड़ छोड़ा जाता है।” (आयत ३७, ३८) हमारे समय का अधर्मी पादरी वर्ग समान न्याय के योग्य है, क्योंकि, २ थिस्सलुनीकियों २:१२ के शब्दों में, ‘वे सत्य में विश्वास नहीं करते, परन्तु अधर्म से प्रसन्न होते हैं।’ उनका अधर्म उस ईश्वरीय भक्ति के पूर्णतया प्रतिपक्ष है, जो यीशु ने पृथ्वी पर रहते समय इतनी वफ़ादारी से दर्शायी थी।
परमेश्वर के न्यायदण्ड सुनाना
१४. ईश्वरीय भक्ति के पवित्र भेद के लिए क़दर से हम क्या करने के लिए प्रोत्साहित होने चाहिए?
१४ ईश्वरीय भक्ति के पवित्र भेद के लिए हमारी क़दरदानी से हम यीशु के पदचिह्न पर हमेशा निकट रूप से चलने के लिए प्रोत्साहित होने चाहिए। उसके जैसे, हमें वह बात घोषित करने में उत्साही होना चाहिए, जिसका वर्णन यशायाह ६१:२ “यहोवा का प्रसन्न रहने के वर्ष और हमारे परमेश्वर के पलटा लेने के दिन” के तौर से करता है। और ऐसा हो कि हम उत्साह से “सब विलाप करनेवालों को सान्त्वना” देने में अपना भाग करें। जैसे यीशु के समय में था, वैसे आज भी यहोवा के न्यायदण्ड सुनाने के लिए साहस ज़रूरी होता है। इन में स्पष्टवादी प्रहरीदुर्ग लेखों और रेवलेशन—इट्स ग्रॅन्ड क्लायमॅक्स ॲट हॅन्ड! नामक किताब में के कड़े संदेश शामिल हैं। हमें निर्भयता और व्यवहार-कौशल से प्रचार करना चाहिए, और हमारी बातों को “सलोना” होना चाहिए ताकि उन्हें वे लोग सुरुचिपूर्ण समझें जो धार्मिकता की ओर प्रवृत हैं। (कुलुस्सियों ४:६) ईश्वरीय भक्ति में यीशु के उदाहरण से सीखकर, ऐसा हो कि हम उचित समय पर रिपोर्ट कर सकें कि यहोवा ने जो काम हमें दिया, उसे हम ने पूरा किया है।—मत्ती २४:१४; यूहन्ना १७:४.
१५. परमेश्वर के पवित्र भेद से संबंधित, १९१४ से क्या हुआ है?
१५ जब शरीर में प्रगट था, यीशु कितना अत्युत्तम आदर्श व्यक्ति था! उस में ईश्वरीय भक्ति का पवित्र भेद कितने स्पष्ट रूप से पूरा हुआ! उसने कितनी निर्भयता से यहोवा के नाम की अति प्रशंसा की! और यीशु के पिता ने उसकी ख़राई बनाए रखनवाले आचरण के लिए उसे कितनी बढ़िया रीति से प्रतिफल दिया! लेकिन परमेश्वर के पवित्र भेद में और भी कुछ शामिल है। १९१४ से हम “प्रभु के दिन” में जी रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य १:१०) जैसे प्रकाशितवाक्य १०:७ बतलाता है, ‘परमेश्वर का पवित्र भेद उस सुसमाचार के अनुसार पूरा होने’ का समय यही है। स्वर्गीय आवाज़ों ने अब घोषित किया है: “जगत का राज्य हमारे प्रभु [यहोवा] का और उसके मसीह का हो गया, और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” (प्रकाशितवाक्य ११:१५) यहोवा ने मसीही राजा, यीशु मसीह, को अपने साथ सह-शासक बनने के लिए उसके शानदार सिंहासन पर प्रतिष्ठापित किया है!
१६. नव-प्रतिष्ठापित राजा, यीशु मसीह, ने जल्दी ही स्वर्ग में ईश्वरपरायणता बनाए रखने के लिए अपनी चिन्ता कैसे दिखायी?
१६ नवोदित राज्य में परमेश्वर के साथ सह-शासक के रूप में, यीशु को माइकल (अर्थात्, “कौन परमेश्वर के जैसे है?”) के नाम से भी बुलाया जाता है। कोई बाग़ी परमेश्वर के जैसे होने में सफ़ल नहीं हो सकता, और नव-प्रतिष्ठापित राजा ने पुराने साँप, शैतान को, और उसके दूतों को पृथ्वी पर फेंककर, इस बात को जल्दी ही प्रदर्शित किया। (प्रकाशितवाक्य १२:७-९) जी हाँ, यीशु इस बात की चिन्ता रखता है कि स्वर्ग में ईश्वरपरायणता हो, उसी तरह जैसा कि उसने पृथ्वी पर ईश्वरीय भक्ति दिखायी थी। महिमान्वित यीशु मसीह तब तक आराम नहीं करेगा जब तक कि उसने झूठे धर्म को नष्ट करके शैतान के दृश्य तथा अदृश्य संगठन को मिटा नहीं दिया है।
१७. १९१४ से, मत्ती २५:३१-३३ की पूर्ति में क्या हो रहा है?
१७ १९१४ से मत्ती २५:३१-३३ में खुद यीशु की भविष्यवाणी की पूर्ति ने परमेश्वर के पवित्र भेद को कांतिमय रूप से प्रदीप्त किया है। वहाँ यीशु बतलाता है: “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएँगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। और सब जातियाँ उसके सामने इकट्ठी की जाएँगी; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। और वह भेड़ों को अपनी दहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा।” स्वर्ग में अपनी अनुकूल अवस्थिति से, यह प्रतापी राजा, न्यायी, और ईश्वरीय भक्ति का समर्थक, सर्वप्रथम अधर्म के पुरुष और बड़ी बाबेलोन के अन्य दलों पर, और फिर शैतान के दुष्ट पार्थीव संगठन के बाक़ी सारे तत्त्वों और बकरी-समान समर्थकों पर बदला लेगा। उसके बाद शैतान को अथाह कुंड में डाला जाएगा। (प्रकाशितवाक्य २०:१-३) परन्तु भेड़-समान “धर्मी” अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे। (मत्ती २५:४६) ऐसा हो कि ईश्वरीय भक्ति के रास्ते में आपके अनुसरण से उस सच्चे समूह में आपका स्थान निश्चित हों!
१८. ईश्वरीय भक्ति के पवित्र भेद के संबंध में हमें कौनसा आनन्दमय ख़ास अनुग्रह प्राप्त है?
१८ प्रकाशितवाक्य १९:१० हमें “परमेश्वर ही को दण्डवत” करने के लिए प्रोत्साहित करता है। और क्यों? शास्त्रपद में आगे कहा गया है: “क्योंकि यीशु की गवाही भविष्यद्वाणी की आत्मा है।” प्राचीन समय की इतनी सारी उत्प्रेरित भविष्यद्वाणियों में यीशु के बारे में गवाही दी गयी थी! और जैसे ये भविष्यद्वाणियाँ पूरी हुई हैं, परमेश्वर का पवित्र भेद बिल्कुल स्पष्ट हो गया है। इसलिए, हम यह जानकर आनन्द मनाते हैं कि इस ईश्वरीय भक्ति का पवित्र भेद यीशु में मूर्तिमान हुआ। परमेश्वर के राज्य के विनम्र प्रचारकों के तौर से उसके पदचिह्न पर चलने का हमें एक बहुत बढ़िया ख़ास अनुग्रह है। हाँ, सुसमाचार के अनुसार परमेश्वर का सारा पवित्र भेद समझने और घोषित करने में हिस्सा लेना हमारे लिए सम्मान की बात है!
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ ईश्वरीय भक्ति में यीशु के उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं?
◻ जैसे मसीह ने किया वैसे हम धर्म के लिए जीवन कैसे बिता सकेंगे?
◻ ईश्वरीय भक्ति के पवित्र भेद के बिल्कुल विपरीत कौनसा घिनौना भेद स्पष्ट रूप से दिखायी देता है?
◻ ईश्वरीय भक्ति के पवित्र भेद के लिए हमारी चिन्ता से हमें क्या करने के लिए प्रोत्साहित होना चाहिए?
[पेज 20 पर तसवीरें]
ईश्वरीय भक्ति के समर्थक और एक उत्साही राज्य प्रचारक होने के नाते, यीशु पिलातुस से कह सका: “मैं इसलिए जगत में आया हूँ कि सत्य पर गवाही दूँ”
[पेज 22 पर तसवीरें]
यीशु की ईश्वरीय भक्ति व्यक्त हुई जब उसने शास्त्रियों और फ़रीसियों की निन्दा की